Desi Porn Kahani विधवा का पति
05-18-2020, 02:34 PM,
#51
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
“हूं।" सब सुनने के बाद रश्मि के हलक से वैसी ही गुर्राहट उभरी जैसी भूख और हिंसक सिंहनी के कण्ठ से निकलती है। चेहरा विकृत-सा हो गया उसका , आंखों से चिंगारियां निकलने लगीं। मुंह से निकली गुर्राहट—"तो उन हरामजादों ने मेरे सर्वेश को जहर देकर मार था।"
“फिलहाल डॉली के बयान से तो ऐसा ही लगता है।" युवक ने कहा—“और ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं है कि डॉली झूठ बोल रही होगी।"
"बीयर उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी—मेरे लाख मना करने पर भी बीयर नहीं छोड़ सके थे वे और यही बीयर उन्हें ले डूबी—शायद 'शाही कोबरा' कहलाने वाले हत्यारे को भी उनकी इस कमजोरी की जानकारी थी।"
युवक ने सोचने की कोशिश की कि क्या बीयर मुझे पसंद है ?
ठीक से निश्चय नहीं कर सका वह।
बोला—"मैं न कहता था रश्मि कि रंगा-बिल्ला को एकदम से शूट कर देना उचित नहीं होगा—अब देखो , स्पष्ट होकर यही बात सामने आ रही है कि वे दोनों तो सिर्फ हत्यारे के सहायक थे—असली हत्यारा कोई 'शाही कोबरा ' नामक व्यक्ति है।"
“मुझे वही चाहिए।"
"उस तक हमें रंगा-बिल्ला पहुंचा सकते हैं—सुना है कि वे 'मुगल महल ' में आते रहते हैं—डॉली को मैंने समझा दिया है—अब जिस दिन भी वहां रंगा-बिल्ला आएंगे , वह किसी भी माध्यम से मुझे सूचित कर देगी और जिस दिन वे मेरे हत्थे चढ़ गए , उस दिन मुझे पता लग जाएगा कि वे सर्वेश को कहां ले गए थे और ये 'शाही कोबरा ' का क्या चक्कर है।”
उनकी बातें अभी तक चुपचाप सुन रहे विशेष ने भोलेपन से पूछा—"ये रंगा-बिल्ला कौन हैं पापा? और आपको कब , कहां ले गए थे ?"
"कहीं नहीं, बेटे।" नजदीक बैठकर युवक ने उसे बांहों में भर लिया और प्यार करता हुआ बोला— "अच्छे बच्चे मम्मी-पापा की बातें ध्यान से नहीं सुना करते हैं।"
युवक ने रश्मि के चेहरे पर मौजूद भाव देखे , उसे शायद युवक का 'मम्मी-पापा ' कहना अच्छा नहीं लगा था। प्रतिशोधस्वरूप शायद अभी यह कुछ कहने ही वाली थी कि मकान के मुख्य द्वार के पार से टायरों की चीख-चिल्लाहट उभरी।
शायद कोई चार पहियों वाला वाहन रुका था।
तीनों का ध्यान उसी तरफ चला गया और पुलिस के भारी बूटों की आवाज सुनकर युवक दहल उठा। यह विचार बिजली की तरह उसके मस्तिष्क में कौंधा था कि पुलिस आ गई है।
'क्या वे जान चुके हैं कि रूबी का हत्यारा यहां सर्वेश बनकर रह रहा है ?'
'इस चारदीवारी में तो यह साबित करने के लिए कि मैं सर्वेश नहीं हूं, रश्मि के जिस्म पर मौजूदा लिबास ही काफी है। सूनी मांग ही काफी है।'
यही सोचकर उसे पसीना आ गया।
यह सारे विचार उसके जेहन में एक क्षण मात्र में ही कौंध गए थे और अगले ही क्षण मकान के मुख्य द्वार पर दस्तक हुई।
आतंकित स्वर में युवक ने वहीं से पूछा— "कौन है ?"
"पुलिस।" इस आवाज और शब्द ने युवक के जेहन में सनसनी फैला दी।
रश्मि सवालिया नजरों से उसकी तरफ देख रही थी।
युवक ने बौखलाए-से स्वर में कहा—"त.....तुम ऊपर जाओ रश्मि …प्लीज—पुलिस के सामने आने की कोशिश मत करना।"
कहने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया। रश्मि का जवाब सुनने का दरअसल उसके पास समय ही नहीं था—रश्मि तेजी के साथ सीढ़ियों पर चढ़ती चली गई और युवक ने दरवाजा तभी खोला जब वह अपने कमरे में जा चुकी थी।
दरवाजा खोलते ही जिन चेहरों पर युवक की दृष्टि पड़ी , उन्हें यहां देखते ही उसके होश उड़ गए—'उफ्फ—ये यहां ?'
इंस्पेक्टर दीवान और चटर्जी।
बड़ी तेजी से उसके जेहन में सवाल कौंधा था कि चटर्जी यहां कैसे ?
आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
चकराकर स्वयं को वहीं गिरने से रोकने में युवक को जबरदस्त मानसिक श्रम करना पड़ा। उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी।
होश फाख्ता।
दिमाग में एक ही शब्द गूंजा— 'बन्टाधार। '
चटर्जी की वहां मौजूदगी से ही जाहिर था कि वे वहां यह जांच करने नहीं आए थे कि वह सर्वेश है या नहीं , बल्कि उसे सिकन्दर साबित करने आए थे निश्चय ही वह तीसरा इंस्पेक्टर आंग्रे था और किसी 'क्लू ' से उन्हें यह पता लग चुका था कि रूबी का हत्यारा उस मकान में रह रहा था—कम-से-कम उन तीनों का सामना करने के लिए वह मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार नहीं था। उसने तो कल्पना भी नहीं की थी कि यू.पी. पुलिस के चटर्जी और आंग्रे यहां आ धमकेंगे।
न चाहते हुए भी युवक का चेहरा पसीने से भरभरा उठा।
वे तीनों ही इंस्पेक्टर बड़ी पैनी दृष्टि से उसका निरीक्षण कर रहे थे। चटर्जी और दीवान की दृष्टि उसे ऐसी लगी , जैसे वे उसकी दाढ़ी-मूंछ और चश्मे के पीछे छुपे चेहरे को देख रहे हों।
किसी मूर्ति के समान वहीं खड़ा रह गया था युवक।
"हैलो, मिस्टर सिकन्दर।" एकाएक चटर्जी ने कहा।
युवक ने एकदम चौंककर पूछा— "क...कौन सिकन्दर , किसे पुकार रहे हैं आप?"
"आपको।"
"म...मुझे , लेकिन मेरा नाम सर्वेश है।"
जवाब में चटर्जी के होंठों पर एक धूर्त और जहर में बुझी-सी मुस्कान उभरी थी। चटर्जी ने उसी मुस्कान के साथ कहा— "अगर हम आपको सर्वेश मान लें तो क्या तब भी आप हमें अन्दर आने के लिए नहीं कहेंगे ?"
"अ.....आइए।" बौखलाकर युवक दरवाजे के बीच से हट गया।
तीनों इंस्पेक्टर और उनके साथ आए पांच सिपाही दरवाजा पार करके आंगन में आ गए। उनकी अगवानी करते हुए युवक ने विशेष से कहा— “ जरा अपनी मम्मी से चाय बनवा दो वीशू।"
"उसकी कोई जरूरत नहीं है।" दीवान ने कहा , परन्तु उसकी बात सुने बिना ही विशेष अपने 'पापा ' के आदेश का पालन करने सीढ़ियों की तरफ बढ़ चुका था।
आंगन पार करके वे कमरे में पहुंच गए।
यह वही कमरा था , जो युवक को मिला हुआ था , एक ड्राइंगरूम जैसा—युवक ने उन सबको सेण्टर टेबल के चारों तरफ पड़े सोफों पर बैठाया , तीनों इंस्पेक्टर उसके ठीक सामने एक पंक्ति में बैठे थे। एकाएक ही युवक को घूरते हुए चटर्जी ने पूछा— "क्या तुम मुझे जानते हो ?"
"ज...जी नहीं।"
चटर्जी ने व्यंग्यपूर्वक कहा— “मेरा नाम इंस्पेक्टर चटर्जी है और तुम भूल रहे हो कि मैं तुम्हें उस रोज हरिद्वार पैसेंजर में मिला था , जब तुम गाजियाबाद से जा रहे थे।"
"क...कमाल कर रहे हैं आप , मैं तो गाजियाबाद कभी गया ही नहीं।"
उसके वाक्य पर कोई ध्यान दिए बिना चटर्जी ने कहा— "इनसे मिलो , उम्मीद है कि तुम इन्हें जरूर जानते होंगे—ये इंस्पेक्टर दीवान हैं , चाहते हैं कि यदि तुम्हारी याददाश्त वापस लौट आई हो तो तुम इन्हें स्मगलर्स के ट्रक ड्राइवर के बारे में कुछ बताओ।"
बुरी तरह आतंकित युवक ने कहा था— “ मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है , जाने आप क्या कह रहे हैं ?"
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05-18-2020, 02:35 PM,
#52
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एकाएक इंस्पेक्टर दीवान बोल पड़ा—"इंस्पेक्टर चटर्जी मेरे बारे में एक खास बात बताना भूल गए हैं , उसकी लाश रेल की पटरी से मैंने ही बरामद की थी , जो तुम बनने की कोशिश कर रहे हो।"
झुंझलाहट का प्रदर्शन किया युवक ने—" 'क...क्या बनने की कोशिश कर रहा हूं मैं ?"
"सर्वेश।" इंस्पेक्टर आंग्रे ने इस नाम को चबाया।
"स...सर्वेश तो मैं हूं ही।"
“हुंह—अगर तुम यह सोच रहे हो कि इस मूंछ-दाढ़ी , चश्मे और बदली हुई हेयर स्टाइल से हमें धोखा दे दोगे तो यह बहुत बचकाना ख्याल है मिस्टर सिकन्दर। " चटर्जी का एक-एक अक्षर जहर में बुझा था। वह कहता ही चला गया—"इधर देखो बेटे , इन आंखों में—ये पुलिस की आंखें हैं—एक बार जिसे देख लेती हैं, वह दोबारा इंसान के स्थान पर अगर जानवर बनकर भी सामने आए तो तुरन्त पहचान लेती हैं। "
"मेरा नाम सर्वेश है।"
"सर्वेश आज से चार महीने पहले मर चुका है।"
"वह गलत था , किसी और की लाश थी वह। "
“किसकी ?”
"मैं दावे के साथ नहीं कह सकता—शायद उसकी रही हो , जिसने मुझे लूटा था। "
चटर्जी ने चौंकते हुए पूछा— "त...तुम्हें लूटा था ?"
"हां। "
"कब , किसने ?”
