Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-27-2020, 11:07 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“ठीक है हमें मंजूर है” रूपचंद जी ने कहा, फिर मेरी ओर अर्थपूर्ण नजरों से देखते हुए कहा, “योजना की अंतिम रूपरेखा के बारे में हमें विश्वास है कि आप जो भी तैयार करेंगे वह बढ़िया ही होगा लेकिन आज आप का जो मोटा मोटी प्रारूप तैयार होगा वह कामिनी के हाथों होटल राज में भेज दीजिएगा। हम वहीं देख भी लेंगे और समझ भी लेंगे।”

“Will you get some time to do this Kamini? You can explain better. (क्या तुम समय निकाल कर यह काम कर दोगी कामिनी? तुम अच्छी तरह समझा सकती हो)” बॉस ने मुझसे पूछा।

“It’s ok sir” मैं बोली। हालांकि मुझे आभास था कि मेेेरे साथ क्या होने वाला है लेकिन ऋतेश के सम्मोहन में बंधी हां कर बैठी। शाम को पूर्व निर्धारित समय के अनुसार 6:00 बजे मैं ने, हमारी मीटिंग में हमने जो निर्णय किया था, उसकी फाईल ले कर होटल राज के कमरा नं 5 (जैसा कि उन्होंने बताया था) के दरवाजे पर दस्तक दी। तुरंत ही दरवाजा खुला और ऋतेश ने, जो कि पजामे और कुर्ते में था, मुझे देखकर अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत किया और सामने सोफे की ओर इंगित करते हुए बैठने का आग्रह किया। उसकी भेदती नजरों ने मेेेरे दिल की धड़कन बढ़ा दी। मैं धड़कते दिल के साथ सोफे पर बैठ गई। कमरे में मुझे ऋतेश अकेला ही दिखा। मेेेरे अंदर आते ही ऋतेश ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। अभी मैं सोफे पर बैठी ही थी कि ऋतेश भी आ कर मेेेरे बगल में बैठ गया और मेरे हाथों से फाईल ले कर देखने लगा। मैं योजना की रूपरेखा के बारे में बताती गई जिसे ऋतेश सुनता जा रहा था और बीच बीच में सवाल भी करता जा रहा था। मैं उसके हरेक सवाल का जवाब देती गई और अंततः ऋतेश संतुष्ट हुआ। इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई और दरवाजा खुलने पर रूपचंद जी का चौखटा नजर आया।

“ऋतेश, तूने सब कुछ देख लिया ना?” आते ही रूपचंद जी ने सवाल किया।

“हां सर, वैसे तो इनकी योजना काफी प्रभावशाली है, देखते हैं योजना की अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” ऋतेश ने कहा।

“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें इसकी रूपरेखा ही दिखा दे।” अभी रूपचंद जी की बात खत्म हुई ही थी कि ऋतेश बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल मशीनी अंदाज में। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।

“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए बोली।

“छोड़ देंगे मेरी जान, लेकिन पहले तेरी रूपरेखा तो देख लें। रूपरेखा देखने के बाद तेरी जवानी का रस भी चख लें। देखें तो तू हमें खुश कर सकती है कि नहीं।” कहते हुए रूपचंद जी का भोंड़ा चेहरा और भी वीभत्स हो उठा।

“देखिए मैं उस तरह की औरत नहीं हूं। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर ऋतेश की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।

“बंद कर अपनी बकवास। हमें खूब पता है तू किस किस्म की औरत है। ऑफिस में ही हमने तेरी हालत देख ली थी साली छिनाल। खुशी खुशी मान जा वरना वैसे भी तू यहां से बिना चुदे तो जाने से रही।” रूपचंद जी अब खुंखार हो उठे थे। ऋतेश तो लगा हुआ था मुझे हर तरह से उत्तेजित करने के लिए। वह मुझे चूमते हुए ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरे उरोजों को मसलना चालू कर दिया था।

