RE: Desi Chudai Kahani मकसद
मैं पंडारा रोड पहुंचा ।
डिसूजा के घर को ताला लगा हुआ था ।
उसके मकान मालिक से पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि कल शाम का वहां से गया अभी तक नहीं लौटा था ।
कहां गायब हो गया था कम्बख्त !
मैंने मंदिर मार्ग सुजाता मेहरा के हॉस्टल में फोन किया ।
मालूम हुआ वो कमरे में नहीं थी ।
मैंने पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया और इंस्पेक्टर देवेंद्र कुमार यादव के बारे में पूछा ।
मालूम हुआ कि वो एक केस की तफ्तीश के लिए मैटकाफ रोड गए हुए थे ।
इंस्पेक्टर यादव फ्लाइंग स्क्वाड के उस दस्ते से सम्बद्ध था जो केवल कत्ल के केसों की तफ्तीश के लिए भेजा जाता था ।
वो अभी भी मैटकाफ रोड पर था तो जाहिर था कि मदान भी अभी वहीं था । मुझे मदान की बीवी से मुलाकात करने का वो बहुत मुनासिब वक्त था ।
मैं तत्काल बाराखम्बा रोड रवाना हो गया ।
मदान के पैन्थाउस अपार्टमेंट के मुख्यद्वार के झरोखे में से पहले की तरह हिरणी जैसी एक जोड़ी आंखों ने मेरा मुआयना किया ।
“मदान साहब घर में नहीं हैं ।” मेरे मुंह खोल पाने से भी पहले मुझे दरवाजे के पार से मधु का स्वर सुनाई दिया !
“बहुत अच्छी खबर है ।” मैं बोला ।
“क्या ?”
“मैं उनसे मिलने नहीं आया । इसीलिए ऐसे वक्त पर आया हूं जबकि मुझे जानकारी थी कि वो घर पर नहीं होंगे ।”
“तो और किससे मिलने आए हो ?”
“सोचो । कोई सौ पचास जने तो रहते नहीं इस अपार्टमेंट में ।”
“तुम मुझसे मिलने आए हो ?”
“जवाब तो ऐसे दिया जैसे बहुत मुश्किल सवाल था ।”
“मैं तो तुमसे नहीं मिलना चाहती ।”
“अभी नहीं चाहती हो । दरवाजा खोल के भीतर आने दोगी तो चाहने लगोगी ।”
“पागल हुए हो ! बातों में सुबह थोड़ी छूट दे दी तो पसर ही गए । सपने देखने लगे ।”
“तो क्या ह्रुआ ! सपने देखना तो इंसान के बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है ।”
“सपने कभी सच्चे नहीं होते ।”
“इस पंजाबी पुत्तर के सपने सच्चे होते हैं । हमेशा हुए हैं । आज भी होंगे ।”
“बकवास बंद करो । उनकी मौजूदगी में आना ।”
“सुनो, सुनो ।” उसे झरोखा बंद करने को तत्पर पाकर मैं जल्दी से बोला ।
“अब क्या है ?” वो झुंझलाई ।
“तुम्हारी एक खास चीज मेरे पास है । अगर तुम चाहती हो कि वो चीज मैं मदान के सामने तुम्हें सौपूं तो ठीक है, मैं उसकी मौजूदगी में आ जाऊंगा ।”
“ऐसी क्या चीज है ?”
मैंने जेब से हीरा निकाला और अपने दाएं हाथ की पहली उंगली और अंगूठे में थामकर उसे झरोखे के सामने किया ।
“ये क्या है ?” वो बोली ।
“वही जो दिखाई दे रहा है ।” मैं बड़े इत्मीनान से बोला ।
“मुझे क्यों दिखा रहे हो ?”
“तुम्हारी चीज तुम्हें न दिखाऊं तो किसे दिखाऊं ?”
“मेरी चीज ?”