हिम्मत करके युवक ने पहले ही से तैयार एक कहानी सुना दी— "उस रोज तबीयत खराब होने की वजह से आठ के स्थान पर सात बजे ही मैंने 'मुगल महल ' की अपनी सीट से छुट्टी कर ली थी और एक थ्री-व्हीलर में यहां के लिए आ रहा था कि जमना के नांव वाले पुल पर एक लुटेरे ने मेरा थ्री-व्हीलर रोका और फिर मेरे सिर पर रिवॉल्वर के दस्ते का वार किया—मैं बेहोश हो गया। "
"इस गढ़े हुए खूबसूरत ड्रामे के बीच थ्री-व्हीलर का ड्राइवर क्या कर रहा था ?"
"वह खामोश था , शायद लुटेरे से उसकी मिलीभगत हो।"
"क्या आप उस थ्री-व्हीलर का नम्बर बता सकते हैं ?"
"शायद ही कोई थ्री-व्हीलर में बैठने से पहले उसका नम्बर देखता हो।"
“खैर।" चटर्जी ने व्यंग्यपूर्वक कहा— “अच्छी और इंट्रेस्टिंग कहानी गढ़ी है तुमने—हां , तो तुम बेहोश हो गए—उसके बाद क्या हुआ ?"
"जब होश आया तो खुद को मैंने एक अंधेरी और सीलनयुक्त कोठरी में रस्सियों से बंधा पाया , मेरे मुंह पर भी टेप चिपका हुआ था और तन पर से सभी बाहरी कपड़े गायब थे। "
"वेलडन—तो तुम यह कहना चाहते हो कि तुम्हें लूटने की खुशी में वह लुटेरे तुम्हारे कपड़े पहनकर रेल की पटरियों पर जा लेटा?”
“म...मैं क्या कह सकता हूं कि ऐसा उसने अपनी किस खुशी की खातिर किया था ?"
"खैर , क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हें किसने , किस मकसद से उस अंधेरी और सीलनयुक्त कोठरी में कैद रखा ?"
"मैं उसे देख नहीं सका , क्योंकि वह हमेशा अपने चेहरे पर नकाब डालकर सामने जाता था , उसका मकसद मुझे जरूर मालूम है। "
"वही बताओ।”
“वह एक ब्लैंक बॉण्ड पेपर पर मेरे साइन चाहता था।"
“किसलिए ?”
"यह मैं नहीं जानता।"
"खैर , आपने उस पर साइन किए या नहीं ?"
"मैं पूरे तीन महीने तक अड़ा रहा , उससे कहता रहा कि जब तक मुझे वह यह नहीं बताएगा कि मेरे साइन का क्या करेगा , तब तक साइन नहीं करूंगा , मगर यह राज उसने मुझे कभी नहीं बताया और हमेशा यही कहता रहा कि जिस दिन मैं साइन कर दूंगा , उस दिन वह मुझे कैद से मुक्त कर देगा , किन्तु साइन लिए बिना हरगिज नहीं—तीन महीने बाद आखिर मुझ ही को टूटना पड़ा और उस ब्लैंक बॉण्ड पर साइन कर दिए।"
"ओह।" चटर्जी के लहजे में जबरदस्त व्यंग्य था— “तो आपको साइन करने आते हैं ?"
"क....क्यों नहीं , पढ़ा-लिखा हूं मैं। "
"खैर, साइन के बाद क्या हुआ?"
"अचानक ही जेब से रिवॉल्वर निकालकर उसने मेरे सिर पर वार किया , मैं बेहोश हो गया और इस बार जब होश में आया तो 'बुद्धा गार्डन ' के एक कोने में मैं झाड़ियों के पीछे पड़ा था।"
"यानि उसने तुम्हें छोड़ दिया था ?"
"जी हां। "
"काफी ईमानदार अपराधी था। खैर , फिर?"
"जेब में एक पैसा भी नहीं था , तन पर वे कपड़े थे , जो कैद करने के तीन दिन बाद ही उसने मुझे दिए थे , मैं बुद्धा गार्डन से पैदल ही अपने घर यानि यहीं के लिए चल दिया—राधू सिनेमा के नजदीक ही रिक्शा में स्कूल से लौटता वीशू मुझे मिल गया—घर जाने पर देखा कि रश्मि बेचारी खुद को विधवा समझ रही है—सारी दुनिया मुझे मृत समझ रही थी।"
"काफी सोच-समझकर , सुलझी हुई—खूबसूरत और ऐसी कहानी गढ़ी है तुमने कि जिसमें कोई ऐसा 'लीक ' प्वाइंट भी न रहे जिसके जरिए यह पुष्टि की जा सके कि कहानी सच है या किसी गढ़े हुए जासूसी उपन्यास से चुराकर सुनाई गई , मगर फिर भी तुम चूक गए सिकन्दर—अलग-अलग तीनों को अलग-अलग कहानी सुनाते फिर रहे हो तुम।"
"क्या मतलब ?”
" 'मुगल महल ' के मैनेजर मिस्टर साठे से तुमने कहा कि तुम्हारी याददाश्त गुम है और तुम्हें पिछला कुछ भी याद नहीं है , जबकि हमें तुम अभी-अभी सब कुछ सुना चुके हो।"
बिल्कुल सफेद झूठ बोला युवक ने— “ म...मैंने मैनेजर से याददाश्त गुम होने के बारे में कब कहा ?"
"हमें उसी ने बताया है।"
"वह झूठ बोलता है। "
"झूठ तुम बोल रहे हो , हम उसे तुम्हारे सामने लाकर खड़ा कर देंगे। "
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05-18-2020, 02:35 PM,
#53
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"मैं तब भी यही कहूंगा कि वह झूठ बोल रहा है। मैँने उससे 'सेम ' यही कहा था , जो आपसे कहा है।"
आग उगलते हुए नेत्रों से उसे घूरता रह गया चटर्जी। गुर्राया—"मैं समझ गया हूं कि तुम पूरे ढीठ हो और उसका सामना होने पर भी उसे ही झूठा कहते रहोगे—फिलहाल उसके पास भी तुम्हें झूठा साबित करने के लिए ठोस सबूत नहीं होगा।"
"आप शायद हवा में तीर चला रहे हैं ?"
"हवा में तीर तो तुम चला रहे हो बेटे। जब पुलिस तीर चलाएगी तो होश उड़ जाएंगे तुम्हारे , चटर्जी बिना सबूत के कोई बात नहीं करता है—यहां आने से पहले ही हम समझ चुके थे कि तुम खुद को सर्वेश साबित करने की भरपूर कोशिश करोगे और अब तक हम यही देख रहे थे कि अपने मकसद में कामयाब होने के लिए तुम क्या-क्या दांव फेंकते हो , क्या कहानी सुनाते हो ?"
"जो मैं हूं यह साबित करने की भला मुझे जरूरत ही क्या है ? मैँने एक शब्द भी खुद को सर्वेश साबित करने की मंशा से नहीं कहा है , केवल आपको वह घटना सुनाई , जो मेरे साथ घटी और जिसकी वजह से यह भ्रम पैदा हुआ कि सर्वेश मर चुका है।"
तभी , पानी से भरा स्टील का एक जग और पांच-छ: गिलास लिए विशेष वहां पहुंच गया—अभी उसने जग और गिलास सेंटर टेबल पर रखे ही थे कि युवक ने कहा— “मैंने तुमसे चाय लाने के लिए कहा था वीशू—पानी नहीं।"
'चाय लेकर मम्मी आ रही हैं पापा , उन्होंने कहा है कि तब तक पुलिस अंकल को पानी दो...।'
जहां विशेष के 'पापा ' कहने पर तीनों इंस्पेक्टर उस बच्चे को घूरने लगे थे , वहीं विशेष का वाक्य सुनकर युवक के समूचे जिस्म में सनसनी दौड़ गई।
'चाय लेकर रश्मि आ रही है—उफ्फ—यह क्या बेवकूफी कर रही है यह।'
'उसका लिबास ही इन कम्बख्तों को सब कुछ समझा देने के लिए काफी होगा।"'
“उ....उन्हें चाय लाने की क्या जरूरत है—म...मैं खुद ही ले आता हूं।" अजीब बौखलाए-से स्वर में कहने के साथ ही युवक खड़ा हुआ।
“ठहरो मिस्टर , यहीं बैठो।" इंस्पेक्टर दीवान के वाक्य और सर्द लहजे ने उसके रहे-सहे हौंसले भी पस्त कर दिए—"चाय लेकर उन्हीं को आने दो , तुम्हारी तारीफ के चन्द शब्द कम-से-कम उन्हें तो सुनने ही चाहिए।"
वहीं जाम होकर रह गया युवक।
सारा शरीर सुन्न पड़ गया था , जैसे असंख्य चीटियां रेंग रही हों।
उसकी इस अवस्था पर चटर्जी बड़े ही धूर्त अन्दाज में मुस्कराया।
अपने सारे मन्सूबे युवक को धराशायी होते-से महसूस हो रहे थे।
इन काइयां इंस्पेक्टरों के सामने अपनी कहानी उसे बहुत कमजोर मालूम पड़ रही थी और फिर अब , चाय लेकर किसी भी क्षण वहीं खुद रश्मि जाने वाली थी।
उसके बाद बाकी कुछ नहीं रह जाता।
कई पल की खामोशी के बाद इंस्पेक्टर चटर्जी ने कहा— "उस जघन्य जुर्म में गिरफ्तार होने से बचने का एकमात्र तरीका यही था मिस्टर—न-न बीच में मत बोलो—हमें सिर्फ यह साबित करना है कि वह जघन्य हत्याकाण्ड तुमने किया है और यह साबित करने के लिए हमारे पास पर्याप्त प्रमाण हैं।"
अन्दर से पूरी तरह टूट चुकने के बावजूद भी युवक ने कहा— “क...कैसे प्रमाण ?"
फिंगर-प्रिन्ट्स और राइटिंग से सम्बन्धित भेद खोलने के लिए चटर्जी ने अभी मुंह खोला ही था कि वहां पाजेब की आवाज गूंज उठी—'छम्म....छम्म...छम्म...।'
सभी के साथ युवक की दृष्टि भी दरवाजे की तरफ उठ गई।
दिल 'धक्क ' से धड़का और फिर मानो धड़कनें रुक गईं।
युवक का दिलो-दिमाग गैस से भरे गुब्बारे की तरह आकाश में उड़ चला।
वहां रश्मि खड़ी थी , हाथ में ट्रे लिए—ट्रे में क्रॉकरी थी , चाय से भरी केतली।
रश्मि को देखकर युवक के रोंगटे खड़े हो गए। धमनियों में बहता लहू जैसे जम गया—टांगें किसी सौ साल के बूढ़े की तरह कांप उठीं—उफ्फ—सुहागिनों के पूरे मेकअप में थी वह विधवा। हरे रंग की सच्चे गोटे की कढ़ी भारी जाल वाली साड़ी—उसी के साथ का ब्लाउज—पैरों में बिछुए—कानों से स्वर्ण बुन्दे झूल रहे थे—नाक में नथ।
मस्तक पर दमदमा रहा था सिन्दूरी सूरज—मांग अपने अंतिम सिरे तक सिन्दूर से लबालब भरी थी—पूरे मेकअप में थी रश्मि—नयनों के किनारों पर आई ब्रो तक।
लिपस्टिक से दमदमाते होंठों पर मुस्कान बिखेरे उसने मेहमानों का स्वागत किया—उस वक्त युवक की आत्मा तक कांप रही थी , जब रश्मि ने आगे बढ़कर ट्रे मेज पर रख दी।
सन्नाटे के बीच चांदी की पाजेबों की खनखनाहट गूंजी।
युवक के साथ ही जैसे वहां मौजूद हर व्यक्ति को सांप सूंघ गया था। सबसे पहले बोलने का साहस चटर्जी ने ही जुटाया। उसने रश्मि से पूछा— "आप मिसेज सर्वेश हैं न ?"
