Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:39 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह नहीं।” मैं फिर चीखी।

“अबे रफीक, ठोंक इस छिनाल के मुंह में लंड। बहुत हल्ला मचा रही है रंडी कहीं की।” सलीम बोला और वही हुआ। रफीक अपना दुर्गंध युक्त लिंग मेरे मुंह के पास लाया। घृणा से मैं मुंह बंद कर दी।

. “खोल मुंह कुतिया।” रफीक का एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा। तभी मंगरू की दानवी शक्ति से उसका विशाल लिंग, मेरी सूखी गुदा को छीलता रगड़ता फाड़ता प्रविष्ट होता चला गया। पीड़ा से चीखने हेतु मेरा मुंह खुला, किंतु मेरी चीख हलक में ही रह गयी। रफीक का दुर्गंध युक्त लिंग मेरे खुले मुंह से प्रविष्ट हो कर हलक में जा फंसा। मेरी सांसें घुटने लगीं। मैं छटपटाने लगी। यह मुसीबत मानो कम था, सलीम पिल पड़ा था अपने लिंग का प्रहार मेरी योनि में करने। बड़ी मुश्किल से सांस ले पाने में सक्षम हो पायी मैं। फिर तो सब कुछ आसान होता चला गया। वास्तव में एक साथ तीनतरफे हमले से आरंभ में मैं संभल नहीं पायी थी, यही कारण था कि कुछ परेशानी हुई। लेकिन एक बार सबकुछ सज चुकने, व्यवस्थित और संयंत होने के पश्चात मेरे साथ जो भी नोच खसोट, गुत्थमगुत्थी, या जोर अजमाईश ये दरिंदे कर रहे थे वह सबकुछ मुझे आनंद प्रदान कर रहा था। मेरी योनि में सलीम लिंग की हलचल, गुदा में बाहुबली लिंग की खलबली और मुख में रफीक लिंग का जलवा, मैं मगन मन कामुकता के सैलाब में बहती रही, डूबती रही। मुझपर टूटा करीब आधे घंटे का कहर जब शांत हुआ तो मैं मेरे तन का सारा कस बल निकल चुका था। अपने मदन रस से सींच कर मेरी कामुक देह को सिंचित करके मुझे तृप्ति प्रदान करने के दौरान तीनों दरिंदे अपनी दरिंदगी के निशान मेरे तन के कई हिस्सों पर अंकित कर चुके थे। लेकिन प्राप्त सुख के आगे उन दरिंदगी के निशानों का मुझे रंच मात्र भी गिला नहीं था। वे तीनों भी मेरी रसीली देह का रसास्वादन करते हुए मुझ पर अपनी मरदानगी झाड़ कर तृप्त, लंबी लंबी सांसें ले रहे थे।

जब हम तनिक संभले तो निचुड़े, लस्त पस्त बेडरूम से बाहर आए। अबतक बाकी सब लोग भी आपस में निबट चुके थे। मर्द लोग तो चोद चाद कर संभल चुके थे लेकिन, सोमरी और कांता की चुदी चुदाई नग्न देह अस्त व्यस्त, अर्धमूर्छित अवस्था में अब तक पड़ी हुई थीं।

“क्या हाल कर दिया है साले कुत्तों, इन लोगों का?” मैं बोल पड़ी।

“क्या किया? वही किया जो तुमलोग कर रहे थे।” बोदरा बोला।

“हमलोग जो कर रहे थे, उसके बाद भी देख लो, मैं ठीक हूं। तुमलोगों नें तो इन्हें बेहाल कर दिया है।” मैं बोली।

“तू तो साली रंडी एक नंबर की है, तेरा क्या होने वाला है।” बोदरा बोला। मेरी नजर तभी घड़ी पर पड़ी। बाप रे बाप, छ: बज रहा था। कुछ ही देर में हरिया, रामलाल वगैरह के साथ पहुंचने वाला होगा।

“ठीक है, ठीक है। बस बस, ज्यादा बोलो मत। फटाफट कपड़े पहन कर तैया हो जाओ सब। हमारे घर के बाकी नमूने आने वाले होंगे। अगर इस हालत में उन लोगों नें हमें देख लिया तो गजब हो जाएगा। आज का प्रोग्राम खतम। अब बाकी फिर कभी। और हां बाकी कहानी, उनके आने तक बताएगा हीरा। ठीक है?” मैं बोली।

“ठीक है।” सब अपने कपड़े पहनने लगे। कांता और सोमरी बड़ी मुश्किल से खड़ी हो पायीं। उनके तन को भी इन लोगों नें बड़ी बेरहमी से कुत्तों की तरह नोचा था। बुर को को कर दिया था बदहाल, चूचियों को कर दिया था लाल। सभी व्यवस्थित हो कर पुनः अपने अपने स्थान पर आसीन हो गये।

आगे की कहानी अगली कड़ी में। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।

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11-28-2020, 02:40 PM,
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पिछली कड़ी में आपलोगों नें पढ़ा कि किस तरह अपनी शारीरिक भूख मिटाने हेतु नित नये रोमांचकारी और जोखिम भरे प्रयोगात्मक तरीके इजाद करती हुई अपने यहां भवन निर्माण में कार्यरत मजदूरों से संसर्ग सुख प्राप्त करने का मन बना बैठी। पूर्वनिर्धारित योजना के तहत सारे कामगरों संग यौनक्षुधा शांत करने हेतु हमारे घर में कामुकता का सैलाब लाने की सारी व्यवस्था हो गयी थी। भगवान नें अपनी लीला दिखाई और हरिया, करीम और रामलाल को घर से रुखसत करके मुझे स्वतंत्र, स्वच्छंद कर दिया था कि मैं अपनी कुत्सित वासना के समुंदर में डूब जाऊं। यही हुआ भी। यथा समय सारे कामगर, जिनके बारे में आश्वस्त थी कि सभी कामगर कामदेव के पुजारी हैं, पुरुष या तो एक नंबर के हरामी औरतखोर, या समलैंगिक संबंधों में रुचि रखने वाले और स्त्रियां, बेशरम मर्दखोर। सर्वप्रथम मैं नें रूप परिवर्तित कर उनके समकक्ष की स्त्री बनकर खुद को प्रस्तुत किया और उनकी झिझक समाप्त की और परिवर्तित रूप में ही अपने तन को सौंप दिया। रेजा, कांता, सोमरी और समलैंगिक मुंडू के समूह में शामिल हो कर तीन मिस्त्रियों और चार कामुक कुलियों के समूह से लुटाती रही अपने जिस्म को। चूंकि मैं खुद को उनके मनमुताबिक लुटा चुकी थी, अतः मेरे असली रूप को देखकर उन्हें क्षणिक शर्मिंदगी का अहसास अवश्य हुआ किंतु इस गंदे कृत्य में मेरी पूर्ण सहभागिता को देखकर, उनकी समझ में आ गया कि मैं किस तरह की स्त्री हूं। अब कोई शरम झिझक नहीं थी हमारे बीच।

भोजन के उपरांत सुपरवाइजर मुंडू, अपने समलैंगिक होने की कहानी से हमें अवगत कराया। फिर इन कामगरों के समूह के निर्माण के बारे में बताने लगा। सर्वप्रथम उसनें बताया कि किस तरह उसनें मंगरू को अपने आकर्षण में बांधकर समूह में शामिल किया। सलीम, रफीक तो पहले से ही ठीकेदार के मिस्त्री थे। ठीकेदार दास बाबू की पसंद बन चुका मुंडू इन मिस्त्रियों को भी अपने आकर्षण के जाल में बांंध चुका था। मंगरू के साथी बोयो और हीरा भी मुंडू के चक्कर में खुद ब खुद बंधे चले आए इस समूह में।