“ये तुम्हारे टोप्स से निकला हीरा है । तुम्हें नहीं मालूम ये कहां गिरा था ! मालूम होता तो उठा लाती । लेकिन मुझे मालूम है कि ये कहां गिरा था !”
“कहां गिरा था ?”
“शशिकांत की कोठी के कम्पाउंड में ।”
“इस पर मेरा नाम लिखा है ?”
“सारी बातचीत यूं झरोखे के आरपार से ही होगी ?”
“नाम लिखा है इस पर मेरा ?”
“नाम तो नहीं लिखा लेकिन मैं कनॉट प्लेस में मेहरासंस से, जहां कि तुम्हारा पति तुम्हारे टोप्स सुबह देकर आया था, इस बात की तसदीक करके आया हूं कि ये हीरा ऐन बाकी हीरों जैसा है जोकि तुम्हारे टोप्स में जड़े हुए हैं । ज्वेलर्स अपनी कारीगरी को बखूबी पहचानते हैं । उन्होंने इस हीरे को देखते ही कह दिया था कि ये तुम्हारे ही टोप्स से निकला हुआ हीरा था ।”
“और ये तुम्हें शशिकांत की कोठी के कंपाउड में पड़ा मिला था ?”
“हां । जहां कि तुम्हारा पति भी मेरे साथ गया था । तुम अपने आपको खुशकिस्मत समझो कि हीरे पर मेरी निगाह पड़ी, उसकी नहीं ।”
“उसकी पड़ती तो क्या होता?”
“मुझे भीतर आने दो, बताता हूं ।”
“तो क्या होता ?”
“तो उसे मालूम हो जाता कि कल तुम शशिकान्त की कोठी पर गई थीं ।”
“इस पर कल की तारीख पड़ी हुई है ?”
“स्वीटहार्ट, ये जो फैंसी बातें तुम कर रही हो, ये मुझे सुनाने के लिये ठीक है, किसी गैर को सुनाओगी तो मुश्किल में पड़ जाओगी ।”
“मदान मेरी सुनेगा ।” वो बड़े कुटिल स्वर में बोली, “उसे अपने आगोश में लेकर और उसका सिर अपने सीने से लगाकर जब मैं उसे कहूंगी तुम मेरे पर लार टपका रहे हो और मुझे हासिल करुने के लिए यूं मुझ पर दबाव डाल रहे हो, कि तुमने हीरा यहीं ड्राइंगरूम से आज सुबह तब उठाया था जब तुम यहां आए थे और अब कह रहे हो कि हीरा शशिकांत की कोठी के कंपाउंड में पड़ा मिला था तो वो मेरी बात मानेगा न कि तुम्हारी ।”
“जानेमन, तुम्हारा पति एक इकलौता इंसान है लेकिन पुलिस के महकमे में मुलाजिम सैकड़ों की तादाद में हैं । किस किसको आगोश में लोगी, किस-किसका सिर अपने सीने से लगाओगी यूं अपनी बात समझाने के लिए ?”
“तुम पुलिस के पास जाओगे ?”
“मैं मैटकाफ रोड जाऊंगा और चुपचाप हीरा कंपाउंड में वहीं डाल दूंगा जहां से कि मैंने इसे उठाया था । फिर जब ये पुलिस के हाथ लग जाएगा तो बड़ी मासूमियत से मैं ये भी इशारा कर दूंगा कि इसकी मालकिन तुम हो । उसके बाद पुलिस ही तुम्हें बताएगी कि इस पर तुम्हारा नाम लिखा हुआ है या कल की तारीख पड़ी हुई है । तब तक के लिए जयहिन्द ।”
“ठहरो ।”
मैं ठिठका । मेरी उससे निगाह मिली । तब पहली बार मुझे उसकी निगाहें व्याकुल दिखाई दीं ।
“क्या चाहते हो ?” वह बोली ।
“ये भी कोई पूछने की बात है ?”