"जी हां। ”
अपने रूल से युवक की तरफ़ इशारा करके चटर्जी ने पूछा—"क्या ये ही सर्वेश हैं ?"
"जी हां।"
“ऐसा आप कैसे कह सकती हैं ?"
रश्मि बोली— “ जैसे आप यह कह सकते हैं कि आप इंस्पेक्टर चटर्जी हैं।"
चटर्जी के मन-मस्तिष्क को एक झटका-सा लगा—फिर भी उसने संभलकर कहा— “मेरा मतलब ये है कि मिस्टर सर्वेश तो आज से चार महीने पहले ही...।"
"वह किसी अन्य की लाश थी।"
दीवान कह उठा—“म.....मगर आप ही ने शिनाख्त की थी।"
"जरूर की थी , उस लाश के कपड़े और जेब से निकले सामान से जो लगा, मैंने वही कहा—मुझ अभागिन ने सुहागिन होते हुए भी वहां अपनी चूड़ियां तोड़ डालीं—आप भी जानते हैं इंस्पेक्टर साहब कि उस लाश का चेहरा शिनाख्त के काबिल नहीं था —अगर आपको याद न हो तो उस लाश का फोटो देख सकते हैं।" कहने के साथ ही रश्मि ने सर्वेश की लाश का फोटो उनकी तरफ उछाल दिया।
चटर्जी के बाद फोटो को आंग्रे और दीवान ने भी देखा।
“अगर यह सर्वेश है तो क्या आपने पूछा कि तीन महीने यह कहां गुम रहा ?"
रश्मि ने वही कहानी सुना दी जो कुछ देर पहले युवक सुना चुका था। चटर्जी बहुत धैर्यपूर्वक उसे सुनता और होंठों-ही-होंठों में मुस्कराता रहा। उसके चुप होने पर पूछा— "यह सब आपको इसी ने बताया है न ?"
"जी हां।"
"और आपने यकीन कर लिया ?"
रश्मि ने बहुत शान्त स्वर में कहा— "जी नहीं।"
"फ...फिर... ?” चटर्जी चौंक पड़ा।
“ऐसी कहानी तो कोई बहुरूपिया भी सुना सकता था , इसीलिए मैंने अपने तरीके से जांच की कि ये वही हैं या नहीं , और हर जांच में ये खरे उतरे।"
"कैसी जांच ?"
“मैंने इनसे ढेर सारे सवाल किए , जिनके जवाब केवल सर्वेश को ही मालूम हो सकते हैं , पति-पत्नी के बीच ऐसी सैंकड़ों गुप्त बातें होती हैं , जिन्हें उन दोनों के अलावा कोई नहीं जान सकता—मसलन बेडरूम की बातें और ऐसी हर जांच में ये खरे उतरे हैं—शायद पुरुष को उसकी पत्नी से ज्यादा कोई नहीं जानता और अब मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि ये ही मेरे पति हैं , वे—जिन्हें मृत समझ लिया गया था …।"
एक लम्बी और ठंडी सांस भरी चटर्जी ने , बोला— “लगता है रश्मि बहन कि आप इस बहुरूपिए और जालसाज के द्वारा पूरी तरह ठग ली गई हैं।"
"आपको गलतफहमी है।"
"भ्रम का शिकार तो आप हो गई हैं , इस दरिन्दे की हकीकत सुनेंगी तो आपके पैरों तले से जमीन निकल जाएगी—सर्वेश बनकर यहां , एक और संगीन जुर्म कर चुका है यह, एक विधवा को सुहागिन बनाने का जुर्म—धोखे में डालकर गीता-सी पाक एक विधवा का सर्वस्व लूटने का जुर्म , इससे गिरा हुआ आदमी मैंने जिन्दगी में नहीं देखा।"
"म.......मैँ समझी नहीं ?"
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05-18-2020, 02:35 PM,
#54
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"जिस तरह पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा यह जानता है कि सूरज हमेशा पूरब से ही निकलता है , उसी तरह हम यह जानते हैं कि यह एक ऐसा युवक है , जिसकी याद्दाश्त एक एक्सीडेण्ट के बाद लुप्त हो गई—युवा लड़कियों को निर्वस्त्र करके उनका गला घोंटकर हत्या कर देने का जुनून सवार होता है इस पर गाजियाबाद के एक बन्द मकान में यह रूबी नाम की युवती का कत्ल कर चुका है—कत्ल ही नहीं , बल्कि सबूत मिटाने के लिए रूपेश नाम के एक जीते-जागते युवक को रूबी की लाश के साथ जलाकर खाक कर देने की कोशिश की इसने—मिट्टी का तेल छिड़ककर उन दोनों जिस्मों में आग लगा दी और वहां से भाग आया—बाद में आपके पति से शक्ल मिलने के कारण इसने आपको ठगा—उसी जघन्य काण्ड की सजा से बचने के लिए अब यह सर्वेश होने का नाटक कर रहा है।"
"यह झूठ है—यह झूठ है।" रश्मि चीख पड़ी।
"यह सब सच है रश्मि बहन और सच को साबित करने के लिए हमारे पास सबूत हैं।"
“क......कैसे सबूत ?"
चटर्जी अपने तुरुप के इक्के को अभी खोलने ही वाला था कि—
"आह …आह … उई।" युवक के हलक से चीखें उबल पड़ीं और चटर्जी के साथ सभी ने चौंककर उस तरफ देखा।
"अ . …अरे।" न केवल रश्मि बल्कि चटर्जी के हलक से भी चीख निकल गई।
जाने कैसे चाय से भरी केतली फूट गई थी और उसमें भरी जलती हुई सारी चाय युवक के दाएं हाथ पर गिरी थी , इतना ही नहीं—चाय के हाथ पर गिरते ही चीखते हुए युवक ने यह हाथ पानी से भरे जग के अन्दर डाल दिया था।
साथ ही एक बार फिर हलक फाड़कर चिल्लाया था वह।
"क...क्या कर रहे हो ?” चीखते हुए चटर्जी ने झपटकर उसकी कलाई पकड़ी और एक झटके से हाथ जग से बाहर निकाला—उफ्फ …हाथ बुरी तरह जल गया था—फफोले पड़ गए और चाय के गिरते ही हाथ पानी में डाल देने की वजह से कुछ फफोले फूट भी गए थे—सारे हाथ की खाल उतरकर झुलस गई थी—खाल के लोथड़े मलाई की तरह लटक गए थे और युवक मार्मिक ढंग से चीखे जा रहा था , उसकी कलाई पकड़े चीखते हुए युवक को चटर्जी हैरतअंगेज दृष्टि से देख रहा था—रश्मि एक अलमारी की तरफ लपकी—बरनॉल लाकर उसने युवक के जख्मी हाथ पर लगा दी।
देखते-ही-देखते उस हाथ पर एक पट्टी बंध गई।
और अब , चटर्जी समझ चुका था कि इस एक ही पल में युवक कितना खतरनाक खेल-खेल चुका है। जब पट्टी पूरी तरह बंध चुकी , तब चटर्जी ने अपने रूल के सिरे से युवक के सीने को ठोंकते हुए कहा— "आई लाइक इट यंगमैन , आई लाइक इट …अब दुनिया की कोई भी पद्धति न तुम्हारी उंगलियों के निशान ले सकती है और न ही राइटिंग के—चटर्जी मान गया कि तुम चालाक हो और चालाक जानवरों का शिकार करना चटर्जी का बहुत पुराना शौक रहा है—चालाकियों से भरा यह खेल जो तुमने शुरू किया है , वह मुझे कबूल है—तुम्हारी चुनौती स्वीकार है मुझे—बहुत दिन से चटर्जी किसी तुम जैसे मुजरिम से टकराने के लिए मचल रहा था।"
"ज.. जाने आप क्या कह रहे हैं ?"
"तुम्हारी हर अदा मुझे पसन्द आई है , फिलहाल चलता हूं—चलो, इंस्पेक्टर दीवान।"
"म मगर यह हाथ इसने जानबूझकर …।"
"प.....प्लीज दीवान , चलो।" उसकी बात बीच में ही काटकर चटर्जी ने कहा।
दीवान , आंग्रे और सिपाही , चटर्जी की इस हरकत का मतलब नहीं समझ पा रहे थे , फिर भी उसके आदेश पर सभी चल पड़े। चटर्जी ने युवक पर अंतिम दृष्टि डाली। बड़े मोहक ढंग से मुस्कराया और बोला— “मगर सुनो दोस्त , यह कोई स्थायी हल नहीं हुआ—कुछ ही दिन में हाथ ठीक हो जाएगा , नई खाल आ जाएगी—तब तुमसे लिखवाया भी जा सकेगा और इन उंगलियों के निशान भी लिए जा सकेंगे।"
"आप आखिर बताते क्यों नहीं कि बात क्या है ?"
"इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए मैं तुम्हें स्थायी हल बता सकता हूं और वह यह है कि इस कम्बख्त हाथ को ही काटकर फेंक दो , न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी …वैसे भी , फांसी पर झूल जाने से हाथ गंवाना हर हालत में बेहतर है।" कहने के बाद कुछ भी सुनने के लिए वह वहां रुका नहीं , बल्कि तेज और लम्बे कदमों के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
"र...रुकिए, इंस्पेक्टर साहब।" रश्मि ने आवाज दी।
दरवाजे के बीचो-बीच चटर्जी ठिठका।
"अ...आप सबूत पेश करने वाले थे ?"
चटर्जी ने बिना मुड़े कहा— "मैं क्या पेश करने वाला था , यह उसी से पूछ लीजिएगा , जिसके लिए आप सुहागिन बनी हुई हैं , केवल एक ही सवाल कीजिएगा इससे—यह कि इसने अपना हाथ क्यों जला लिया है ?"
युवक और रश्मि अवाक्-से खड़े रह गए , जबकि चटर्जी हवा के झोंके की तरह जा चुका था।
आंग्रे के स्वर में रोष था— "तुम उसे छोड़ क्यों आए?"