मुंडू के द्वारा जिस ढंग से कहानी बताया जा रहा था वह इतना कामोत्तेजक था कि हम सभी खुद को रोक नहीं पाए और परिणाम स्वरूप एक और दौर कामक्रीड़ा का चला। इस बार सलीम और बोदरा मेरी देह का उपभोग करने लगे थे और बाकी लोग कांता, सोमरी और मुंडू पर टूटे थे। यह दौर भी बहुत मजेदार रहा। फिर कहानी आगे बढ़ती गयी और फिर वही हुआ। फिर तीसरा दौर। जिसे जो हाथ लगा, उसी पर हाथ साफ करने लगा। जहां मैं मंगरू, सलीम और रफीक के हाथों फिर से मसली गयी वहीं बाकी लोग कांता, सोमरी और मुंडू के साथ लिप्त हो गये अपने अपने शरीर की गरमी उतारने में। इस तीसरे दौर के समाप्त होते होते हम स्त्रियों और मुंडू का कचूमर निकल चुका था। समय भी काफी बीत चुका था। संध्या के छ: बज रहे थे। अब एकाध घंटे बाद कभी भी हरिया, करीम और रामलाल आ धमकने वाले थे। हम सब अब अपने अपने वस्त्र पहन कर पुनः शरीफों की तरह से ऐसे बैठे थे मानो वहां कुछ हुआ ही नहीं हो।

“आज का तो हो गया।” मैं बोली।

“हां और क्या खूब हुआ।” रफीक बोला।

“अब तो समय है नहीं हमारे पास। जब तक हमारे घर के बाकी लोग नहीं आ जाते तबतक बाकी कहानी क्यों न सुन लें?” मैं बोली।

“हां हां क्यों नहीं।” सलीम बोला।

“तो अब कौन बताएगा आगे?”

“और कौन? यही हीरा और कौन?” मुंडू बोला।

“तो हीरा, चल बता। हां कहां थे हम?” मैं बोल उठी।

“यही, कि हीरा सोमरी को कैसे फंसाया।” मुंडू बोला।

अब आगे की कहानी हीरा की जुबानी सुन रहे थे हम।

“यह एक साल पहले की बात है। हम जहां काम कर रहे थे, उसके पास में ही सोमरी का घर था। इसका आदमी दुबला पतला, रिक्शा चलाने वाला है। इसके घर के पास ही एक छोटा सा मिट्टी जोड़ाई वाला, बिना छत का, ईंट के दीवार से नहाने का घर बना था। हम उसी के पीछे पेशाब करने जाते थे। एक दिन दोपहर खाना खाने के बाद हम पेशाब करने इसके नहाने का घर के पीछे गये। पेशाब करते समय हमें इसके नहाने के घर के अंदर से कुछ आवाज सुनाई पड़ा। हम कान लगा कर सुनने लगे।

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11-28-2020, 02:40 PM,
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“आह्ह, आह, आह आह।” यह कोई औरत की आवाज थी। क्या चक्कर है? दीवार ज्यादा ऊंचा था नहीं। हम पास से एक बड़ा पत्थर उठा लाए और उस पर खड़ा होकर दीवार के ऊपर से अंदर झांकने लगे। देखकर एक बार तो हम चकरा गये। सोमरी अपना साड़ी उठा कर बैठी हुई थी। इसकी बुर एकदम साफ साफ दिख रही थी। बुर के ऊपर काला काला झांट और दोनों मोटी मोटी जांघों के बीच काला चिकना बुर चमक रहा था। लेकिन यह कर क्या रही थी? अब समझ में आया, इसके बुर में बैंगन था, जिसको यह हाथ से पकड़ कर बुर में अंदर बाहर कर रही थी। इसकी बड़ी बड़ी चूचियां ब्लाऊज के बाहर झांक रही थीं। इसका बदन हिल रहा था, साथ ही साथ बिना ब्रेजियर की चूचियां भी थल थल हिल रही थीं। इसकी आंख बंद थीं। चेहरा लाल हो गया था। इसके मुंह से ,”आह, उह, आह, उह” निकल रहा था। अरे ये तो बैंगन से चुदवाए जा रही थी। लेकिन ऐसा भी क्या? आदमी तो था इसका? फिर ऐसा क्यों? ओह, अब समझ में आया, जरूर इसका मरियल मरद इसको ठीक से ठोंक नहीं पाता होगा। इतनी भरी पूरी गदराए बदन वाली औरत भी करे तो क्या करे। पेट की भूख तो मिटता होगा, लेकिन बुर की भूख? इस मस्त कमीनी मक्खन जैसी बुर की भूख का क्या करे। इसे तो लौड़ा चाहिए, हम मरदों का दमदार ल़ौड़ा। अब मेरा लौड़ा भी बमकने लगा। हम पैंट के ऊपर से ही लंड पकड़ कर दबाने लगे। बरदाश्त ही नहीं हो रहा था। इसके नहाने के घर के दरवाजे पर सिर्फ एक कपड़ा का पर्दा लगा हुआ था। इस समय किसी के आने का डर था नहीं, शायद इसी लिए अपने बुर की खुजली से परेशान यहीं पर शुरू हो गयी थी। इसको क्या पता कि हमारे जैसे बुर के रसिया इसे इस हालत में देख लेंगे। हमसे और बर्दाश्त नहीं हुआ। वहां से हटकर सीधे दरवाजे पर पहुंच गये। इधर उधर देखा, कोई नहीं दिखा। मतलब मैदान साफ था। इस दोपहर में और कौन आता? चुपचाप पर्दा हटाकर अंदर चले आए। सोमरी को पता ही नहीं चला। उसी तरह बैंगन से बुर चुदवाने में लगी हुई थी। हम अपने पैंट उतारकर कमर से नीचे नंगे हो गये। मेरा लौड़ा अब आजाद हो गया था। अब बस बहुत हुआ, अब और नहीं, हमनें आगे बढ़कर सोमरी को दबोच लिया।

“कककक कौन?” सोमरी घबरा गयी, भूत के समान प्रकट हुए थे हम तो उसके सामने।

“हम हैं” सोमरी वैसे तो रोज ही हमें वहां काम करते हुए देखती थी। पहचान गयी।

“छोड़ो हमको।” छटपटाते हुए सोमरी बोली।

“छोड़ने के लिए नहींं पकड़ा है।”

“छोड़ो नहीं तो चिल्लाएंगे।” उसके इतना कहते ही हमनें उसका मुंह दबा दिया। वह वहीं पर बैठे बैठे लुढ़क गयी और हम उस पर चढ़ चुके थे। उसकी चूत में अभी भी बैंगन फंसा हुआ था।

“ई का है, बैंगन? हमारे रहते हुए बैंगन?” हम उसे अपने हाथों से कस के दबाए हुए थे। वह हिल भी नहीं पा रही थी। इसकी साड़ी तो कमर तक उठी हुई थी ही, हम इसके दोनों पैरों के बीच घुस चुके थे। थोड़ा बहुत पैर हिला पा रही थी और बस इधर उधर सिर पटक रही थी। हमसे छूटने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर ऐसे ही छटपटाती रही, फिर समझ गयी कि हमसे पार पाना मुश्किल है, सो इसका छटपटाना रुक गया और आंख फाड़ कर हमें देखे जा रही थी। हम इसकी चूत के पास हाथ डालकर बैंगन निकाल लिये और बोले, “इतनी मस्त बुर में ऐसा सड़ियल बैंगन? ये देख, इस सड़ियल बैंगन से कई गुना मस्त लौड़ा।” हमने इसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया। इसने घबरा कर अपना हाथ हटाने के लिए जोर लगाया लेकिन ऐसा कर नहीं पायी, हम इसके हाथ को पकड़ रखे थे। शायद मेरे लंड के साईज से डर गयी थी। डर के मारे इसकी आंखें और बड़ी बड़ी हो गयीं थीं।

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11-28-2020, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“कैसा है मेरा लौड़ा?”

