RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“वो” फिर वह बोली - “वो...बात ये है कि मैं टैक्सी से शशिकांत की कोठी से थोड़ा परे उतरी थी ।”
“क्यों ?” मैं बोला ।
“मुझे उस की कोठी की कोई वाकफियत नहीं थी । सच पूछो तो मुझे उस इलाके की ही कोई वाकफियत नहीं थी । उसकी बाबत किसी से दरयाफ्त करने की नीयत से मैं टैक्सी से उतरी थी । तब मैंने पाया था कि जहां मैं खड़ी थी, दस नंबर कोठी उससे अगली ही थी । तब जरा से फासले के लिए मैंने टैक्सी में दोबारा बैठना जरूरी न समझा ।”
“आप वो जरा सा फासला पैदल तय करके आयरन गेट के सामने पहुंची ?”
“हां ।”
“ड्राइवर टैक्सी आपके पीछे वहां तक लेकर नहीं आया ?”
“नहीं ।”
“उसने तब भी टैक्सी आयरन गेट तक पहुंचाने की कोशिश न की जबकि आप भीतर गई थीं ?”
“न ।”
“कमाल है ! जबकि उसे कोठी के भीतर चले आने की आपकी हिदायत थी ।”
“फौरन नहीं । पांच मिनट बाद ।”
“जाहिर है । फौरन का मतलब तो ये होता कि वो आपके साथ ही भीतर जाता ।”
वो खामोश रही ।
“बहरहाल” मैं बोला, “वो टैक्सी ड्राइवर इस बात की तसदीक नहीं कर सकता कि आप कोठी के मुख्य द्वार से ही वपिस लौट आई थीं या भीतर भी दाखिल हुई थीं ?”
“न...नहीं । नहीं कर सकता ।”
“दैट्स टू बैड ।”
“वाई ?”
“आप बड़ी आसानी से भीतर स्टडी में जाकर उसे शूट कर सकती थीं और फिर कह सकती थीं कि आपने तो कोठी में कदम ही नहीं रखा था । जैसा कि आप कह रही हैं ।”
“मैं क्या झूठ कह रही हूं ?” वो तमककर बोली ।
“आप ही को मालूम हो ।”
वो कुछ क्षण अपलक मुझे देखती रही और फिर बोली, “पिंकी भी तो वहां थी । वो क्या कहती है इस बाबत ?”
“वो कहती है कि जब वो भीतर दाखिल हुई थी तो उसने शशिकांत को अपनी स्टडी में मरा पड़ा पाया था ।”
“तो फिर ? तो फिर मैं उसकी कातिल कैसे हो सकती हूं ?”
“नहीं हो सकतीं । बशर्ते कि वो भी आप ही की तरह ...”
“क्या मेरी तरह ?”
“झूठ न बोल रही हो ।”
“वो क्यों झूठ बोलेगी ? उसे तो शशिकांत या जिन्दा मिला था या मुर्दा मिला था । अगर उसे मुर्दा मिला था तो वो कातिल कैसे हो सकती है । अगर उसे वो जिंदा मिला तो वो भला क्यों झूठ बोलकर जिंदा शख्स को मुर्दा बताएगी ?”
“कोई वजह तो दिखाई नहीं देती । मुर्दे को जिन्दा बताती तो कुछ बात भी थी ।”
“मिस्टर कोहली !” वो मुझे घूरते हुए बोली, “आई डोंट अंडरस्टैंड यू । लगता है आप मुझे खामखाह तपाने की कोशिश कर रहे हैं ।”
“आई एम सो सॉरी । मैं लाइन ही बदल लेता हूं । पहले मिली तो हुई ही होंगी आप उससे ! वर्ना आपको ये न मालूम होता कि मैं उसका हमशक्ल हूं ।”
“सिर्फ एक बार ।” वो बोली, “खेतान ही उसे यहां मेरे ऑफिस में लाया था । क्लब की रेनोवेशन का प्रोजेक्ट डिसकस करने के लिए ।”
“सिर्फ एक मुलाकात के सदके आपने ये जान लिया कि शहर में उसकी रिप्युट खराब थी ।”
“सिर्फ मुलाकात से नहीं जाना । कई सुनी-सुनाई बातों से जाना उसके नाइट क्लब के प्रोफेशन से जाना, इस बात से जाना कि वहां सरकारी ताला बंदी हुई हुई थी और .....”
वो एकाएक खामोश हो गई ।
“और” मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला “उससे अपनी रिश्तेदारी की वजह से जाना ।”
“रिश्तेदारी !” उसके मुंह से निकला ।
“करीबी । आपकी सगी बहन का छोटा देवर जो था वो ! दिल्ली के टॉप के अंडरवर्ल्ड बॉस का सगा भाई जो था वो !”
वो फिर तनिक बद्हवास हुई ।
“मेरी बहन की मर्जी पर मेरा क्या जोर ?” फिर वो सख्ती से बोली, “वो किससे शादी करती है, मैं....”