"और किया भी क्या जा सकता था ?"
"हम उसे गिरफ्तार कर सकते थे , पुलिस के पास जो सबूत हैं उन्हें निष्फल करने और पुलिस को चकमा देने की कोशिश में अपना ही हाथ जला लेने का संगीन अभियोग भी लगता उस पर।"
"तुम्हारी भूल है।"
"क्या मतलब ?"
"आज हम उसे गिरफ्तार कर लेते , उसे हत्याकांड का मुजरिम साबित करने के लिए राइटिंग और उंगलियों के निशानों के अलावा हमारे पास कोई तीसरा ठोस प्रमाण नहीं है और फिलहाल कम-से-कम पन्द्रह दिन के लिए उसने इन प्रमाणों को बेकार कर दिया है , नतीजा यह है कि वह जेल नहीं जा पाता , जमानत वहीं आसानी से हो जाती और—आज तक चटर्जी द्वारा अदालत में पेश किए गए एक भी मुजरिम की जमानत नहीं हुई है।"
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05-18-2020, 02:35 PM,
#55
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"रात-भर तो उसे थाने में ही रहना था ?" दीवान ने कहा—"टॉर्चर करने की मेरे पास इतनी डिग्रियां हैं कि किसी सबूत की जरूरत नहीं थी , वह खुद ही सब कुछ बक देता।”
अजीब ढंग से मुस्कराते हुए चटर्जी ने कहा— “पहली बात तो यह है दोस्त कि मेरे अध्ययन के मुताबिक वह तुम्हारे किसी भी डिग्री के टॉर्चर से टूटने वाला नहीं है , दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस टॉर्चर वाले अमानवीय तरीके से मुझे नफरत है। बुरा न मानना—दरअसल मैं यह समझता हूं कि अगर कोई इन्वेस्टिगेटर मुजरिम को टॉर्चर करके उससे हकीकत उगलवा रहा है तो यह उसकी , उसके विवेक , सूझबूझ और दिमाग की असफलता है और टॉर्चर करना अपनी असफलता की 'खीज ' उतारना है।"
"मेरे ख्याल से सिकन्दर जैसे चालाक और धूर्त मुजरिम की अक्ल को दुरुस्त करने के लिए टॉर्चर एक नायाब और जरूरी तरीका है।"
“हमारे विचारों में बुनियादी फर्क है।"
"अपने तरीके से तो हमने देख ही लिया कि उसने क्या हरकत की है , अब जरा तुम मुझे मेरे ढंग से काम करने की इजाजत दे दो—मैँ उस हरामजादे को अभी गिरफ्तार करके ले आऊंगा और फिर तुम देखना कि टॉर्चररूम में वह किस तरह चीख-चीखकर अपना जुर्म कबूल करेगा।"
"बुद्धि की लड़ाई में हाथ-पैरों का इस्तेमाल अनुचित है।"
"क्या मतलब ?"
चटर्जी बोला— “सच मानो आंग्रे , चटर्जी के लायक यह केस अब बना है—निश्चय ही मैं पहली बार इतने चालाक अपराधी ते टकरा रहा हूं और प्लीज , तुम इस टकराव में अड़चन मत बनो।" आंग्रे के साथ ही दीवान भी उसे हैरत-भरी नजरों से देखने लगा।
¶¶
"अब मैं समझी कि तुम इस घर से जाकर भी लौट क्यों आए थे।" नेत्रों से उस पर चिंगारियां बरसाती हुई रश्मि गुर्रा रही थी— “अब मेरी समझ में आया कि वीशू और मांजी को अपने मोहजाल में क्यों फंसाया था तुमने—क्यों तुम एक महीने तक इस चारदीवारी से बाहर नहीं निकले।"
“म.....मेरी बात तो सुनिए, रश्मि जी।"
"हत्यारे—पापी …अरे—तूने सचमुच ठगा है मुझे , मेरे वीशू और मांजी को—बहुत बड़ा जालसाज है तू—तूने मुझे बातों के ऐसे जाल में फंसाया कि मैं कुछ समझ ही न सकी …जब मैंने इस दाढ़ी-मूंछ के बारे में पूछा तो बोला कि यह रूप तूने 'उनके ' हत्यारों तक पहुंचने के लिए भरा है—उफ्फ—यह हकीकत तो मुझे अब पता लगी है कि दरअसल उनके रूप में तू अपने ही पापों को छुपा रहा है।"
"य...यह गलत है, रश्मिजी।"
“वह इंस्पेक्टर ठीक ही कहता था—मेरी सारी पवित्रता भंग कर दी है तुमने—मेरा सर्वस्व लूट लिया है—विधवा होकर मैंने यह लिबास पहना , चूड़ियां और बिछुए पहने, बिन्दी लगाई और सिन्दूर में मांग भरी—उफ्फ—एक विधवा के लिए श्रृंगार करने से बड़ा पाप और क्या हो सकता है। और यह पाप मैंने सिर्फ तुम्हारी बातों में आकर किया—तुमने कहा था कि सर्वेश के जीवित होने की खबर से जैसी खलबली उसके हत्यारों में मचेगी , वैसी ही पुलिस में भी और पुलिस के सामने तुम्हें सर्वेश ही साबित करना जरूरी है , ताकि मुजरिमों को तुम्हारे सर्वेश होने का यकीन हो जाए , तुम्हीं ने पुलिस को वह कहानी सुनाने के लिए कहा था , जो मैंने सुनाई।"
युवक ने कहा— “तुम सर्वेश के हत्यारों के जाल में फंस रही हो रश्मि।"
"क्या मतलब ?" वह गुर्राई।
“पुलिस को यहां भेजना हत्यारों की कोई साजिश थी।"
"कहानियां गढ़ने में माहिर हो तुम , शायद फिर कुछ गढ़ रहे हो।"
"तुम मेरी बात ध्यान से सुनती क्यों नहीं हो रश्मि?”
"क्या सुनूं—क्या तुम कह सकते हो कि तुमने रूबी की हत्या नहीं की ?"
और युवक ने कह दिया—“मैंने कोई हत्या नहीं की।"
"क्या ?" रश्मि की आंखें हैरत से फट पड़ीं—"सब कुछ इतना ज्यादा स्पष्ट होने के बावजूद भी क्या तुम ऐसा कहने की हिम्मत रखते हो—उफ्फ गजब के ढीठ हो—सफेद झूठ बोलते हो , सूरज की तरफ देखकर तुम कहते हो कि रात है और यह भी चाहते हो कि लोग तुम्हारे कथन पर यकीन कर लें।"
दिन को रात साबित करने पर आमादा हो गया युवक बोला— "प.....प्लीज रश्मि प्लीज , ठण्डे दिमाग से सिर्फ पांच मिनट चुप रहकर मेरी बात सुन लो।"
उसे घूरती हुई रश्मि ने कहा— "बोलो।"
"डॉली ने जो कुछ बताया है , उससे जाहिर है कि सर्वेश की हत्या के पीछे अपराधियों का कोई छोटा-मोटा संगठन नहीं , बल्कि कोई बहुत बड़ा गिरोह है , इसका मतलब यह है कि वे लोग फिजिकल ताकत के अलावा आर्थिक रूप से भी बहुत ज्यादा ताकतवर हैं और जरा सोचो , ऐसे दस-बीस इंस्पेक्टरों को खरीद लेना पैसे वालों के लिए क्या मुश्किल है ?”
"तुम यह कहना चाहते हो कि वे सब गैंग द्वारा खरीदे हुए थे ?"
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05-18-2020, 02:35 PM,
#56
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“हां , मुझे जीवित देखते ही गैंग में खलबली मच गई , निश्चय ही सर्वेश को इस गैंग का कोई ऐसा राज मालूम रहा होगा , जिसके खुलने पर गैंग के बॉस डरते हैं और वह राज ही शायद सर्वेश की हत्या का कारण रहा होगा। मुझे देखते ही उन्होंने मुझे सर्वेश समझा , तुरन्त ही उन्हें यह डर था कि कहीं मैं उनका यह राज न खोल हूं और तब ही वे एक्टिव हो गए , इन पुलिस वालों को खरीदकर उन्होंने मुझे हत्या के अभियोग में गिरफ्तार कर लेने का षड्यंत्र फैला दिया।"
"तुम्हारा मतलब यह है , रूबी के मरने—रूपेश के जलने जादि का काण्ड कहीं हुआ ही नहीं है—एक काल्पनिक कहानी गढ़कर वे तुम्हें जेल में डाल देना चाहते हैं।"
"ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। सम्भव है कि उनका बताया हुआ काण्ड कहीं हुआ हो , मगर मुझसे उनका कोई सम्बन्ध नहीं है— , उस काण्ड के मुजरिम के रूप में मुझे फंसा देने की कीमत ही इन इंस्पेक्टरों ने गैंग से ली होगी।"
“तुम भूल रहे हो कि वे तुम्हें फंसा नहीं रहे थे , बल्कि साबित कर रहे थे , शायद घटनास्थल से बरामद उनके पास तुम्हारे फिगर-प्रिन्ट्स और राइटिंग हैं , अगर ऐसा नहीं है तो जवाब दो—अपने हाथ की यह दशा क्यों बना ली तुमने ?"
“क.....क्योंकि मैं उनकी साजिश समझ गया था।"
"कैसी साजिश ?"
"तुमने भी गौर किया होगा कि बातों के बीच उनके मुंह से 'मुगल महल ' के मैनेजर मिस्टर साठे का नाम निकल गया था , निश्चय ही सर्वेश की हत्या का 'मुगल महल ' होटल से कोई सम्बन्ध है , क्योंकि रंगा-बिल्ला वहीं अक्सर आते रहते हैं और वहां से वे सर्वेश को अपने साथ ले गए थे , बल्कि मुझे तो लगता है कि मैनेजर का ही उस गैंग से कोई सम्बन्ध है।"
“क्या मतलब ?”
"ऑफिस में आज उसने मुझसे एक कागज पर साइन कराए थे , जाहिर है कि पैन और उसकी मेज पर मेरे फिंगर-प्रिन्ट्स भी रह गए होंगे—उसने राइटिंग और निशान पुलिस को दिए—साथ ही नोट देकर यह भी कहा होगा कि इसे संगीन जुर्म में फंसा दो—पुलिस इतनी जल्दी सीधी यहां पहुंच गई। इससे भी जाहिर है कि उसे मैनेजर ने ही यहां भेजा था—वक्त रहते मेरे जेहन में यह बात आ गई कि मैनेजर की मेज से लिए मेरे फिंगर-प्रिन्ट्स को पुलिस बड़े आराम से किसी ऐसे स्थान से लिए दिखाकर अदालत में पेश कर देगी , जहां जघन्य काण्ड हुआ होगा—यह विचार दिमाग में जाते ही मैंने अपना हाथ जला लिया।"
इस बार चुप रह गई रश्मि—युवक को देखती ही रह गई थी वह।
युवक समझ गया कि लोहा गर्म हो चुका है , अत: उसने भरपूर चोट की— “अगर उनमें पुलिस को खरीद लेने की क्षमता न होती तो जरा सोचो रश्मि , डॉली के अनुसार सर्वेश को जहर देकर मारा गया था , क्या पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से यह बात छुपी रह सकी होगी ?"
