Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:39 PM,
#47
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--46

गतान्क से आगे......

"लेकिन समीर तो पहले ऐसा नही था.",रंभा अपनी उंगलियो से खेल रही थी.

"शिप्रा भी पहले ऐसी नही थी लेकिन अब देखो..माना की मॉम का गम बहुत ज़्यादा है लेकिन मुझे तो वो भूल ही गयी है जैसे!"

"परेशान होगी वो भी."

"नही,हमेशा से ही ऐसे होता आया है.अभी मोम का बहाना है तो पहले कभी उसकी कोई पार्टी या फिर सहेली..हुंग!..मैं कब तक बर्दाश्त करू..आख़िर पति हू उसका मेरी भी उस से कुच्छ उमीदें हैं..",वो खामोश हो गया & फिर सामने देखते हुए बोला,"..कुच्छ ज़रूरतें है मेरी भी.",रंभा उसकी बात का मतलब समझ रही थी..यानी दोनो का गम 1 जैसा ही था.वो भी प्यासी थी & प्रणव भी.उसने थोड़ा सा चेहरा दाई तरफ घुमाया..प्रणव सजीला नौजवान था & जिस्म भी सुडोल था..अब विजयंत जैसी बात नही थी लेकिन अब उसके जैसा मर्द दूसरा मिलना शायद नामुमकिन था..ठीक उसी वक़्त प्रणव ने चेहरा घुमाया & दोनो की आँखे लड़ गयी & उसने शायदा रंभा की निगाहो को पढ़ भी लिया.रंभा ने झट से चेहरा घुमा लिया & उसी पल आसमान से बूंदे बरसने लगी.

"अरे..बारिश आ गयी!",रंभा उठके तेज़ी से बंगल की तरफ जाने लगी & प्रणव भी की उसका पैर फिसला.प्रणव उसके दाई तरफ ही था,उसने झट से बाई बाँह उसकी कमर मे डाल उसे थामा & दाए हाथ मे उसका दाया हाथ थाम उसे सहारा देके बंगल के दरवाज़े तक ले आया.तेज़ी से चलने & प्रणव के हाथो के एहसास ने रंभा की धड़कने तेज़ कर दी थी.उसके हसीन चेहरे & उपर-नीचे होते क्लीवेज पे बारिश के मोती चमक रहे थे.अब दोनो बारिश से भीग नही रहे थे लेकिन फिर भी प्रणव ने अपने हाथ उसके जिस्म से हटाए नही थे & रंभा को देखे जा रहा था.रंभा बेबाक लड़की थी लेकिन थी तो लड़की ही & प्रणव की निगाहो,जिनमे उसके साथ की हसरत सॉफ झलक रही थी,की तपिश से उसके गुलाबी गाल & सुर्ख होने लगे थे.

"मैं जाऊं..",थरथरते लबो से वो बस इतना ही कह पाई थी.

"क्यू?",रंभा ने बस उसकी निगाहो मे अपनी सवालिया निगाहो से देखा.

"मेरा साथ पसंद नही तुम्हे?",प्राणवा का हाथ उसकी कमर पे और कस गया था & उसका चेहरा रंभा के दाए गाल के & नज़दीक आ गया था.आसमान मे बिजली काड्की & उसकी चमक मे रंभा ने प्रणव के चेहरे को देखा.ये वो पल था जब उसे फ़ैसला लेना था.1 कदम आगे बढ़ाके बंगल की दहलीज़ के अंदर होती & दोनो का रिश्ता शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाता & अगर वही खड़े हुए बस अपना सर उसके सीने पे झुका देती तो..तो उसे इस परिवार मे अपने ससुर के जाने के बाद 1 और सहारा मिल जाता.समीर की बदली रंगत देख अब उसे प्रणव को अपना साथी बना लेना ठीक लगा & उसने अपना सर दाई तरफ झुका उसके सीने पे रख दिया.

प्रणव ने रंभा के दाए हाथ को थामे हुए ही अपने दाए हाथ से उसकी ठुड्डी उपर की & उसके उपर झुकने लगा.रंभा की साँसे और तेज़ हो गयी.प्रणव की गर्म साँसे वो अपने चेहरे पे महसूस कर रही थी & उसका दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था.प्रणव & झुका & उसके नर्म लबो पे सटी पानी की बूँदो को अपने होंठो से हौले से सॉफ किया.रंभा सिहर उठी उस नाज़ुक च्छुअन से.प्रणव के होंठ उसके लबो को सहला रहे थे,उसकी आँखे बंद हो गयी थी & वो बस उस रोमानी लम्हे मे खोए जा रही थी.