“हां । है पूछने की बात ।”
“'तो सुनो । सबसे पहले तो मैं ये ही चाहता हूं कि तुम मुझे शरबते-दीदार छान के देना बंद करो ।”
“मतलब ?”
“दरवाजा खोलो ।”
“अच्छा ।”
उसने दरवाजा खोला । मैंने भीतर कदम रखा । उसने तत्काल मेरे पीछे दरवाजा बंद कर दिया जो कि खाकसार के लिए बहुत अच्छी घटना थी ।
फिर मैंने आंख भरकर सिर से पांव तक उसे देखा ।
वो फिरोजी रंग की शिफौन की साड़ी और उसी रंग का स्लीवलेस ब्लाउज पहने थी और उस घड़ी श्रीदेवी से भी कहीं ज्यादा हसीन लग रही थी ।
“मुंह पोंछ लो । वो बोली ।
“क..क्या !” मैं हड़बड़ाकर बोला ।
“लार ठोडी तक टपक आई है ।”
“अच्छा वो ! वो तो अभी घुटनों तक टपकेगी । टखनों तक टकपेगी । छप्पन व्यंजनों से सजी थाली सामने देखकर भूखे का यही हाल होता है ।”
“भूखे हो ?” वो कुटिल स्वर में बोली ।
“हां । प्यासा भी ।”
“हीरा मुझे दो ।”
“जरूर ! आया ही लेनदेन के लिए हूं ।”
“क्या मतलब ?”
“मैं अभी समझाता हूं ।”
मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया उसने मुझे परे धकेलने की कोशिश की तो मैंने उसे और कस के दबोच लिया । फिर उसने अपना शरीर मेरे आलिंगन में ढीला छोड़ दिया और मेरे कान में फुसफुसाई, “वो आ जाएगा ।”
“नहीं आ जाएगा ।” मैं बोला, “इतनी जल्दी उसकी मैटकाफ रोड से खलासी नहीं होने वाली ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“तो फिर भीतर चलो ।”
मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसके निर्देश पर फ्लैट के भीतर को चल दिया ।
भीतर एक ड्राइंगरूम से भी ज्यादा सजा हुआ बैडरूम था जहां विशाल डबल बैड के करीब पहुंचकर मैंने उसे उसके पैरों पर खड़ा किया और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए ।
तत्काल वांछित प्रतिक्रिया पेश हुई ! वो लता की तरह मेरे से लिपट गई । कुछ क्षण बाद मैं उसके नहीं, वो मेरे होंठ चूस रही थी । फिर अपना निचला होंठ मैंने उसके तीखे दांतों के बीच महसूस किया । फिर एकाएक मुझे यूं लगा जैसे बिच्छु ने काट खाया हो । मैंने उसे जोर से अपने से परे धकेला और अपने निचले होंठ को एक उंगली से छुआ ।
मुझे अपनी उंगली पर खून की एक मोटी बूंद दिखाई दी । मेरे धक्के से वो पलंग पर जाकर गिरी थी और खिलखिलाकर हंस रही थी ।
मैंने कहर बरपाती निगाहों से उसकी तरफ देखा ।
“घूर क्यों रहे हो ?” फिर वो बोली, “जानते नहीं जहां शहद होता है वहां डंक भी होता है ।”
“जरूर तुम्हारा पूरा नाम मधु मक्खी होगा ।”
“यही समझ लो ।”
“शहद चाटने के लिए डंक खाना जरूरी है ?”
“हां ।” वो इठलाकर बोली ।
“डंक तो मैं खा चुका ।”
“तो शहद भी चाट लो ।”
“जहेनसीब ।”
मैं बाज की तरह उस पर झपटा ।
फिर अगला आधा घंटा वहां वो द्वंद्व युद्ध हुआ जिसमें जीत हमेशा औरत की होती है ।
“बाहर जाओ ।” मेरे शरीर के नीचे दबी आखिरकार वो बोली ।
“क्या !”
“बाहर जा के बैठो । आती हूं ।”
“ओह !”
