Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-27-2020, 03:57 PM,
#51
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
में ने उन्हें चाय पी कर जाने के लिए कहा और उसी तरह खाली नाईटी पहन कर चाय देने आई और फिसलने का बहाना करके उसकी पैंट पर ठीक लंड के ऊपर चाय गिरा दिया।

“हाय राम ये क्या हुआ” कहते हुए झट से चाय गिरने की जगह पर भीगे कपड़े से रगड़ने लगी। “इससेे कपड़े पर चाय का दाग नहीं रहेगा” कहते हुए मैं ने महसूस किया कि उनका लंड खड़ा हो गया है। फिर क्या था, मैं ने पैंट के ऊपर से ही उनका लंड पकड़ लिया। शर्मा जी तो कई दिनों से मेरी ओर से सिग्नल मिलने का इंतजार ही कर रहे थे। झट से मुझे दबोच लिया और लगे दनादन चूमने।

“हाय रानी, कई दिनों से तुझे चोदने की केवल कल्पना करता था। आज मौका मिला है। तेरी चूचियां गज़ब की हैं रानी। जब तू चलती है तो तेरी गांड़ दिल में छुरियां चला देती हैं रानी।” वह बोल रहा था।

“तो अब अपने मन की कीजिए ना राजा। मैं तो भी तो कई दिनों से इसी पल का इंतज़ार कर रही थी।” मैं बोली। मेरी बात सुनकर तो वह पागल हो गया। फटाफट पहले मुझे नंगी किया और खुद भी नंगा हो गया। मेरे नंगे बदन को देख कर वह पलक झपकाना भी भूल गया। फिर अचानक मानों जैसे नींद से जाग उठा और मुझ पर टूट पड़ा। मेरी चूचियों को चूसने लगा, मेरे चूत में उंगली डाल कर अंदर-बाहर करने लगा और चूत रस से सनी उंगली को मेरी गांड़ में भोंक कर रसीला कर दिया। फिर मझे झुका कर पीछे से मेरी गांड़ में अपना सात इंच का लंड एक ही झटके में उतार दिया। मैं मदहोशी के आलम में आंखें बंद किए आह आह करने लगी। वह उंगली से मेरी चूत चोद रहा था और मेरी गांड़ में लंड डाल कर दनादन अंदर-बाहर धकमपेल किए जा रहा था। मुझे चोद कर बहुत खुश हुआ और मुझे भी खुश कर दिया। अब जब भी मौका मिलता है, या तो वह आ जाता है और चोद लेता है या उसका घर खाली होने पर मैं किसी बहाने से वहां जाकर चुदवा लेती हूं।