प्रणव अब बहुत धीमे से उसके होंठो को चूम रहा था.उसके लब उसकी हर्कतो से कांप रहे थे & जब प्रणव ने किस की शिद्दत बढ़ते हुए उसके होंठो को अपने होंठो की गिरफ़्त मे लिया तो सिले लबो से भी उसकी आह निकल गयी & वो थोड़ा सा उसकी तरफ़ा घूम गयी.प्रणव ने उसके दाए हाथ को छ्चोड़ा & अपने दाए हाथ को भी उसकी कमर मे डाल उसे अपने आगोश मे भर लिया.रंभा के हाथ भी उसके सीने से आ लगे & जब प्रणव के लबो ने उसके लेबो के पार जाने की इजाज़त माँगी तो उसने शरमाते हुए अपने लब बहुत थोड़े से खोल दिए.

प्रणव की ज़ुबान उस ज़रा सी दरार से उसके मुँह मे घुसी & उसकी बेसबरा ज़ुबान से टकराई & उसके बाद रंभा की सारी झिझक ख़त्म हो गयी.उसने अपने इस नये प्रेमी के गले मे बाहें डाल दी & पूरी शिद्दत एक्स आठ उसकी किस का जवाब देने लगी.प्रणव ने उसकी कमर को कसते हुए उसे खुद से ऐसे चिपका लिया की उसकी छातियाँ प्रणव के सीने से पिस गयी & उसका लंड उसके पेट पे दब गया.रंभा उन एहसासो से & मस्त हो गयी & प्रणव के बालो को खींचते हुए उसकी ज़ुबान को चूसने लगी.

प्रणव ने उसे पीछे धकेल के बंगल दरवाज़े की बगल की दीवार से लगा दिया & अपने जिस्म को उसके जिस्म पे दबाते हुए बहुत ज़ोर से चूमने लगा.उसके हाथ रंभा की कमर & पीठ को अपनी बेताबी से जला रहे थे.प्रणव का दाया हाथ नीचे गया & उसने रंभा की जाँघ पकड़ के उपर उठाई & ठीक उसी वक़्त ज़ोर से बिजली काड्की.

"नही!",रंभा उस आवाज़ & रोशनी से जैसे होश मे आई & प्रणव को परे धकेल दिया.दीवार से लगी वो बहुत ज़ोर से साँसे ले रही थी,"..ये ठीक नही!"

"क्या ठीक नही?",प्रणव उसके करीब आया & उसके चेहरे को दाए हाथ मे थामा & बाए हाथ की उंगली उसके दाए चेहरे पे बाई तरफ माथे से लेके बाए गाल से होते हुए ठुड्डी तक फिराई,"..कि हम दोनो ज़ख़्मी दिल 1 दूसरे को मरहम लगा रहे हैं..जब हमारे हमसफ़र हमारे दर्द की परवाह नही कर रहे तो हमे हक़ नही खुद उस दर्द को दूर करने का?!",समीर की आँखो मे चाहत के शोले चमक रहे थे.उसकी उंगली रंभा के लाबो से जा लगी थी & रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली थी,"..जवाब दो,रंभा क्या ठीक नही है?"

"ओह!प्रणव..",रंभा ने उसे बाहो मे खींचा & चूमने लगी,"..लेकिन किसी को पता चल गया तो?",सवाल पुच्छ वो दोबारा उसे बाहो मे बार चूमने लगी.

"मैंहू ना!किसी को कभी कुच्छ पता नही चलेगा!",उसने उसे आगोश मे भरते हुए उसकी गर्दन पे चूमा,"आइ लव यू,रंभा!"

"आइ लव यू टू,प्रणव!",काफ़ी देर तक दोनो 1 दूसरे से लिपटे अपने प्यार का इज़हार अपने हाथो & लबो से करते रहे,"..अब जाओ."

"प्लीज़!",समीर ने बाहो से छिटकी रंभा को रोकना चाहा.

"नही,अभी नही.यहा बहुत ख़तरा है.प्लीज़,प्रणव जाओ!",वो आगे हुई & 1 आख़िरी बार अपने इस नये-नवेले प्रेमी के लब चूमे और उसे जाने को कहा.

"ओके.",प्रणव ने उसके माथे को चूमा & वाहा से चल गया.उसकी पीठ रंभा की तरफ थी & वो उसकी मुस्कान नही देख सकती थी.कल वसीयत पढ़ी जानी थी & उसे पूरा यकीन था कि विजयंत मेहरा ने अपने शेर्स अपने बेटे के नाम छ्चोड़े होंगे लेकिन बेटे की बीवी अब उसके जाल मे थी.उसे कंपनी पे हुकूमत का चस्का लग गया था & वो उस स्वाद को अब थोड़ा महसूस करना चाहता था.

