Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:36 PM,
#32
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--32

गतान्क से आगे.

"आपने मॅनेजर नाथ से ये क्यू कहा कि हम वापस पंचमहल जा रहे हैं?",विजयंत कार को आवंतिपुर की तरफ भगा रहा था.

"इसलिए ताकि वो आगे के फार्म्स को हमारे आने की खबर ना दे.",रंभा उसके दिमाग़ से प्रभावित हुए बिना नही रह सकी.उसने अपनी सीट बेल्ट खोली & उसके कंधे पे सर रख के सामने रास्ते को देखने लगी.विजयंत ने भी फार्म पे और लोगो से पिच्छले मॅनेजर के निकाले जाने की वजह पुछि थी & उन्होने भी वही कहा था जो रंभा ने कहा था.अब उसे महसूस होने लगा था कि शायद रंभा पे उसका शक़ ग़लत है लेकिन वो शायद अभी भी उसके दिमाग़ मे था & इसका यही मतलब था कि रंभा शक़ के दायरे से बाहर नही निकली थी.

शाम के 5 बज रहे थे & कार तेज़ी से आवंतिपुर की ओर बढ़ रही थी.विजयंत ने बाई बाँह उठाके रंभा को उसके घेरे मे लिया तो रंभा उसके & करीब आ गयी & उसके सीने पे हाथ फ़िराने लगी.दोनो खामोशी मे 1 दूसरे के जिस्मो के मस्ताने एहसास का लुत्फ़ उठाते हुए रास्ता तय कर रहे थे इस बात से अंजान कि 1 कार लगातार उनका पीछा कर रही थी जिसे चलाने वाले के गाल पे 1 निशान था.

उस शख्स ने पिच्छले 2 दिनो मे विजयंत मेहरा & उसके कारोबार & परिवार के बारे मे इंटरनेट से काफ़ी जानकारी जुटाई थी.पंचमहल पहुँचने से पहले उसने सोचा भी नही था कि उसे विजयंत की ज़िंदगी के बारे मे भी जानना पड़ेगा मगर किस्मत ने उसे ऐसा करने पे मजबूर कर दिया था.उसे तो बस रंभा से मतलब था लेकिन समीर की गुमशुदगी ने सब गड़बड़ कर दिया था.

जब विजयंत रंभा के साथ पहले फार्म पे गया तो वो फिर से झल्ला उठा था.फार्म मे घुसने का रास्ता उसे नही सूझा था & उसे फार्म के बाहर के छ्होटे से बाज़ार मे तेज़ मिर्च वाले समोसे & बहुत ज़्यादा मीठी चाइ पी के वक़्त काटना पड़ा.उसने जैसे ही फ़ैसला किया कि अब उसे किसी तरह फार्म मे घुसना ही है,तभी उसे विजयंत की प्राडो बाहर आते दिखी.

इस वक़्त वो शख्स पंचमहल & आवंतिपुर के रास्ते मे पड़ने वाले दूसरे मेहरा फार्म के पास के 1 कस्बे की 1 सराई मे रुका था.उसे ये तो समझ आ गया था कि विजयंत बेटे को ढ़ूनडने निकला है & उसी सिलसिले मे फार्म्स के चक्कर लगा रहा है.उसकी समझ मे ये नही आ रहा था कि वो रंभा को हर जगह अपने साथ लेके क्यू घूम रहा था..कम्बख़्त वो 1 पल को भी अकेली नही रह पा रही थी..उसने सिगरेट वही कमरे के फर्श पे बुझाई & अपनी मच्छरदानी उठाके बिस्तर पे चला गया.रात को विजयंत फार्म छ्चोड़ने वाला नही,इतना उसे यकीन था.उसने चादर पूरे सर तक ओढ़ ली & सोने लगा,आख़िर कल सुबह बहुत सवेरे उठ उसे फिर से रंभा का पीछा करना था.