एक बार तो गजब ही हो गया। आपको याद है, कि तीन साल पहले मेरी चाची की मृत्यु हो गई थी, जिसके यहां मैं अपने पति के साथ गई हुई थी। जब हम लौट रहे थे तो चूंकि पिछले पांच दिनों से मैं अपनी चूत की प्यास नहीं बुझा पाई थी इसलिए मैं चुदने के लिए तड़प रही थी। लौटते समय हम अंबाला स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करने लगे। इंतजार करते समय बार बार मेरा हाथ मेरी चूत की तरफ अनायास ही चला जाता था और मैं हल्के से चूत सहला देती थी। चल रही थी तो दोनों जांघों को आपस में रगड़ रही थी। बेंच पर बैठी थी तो टांग पर टांग चढ़ा कर कसमसा रही थी। सावन के महीने में कांवड़ियों की भीड़ में एक लंबा चौड़ा साधू बाबा हमारे पास खड़ा बार बार मुझे देख रहा था और मेरी स्थिति को समझ लिया था। मैं ने सर उठा कर जैसे ही उसकी ओर देखा तो वह बेहद अश्लील ढंग से मुस्करा उठा। उसकी आंखों में मैं ने वासना की भूख को पढ़ लिया था। मैं भीतर ही भीतर रोमांचित हो उठी। जब मैं पति के साथ अंबाला से ट्रेन में चढ़ी तो पलट कर देखा कि वह साधू बाबा देख रहा था मैं किस बोगी में चढ़ रही हूं। हम सेकेंड एसी बोगी में थे। ट्रेन में चढ़ने से पहले मैं ने देखा था कि जेनरल बोगी और नन एसी रिजर्व कंपार्टमेंट में लोगों की खचाखच भीड़ थी। रात करीब बारह बजे हमारी ट्रेन चल पड़ी। मैं नीचे बर्थ पर थी और ऊपर बर्थ पर मेरे पति। वे लेटते ही खर्राटे भरने लगे। मुझे पता नहीं क्या हुआ कि अचानक मेरे शरीर में चींटियां सी रेंगने लगी। पिछले चार दिनों से मैं किसी से चुदी नहीं थी। मुझे चुदाई का कीड़ा काटने लगा। समझ नहीं पा रही थी कि क्या करुं। उसी समय वही दाढ़ी वाला साधू बाबा जो प्लेटफार्म पर मुझे घूर रहा था हमारे बर्थ के पास आया और मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। मैं चुदासी के आलम में बिना आगे पीछे सोचे उसे रुकने का इशारा किया और टायलेट में जा घुसी और फटाफट ब्रा और पैंटी उतार कर अपने पर्स में डाल कर बर्थ के सिरहाने रख उसके पीछे पीछे चल पड़ी। वह नन एसी रिजर्व बोगी की ओर चल पड़ा। बोगी के दरवाजे और बाथरूम के आस पास रात के एक बजे भी लोग खचाखच भरे हुए थे। सावन का महीना था और कांवड़ियों की काफी भीड़ थी। वहां सभी उम्र के मर्द एक दूसरे से सट कर कुछ खड़े थे और कुछ बैठे हुए थे। वह साधु उसी भीड़ में मेरा हाथ पकड़ कर खींच कर घुसा दिया और मुझसे सटकर खड़ा हो गया। वह साधु बाबा करीब पचपन साल का काला छः फुट लंबा मजबूत कद काठी का आदमी था। बोगी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरे दाएं बाएं कुछ जवान लड़के खड़े थे। मेरे पीछे भी अधेड़ उम्र के कुछ कांवड़िए गेरुए वस्त्र में मुझ से सट कर खड़े थे। मैं उन सबके बीच पिसती हुई वासना की आग में जल रही थी। कुछ ही पलों में मैं ने अपनी दाहिनी चूचि पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस किया। उसी तरह बांई चूची पर भी किसी के हाथ का दबाव महसूस करने लगी। मैं समझ गई कि मेरे दाएं बाएं खड़े लड़के मेरी चूचियों पर हाथ साफ कर रहे हैं। मैं यही तो चाहती थी
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11-27-2020, 03:57 PM,
#52
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चुपचाप खड़ी रही और उनकी हरकतों का मजा लेने लगी। फिर मैंने अपनी चूतड़ पर किसी कठोर वस्तु का दबाव महसूस किया। मुझे समझने में देर नहीं लगी कि यह और कुछ नहीं, किसी का लंड है। उसी समय मेरे सामने भी मेरी चूत के ऊपर किसी के कठोर लंड के दस्तक को मैंने महसूस किया। सर उठा कर देखा तो सामने दाढ़ी वाला बूढ़ा मुस्कुरा रहा था। पीछे कौन है यह देखने के लिए सर घुमाई तो देखा एक गुंडा टाईप मोटा मुस्टंडा अश्लील भाव से मुस्करा रहा था। मैं समझ गई कि अब ये सारे लोग मुझे यहीं भीड़ का फायदा उठाकर मेरे शरीर से ऐश करेंगे, जिसके लिए मैं मानसिक रूप से तैयार थी और उत्तेजित भी। मेरी चुप्पी को उन लोगों ने मेरी स्वीकृति मान लिया। धीरे धीरे मेरे अगल बगल के लड़कों ने मेरे ब्लाऊज के बटन खोल दिए और बिना ब्रा की बड़ी बड़ी चूचियों को बेरहमी से दबाने लगे। “बड़ी मस्त माल है बे, क्या मस्त चूचियां हैं। देख कितने मज़े से चूचियां दबवा रही है,” लड़के आपस में फुसफुसाने लगे। मैं आह उह करने लगी। मेरे मुंह से सिसकारियां निकलने लगी थी। इधर पीछे वाला गुंडा धीरे धीरे मेरी साड़ी उठा कर जैसे ही देखा कि मैं बिना पैंटी की हूं, मेरी गांड़ को मसलना शुरू कर दिया और गांड़ में उंगली घुसा कर अन्दर बाहर करने लगा। “वाह तू तो पूरी तैयारी के साथ आई है रानी, क्या मस्त गांड़ है, चोदने में बड़ा मज़ा आएगा।” वह फुसफुसाया। सामने वाला बूढ़ा भी सामने से साड़ी उठा कर मेरी चूत सहलाने और उंगली घुसाने लगा। मेरे मुंह से आनन्द भरी सीत्कार निकल गई। उन लोगों ने देखा कि मैं मदहोशी के आलम में हूं तो अगल बगल वाले लड़कों ने पैंट का चेन खोल कर अपने गरमागरम टनटनाए लंड निकाल कर मेरे हाथों में थमा दिया। मैं उत्तेजना की अवस्था में उनके लंड को सहलाने और दबाने लगी। “ओह साली रंडी, जोर से दबा कुतिया, मूठ मार हरामजादी, आह ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह” बुदबुदाने लगे। पीछे वाले गुंडे ने भी अपना लौड़ा निकाल कर मेरी गांड़ के छेद पर रखा और मेरी कमर पकड़ कर एक ही झटके में आधा लंड पेल दिया। मैं बड़ी मुश्किल से अपनी चीख को रोक पाई। इसी समय सामने वाला बूढ़ा भी अपनी धोती से अपना लौड़ा निकाला। मुझे उस भीड़ में पता ही नहीं चला कि उस साधु बाबा का लंड कितना बड़ा है। जब वह मेरी चूत में अपना लौड़ा डालने लगा तो मुझे अहसास हुआ कि उसका लंड गधे के लंड के जैसा मोटा है। मेरी चूत में उसका लंड जब घुसने लगा तो मैंने दर्द के मारे चीखने के लिए मुंह खोला तो साधु बाबा अपने बदबूदार मुंह से मेरे होंठों को दबा कर चूसने लगा और मेरी चीख निकल ही नहीं पाई। मैं घुट कर रह गई। उसका लंड तो घुसता ही चला जा रहा था, लग रहा था कि कोई लंबा बांस मेरी चूत में घुस रहा हो। पूरा मेरे गर्भाशय तक लौड़ा घुसा दिया था उस हरामी बाबा ने। मैं उन चुदक्कड़ों के बीच फंस कर छटपटा कर रह गई। पीछे वाला गुंडा दुबारा झटका मार कर पूरा लंड मेरी गांड़ में घुसा दिया। चूंकि सामने वाला बूढ़ा मुंह मेरे मुंह से सटा कर चूम रहा था इस लिए मेरी चीख दब गई थी। अब आगे पीछे से मेरी चुदाई होने लगी और मैं मस्ती में भर कर आंखें बंद किए आह आह आह करने लगी और अगल बगल के लड़कों का मूठ मारने लगी। करीब पन्द्रह मिनट बाद पीछे वाला गुंडा अपना माल मेरी गांड़ में झाड़ कर हट गया और मेरे बगल वाला लड़का सरक कर मेरी गांड़ में अपना लौड़ा घुसा दिया। इधर सामने वाला साधू बाबा भी अपना माल मेरी चूत में झाड़ कर जैसे ही हटा, दूसरी बगल वाला लड़का सरक कर मेरी चूत में अपना लौड़ा ठोंक कर दनादन चोदने लगा। अबतक आस पास के लोगों को भी पता चल गया कि यहां क्या हो रहा है। आस पास के लोग भी इस मौके का फ़ायदा उठाने के लिए मेरे समीप आ गये। मेरे पास खड़े जितने लड़के, जवान, बूढ़े थे, सभी मुझ पर टूट पड़े। कहां तो मैं मजा लेने के लिए आई थी, वहां जा कर फंस गयी। छटपटाती हुई मैं उन सबके बीच पिसती रही, सिसकती रही। कोई मेरी चूचियां मसल रहा था, कोई चूचियों को नोच रहा था, कोई चूचियों को चूस रहा था, अपने दांतों से काट रहा था, कोई होठों को चूस रहा था, कोई मेरे गालों को काट रहा था, एक एक करके बारी बारी से मेरी चूत और गांड़ को चोद रहे थे। सब फुसफुसा कर मुझे गंदी गंदी गालियां देते हुए चोद रहे थे, “छिनाल, रंडी मां की चूत, रांड, रंडी की बेटी, कुत्ती की औलाद,” और न जाने क्या क्या। मैं सिसक सिसक कर चुदती रही। मैं छटपटाती रही मगर वहां जितने खड़े लोग थे, लड़के, जवान, अधेड़, बूढ़े, जब सब ने जबतक मुझे चोद नहीं लिया छोड़ा नहीं। जैसे ही मैं उनके चंगुल से छूटी, थकान के मारे नीचे पड़ी एक बड़ी सी गठरी पर औंधे मुंह गिर पड़ी। मेरे उस तरह धम से गिरने पर आस पास बैठे ऊंघते यात्रियों की नींद टूटी तो वे एक पल को समझ नहीं पाये कि मामला क्या है, मगर आंखें मलते हुए जब अस्त व्यस्त परोसी हुई मेरे अधनंगे सेक्सी शरीर को देखा तो उन्हें भी वहशी जानवर बनने में देर नहीं लगी। फिर क्या था, मेरी हालत आसमान से गिरे तो खजूर में अटकी वाली हालत हो गई। आस पास बैठे सारे कांवड़िए, साधु और मैले कुचैले फटे पुराने कपड़े पहने गरीब गंवई सरकते हुए मेरे करीब आ गए और मुझे चारों ओर से घेर कर जिसे जिस तरह मन किया, मेरे शरीर को भंभोड़ना शुरु कर दिया। किसी किसी ने तो मेरे मुंह में भी लंड डाल कर चोदा। मुझे तो याद ही नहीं कि उस रात कितने लोगों ने मुझे चोदा। कुछ लोग मुझे चोद कर अपने अपने स्टेशन पर उतर गये और उन स्टेशनों पर चढ़े कुछ नये यात्रियों ने भी मौके का फायदा उठाकर मुझे रौंद डाला। मुझमें विरोध करने की शक्ति भी नहीं बची थी। मैं ने अपने आपको परिस्थिति के हवाले कर दिया। मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी क्योंकि अनजाने में अजनबी साधू से चुदने के चक्कर में खुद ही इस मुसीबत को निमंत्रण दे बैठी थी। उस वीभत्स और बेहद घृणित परिस्थिति में पड़ी वहशतनाक मुसीबत से छुटकारे की आशा में भूखे कुत्तों की कुतिया की तरह नुचती चुदती रही। करीब साढ़े चार बजे तक मैं नुच चुद कर अधमरी हो गई। सवेरा होने वाला था तब उन लोगों ने मुझे छोड़ा। मैं लस्त पस्त पड़ी नज़र घुमा कर देखा, सभी शराफत के पुतले बने मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मेरी चूत और गांड़ का कचूमर निकाल दिया था हरामियोंं ने। छोटा लंड, लंबा लंड, पतला लंड, मोटा लंड और पता नहीं किस किस तरह का लंड मेरी चूत और गांड़ में घुसा मुझे अर्द्धबेहोशी तल हालत में पता ही नहीं चल रहा था। जिस बेदर्दी से मेरी चुदाई हुई थी उस कारण मेरी चूत पावरोटी की तरह फूल कर कुतिया की तरह बाहर आ गई थी। गांड़ का सुराख बढ़ कर चूहे की बिल की तरह हो गया था। चूत और गांड़ से लसलसा वीर्य बह कर मेरी जांघों से होता हुआ मेरी एड़ियों तक आ चुका था। मेरी चूचियां खुले ब्लाऊज से बाहर निकली हुई थीं। मेरी साड़ी कमर तक उठी हुई थी। मेरी गांड़ और चूत बिल्कुल नंगी थी। मैं अपनी हालत देख कर बेहद शर्मिंदा हो गई और उन वासना के भूखे दरिंदों के वीर्य से सराबोर अपने शरीर की सारी शक्ति बटोर कर किसी तरह उठी और लड़खड़ाते हुए अपने कपड़ों को ठीक किया। फिर उसी तरह लड़खड़ाते हुए टायलेट में जा घुसी और अपने चूत, गांड़ और पैरों को धो कर किसी तरह अपने बर्थ तक पहुंची और धम से गिर कर थकान के मारे तुुंत ही गहरी नींद में सो गई।“लक्ष्मी उठो, कब तक सोती रहोगी” कामिनी के पापा मुझे झंझोर कर जगा रहे थे। “देखो आठ बज गया है”

मैं थकान से चूर अलसाई सी उठी तो मेरे चेहरे के लाल लाल दागों को देख कर वह चौंक उठा और बोला, “अरे ये क्या हो गया है तेरे चेहरे और गर्दन पर?”