“उं उ़ उं उंग उंग।” यह बंद मुंह से बोलने की कोशिश कर रही थी। सिर हिला कर न कहना चाह रही थी शायद। हम जानते थे कि ऐसे यह मानेगी नहीं। डर जो था मेरे लंबे मोटे लंड का। वैसे हमें पता था कि इसे लंड तो चाहिए ही था। धीरे धीरे इसका छटपटाना कम हुआ, शायद हमसे छूटने की कोशिश करते करते थक गयी थी। एक तरह से इसनें हार मान ली थी। यह ढीली पड़ गयी थी। इसकी हालत देखकर हमें थोड़ा तरस आ गया। हम सोचे कि इसके मुंह से हाथ हटा ल़ेंं। हमनें इसके मुंह से हाथ हटाने से पहले पूछा, “अब चिल्लाएगी तो नहीं?” सिर हिला कर इसने बताया “नहीं”। हमने इसके मुंह से हाथ हटाया और यह लंबी लंबी सांस लेने लगी। इसके रसीले बदन से चिपके हमें बड़ा मजा आ रहा था।

“छोड़ो हमको।” यह बोली।

“नहीं। ऐसे नहीं। बिना चोदे तो बिल्कुल नहीं।” हम बोले।

“हम बरबाद हो जाएंगे।” यह रोने लगी थी।

“कैसे बरबाद हो जाएगी?”

“पराये मरद हो तुम।”

“अब ये अपना पराया क्या?”

“अपना मरद अपना होता है।”

“और लंड?”

“यह भी।”

“मगर लंड तो लंड होता है।”

“मगर हम शादी किए हैं तो मरद अपना हुआ ना।”

“तो फिर मरद के रहते बैंगन क्यों?”

“वो तो, वो तो….” आगे उसे सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले।

“वो तो वो तो क्या? साफ साफ बोलो कि मरद की चुदाई से मन नहीं भरता।”

“तो तुझे इससे क्या?’

“हमें दुख हुआ, तुझे बैंगन से चुदवाते देख कर, तुझे तो लंड चाहिए ना, अच्छा दमदार लंड, ई बैगन वैगन अच्छा लगता है का?” हम फुसला रहे थे।

“हम कुछ भी करें, तुम्हें इससे क्या?”

“तेरी हालत से तरस खा कर बोल रहे हैं पगली।”

“हम ऐसे ही ठीक हैं।”

“नहीं, तुम ठीक नहीं हो।”

“तो तुम्हें इससे क्या।”

“बैंगन से चुदोगी तो हमें भला कैसा लगेगा? तुम औरत लोग हम मरदों के रहते हुए बैंगन से चुदोगी तो हमारे लंड का क्या होगा?” हम उसे धीरे धीरे बहला फुसला रहे थे। हमारा हाथ उसकी चूचियों तक पहुंच चुका था और धीरे धीरे उसकी चूचियों को ब्लाऊज के ऊपर से ही सहला रहे थे हम।

“यह क्या कर रहे हो?” हमारे हाथ को पकड़ कर बोली। दिखा रही थी कि हमें रोकना चाहती है लेकिन वास्तव में रोकने की इच्छा नहीं थी शायद।

“प्यार कर रहे हैं पगली।” हम सहलाते रहे इसकी किलो किलो भर चूचियों को। अब हम इसके गोल गोल गालों को चूमने लगे। यह सिर इधर उधर कर रही थी लेकिन अब मना नहीं कर रही थी।

“नहीं। यह ठीक नहीं है।” बड़ी कमजोर आवाज में बोली।

“यही ठीक है। तू हमारे रहते बैंगन से चुदवाओ, यह ठीक नहीं है।” हम इसे चूमते हुए बोले। धीरे धीरे इसका मना करना बंद हो गया।

“अब?” हमनें सवाल किया।

“अब क्या?”

“चोदें?”

“नहीं।”

“काहे?”

“बहुत बड़ा है तेरा।”

“क्या बड़ा है मेरा?” हम समझ गये अब यह रास्ते में आ रही है।

“यही।”

“क्या यही?”

“लंड।” कहकर शरमा कर हमारे सीने में मुंह छिपाने लगी।

“अय हय, ऐसे बोलोगी तो हम मर ही जाएंगे।”

“धत।”

“तो? अब चोदें ना?”

“नहीं, दर्द होगा।”

“थोड़ा होगा, लेकिन मजा आएगा।”

“मेरा फट जाएगा।”

“क्या फट जाएगा?”

“बुर,” कहकर फिर शरमा गयी।

“ओहो मेरी जान, नहीं फटेगी रे, हां थोड़ा फैल जाएगी।”

“फिर भी….” इसकी सांस बहुत जोर से चल रही थी। हम समझ गये थे कि यह गरम हो गयी है।

“अब कोई फिर विर नहीं, अब और कुछ बोलो नहीं।” अब हम बात करने के मूड में नहीं थे। मेरा लंड ठीक इसकी चूत के ऊपर टिका हुआ था। तवा गरम था। रोटी सेंकने का समय आ गया था। हम धीरे धीरे उसकी चूत पर दबाव देने लगा। इसकी चूत बैंगन खा खा कर पहले से पनियायी हुई थी। मेरा लौड़ा इसकी चूत का मुंह फैला कर घुस रहा था।

“आह्ह्ह्ह, नहीं।” दर्द हो रहा था शायद।

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11-28-2020, 02:40 PM,
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“हां्आं्आं्आं्आं।” हम उसकी बड़ी बड़ी गांड़ के नीचे हाथ डालकर घुसाते चले गये और मेरा लंड इसकी टाईट चूत को फैलाता हुआ घुसता चला गया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, छोड़ो, फट रहा है।” यह दर्द से परेशान थी।

“आह आह, बस बस थोड़ा और, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह” कहते हुए अब हम और जोर लगाने लगे। इसकी चूचियों को अब दबाने लगे हम। चूमने लगे इसको। यह छटपटाती रही और मेरा लंड घुसता चला गया, पूरा लंड घुसता चला गया। जब पूरा घुस गया तो रुके हम।

“आह्ह्ह्ह मांआंआंआंआं, मर गयी्ई्ई्ई्ई्ई्ई।” यह दर्द से परेशान थी। हम रुक गये और जोर जोर से इसकी चूचियों को दबाने लगे। चूमने चाटने लगे। धीरे धीरे यह शांत हो गयी। इसका चेहरा बता रहा था कि अब इसे तकलीफ़ नहीं है। हमनें और देर करना ठीक नहीं समझा। लंड धीरे धीरे बाहर निकालने लगे। लंड का सुपाड़ा इसकी चूत में ही रहने दिया।