आगे की घटना अगली कड़ी में।

तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
Reply
11-27-2020, 11:07 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि अपने क्लाईंट्स के साथ डील फाईनल करते करते किस तरह क्लाईंट्स की कामपिपासा शांत करने में भी महारत हासिल करती जा रही थी। इसी दौरान टाटानगर के व्यवसायी कुरूप और बदशक्ल रूपचंद और ज्ञानचंद के चंगुल में जा फंसी जो रूप के रसिया और विकृत सेक्स के दीवाने थे। उनके सहयोगी हिजड़े ऋतेश के आकर्षण में बंध कर इन कामलोलुप दरिंदों के जाल में मैं फंस चुकी थी। ऋतेश जहां मुझे अपनी मजबूत बांहों में जकड़े हुए कपड़ों के ऊपर से ही मेरे अंग प्रत्यंग से खिलवाड़ करता जा रहा था वहीं रूपचंद जी सामने बेड पर बैठ कर ऋतेश का उत्साह वर्धन कर रहे थे। “अच्छी तरह से गरम कर साली को ऋतेश, फिर इसे ऐसे चोदेंगे कि यह भी क्या याद करेगी।”

“आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मां, छोड़िए ना मुझे प्लीज। देखिए मुझे खराब मत कीजिए, मैं आप लोगों के पांव पड़ती हूं। मैं बरबाद हो जाऊंगी। प्लीज मुझे जाने दीजिए।” मैं अब तक गरम हो चुकी थी लेकिन मुझे भी शराफत का ढोंग तो करना ही था। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी थी और पैंटी योनी के लसलसे द्रव्य से भीग चुकी थी। मेरे उरोज उत्तेजना के मारे सख्त हो कर तन गए थे।

“तुझे कौन बरबाद कर रहा है पगली। हम तो तुझे आबाद करने की फिराक में हैं। जब से तुझे ऑफिस में देखा है, तेरी इस खूबसूरत काया से खेलने के लिए तड़प रहे हैं। जल्दी उतार इसके सारे कपड़े ऋतेश। जरा हम भी इसकी जवानी का दीदार कर लें। इसके नंगे जिस्म को देखने के लिए मैं कब से तड़प रहा हूँ। तुझे तो पता है मेरा लंड इतनी जल्दी खड़ा नहीं होता है।” रूपचंद जी उतावले हो कर बोले। इसके बाद ऋतेश को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया मेरे लिए। वह एक आज्ञाकारी गुलाम की तरह आनन फानन में मेरे सारे कपड़ों को केले के छिलके की तरह उतारता चला गया। मैं बनावटी असहाय भाव और बनावटी बेबसी का नाटक करती हुई छटपटाती रही और एक एक करके मेरा ब्लाऊज, ब्रा, स्कर्ट, पैंटी, सब मेरे तन का साथ छोड़ते चले गए और यह सब कुछ हो रहा था सिर्फ ऋतेश के आकर्षण में। अब मैं पूर्ण रूप से नंगी हो चुकी थी। अब ऋतेश मुझे और अधिक उत्तेजित करने के लिए मेेेरे होठों को चूमने लगा, मेरे मुह में अपनी जीभ डालकर चुभलाने लगा। उसके मजबूत पंजे मेरे उरोजों को सहला रहे थे, हल्के हल्के दबा रहे थे। मेरा विरोध फिर भी जारी था लेकिन ऋतेश भी माहिर खिलाड़ी था, उसे आभास हो गया था कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं क्योंकि अनजाने में उत्तेजना के आवेग में मैं ऋतेश के जीभ को चूसने लग गई थी। इधर मेरे मदमस्त नंगे जिस्म को देख कर दोनों की आंखें फटी की फटी रह गयीं। धीरे धीरे ऋतेश का एक हाथ मेरी योनी तक पहुंच गया और अपनी हथेली से मेरी योनी को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां मेरी योनी के भगांकुर को छेड़ने लगीं तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी वासना की भूख अपने चरम पर पहुंच गई, कामुकता की तरंगें मेरे शरीर में बिजली बन कर दौड़ने लगीं। मैं तो पागल ही हो गई थी। मेरी आंखें बंद हो गयी थीं।

“आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, मार ही डालोगे क्या? अब …..” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।
Reply
11-27-2020, 11:07 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि रूपचंद जी बोल पड़े, “अब क्या? तू तो अभी से मरने की बात कर रही है, पहले मेरा लौड़ा खड़ा तो होने दे फिर दिखाता हूं तुझे चुदाई का जलवा। ले साली मेरा लंड अपने मुह में और चूस चूस कर खड़ा कर दे।” इतनी देर में रूपचंद पूरे निर्वस्त्र हो कर कब हमारे पास आ पहुंचे थे मुझे पता ही नहीं चला। मैं ने चौंक कर सामने देखा, उनका जिस्म उनके चेहरे की तरह ही बेढब और बेडौल था। ठिंगना होने के साथ ही साथ विकराल तोंद और पूरा शरीर रीछ की तरह बालों से भरा हुआ। जहां ऋतेश के गठे हुए कसरती शरीर और उसके मजबूत बांहों के बंधन में मुझे अद्वितीय सुख का अहसास हो रहा था वहीं रूपचंद के नग्न शरीर को देखकर किसी का भी मन वितृष्णा से भर जाता, किंतु मेरी स्थिति ऋतेश ने ऐसी कर दी थी कि अब मैं सिर्फ पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी। वह पुरुष, कैसा है, मोटा, पतला, सुंदर, कुरूप, बेढब या लंगड़ा लूला, मुझे परवाह नहीं था। सामने से रूपचंद का लिंग सोई हुई अवस्था में ही करीब छ: इंच लंबा झूल रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप सोया हुआ है और उसके ऊपर झुर्रियों भरा चमड़े का आवरण ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ने वाला हो। उनका अंडकोश भी काफी बड़ा था करीब आधा किलो के जैसा। इसके विपरीत ऋतेश अब तक पूरे वस्त्रों में था। वह मेेेरे साथ जो कुछ कर रहा था वह बिल्कुल मशीनी अंदाज में था, बिल्कुल भावहीन, एकदम किसी हुक्म के गुलाम रोबोट की तरह। अब मुझे ऋतेश से खीझ होने लगी थी। इतनी देर में तो कोई भी पुरुष अपना संयम खो कर मेरी मदमाती काया पर टूट पड़ता। पता नहीं किस मिट्टी का बना था वह, मर्द भी था कि नहीं। तब उस समय ऋतेश के आश्चर्य का पारावार न रहा जब उतावलेपन में मैं ने एक झटके से अपने को उसके मजबूत बंधन से आजाद किया और किसी भूखी कुतिया की तरह रूपचंद जी के सोये हुए छ: इंच लिंग पर टूट पड़ी और गप्प से अपने मुंह में ले लिया। फिर मैं लग गई जी जान से उनके लिंग को चपाचप चूसने ताकि वह जल्द से जल्द खड़ा हो सके और मेरी प्यासी योनी की धधकती ज्वाला को बुझा सके।

मेरे उतावलेपन को देख कर रूपचंद जी खुशी के मारे बोले, “वाह रे साली सती सावित्री की औलाद, आ गई ना रास्ते में। साली शरीफ औरत की चूत। चूस मेरा लौड़ा, मजे से चूस, फिर मैं दिखाता हूँ तुझे इस लौड़े का कमाल। आह ओह कितनी मस्त है रे तू। सच में तुझे चोदने में बड़ा ही मजा आएगा” कहते हुए एक हाथ से मेरी चूचियां सहलाने लगे और दूसरे हाथ से मेरे गुदाज चिकने नितंबों को सहलाने लगे। करीब दो मिनट बाद ही मैंने महसूस किया कि रूपचंद जी का लिंग सख्त हो रहा है, बड़ा हो रहा है, लंबा हो रहा है और मोटा भी। अगले एक मिनट बाद तो मैं उनके लिंग को मुंह में रखने में असमर्थ हो गई। जैसे ही मैं ने उनके लिंग को चूसना छोड़ कर मुह से निकाला मैं चौंक उठी। हे भगवान! इतना भयावह और दहशतनाक मंजर था। मेरे चेहरे के सामने करीब साढ़े ग्यारह इंच लंबा और करीब चार इंच मोटा किसी काले सांप की तरह फनफनाता रूपचंद जी का अमानवीय लिंग मेरे मुह के लार से लिथड़ा, अपने पूरे जलाल के साथ झूम रहा था। कोई कितनी भी बड़ी छिनाल हो, ऐसे लिंग का दीदार ही काफी था भयभीत करने के लिए। मैं कोई अपवाद तो थी नहीं, उस दहशतनाक मंजर को देख कर मेरी भी घिग्घी बंध गई।

“हाय राम, इत्ता बड़ा!” मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा। मैं दो कदम पीछे हट गई।

“डर मत पगली, बाकी औरतों की बात और है, मेरा लंड देख कर ही भाग जाती हैं। जिन्हें मैं ने चोदा, उनकी चूत फट गई, फिर कभी मेेेरे पास दुबारा नहीं आई कोई। मगर तू घबरा मत, तुझमें दम है। तेरी चूत ठीक मेरे लौड़े के लिए ही बनी है। तेरे जैसी चूत को मेरे जैसे लौड़े की ही जरूरत है। तू एक बार चुद के देख, कसम से बार बार चुदवाना चाहोगी।” रूपचंद जी मुझे डरा रहे थे कि हौसला बढ़ा रहे थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