मैं बाहर ड्राइंगरूम में जा बैठा । मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और बड़े संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिगरेट के कश लगाता हुआ हबीब बकरे की भविष्यवाणी को याद करने लगा जो कि बिल्कुल गलत निकली थी। मैंने न गश खाई थी, न पछाड़ खाकर उसके कदमों में गिरा था और न उसकी आगोश में पहुंचते ही इस फानी दुनिया से रुखसत हुआ था ।
सुधीर कोहली ! - मैंने खुद अपनी पीठ थपथपाई - दि लक्की बास्टर्ड !”
मेरा सिगरेट खत्म होने तक वो वहां पहुंची । उसने साड़ी बदल ली थी, बाल व्यवस्थित कर लिए थे और चेहरे पर नया मेकअप लगा लिया था ।
वह करीब आकर मेरे सामने बैठ गई ।
“लाओ ।” उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया ।
मैंने बिना हुज्जत किए जेब से हीरा निकालकर उसकी हथेली पर रख दिया । उसने मुट्ठी बंद करके हाथ वापस खींचने की कोशिश की तो मैंने उसकी मुट्ठी थाम ली ।”
“अभी” मैं बोला, “तुमने मुझे ये बताना है कि हीरा मैटकाफ रोड कैसे पहुंच गया ।”
उसने सहमति से सिर हिलाया ।
मैंने उसका हाथ छोड़ दिया ।
“अब ये बताओ कि कब गई थीं तुम वहां ?” मैं बोला, “या ठहरो । पहले ये बताओ कि क्यों गई थीं ? वजह ज्यादा अहम है ।”
“भयानक भी बहुत ज्यादा है ।” वह धीरे से बोली ।
मैं सुन रहा हूं ।”
“वो तो मुझे दिखाई दे रहा है, लेकिन साथ ही ये भी दिखाई दे रहा है कि जो सुनोगे, उसे मेरे ही खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश करोगे ।”
“हरगिज नहीं ।”
“अभी हीरे को मेरे खिलाफ इस्तेमाल करके नहीं हटे हो ?”
“पहले बात और थी । पहले अभी मैं परीचेहरा हुस्न की रहमतों से नवाजा नहीं गया था । जानेमन, ये नाचीज हरामी है, कमीना भी है लेकिन नाशुक्रा नहीं है ।”
उसके चेहरे पर आश्वासन के भाव आए ।
“एक बात सच-सच बताओ ।” मैं बोला ।
“पूछो ।”
“तुमने शशिकांत का कत्ल किया है ?”
“नहीं ।” वो निःसंकोच बोली ।
“फिर यकीन जानो कि जो कुछ भी तुम मुझे बताओगी, वो कम-से-कम मेरी जुबानी किसी तीसरे शख्स को सुनना नसीब नहीं होगा ।”
“मुझे यकीन है तुम्हारी बात पर ।”
“शुक्रिया । अब बोलो क्या है वो भयानक वजह जो कल तुम्हें शशिकांत की कोठी पर लेकर गई थी ।”
“बोलती हूं । कलेजा थाम के सुनो ।”
“थाम लिया ।”
“मैं उसका कत्ल करने की नीयत से वहां गई थी ।”
मैं कोई भी अप्रत्याशित बात सुनने के लिए तैयार था, लेकिन फिर भी बुरी से चौंका ।
“सच कह रही हो ?” मैं हकबकाया सा उसका मुंह देखता हुआ बोला ।
“हां ।” वो बेखौफ बोली ।
“ऐसी क्या अदावत थी तुम्हारी शशिकान्त से । मेरे तो सुनने में आया है कि तुम उससे ठीक से वाकिफ तक नहीं थीं ।”
“ठीक सुना है तुमने ।”
“तो फिर ये कत्ल का इरादा ....”