“आआआआआआआ,” यह आनंद से आंखें बंद किए हुए थी। हम फिर घुसाने लगे लंड। इस समय इसे कोई फर्क नहीं पड़ा। बड़े मजे से लंड लेने लगी। हमें समझ आ गया कि चिड़िया फंस गयी है। अब हम जीत गये थे। सोमरी को जीत गये थे। हम धीरे धीरे चोदते हुए स्पीड बढ़ाने लगे। सोमरी की हालत खराब। आग लग गयी थी इसके बदन में। हम चोदते हुए इसकी ब्लाऊज खोल बैठे। थल्ल से इसकी चूचियां बाहर। वाह, मजा आ गया। इतनी बड़ी बड़ी चूचियां पहले कभी नहीं देखा था। पहले दबाया, फिर चूसने लगा। बड़ा मजा आ रहा था। गचागच चोदने लगा।

“आह आह ओह ओह्ह्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्ई्ई्ई, ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ मांआंआंआंआं।” यह मस्ती मे भर के अपनी चूतड़ उछालने लगी और गपागप मेरा लंड खाने लगी। यह सब कुछ भूल गयी थी। लाज शरम, सब कुछ।

“आह चोदो, ओह चोदो, आह मां, चोदो चोदो चोदो हे रामजी चोदो।” बोलने लगी।

“हां हां हां हां, मगर हम राम नहीं, हीरा हैं, हीरा। हीरा का मोटा खीरा, ले बुरचोदी, लौड़ा ले हमारा, तेरी चूत को चीरा।” हम बोलते हुए गच्च गच्च चोदने लगे। “अब आ रहा है मजा?”

“हां्आं्आं्आं्आं हां्आं्आं्आं्आं।”

“दर्द हो रहा है?”

“ना्आ्आ्आ्आ ना्आ्आ्आ्आ, ना्आ्आ्आ्आ।”

“फटा?”

“ना्आ्आ्आ्आ, ना्आ्आ्आ्आ, ना्आ्आ्आ्आ।” यही सब आलतू फालतू बात बोलते रगड़ रगड़ के चोदते रहे। बीस मिनट में इसे तीन बार झाड़ दिया। फिर हम भी झड़ गये। यह तो इतनी खुश हो गयी कि छोड़ ही नहीं रही थी।

“जिंदगी में पहली बार ऐसा मजा मिला।”

“हमको भी।”

“फिर चोदोगे?” हमसे लिपट कर बोली।

“हां रे हां।”

“कब?” बड़ी बेकरार हो रही थी।

.. “रोज।”

“सच्च्च्चीईईईई?”

“हां बुरचोदी सच्च्च्चीईईईई।”

“लेकिन यहाँ का काम खतम होगा तो?”

“तो क्या, तू भी हमारे साथ काम कर, फिर जहां हमारा काम होगा, वहीं चोदाचोदी चलेगा।” हम इसे बांहों में भर कर बोले। इसके बाद हमने मुंडू से बात किया। मुंडू राजी हुआ और तब से सोमरी हमारे साथ काम कर रही है। हमारे साथ काम करने का फायदा इसे यह हुआ कि हम सबका लंड इसे मिलने लगा। यह खुश, हम सब खुश।”

“बहुत माहिर चुदक्कड़ है रे तू तो। औरत फंसाने में उस्ताद।” मैं बोली।

“इसमेंं उस्तादी क्या? इसको मस्त लंड वाला चुदक्कड़ मर्द चाहिए था, हम मिल गये इसे।”

“और ई कांता?”

सलीम बताने लगा, “कांता तो पहले से एक नंबर की लंडखोर लौंडिया है। यह बांग्लादेश से यहां आई थी काम करने। इसको मुर्शिदाबाद वाले ग्रुप में काम करते हुए रफीक देखा था। रफीक भी पहले उसी ग्रुप में था। जब यह हमारे ग्रुप में आया तो इसनें हमको इसके बारे में बताया। जब हम इसको देखे तो देखते ही समझ गये कि यह एक नंबर की लंडखोर है। हमें पसंद आ गयी। मुंडू से बात किया और बात बन गयी। यह भी हमारे ग्रुप में आ गयी। ऐसी लंडखोर हमने पहले कभी नहीं देखा। इसको लंड से मतलब है। छोटा लड़का से लेके बूढ़ा तक, जो मिल जाए, सब चलता है इसको। छोटा लंड, पतला लंड, मोटा लंड, लंबा लंड, सब चलता है इसको।”

“वाह, तो यह है तुमलोगों का ग्रुप। भगवान भी क्या सोचता होगा? कैसे कैसे लोग मैंने बनाए और लोग क्या से क्या बन गये।” मैं ऐसे ही बोली।

“क्या मतलब?” सलीम बोला।

“कुछ मतलब नहीं। ऐसे ही बोली। अरे जो होता है उसी की मरजी से तो होता है। ऐश करो, मस्त रहो, बिंदास जिय़, खुश रहो।” मैं बोल उठी।

“यह बोली साली चोदनी, और क्या खूब बोली साली बुरचोदी। भगवान सबको ऐसी समझदार मालकिन दे।” बोदरा बोला।

“मुझको मालकिन बोला हरामी मादरचोद।” मैं गुर्राई।

“माफी चोदनी माफी।” कान पकड़कर बोदरा बोला और सभी हंस पड़े।

इस समय सात बज रहा था और तभी गाड़ी आने की आवाज सुनाई पड़ी। हरिया एवं बाकी दो नमूने आ चुके थे।

आगे का भाग अगली कड़ी में। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
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11-28-2020, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कुछ कड़ियों में आपलोगों नें पढ़ा कि अपने नये मकान निर्माण कार्य में कार्यरत कामांध मजदूरों के समूह में, अपनी संभ्रांत छवि को त्याग कर उन्हीं के समकक्ष एक निम्नवर्गीय स्त्री की तरह शामिल हो कर अपने तन की भूख मिटाने हेतु बिछती चली गयी। उनके मनोनुकूल ढल कर, उनकी इच्छानुसार, प्रथमतय: दिखावे का बेबस विरोध और तत्पश्चात स्वयंमेव स्वेच्छा से उन मजदूरों की घृणित, कुत्सित कामेच्छा का शिकार बन कर पिसती, नुचती मगन मन आनंदविभोर, उनकी हरेक चेष्टाओं और कामक्रीड़ाओं में सुख प्राप्त करती रही। जोखिम भरा किंतु रोमांचक, नया अनुभव। अपनी निकृष्ट अवस्था का जरा भी मलाल नहीं, न ही कोई पश्चाताप या क्षोभ। बेशरम तो हूं ही मैं।

उस रविवार, पूरा दिन उनके साथ घटिया से घटिया हरकतों में शामिल हो, पूरी छिनाल बनी रही। बड़ा मजा आया। उन मजदूरों के इस समूह के सृजन से लेकर समूह के निर्माण के बारे में जानकर अच्छा लगा। उनके बिंदास सोच, तालमेल और आपसी व्यवहार से मैं प्रभावित हुई।

इस दिन के बाद तो सारे कामगरों को मानो मेरे तन से खेलने का लाईसेंस मिल गया। मैं कमीनी कम थोड़ी न हूं। उन्हें कृतार्थ करने में जरा भी संकोच नहीं करती थी। मेरी मनोवांछित मुराद भी तो पूरी हो रही थी। अपने तन की भूख ऐसे भी मिटाने की नौबत आएगी, इस बात की कल्पना भी नहीं की थी मैंने। खैर, मैं संतुष्ट थी। इस रविवार के करीब एक हफ्ते बाद की घटना है।

उस दिन सोमवार था। शाम को ऑफिस से घर लौटी तो गेट से ठीकेदार, आर्किटेक्ट हर्षवर्धन दास साहब निकल रहे थे। मैं उनका अभिवादन करते हुए पूछी,

“और दास बाबू, सब ठीक चल रहा है न?”

