Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-07-2019, 01:21 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
भाभी- देखो मैने भी सुबह से कुछ नही खाया है अगर तुम नही खाओगे तो मैं भी नही खाउन्गी ऐसे ही भूखी ही सो जाउन्गी अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो मेरी भी यही ज़िद है


अब मैं क्या कहूँ उनसे मैं जानता था वो जो कर रही थी मेरे लिए ही कर रही थी पर मुझे समझे ना कोई तोड़ लिए दो चार टुकड़े उनके साथ आलू के परान्ठे मुझे हमेशा से ही बहुत पसंद थे पर सिर्फ़ मेरी मम्मी के हाथ के ही पर अब वो होना नही था और इधर मेरा जी भी नही लगता था तो मैने वापिस देल्ही जाने का सोचा


मैं सीधा अपने कमरे मे आया और अपना समान डालने लगा


“मुझे बता तो देते तो मैं भी अपनी पॅकिंग कर लेती ”

“मैने सोचा तुम कुछ दिन और रुकोगी


“हाँ, रुकती तो सही पर अगर तुम ने वापिस चलने का सोचा है तो फिर चलते है मैं भी पॅकिंग कर लेती हूँ


रात के करीब 1 बजे थे , मैं और निशा घर से निकले सब लोग सो रहे थे मैने जगाना ठीक नही समझा चुपचाप गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए रास्ते मे वो मोड़ आया जो सीधा मिता के घर तक जाता था मैने कुछ देर के लिए गाड़ी रोक दी पर कितना रुकता मैं आँखो मे एक झलक भरी और फिर चल दिए देल्ही के लिए सब पीछे रह गया था सफ़र तो चल रहा था पर मैं उसी मोड़ पर रह गया था


मेरा गाँव मेरा परिवार मेरे अपने लोग मेरी आँखो मे कुछ आँसू थे जो अब सुख चुके थे ज़िंदगी कहती है कि खुल के जियो पर जिए तो कैसे जिए इन हालातों मे मैने निशा की तरफ़ देखा खिड़की खोल रखी थी उसने ठंडी हवा उसके गालो को चूम चूम के जा रही थी अपने सर को टिकाए सीट पर वो कुछ सोच रही थी


मैं- क्या सोच रही हो


वो- हमें ऐसे बिना बताए नही आना चाहिए था


मैं- बताने से भी क्या हो जाता


वो- अपने परिवार से दूर मत भागो तुम


मैं- वहाँ कौन है जो मुझे समझता है


वो- हम सब को फिकर है तुम्हारी


बाते करते करते देल्ही आ गये हम थोड़ा सा थक सा गया था तो सो गया आँख खुली तो देखा कि वो मेरे पास ही सो रही थी मुझसे चिपक के मेरा हाथ उसके सर के नीचे था मैने निकाला नही कही उसकी नींद ना टूट जाए एक बालो की लट जो उसके चेहरे पर आ गयी थी हौले से हटाया मैने,निशा ये कौन लगती थी मेरी सच कहूँ तो सब कुछ थी मेरी बस ऐसे ही दोस्ती की थी इस से कभी पर अब देखो वो क्या थी मेरे लिए


कुछ देर बाद वो उठी , मैने लेटे रहने को कहा उसके पास होने से अच्छा लग रहा था मुझे वो मुझसे और चिपक गयी


वो- कॉफी पियोगे


मैं- चाय


वो- बनाती हूँ


वो उठी तो मैं भी उठ गया वैसे तो दोपहर का टाइम हो रहा था पर अभी उठे थे तो चाय बनती थी निशा चाय बना रही थी तो मुझे उसकी कलाई दिखी एक दम कोरी खाली तो मुझे फिर कुछ याद आया मैं कमरे मे कुछ खोजने लगा और फिर मुझे वो चीज़ मिल ही गयी ये कंगन थे जो पद्मियनी भाभी ने मुझे दिए थे मिथ्लेश के लिए पर ऐसी मेरी किस्मत थी कहाँ


मैं वापिस गया रसोई मे- निशा ज़रा अपने हाथ आगे करो


वो- किसलिए


मैं- करो तो सही यार


जैसे ही उसने अपने हाथ आगे किए मैने वो कंगन उसे पहनाने लगा


वो- क्या कर रहे हो


मैं- एक तोहफा है तुम्हारे लिए


वो- जानते हो क्या कर रहे हो


मैं- जानता हूँ


वो- मनीष,………….


