RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--36
गतान्क से आगे.
"मैं जा रहा हू,तुम अंदर से दरवाज़ा बंद रखना.बाहर गार्ड को भी बोल जाउन्गा की मुस्तैद रहे."
"ठीक है.वैसे क्या हमे पोलीस को नही बता देना चाहिए?",रंभा ससुर के कोट के कॉलर पे उंगली फिरा रही थी.
"हां,मैं वाहा पहुँच के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर को खबर दूँगा..-"
"तन्णन्न्..!",विजयंत & रंभा निचली मंज़िल पे बने हाल से बाहर जाने वाले मैं दरवाज़े पे खड़े बातें कर रहे थे कि उपर कुच्छ गिरने की आवाज़ आई.
"कौन है?!",विजयंत चीखा,"..रंभा,सारी बत्तियाँ जलाओ!",वो सीढ़ियाँ फलंगता उपर भागा.
"धात तेरे की!",खामोशी हो जाने की वजह से वो शख्स कमरे से बाहर निकल के वाहा का जायज़ा लेने की सोच ही रहा था की कमरे के बाहर रखे पीतल के बड़े से सजावटी वेस से वो टकरा गया & वो ज़ोर की आवाज़ करता गिरा.रंभा ने बत्तियाँ जलानी शुरू की & वो शख्स उधर ही भागा जिधर से आया था.
"आए!रुक!",विजयंत ने उस शख्स को अपने कमरे मे घुसते हुए,उसकी पीछे से बस 1 झलक देखी.वो शख्स दौड़ता हुआ बाल्कनी मे पहुँचा & जिस दरवाज़े का शीशा तोड़ अंदर घुसा था उसी से बाहर निकला & उसे बाहर से बंद कर भागा.
"साले..!रुक..!",विजयंत ने कंधे से धक्के मार दरवाज़े को खोलना चाहा & 2-3 धक्को मे वो कामयाब हो गया.इधर रंभा ने बाहर भाग के दरबान को आगाह किया तो उसने दिमाग़ लगाते हुए बुंगले के पीछे की ओर दौड़ लगाई.जब तक विजयंत बाल्कनी मे आया & दरबान पीछे पहुँचा,वो शख्स दूसरी तरफ से घूम बंगल के मेन गेट तक पहुँच गया था.
"हेयययी..!",रंभा चीखी,वो अभी तक बंगल के सामने की तरफ ही थी.वो शख्स घुमा & रंभा ने उसके चेहरे पे वही निशान देखा & देखी उसकी नफ़रत से भरी आँखे.वो शख्स घुमा & फुर्ती से गेट पे चढ़ उसे फाँद गया.बगल के बंगल का चौकीदार शोरॉगुल सुन बाहर आ ही रहा था कि उस शख्स ने उसे करारा घूँसा उसके जबड़े पे जमाया & बंगल के पिच्छली तरफ भागा & वही से अपनी कार मे सवार हो निकल भागा.
"@#!$%^&*&..साला..!",वो गालिया बकता गाड़ी को वाहा से भगाए जा रहा था.वो मंज़िल के इतने करीब पहुँच नाकाम होके लौट रहा था.
"ये आदमी अंदर घुसा कैसे?",विजयंत की रोबदार आवाज़ ने दरबान का खून जमा दिया.
"प-पता नही साहब..म-मैं तो जगा था & यहा से तो कोई नही घुसा."
"ये ठीक कह रहा है.जब मैं इसे बुलाने निकली तो ये हंगामा सुन इधर ही आ रहा था.",रंभा को उस बेचारे पे तरस आ गया.वो समझ रही थी कि वो सच कह रहा है.
"आप पोलीस को खबर कर दीजिए प्लीज़."
"हूँ.",विजयंत ने जेब से मोबाइल निकाला & पहले समीर का केस देख रहे अफ़सर की नींद खराब की & फिर क्लेवर्त की पोलीस की,"..अब मैं जा रहा हू.कही देर ना हो जाए."
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ब्रिज कोठारी कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नही & बलबीर मोहन की लाख होशियारी के बावजूद उसने भाँप लिया कि वो उसका पीछा कर रहा है.आज उसने सोच ही लिया था कि इस फोन की गुत्थी सुलझा के ही रहेगा.वो रात भर गाड़ी चलाके अब आवंतिपुर से आगे आ गया था & अब मौका था उसका पीछा कर रहे शख्स को चकमा देने का.