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रंभा फार्महाउस की कॉटेज मे ससुर के कमरे मे उसके बिस्तर पे 1 नीली डेनिम की मिनी स्कर्ट & स्लेटी रंग का ऑफ-शोल्डर टॉप पहने बैठी थी.पलंग के हेडबोर्ड से टेक लगाके कमर से नीचे के हिस्से को दाई तरफ मोड़ वो किसी मॅगज़ीन के पन्ने पलट रही थी कि विजयंत उसके बगल मे आ बैठा.दोनो रात का खाना खा चुके थे & उसके पहले इस फार्म के भी सारे अकाउंट्स चेक कर चुके थे.यहा भी उन्हे कोई सुराग नही मिला था.

रंभा ने मॅगज़ीन किनारे की & गर्दन बाई तरफ घुमाई & ससुर के लबो से लब सटा दिए.दोनो हौले-2 1 दूसरे को चूमने लगे.विजयंत ने उसके टॉप मे से नुमाया दाए कंधे पे हाथ रखा तो वो खुद ही उसकी ओर घूमी & अपनी ज़ुबान उसके मुँह मे घुसा दी.विजयंत उसकी ज़ुबान चूसने लगा & बया हाथ नीचे उसकी स्कर्ट पे रख दिया & दाए को उसकी गर्दन के नीचे से होते उसके दाए कंधे पे रख दिया & वाहा सहलाते हुए उसकी ज़ुबान की हर्कतो से मस्त होता रहा.

विजयंत का जोश बढ़ा तो वो थोड़ा आगे हुआ & रंभा फिर पहले जैसे ही हेअडबोर्ड से आड़ के बैठ गयी.विजयंत का हाथ उसकी स्कर्ट के नीचे जाँघ के खुले हिस्से पे बहुत हल्के-2 घूम रहा था.रंभा को उसके हाथ की ये हरकत बहुत मस्त कर रही थी.विजयंत उसकी जाँघ को मसल नही रहा था बल्कि बहुत हल्के से सहला रहा था.

अब विजयंत की ज़ुबान रंभा के मुँह मे घूम रही थी & उसका लंड उसकी ट्रॅक पॅंट मे बिल्कुल तन गया था.विजयंत उसे चूमते हुए ही थोड़ा उठा & उसके कंधे पकड़ उसे नीचे करने लगा तो उसका इशारा समझ रंभा खुद ही बिस्तर पे लेट गयी.उसके कमर का नीचे का हिस्सा अभी भी दाई तरफ मुड़ा हुआ था & उसके हाथ ससुर के चेहरे को थामे थे.विजयंत घुटनो पे हो आगे झुका तो उसका लंड बहू की गंद से टकराया.

"यहा भी कोई सुराग हाथ नही लगा ना?",रंभा ने पुछा तो वो उसे उसकी गंद पे दबाते हुए और झुका & रंभा के चेहरे को पकड़ अपने सीने को उसकी छातियो पे दबाते हुए बड़ी शिद्दत से उसे चूमने लगा.लंड के एहसास ने रंभा की चूत को भी कुलबुला दिया.वो भी नाख़ून से ससुर की दाढ़ी खरोंछती मस्ती मे खोने लगी.काफ़ी देर तक दोनो ऐसे ही चूमते रहे.विजयंत को अपने सीने मे रंभा के चुभते निपल्स अब जैसे उसके होंठो को बुलावा देते महसूस हो रहे थे.

"नही लेकिन 1 आदमी मुझे कुच्छ अजीब लगा.",उसने उसके टॉप को उपर किया & उसकी आँखो के सामने ट्रॅन्स्परेंट स्ट्रॅप्स वाली काली ब्रा मे क़ैद मस्ती मे पल-पल फूलते उसके सीने के बेकल उभार चमक उठे.उसने ब्रा के उपर से ही 2 हल्की किस्सस दोनो चूचियो पे ठोनकी तो रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद की & मुस्कुराते हुए ससुर के बालो मे उंगलिया फिराने लगी.विजयंत ने अपने घुटनो से उसकी टाँगो को सीधा कर दिया था & अब उसके उपर लेटा हुआ था.