“नहीं नहीं प्लीज मैं मर जाऊंगी।” मैं घबरा कर बोली।
Reply
11-27-2020, 11:08 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
तभी, “चल साली कुतिया, सामने जा रूपचंद जी के, खूब मजा करेगी” कहते हुए अचानक पीछे से ऋतेश ने मुझे एक धक्का दिया और मैं अपना संतुलन खो कर सामने गिरने लगी कि रूपचंद जी ने मुझे थाम लिया।

मैं ऋतेश पर विफर पड़ी, “साले नामर्द, खाली औरत को गरम करना जानते हो। मर्द हो खाली देखने में ही। मुझ पर ताकत दिखा रहे हो हिजड़े कहीं के।”

“अरे उस पर क्यों बिगड़ती हो मेरी जान, वह सही में हिजड़ा है। हट्ठा कट्ठा खूबसूरत हिजड़ा। मेरे लिए माल पटाता है। जिस दिन कोई माल नहीं मिला उस दिन मैं उसकी गांड़ चोद कर काम चला लेता हूँ। तुम औरतों से बढ़िया गांड़ है इसका। लंड भी बहुत बढ़िया चूसता है साला। अभी देख लेना, जब मेरा भाई आएगा तब इसकी करामात।” रूपचंद जी मुझे सख्ती से थामे हूए मुझे बोल ही रहे थे कि कॉल बेल बज उठा। ऋतेश तपाक से दरवाजे की ओर लपका। कुछ ही पलों में मेरे सामने एक और रूपचंद खड़ा मुस्कुरा रहा था। दो दो रूपचंद। कद में रूपचंद जी से थोड़ा कम करीब सवा चार फुट का था, चेहरे की बनावट एक ही तरह की थी किंतु रंग बिल्कुल काला। हां उनके चेहरे पर रूपचंद जी की तरह चेचक का दाग नहीं था। मैं हैरान, अवाक देखती रह गई।

“वाह भाई, इतना मस्त माल मिली कहाँ से? लगता है आसमान से कोई हूर उतर आई हो।” ज्ञानचंद बोला। बोलने का अंदाज भी रूपचंद की तरह ही था।

“किस्मत से भाई किस्मत से। आजा भाई तू भी शामिल हो जा। कामिनी मेरी जान, यह है मेरा जुड़वा भाई ज्ञानचंद। यूं ताज्जुब से मत देख। हम दोनों भाई जिस तरह से बिजनेस पार्टनर हैं उसी तरह कोई भी चीज हम दोनों भाई मिल बांट कर खाते हैं। आज भी हम दोनों भाई मिलकर तुझे जन्नत की सैर कराएंगे।” रूपचंद जी मुस्कुराते हुए बोले। ज्ञानचंद अपने भाई का आमंत्रण भला कैसे ठुकरा सकता था। उसका स्वभाव अपने भाई से अलग थोड़ी ही था। उसका मुझे देखने का अंदाज ठीक अपने भाई की तरह ही था, आंखों में वही वासना की भूख, शिकारी कुत्ते की तरह आंखों में चमक, मुह से लार टपकती। आनन फानन में वह भी मादरजात नंगा हो गया। ओह भगवान, बदन बिल्कुल अपने भाई की तरह गोल मटोल, रीछ की तरह बालों से भरा हुआ। लिंग का आकर प्रकार एक जैसा। ऋतेश के चक्कर में कहाँ फंस गई मैं। दो गोलमटोल बौने चुदक्कड़। मन ही मन भगवान से दुआ मांग रही थी कि मुझे इतनी शक्ति दे कि मैं इन कामुक भेड़ियों को झेल सकूं। भगवान मेरी आर्त निवेदन क्यों सुनते भला, वे भी, लगता है, आज मेरी दुर्दशा अपनी आंखों से दीदार को ललायित थे। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था। इन दोनों की आंखों में मैं ने वहशीपन को स्पष्ट पढ़ लिया था। लेकिन अब तो मेरा सिर ओखल में जा चुका था और मूसल का प्रहार बाकी था।