उसने कार की रफ़्तार बिना कम किए अचानक उसे बाई तरफ 1 कच्चे रास्ते पे उतार दिया.बलबीर चौंक गया & वो उस रास्ते से आगे बढ़ गया.उसने फ़ौरंम ब्रेक लगाया & वापस आया.उस कच्चे रास्ते पे उतर वो आयेज बढ़ा लेकिन उसे ब्रिज की कार नज़र नही आ रही थी.ब्रिज इस इलाक़े से अच्छी तरह से वाकिफ़ था & उसने फ़ौरन कार को आगे ले जाके वापस मेन रोड की तरफ घुमाया & फिर मैं रोड पार कर दूसरी तरफ के कच्चे रास्ते पे उतार दिया.उस रास्ते से होके वो फिर से थोडा आगे मेन रोड पे आया & फिर कार तेज़ी से क्लेवर्त की ओर भगा दी.जब तक बलबीर मोहन ने उसकी तरकीब समझी तब तक वो बहुत आगे निकल चुका था.
अब बलबीर मोहन को ये तो पता था नही कि ब्रिज जा कहा रहा है.वो आगे बढ़ने लगा लेकिन उसने सोचा की अब विजयंत को इस बारे मे बता देना चाहिए.विजयंत वक़्त से पहले ही झरने पे पहुच जाना चाहता था & वो अपनी कार टेढ़े-मेधे पहाड़ी रास्ते पे चला रहा था जब बलबीर का फोन आया.
"वो क्लेवर्त आ रहा है,बलबीर."
"आपको कैसे पता,मिस्टर.मेहरा?",विजयंत ने उसे फोन & घर मे घुसे आदमी वाली बातें बता दी.
"मिस्टर.मेहरा,आप प्लीज़ अकेले मत जाइए.पोलीस का या मेरे आने का इंतेज़ार कीजिए."
"मेरे बेटे का सवाल है,बलबीर!..मैं कोई ख़तरा नही ले सकता.",उसने फोन काट दिया.
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धारदार फॉल्स सैलानियो के बीच बहुत मशहूर था & वाहा तक पहुँचने के लिए 1 पक्का पैदल रास्ता था.नीचे कार पार्किंग मे गाड़ी लगा लोग उपर जाते थे & झरने के नीचे नहाने या फीओर आस-पास के खूबसूरत नज़ारे का लुत्फ़ उठाते थे.विजयंत वही खड़ा फोन करने वाले का इंतेज़ार कर रहा था कि तभी उसे दूर से कोई आता दिखा.
अभी उजाला होना शुरू नही हुआ था & उस अंधेरे मे उसे उस आदमी की शक्ल नही दिखी.हां,उसने ये ज़रौर भाँप लिया कि कद-काठी उसी के जैसी थी.उसकी चाल उसे जानी-पहचानी लगी.शायद अस आदमी ने भी उसे देख लिया & ठिठक गया.
ब्रिज ने दूर खड़े आदमी को पहचानना चाहा मगर उसे भी कुच्छ सॉफ नही दिखा.वो आगे बढ़ा की तभी उसके पैरो से कोई चीज़ आ टकराई.ऐसा लगता था जैसे किसी ने कुच्छ फेंका था उसके पैरो पे.उसने उसे उठाया तो वो कोई पॅकेट था.उसके हाथ मे कुच्छ गीला महसूस हुआ तो उसने पॅकेट को चेहरे के पास किया & फिर ऐसे दूर फेका जैसे वो कोई बड़ी ख़तरनाक चीज़ है.
ब्रिज ने सामने खड़े इंसान को देखा & सब समझ गया.ये किसी की साज़िश थी उसे फँसाने की & वो भी बेवकूफो की तरह इस जाल मे फँसता चला आया था.वो सामने खड़ा इंसान मेहरा था & उस पॅकेट मे कोई कपड़ा था जिसपे खून लगा था.ब्रिज उल्टे पाँव भागा.
विजयंत ने दूर खड़े इंसान को वो कपड़ा फेंकते देख सोचा की वो वो पॅकेट उसकी ओर फेंका रहा है.वो आगे बढ़ा & उस पॅकेट को उठाया & उसे खोल के देखा.अंदर खून के धब्बो वाली 1 कमीज़ थी.