“मुझे इसलिए करना पड़ा क्योंकि उसकी मौत से मुझे फायदा था । उसकी मौत से मेरा धुंधलाया जा रहा भविष्य फिर से रोशन हो सकता था । सुख सुविधा और ऐशो-आराम की जो जिंदगी मुझे अपने से छिनती मालूम हो रही थी, वो फिर से महफूज हो सकती थी ।”
“ओह ! कहीं तुम्हारी भी घात शशिकांत की पचास लाख की इंश्योरेंस पर तो नहीं थी ?”
“उसी पर थी ।” मदान की माली हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी । सब कारोबार ठप्प थे, हर चीज गिरवी थी । ऊपर से किसी भी दिन वो जेल का मेहमान बन सकता था । इन नाजुक हालात में शशिकांत की मौत हमारे लिए वरदान साबित हो सकती थी ।”
“लेकिन कत्ल ! तुम तो कत्ल का जिक्र यूं कर रही हो, जैसे कोई चींटी मसल देने जैसा काम हो !”
वो हंसी । उस हंसी के साथ उसकी आंखों में बड़े क्रूर, बड़े वहशी भाव झलके ।
उस घड़ी मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो कोई खून पीने वाली मकड़ी थी और मैं एक भुनगा था जो पता नहीं कैसे उसके जले में फंसकर भी सलामत बाहर निकल आया था ।
“कत्ल करती तो कैसे करती ?” मैंने पूछा ।
उसने अपने दाएं हाथ की तीन उंगलियां हथेली की तरफ मोड़कर अपनी पहली उंगली मेरी तरफ तानी और यूं एक्शन किया, जैसे गोलियां चला रही हों ।
“'हथियार था ?”
“था । खास इंतजाम किया था मैंने एक पिस्तौल का ।”
“खुद ?”
“हां ।”
“कहां से ?'
“क्या करोगे जान के ?”
“वो पिस्तौल अब कहां है ?”
“वो तो मैंने कल ही जमना में फेंक दी थी । अब उसकी क्या जरूरत रह गई थी मुझे ! मेरा काम तो किसी और ने ही कर दिया था ।”
“शशिकांत की कोठी पर तुम कितने बजे गई थी ?”
“वक्त का मुझे पता नहीं । मैं घड़ी नहीं पहनती ।”
“अंदाजा ?”
“वो भी लगाना मुहाल है । मैं पहले करोल बाग अपने टेलर के पास गई थी । पता नहीं वहां मुझे कितना टाइम लगा था । वहां से रवाना तो मैं सीधी मैटकाफ रोड के लिए हुई थी लेकिन दो बार भारी ट्रैफिक जाम में फंसी थी ।”
“तुम खुद चाहे घड़ी नहीं लगातीं । लेकिन कभी तो, कहीं तो घड़ी पर निगाह पड़ी होगी ।”
“एक जगह पड़ी थी ।” वो धीरे से बोली ।
“कहां ?'
“शशिकांत की स्टडी में । उसकी स्टडी में उसकी पीठ पीछे दीवार के साथ फिट वाल केबिनेट पर एक यूनानी बुत-सा रखा था जिसके सिर पर एक बड़े दकियानूसी स्टाइल की घड़ी लगी हुई थी । मेरी जब उस घड़ी पर निगाह पड़ी थी तो उसमें साढ़े सात बजने वाले थे । बस एकाध मिनट ही कम था ।”
“घड़ी चल रही थी ?”
“चल ही रही होगी !”
“टूटी तो नहीं पड़ी थी वो ?”
“अब किसी टूट-फूट की तरफ तो ध्यान दिया नहीं था मैंने । क्योंकि तभी तो मैंने कुर्सी पर मरे पड़े शशिकांत को देखा था । मेरी तो बस एक उचटती-सी नजर घड़ी पर पड़ी थी । तुम खास टाइम के बारे में ही सवाल न करते तो मुझे तो घड़ी का जिक्र करना तक न सूझता ।”
“शशिकांत तब कुर्सी पर मरा पड़ा था ?”
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