मैं- चुप रहो अब इतना तो हक है ना तुमपे कि तुमहरे लिए कुछ कर सकूँ


वो- हक … मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है मनीष


उसकी कलाईयों मे वो कंगन देख कर दिल को सुकून सा लगा अच्छा लगा निशा ने मुझे गले से लगा लिया फिर हम ने चाय पी कुछ छोटे मोटे काम किए कल से ज़िंदगी को वापिस पटरी पे लाने की कोशिस करनी थी मुझे एजेंसी जाना था और उसे बॅंक , ज़िंदगी का एक दिन और बीत गया था ऐसे ही


अगले दिन



मैं- तुम्हे ड्रॉप कर दूं बॅंक

वो- नही मैं मेट्रो से जाती हूँ तुम कार ले जाओ


मैं- नही , तुम गाड़ी ले जाओ


रोड पे आके मैने ऑटो लिया और बताई उसको अपनी मंज़िल बॉस मुझे देख के खुश था उसने कुछ दिन डेस्कजॉब करने को ही कहा वो भी जानते थे कि अभी मैं फील्ड मे जाने लायक नही काम मे पता ही नही चला कि कब रात हो गयी तो अब चलना ही था मैं वहाँ से चला पर घर जाने का मूड नही था तो एक बॉटल ले ली और बैठ गया ऐसे ही पता ही नही चला कि कब बॉटल आधी से ज़्यादा हो गयी


“कितना पियोगे मेरे फ़ौजी मेंटल घर नही जाना क्या ”

मैने देखा वो खड़ी थी थोड़ी दूर फिर आई और मेरे पास बैठ गयी


मैं-घर है ही कहाँ मेरा


वो- कब तक नाराज़ रहोगे


मैं- अब नाराज़ भी ना रहूं , तुमने अच्छा नही किया मेरे साथ


वो- मैं कहाँ दूर हूँ तुमसे, देखो पास ही तो हूँ तुम्हारे


मैं- तो फिर क्यो चली गयी तुम दूर


वो- ताकि फिर से तुम्हारे पास आ सकूँ


मैं- मुझे दुखी देख खुशी हुई तुम्हे


वो- मैं भी कहा सुखी हूँ देखो , जब तक तुम खुश नही तो भला मैं कैसे खुश रहूंगी
मैं- तो फिर क्यो नही आ जाती वापिस


वो- आ तो गयी हूँ क्या मैं तुमहरे साथ नही हूँ


मैं- बाते ना बनाओ


वो- तुमसे ही सीखा है , मैं कुछ कहना चाहती हूँ तुमसे


मैं- कहो


वो- देखो, निशा अच्छी लड़की है बहुत प्रेम करती है तुमसे और फिर उसका कौन है तुम्हारे सिवा उसका हाथ थाम लो


मैं- पर तुम जानती हो मेरी हर सांस तुम्हारी ही है


वो- वो भी तुम्हारी ही है ज़रा एक बार देखो तो सही वो क्यो ही तुम्हारे लिए क्योंकि वो प्यार करती है तुमसे


मैं- और मैं तुमसे जो हक तुम्हारा है वो मैं कैसे उस से …..


वो- मेरी खातिर


वो मुस्कुरई अब उस क्या जवाब देता मैं क्या कहता मैं


वो- सोचो ज़रा मेरी यही इच्छा है कि तुम निशा से शादी कर लो और मुझे पूरा विशवास है तुम मेरी ये इच्छा भी पूरी करोगे



अब मैं क्या कहता उसको उसने अपना फ़ैसला सुना दिया था अब मैं कहूँ भी तो क्या उसको पर इतना ज़रूर था कि वो दूर होकर भी मेरे पास ही थी बहुत पास शायद मेरे दिल मे मेरी धड़कनो मे
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