1 पल को ब्रिज ने सोचा कि मेहरा को सब बता दे लेकिन उसे पता था कि मेहरा उसपे कभी यकीन नही करेगा & फिर ये भी तो हो सकता था की ये मेहरा की ही कोई चाल हो उसे फँसाने की.ब्रिज अपनी कार तक पहुँचा & उसे स्टार्ट कर वाहा से निकल गया.चाहे कुच्छ भी हो उसे आवंतिपुर पहुँचना था अपने होटेल & फिर वाहा से वापस डेवाले.
"कामीने..!",विजयंत बुदबुडाया.उसे समझ आ गया था की उस शख्स की कद-कती,चल-ढाल उसे क्यू जाने-पहचाने लगे थे.वो & कोई नही उसका दुश्मन कोठारी था.उसने पॅकेट को टटोला तो अंदर 1 छ्होटे से प्लास्टिक पॅकेट मे कंप्यूटर पे टाइप किया 1 खत था.
"मेहरा
ये खून तुम्हारे बेटे का है मगर घबराओ मत उसकी जान ख़तरे मे नही है.थोड़ी खरॉच आई थी उसे तो सोचा कि उस खरॉच को & कुरेद कर उसी के खून को सबूत के तौर पे तुम्हे भेजा जाए.ये कमीज़ भी उसी की है ताकि तुम्हे पक्का यकीन हो जाए की ये खत सच्चा है.
मेहरा,तुम कुच्छ दिन कोई नया काम ना करो तो तुम्हारा बेटा सही-सलामत तुम्हारे पास पहुँच जाएगा.ये बात लिख के दे दो की तुम अगले 6 महीनो तक कोई नया टेंडर लेने की कोशिश नही करोगे तो समीर तुम्हे लौटा दिया जाएगा वरना ये हो सकता है कि अगली बार खून के साथ-2 तुम्हारे प्यारे बेटे के जिस्म का कोई टुकड़ा भी तुम्हे भेजना पड़े."
खत पढ़ते ही विजयंत गुस्से से भर उठा.कुच्छ आवाज़ें सुनी तो उसने देखा की पोलिसेवाले वाहा आ रहे हैं.उसने पॅकेट थामा & उनकी ओर बढ़ गया.
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रंभा ने चाइ बनाई & 1 प्याला ले हॉल मे बैठ गयी.उस शख्स की शक्ल उसकी आँखो के सामने से हट नही रही थी & उनकी आँखो मे वो नफ़रत!..था कौन वो & इतनी नफ़रत से क्यू देखा था उसने उसको?..वो समझ नही पा रही थी की आख़िर समीर किस मुसीबत मे & क्यू फँस गया था?
वो शख्स घर मे किस इरादे से घुसा था?..उसने बंगल मे घूम रहे पोलिसेवालो को देखा.उसने उनके लिए भी चाइ बनाके हॉल के डाइनिंग टेबल पे रख दी थी & वो सब अपने-2 प्याले उठा रहे थे.
"मेडम..",थानेदार उसके पास आके बैठ गया,"..आपके ससुर के कमरे के बाल्कनी के दरवाज़े का काँच टूटा हुआ है.वो आदमी वही से घुसा था लेकिन सवाल ये है की उस वक़्त आपके ससुर कहा थे?",रंभा का दिल धड़क उठा..यानी की वो तब घुसा था जब वो विजयंत से चुद रही थी..कही उसने उन दोनो की चुदाई तो नही देख ली थी!
"मेडम..आपने जवाब नही दिया."
"हूँ..हां....देखिए,रात को 10 बजे के करीब हम दोनो अपने-2 कमरो मे सोने चले गये,उसके बाद मेरे ससुर ने मुझे 1 बजे जगाया & उस फोन का बारे मे बताया..",अभी तक थानेदार को पंचमहल पोलीस से समीर के केस के बारे मे भी जानकारी मिल गयी थी,"..हम दोनो मेरे कमरे मे ही बैठ के उस सिलसिले मे बातें करने लगे."
"आपलोगो ने कोई आवाज़ नही सुनी?"