मैं समझ गई कि यह सब रात की निशानी है। “लगता है मुझे कोई एलर्जी हुई है। देखो मुझे हल्का बुखार भी है,” मैं बोली। सच में मुझे हल्का बुखार भी था।

“ठीक है तुम आराम से सो जाओ मैं अगले स्टेशन में देखता हूं कोई दवा” वे बोले। फिर मैं बारह बजे तक सोती रही। थकान उतरी तो बुखार भी उतरा मगर मेरी चूत, गांड़ और चूचियों में मीठा मीठा दर्द अभी भी उठ रहा था। टाटा पहुंचते पहुंचते मैं बिल्कुल नोर्मल हो गई थी। उस यात्रा के बाद तो मेरी चुदाई की भूख और बढ़ गई। अब आप ही देख लीजिए मैं क्या से क्या बन गई हूं।”

उसकी पूरी कहानी सुनकर मैं समझ गया कि लक्ष्मी अब पूरी तरह कुतिया बन गई है और चूंकि इसकी शुरुआत हरिया और हम लोग पहले ही कर चुके थे इसलिए मुझे कुछ कहते नहीं बना और हमने हालात से समझौता करने में ही भलाई समझी और लक्ष्मी से कुछ नहीं कहा। तब से अब तक ऐसा ही चल रहा है।”

हम सब भौंचक हो कर दादाजी के मुंह से मेरी मां की कुतिया बनने की कहानी सुनते रहे। मैं हरिया, दादाजी और बड़े दादाजी से बोल उठी, “साले हरामियों, आखिर में मेरी मां को रंडी बना ही डाला आप लोगों ने। खैर अब आप लोग भी कर भी क्या सकते हैं। यह सब ऊपर वाले की माया है। अभी आप लोग खुद देख लीजिए, मैं आप लोगों की बिनब्याही पत्नी बन ही गई ना। मुझे तो इस बात की बहुत खुशी है कि मैं आप लोगों की सामुहिक औरत बन गई हूं। फिर भी अब, जब हम सब जान गये हैं कि मेरी मां छिनाल बन चुकी है तो मैं चाहती हूं कि मेरी मां भी जान ले कि मैं उसकी बेटी, उसी के नक्शे कदम पर चल कर उसका नाम रोशन कर रही हूं।” मैं बेशर्मी से बोली। “मैं चाहती हूं कि आप सब उसके सामने मुझे चोदें और फिर मेरे सामने ही उसकी चुदाई करें।”

एक पल के लिए वे चुप रहे फिर सबने एक स्वर से मेरी बातों का समर्थन कर दिया।

आगे की घटना अगले भाग में।

तब तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए,
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11-27-2020, 03:58 PM,
#53
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
प्रिय पाठकों, आप सब ने पिछले भाग में पढ़ा कि मेरी मां किस तरह वासना की पुतली बन गई थी। उसके अंदर वासना की भूख इस कदर भर गई थी या यों कहूं कि भर दी गई थी कि उसके अंदर अपने पराए, अजनबी, अच्छे बुरे व्यक्तियों के बीच का फर्क खत्म हो गया था। उसे किसी तरह अपने अंदर धधकती वासना की प्रचंड ज्वाला को शांत करने से मतलब था। दादाजी के कथन के अनुसार मेरी मां की स्थिति एक रंडी से भी बदतर हो गई थी। रंडी तो पैसे के लिए अपने शरीर को बेचती है, मगर मेरी मां सिर्फ़ अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए बिना किसी कीमत के अपने खूबसूरत जिस्म को किसी के भी आगोश में समर्पित करने को सदैव तैयार रहती थी। पता नहीं अब तक कितनों की अंकशायिनी बन चुकी थी। अभी उनकी उम्र चालीस साल है मगर दिखती सिर्फ पच्चीस से तीस की तरह। दादाजी के मुख से मां की कामुकता के बारे में जान कर मुझे आश्चर्य हुआ कि मुझे इसका अहसास पहले क्यों नहीं हुआ, हालांकि कई बार संदेहास्पद स्थिति में मैं उन्हें देख चुकी थी, किंतु शायद मेरी आंखों में उनकी शराफत का पर्दा पड़ा हुआ था। अब मैं समझ सकती हूं कि उनके निहायत ही आकर्षक शरीर पर कितने ही भूखे मर्दों की की दृष्टि पड़ी होगी और मेरी मां की तरफ से हरी झंडी की बेताबी से इंतजार करते रहे होंगे, उनकी तो चांदी हो गई होगी। खैर अब मुझे किस बात की परवाह थी। मैं खुद भी तो उसी राह पर चल पड़ी थी। अब मैं उस घड़ी की कल्पना करने लगी जब मेरी मां और मैं एक दूसरे के सामने ही इन औरत खोर वासना के पुजारियों के साथ सामुहिक तौर पर वासना का नंगा खेल खेलेंगे। चूंकि इस बेशर्मी भरे खेल के लिए यहां उपस्थित मेरे सभी बिनब्याहे नंगे बेशरम पतिदेवताओं नें सहर्ष अपनी स्वीकृति दे दी थी इसलिए अब इंतजार था तो मेरी मां का। अब तक हम सभी बेहयाई से नंगे ही लेटे हुए तन्मयता से दाजी के मुख से मेरी मां की कामुकता भरी कथा सुन रहे थे।

“दादाजी, अब तो हम ने मां की कहानी सुन ली। मां के साथ वाला प्रोग्राम बनाईए।” मैं बोली।

“ठीक है, अभी काफी रात हो चुकी है। हम सब अभी खाना खा कर सो जाते हैं। कल प्रोग्राम बनाते हैं। मैं सोच रहा हूं कि चूंकि कामिनी खुद मान चुकी है कि यह हम सबकी बिनब्याही पत्नी है, हमें इसकी इच्छा का सम्मान करते हुए इससे ब्याह कर ही लेना चाहिए। बाहर वाले हमारे इस रिश्ते को गलत नजर से देखेंगे और हमारी बदनामी भी होगी, इसलिए हम घर में ही गुप्त रूप से यह शादी रचाएंगे। बकायदा यह हमारी दुल्हन बनेगी, हम सब इसके दूल्हे बन कर इसके साथ सात फेरे लेंगे। फिर शादी के बाद रात में सामुहिक सुहाग रात मनाएंगे, और यह शुभ कार्य कल ही हो तो बहुत अच्छा रहेगा।” दादाजी ने कहा।

“कल ही कैसे संभव है? पंडित कहां से आएगा? मेरा कन्या दान कौन करेगा? ” मैं बोल पड़ी, हालांकि दादाजी के विचार से मैं खुश हो गई थी, अब मैं अग्नि को साक्षी मानकर वास्तविक रूप से इन पांडवों की द्रौपदी जो बनने वाली थी।

“सब हो जाएगा हमारी प्यारी दुल्हन, तू बस देखती जा” दादाजी पूरे विश्वास से बोले।
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11-27-2020, 03:58 PM,
#54
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“ठीक है तो कल का प्रोग्राम तय रहा। फिलहाल हमें खाना खा कर सोना चाहिए। कल सवेरे से हम दिनभर व्यस्त रहने वाले हैं।” नानाजी ने कहा। फिर हम सभी अपने अपने कपड़े पहन कर खाने की टेबल पर आए। खा पी कर सोने चले गए। उस समय रात के 11 बज रहे थे। कल के बारे में सोचते सोचते कब नींद की आगोश में चली गई पता ही नहीं चला। सवेरे करीब 6 बजे मेरी नींद खुली और अपने कमरे से बाहर आई तो देखा सभी बड़े व्यस्त नजर आ रहे थे।