रंभा ने दरवाजा बंद किया & सीढ़ियाँ चढ़ उपर अपने कमरे मे गयी.समीर वैसे ही बेख़बर सो रहा था.रंभा ने अपने कपड़े उतरे & बाथरूम मे घुस गयी.प्रणव की हर्कतो ने उसके जिस्म की आग को और भड़का दिया था.वो बाथरूम के ठंडे फर्श पे लेट गयी & अपने हाथो से अपने जिस्म को समझाने लगी.

"मिस्टर.विजयंत मेहरा के ट्रस्ट ग्रूप के सारे शेर्स उनके बेटे समीर मेहरा को जाते हैं..",सवेरे वसीयत पढ़ते वकील के यही लफ्ज़ अभी रात तक प्रणव के दिमाग़ मे गूँज रहे थे.

"ये लो..",महादेव शाह ने स्कॉच का ग्लास प्रणव की ओर बढ़ाया,"..हमारी पार्ट्नरशिप के नाम,जो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गयी.",उसने जाम उपर उठाया.प्रणव की आँखें गुस्से & दर्द से लाल थी.उसने ग्लास उठाया & कुच्छ पल शराब को देखता रहा फिर उसे सामने की दीवार पे दे मारा.

"काँच के ग्लास पे गुस्सा उतारने से क्या हासिल होगा बर्खुरदार?",शाह वैसे ही बैठा पी रहा था.

"फ़िक्र मत करिए शाह साहब.हमारी पार्ट्नरशिप ज़रूर होगी."

"लेकिन कैसे?अभी-2 तुम ही ने कहा कि समीर भी बाप के जैसे ही सोच रहा है & उसे भी किसी बाहर के शख्स पे कंपनी मे इनवेस्टमेंट के लिए भरोसा नही!",शाह तल्खी से बोला.

"ये समीर कह रहा है लेकिन अगर समीर की जगह कंपनी का मालिक कोई & हो जाए तो?"

"कोई &..",शाह ने सोचते हुए अपनी ठुड्डी खुज़ाई,"..मसलन?"

"मसलन कोई भी..रीता मेहरा,शिप्रा मेहरा या फिर रंभा मेहरा.",शाह कुच्छ पल उसे देखता रहा & फिर दोनो के ठहाको से शाह का ड्रॉयिंग हॉल गूँज उठा.

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सोनम ने कयि दिनो बाद राहत की सांस ली थी.क्लेवर्त मे हुए हादसे के बाद उसके तो होश ही उड़ गये थे & वो बहुत घबरा गयी थी कि कही पोलीस की तहकीकात से ब्रिज & उसके ताल्लुक का राज़ ना खुल जाए.उसने सबसे पहले उस फोन को,जो उसे ब्रिज ने दिया था & जिसे वो बस उस से बात करने के लिए इस्तेमाल करती थी,उसे तोड़ा & उसके सिम कार्ड को भी तोड़ शहर के बड़े नाले मे डाल आई.ब्रिज ने उसे अभी तक कोई पैसे तो दिए नही थे तो उस बात की चिंता उसे थी नही.

अगले कुच्छ दिन तो उसका फोन बजता तो उसे यही लगता कि पोलीस का होगा लेकिन जैसे-2 दिन बीते उसका डर कम होता गया & सबसे अच्छी बात तो ये हुई कि प्रणव की जगह ग्रूप की कमान अब समीर के हाथो मे थी.उसने इस बीच रंभा से 1 बार मुलाकात की थी लेकिन उसे प्रणव के इरादो के बारे मे बताने की हिम्मत उसे तब भी नही हुई.अब समीर के लौटने के बाद उसने उस बात के बारे मे सोचना छ्चोड़ भी दिया था.

अब तो उसे लगने लगा था कि ब्रिज का मारना 1 तरह से उसके लिए अच्छी ही बात थी.अब उसे किसीसे तरह का कोई डर नही था & उसे 1 सीख भी मिली थी कि आगे से वो अपने फ़ायदे के लिए ऐसे खेल ना खेले जो ख़तरो से भरे होते थे.

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"कल दोपहर 12 बजे मिलना मुझे इस पते पे.",रंभा अपने बंगल की दीवार से सटी थी & प्रणव उसकी कमर सहलाते हुए उसे चूम रहा था.उसने 1 काग़ज़ का टुकड़ा & 1 चाभी अपने कुर्ते की जेब से निकाले & उसकी ब्रा मे अटका दिए.समीर अगले ही दिन पूरे मुल्क मे फैले अपने दफ़्तरो & प्रॉजेक्ट्स के दौरे पे निकल रहा था & दोनो प्रेमियो को मिलने का मौका मिल गया था.

"ठीक है.अब जाओ.",रंभा ने उसे परे धकेला & अपने बंगल के अंदर घुस गयी.