“मैं आप पर कोई ब्लेम नहीं लगा रहा मैं सिर्फ ये कहने की कोशिश कर रहा हूं कि आप शशिकांत से महज इसलिए ही वाकिफ नहीं थीं क्योंकि वो आपका ताजा-ताजा क्लायंट बना था । आप ज्यादा वाकिफ इसलिए थीं क्योंकि वो आपका रिश्तेदार था ?”
“सरासर गलत । मुझे अपनी बहन के पति से उसकी इतनी करीबी रिश्तेदारी की कोई खबर नहीं थी । ऐसी किसी रिश्तेदारी की मुझे खबर होती तो क्या मैं आज तक उससे सिर्फ एक बार मिली होती ! और वो भी एक क्लायंट के तौर पर ।”
“सही फरमाया आपने । तो फिर इसका मतलब ये हुआ कि किसी और जरिए से, किसी और वजह से आप उसके काबिलेएतराज कैरेक्टर से वाकिफ हैं ।”
वो खामोश रही ।
“मैडम, ये न भूलिए कि मैं आपके पति के लिए काम कर रहा हूं । आप मेरे सवाल का माकूल जवाब नहीं देंगी तो यही सवाल मैं आपसे माथुर साहब के सामने पूछूंगा । मुझे यकीन है कि तब आप खामोश नहीं रह पाएंगी ।”
“तब खामोश रहने की जरूरत ही कहां रह जाएगी ! वो धीरे से बोली, जो बात माथुर साहब को भी मालूम है, उस बाबत मेरा खामोश रहना बेमानी होगा ।”
“सो देयर यू आर ।”
“मैं बताती हूं ।”
“खाकसार सुन रहा है ।”
“ये... ये शख्स... शशिकांत कई दिनों से हमारे यहां फोन कर रहा था कि वो माथुर साहब से बात करना चाहता था । माथुर साहब तो यूं ऐरे-गैरे लोगों से बात करते नहीं । उनका सैक्रेट्री नायर ऐसी काल्स रिसीव करता है । वो पूछता था कि शशिकांत क्या क्या बात करना चाहता था तो शशिकांत कुछ बताता नहीं था । कहता था बात ऐसी नहीं थी जो कि हर किसी के कानों में डाली जा सकती । कई कालों के बाद नायर ने माथुर साहब से बात की तो माथुर साहब ने बात करने से साफ इन्कार कर दिया । नायर ने माथुर साहब का फैसला आगे शशिकान्त को ट्रांसफर कर दिया लेकिन वो था कि फिर भी बाज न आया । फोन करता ही रहा, करता ही रहा । फिर एक रोज उससे मैंने बात की ।”
“कब ?”
“तीन दिन पहले । मिस्टर कोहली, जो बात वो नायर को नहीं बताना चाहता था, वो उसने मुझे बताई ।”
“क्या बात ?” मैं उत्सुक भाव से बोला ।
“बोला कि वह उस घर का दामाद था ।”
“क्या ?”
“बोला कि नेपाल में पिंकी ने उससे शादी की थी ।”
“य... ये बात सच थी ?”
“पिंकी के अलावा हमारे पास तसदीक का क्या जरिया था, मिस्टर कोहली ! उसी से सवाल किया गया । वो साफ मुकर गई ।”
“मुकर गई ! यानी कि आपके ख्याल से हो सकता है कि शशिकांत सच बोल रहा हो ।”
“मिस्टर कोहली, वो लड़की कुछ भी कर सकती है । कोई काम, कोई हरकत उसके लिए नामुमकिन नहीं । शी इज क्वाईट कैपेबल ऑफ डूइंग एनीथिंग । जस्ट एनीथिंग ।”
“ओह ! क्या बोली वो ?”
“बोली कि शादी की बात सरासर झूठ थी उसने ऐसी कोई शादी नहीं की थी । अलबत्ता काफी दबाव में उसने ये जरूर कबूल किया कि शशिकान्त से वो पुराना वाकिफ थी और वही वो शख्स था, सैर-सपाटे और तफरीह की नीयत से मुंबई में अपनी सहेलियों को डिच करके जिसके साथ वो मुम्बई से नेपाल गई थी ।”
“जहां कि वो बीस दिन रही थी. ..! हैरान न होइए । माथुर साहब ने खुद बताया था ।”
“ओह ! बहरहाल पिंकी ने चिल्ला-चिल्लाकर इस बात से इन्कार किया कि नेपाल में उसने शशिकांत से शादी की थी ।”
“शशिकांत चाहता क्या था ?”
“वो चाहता था कि माथुर साहब सार्वजनिक रूप से उसे अपना दामाद तसलीम करें और खूब धूमधाम के साथ पिंकी को उसके साथ विदा करें ।”
“माथुर साहब ऐसा करते ?”
“कभी भी न करते । मरते मर जाते, न करते । ठौर मरवा देते वो ऐसी ख्वाहिश करने वाले आदमी को । लाश का पता न लगने देते ।”
“पिंकी से ये जवाबतलबी माथुर साहब की मौजूदगी में हुई थी ?”