“तू इतनी जल्दी क्यों उठ गई, जा कर आराम कर या नहा धो कर तैयार हो जा। फिर नाश्ता करके हम बाजार जाएंगे” नानाजी की आवाज़ सुनाई पड़ी।

मैं फ़ौरन वापस कमरे में लौट आई और मुदित मन से गुनगुनाते हुए तैयार होने लगी। मैं तैयार हो कर नाश्ते की टेबल पर आई तो देखा, सभी मुस्कुराते हुए बड़ी हसरत भरी नजरों से मुझे ही देख रहे। मैं उनकी नजरों की ताब न ला सकी और शरमाती हुई नजरें नीचे किए नाश्ता करने बैठ गई। “आ गई हमारी होने वाली दुल्हन।” बड़े दादाजी मुस्कुरा कर बोले।

इतनी बार इन सबकी अंकशायिनी बन चुकने के बाद भी आज मैं न जाने क्यों बड़े दादाजी के शब्दों को सुनकर शर्म से लाल हो गई। नाश्ता करने के पश्चात हरिया को छोड़कर सब बाजार जाने के लिए तैयार हो गये।

मैं बोली, “मैं नहीं जाऊंगी, मैं आराम करना चाहती हूं।”

“अच्छा ठीक है तू आराम कर, लेकिन तेरे लिए शादी के कपड़े कैसे लें? तू साइज़ वगैरह तो बता।” नानाजी बोले। मैं ने एक कागज पर अपनी पैंटी, ब्रा का साइज़ लिख कर उन्हें थमा दिया।

“लाल रंग का लहंगा चोली तो है ही, लाल चुनरी अपनी मर्जी से ले सकते हैं।” मैं शरमा कर बोली।

“हाय मेरी लाड़ो, तू शरमाती हुई बहुत सुंदर लग रही हो।” नानाजी बोले।

फिर जब वे सब बाजार के लिए निकले तो मैं सीधे अपने बिस्तर पर लंबी हो कर अपनी शादी की कल्पना करती हुई रोमांचित होती रही। फिर कब मेरी आंख लगी मुझे पता ही नहीं चला। करीब साढ़े ग्यारह बजे मेरी नींद खुली तो मैं अपने कमरे से बाहर निकली। हरिया खाना बनाने में व्यस्त था। मैंने ज्यों ही किचन में कदम रखा, हरिया ने तुरंत रोका, “अरे रुको, तुम अभी किचन में कदम नहीं रख सकती। शादी के बाद ही किचन में कदम रख सकती हो। शादी के बाद ही तुम हम सबकी पत्नी के साथ ही साथ इस घर की मालकिन भी बन जाओगी।”

मैं ने झट अपने पांव वापस खींच लिया। फिर मैं बाहर बगीचे में बेमतलब टहलने लगी। करीब साढ़े बारह बजे सब के सब कई सामानों से लदे फंदे बाजार से वापस लौट आए। नानाजी ने चार पैकेट मुझे थमाते हुए कहा, “यह तुम्हारे लिए है हमारी होने वाली पत्नी जी। शाम को पांच बजे हमारी शादी का मुहूर्त है। अभी हम खाना खा कर तैयारी में व्यस्त हो जाएंगे। तुम खाना खा कर अपने कमरे में चली जाना और आराम करना। तुझे तैयार करने के लिए तीन बजे दो महिलाएं आ जाएंगी।”

“जी ठीक है” इससे अधिक मैं कुछ बोल नहीं पाई। लाज, खुशी, रोमांच और तनिक भय के मिश्रित भाव मेरे अंदर उमड़ घुमड़ रहे थे। मैं सारे पैकेट अपने कमरे में रख कर खाने की टेबल पर आई। खाना खाते वक्त पूरे समय मैं नजरें नीची करके थी, मेरी सारी बहादुरी हवा हो गई थी और मेरे अंदर नारी सुलभ कोमल भावनाओं का तूफान चल रहा था। खाना खा कर मैं बिना किसी से कुछ बोले छुई मुई स्त्री की भांति अपने कमरे की ओर चली, तभी पीछे से दादाजी की आवाज आई, “हाय, तेरी इसी अदा पर तो हम मर गये रानी।” मैं ने हौले से पीछे मुड़कर उनकी ओर देखा और दौड़ कर अपने कमरे में घुस गयी। फिर मैं तब तक सोती रही जब तक कि मेरे दरवाजे पर दस्तक नहीं हुई। ठीक तीन बज रहा था। दरवाजे पर दो पैंतीस चालीस साल की दो खूबसूरत महिलाएं खड़ी मुस्कुरा रही थीं।
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11-27-2020, 03:58 PM,
#55
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“ओह, तो तुम हो दुल्हन। तुम तो बहुत खूबसूरत हो।देखना, सजने के बाद तो तुम क़यामत ढा दोगी। दूल्हा तो पागल ही हो जाएगा।” उनमें से एक अश्लील मुस्कान के साथ बोली। शायद उन्हें असलीयत का पता नहीं था। करीब एक घंटे में ही उन्होंने मुझे पूरी तरह दुल्हन बना दिया और मेरा मेकअप करने लगीं। आधे घंटे में मेरा मेकअप पूरा हुआ। मैं अपने नये रूप को आईने में देख कर खुद ही शरमा गई। पूरी दुल्हन बन चुकी थी, मेरे दूल्हों पर बिजली गिराने के लिए तैयार। मुझे तैयार करने में उन्हें एक घंटा लगा, फिर वे नानाजी से अपनी फीस ले कर चली गईं। नानाजी नें ज्यों ही मुझे देखा, उनका बुलडोग जैसा मुंह खुला का खुला रह गया। मेरे सजे हुए दपदपाते यौवन को कुछ पलों तक अपलक निहारते रह गए। मैं उनकी नजरों की ताब न ला सकी और लाज से मेरी नजरें जमीन पर गड़ गई। नानाजी ने हिदायत दी कि जब तक मुझे लेने कोई नहीं आएगा, मैं कमरे से बाहर न निकलूं। तब से घड़कते दिल से पांच बजे का इंतजार करने लगी। जैसे जैसे समय निकट आ रहा था मेरे दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं।

ठीक पांच बजे मेरे कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई साथ ही एक स्त्री की आवाज सुनाई पड़ी, “बेटी, दरवाजा खोलो, विवाह मंडप में तुम्हारा बुलावा है। मैं तुम्हें लेने आई हूं।”

“जी दरवाजा खुला है, आ जाईए” मैं ने कहा।

करीब चालीस साल की एक मझोले कद की गेहुंए रंग की मोटी पर आकर्षक महिला मुस्कुराती हुई अंदर आई और मुझे ले कर ड्राइंग रूम में आई जो खूबसूरती से सजा हुआ था। वह बीच में मंडप था और एक पंडित बैठा मंत्रोच्चारण कर रहा था। देखने में लोमड़ी की तरह धूर्त काला कलूटा मोटा पंडित मुझे देख कर बड़ी अश्लीलता और भद्दे ढंग से मुस्करा रहा था। उसके सामने के ऊपर वाले चार पीले पीले दांत बड़े ही भद्दे ढंग से बाहर की ओर निकले हुए थे मैं समझ गई कि यह पंडित इन्हीं लोगों की जमात का है। मेरे पांचों दूल्हे धोती कुर्ते में सजे धजे मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। मैं ने घूंघट सामने से और लंबा खींच लिया। पांचों के साथ मेरा गठबंधन हुआ और मैंने उनके साथ सात फेरे लिए। जो महिला मुझे लेकर मंडप तक लाई थी वह दूर के रिश्ते से मेरी चाची थी। उसी ने मेरा कन्यादान किया। जयमाला की रस्म हुई और पांचों ने मेरी मांग में सिंदूर डाला। करीम चाचा ने मुस्लिम होते हुए भी पूरे हिंदू रीति का पालन किया। अब मैं अग्नि को साक्षी मानकर पूरे विधि-विधान से उन पांचों की पत्नी बन चुकी थी। पंडित जी ने घोषणा की कि विवाह संपन्न हो गया और अब हम पति-पत्नी हैं। फिर हम सबने चाची के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। तभी दरवाजे की घंटी बजी। उसी महिला ने दरवाजा खोला। दरवाजे पर मेरी मां खड़ी थी।