“उनका पोस्टमार्टम ही नहीं हुआ था।"
युवक के होंठों पर धिक्कारात्मक मुस्कान उभर आई—बोला— “ होता भी क्यों , पुलिस को तो उस गैंग ने पहले ही खरीद लिया होगा।"
ये शब्द रश्मि के जेहन पर असर कर रहे थे , यह खामोश खड़ी सुन रही थी।
युवक ने एक और चोट की— “वह सारा मामला इंस्पेक्टर दीवान के हाथ में था और वही इंस्पेक्टर दीवान आज भी यहां आया था।"
इसमें शक नहीं कि युवक के शब्दों ने रश्मि के मस्तिष्क को प्रभावित किया। वह यह सोचने पर विवश हो गई थी कि कहीं सचमुच यह सब उसी गैंग की साजिश तो नहीं थी ?
एक के बाद एक अपने तरकश के सभी तीर चलाते हुए युवक ने रश्मि को लाजवाब कर दिया था। कहना चाहिए कि सूरज की तरफ देखते हुए अच्छे-खासे दिन को रात करके दिखाया था उसने।
और अब उसने रश्मि को ठोक-बजाकर देखा—"क्या तुम्हें अब भी मेरी बातों पर यकीन नहीं हुआ है रश्मि?"
"म...मैं दुविधा में फंस गई हूं।"
"कैसी दुविधा ?”
"क्या तुम सच कह रहे हो—क्या रूबी या रूपेश नाम के व्यक्तियों से सम्बन्धित किसी हत्याकाण्ड से तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं है ?"
"बिल्कुल नहीं।" इस बार युवक ने पूरी दृढ़ता के साथ कहा।
खामोशी के साथ रश्मि उसे घूरती रही। बोली—"फिलहाल मैं तुम्हारे इस कथन पर यकीन कर लेती हूं , मगर इस चेतावनी के साथ कि अगर कल हकीकत के रूप में मुझे वही पता लगा , जो पुलिस कह रही थी तो मैं तुम्हारा मुंह नोंच लूंगी।"
"जरूर—मगर...।"
“मगर ?”
"एक रिक्वेस्ट मैं भी करना चाहूंगा।"
"क्या ?”
"इस बात को अच्छी तरह समझ लीजिए कि मेरे और सर्वेश के हत्यारे के बीच उनके इस हमले के साथ ही खुली जंग का ऐलान हो चुका है—मैं अपनी चालें चलूंगा—वे अपनी , और वे कोई भी चाल चल सकते हैं—मेरे और आपके बीच मतभेद पैदा करने वाली चालें भी—आपकी दृष्टि में मेरा करेक्टर गिराने की चाल भी—मैं रिक्वेस्ट करूंगा कि आप खुद को उनकी ऐसी किसी भी चाल से बचाकर रखें।"
"कोशिश करूंगी , मगर एक बात अभी भी कहूंगी, मिस्टर।" रश्मि ने कहा— “मुझे तुम्हारी बातों पर पूरा यकीन नहीं हुआ है—मैं सोचती हूं कि या तो तुम वाकई निर्दोष हो या इतने बड़े जालसाज और ठग हो जो अपनी गढ़ी हुई तर्कपूर्ण कहानियों से दिन को रात साबित कर सकता है—और अगर तुम वह हो तो निश्चय ही हत्यारे हो और कान खोलकर सुन लो कि—रश्मि अपने पति के हत्यारों से बदला लेने के लिए किसी मासूम के हत्यारे से हरगिज समझौता नहीं कर सकती।"
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05-18-2020, 02:35 PM,
#57
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सैंकड़ों ट्यूबलाइटों से जगमगाता हुआ वह एक बहुत बड़ा हॉल था—सिच्युएशन से ही जाहिर था कि वह हॉल किसी बहुत ब़ड़ी इमारत के नीचे छुपा तहखाना है। वहीं दिन जैसा प्रकाश फैला था। दीवारों के सहारे वर्दीधारी सैनिक खड़े थे।
उन सभी के पैरों में कपड़े के जूते थे। हरी वर्दी पर लम्बी कपड़े की चौड़ी बैल्ट और सिर पर लाल रंग की ही कैप लगाए , हाथों में
गन लिए वे इस कदर मुस्तैद खड़े थे कि जैसे किसी भी पल किसी को भी शूट कर देने के लिए तैयार हों।
उनकी गनें उन लोगों की तरफ तनी हुई थीं , जो पंक्तिबद्ध हॉल के बीचो-बीच खड़े थे। उनमें एक चेहरा ऐसा था , जिससे पाठक पूर्ण परिचित हैं।
यह चेहरा था —रूपेश का।
जला हुआ , वीभत्स , भयानक और डरावना चेहरा।
अपने साथ पंक्ति में खड़े अन्य लोगों की तरह ही वह भी बिल्कुल खामोश खड़ा हॉल के एक तरफ बने मंच की तरफ़ देख रहा था।
उस मंच की तरफ , जिसके अग्रिम सिरे पर पंक्तिबद्ध कम-से-कम दस सर्चलाइटें लगी हुई थीं और प्रत्येक सर्चलाइट का प्रकाश इधर ही की तरफ था , अतः मंच अंधेरे में डूबा -सा नजर आता था।
एकाएक ही मंच की छत पर लगा एक लाल रंग का बल्ब जलने-बुझने लगा और उसके साथ ही सारे हॉल में पिंग—पिंग की आवाज गूंजने लगी।
हॉल में मौजूद सभी लोग पहले से कहीं ज्यादा मुस्तैद नजर आने लगे।
फिर मंच पर एक साया नजर आया—सिर्फ साया।
चेहरा स्पष्ट नहीं चमक रहा था उसका। हां—लिबास चांदी जैसे रंग का चमकदार होने की वजह से जरूर चमक रहा था—चुस्त लिबास था वह।
बल्ब ने जलना-बुझना बन्द कर दिया—पिंग-पिंग की आवाज भी बन्द हो गई।
एकाएक मंच से सर्द आवाज उभरी— “ रंगा-बिल्ला!"
पंक्ति से एक साथ दो क्रूर-से नजर जाने वाले युवक दो कदम आगे बढ़कर रुकते हुए सम्मानित स्वर में बोले— “य....यस बॉस।"
"क्या तुम्हें मालूम है कि अनाज तुम्हें यहां क्यों बुलाया गया है ?"
"हमें पता लगा है बांस कि सर्वेश को जीवित देखा गया है।" उनमें से एक ने कहा।
"क्यों ?”
"इ...इस बारे में सुनकर हम खुद चकित हैं, बॉस!"
"ऐसा पहली बार देखा गया है कि जिसकी लाश रंगा-बिल्ला ने ठिकाने लगाई हो—वह जीवित देखा जाए—क्या आज से चार महीने पहले ठिकाने लगाई गई वह लाश सर्वेश की नहीं थी ?"
"यकीनन यह सर्वेश की लाश थी बॉस—और फिर इस मामले में केवल हम ही नहीं , 'शाही कोबरा ' भी इन्वॉल्व थे , उन्होंने जिसे जहर देकर मारा , यह नहीं माना जा सकता कि वह सर्वेश नहीं था , क्योंकि ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता कि 'शाही कोबरा ' की आंखें धोखा खा सकती हैं—हमने रेल की पटरी पर यकीनन उसी लाश को रखा था , जो हमें 'शाही कोबरा ' ने सौंपी—हमें हुक्म दिया गया था कि लाश को पटरी पर इस तरह रखें कि ट्रेन के गुजरने के बाद उसका चेहरा न पहचाना जा सके—हमने अक्षरश: उनके हुक्म का पालन किया था।"
"इस मामले से 'शाही कोबरा ' भी बहुत चकित और चिन्तित हैं—वे उसे दो दिन से ज्यादा जीवित देखना नहीं चाहते।"
"वह दूसरे दिन भी जीवित नहीं मिलेगा।"
"गुड।" मंच की तरफ से आवाज उभरी— “ तुम जा सकते हो।"
विशेष ढंग से अभिवादन करने के बाद वे दोनों कदम-से-कदम मिलाते हॉल से बाहर चले गए और तब बॉस ने पुकारा—रूपेश!"
“यस बॉंस।" रूपेश पंक्ति से दो कदम आगे निकल आया।
"तुम्हारी जमानत सेठ न्यादर अली ने ली थी न ?”
“यस बॉस।"
"कमाल की बात है—भला उसने तुम्हारी जमानत क्यों ली थी ?"
"कचहरी में अपने वकील और इंस्पेक्टर आंग्रे के सामने तो उसने खुद को एक महान और आदर्श व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया—उसने मेरी जमानत क्यों ली थी , इसका रहस्य तो मुझे तब पता लगा, जब वह मुझे अपने बंगले पर ले गया।"
"वहां क्या किया उसने ?"
"उस सारे सिलसिले से सम्बन्धित वह मुझसे कोई ऐसी बात जानना चाहता था , जो मैंने पुलिस को न बताई हो।"
“ओह , इसका मतलब यह कि न्यादर अली एक नम्बर का धूर्त है—फिर , तुमने उसे कुछ बताया तो नहीं ?"
"सवाल ही नहीं उठता, बॉस—मीठी-मीठी बातें बनाकर वह मुझे अपने बंगले ही में कैद रखना चाहता था , मगर मौका मिलते ही मैं वहां से भाग आया।"
"गुड।"
"मैं बहुत शर्मिन्दा हूं, बॉस , 'शाही कोबरा ' से मेरी तरफ से माफी मांग लीजिएगा—मैं पूरी तरह से उनके हुक्म पर अमल नहीं कर सका।"
" 'शाही कोबरा ' को सब मालूम है—वे जानते हैं कि इस स्कीम को कामयाब बनाने के लिए तुमने अपनी पत्नि खो दी , अपनी खूबसूरत शक्ल खो दी , मगर फिर भी पुलिस को यह नहीं बताया कि यह सब कुछ तुम 'शाही कोबरा ' के लिए कर रहे थे—सारा जुर्म तुमने अपने ही ऊपर ले लिया है—तुम्हारी इस कुर्बानी का इनाम 'शाही कोबरा ' जरूर देंगे।"
"थ......थैंक्यू, बॉस। ”
"अब तुम क्या चाहते हो ?"