"नही..",सुनते भी कैसे दोनो को फ़ुर्सत कहा थी 1 दूसरे के जिस्मो से खेलने से,"..हम उस फोन के बारे मे सुनके बहुत चिंतित हो गये थे."
"हूँ.",थानेदार उसे देखते हुए चाइ पीता रहा.
जब रात वियजयंत मेहरा & रंभा क्लेवर्त के बुंगले मे 1 दूसरे की बाहो मे समाए थे & ब्रिज कोठारी तेज़ी से धारदार फॉल्स जा रहा था,उस वक़्त रीता अपने कमरे मे अपने बिस्तर पे लेटी हल्के सरदर्द से परेशान अपना माथा सहला रही थी.समीर की गुमशुदगी का राज़ उसे भी समझ नही आ रहा था.पहले तो उसने सोचा था कि वो किसी हादसे का शिकार हो गया लेकिन अब उसे भी लग रहा था कि वो किसी साज़िश का शिकार हुआ है.वो इन्ही ख़यालो मे खोई थी की दरवाज़े पे दस्तक हुई.
"कौन है?"
"मैं,प्रणव."
"आ जाओ,बेटा.",वो उठ के बैठ गयी.
"क्या हुआ,मोम..तबीयत ठीक नही क्या?"
"नही,ठीक है.हल्का सरदर्द है."
"लाइए मैं दबा दू.",प्रणव उसके बाई तरफ बैठ गया & उसका सर दबाने लगा.
"अरे नही बेटा..ठीक है..तुम मत परेशान हो!",उसने उसका हाथ पकड़ हटाने की कोशिश की.
"क्यू?मैं नही दबा सकता क्या?..चलिए दबाने दीजिए.",प्रणव ने उसका हाथ हटाया & उसकी निगाह 1 पल को रीता के पतले स्ट्रॅप्स वाले नाइट्गाउन के गले पे चली गयी.रीता का दूधिया क्लीवेज हाथ उठाने-गिरने से छल्छला रहा था.उसने तुरंत नज़रे फेर ली लेकिन रीता ने उसे देख लिया था.
उसे थोड़ी शर्म आई & उसके गाल लाल हो गये लेकिन साथ ही उसे थोडा अच्छा भी लगा.प्रणव चुप-चाप उसका सर दबा रहा था & रीता भी नही समझ पा रही थी कि क्या बोले.
"शिप्रा कहा है?",उसने सवाल कर वो असहज चुप्पी तोड़ी.
"उसकी किसी सहेली की हें पार्टी थी.मैने उसे वही भेजा है.वो तो जाना नही चाह रही थी.मैने इसरार किया की जाएगी तो दिल बहलेगा."
"अच्छा किया.उसे भी परेशानी से राहत तो मिलनी ही चाहिए."
"& आपको?",प्रणव बिस्तर पे थोड़ा उपर हो गया था & उसका सर दबा रहा था.
"मैं तो ठीक हू."
"प्लीज़ मोम,झूठ मत बोलिए.आप आजकल अकेली बैठी रहती हैं & ना जाने क्या-2 सोचती रहती हैं.",रीता ने फीकी हँसी हँसी & प्रणव के हाथ हटा दिए & बिस्तर से उतरने लगी.उसका गाउन बिस्तर & उसके जिस्म के बीच फँस उसके घुटनो से उपर हो गया & प्रणव ने सास की गोरी टाँगे देखी.उसे पहली बार ये एहसास हुआ कि उसकी सास उम्र से कम दिखती थी & उसका जिस्म अभी बहुत ढीला नही पड़ा था.रीता ने जल्दी से गाउन ठीक किया & जाके कमरे की खिड़की पे खड़ी हो गयी.
"प्लीज़ मोम.संभालिए खुद को.",प्रणव उसके पीछे गया & उसके कंधो पे हाथ रख दिए.उसने ऐसा करने का सोचा नही था पर उसका दिल रीता के रेशमी जिस्म को छुना चाह रहा था.उसके हाथो के एहसास से रीता के जिस्म मे सनसनी दौड़ गयी लेकिन प्रणव का साथ उसे भला लग रहा था.प्रणव उसके कंधो को हल्के-2 दबाने लगा था.रीता ने आँखे बंद कर ली & उस छुअन के एहसास मे खोने लगी.
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क्रमशः.......
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