ज्ञानचंद भी ठीक मेरे सामने आ खड़ा हुआ और अपने 6″ लंबे सोए हुए सांप की तरह झूलते काले लिंग को मेरे मुह के पास ला कर बोला, “चल री लौंडिया, चूस मेरा लौड़ा, खड़ा कर दे इसे भी मेरे भाई की तरह।” पता नहीं मुझे क्या हो गया था उस वक्त, शायद पुरुष संसर्ग की पुरजोर तलब का ही थी कि मैं ने आव देखा न ताव, हिम्मत बांधा और लपक कर ज्ञानचंद जी का भी लिंग अपने मुह में ले कर गपागप चूसने लग गई। मेरी बेताबी देख कर रूपचंद जी ठहाका मार कर हंसने लगे।
Reply
11-27-2020, 11:08 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“साली कुतिया कुछ देर पहले कैसे कह रही थी मर जाऊंगी, अब देख कैसे गपागप ज्ञान का लंड चूस रही है। चल ऋतेश तू भी आ जा और जब तक यह लौंडिया ज्ञान का लौड़ा चूस कर खड़ा करती है तबतक तू भी मेरा लौड़ा चूसता रह, लेकिन पहले तू भी अपने कपड़े उतार ले गांडू।” रूपचंद जी बोले। आज्ञाकारी गुलाम की तरह ऋतेश आनन फानन में नंगा हो गया। गोरा चिट्टा, हृष्टपुष्ट शरीर वाला ऋतेश सचमुच में हिजड़ा ही था। सीना आम पुरुषों की तुलना में कुछ अधिक ही उभरा हुआ। ऐसा लग रहा था मानो किसी जवान होती लड़की की अर्द्धविकसित चूचियां हों। उसका लिंग था ही नहीं, सिर्फ एक छेद नजर आ रहा था जो मूत्र विसर्जन का मार्ग था। अंडकोश नदारद। लेकिन उसके नितंब! ओह बेहद खूबसूरत, गोल गोल और चिकने। पूरे शरीर में एक भी बाल नहीं था। सच ही कहा था रूपचंद जी ने, उसके शरीर को देख कर और खास कर उसके नितंबों की खूबसूरती देख कर लड़कियां भी शर्मा जाएं। वह भी किसी रोबोट की तरह रूपचंद जी का विशाल लिंग को हाथों में ले कर किसी लॉलीपॉप की तरह चाटने और चूसने लगा। अजीब समां था। इधर मैं ज्ञानचंद के लिंग को चूस चूस कर लिंग में तनाव लाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी और उधर ऋतेश रूपचंद जी के लिंग को चाटने चूसने में लिप्त था। कुछ ही मिनटों में ज्ञानचंद का लिंग भी अपने भाई की तरह ही तनतना उठा। उफ्फ्फ, कितना भयानक था वह मंजर। अपने भाई के लिंग से थोड़ा छोटा, करीब करीब ग्यारह इंच का और वैसा ही मोटा। अब मैं सचमुच में दहशत में थी। ये जालिम तो आज मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ थी।

आगे की कहानी अगली कड़ी में।
Reply
11-27-2020, 11:08 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
कामिनी,.gif पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं ऋतेश के आकर्षण में बंधी डील फाईनल करने होटल में गयी और ठिंगने, कुरूप, बदशक्ल व्यवसायी रूपचंद और ज्ञानचंद जैसे कामुक भेड़ियों के हत्थे चढ़ी। वे मेरे नग्न शरीर को स्वछंद तरीके से भोगने के लिए बेकरार थे। अब आगे:-

तभी रूपचंद जी की आवाज आई, “ले चल ज्ञान इसे बिस्तर पर, फिर हम इसके साथ खेलते हैं खुला खेल फरुक्काबादी। पहले तू खेल ले फिर मैं आता हूँ मैदाने जंग में। आह्ह्ह्ह्ह साले ऋतेश, ओह्ह्ह्ह मेरी जान उफ्फ्फ, तेरी इसी अदा पर तो फिदा हूँ साले गांडू। ओह ऋतेश मजा आ रहा है आह आह, बस अब बस कर, अभी इस कुतिया को चोदने दे, फिर तेरी चिकनी गांड़ की भूख भी मिटा दूंगा।”