“अरे रमा तू यहां?” मेरी मां ने उस महिला, जो मेरी दूर के रिश्ते की चाची थी, से कहा।

“अरे लक्ष्मी तूने आने में थोड़ी देर कर दी।” चाची ने कहा।

“क्यों? क्या हुआ?” मेरी मां बोली।

“अरे अंदर तो आ, सब पता चल जाएगा।” बोलती हुई दरवाजे से हटीं। अंदर आते ही अंदर का माहौल देख कर चकरा गयी। मैं अब तक घूंघट में थी। मेरे पांचों दूल्हों का चेहरा सेहरे से ढंका हुआ था। हमारी शादी हो चुकी थी, अतः हम सभी आशीर्वाद लेने के लिए मेरी मां के पांव छूने को झुके तो वह हड़बड़ा कर एक कदम पीछे हटी।

तभी चाची बोली, “अपनी बेटी और दामादों को आशीर्वाद नहीं दोगी क्या?”

“मेरी बेटी? कौन? कामिनी?” आश्चर्यचकित हो कर मां ने पूछा।

“हां रे हां। तेरी बेटी कामिनी। अभी अभी तो उसकी शादी हुई। सामने देखो, कामिनी दुल्हन के वेश में और उसके पांच दूल्हे, तू ठीक मौके पर आई है। चल उन्हें आशीर्वाद दे दे।” चाची बोली।

“यह क्या तमाशा चल रहा है यहां पर? मैं इस शादी को नहीं मानती। मजाक बना कर रखा है।” गुस्से से मेरी मां बोली।

“तमाशा नहीं है लक्ष्मी। अब तो शादी हो चुकी है पूरे विधि-विधान से। तू मान न मान, तेरी बेटी अब ब्याहता है इन पांचों दूल्हों की।” चाची बोली।

“कन्या दान किसने किया?” मां बोली।

“मैं ने” चाची ने जवाब दिया।
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11-27-2020, 03:58 PM,
#56
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“कामिनी, तुझे हामारे परिवार की इज्जत का जरा भी ख्याल नहीं आया? बिना हमारी इजाजत के और वो भी इन पांच पांच मर्दों के साथ शादी? छि, छिनाल कहीं की।” मां गुस्से में लाल पीली हो रही थी।

अब मैं और मेरे साथ साथ मेरे दूल्हे भी क्रोधित हो उठे। मैं ने अपना घूंघट हटाया और साथ ही मेरे दूल्हों ने भी चेहरे पर से सेहरा हटाया। हम सबके चेहरों को देखते ही मेरी मां के चेहरे का रंग उड़ गया। नानाजी और करीम चाचा को छोड़कर बाकी तीनों से तो खुद भी चुद चुकी थी।

मैं बोली, “मम्मी, मैं छिनाल नहीं हूं, छिनाल तो आप हैं। मैं तो इन सबसे शादी करके इनकी व्याहता बन चुकी हूं, द्रौपदी की तरह। आप तो कई जाने अंजाने मर्दों की हमबिस्तर हो चुकी हैं।”

“हमारी छिनाल सासू मां जी, चुपचाप हमें आशीर्वाद दे दीजिए, वरना सारी दुनिया को पता चल जाएगा कि आप कितनी बड़ी छिनाल हैं।” दादाजी बोले।

“सच में कितने हरामी लोग हैं आप लोग। मेरी बेटी को भी नहीं छोड़ा। कामिनी तो नादान है मगर आप लोग तो समझदार होते हुए भी इस बेवकूफ को पांच पांच बूढ़े पतियों की पत्नी बना लिया।” मेरी मां बोली।

“मैं बेवकूफ नहीं हूं। मैं इनसे प्यार करती हूं। इसलिए बकायदा शादी की है।” मैं बोली, “अब हमें आशीर्वाद देती हैं कि नहीं”? मेरी मां निरूत्तर हो गई। हम सभी ने मां के पैर छू कर आशिर्वाद लिया। नानाजी अर्थात मेरी मां के पिता ने भी अपनी बेटी, (अब सास) के पांव छुआ और आशिर्वाद लिया। मेरी मां ने यंत्रवत हमें आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात हमने साथ बैठ कर खाना खाया। पंडित और चाची ने भी विवाह भोज का आनंद लिया।

खाना खाते वक्त दादाजी ने मेरी मां के चिंतित चेहरे को देख कर कहा, “आप चिंता मत कीजिए सासू मां जी, हम आपकी चिंता समझ सकते हैं। अभी आप सास हैं, लेकिन हमारे लिए आप वही पहले वाली लक्ष्मी हैं। आपकी इच्छाओं का हम पूरा ख्याल रखेंगे। अगर आप चाहें तो आज रात के लिए पंडित जी से काम चला लीजिए, रमा भी आपका साथ देने को तैयार है। आप दोनों पंडित जी के साथ मजे कीजिए, हम आज कामिनी के साथ सुहागरात मनाएंगे और इसकी चिंता मत कीजिए कि हम पांच एक साथ किस तरह से सुहाग रात मनाएंगे। कामिनी आखिर आप की ही बेटी है, आप से कम नहीं है।” मेरी मां ने पंडित जी की ओर देखा, जिसकी आंखों में वहशियत नाच रही थी और बड़े ही अश्लील ढंग से मुस्करा रहे थे। रमा (मेरी चाची) भी मुस्करा रही थी। मेरी मां ने मायूस हो कर सिर झुका कर अपनी सहमति दे दी।

मैं बेहद रोमांचित थी, अपने सुहागरात की कल्पना में डूबी।

खाना खाने के बाद चाची मुझे ले कर नानाजी के मास्टर बेडरूम में आई, जिसे बड़ी खूबसूरती से सजाया गया था और उसी खूबसूरती से सुहाग सेज भी।

मुझे ले कर चाची ने सुहाग शैय्या पर बिठा दिया और मुस्करा कर बोली, “वाह बिटिया, तेरी हिम्मत की दाद देती हूं, पांच पांच मर्दों के साथ सुहागरात मुबारक हो।” फिर वह मेरे गालों पर चिकोटी काट कर बाहर निकल गई। मैं धड़कते दिल से अपने दूल्हों की प्रतीक्षा करने लगी। करीब 11 बजे कमरे का दरवाजा खुला और एक एक करके पांचों अंदर आए और सुहाग सेज पर मेरे सामने बैठ गये। चाची के निकलते ही मैं ने घूंघट और लंबा खींच लिया था।

“हाय हमारी दुल्हन, इतना लंबा घूंघट? सब कुछ तो हम पहले ही देख चुके हैं, शरमाती क्यों हो?” दादाजी घूंघट खोलते हुए बोले।

“हाय दैया, लाज लगती है जी।” मैं दोनों हाथों से चेहरा छुपाते हुए बोली।

“तेरी लाज की ऐसी की तैसी, आज तेरी सुहागरात है। शरमाओ मत। आज से तू हमारी धर्मपत्नी है। हम सब तेरे पति। तुझे तो पता ही है अभी हम तेरे साथ क्या करेंगे। चलो रे भाई लोगो, शुरू हो जाओ।” बड़े दादाजी ने सबको हरी झंडी दिखा दी।

मैं फिर भी उन्हें रोकने की नाकाम कोशिश करती रही। फिर मुझे याद आया कि मैं ने कहा था मां के सामने इन लोगों से अपनी वासना की आग बुझाऊंगी। इन्होंने भी हामी भरी थी। सुहाग रात था तो क्या हुआ, आज ऐसा आकस्मिक संयोग सौभाग्य से ही मिला था। मैं बोली, “रुकिए, आज मां भी यहीं है। क्यों न आज मां के सामने ही सुहाग रात मनाया जाए? आप लोगों ने खुद कहा था कि मेरी मां के सामने ही मेरे जिस्म का भोग लगाएंगे। आज सौभाग्य से ऐसा मौका मिल गया है। उन सबको यहीं बुला लीजिए ना, मेरी मां को भी तो पता चले कि उसकी बेटी भी उससे कुछ कम नहीं है।”