"रंभा!",प्रणव फुसफुसाया.

"कल.",रंभा ने दरवाज़ा बंद करते हुए उसे मुस्कुरा के देखा & फिर उपर अपने कमरे मे चली गयी.समीर बेख़बर सो रहा था,रंभा ने सोचा कि उसे जगाए मगर फिर उसे पिच्छली 2 रातो की कहानी याद आई & उसने अपना इरादा बदल दिया & बिस्तर पे लेट अपने हाथो से अपने जिस्म से खेलने लगी.

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1 अपार्टमेंट बिल्डिंग के 11वे माले के फ्लॅट मे उसे प्रणव ने बुलाया था.रंभा तय वक़्त से थोड़ा पहले ही पहुँच गयी थी.प्रणव को दफ़्तर & बीवी से झूठ बोल कर उस से मिलना था लेकिन उसे ऐसी कोई उलझन नही थी.सास & ननद ने उस से रिश्ता ना के बराबर ही रखा था & पति अभी शहर मे था नही.

रंभा ने आसमानी रंग की सारी & ब्लाउस पहना था लेकिन अपने इस नये प्रेमी को रिझाने मे वो कोई कसर नही छ्चोड़ना चाहती थी.उसने फ्लॅट के बेडरूम मे रखे ड्रेसिंग टेबल के शीशे मे देखते हुए अपना आँचल अपने सीने से गिराया & अपने ब्लाउस को उतार दिया.आसमानी रंग के स्ट्रेप्लेस्स ब्रा मे क़ैद उसकी चूचियाँ शीशे मे चमक उठी.हाथ पीछे ले जाके उसने ब्रा को खोला & उसकी चूचिया खुली हवा मे सांस लेने लगी.

रंभा ने बिस्तर से साथ लाया 1 पॅकेट उठाया & उसमे से चाँदी के रंग का चमकता ब्लाउस निकाला जोकि स्ट्रेप्लेस्स ट्यूब टॉप की शक्ल मे था & उसे पहन लिया.अब उसके गोरे कंधे & सीने के उपर का हिस्सा खुला हुआ था.उसने आँचल को वापस सीने पे डाला & अपने खुले बालो को सामने अपनी बाई चूची के उपर कर लिया.

"ज़्यादा देखोगी तो कही शीशे मे जान ना आ जाए & वो तुम्हे बाहो मे ना भर ले.",रंभा चौंक के मूडी तो देखा प्रणव कमरे की दहलीज पे खड़ा था.कुच्छ शर्म,कुच्छ तारीफ की खुशी से आई मुस्कान उसके होंठो पे खेलने लगी.प्रणव आगे बढ़ा & उसकी गुदाज़ उपरी बाहें थाम उसे अपनी ओर खींचा तो रंभा ने उसे हंसते हुए परे धकेला.

"किस लिए बुलाया है मुझे यहा?",वो शोखी से उसे देख रही थी.

"तुम्हारी इबादत करने के लिए.",प्रणव ने दोबारा वही हरकते दोहराई & रंभा के बाए गाल पे चूम लिया.

"ये इबादत है!",रंभा अपने चेहरे को घुमा उसे अपने सुर्ख लबो से महरूम रखा,"..तुम तो काफिरो जैसी हरकतें कर रहे हो..उउम्म्म्म..!",प्रणव ने उसके लब चूमने मे कामयाबी हासिल कर ही ली थी.

"आशिक़ तो ऐसे ही अपने महबूब को पूजते हैं.",1 पल को होंठ जुदा कर उसने रंभा की काली आँखो मे झाँका & इस बार जब उसके होंठ झुके तो रंभा ने अपने होंठ खोल उसकी ज़ुबान से अपनी ज़ुबान लड़ा दी & अपनी बाहे उसके गले मे डाल दी.

"छ्चोड़ो..",रंभा ने कुच्छ देर बाद किस तोड़ी & उदास सी सूरत बना प्रणव की तरफ पीठ कर ली,"..शुरू मे सब ऐसी ही बाते करते हैं फिर किसी वीरान जंगल मे पड़ी पत्थर मूरत की तरह छ्चोड़ देते हैं जिसकी इबादत तो दूर किसी को उसका ख़याल भी नही रहता.",रंभा प्रणव को ये कतई नही पता चलने देना चाहती थी कि वो चुदाई कि दीवानी 1 गर्मजोशी से भरी लड़की है जोकि अपने फ़ायदे के लिए किसी भी मर्द के साथ सोने से नही झिझकति थी.उसके सामने तो उसे 1 बेबस बीवी की तस्वीर पेश करनी थी जिसका पति उस से बेरूख़् हो गया है.

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क्रमशः.......
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