“हां मैडम, और सब तो ठीक चल रहा है, लेकिन मुझे लग रहा है आप मुझसे नाराज हैं।” उनके चेहरे पर मायूसी छाई हुई थी।

“क्यों, आपको ऐसा क्यों लग रहा है?” मैं थमक कर खड़ी हो गयी।

“अब मैं क्या बताऊं, बाकी आप खुद समझदार हैं।”

“मैं कुछ समझी नहीं।” मैं बोली।

“अब इतनी भी भोली न बनिए।”

“सचमुच मैं समझी नहीं आपकी बात का मतलब।”

“कैसे बोलूं?” वे हिचकिचा रहे थे।

“खुल के बोलिए ना।” मेरा दिल धड़क रहा था। मैंने अपनी समझ से दास बाबू के साथ न तो कोई बदसलूकी की थी, न ही बदजुबानी। व्यवहार भी सामान्य था। फिर? उनकी नजरें ऊपर से नीचे मुझ पर दौड़ रही थीं। हसरत भरी नजरें।और सब कुछ धीरे धीरे स्पष्ट होता चला गया। मैंने भवन निर्माण स्थल की ओर दृष्टि फेरी, तो पाया कि सलीम और बोदरा हमारी ओर ही देख रहे थे। उधर कांता भी कुटिलता से मुस्कुरा रही थी। सब समझ गयी मैं, फिर भी अनजान बनी पूछ बैठी, “देखिए दास बाबू, अगर मुझसे अनजाने में कोई गलती हुई है तो मैं माफी चाहती हूं।”

“अनजाने में नहीं, जान बूझ कर।” उनकी नजरें अब मेरे उन्नत उरोजों पर टिक गयी थीं। मेरे तन में वही चिरपरिचित सनसनाहट तारी होने लगी।

“क्या?”

“आपने सबको बांट दिया और मुझे भूल गयीं। हमसे कोई गलती हो गयी है क्या?”

“क्या बांटी मैं?”

“सब बोल रहे हैं, खिलाई हैं आप उनको।”

“क्या खिलाई हूं?” अब सब कुछ स्पष्ट हो गया। इन कमीनों नें दास बाबू को भी बता दिया। फिर भी बनती रही।

“अब वो भी बता दूं?”

“हां।” देखती हूं क्या बोलता है?

“खुल के बोलूं? अगर गलत हूं तो सॉरी।”

“आप बोलिए तो।”

“सब लोगों को आपनी जवानी का प्रसाद खिलाया और हमें नहीं। यह तो सरासर अन्याय है। है ना?” अब उनके होंठों पर कामुकता नृत्य कर रही थी।

“हाय राआआआआम।” मैं आंखें बड़ी बड़ी कर शर्मिंदा होने का ढोंग करने लगी।

“तो यह सच है?” वे खुश हुए कि उनका कथन सत्य था।

“त त त त तो इन लोगों नें बता दिया आपको?” मैं नजरें झुका कर बोली।

“हां, तभी तो बोल रहा हूं। मुझसे ऐसी क्या गलती हुई कि मुझे भूल गयीं आप?” मेरी हालत देख कर उनकी आंखें चमक उठीं। फंसी यह चिड़िया जाल में।

“अ अ अ असल में, असल में, मममममुझे नननननहींईंईंईं पता था क क क कि आप इस तततततरह कके हैं।” मैं हकलाने लगी।

“अब पता चल गया ना?”

“हूं” मैं जमीन पर नजरें गड़ाए बोली।

“तो?”

“ततयतो कककक्या?”

“क्या इरादा है? खाने की उम्मीद करूं?”

“अब मैं क्या बोलूं? पता तो चल ही गया है आपको। मना करने की अवस्था में हूं क्या?” मेरी आवाज में लाचारी थी। छि:, क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में? इतनी घटिया औरत हूं मैं? इतनी गिरी हुई, कि इन मजदूरों के समक्ष बिछ जाती हूं अपनी वासना की पूर्ति के लिए।

“ऐसी लाचारी भरी आवाज में मत बोलिए।”

“तो कैसे बोलूं?”

“खुले दिल से बोलिए।”

“बोली तो।”

“ऐसे नहीं।”

“फिर कैसे?”

“खुल के, खुशी खुशी।” वे कुत्सित मुस्कान के साथ बोले।
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11-28-2020, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
अब मुझे झल्लाहट होने लगी। ड्रामा करना मुश्किल होने लगा। मैं बेशरम छिनाल तो थी ही, बोलने पर आऊं तो रंडियां भी मुंह छुपाने लगें। फिर भी बमुश्किल नियंत्रण के साथ बोली, “हां बाबा हां। जब मन हो खा लीजिएगा। बस? या और तरीके से बोल़ू।”

“बस बस, इतना ही सुनना था। तो हमें प्रसाद मिलना पक्का ना?” पैंट के ऊपर से ही अपने लिंग को सहलाते हुए बोले।

“ओ बाबा हां तो बोल चुकी।” कहती हुई तेज कदमों से घर में दाखिल हुई। सभी कामगरों की नजरें मेरा पीछा करती रहीं। मन ही मन सभी हंस ही रहे होंगे हरामी। दिल मेरा धाड़ धाड़ धड़क रहा था। सबके सब एक ही थैले के चट्टे बट्टे हैं। हर्षवर्धन दास जी पचास पार के एक मोटे तोंदियल, लेकिन करीब पांच फुट ग्यारह इंच ऊंचे कद्दावर व्यक्ति थे। सामने ललाट से लेकर बीच के सारे बाल उड़ चुके थे। सिर्फ किनारे किनारे के बाल रह गये थे। वे भी आधे पके आधे सफेद। पतली, करीने से तराशी गयी मूछें थीं उनकी।सांवले रंग का आकर्षक व्यक्तित्व था उनका। उनको देखकर कोई भी नहीं सोच सकता था कि वे इस तरह के व्यक्ति होंगे। लेकिन आज तक मुझ जितने मर्दों से पाला पड़ा था उनमें से कई ऐसे व्यक्तियों को मैं जानती थी जिनकी शरीफ सूरत के पीछे हवस का दानव सर छुपाए पड़े थे। मौका मिला नहीं कि शरीफ चेहरों के नकाब उतार कर दानव प्रकट होने में तनिक भी देर नहीं करता था। दास बाबू भी उन्हीं में से थे। वैसे तो सलीम और उसके सहयोगी कामगरों के मुख से सुन चुकी थी कि रूपा और सुखमनी नामक रेजाएं उनकी पसंदीदा रेजाएं थीं जो उनकी रखैल की तरह थीं। लेकिन मुझपर भी उनकी कुदृष्टि पड़ेगी, यह मैं नहीं सोच पाई थी। औरतों के रसिया थे यह तो पता था लेकिन मुझ पर उनकी नीयत डोलेगी, यह नहीं सोचा था। शायद मन के किसी कोने में थी यह बात, जो इन हरामियों के द्वारा उस दिन वाली घटना और उसके बाद लगातार चलते हमारे बीच इन वासना के खेल का पता चलने से प्रकट हो गया। अब मैं सोच रही थी कि न जाने कब का कार्यक्रम था उनका।

अधिक उधेड़बुन में नहीं रहना पड़ा मुझे। मैं अभी फ्रेश हो कर चाय पी ही रही थी कि दास बाबू का कॉल आ गया।

“हल्लो जी।” दड़क उठा मेरा दिल।

“जी कहिए।” लरजती आवाज में बोली मैं।

“क्या हो रहा है?”

