RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“दुरुस्त । यही तो मैं कह रहा हूं । इस कत्ल का रिश्ता अगर मेरे कारोबार से होता तो कत्ल यूं न हुआ होता ।”
“मैं अभी भी कहता हूं कि ये कत्ल किसी औरत का काम है ।”
“सबूत क्या है ? सबूत बता क्या है ? ये कोई सबूत नहीं है कि कत्ल बाइस कैलीबर की रिवॉल्वर से हुआ है जो कि जनाना हथियार माना जाता है ।”
“लेकिन चलाई गई गोलियों का बिखरा-बिखरा पैटर्न..”
“बकवास । निशानेबाजी की सलाहियात हर किसी को हासिल नहीं होती । रिवॉल्वर कोई गुलेल नहीं होती जो चलाने के लिए हर किसी को हासिल हो । वीर मेरे, ऐसे पैटर्न में गोलियां ऐसा मर्द भी चला सकता है जिसने पहले कभी रिवॉल्वर न थामी हो ।”
मुझे मोतीबाग वाली इमारत में हामिद पर चलाई गोलियों का अपना खुद का अंदाज याद आने लगा ।
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो ।” मैं बोला ,मेरा सिर स्वयंमेव ही सहमति में सिर हिलने लगा था ।
“कोल्ली ।” वो बोला, “मैनूं पता लगना चाहिए कि ए किस दी करतूत है ।”
“क्यों ?”
“क्यों ?” वो भड़का, “पागल है ? पूछता है क्यों ?”
“मेरा मतलब है ये मसला इतना अहमतरीन क्योंकर बन गया कि कातिल कौन है ? क्या तुम कातिल से बदला लेने के ख्वाहिश मंद हो ?”
“कातिल को उसके किए की सजा तो मिलनी ही चाहिए लेकिन ये अहमतरीन मसला किसी और वजह से है ।”
“और कौन सी वजह ?”
“असली कातिल का पता लगेगा तो ही तो मैं कत्ल के इल्जाम से बरी हो पाऊंगा ।”
“तुम पर कत्ल का इल्जाम कैसे आयद हो सकता है ?”
“क्योंकि सिर्फ मेरे पास ही कत्ल का कोई उद्देश्य है ।”
“क्या उद्देश्य है ? बीमे की रकम ?”
“हां ।”
“नॉनसैंस । यूं कोई अपने भाई का कत्ल कर देता है !”
“रकम का वजन ध्यान में रखकर बोल । उस रकम की मेरी मौजूदा जरूरत को ध्यान में रखकर बोल ।”
“वो सब ठीक है लेकिन फिर भी....”
“फिर भी ये कि ये मेरा भाई ही नहीं था ।”
मैं बुरी तरह से चौंका ।
“क्या !” हकबकाया-सा उसका मुंह देखता मैं बोला ।
“मरने वाला मेरा भाई नहीं था । मेरी इससे दूरदराज की भी कोई रिश्तेदारी नहीं थी ।”
“तो फिर... तो फिर...”
“ये एक लम्बी कहानी है ।”
“मुख्तसर करके सुनाओ । बस सिर्फ ट्रेलर दिखा दो ।”
“सुन । दिल्ली शहर में मेरी शुरुआती छोटी औकात से कोई बेखबर नहीं । मकबूल लोगों की गुजश्ता जिंदगी के बखिए उधेड़कर सनसनीखेज खवरें निकालने में माहिर अखबारनवीसों की मेहरबानी से सारा शहर जानता है कि कभी मैं पांच रुपए दिहाड़ी कमाने वाला बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन वर्कर हुआ करता था, बेलदार हुआ करता था । एक बेलदार दौलतमंद कैसे बन गया ? उसका ये कायापलट कैसे हुआ ?”
“कैसे हुआ ?”
“वही तुझे बताने जा रहा हूं कोल्ली । लेकिन जो कुछ तू अभी सुनेगा, अगर तूने उसे आगे कहीं दोहराया या उसका कोई बेजा इस्तेमाल किया तो, रब दी सौं, खुद अपने हाथों से मैं तेरी बोटी-बोटी काट के फेंक दूंगा । समझ गया ?”
