Desi Porn Kahani काँच की हवेली
05-02-2020, 01:18 PM,
#53
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
वो रात का समय था. जब दीवान जी का भेजा हुआ आदमी मेरे घर आया. उस वक़्त मैं बहुत मुसीबत में था. मेरी पत्नी गर्भ से थी. और उसका बच्चा होने वाला था. मैं अपने घर के दूसरे कमरे में बेचैनी से किसी खुशख़बरी की आस में कान लगाए बैठा था. मेरे घर में उस वक़्त मेरी बेहन शांता और पड़ोस के गाओं से बच्चा जन'वाने आई महरि थी. कुच्छ ही देर बाद मुझे महरि ने ऐसी खबर सुनाई कि जिसे सुनकर मैं पत्थर का हो गया. उसने बताया कि मेरी पत्नी मर गयी और बच्चा भी पेट में ही खराब हो गया. इस खबर से मुझे बड़ा आघात पहुँचा.

मैं इसी शोक में डूबा हुआ था कि तभी दरवाज़े पर किसी की दस्तक हुई. दरवाज़ा खोला तो दीवान जी का भेजा हुआ आदमी बाहर खड़ा मिला. उसने मुझे बताया कि दीवान जी ने मुझे इसी वक़्त अपने घर बुलाया है. मन तो इस वक़्त कहीं भी जाने का नही हो रहा था पर रात गये दीवान जी ने बुलाया है तो ज़रूर कोई विशेष काम होगा. ये सोचकर मैं उसके पिछे पिछे चल पड़ा.

दीवान जी के घर पहुँचते ही दीवान जी ने मुझे ढेर सारे रुपयों का लालच दिया. फिर कंचन को मेरे हाथ में थमाए और बोले - "इस बच्ची को कहीं फेंक आओ. लेकिन ऐसी जगह फेंकना कि ये जीवित ना रहे और किसी की नज़र इसपर ना पड़े. मैं सुनकर दंग रह गया.

मैने अपने जीवन में बड़े से बड़ा अपराध किया था पर किसी नन्हे मासूम बच्चे के क़त्ल की बात सुनकर ही थर्रा उठा. मैने दीवान जी से पुछा - "दीवान जी ये बच्ची किसकी है?"

दीवान जी मेरी बात सुनकर भड़के और बोले - "तुम्हे इस बात से कोई मतलब नही होना चाहिए कि ये किसकी बच्ची है? तुम्हे इस काम के बदले लाखों रुपये दूँगा. बस आज के बाद ये सवाल कभी मत पुछ्ना. और ना इस बारे में कभी किसी से ज़िक्र करना."

मैं सोच में पड़ गया.

मैं उस वक़्त पत्नी और बच्चे की मौत के गम में पड़ा था. मुझे उस बच्ची पर बड़ी दया आ रही थी. मैं सोच रहा था - 'किसकी बच्ची है ये. कौन हैं इसके माता पिता. क्या उन्हे पता है उसकी बच्ची इस वक़्त कहाँ हैं? क्या वो ये जानते हैं कि इस वक़्त उनकी बच्ची की मौत का सौदा हो रहा है?

उस बच्ची के माता पिता के बारे में जानने की लालसा मेरे मन में तेज़ हो गयी. सहसा मेरे मन में एक विचार आया. मैने दीवान जी से कहा - "दीवान जी, अगर आप मुझे इसके माता पिता का नाम बता दें तो मैं यह काम मुफ़्त में कर जाउन्गा."

मेरा प्रस्ताव सुनकर दीवान जी उलझन में पड़ गये. फिर कुच्छ देर सोचने के बाद बोले. - "तुम इनके माता-पिता के बारे में क्यों जान'ना चाहते हो?"

"बस ऐसे ही...जिगयाशावश. आप मुझपर भरोसा कीजिए. मैं ये भेद किसी पर नही खोलूँगा." मैने दीवान जी को अपने झाँसे में लिया.

उन दिनो मैं उनका बहुत वफ़ादार हुआ करता था. दीवान जी आँख मूंदकर मुझपर भरोसा करते थे. संदेह की सुई भी उन्हे छूकर भी नही गयी. किंतु फिर भी उस रहस्य को बताने में वो हिचकिचा रहे थे. - "समझ में नही आता. तुम इसके मा-बाप के बारे में जानकार क्या करोगे? इस मामूली सी बात के लिए लाख रुपये को ठुकराना बहुत महँगा सौदा है तुम्हारे लिए."