“कुछ नहीं।”

“फिर आज मिलते हैं।”

“कककककहां?” मैं इतनी जल्दी यह आशा नहीं कर रही थी।

“हमारे घर में।”

“कहां है आपका घर?” मैं आशंकित थी।

“लोआडीह।”

“लोआडीह में कहां?”

“ओके ओके मैं गाड़ी भेज देता हूं।”

“हहहहां यययह ठीक रहेगा। लेकिन मैं ज्यादा देर नहीं रुकुंगी।”

“आप आईए तो। नहीं रोकेंगे ज्यादा देर।” नहीं रोकेंगे मतलब? एक वचन से बहुवचन कैसे हुआ? और लोग भी हैं क्या? मैं सशंकित हुई। मगर पूछी नहीं। दस मिनट में ही एक कार आ लगी हमारे दरवाजे पर। कॉल बेल बजा। मैं हरिया को बोली,

“सुनिए”

“बोलो।” किचन से निकलते हरिया बोला।

“मैं जरा लोआडीह से होकर आ रही हूं।”

“लेकिन अभी?”

“हां, जरूरी काम है।”

“करीम को भेज दूं?”

“नहीं, उन्होंने कार भेजा है।”

“किसने?”

“क्लाईंट नें।” बता नहीं सकती थी कि कौन सा क्लाईंट। उधर दास बाबू मुझपर डुबकी लगाने को तैयार बैठे होंगे। क्या बताती, पसरने जा रही हूं? ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई कॉलगर्ल हूं, जिसे ग्राहक नें बुलाया है। ड्राईविंग सीट पर एक मुच्छड़, दढ़ियल, मोटा आदमी बैठा हुआ था। मुझे देख कर खींसें निपोरने लगा।

“आईए मैडम।” वह कार के सामने वाला दरवाजा खोल कर बोला। मैं चुपचाप कार में बैठ गयी। कार चल पड़ी। लोआडीह चौक से कुछ आगे जाकर दाहिनी ओर एक छोटे से मॉल के बगल के खुले गेट में कार प्रविष्ट हुई। मैंने देखा कि वहां चार पांच ऊंचे ऊंचे फ्लैट थे। कार सीधे जाकर तीसरे फ्लैट के सामने रुकी। ड्राईवर नें कार का दरवाजा खोलते हुए कहा, “आईए मैडम।”

मैंने देखा यह एक आठ मंजिला फ्लैट था। कार पार्क करके ड्राईवर मेरे पास आया। वह करीब पचास साल का, खलीता पैजामा पहना हुआ काफी लंबा, मोटा तगड़ा, गुंडा टाईप व्यक्ति था। मैं तो उसके सामने बिल्कुल बच्ची लग रही थी। खैर मुझे उससे क्या लेना देना था। ड्राईवर ही तो था।

“चलिए।” उसने कहा। एक गंदी सी रहस्यमयी मुस्कान थी उसके होंठों पर। अब ड्राईवर था उसका तो इन सब बातों का राजदार तो अवश्य होगा। ऐसी बातें इन लोगों से छिपती कहां हैं। किसी दलाल की तरह माल सप्लाई करता होगा। मैं यंत्रचालित गुड़िया की तरह उसके पीछे पीछे चली। फर्स्ट फ्लोर पर ही सीढ़ियों की बांयी ओर सामने दो दरवाजे थे। उनमें से दाहिनी ओर के दरवाजे का डोर बेल बजाया उसने। तत्काल ही दरवाजा खुला और सामने कुत्सित मुस्कान लिए दास बाबू खड़े थे। एक काली टी शर्ट और पैजामे में थे वे।
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11-28-2020, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“वेलकम मैडम।” दरवाजे से हटते हुए उसने कहा। मैं अंदर प्रविष्ट हुई। मेरे अंदर आते ही दास बाबू नें दरवाजा बंद कर दिया।

“आपकी फैमिली?” पूछी मैं। मैं पशोपेश में थी।

“नहीं है?”

“मतलब?”

“मायके गयी है बीवी। तभी तो जैसे ही आपके बारे में पता चला, बुला लिया।” वे बोले। साले, मानो मौका ही खोज रहे थे। अब आगे क्या? मैं सोचने लगी। वैसे आज मुझे मूड नहीं था, लेकिन मजबूरी थी। दास बाबू को मना करना ठीक नहीं लग रहा था। हमारे भवन निर्माण का कार्य उन्हीं की देख रेख में चल रहा था। जब यह राज खुल ही गया था कि मैं उनके मजदूरों संग रंगरेलियां मना रही हूं तो किस मुंह से मना करती। वासना की भूख नें मुझे कितनी सस्ती बना दिया, निकृष्ट, किंतु भगवान का दिया रूप लावण्य तथा आकर्षक देह, जिसमें वासना की अदम्य भूख नख शिख, छलछला कर भर दिया था ऊपरवाले नें। औरतों के रसिया मर्दों की दृष्टि में ऊपरवाले का नायाब तोहफा। तभी तो अब दास बाबू मुझे नोचने को ललायित हो उठे थे। जबतक उन्हें मेरे बारे में पता नहीं था, तबतक तो बड़े शरीफ बने फिर रहे थे। कमीने कहीं के।

खैर, अब तो चिड़िया खेत चुग गयी थी। अब जो होना है हो। मेरी नजरें फ्लैट का मुआयना करने लगीं। यह बड़ा सा, करीब चौदह बाई सोलह का बड़ा सा बैठक हॉल काफी सजा हुआ था। लंबाई उत्तर दक्षिण थी। सामने और बांयी ओर लंबे लंबे गद्देदार सोफे थे जिनके सामने एक बड़ा सा चौकोर सेंटर टेबल था। यही बैठक हॉल आगे जा कर अंग्रेजी का एल बनाता हुआ पश्चिम की ओर बढ़ कर डाईनिंग हॉल बन गया था। बैठक के पूरब की दीवार पर टीवी पैनल था जिसके बीचोबीच 53″ का टी वी लगा हुआ था। यह तीन बेडरूम वाला फ्लैट था, जिसका करीब क्षेत्रफल करीब 1800 वर्ग फीट होगा। पश्चिम की ओर एक बाल्कोनी थी।

“तो मेरी जान।” न जाने कब दास बाबू मेरे पीछे आ खड़े हुए थे, मुझे बांहों में भर कर बोले।

“ये ये ये क्या कर रहे हैं?” मैं उनकी मजबूत बांहों में छटपटाती बोली।

“वही कर रहे हैं जिसके लिए तू यहां आई है।” आप से सीधे तू पर आ गया वह।

“ददददेखिए मैं ऐसी नहींं हूं।” उनकी बांहों से छूटने की असफल कोशिश करती हुई खोखली आवाज में बोली।

“तो फिर कैसी हो? हां हां बताओ कैसी हो? हमारी रेजाओं जैसी? या फिर कोई रंडी, कॉलगर्ल? जो एक फोन आने पर ग्राहक के पास दौड़ी चली जाती हैं? ऐसा ही हुआ ना? बताओ बताओ।” बिना कपड़े उतारे ही मुझे नंगी कर चुका था और मैं शरम से पानी पानी हो गयी। मेरी हालत उससे छिपी नहीं थी। वह एक हाथ से मेरी कमर पकड़ा था और दूसरे हाथ से मेरे स्तनों को सहला रहा था। मैं निरुत्तर थी उसके कथन से। मैं सलवार कमीज में थी। मेरी चुन्नी फर्श पर कब गिरी पता नहीं। वह समझ चुका था कि चिड़िया हाथ में आ चुकी थी। फड़फड़ा तो सकती है लेकिन भाग नहीं सकती है।

“मगर फिर भी…..”