मैंने बड़े सशंक भाव से सहमति में सिर हिलाया । उसका उस घड़ी का रौद्र रूप मुझे सच में ही बहुत डरा रहा था । अपना डर छुपाने के लिए मैंने अपना डनहिल का पैकेट निकाला तो उसने भी मेरी ओर हाथ बढ़ा दिया । मैंने एक सिगरेट उसे दिया और एक खुद सुलगा लिया ।
“सुन ।” अपने विशिष्ट अंदाज से सिगरेट का लंबा कश लगाकर धुएं की दोनाली छोड़ता हुआ वह बोला, “जिस ठेकेदार के पास मैं बेलदारी का काम करता था, उसका नाम मुकंदलाल सेठी था । असल में वो स्मगलर था और ठेकेदारी उसके स्मगलिंग के धंधे की ओट थी । उसी ने मुझे एक बार कहा कि मैं ईंटें उठाने के हकीर काम में खामखाह अपनी नौजवानी बर्बाद कर रहा था । बात तू मुख्तसर में सुनना चाहता है इसलिए मैं सीधे ही तुझे बता रहा हूं कि पहले में उसका कूरियर बना फिर उसका पच्चीस फीसदी का पार्टनर । बतौर कूरियर मैं दिल्ली से चरस लेकर मुम्बई जाता था ओर सोना लेकर वापस आता था । रब्ब दी मेहर थी कि कभी पकड़ा नहीं गया । कामयाबी का ये आलम था कि मुझे अपना एक चौथाई का पार्टनर बनाने में भी मुकंदलाल सेठी को अपना ही फायदा दिखाई दे रहा था । बहरहाल आगे किस्सा यूं है कि उन दिनों ऑफिस में बिल वगैरह टाइप करने केलिए और खाता लिखने के लिए कौशल्या नाम की एक लड़की हुआ करती थी जो कि निहायत खूबसूरत थी । मैं और सेठी दोनों ही उसके दीवाने थे लेकिन वो मेरी जगह सेठी को ही भाव देती थी जबकि मैं कुंवारा था और सेठी न सिर्फ शादीशुदा था बल्कि बालबच्चेदार भी था ।”
“गरीब लड़की होगी । दौलत की दादागिरी को समझती होगी ।”
“यही बात थी । लेकिन तब गरीब तो मैं भी नहीं था ।”
“उसे मालूम हो गया होगा कि पहले तुम्हारी क्या औकात थी !”
“शायद । बहरहाल वो लड़की सेठी जैसे शादीशुदा, उम्रदराज मर्द से प्यार की पींगे बढ़ाती थी और मैं कुढ़ता था । एक दिन इसी कुढन में मैंने सेठी की बीवी को एक गुमनाम चिट्ठी लिख दी जिसमें मैने सेठी और कौशल्या की मुहब्बत का तमाम कच्चा चिट्ठा खोल दिया । सेठी की बीवी को आग लग गई । उसने सेठी की ऐसी ऐसी-तैसी फेरी कि पट्ठा पनाह मांग गया । सेठी अपनी बीवी से खौफ खाता था क्योकि वो एक बहुत बड़े गैंगस्टर की बहन थी और उस गैंगस्टर के सदके ही वो स्मगलिंग के धंधे में पड़ा था । बीवी का हुक्म नादिर हुआ कि कौशल्या को डिसमिस करो । सेठी ने कौशल्या को नौकरी से तो निकाल दिया लेकिन उसका साथ न छोड़ा । उसने कौशल्या को कालकाजी में एक फ्लैट ले दिया जहां वो उससे चोरी-छुपे मिलने जाता रहा । मैंने वो बात भी एक और गुमनाम चिट्ठी में सेठी की बीवी को लिख दी ।”
“बड़े कमीने हो, यार ।”
“बक मत और चुपचाप सुन ।”
“सुन रहा हूं ।”
|