"उउम्म्म्म..कौन?",विजयंत उसके सीने की वादी मे अपनी गर्म साँसे छ्चोड़ रहा था & रंभा के जिस्म की आग उनकी तपिश से & बढ़ रही थी.वो अब अपनी भारी जंघे आपस मे रगड़ अपनी चूत की बेसब्री जताने लगी थी.विजयंत ने उसके टॉप को फिर नीचे किया & उसके कंधो को चूमने लगा.पतले-2 ट्रॅन्स्परेंट बार स्ट्रॅप्स को उसने दांतो से उठा के कंधो के किनारे पे किया & फिर कंधो पे अपनी जीभ फिराने लगा.रंभा ने जोश मे उसके बॉल खींचे & नीचे से अपनी कमर बहुत धीरे से उचका उसके लंड को मानो जल्दी उसमे समाने का न्योता दिया.

"नाम नही पता उसका लेकिन वो सारे स्टाफ के साथ खड़ा था & थोड़ा घबराया लगा मुझे.",विजयंत की ज़ुबान उसकी गर्दन पे आई तो रंभा ने सर बिस्तर के किनारे से नीचे कर दिया ताकि वो आसानी से उसकी गोरी गर्दन चूम सके.विजयंत उसके दोनो कंधो & गर्दन के साथ-2 उसकी ठुड्डी को भी चूम रहा था & जब मस्ती मे बहाल हो रंभा ने उसके दोनो कान पकड़ उसके चेहरे को अपने गले से उठाया तभी उसने अपने लब उसके जिस्म से हटाए.

"उफफफफफफ्फ़..हालत खराब कर देते हैं आप तो!",रंभा ने प्यार से उसे झिड़का,"..तो उस से कुच्छ पुछा नही आपने?",उसकी आँखो मे अब ससुर के जिस्म के नशे के लाल डोरे दिख रहे थे.

"अभी नही.कल सवेरे उस से अकेले मे पुछुन्गा.",रंभा ने स्टाफ के उस आदमी का नाम जानने की कोई खास कोशिश नही की थी & ना ही उसकी बात से उसकी मस्ती कम हुई थी.विजयंत का शक़ बहू पे और कम हो रहा था मगर अभी भी उसका दिल उसे समीर की गुमशुदगी के मामले मे पूरी तरह से बेकसूर नही मान रहा था.

उसने उसके टॉप को उपर खिचा तो रंभा ने अपने हाथ सर के पीछे कर दिए & अगले ही पल टॉप उसके जिस्म से जुदा हो फर्श पे गिरा हुआ था.विजयंत उठा था तो रंभा ने फिर से दोनो जंघे आपस मे भींच ली थी & दोनो घुटने दाई तरफ मोड़ लिए थे.उसके हाथ ससुर की टी-शर्ट मे घुस गये थे & उसके गथिले जिस्म पे बड़ी हसरत से फिर रहे थे.1 बार फिर विजयंत उसके रसीले होंठो का रस पी रहा था.कुच्छ देर तक रंभा उसकी पीठ & उसके सीने पे अपने नाख़ून फिराती रही & फिर उसने ससुर की शर्ट निकाल दी.

"आहह..!",विजयंत झुका & अपना बाया हाथ रंभा की दाई टांग से होते उसकी जाँघ & फिर उसकी कमर के बगल से होते हुए उसके सीने के बगल मे उसकी ब्रा तक फिराया & फिर वही पे थाम लिया.रंभा ने भी टाँगे सीधी कर ली & फिर से ससुर के सर को थाम लिया & उसकी किस का जवाब देने लगी.विजयंत उसके उपर झुका उसे चूम रहा था & उसका बाया हाथ बहू की पीठ के नीचे घुस रहा था.हाथ नीचे पहुँच ब्रा के हुक्स को ढूंड रहा था.इस सब के दौरान किस जारी थी.हुक्स मिलते ही उन्हे खोल दिया गया & ब्रा को विजयंत ने उसके दाए बाज़ू से निकाला & फिर सीने को नंगा करते हुए उसके बाए कंधे पे अटका दिया & फिर चूमते हुए दोनो हाथो से रंभा के हसीन चेहरे को थाम लिया.