एकाएक ही रूपेश का डरावना चेहरा विकृत हो गया। बड़ी ही हिंसक गुर्राहट निकली उसके मुंह से— "म......मैँ याददाश्त भूले उस हरामजादे युवक से अपनी माला के खून और मुझे इस हालत तक पहुंचाने का बदला लेना चाहता हूं।"
मंच से बॉस ने कहा— “मिलेगा रूपेश , तुम्हें पूरा मौका दिया जाएगा।"
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05-18-2020, 02:36 PM,
#58
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
'मुगल महल ' के काउण्टर पर पहुंचकर इंस्पेक्टर दीवान ने कहा— "मेरा नाम दीवान है और ये हैं इंस्पेक्टर चटर्जी—मैनेजर से कहो कि हम उनसे मिलना चाहते हैं।"
"क्षमा कीजिए।" डॉली ने कहा—“यह तो आपको बताना ही होगा कि किस सम्बन्ध मेँ ?"
दीवान ने सवालिया नजरों से चटर्जी की तरफ देखा। दीवान इस समय यूनीफॉर्म में था , जबकि चटर्जी सलेटी रंग का सूट पहने था। उसने डॉली से कहा— “क्या यहां कल सर्वेश आया था ?"
"ज...जी हां। ” कहते समय डॉली चौंक पड़ी और उसका यह चौंकना चटर्जी की पैनी निगाहों से छुप नहीं सका। सामान्य स्वर में ही उसने कहा— "उनसे कहो कि हम सर्वेश के सम्बन्ध में मिलना चाहते हैं।"
"म......मैं समझी नहीं....सर्वेश के सम्बन्ध में उनसे क्या बातें करना चाहते हैं आप ?”
चटर्जी की दृष्टि कुछ और पैनी हो गई , बोला—"हम यह जांच कर रहे हैं कि जो सर्वेश कल यहां आया था , वह सर्वेश ही था या उसकी शक्ल में कोई बहुरूपिया है?"
डॉली के होश उड़ गए—"क......क्या वह कोई बहुरूपिया भी हो सकता है?"
बहुत ही रहस्यमयी मुस्कान के साथ चटर्जी ने कहा— “क्यों नहीं हो सकता , आखिर चार महीने पहले सर्वेश ने आत्महत्या कर ली थी।"
"व......वह तो ठीक है , मगर...।"
“हमें तुमसे बातें नहीं करनी हैं।" एकाएक ही उसकी बात बीच में काटकर दीवान गुर्रा उठा— “हमारे आने की सूचना मैनेजर को दो।"
सकपकाकर डॉली ने रिसीवर उठा लिया , मैनेजर को सूचना दी—थोड़ी देर बाद रिसीवर रखते समय वह शुष्क कण्ठ से सिर्फ इतना ही कह सकी— “आप जा सकते हैं।"
"थैंक्यू बेबी—मगर मुझे दुख है कि तुम बहुत ज्यादा स्मार्ट नहीं हो।" बड़े ही अजीब अन्दाज में कहने के बाद चटर्जी दीवान के साथ मैनेजर के कमरे की तरफ बढ़ गया।
डॉली हक्की-बक्की-सी खड़ी रह गई थी।
वह चटर्जी द्वारा कहे गए अन्तिम वाक्य का अर्थ बिलकुल नहीं समझी—हां , यह प्रश्न बड़ी तेजी से उसके जेहन में कौंधा था कि सर्वेश सचमुच सर्वेश ही है या कोई बहुरूपिया ?
यह राज उसे भी पता लगना चाहिए , अत: वह मैनेजर के कमरे के बन्द दरवाजे की तरफ लपकी और अगले ही पल वह अन्दर होने वाली बातें सुन रही थी।
¶¶
"भला आपको यहां से कैसे मालूम हो सकता है कि यह सर्वेश ही है या कोई और ?" साठे ने चकित भाव से पूछा।
चटर्जी ने अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ कहा— "आपके पास चार महीने पहले का वह रजिस्टर तो होगा ही , जिसमें सर्वेश अपनी ड्यूटी पर आने-जाने का समय लिखकर अपने साइन करता हो ?"
“हां , बिल्कुल है।"
"सर्वेश कैशियर था , उसके द्वारा तैयार किए गए खाते भी होंगे ?"
" 'जी , बिल्कुल हैं—मगर उनसे होगा क्या?"
"मुझे केवल यहां काम करने वाले सर्वेश की राइटिंग चाहिए , जो व्यक्ति कल यहां आया था , उसकी राइटिंग मेरे पास है—दोनों को मिलाने से गुत्थी सुलझ जाएगी।"
"ओह , वेरी नाइस।" साठे कह उठा , चटर्जी के लिए उसके चेहरे पर प्रशंसा के भाव उभर आए थे , बोला— “लेबर का हाजिरी रजिस्टर तो मेरे पास रहता ही है , संयोग से चार महीने पहले के कैश रजिस्टर भी मेरे पास हैं।"
"उन्हें निकालिए।"
साठे ने मेज पर पड़े चाबी के गुच्छे में से एक चाबी से दराज खोली और कुछ ही देर बाद चटर्जी उसके द्वारा दिए गए रजिस्टर से गवाह के स्थान पर ली गई सिकन्दर की राइटिंग मिला रहा था और मिलाते-ही-मिलाते वह बड़े गहरे अन्दाज में मुस्करा उठा।
उत्सुक साठे ने पूछा— "क्या रहा ?"
"यह सर्वेश नहीं , कोई बहुरूपिया है।"
“ब....बहुरूपिया , मगर वह यहां क्यों आया था—क्या चाहता है ?"
“यह सब तो उसकी गिरफ्तारी के बाद ही पता लगेगा , मगर हाजिरी रजिस्टर में सर्वेश के अन्तिम दिन यहां से जाते समय का कॉलम भरा हुआ क्यों नहीं है ?"
"शायद उसने तबीयत खराब होने की वजह से नहीं भरा था।"
"हो सकता है।" चटर्जी ने कहा—“अब हमारा लक्ष्य यह पता लगाना है कि खुद को सर्वेश साबित करने के पीछे उसका उद्देश्य क्या है—और उसमें आप हमारी मदद कर सकते हैं, मिस्टर साठे।"
"मैं आपके हर हुक्म का पालन करने के लिए तैयार हूं।"
"वह जब भी यहां आए , यही जाहिर करें कि आप उसे सर्वेश मानते हैं—अपनी सीट पर अगर काम करना चाहे तो वह भी उसे दे दें—पुलिस की नजर बराबर उस पर रहेगी—कोई भी प्वाइंट हाथ में आते ही हम उसे पकड़ लेंगे।"
"किसी प्वाइंट की जरूरत ही कहां रह गई है , आपने अभी कहा कि राइटिंग से क्लीयर हो चुका है , उसे गिरफ्तार कर लीजिए।”
"केवल हमारे दिमागों में क्लीयर हुआ है , अदालत में साबित नहीं किया जा सकता।"
“क्यों?”
"हम आपको बता चुके हैं कि उसने अपना हाथ जला लिया है , अत: उसकी वर्तमान राइटिंग नहीं ली जा सकती। आपके रजिस्टरों की राइटिंग को वह अपनी ही कहेगा और इस राइटिंग को जो हमारे पास है , कहेगा कि यह उसकी नहीं है , जाने किसकी राइटिंग से रजिस्टर्स में मौजूद राइटिंग को मिलाकर मुझे बहुरूपिया साबित किया जा रहा है ?”
"ओह नो!"
"अपने चार महीने गुम रहने की वजह उसने आपको क्या बताई थी ?"
"याददाश्त गुम होना।"
"वह कहता है कि उसने आपसे ऐसा कुछ नहीं कहा।"
“क...क्या मतलब ?" साठे उछल पड़ा—"व...वह बकता है , एकदम झूठ बोल रहा है वह , उसने मुझसे कहा था कि...।"
"हम जानते हैं , मगर फिलहाल उसके झूठ को साबित नहीं कर सकते।"
“ क...कमाल कर रहे हैं आप—मुझसे सामना कराइए उसका।"
चटर्जी ने उसी मुस्कान के साथ कहा— "सामना होने पर आप कहते रहेंगे कि वह झूठा है , वह कहता रहेगा कि आप—आपके पास साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं होगा , सो—बात वहीं लटकी रहेगी।"
"हद हो गई , इतना ढीठ है वह ?"
"शायद इससे भी ज्यादा , खैर—फिलहाल आपके लिए उसे सर्वेश ही समझ लेना कारगर होगा , मगर अपनी काउण्टर गर्ल से जरा सावधान रहें।"
"क...क्या मतलब ?"