सब ने एक दूसरे को देखा और खुशी खुशी राजी हो गए। तुरंत ही उन्होंने हरिया को उन्हें बुलाने को भेजा।

“उन्हें तुरंत यहां बुला लाओ, जिस भी हालत में हों, वैसे ही।” दादाजी बोले। दो मिनट में ही सबके सब हमारे कमरे में थे। चाची और मेरी मां सिर्फ़ ब्लाऊज़ और पेटीकोट में थे और पंडित जी सिर्फ धोती में, कमर से ऊपर कुछ नहीं था। काले, मोटे तोंदियल शरीर पर पूरा बाल भरा हुआ था, काले भालू की तरह। ऐसा लग रहा था कि वे लोग बहुत जल्दीबाजी में थे। मेरी मेरी मां और चाची के बाल बिखरे हुए थे। चेहरा उनका लाल हो चुका था। लगता था उनकी काम क्रीड़ा शुरू हो चुकी थी। उत्तेजना और खीझ उनके चेहरे पर साफ साफ दिखाई दे रही थी।
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11-27-2020, 03:58 PM,
#57
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“आओ तुम लोग भी इसी कमरे में। हमारी सुहागरात अपनी आंखों से देखो और खुद भी ऐश करो।” दादाजी बोले।

” हा हा हा, ये बढ़िया आईडिया है, क्यों, मेरी आज रात की दुल्हनों? आओ हम यहीं सोफे में बैठ कर इनका सुहाग रात देखेंगे और हम भी इसी सोफे पर चुदाई का खेल खेलेंगे।” काले कलूटे भैंस जैसे पंडित जी अपनी खींसें निपोरते हुए वासना से ओत-प्रोत आवाज में बोले और मेरी मां और चाची को अपने अगल बगल बैठा कर उन्हें अपने बनमानुषी बांहों में जकड़ लिया और मेरी मां और चाची भी कहां कम छिनाल थीं, जहां चाची पंडित जी की धोती में हाथ डाल कर उनसे चिपकी जा रही थी वहीं मेरी मां भी मेरी अनैतिकता और बेशर्मी भरी आकस्मिक विवाह से उत्पन्न नाराजगी और गुस्से को त्याग कर अपने असली रंग में आ गयी और पेटीकोट और ब्लाउज खोल कर सिर्फ ब्रा और पैंटी में पंडित जी के बेडौल और कुरूप शरीर से चिपक कर बैठ गई और बोली, “हां, यह ठीक है, इस कमीनी कामिनी और इन कमीने बूढ़ों की बेशर्मी आज हम अपनी आंखों से देखेंगे और इस बेगैरत लड़की की बरबादी का जश्न इन्हीं हरामियों के सामने मनाएंगे।”

मैं पहली बार अपनी मां को इस रूप में देख रही थी। उसे इस कामुकता पूर्ण मुद्रा में देख कर और उसकी बातें सुन कर मुझे मजा आ गया, मैं भी उत्तेजित हो उठी और बेहद कामुकता पूर्ण स्वर में बोल उठी, “आज तुम देखोगी मम्मी कि यह मेरी बर्बादी है या आबादी। मैं भी आखिर आप की ही बेटी हूं। तेरे सामने ही मैं दिखाऊंगी कि मैं यूं ही इन भिन्न भिन्न आकार प्रकार के पांच दूल्हों की दुल्हन नहीं बनी हूं। आईए मेरे पति देवताओं, मेरी छिनाल मां के सामने ही सब मिलकर मुझे पत्नी होने का वही स्वर्गीय व अनिर्वचनीय सुख प्रदान करके मुझे धन्य कर दो जिसके लिए एक नारी पैदा होती है।”

“अब तक हम सब देख क्या रहे हैं? चलो भाईयों शुरू हो जाओ।” दादाजी बड़ी बेसब्री से बोल उठे। फिर क्या था, इधर मैं नयी नवेली दुल्हन की तरह बनावटी लज्जा का दिखावा करती रही और उधर मेरी लाज भरी ना नुकुर की परवाह किए बगैर उन्होंने एक एक करके मेरे शरीर के सारे कपड़ों को उतार कर पूरी तरह नंगी कर दिया। एक एक करके मेरी चुन्नी, मेरा लहंगा, चोली, ब्रा, पैंटी, जैसे जैसे खुलते गये, वहां उपस्थित सभी लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं, खास कर के पंडित जी, मेरी मां और मेरी चाची की।

मेरे पूर्ण विकसित गदराए नंगे शरीर को वे लोग अपलक अविश्वसनीय नजरों से देख रहे थे। पंडित जी की आंखें तो मानो बाहर ही निकली जा रही थीं।

“गजब” वे बुदबुदाए।

“पूरी रंडी बन गई है हरामजादी” मेरी मां बुदबुदाई।

मैं लाजवंती का अभिनय करती हुई बोली, “हाय राम, लाज लगती है जी। देखिए न, मां, चाची, पंडित जी मुझे कैसे देख रहे हैं।”

“अब तू नखरे न कर रानी। हम इन्हें दिखाते हैं कि तू ऐसे ही हमारी बीवी नहीं बनी हो।” बड़े दादाजी बड़े अश्लील ढंग से मेरे तने हुए नग्न उरोजों को सहलाते हुए बोले।

“अरे देख क्या रहे हो, टूट पड़ो सालों। उतारो अपने कपड़े और बना लो हमारी कम्मो रानी को अपने लौड़ों की दासी।” दादाजी अब बेसब्र हो चुके थे।

आनन फानन में सब मादरजात नंगे हो गए और मुझ पर जंगली जानवरों की तरह टूट पड़े। हाय, वह अहसास, वह रोमांच, तीन दर्शकों के सामने, खास कर अपनी मां के सामने, इन पांच पांच कामुक बूढ़े पतियों की एकमात्र पत्नी बन कर अपने नग्न तन को उनकी वासना की भूख मिटाने हेतु समर्पित करने को तत्पर हो गई। विभिन्न आकार प्रकार के मेरे नंग धडंग पति एकाएक मुझ पर छा गए। करीम और हरिया ने मेरे उन्नत उरोजों पर एक साथ धावा बोला और दबा दबा कर चूसने और चाटने लगे।

“आह, ओह ओ्ओ्ओ्ओह, आराम से, आह, धीरे धीरे प्लीज”, मेरे मुंह से निकला। दादाजी ने मेरी फूली हुई चिकनी योनि पर आक्रमण किया और लगे चूसने और चाटने। आह अवर्णनीय आनंद। बड़े दादाजी जो गुदा मैथुन के रसिया थे, मेरी चिकनी गोल गोल चूतड़ को फैला कर गुदा द्वार में अपनी जीभ घुसा घुसा कर चाटने लगे।