“अब यह अगर मगर न ही करो तो अच्छा है।” अब वह मेरी गर्दन को चूमने लगा था। मेरे तन बदन में शोला भड़कने लगा। कसमसा उठी मैं। मेरे नितंबों के मध्य सख्त डंडे की चुभन अनुभव कर रही थी।

“न न न नहींईंईंईंईंई।” बड़ी कमजोर आवाज थी मेरी।

“नहीं की बच्ची, सारे मिस्त्रियों और कुलियों के लंड खा कर मुझी को नहीं नहीं बोल रही है साली लंडखोर।” अब उसकी आवाज में तल्खी मिस्रित कामुक भेड़िए की गुर्राहट थी।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह,” उसके हाथों मेरे उरोज बुरी तरह मसले जा रहे थे। अबतक जो सुस्ती, आलस्य मेरे तन में थी, अनमना सा भाव मन में था, शनैः शनैः तिरोहित हो रहा था। मन मस्तिष्क में कामुकता के पिशाच की तंद्रा टूट चुकी थी। वासना का जहरीला सर्प फन उठा चुका था। मैंने खुद को उस वासना के तूफान में बहने के लिए छोड़ दिया। मेरी आंखों में वासना के लाल डोरे उभर आए थे। सारे शरीर में चिंगारियां सुलगने लगीं थीं। मेरे चेहरे के भाव दासबाबू को और उत्साहित कर रहे थे।

“उफ, अब और नहीं।” दास बाबू नें मुझे उठा कर सामने काऊंटर बेसिन के पास ला खड़ा किया। काऊंटर बेसिन के सामने एक बड़ा सा दर्पण था, जिसपर हमारे अक्स परिलक्षित हो रहे थे। मेरे कंधे से ऊपर दास बाबू का बेताब चेहरा झांक रहा था। भूखे भेड़िए सी शक्ल हो गयी थी उनकी। आंखों की लालिमा बता रही थी कि उनकी उत्तेजना चरम पर थी। मैंने दर्पण में देखा, मेरे कमीज के ऊपरी बटन खुल चुके थे और मेरे स्तन अपनी पूरी शिद्दत से कसी हुई ब्रा से छलक पड़ने को बेताब थे।

“हाय रा्आ्आ्आ्आम।” मैं उनकी बांहों में बंधी अपनी अस्त व्यस्त हालत को देख पानी पानी हो उठी। विरोध बेमानी था। समपर्ण के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। वह अपनी मनमानी किये जा रहा था और मैं पिघलती जा रही थी। तभी उन्होंने मेरी कमीज रुपी व्यवधान को अवांछित वस्तु की मानिंद क्षण भर में उतार फेंका। अब मैं कमर से ऊपर सिर्फ ब्रा में थी। उस हालत में मेरी खूबसूरत देह की छटा देख वह और बेकरार हो उठा।
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11-28-2020, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“उफ, ये खूबसूरती। गजब। अब ये ब्रा क्यों? इसे भी हटा, देखूं तो, मेरे मजदूरों को क्या हाथ लगा है?” कहते हुए मेरे उन्नत उरोजों को ब्रा से मुक्त कर दिया। फटी की फटी रह गयीं उसकी आंखें। मुंह खुला का खुला रह गया।

“ओह, ये नजारा, ऐसी चूचियां, सुभान अल्लाह। ऐसे खूबसूरत बदन को उन घटिया कुत्तों नें चोदा? साली रंडी, हम मर गये थे क्या लंडखोर?” दास बाबू खुद पर खीझ रहे थे या मेरी चूचियों को दबोच कर खुन्नस निकाल रहे थे।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं्ई, आह्ह्ह्ह मांआंआंआंआं, ऐसी जबरदस्ती तो न करो आह, दर्द होता है।” मैं दर्द से बिलबिला उठी।

“जबर्दस्ती कर रहा हूं? मां की लौड़ी दर्द होता है? रंडी की औलाद?”

“हाय दैया, ये क्या बोल रहे हैं?”

“ठीक ही तो बोल रहा हूं। इस खूबसूरती को चखने का पहला हक मेरा था। साली जूठन चूत।”

“गाली तो न दीजिए।”

“कुत्ती कहीं की, सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज को? गाली न दूं तो क्या करूं? आरती उतारूं तेरी?” गालियां देता हुआ मुझे नंगी करता चला गया। एक एक करके मेरे तन से वस्त्र केले के छिलके की तरह अलग होते गये और अंततः मैं नंगी हो गयी। पूर्णतः नग्न। मादरजात नग्न। दर्पण में खुद की नग्न देह को इस तरह एक कामुक भेड़िए के पंजों में देखकर मैं सचमुच लज्जा से दोहरी हुई जा रही थी। दास बाबू तो स्तब्ध रह गये मेरी नग्न काया की छटा देख कर। उनकी आंखों की चमक साफ साफ बता रही थीं कि उन्हें एक नायाब हीरा हाथ लग गया है।

“परी है रे परी तू। ये हूर कहाँ लंगूरों के बीच जा फंसी।” अब वे मेरी चिकनी योनि सहलाते हुए बोल रहे थे। चुम्बनों की झड़ी लगा बैठा था वह मेरी गर्दन पर, मेरे गालों पर और मंत्रमुग्ध मेरा चेहरा घूमा, चेहरा ऊपर उठा, संकेत स्पष्ट था, मेरे होठों से चिपक गये उनके होंठ। विभोर हो उठी, गनगना उठी मैं। तड़प उठी थी मैं। पागल हो रही थी। मेरी कमीनी फकफकाती योनि से रस का श्राव आरंभ हो गया था और इस तरह के संभोग हेतु तैयार शारीरिक संकेतों से ऐसे औरतखोर मर्द भला कैसे अनभिज्ञ रह सकते हैं? वासना के भड़कते शोलों की तपिश में तपती, तड़पती, बेसाख्ता एक लंबी आह निकल पड़ी मेरे मुंह से। सब समझ गया था वह, कि अब समय आ चुका है कामक्रीड़ा के अगले चरण का। उनकी भी उत्तेजना का पारावार न था। आनन फानन अपने कपड़े उतारने लगा वह। देखते ही देखते हो गया मादरजात नंगा। जैसे जैसे उसके कपड़े उतरते गये, उसका मर्दाना शरीर नामुदार होता गया। सीना और पेट घने बालों से अटा पड़ा था। जो तोंद पूरे वस्त्रों में ढंका छिपा था, वह छलक कर बाहर आकर मुझे मुंह चिढ़ा रहा था। भीमकाय शरीर बेपर्दा हो चुका था मेरे सम्मुख। मोटी मोटी सशक्त बांहें, चोड़ा चकला सीना, मजबूत कंधे, मोटी मोटी जंघाएँ और और और बा्आ्आ्आ्आप रे्ए्ए्ए्ए्ए बा्आ्आ्आ्आप, तोंद के नीचे लटकता लिंग, नहीं नहींं, यह किसी सामान्य मानव का लिंग तो कत्तई नहीं था, या फिर मानव का था ही नहीं। पशु, वो भी गधे प्रजाति पशु के लिंग से भिन्न नहीं था। भय से मेरी घिग्घी बंध गयी।

“नहींईंईंईंईंईंईंईंई।”

“क्या नहीं?” दास बाबू समझ गये मेरे भय को।

“ये्ए्ए्ए्ए्ए्ए कककक्या्आ्आ्आ है?”