"वह मुझे रहस्यमय लगती है , सम्भव है कि इस बहुरूपिए से मिली हुई हो—उसकी तरफ से सतर्क रहने की सख्त आवश्यकता है।" कहने के साथ ही चटर्जी उठ खड़ा हुआ और दीवान के साथ ऑफिस से बाहर निकल गया।
सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह थी कि इस वक्त साठे के ऑफिस की किसी भी दीवार पर सेठ न्यादर अली का फोटो नहीं लगा हुआ था।
¶¶
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05-18-2020, 02:36 PM,
#59
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
डॉली का दिल तभी से 'धक-धक ' कर रहा था , जब से उसने मैनेजर के कमरे में होने वाली बातें सुनी थीं। जहां से उसे यह पता लगा था कि जिससे वह अपना दिल खोल बैठी है , जिसे अपना राज बता दिया है , वह सर्वेश नहीं कोई बहुरूपिया है , वहीं अपने बारे में इंस्पेक्टर चटर्जी के विचार सुनकर उसके होश उड़ गए थे।
यह महसूस करके ही उसकी हालत पतली हुई जा रही थी कि पुलिस की नजर मुझ पर है और वे मुझे उस बहुरूपिए का साथी समझ रहे हैं—उफ्फ—मैं उससे मिली ही क्यों—सर्वेश समझकर मैंने उसे राज क्यों बता दिया—पता नहीं वह कम्बख्त कौन है , किस चक्कर में है—उसके साथ व्यर्थ ही मैं भी फंस जाऊंगी।
अचानक उसके दिमाग में एक तरकीब आई।
उसने जल्दी से एक पैड और बाल-पैन उठाया—लिखा—
मैँ जान चुकी हूं कि तुम सर्वेश नहीं हो।
सुनो , दीवान और चटर्जी नाम के दो इंस्पेक्टर यहां आए—साठे जी से मिले , उनके पास तुम्हारी राइटिंग थी , जिसे चार महीने पहले सर्वेश द्वारा तैयार किए गए रजिस्टरों से मिलाकर वे जान गए हैं कि तुम सर्वेश नहीं हो—कमरे में साठे जी से होने वाली सारी बातें मैंने भी छुपकर सुन ली हैं।
मैं नहीं जानती कि तुम किस चक्कर में हो , मगर इतना जान गई हूं कि तुम जिस चक्कर में हो , सफल नहीं हो सकोगे—साठे जी और पुलिस तुम्हारी हकीकत जान गए हैं। उनकी योजना यह बनी है कि तुम पर तुम्हें सर्वेश ही होना जाहिर करके यहां सर्वेश का काम दे दिया जाए—पुलिस की नजर हर पल तुम पर रहेगी और केवल तुम्हें फंसाने के उद्देश्य से ही यह साजिश की जा रही है , अत: तुम अपने किसी मकसद में हरगिज कामयाब नहीं हो सकोगे—खैरियत चाहते हो तो सर्वेश का यह चोला उतार फेंको , जितनी जल्दी हो सके देहली से बाहर भाग जाओ , अगर तुमने ऐसा न किया तो निश्चय ही पुलिस के हत्थे चढ़ जाओगे।
पत्र लिखने के बाद उसने एक बार पढ़ा।
उसे यकीन हो गया कि इस पत्र को पढ़ने के बाद बहुरूपिया एक पल के लिए भी देहली में नहीं ठहरेगा और सर्वेश बना रहकर अपने किसी उद्देश्य में सफल होने का भूत तो उसके दिमाग से उतर ही जाएगा।
यही डॉली चाहती थी।
जब वही न रहेगा तो मामला आगे बढ़ेगा ही नहीं और जब झमेला ही खत्म हो जाएगा तो वह हर झमेले से बाहर हो जाएगी—यही सब सोचकर उसने अपने अत्यन्त विश्वसनीय वेटर को बुलाया और पत्र को एक लिफाफे में बन्द करती हुई बोली— “इस लिफाफे को तुम इसी समय सर्वेश के घर पहुचा दो।"
'"ओ oके o मैडम।" कहकर वेटर ने लिफाफा ले लिया।
चारों तरफ़ देखती हुई डॉली ने कहा— “अब तुम जाओ।"
जाने के लिए अभी वेटर मुड़ा ही था कि मुख्य द्वार खुला , रंगा-बिल्ला होटल के अन्दर प्रविष्ट हुए—उन पर दृष्टि पड़ते ही डॉली का दिल एक बार बहुत जोर से धड़का।
'धक् '
और फिर धड़कनें मानो रुक गईं।
सिट्टी-पिट्टी गुम ही गई डॉली की—मूर्खों की तरह उधर ही देखती रह गई वह , पलकें तक जैसे रंगा-बिल्ला को देखने के बाद झपकना भूल गई थीं।
वे दोनों आदमी नहीं , जिन्न नजर जाते थे—सचमुच के जिन्न।
पांच फुट दस इंच।
वे इस वक्त भी अपना परम्परागत लिबास यानि काले कपड़े पहने हुए थे , पैरों में चमकदार काले जूते जो दर्पण का भी काम कर सकें—यह महसूस करके डॉली के होश उड़ गए कि वे काउण्टर की तरफ ही चले आ रहे हैं।
चलते समय उनके कदम बिल्कुल साथ उठते थे—परेड करते जवानों की तरह।
उनकी जलती हुई आंखों को डॉली ने अपने चेहरे पर स्थिर महसूस किया—डॉली का चेहरा स्वयं ही पीला-जर्द पड़ गया। जाने क्यों किसी अनहोनी की आशंका से डॉली का दिल सूखे पत्ते-सा कांपने लगा था , स्वयं वेटर भी उन्हें देखकर ठिठक गया था।
डॉली दांत भींचकर गुर्राई—“त.....तुम जाओ बेवकूफ , यहां क्यों खड़े हो ?"
वेटर जैसे किसी मोहजाल से बाहर निकला।
लिफाफे को जेब में रखते हुए अभी उसने पहला कदम आगे बढ़ाया ही था कि नजदीक पहुंचकर रंगा ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर पूछा—"कहां जा रहे हो ?"
"ज....जी....? ” वेटर के प्राण खुश्क ही गए।
डॉली को काटो तो खून नहीं।
बिल्ला ने वेटर से लिफाफा लेते हुए कहा— "ये क्या है ?"
डॉली का सिर चकरा गया , चेहरा पीला-जर्द—ऐसी इच्छा हुई कि वह झपटकर बिल्ला के हाथ से लिफाफा छीन ले , मगर ऐसा करने की हिम्मत उसमें दूर-दूर तक नहीं थी , फिर भी लड़खड़ाते-से स्वर में उसने कहा— “ अ..आओ रंगा-बिल्ला , मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकती हूं ?"
"पहले यह देखते हैं कि ये वेटर तेरी क्या सेवा कर रहा था ?" कहने के साथ ही बिल्ला ने एक झटके से लिफाफा खोल लिया।
"न...नहीं...।" डॉली चीख पड़ी—“उ.....उसमें तुम्हारे मतलब की कोई चीज नहीं है ….प...प्लीज़—उसे मत खोलो बिल्ला।"
रंगा बोला —“ डॉली कुछ ज्यादा ही चीख रही है बिल्ला , इसमें शायद हमारे ही मतलब की कोई चीज है।"
बिना कुछ कहे बिल्ला ने पत्र निकाल लिया।
डॉली की आंखों के सामने अपना लिखा एक-एक शब्द चकरा उठा , दिमाग घूम गया उसका। आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा , डॉली को लगा कि वह अभी चकराकर गिर पड़ेगी।
"प...प्लीज , उसे मत पढ़ो बिल्ला।" मौत का खौफ डॉली पर कुछ इस तरह हावी हुआ कि वह गिड़गिड़ाती हुई रो पड़ी।
पत्र पढ़ते-पढ़ते रंगा-बिल्ला के चेहरे क्रूरतम हो उठे , आंखों में उभर आई हिंसक चमक।
¶¶
मुर्गी के अण्डे जितना बड़ा वह एक अण्डाकार गोला था , देखने मात्र से वह कोई छोटा बम-सा नजर आता था। मुश्किल से एक मिनट पहले उसके अन्दर से 'पिंग-पिंग ' की उतनी ही धीमी आवाज निकली थी , जितनी "टेबल वॉच ' से प्रत्येक सेकंड निकलती है। इस आवाज़ के साथ ही अण्डाकार बम के उस स्थान पर दो बार हरे रंग का एक नन्हां-सा बल्ब जलकर बुझ गया था—जहां छोटा-सा परदर्शी शीशा लगा हुआ था।
वह अण्डाकार बम जैसी वस्तु युवक और विशेष के बीच सेन्टर टेबल पर रखी थी। विशेष अपनी बड़ी-बड़ी और मासूम आंखों में दिलचस्पी लिए उसे ध्यान से देख रहा था।
जबकि युवक के होंठों पर बहुत ही रहस्यमय मुस्कान थी।
कमरे में खामोशी छाई रही और पांच मिनट गुजरते ही 'पिंग-पिंग ' की आवाज़ के साथ हरा बल्ब पुन: लपलपाया।
"बस।" युवक ने विशेष को बताया— “ फिर पांच मिनट बाद हर बल्ब इसी आवाज के साथ खुद-ब-खुद लपलपाएगा।"
"क्या शानदार खिलौना है, पापा। ”
"इसे हम बाजार से नहीं लाए हैं वीशू, खुद बनाया है।"
“आपने ?”
"हां।”
विशेष ने खुश होते हुए पूछा—"यह खिलौना आपने मेरे लिए बनाया है न पापा ?"
"सॉरी बेटे , नहीं।"
"फिर ?”
"तुम तो अभी बहुत छोटे हो वीशू, यह खिलौना हमने बड़े और गन्दे बच्चों के लिए बनाया है। वे इस बल्ब के जलने-बुझने से पूरी तरह डर सकते हैं।"
"इसमें भला डरने की क्या बात है, पापा ?"
कुछ बताने के लिए युवक ने अभी मुंह खोला ही था कि किसी ने मकान के मुख्य द्वार पर दस्तक दी , दोनों ही का ध्यान भंग हो गया , युवक ने अण्डाकार बम-सी नजर आने वाली वस्तु जेब में रखते हुए कहा— "जरा देखना वीशू—कौन है ?"
विशेष कमरे से निकलकर मुख्य द्वार की तरफ दौड़ गया।
युवक ने आगे बढ़कर एक मेज की दराज खोली , दराज से उसने एक इलेक्ट्रिक स्विच निकालकर कोट की ऊपरी जेब में डाल लिया।
अभी वह मुड़ा ही था कि कमरे में दाखिल होते हुए विशेष ने सूचना दी— "आपके होटल से एक वेटर आया है पापा , कहता है कि उसे डॉली मेमसाब ने भेजा है।"
सुनते ही रोमांच की एक तेज लहर उसके समूचे जिस्म में दौड़ गई। उसे लगा कि अब कुछ ही देर बाद दुश्मनों से वास्तविक जंग शुरू होने वाली है—उसने डॉली से रंगा-बिल्ला की सूचना भेजने के लिए कहा था और यह वेटर शायद यही सूचना लेकर आया है। यह सोचते ही वह तेजी के साथ कमरे से बाहर की तरफ लपका।
आंगन पार करते वक्त कदाचित कदम ठीक न पड़ने की वजह से वह कई बार लड़खड़ा गया , किन्तु गिरा नहीं। दरवाजे पर पहुंचकर उसने वहां खड़े वेटर से पूछा— “कहो , डॉली ने क्या संदेश भिजवाया है ?"
वेटर ने चुपचाप एक कागज उसकी तरफ बढ़ा दिया।
युवक ने व्यग्रतापूर्वक खोलकर उसे पढ़ा , लिखा था— “मैंने पता लगा लिया है सर्वेश कि इस वक्त रंगा-बिल्ला कहां हैं—तुम इस वेटर के साथ चले आओ—यह तुम्हें मेरे पास पहुंचा देगा , फिक्र न करना—वेटर मेरा विश्वसनीय है।"
पत्र जेब में डालते हुए युवक ने घूमकर विशेष से कहा —“हम जरा काम से जा रहे हैं, वीशू बेटे—दरवाजा अन्दर से बन्द कर लो।"
वीशू के स्थान पर वहां रश्मि की आवाज गूंजी— “काम से तो तुम जा रहे हो , लेकिन जरा संभलकर चला करो—आंगन में तुम्हारे कदम ठीक नहीं पड़ रहे थे।"
"क...क्या मतलब ?" कुछ भी न समझने की स्थिति में चौंकते हुए युवक ने पूछा।
अपने कमरे की तरफ जाने वाले जीने की एक सीढ़ी पर खड़ी रश्मि ने उसी गम्भीर और सौम्य स्वर में कहा— “तुम्हारे दोनों जूतों की एड़ियां घिस गई हैं—शायद इसीलिए गैलरी पार करते समय कई बार लड़खड़ा गए—मेरी सलाह है कि एड़ियां ठीक करा लो , वरना कहीं मुंह के बल गिर पड़ोगे।"
युवक रश्मि के कटाक्ष , व्यंग्य अथवा पहेली जैसे उन शब्दों का अर्थ नहीं समझ सका—रश्मि की बात का अर्थ पूछने के लिए उसके पास समय नहीं था , अतः वेटर से बोला।
"चलो।”
वह बाहर निकल गया। विशेष ने दरवाजा बन्द कर लिया।
¶¶
Reply
05-18-2020, 02:36 PM,
#60
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
वेटर उसे देहली के बाहरी इलाके में स्थित एक गन्दी-सी बस्ती में ले गया , और फिर टीन के बने एक फाटक जैसे विशाल दरवाजे के सामने ठिठका। यह दरवाजा किसी गोदाम के दरवाजे जैसा था , जिसकी तरफ इशारा करके वेटर ने कहा— "आप इसके अन्दर चले आइए।"
"क्या डॉली मुझे यहां मिलेगी ?"