नानाजी कहां पीछे रहने वाले थे, अपनी ही बेटी (मेरी मां) के सामने बड़ी ही बेशर्मी से अपना फनफनाता भीमकाय लिंग मेरे होंठों के सामने लाकर बोले, “ले मेरा लौड़ा चाट मेरी रानी, जीभ निकाल कर चाट, मुंह में ले कर चूस, आज तू अपनी मां को अपना दम दिखा दे कि तू एक साथ हम सब को कैसे खुश कर सकती है और हम सब बूढ़े पति भी दिखाते हैं कि तेरी जैसी एकमात्र खूबसूरत और जवान पत्नी को हम सब मिलकर कैसे खुश रख सकते हैं।”
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11-27-2020, 03:58 PM,
#58
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“हां मेरे स्वामियों, जैसी आप लोगों की मर्जी, आज से मैं आप लोगों की सामुहिक पत्नी, वादा करती हूं कि आप लोगों की खुशी में ही मेरी खुशी होगी। आप लोग जो बोलिएगा मैं वैसा ही करूंगी।” मैं आज्ञाकरी पत्नी की तरह अपनी जीभ से नानाजी के लिंग को चाटने लगी, फिर आहिस्ता आहिस्ता पूरा लिंग मुंह के अंदर ले कर चूसने लगी। सब लोगों ने मिलकर मेरी चूचियां, चूत, गांड़ चूसने चाटने और मुख मैथुन में लग कर मेरे पूरे शरीर में कामाग्नी की ज्वाला को इस कदर भड़का दिया कि मेरा शरीर उत्तेजना के मारे थरथराने लगा, लंबी लंबी सांसें चलने लगी, सिसकारियां निकलने लगी। पागल हो उठी थी मैं। मैं ने इसी दौरान हल्के से किसी तरह तिरछी नजरों से अपनी मां के ओर दृष्टि दौड़ाई तो गजब का नजारा दिखा। अब तक मेरी मां और चाची पूर्णतय: नंगी हो चुकी थीं। दोनों की बड़ी बड़ी चूचियां थलथला रही थीं। झांटों से भरी हुई उनकी फकफकाती पूवे जैसी चूत दूर से ही पनियायी हुई स्पष्ट दिखाई पड़ रही थीं। दोनों की वासना भरी भूखी आंखें हमारी ओर ही थीं और पांचों पांडवों द्वारा मेरे साथ हो रहे कामक्रीड़ा को तन्मयतापूर्वक देख रहे थे मगर उनके हाथ पंडित जी के विशाल फनफनाए नाग सदृष्य लिंग पर अठखेलियां कर रही थीं। पंडित जी पूरे नंगे हो कर किसी जंगली भालू की तरह दिखाई दे रहे थे। बड़ा सा हंडी जैसा तोंद बाहर निकला हुआ था मगर उनके लिंग का तो कहना ही क्या था, पूरे शबाब पर था, डरावना था मगर था खूबसूरत। बड़ा सा चिकना गुलाबी सुपाड़ा दूर से भी चमक रहा था। लंबाई और मोटाई तो पूछो ही मत, गधे के लिंग की तरह। कुल मिलाकर ऐसा लिंग जिसे देखकर आम स्त्रियां भयभीत हो जाएं, मगर शायद मेरी मां और चाची उन आम स्त्रियों में नहीं थीं। साफ साफ दिखाई दे रहा था कि वे दोनों चुदने को बेताब हो चुकी थीं। कामपिपाशु पंडित भेड़िए जैसी आंखें फाड़कर हमारी कामलीला देखते हुए अपने बनमानुषी पंजों से चाची और मां की थलथलाती चूचियों को बड़ी बेरहमी से मसल रहे थे। उन तीनों के मुख से आनन्द भरी सिसकारियां निकल रही थीं।

मैं भी अब काफी गर्म हो चुकी थी और चुदने को तड़पने लगी, “अब चोद भी डालिए मेरे पति देवताओं” मैं पागलों की तरह बोल उठी।

“हां रानी, अब हम सब मिलकर तुझे ऐसा चोदेंगे कि यह सुहाग रात तुझे जिंदगी भर याद रहेगा। पहले आ जा केशव, तू शुरू कर इसकी चुदाई।” दादाजी बोले।

“नहीं, मुझे इसकी गोल गोल चिकनी गांड़ पसंद है। मैं तो इसकी गांड़ चोदुंगा।” बड़े दादाजी बोले।

“गांड़ चोदना है चोद लीजिए, मेरी गांड़ के रसिया स्वामी जी, मेरा सबकुछ अब आप लोगों का है, मगर वीर्य मेरी चूत में डालिएगा। मुझे आप सबके बच्चों की मां बनना है मेरे स्वामियों।” मैं बोली।

“हां हां बिल्कुल ऐसा ही होगा मेरी प्यारी बुर चोदी रानी।” बड़े दादाजी झट से बोल उठे और चाट चाट कर चिकने किये हुए मेरी गुदा द्वार पर अपना लौड़ा टिकाया “ले मेरी गांड़ मरानी” और सरसराते हुए एक ही बार में जड़ तक ठोक दिया।

“आआ्आ्आ्आ्ह्ह्ह” मेरी आह निकल पड़ी।

“अब मैं तेरी चूत में अपना लौड़ा डालूंगा मेरी चूतमरानी” कहते हुए दादाजी ने अपना आठ इंच का लौड़ा मेरी पनियायी चूत में घुसेड़ना चालू किया। धीरे धीरे उन्होंने पूरा का पूरा लंड मेरी चूत के अंदर डाल दिया।

“ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह” दोतरफे हमले से मैं सिसक उठी। मेरे मुंह में नानाजी का लौड़ा समाया हुआ था। मेरे दोनों हाथों में करीम और हरिया का लंड था जिन्हें मैं जोर से पकड़े हुए थी सहारे की तरह।
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11-27-2020, 03:58 PM,
#59
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“पकड़े मत रह रानी, अपने हाथों से हम दोनों का मूठ मार” हरिया बोला, और मैं जरखरीद गुलाम की तरह उनके मोटे मोटे लौड़ों को बमुश्किल पकड़ कर हस्तमैथुन का मज़ा देने लगी।

वे दोनों “आह रानी, ओह ओ्ओ्ओ्ओह रानी” करने लगे। अब शुरू हुई मेरे शरीर की कुटाई। दादाजी और बड़े दादाजी ने मेरे पैरों के बीच अपना स्थान बना कर मुझे कस कर दबोच लिया और गंदी गंदी गालियों के साथ मेरी चूत और गांड़ में अपने लौड़े पेल कर लंबे लंबे प्रहार करने लगे।

“ओह साली कुतिया, ले मेरा लंड, चूत मरानी छिनाल, तेरी चूत की चटनी बना दूंगा।” दादाजी बोल रहे थे।

“आह गांड़ मरानी रंडी, ओह रंडी की चुदक्कड़ कुतिया, मैं गांड़ का रसिया, आज तेरी गांड़ का गूदा निकाल दूंगा।” बड़े दादाजी बोलने लगे। मैं कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी। मेरे मुंह में अपना लौड़ा डाल कर नानाजी मुखमैथुन में व्यस्त थे। मेरी मां और चाची मेरे रंडीपन को कौतुहल, अविश्वास और आश्चर्य से आंखें फाड़कर कर देख रहे थे। तभी पंडित जी ने दोनों औरतों को अपने सामने कुतिया की तरह झुका दिया, दोनों के चेहरे हमारी ओर थे, फिर वे उनके पीछे गये और पहले चाची के पीछे किसी कुत्ते की तरह पोजीशन ले कर अपने फनफनाते गधे सरीखे लौड़े के सुपाड़े को चूत के मुहाने पर रख कर एक करारा धक्का मार दिया।

चाची चीख उठी। “आह मादरचोद पंडित, मेरी चूत फ़ाड़ दिया आह”

“चुप बुरचोदी, चुपचाप कुतिया बनी रह और मुझे चोदने दे हरामजादी”, बेहद वहशियाना अंदाज में पंडित जी गुर्रा उठे। इस समय वे किसी जंगली बनमानुष से कम नहीं लग रहे थे। उन्होंने एक हाथ की लंबी उंगली मेरी मम्मी की चूत में घुसा कर अन्दर बाहर करना शुरू किया और एक जबरदस्त धक्के से पूरा लौड़ा चाची की चूत में उतार दिया।

“आ्आ्आ्आह्ह्ह, मार डाला हरामी पंडित।” चाची किसी ज़बह होती बकरी की तरह चीखने लगी।

पंडित जी ने एक जोरदार झापड़ चाची के चूतड़ पर जड़ दिया और बोला, “साली कुतिया, अब तक चुदने के लिए मरी जा रही थी और अब हाय हाय कर रही है। तुम दोनों आज मेरी कुतिया हो समझ गई और मैं तुम दोनों का कुत्ता।” फिर चाची के चीखने चिल्लाने की परवाह किए बगैर बड़ी बेरहमी से दनादन धक्के पर धक्का लगाने लगे।