ऋतेश के चूसने का अंदाज था ही गजब। रूपचंद का लिंग अब गधे के लिंग की तरह अपने पूरे शबाब पर था, बेहद भयावह। वे बेहद उतावली में मेरी ओर बढ़े, बिस्तर की ओर, जहां अबतक ज्ञानचंद ने मुझे एक झटके में अपनी गोद में उठा कर ला पटका था। ठिंगना आदमी मुझ जैसी लंबी स्त्री को इतनी आसानी से उठा लेगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। काफी मजबूत थीं उसकी बाजुएं। मुझे किसी गुड़िया की तरह कितनी आसानी से उठा कर बिस्तर पर ला पटका। मैं उसकी दानवी शक्ति पर अचंभित रह गई। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, ज्ञानचंद ने सीधे मुझे चित लिटा दिया और मेरे पेट के दोनों तरफ घुटनों के बल पैर रख कर मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया और मुझे चूमने लगा। मेरे होंठों को अपने थूथन में ले कर चूसने लगा। मेरे तने हुए उन्नत उरोजों को अपनी सख्त हथेलियों से बड़ी बेरहमी से मसलने लगा। “वाह, कितनी टाईट चूची है रे इस लौंडिया की, मैं तो पहले इसकी चूचियों को ही चोदूंगा।” वह बोला। दर्द के मारे मेरा बुरा हाल होने लगा। मैं चीखना चाहती थी मगर मेरा मुह उसके थूथन से बंद था, सिर्फ गों गों की घुटी घुटी आवाज मेरे हलक से निकल रही थी। उसका विशाल लिंग मेरे दोनों उरोजों के बीच आ चुका था। मैं छटपटा रही थी लेकिन उसने मुझे इस कदर बेबस कर दिया था कि मैं सिर्फ पैर पटकती रह गई। इससे पहले कि मैं समझ पाती कि चूचियों को चोदने का क्या तात्पर्य है, ज्ञानचंद ने मेरे दोनों उरोजों को सख्ती से पकड़ कर आपस में सटा दिया और अपना भीमकाय बेलन सरीखा लिंग दोनों उरोजों के बीच की घाटी में पूरी ताकत से ठेलने लगा। गनीमत था कि उसका लिंग मेरे थूक से लिथड़ा हुआ था, सर्र से दूसरी ओर पार हो गया और मेरी ठुड्ढी को छूने लगा। मेरे मुह के लार से लिथड़े होने के बावजूद मुझे पीड़ा का आभास हो रहा था क्योंकि एक तो उसने बड़ी जोर से दोनों उरोजों को आपस में सटा रखा था, दूसरे उसके इतने मोटे लिंग को उस संकरी घाटी में जबरदस्ती घुसाने का प्रयास।

“आह मेरी जान, ऐसी बड़ी बड़ी और सख्त चूचियों को चोदने का मजा ही कुछ और है। हुम्म्म हुम्म्म आह्ह्ह्ह्ह ओह” ज्ञानचंद मस्ती में भर कर बोला। अभी यह हमला ही मानो काफी नहीं था, रूपचंद अपने भाई ज्ञानचंद के पीछे उछल कर आ गया और मेरे दोनों पैरों को उठा दिया। मेरे दोनों पैरों को अपने कंधों पर चढ़ा लिया। फिर उसने मेरे आव देखा न ताव, तपाक से मेरी पनिया उठी फकफकाती योनी के द्वार पर अपना दानवी हथियार सटा दिया। ओह, उसके मूसल का स्पर्श ज्यों ही मेरी योनी द्वार पर हुआ, मेरा पूरा शरीर गनगना उठा। कब से तरस रही थी मैं अपनी योनी में पुरुष लिंग के लिए। मेरा दिल इधर धाड़ धाड़ धड़क रहा था इस आशंका में कि उनका इनका विकराल लिंग को मैं अपनी योनी में झेल पाऊंगी कि नहीं। मगर मेरी उत्तेजना अब तक इस कदर बढ़ गई थी कि भय के बावजूद मैंने अपनी प्यासी योनी को उस जालिम भेड़िये के सम्मुख समर्पित कर दिया। भय मिश्रित रोमांच का अद्भुत अनुभव कर रही थी मैं। ज्ञानचंद ने जैसे ही अपने थूथन से मेरे होंठों को मुक्त किया, मैं, सिसिया उठी, “इस्स्स्स्स आह्ह्ह्ह्ह”।
Reply
11-27-2020, 11:08 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
थ्रीसम.gif तभी, “ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में, हुम्म्म्म्मा्ह्ह्ह्ह,” कहते हुए रूपचंद जी ने किसी निर्दयी कसाई की तरह अपने लिंंग का भीषण प्रहार मेरी योनी में कर दिया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह्, मर गई मैं, ओह्ह्ह्ह मां, फाड़ दिया मादरचोद,” मैं चीख पड़ी। एक ही करारे प्रहार से रूपचंद जी ने करीब एक तिहाई लिंग मेरी योनी में घोंप दिया था। उफ्फ्फ, उनका मोटा लिंग मेरी योनी को अपनी सीमा से भी ज्यादा फैला कर किसी कसाई के खंजर की तरह ऐसा घुसा कि मेरी हालत हलाल होती बकरी की तरह हो गई। मैं छटपटा भी नहीं पा रही थी। दोनों भाईयों ने मुझे इतनी कुशलता के साथ बेबस कर रखा था कि मैं हिलने से भी मजबूर थी।