“नहीं । इस बाबत जो बातचीत उससे की गई थी, वो सिर्फ मैंने की थी ।”
“आपने बाद में तो सब कुछ बताया होगा माथुर साहब को ?”
“नहीं बताया था ।”
“क्यों ?”
“वो डिस्टर्ब होते ।”
“आखिरकार तो ये बात माथुर साहब की जानकारी में आनी ही थी ।”
“अपने आप आती तो आ जाती । बहरहाल मैंने बताना ठीक नहीं समझा था ।”
“पिंकी से कोई सीधे बात हुई हो उनकी ?”
“किसलिए ? उन्हें तो असल मसले की भनक तक नहीं थी ।”
“जब पिंकी शादी से इन्कार करती थी तो शशिकांत कैसे साबित कर सकता था कि वो शादी हुई थी ?”
“कहता था उसके पास शादी का सबूत था, पक्का सबूत था ।”
“क्या ?”
“उसके पास शादी की विडियो फिल्म थी जो कि वो माथुर साहब को, सिर्फ माथुर साहब को दिखाना चाहता था ।”
“विडियो फिल्म !” तुरंत मेरा ध्यान अपनी जेब में मौजूद विडियो कैसेट की ओर गया । मुझे बहुत जरूरी लगने लगा कि मैं जल्द से जल्द उस फिल्म को मुकम्मल देखूं ।
“मिस्टर कोहली” सुधा कह रही थी, “मुझे साफ लफ्जों में तो नहीं कहा था उसने लेकिन मुझे लगा था कि असल में वो उस कैसेट का ही माथुर साहब से कोई सौदा करना चाहता था । वो पिंकी को क्लेम करने का उतना ख्वाहिशमंद नहीं लगता था जितना कि माथुर साहब से कैसेट के बारे में बात करने का ।”
“ब्लैकमेल ?”
“मुझे भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था । इस बाबत न सिर्फ वो माथुर साहब से बात करना चाहता था, जल्दी से जल्दी बात करना चाहता था । और बात करने की जल्दी भी पता नहीं क्यों उसे एकाएक हो गई थी ।”
वजह मुझे मालूम थी । अपनी जगह मेरी लाश छोड़कर वो हिन्दोस्तान से कूच जो कर जाने वाला था ।
“शशिकांत वीडियो कैसेट के जरिये अपना क्लेम साबित करने में कामयाव हो जाता तो, आपकी क्या राय है, माथुर साहब उसकी ब्लैकमेलिंग की डिमांड के आगे झुक जाते ?”
“झुकना माथुर साहब के कैरेक्टर से मेल नहीं खाता ।”
“यानी कि वो अपनी बेटी को उसके हाल पर छोड़ देते ।”
“ऐसा तो वो हरगिज न करते । उन्हें पिंकी से बहुत प्यार है । दिलोजान से चाहते हैं वो पिंकी को ।”
“फिर कैसे बात बनती ?”
“क्या पता कैसे बनती ? कुछ तो वो करते ही ।”
“माथुर साहब कल शाम घर पर थे ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है ! हमेशा होते हैं ।”
“हमेशा ?”
“मेरा मतलब है अपने हैंडीकैप की वजह से रेयरली ही वो कहीं जाते हैं । बहुत कम, बहुत ही कम उनका कहीं आना-जाना होता है ।”
“यूं जाते हैं तो कैसे जाते हैं ? अपने आप ? अकेले ?”
“नहीं । साथ मैं होती हूं या मनोज होता है । दो आर्डरली होते हैं ।”
“कहीं अकेले कभी नहीं जाते ?”
“अकेले ? क्यों जाएंगें ? जरूरत क्या है ?”
“जवाब दीजिए । जाते हैं या नहीं ?”
“नहीं ?”
“चाहे तो जा सकते हैं ?”
“जब कभी गए नहीं तो... ”
“चाहें तो” मैंने जिद की “जा सकते हैं ?”
“नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“आपने अभी थोड़ी देर पहले बताया था कि कल शाम माथुर साहब की तबीयत ठीक नहीं थी । ये बात आपके बोले झूठ का ही हिस्सा थी या वाकई तबीयत ठीक नहीं थी ?”
“वाकई तबीयत ठीक नहीं थी । कल वो आठ बजे से भी पहले बिस्तर के हवाले हो गए थे । मैंने खुद उन्हें सिडेटिव दिया था ताकि वो आराम की नींद सो सकें ।”
“फिर उनके पास आपकी हाजिरी तो क्या जरूरी रह गई होगी ?”
“जाहिर है ।”
“फिर तो उन्हें इस बात की खबर नहीं लगी होगी कि आप कल शाम घर से बाहर गयी थीं !”
“हां ।”
“अब, क्योंकि आप खुद घर से बाहर थीं इसलिये आपको क्या खबर लगी होगी कि वो पीछे घर पर ही थे या कहीं चले गये थे !”
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