इधर दादा जी और बड़े दादाजी मिल कर मेरी चूत और गांड़ का भुर्ता बनाने में जुट गए अपनी पूर्वपरिचित जंगली जानवरों की तरह, गंदी गंदी गालियां निकालते हुए, “आह हमारी रंडी पत्नी, साली हरामजादी कुतिया, रंडी की औलाद, बुर चोदी, ओह ओ्ओ्ओ्ओह” दे दनादन चोदने में मशगूल। मैं उनके हर प्रहार से आनंद में डूबती जा रही थी, अपने नारीत्व पर गौरवान्वित होती हुई। अचानक ही मैं उत्तेजना के चरमोत्कर्ष पर पहुंच कर झड़ने लगी और ठीक उसी समय दादाजी भी खलास होने लगे और मेरे झड़ने की अनिर्वचनीय सुख को दुगुना कर दिया। इसी समय चाची भी हांफती कांपती पागलों की तरह सर झटकती हुई झड़ने लगी “आ्वा्हा्आ्आ्आह्ह्ह राजा मैं झड़ रही हूं ओ्ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह”। ऐसा लग रहा था मानो जिंदगी में उसे पहली बार इस तरह की चुदाई का अनुभव मिला हो। मगर पंडित जी का लंड को तो लगता है अभी दूसरे चूत (मेरी मां की) की सुगंध ने अपनी ओर खींच लिया था। पंडित जी ने चाची को छोड़कर मेरी मां की चूत पर हमला बोला। ज्यों ही पंडित जी ने चाची को छोड़ा, वह निढाल हो कर धम से फर्श पर गिर पड़ी और लंबी लंबी सांसे लेने लगी। पंडित जी ने चाची के चूत रस से सने अपने मूसल सरीखे लौड़े को मेरी मां की फकफकाती चूत में एक ही बार में पूरा का पूरा उतार दिया और बेहद बर्बरता पूर्वक वहशियाना अंदाज में नोचते खसोटते हुए चोदना चालू कर दिया। मेरी मां रंडी जरूर थी मगर लगता है इस तरह के भयानक लंड से पाला नहीं पड़ा था।

बड़े दर्दनाक ढंग से चीख उठी, “हाय मार डाला रे आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह हरामी पंडित ओह माई गॉड आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह।”

“अब तू लगी नखरा करने साली कुत्ती, चुप रह हरामजादी।” पंडित जी मेरी मां के चीख पुकार की परवाह किए बगैर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया और किसी कसाई की तरह मेरी मां की चूचियों को नोचते खसोटते कुत्ते की तरह धकाधक चोदने में मशगूल हो गए। मेरी मां की आंखों से आंसू बह निकले, चीखती रही, छटपटाती रही, मगर उस भीमकाय जालिम पंडित के चंगुल से बचाने की सारी कोशिशें व्यर्थ थी।

कुछ ही देर में मां रोना गाना छोड़ कर आनंद मिस्रित सिसकारियां भरने लगी, “आह राजा ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा, चोद साले हरामी पंडित मेरी बेटी को दिखा दे कि आखिर मैं भी उसकी मां हूं, आह ओ्ह्ह्ह्ह अम्म्म््माआ्आ्आ।”

“हां रे रंडी, आज तेरी बेटी को दिखा दे कि तू कितनी बड़ी रंडी है। ओह मजा आ रहा है आह साली देख तेरी बेटी कैसे पांच पांच मर्दों से चुद रही है, रंडी मां की रंडी बेटी।” पंडित जी मेरी मां को चोदते हुए बोल रहे थे।
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11-27-2020, 03:58 PM,
#60
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
इधर जैसे ही दादाजी मुझे चोद कर हटे, तुरंत ही बड़े दादाजी मेरी गांड़ छोड़ कर मेरी चूत में हमला कर बैठे। कुछ ही झटकों में वे भी फचफचा कर अपना वीर्य मेरी कोख में उंडेलने लगे “आ्आ्आ्आ्आह रंडी मां की छिनाल बेटी, ओ्ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह् गया मेरा लौड़ा रस तेरी चूत में,” भैंसे की तरह डकारते हुए जैसे ही वे खलास हो कर हटे, हरिया ने मेरी चूत में धावा बोला, इधर मेरी चूत में हरिया का लंड गया उधर मेरी गांड़ में करीम का लौड़ा घुसा। फिर दोनों ने जो घमासान मचाया कि मैं हाय हाय कर उठी। उनके इस धुआंधार चुदाई के दौरान मैं फिर एक बार झड़ गई “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओ” अभी मैं झड़ ही रही थी कि हरिया ने मुझे कस कर दबोचा और अपने वीर्य से मेरी चूत को सराबोर कर दिया। ज्यों ही हरिया हटा, करीम मेरी गांड़ छोड़ कर मेरी बूर में आक्रमण कर दिया और एक ही झटके में अपना दस इंच का लौड़ा मेरी कोख तक ठोंक दिया। “आह” मेरी घुटी घुटी आह निकल पड़ी। करीम का लौड़ा था ही इतना विशाल कि जितनी बार भी चुदो, दर्द तो होना ही था, मगर उस दर्द के साथ जो आनंद था वह भी अद्भुत था। “आह मेरी जान, इतनी मस्त चूत, जो चोदे सो निहाल” वे बोले और मैं भी छिनाल की तरह बोल उठी, “ओह मेरे राजा, आपका लौड़ा इतना मस्त है कि जो चुदे सो निहाल।” कुछ ही देर में करीम ने मेरी चूत में अपना वीर्य भरना शुरू किया, ” ओह ओ्ओ्ओ्ओह, मैं गई मेरे स्वामी” कहती हुई तीसरी बार छरछरा कर झड़ने लगी। मेरे चार पति मुझे चोद कर आस पास पड़े थे और तब नंबर आया नानाजी का। मैं जानती थी कि अब मुझे कुतिया बनना है। बिना बोले ही मैं कुतिया की तरह उकड़ूं हो गई और नानाजी कुत्ते की तरह मुझ पर टूट पड़े। “वाह रानी, यह हुई ना बात। तू बहुत समझदार पत्नी है। हर पति की पसंद का बहुत ख्याल रखती है। हम सब तुझे अपनी पत्नी बना कर धन्य हो गये।” वे बोले। “अब ज्यादा मस्का मत मारिये मेरे पति देव जी, बना लीजिए मुझे अपनी कुतिया और मुझे अपनी कुत्ती पत्नी का दरजा प्रदान करने की कृपा कीजिए।” मेरे इतना कहने की देर थी कि दनादन किसी कुत्ते की तरह मुझे भंभोड़ना शुरु कर दिया। करीब पन्द्रह मिनट तक चोदने के बाद मुझे कुतिया की तरह अपने लंड से फंसा कर पलट गये। मेरी मां पंडित जी से चुदती हुई मुझे अपने पापा से चुदती आंखें फाड़कर कर देखती रही। जिंदगी में पहली बार उसने किसी मर्द के लंड से फंसी स्त्री को देख रही थी। हम दोनों मां बेटी एक दूसरे को देख रहे थे। मैं नानाजी के लंड से फंसी भालू जैसे विकृत शरीर वाले पंडित जी के भीषण चुदाई में भी आनंदित और मुदित मां को देख कर सोच रही थी कि सच में वह एक नंबर की छिनाल चुदक्कड़ है। शायद मेरी मां भी मेरे बारे में यही सोच रही थी। करीब दस मिनट बाद नानाजी ने अपने वीर्य से मेरी कोख सींच कर अपने लंड बंधन से मुक्त किया। इस दौरान मैं चौथी बार स्खलन सुख से विभोर हो गई। उधर पंडित जी भी मेरी मां के कमर को जोर से पकड़ कर भैंस की तरह डकारते हुए खलास होने लगे। मां ने अपनी आंखें बंद कर लीं और चरम सुख में झड़ते हुए बोली, “हाय हाय मां मैं गई राजा ओह पंडित जी ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरे चोदू,” और पंडित जी के साथ ही साथ चिपकी वह भी पसीने से लथपथ निढाल हो कर लुढ़क गई। मेरे चारों ओर मेरे पति लेटे हुए थे और उनके हाथ मेरे नग्न जिस्म पर थे।

कमरे में उपस्थित सारे लोग तृप्त हो गये थे, यह और कोई नहीं, खुद उनके चेहरों की मुस्कान बता रही थी। मैं खुश थी कि मैं ने अपनी मां को दिखा दिया कि मैं अपने पतियों को पाकर कितनी खुशनसीब हूं, साथ ही साथ मेरे पतियों ने भी दिखा दिया कि वे मुझे पत्नी के रूप में पा कर कितने खुश हैं

आगे क्या हुआ? इसे जानने के लिए अगली कड़ी का इंतजार करें।

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