"जी हां।"
"म...मगर यह अजीब जगह है , डॉली भला यहां क्या कर रही है ?"
"डॉली मेमसाब ने कहा था कि शायद रंगा-बिल्ला को उन पर शक हो गया है—उन्हीं के डर से वे यहां छुपी हुई हैं।"
"क्या तुम अन्दर नहीं चलोगे ?”
"नहीं।" अजीब-से स्वर में कहने के बाद वेटर एक क्षण के लिए भी वहां रुका नहीं। अगला सवाल पूछने के लिए युवक का मुंह खुला-का-खुला रह गया , क्योंकि गजब की तेजी के साथ वेटर मुड़ा और लम्बे-लम्बे कदमों के साथ उससे दूर होता चला गया।
ठगा-सा युवक वहीं खड़ा रहा।
मस्तिष्क में सैकडों विचार चकरा रहे थे। स्वयं को उलझन-सी में घिरा महसूस कर रहा था वह—सारा वातावरण रहस्यमय-सा लगा।
वेटर एक मोड़ पर घूमकर दृष्टि से ओझल हो गया। युवक यह सोचता हुआ दरवाजे की तरफ घूमा कि जब उसने एक खतरनाक काम अपने हाथ में लिया है तो इस किस्म के वातावरण से तो गुजरना ही होगा। दाएं हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी—बाएं हाथ से जेब में पड़े रिवॉल्वर को थपथपाया और किसी भी खतरे से जूझने के लिए तैयार होकर उसने गोदाम के दरवाजे पर लगी सांकल जोर से बजा दी।
आवाज दूर-दूर तक गूंज गई , मगर वहां कोई व्यक्ति नजर नहीं आया।
अन्दर से उभरने वाली किसी भारी सांकल के हटने की आवाज सुनकर वह सतर्क हो गया। बायां हाथ जेब के अन्दर डालकर रिवॉल्वर की मूठ पर कस लिया।
दरवाजा खुला। डॉली पर नजर पड़ते ही वह कुछ आश्वस्त हुआ।
युवक ने महसूस किया कि डॉली इस वक्त बुरी तरह आतंकित है। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं , आंखों में हर तरफ ‘खौफ-ही-खौफ ' नजर आ रहा था।
"क्या बात है, डॉली? तुम इस कदर डरी हुई क्यों हो ?"
"आओ।" उसके सवाल पर कोई ध्यान न देती हुई डॉली ने शुष्क स्वर में कहा तथा टीन के दोनों विशाल किवाड़ों के बीच पैदा हुए रास्ते से हट गई—अन्दर कदम रखते हुए युवक ने डॉली के लहजे में कम्पन महसूस किया।
रुई की गांठों से भरा वह एक बहुत विशाल हॉल था।
युवक ने तेजी से निरीक्षण किया। हर तरफ एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी। यह खामोशी युवक को वैसी ही महसूस हुई जैसी अक्सर किसी बड़े तूफान के जाने से पहले छा जाया करती है।
वह डॉली की तरफ घूमा।
भारी सांकल चढ़ाने के बाद डॉली स्वयं उसकी तरफ घूमी थी—नजरें मिलीं तो युवक को पुन: अहसास हुआ कि डॉली खुद को सूली पर खड़ी महसूस कर रही है।
उसने पूछा— "क्या बात है डॉली?"
"क...क्या तुम्हें वेटर ने नहीं बताया ?" लहजा बुरी तरह कांप रहा था।
"रंगा-बिल्ला को तुम पर कैसे शक हो गया ?"
वही आतंकित स्वर—“म......मैं इस वक्त भी उनकी कैद में हूं।"
"क......क्या मतलब ?" युवक चीख-सा पड़ा।
"म.......मैं एक-एक शब्द वही बोल रही हूं जो बोलने के लिए उन्होंने कहा है।"
युवक उछल पड़ा , रोंगटे खड़े हो गए उसके , चीखा— "क......कहां हैं वे ?"
"इ...इसी गोदाम में।"
"क...क्या मत... ?"
युवक का वाक्य पूरा नहीं हो सका। दाईं तरफ बिजली-सी कौंधी।
डॉली के कण्ठ से एक हृदयविदारक चीख निकलकर सारे गोदाम में गूंज गई।
और अगले ही पल युवक ने डॉली की छाती में गड़ा एक चाकू देखा। चालू की सिर्फ मूठ चमक रही थी और उसी से अनुमान लगाया जा सकता था कि चाकू काफी लम्बा है—उसका समूचा फल डॉली की छाती में पैवस्त था।
चेहरे पर असीम वेदना के भाव लिए कटे वृक्ष-सी वह गिरी।
यह सब कुछ एक ही क्षण में हो गया था। इतनी तेजी से कि युवक कुछ समझ नहीं सका—फिर भी बौखलाकर उसने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया और इससे पहले कि दाईं तरफ फायर करता , स्वयं उसी के कण्ठ से एक चीख उबल पड़ी।
लोहे की कोई मोटी चैन उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई पर पड़ी थी।
मुंह से एक चीख निकली और हाथ से रिवॉल्वर निकलकर जाने कहां जा गिरा। दर्द से बिलबिलाते हुए उसने आक्रमणकारी की तरफ देखा तो जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
यह बिल्ला था , काला भुजंग।
चेहरे पर इस वक्त खूंखार भाव लिए वह दाएं हाथ में दबी मोटरसाइकिल की चेन को बड़े ही खतरनाक अंदाज में अपनी बाईं कलाई पर लपेट रहा था। अपनी लाल-सुर्ख आंखों से युवक को घूरते हुए वह गुर्राया—"मुझ नाचीज को बिल्ला कहते हैं।"
दाईं तरफ से 'धम्म ' की आवाज उभरी।
हड़बड़ाकर युवक ने उधर देखा।
रुई की गांठों के ढेर के ऊपर से जो अभी-अभी फर्श पर कूदा था , वह रंगा था। रुई जैसा ही सफेद , परन्तु आंखें उसकी भी अंगारों जैसी थीं , किसी भी मायने में वह बिल्ला से कम खतरनाक नजर नहीं आता था। उसके हाथ में वैसा ही दूसरा चाकू था जैसा डॉली की छाती में पैवस्त था। युवक की तरफ देखते हुए उसने कहा—"गलती से मेरा नाम रंगा है।"
"एक रंगा-बिल्ला फांसी पर झूल गए—दूसरे हम हैं।" यह बात बिल्ला ने कही थी।
जब युवक ने दोनों तरफ से उन्हें अपनी तरफ बढ़ते देखा तो युवक के तिरपन कांप गए—मौत की लहर बिजली के समान उसके जिस्म में कौंध गई—इस क्षण उसे महसूस हुआ कि रंगा-बिल्ला से टकराने का निर्णय निहायत ही मूर्खतापूर्ण था।
इस गोदाम में कदम रखकर उसने अपने जीवन की सबसे भयंकर और अंतिम भूल की है। उन दोनों से बचने के लिए सहमा-सा वह पीछे की तरफ हटा , साथ ही अपने रिवाल्वर की तलाश में फर्श पर नजर दौड़ाई थी।
नजर डॉली की लाश पर पड़ी।
युवक के होश फाख्ता हो गए। उसे लगा कि कुछ देर बाद वह स्वयं भी उसी अवस्था में पहुंचने वाला है। अपनी उंगलियों में चाकू को नचाते हुए रंगा ने कहा—"क्यों बेटे , अब डर क्यों रहे हो—डॉली से सुना था कि तुम्हें हमारी तलाश है।"
“म....मुझे?...न....नहीं तो! " आतंकित युवक बड़ी मुश्किल से कह सका।
"पिछली बार तो तुम बच गए थे , मगर इस बार नहीं बच सकोगे।"
" 'म...मैं सर्वेश नहीं हूँ।"
रंगा गुर्राया— “ फिर सर्वेश बने क्यों घूम रहे हो ?"
"क....कौन हो तुम?" बिल्ला ने पूछा।
"म....मुझे नहीं पता है। ”
"रंगा-बिल्ला के सवाल को टालता है, हरामजादे।" कहने के साथ ही रंगा ने अपने हाथ में दबा चाकू उस पर खींच मारा—बिजली की-सी तेजी के साथ बौखलाकर युवक नीचे बैठ गया। जो चाकू उसके सीने पर लगना चाहिए था , वह सर्र.....र्र....र्र....की आवाज के साथ उसके ऊपर से गुजरकर पीछे रुई की एक गांठ में धंस गया।
रंगा के चाकू का वार पहली बार ही खाली गया था। कदाचित् इसीलिए रंगा-बिल्ला ने हैरतअंगेज दृष्टि से एक दूसरे की तरफ देखा।
युवक अभी भी डरा हुआ-सा बोला— “म...मैं सच कह रहा हूं। मैं नहीं जानता कि मैं कौन हूं ?"
दूसरी बार उसका यह वाक्य सुनकर रंगा-बिल्ला के तन-बदन में आग लग गई—बिल्ला ने खींचकर चेन का वार किया और युवक हवा में दो गज उछलकर दूर जा पड़ा।
सांय की आवाज पैदा करती हुई चेन उसके नीचे से निकल गई।
मुंह से पंक्चर हुए टायर की-सी आवाज निकालते हुए रंगा ने जम्प लगाई तो युवक के बाएं हाथ का घूंसा कुछ ऐसे भीषण ढंग से उसके चेहरे पर पड़ा कि एक लम्बी डकार निकालता हुआ वह पीछे जा गिरा।
बिल्ला ने एक बार फिर चेन का वार किया।
इस बार युवक स्वयं को बचा नहीं सका और चेन उसकी पसलियों पर पड़ी , मुंह से चीख निकल गई , परन्तु इस चीख के साथ ही उसने बाएं हाथ से अपने पेट और पीठ पर लिपटी चेन का अग्रिम सिरा पकड़कर इतना जोरदार झटका दिया कि बिल्ला के हाथ से न केवल चेन छूट गई , बल्कि झोंक से वह रुई की एक गांठ से जा टकराया।
इस बीच संभल गए रंगा ने युवक पर जम्प लगाई , परन्तु युवक ने घुमाकर चेन का वार जो उस पर किया तो दर्द के कारण तड़पकर रह गया रंगा।
इसके बाद—चेन युवक के हाथ में थी।
सामने थे रंगा-बिल्ला।
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