"ये लाख रुपये तो मैं कभी भी कमा सकता हूँ दीवान जी. लेकिन जो सवाल इस वक़्त मेरे अंदर उठा है अगर उसका जवाब मुझे नही मिला तो मैं जीवन भर परेशान रहूँगा. मुझे सिर्फ़ इस बच्ची के माता-पिता के बारे में बता दीजिए, और कुच्छ नही पुछुन्गा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं. किस लिए कर रहे हैं. मैं हर तरह का वादा करता हूँ. फिर आप जो कहेंगे मैं वही करूँगा."

"सुगना मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, पर ये राज़ बहुत ख़ास है. मुझे माफ़ करना, मैं अपने साए को भी ये राज़ नही बता सकता."

दीवान जी के इनकार से मुझे किसी बड़े षड्यंत्र की बू आने लगी थी. अब तक मैं इनके हर राज़ से वाक़िफ़ था. मैं समझ गया ये किसी बड़े अपराध को जन्म देने वाले हैं. कुच्छ ऐसा करने वाले हैं जिसके बारे में मुझसे भी पर्दे दारी की जा रही है.

किंतु अब मुझमे सच को जानने की इच्छा और तेज़ हो गयी थी. मैने दीवान जी से धमकी भरे स्वर में कहा - "दीवान जी, अगर आप मुझे सच नही बताएँगे तो मैं इस बच्ची को पोलीस के पास ले जाउन्गा और उन्हे सारा सच बता दूँगा. जब आपको मुझपर भरोसा ही नही तो फिर भरोसा ना करने का परिणाम भी देख लीजिएगा."

मेरी बात का उनपर तुरंत असर हुआ, पोलीस के नाम से ही वो काँप से गये. ये जानते थे मैं कितना ज़िद्दी और क्रोधी इंसान हुआ करता था. जो मन में ठान लेता था वो करके रहता था.

दीवान जी हार मानते हुए मुझे सब कुच्छ बताते चले गये. सारा सच जान लेने के बाद मुझे इनसे बेहद घृणा सी हुई. मैं सोच भी नही सकता था कि कोई इंसान इतना नीचे गिर सकता है. जो इंसान अपने मजबूर मालिक की बेबसी का यूँ फ़ायदा उठाए वो इंसान कहलाने लायक ही नही. मैं मन मसोस कर रह गया. उनके कयि उपकार थे मुझपर जिनके बोझ तले मैं उस वक़्त दबा हुआ था.

दीवान जी ने मुझे चुप रहने के लिए कई प्रलोभन भी दिए. पर मैने इन्हे स्पस्ट माना कर दिया. मैने इनसे कहा - "मैं आपको वचन दे चुका हूँ कि सच बोलने पर मैं आपसे एक पैसा भी नही लूँगा. इसलिए अब मैं आपसे पैसे लेकर वादा खिलाफी नही कर सकता. आप निश्चिंत रहिए ये राज़ मुझ तक ही सीमित रहेगा."

उस वक़्त मैने दीवान जी से जो कहा था वो सच ही कहा था. किंतु जब मैं कंचन को लेकर दीवान जी के घर से निकला और उसे फेंकने हेतु घाटियों की तरफ बढ़ा. तब मेरे साथ कुच्छ ऐसा हुआ कि मेरी पूरी ज़िंदगी बदल गयी.

वो सर्दी की रात थी. कंचन मेरे हाथ में सफेद कपड़ों में लिपटी गहरी नींद सोई हुई थी. अचानक ही तेज़ सर्द हवा से कंचन कुन्मुनाई-शायद उसे ठंड का आभास हुआ था. मैने उसे अपनी छाती से भीच लिया. तभी जैसे मेरे अंदर कहीं कोई बिजली चमकी हो, उसे छाती से लगाते ही मुझे कुच्छ अज़ीब सा महसूस हुआ. कुच्छ ऐसा जो उस दिन से पहले मैने कभी महसूस नही किया था. जैसे किसी ने मेरे भीतर से मुझे आवाज़ दिया हो. जैसे कोई मुझे पुछ रहा हो - 'इस नन्ही मासूम बच्ची ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम इसे मारने जा रहे हो? क्या तुम शरीर से इतने लाचार हो गये हो कि तुम्हे अपना पेट भरने के लिए ऐसी नन्ही मासूम बेज़ुबान बच्ची को मारना पड़ रहा है?. जो ये भी नही जानती कि जीना क्या होता है मरना क्या होता है. जो अभी अपने मूह से मा तक भी नही बोल सकती. जो अपनी सहायता के लिए किसी को आवाज़ तक नही दे सकती. क्या तुम ऐसी बेज़ुबान बच्ची को मार कर चैन से जी सकोगे?'