"उउन्न्ह.....हुउऊउन्न्ह..!",रंभा अब बहुत मस्त हो चुकी थी & उसकी पॅंटी उसके रस से भीगने लगी थी.विजयंत ने ब्रा को उसके बाए बाज़ू से निकाला & उसके सर के पीछे फर्श पे गिरा दिया तो रंभा ने अपना दाया हाथ उसकी पीठ पे रख दिया & बाए को अपने सर के बगल मे बिस्तर पे.विजयंत उसकी गर्दन पे बाई तरफ चूम रहा था.

"समझ मे नही आता..",उसने ससुर के बाल पकड़ के उसके सर को कंधे से उठाया & अपनी बाई चूची पे रखा,"..उउन्न्ह..समीर ऐसे कहा गायब हो गया & अभी तक कोई सुराग भी नही मिल रहा है....आन्न्न्नह..!",विजयंत के होंठ अब उसकी दाई चूची पे थे & उसे पूरा का पूरा मुँह मे भरने की कोशिश कर रहे थे.अचानक की गयी इस हरकत से रंभा की चूत की कसक चरम पे पहुँच गयी & उसने बेचैनी मे सर उपर उठाया & उसका जिस्म झटके खाने लगा.विजयंत अभी भी उसकी चूची को मुँह मे भरने की कोशिश मे जुटा था & वो झाडे जा रही थी.

रंभा के दाए हाथ के नाख़ून विजयंत के बाए कंधे मे धँस गये थे.वो कांप रही थी & विजयंत उसकी चूचियों को चूसे जा रहा था.रंभा का सर वापस बिस्तर के किनारे पे आ गया था & वो आहें भर रही थी.विजयंत ने बाए घुटने को उसकी टांगो के बीच घुसा उन्हे फैलाया & फिर आगे झुकते हुए रंभा के होंठ चूमे.थोड़ी देर बाद वो उठा तो उसके लबो से लब चिपकाए रंभा भी उचकी & अपने हाथ नीचे ले जाके उसकी ट्रॅक पॅंट को सरकाने लगी.

"फ़िक्र मत करो.मैं उसका पता लगा के ही दम लूँगा.",विजयंत ने उसी वक़्त कमर नीचे करते हुए लंड को रंभा की चूत पे दबा दिया.रंभा के हाथ ढीले हो दोनो जिस्मो के बीच फँस गये & उसने सर पीछे झटका.विजयंत झुका & उसकी गोरी गर्दन को चूमने लगा & फिर उसके होठ दोबारा नीचे हो उसकी प्रेमिका की चूचियों से चिपक गये.उसके हाथ रंभा की स्कर्ट के हुक्स खोल रहे थे & अगले ही पल रंभा को स्कर्ट & पॅंटी 1 साथ उसकी मखमली टाँगो से फिसलती उसके जिस्म से अलग होती महसूस हुई.रंभा अब ससुर के बिस्तर मे बिल्कुल नंगी हो चुकी थी.

"ऊहह....आन्न्‍न्णनह..!",विजयंत ने दोनो टाँगे उसकी टाँगो के बीच घुसा अपने घुटनो से उन्हे और फैला दिया & फिर आगे झुका तो रंभा ने खुद उचक के उसके होंठो का अपने होंठो से इसटेक्बल किया.विजयंत ने अपने बदन को थोड़ा सा टेढ़ा किया & बाए हाथ को नीचे कर उसकी चूत के लाल दाने पे गोल-2 उंगली घुमाने लगा.रंभा जोश से काँपने लगी & अपनी ज़ुबान मस्ती मे विजयंत की ज़ुबान से लड़ाने लगी.