“निकाल साले कुत्ते अपने लंड को, आह, मार ही डालिएगा क्या। ओह मा्म्म्म्म्आं्आ्आ्आं।” मैं लगातार चीखती जा रही थी। मेरी सारी उत्तेजना हवा हो गई थी। अकथनीय पीड़ा से दो चार हो रही थी मैं।

“चुप साली बुरचोदी, ड्रामा मत कर हरामजादी, ले मेरा लौड़ा थोड़ा और हुम्म्म्म्म्म्म” एक और करारा प्रहार कर दिया उस कमीने ने। उफ्फ्फ, ऐसा लग रहा था उनका लंड सीधा मेरी बच्चेदानी तक पहुंच गया हो। अब मैं पूरी तरह बेबस हो गई। मुझे हिलने में भी कष्ट हो रहा था। हिलने की कोशिश में मैं और अधिक दर्द का अनुभव कर रही थी अतः मुझे समझ आ गया था कि शांत रह कर चुदने में ही मेरी भलाई है।

करीब दस इंच लिंग मेरी योनी के अंदर प्रवेश कर चुका था। मैं दांत भींच कर अपनी पूरी सहन शक्ति को एकत्रित करके तत्पर हो गई थी उनके लिंग को अपनी योनी में समाहित करने के लिए। अब रूपचंद जी धीरे धीरे लिंग बाहर निकालने लगे। करीब दो इंच निकाल कर दुबारा गच्च से अंदर घुसा दिया कमीने ने। यह क्रम तीन चार बार दुहराता गया और तब मेरे आश्चर्य का पारावार न रहा जब मुझे अहसास हुआ कि उनका पूरा का पूरा लिंग मेरी योनी के अंदर समा गया। आरंभ का वह अकथनीय दर्द धीरे धीरे कम होता जा रहा था और करीब दो मिनट बाद तो उस पीड़ा का स्थान अद्वितीय आनंद ने ले लिया। उफ्फ्फ वह अहसास। उनका लिंग मेरे गर्भ का द्वार खोल कर गर्भगृह में खलबली मचा रहा था। मेरी योनी से गर्भगृह तक का संकरा मार्ग उनके विकराल लिंग से बड़ी सख्ती से चिपक कर मुझे अखंड आनंद से सराबोर कर रहा था। बेसाख्ता मेरे मुह से आनंदमयी सिसकारियां निकलने लगीं, “आह ओह्ह्ह्ह इस्स्स्स्स, मां, ओह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह,”।

“भैया, इस रंडी को अब मजा आ रहा है। देख कैसे सिसकारियां मार रही है साली कुतिया।” ज्ञानचंद बोला।

“मुझे पता है। इस हरामजादी की चूत देखकर ही मैं समझ गया था कि यह हमारा लौड़ा आराम से ले लेगी। हमारी तो किस्मत खुल गई रे ऐसी लौंडिया चोदने को मिली है। क्यों री छमिया, मजा आ रहा है ना? खूब नखरे कर रही थी।” रूपचंद जी की आवाज आई। अब वे चोदने की अपनी रफ्तार बढ़ा चुके थे। गचागच लगे चोदने।”हुम्म्म हुम्म्म हुम्म्म हुम्म्म आह ओह”