“क्या है? क्या मतलब? तुम्हीं बताओ क्या है?” चुटकी ले कर मजा ले रहा था।

“इतना्आ्आ्आ्आ बड़ा्आ्आ्आ्आ्?” मेरी आंखें फटी की फटी रह गयीं। बाप रे बाप, करीब चार इंच मोटा। लंबाई अवश्य नौ इंच के करीब होगी, लेकिन मोटाई? उफ्फ भगवान, कहां आ फंसी थी मैं? हलाल होना तय था।

“इतना बड़ा क्या?” वह मुस्कुरा रहा था मेरी हालत पर।

“ये।”

“ये क्या?”

“ल ल ल ल लं…..”

“हां हां बोलो बोलो।”

“लं लं लंड।” मैं मुंह छुपा कर बोली।

“वाह, बोली और क्या खूब बोली। हाय हाय मेरी छम्मकछल्लो, तेरे जैसी रांड भी ऐसे शरमाती है? वाह रे नौटंकीबाज लंडखोर औरत। ऐसा लंड नहीं देखी है कभी?”
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11-28-2020, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“नननननहींईंईंईं।” हकला कर बोली।

“झूठ।”

“नहीं, ससससच्च।”

“मंगरू और हीरा का लंड लेकर भी ऐसा बोल रही है।” वह मेरे करीब आता हुआ बोला।

“नहीं, करीब न आना। मंगरू और हीरा का भी इतना मोटा नहीं था।” मैं एक एक कदम पीछे हटती हुई बोली। मेरी नजरें उसके तन्नाए हुए लिंग पर ही जमी थींं।

“मोटा हुआ तो क्या हुआ।” वह आगे बढ़ता जा रहा था।

“फट जाएगी मेरी।”

“तुम्हारी क्या?”

“मेरी चचचचू…..”

“हां हां बोलो बोलो चचचचू…. क्या?” वह मजा लेता हुआ बोला।

“धत”

“अय हय, बोल बोल।”

“चचचचचूऊऊऊऊत।” मैं पीछे हटती गयी और वह आगे आता गया। मैं पीछे हटते हुए सेंटर टेबल से उलझी और धप्प से टेबल पर ही उलट गयी। “आह, पास मत आईए।”

“आऊंगा आऊंगा, और करीब, और करीब आऊंगा, तू हटने के चक्कर थी न? बचने के चक्कर में थी न? क्या हुआ? गिरी न? पता है क्यों गिरी? मेरे लिए गिरी। चुदने के लिए गिरी।” उसकी वासना से ओत प्रोत नजरें मेरे नग्न जिस्म से चिपकी हुई थीं। इससे पहले कि मैं संभलती, बाज की तरह झपटा मुझ पर और अपनी बांहों में जकड़ कर चुम्बनों की बरसात कर बैठा।

“नननननहींईंईंईं प्लीज।”

“ऐसे दिल तोड़ने वाली बातें न बोल। डर मत पगली, बड़ा मजा आएगा।”

“नहीं, आपका बहुत मोटा है।”

“तो क्या हुआ?”

“दर्द होगा मुझे।”

“क्यों?”

“फट जाएगी मेरी।”

“फटेगी नहीं, फैलेगी।”

“दर्द तो होगा ना।”

“मजा भी तो आएगा।”

“नहीं, डर लगता है।”

“चुप हरामजादी, एकदम चुप नौटंकीबाज। चल चोदने दे। बहुत ड्रामा किए जा रही है तब से।” घुड़की दे बैठा मुझे और सेंटर टेबल से उठाया और घसीटकर फिर काऊंटर बेसिन के दर्पण के सामने ले आया।

“नहीं प्लीज। आपका लंड गधे जैसा है।” मैं गिड़गिड़ा रही थी।

“तो गधा ही जैसा चोदूंगा। तुझे अपनी गधी बनाऊंगा।”

“नहींईंईंईंईंईंईंईंई।” मगर मेरी आर्तनाद कौन सुनता वहां। उसनें मुझे पीछे से पकड़ रखा था। उसका दानवी लिंग मेरी गुदा पर दस्तक दे रहा था। उसनें मुझे जबरदस्ती काऊंटर बेसिन के स्लैब पर झुका दिया। अब इस स्थिति में मेरी गुदा के साथ साथ मेरी योनि भी उसके लिंग के प्रवेश के लिए उपयुक्त स्थिति में थी। इसी अवसर का तो इंतजार था उसे। मेरी ना नुकुर और विरोध को अनसुना करते हुए अपने गधे सरीखे लिंग के सुपाड़े को मेरी योनिद्वार पर साध दिया। स्पर्श मात्र से ही कांप उठी मैं। “नहीं प्लीज नहीं, मर जाऊंगी।” किसी भी पल हो सकता था हमला। वह पल बहुत करीब था

“मर साली कुत्ती, ले मर मां की चूत।” कहते कहते मेरी कमर को दबोचे एक करारा धक्का मारा।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” मैं पीड़ा से चीखी।

“चिल्ला रंडी चिल्ला। खूब चिल्ला।” एक और धक्का मारा उसनें।

“ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह मांआंआंआंआं।” फट रही थी मेरी चूत। दर्द असहनीय था।

“चुप्प छिनाल चुप्प।” एक और धक्का, और हो गया काम तमाम। मेरी योनि को सीमा से बाहर फैलाता हुआ उसका विकराल लिंग पूरा का पूरा समा चुका था। जहां वह जीत की खुशी में मगन बेरहम दरिंदा बन मुझे दबोचे हुम्मच हुम्मच कर दे दनादन ठोंकने लगा, वहीं मैं असहनीय पीड़ा झेलती बेबसी की हालत में समर्पण को वाध्य, गपागप खाने लगी उसका असामान्य, आतंक का पर्याय लिंग। कुछेक मिनट उसी तरह पीड़ामय संभोग को झेलती झेलती कब अपनी पीड़ा भूल आनंद का अनुभव करने लगी पता ही नहीं चला। मेरी योनि पर्याप्त रूप में फैल कर उसके अविश्वसनीय वृहद लिंग हेतु सुगम मार्ग बन चुकी थी। सारी सुस्ती शरीर की, सारी अनिच्छा मन की, शनैः शनैः तिरोहित होती गयी और जैसे मेरे अंदर नवजीवन का संचार हो गया। तन मन तरंगित होने लगा। मेरे अंदर वासना की भूखी पिशाचिनी जागृत हो कर इस कामुक औरतखोर की कामक्रीड़ा में सक्रिय सहयोग को प्रोत्साहित करने लगी। खुद पर से मेरा नियंत्रण समाप्त होता जा रहा था और अंततः मैंने हां ना हां ना के इस झंझावत से मुक्त होने का निर्णय ले ही लिया। कुछ उनकी कामुक हरकतों का असर था और कुछ मेरे अंदर की सुषुप्त कामुक कामिनी की तंद्रा भंग होने का असर, मेरे तन पर से मेरे मन का नियंत्रण छूमंतर हो गया था। मैं खुल कर खेलने लगी। खुल कर मजा लेने लगी। खुल कर खाने लगी गपागप, उसके लिंग को अपनी योनि में। मेरी कमर खुद ब खुद चलने लगी, उछलने लगी।
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