"ऊन्नह..!",विजतन घुटनो पे बैठ उसके सीने पे झुक के उसकी चूचियों पे अपना मुँह चलाने लगा.उसकी उंगली ने दाने को रग़ाद-2 के रंभा को मस्ती मे दूसरी बार झड़ने पे मजबूर किया & अभी वो संभली भी नही थी कि उंगली को उसकी कसी चूत मे घुसा अंदर कुच्छ टटोलने लगा.

"आननह..हुन्न्ह..!",रंभा कमर उचका रही थी & वो अब उसके गोल पेट को चूम रहा था.उसकी उंगली अभी भी अंदर कुच्छ टटोल रही थी & रंभा को समझ मे नही आ रहा था कि वो कर क्या रहा है.

"आननह..!",तभी जैसे उसके बदन & ज़हन मे 1 धमाका सा हुआ.उसकी चूत के अंदर की दीवार पे विजयंत की उंगली ने वो जगह ढूंड निकाली थी जो शायद किसी औरत के जिस्म की सबसे नाज़ुक जगह होती है,जिसे जानकार जी-स्पॉट कहते हैं.जिस्म मे जैसे मस्ती सैलाब बन के उमड़ पड़ी थी.इतनी मस्ती कि वो उसे से नही पा रही थी.ये झड़ना था या फिर उस से भी कुच्छ और ज़्यादा.बेसब्री इतनी ज़्यादा थी कि उसने ससुर का हाथ पकड़ अपनी चूत से झटके से अलग किया & अपनी कमर उचकाने लगी.वो अपनी ही दुनिया मे खो गयी थी जहा वो चारो तरफ रंगीन बादलो से भरे आसमान मे उड़ रही थी.खुशी इतनी ज़्यादा थी कि उसका दिल उसे बर्दाश्त नही कर पाया था & वो सुबकने लगी थी.

जब थोड़ी देर बाद वो सायंत हुई & आँखे हल्के से खोली तो बगल मे उसे उसके बॉल सँवारता विजयंत अढ़लेटा नज़र आया.उसके दिल मे उसे उस जन्नत का नज़ारा दिखाने वाले शख्स के लिए बहुत प्यार उमड़ पड़ा & उसने उसके गले मे बाहें डाल बड़ी शिद्दत से चूमा & फिर बिस्तर पे लिटा दिया.वो अब अपने ससुर को अपने प्यार से सराबोर कर देना चाहती थी.

उसने उसे लिटा दिया & उसके सीने पे अपनी चूचियाँ दबाती उसे चूमने लगी.उसके बाद नीचे आई & उसके बालो भरे सीने पे हल्के-2 चूमने लगी.विजयंत उसके जिस्म को धीरे-2 सहला रहा था.रंभा के होंठो की मस्तानी हरकतें उसके जोश को बढ़ा रही थी.रंभा घने बालो के बीचो-बीच चूमती हुई नीचे उसकी नाभि तक आई & वाहा अपनी जीभ फिराई.

"ओह्ह्ह्ह..!",विजयंत ने जोश मे आह भरी.रंभा ने उसकी नाभि के नीचे बहुत धीमे-2 काटना शुरू कर दिया.विजयंत तो जोश से पागल हो उठा.रंभा ने काटते हुए ही उसकी पॅंट नीचे सर्काई & फिर उसकी टाँगो के बीच बैठ पॅंट को निकाल दिया.विजयंत के सफेद अंडरवेर मे उसका लंड बिल्कुल तना दिख रहा था.

रंभा ने अपने बॉल झटके & उन्हे दाए कंधे के उपर से आगे लाई & उनके सिरो को अपने ससुर के सीने पे फिराया.विजयंत तो मस्ती मे बहाल हो गया.बाल सीने से उसके पेट से होते हुए उसके अंडरवेर पे आए तो अपने नाज़ुक अंगो पे बालो के एहसास से वो तड़प उठा.

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क्रमशः.......
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