वो मेरी आत्मा की आवाज़ थी-जो मुझे धिक्कार रही थी. मैं छटपटा उठा. मेरे अंदर कुच्छ पिघलता सा महसूस हुआ. शायद वो मेरा पत्थर का दिल था जो अब मोम बनता जा रहा था. उस घड़ी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई शक्ति मेरे अंदर घुस कर मुझे बुरी तरह से निचोड़ रही हो. और मैं दर्द से छटपटा रहा हूँ. सिसक रहा हूँ. मैं उस दर्द से निकलने का भरसक प्रयास कर रहा हूँ पर निकल नही पा रहा हूँ.

मैं उस पीड़ा को और ना सह सका. मेरे पैरों की शक्ति क्षीण होती चली गयी और मैं बीच रास्ते में ही धम्म से ज़मीन पर बैठ गया और सोचने लगा. 'क्या मैं सच में इतना अपंग और लाचार इंसान हूँ कि मुझे दो वक़्त की रोटी के लिए किसी बच्ची की हत्या करने पर आमादा होना पड़े. क्या मेरा ये शरीर इस लायक भी नही कि मैं मेहनत से अपने लिए दो वक़्त की रोटी की जुगाड़ ना कर सकूँ? धिक्कार है मुझपर.....और मेरे इस शरीर पर. क्या मुझसे भी नीच इंसान होगा कोई धरती पर? मुझसे तो अच्छे वो भीख-मन्गे हैं जो दूसरों के आगे हाथ फैलाते हैं. मैं तो उनसे भी गया गुज़रा हूँ.'

इस विचार के आते ही मुझे अपने अगले पिच्छले सारे पाप याद आने लगे. मुझे खुद से नफ़रत सी होने लगी. मैने उसी क्षण निर्णय किया कि अब से मैं कोई पाप नही करूँगा. मैने कंचन के माथे को चूमा और फिर से उसे अपनी छाती से लगा लिया. मैने तय कर लिया कि दीवान जी को दिए वचन के अनुसार अब ये बच्ची उनके लिए और अपने माता-पिता के लिए मर चुकी है. अब आज से ये मेरी बेटी बनकर जिएगी. अब आज से इसका पिता मैं हूँ. मैं इसके लिए मेहनत करूँगा मज़दूरी करूँगा. दूसरों के घरों में-खेतों में काम करूँगा पर इसे कोई कष्ट नही होने दूँगा.

इस विचार के साथ ही जब मैने पुनः उसे अपनी छाती से भीचा तो मेरे अंदर की सारी पीड़ा ख़तम हो गयी. मेरे निर्जीव शरीर में फिर से जान लौट आई. मैं खुशिपुर्वक उठा और अपने घर के रास्ते चल पड़ा.

घर पहुँचा तो शांता मेरे चेहरे पर खुशी और हाथ में बच्चा देखकर दंग रह गयी. मैने उसे और महरि जो पड़ोस के गाओं से मेरी बीवी को देखने आई थी-दोनो को पूरी कहानी बता दिया. साथ ही उनसे ये कसम भी लिया कि इस बात को किसी से ना कहे.

उन दोनो ने हामी भरी.

मैने सुबह ये बात प्रचारित कर दी कि मेरी बीवी मेरी बेटी को जन्म देते ही मर गयी.

इसी तरह कंचन मेरे घर पलने लगी.

"ठाकुर साहब, जिस दिन से कंचन मेरी गोद में आई तब से लेकर आज तक मैने कोई भी बुरा काम नही किया. मैने मेहनत की मज़दूरी की, दूसरे के खेतों में बैल की तरह काम किया मगर कंचन के मूह में एक नीवाला भी हराम का नही डाला. उसे जो कुच्छ भी खिलाया, पिलाया पहनाया, ओढ़ाया सब अपनी मेहनत और खून पसीने की कमाई से.

मैं खुद भूखा रहा पर उसे भर पेट खिलाया. मैने उसे सदेव अपने पलकों में बिठाकर रखा. कभी भूल से भी कोई कष्ट नही दिया. कहने को तो मैं उसका कोई नही पर उससे मेरा ऐसा नाता जुड़ गया है कि उसके लिए सौ बार मर भी सकता हूँ और सौ बार जी भी सकता हूँ."

"ऐसा ना कहो सुगना. ऐसा ना कहो." ठाकुर साहब तड़प कर बोले - "तुम्हारा कंचन का बहुत गहरा नाता है. फिर मत कहना तुम उसके कुच्छ नही लगते. तुम उत्तम व्यक्ति हो सुगना. हमारा तो दिल कर रहा है, हम अभी झुक कर तुम्हारे पावं छू लें."


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