उत्तेजना और आनंद की पराकाष्ठा थी वह, जब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ। “आह्ह्ह्ह्ह मैं गई राजा” एक दीर्घ निश्वास के साथ मेरा पूरा शरीर थर्रा उठा और मैं उसी वक्त खल्लास होने लगी। मैंने ज्ञानचंद के मोटे शरीर को कस के जकड़ लिया और झड़ गई। ज्ञानचंद मुस्कुरा उठा और मेरे होंठों को फिर से अपने थूथन से चूमने लगा और मेरे उरोजों को जकड़े हुए दनादन चोदने में मशगूल हो गया। मेरे स्खलन का अहसास रूपचंद जी को भी हो गया था, वे गचागच मेरी योनी की कुटाई अपने मूसल से करते रहे। नतीजा यह हुआ कि मैं दुबारा उत्तेजित हो कर इस सम्मिलित अजीबोगरीब संभोग का आनंद लेने लगी। अंततः करीब पंद्रह मिनट बाद सर्वप्रथम ज्ञानचंद के लिंग से फचफचा कर गरमागरम वीर्य निकलना शुरू हुआ। बिना कोई मौका गंवाए उसने वीर्य उगलते अपने लिंग को मेरे मुह में ठूंस दिया। यह वही आनंदमय पल था जब मैं दुबारा स्खलित होने लगी और उस आनंद के आवेग में मैं ज्ञानचंद का पूरा नमकीन, कसैला व प्रोटीनयुक्त वीर्य अपनी हलक में उतारती चली गई। इधर ज्ञानचंद झड़ कर निवृत हुआ उधर मैं झड़ कर निढाल हुई। ज्ञानचंद ने ज्यों ही मुझे छोडा़, रूपचंद जी को पूरी आजादी मिल गई।
Reply
11-27-2020, 11:08 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
3A8AB76.gif “चल मेरी रानी अब मैं दिखाता हूँ तुझे मेरे लंड का जलवा,” कहते हुए ज्ञानचंद जी अपनी पूरी शक्ति से मेरे ढीले पड़ते शरीर को अपनी मजबूत बाजुओं में दबोच कर धाड़ धाड़ चोदने लगे। इसका परिणाम वही हुआ, मेरे ढीले पड़ते शरीर में पुनः नवजीवन का संचार हो गया। अब मैं भी बेशर्मी में उतर आई और उनके मोटे कमर को अपनी लंबी टांगों से लपेट लिया और अपनी कमर उचका उचका कर खूब मस्ती से चुदवाने लगी। “आह्ह्ह्ह्ह राजा, ओह मेरे रूप, ओह्ह्ह्ह साले हरामी मादरचोद, चोद साले कुत्ते, चोद मुझे जी भर के, रंडी बना दे, कुत्ती बना दे, ओह्ह्ह्ह मार डाल राजा््जजा्आ्आ्आ्आह……” और न जाने क्या क्या बकती जा रही थी मैं पागलों की तरह।

ज्ञानचंद एक बार खलास हो कर वहां से हटा जरूर था, किंतु उसने ऋतेश को अपनी ओर बुलाया और कहा, “चल ऋतेश तू मेरा लौड़ा चूस। चूस चूस कर दुबारा खड़ा कर।” ऋतेश किसी आज्ञाकारी गुलाम की तरह अब ज्ञानचंद का लिंग चूसने लग गया। पता नहीं क्या इरादा था उसका। शायद इस बार ऋतेश के साथ ही गुदा मैथुन का आनंद लेना चाहता हो। खैर मुझे उससे क्या, मैं तो इस वक्त रूपचंद जी की भीषण चुदाई के आनंद में डूबी जा रही थी।

“आह आह बड़ी मस्त है रे तू हरामजादी। अह अह तेरे जैसी लौंडिया जिंदगी में पहली बार मिली है चोदने को। तुझे सच में हम दोनों भाई भूल नहीं पाएंगे। ओह्ह्ह्ह रानी तेरी चूत चोदने में स्वर्ग का सुख है। चल तुझे कुतिया ही बना लेता हूँ,” कहते हुए मुझे कुतिया की तरह ही पलट दिया और पीछे से मुझ पर सवार हो गया। उसके बाद उसने मेरी ज्ञान चंद के मोटे लंड से चुद चुद कर लाल और फूली हुई चूचियों को बेदर्दी के साथ मसलते हुए करीब और दस मिनट तक चोदता रहा। गजब की स्तंभन क्षमता थी उसकी। करीब आधा घंटा तक चोदने के बाद जाकर उनका झड़ना शुरू हुआ। “आह्ह्ह्ह्ह मेरी रानी ओह्ह्ह्ह इस्स्स्स्स,” करीब एक मिनट तक झड़ते रहे।

पूरी शक्ति से मेरी चूचियों को दबोच रखा था कमीने ने, लेकिन उसी वक्त मैं भी तीसरी बार स्खलन के सुख में डूबी अपने होशोहवास में नहीं थी, “आह्ह्ह्ह्ह राज्ज्ज्ज्जा, मैं गयी््य््य््यय्ईई््ईई््ईई”। पूरा बच्चादानी भर दिया था शायद उस ठिंगने चुदक्कड़ ने। जब रूपचंद जी मुझे चोद कर बिस्तर पर ही लुढ़क गये तो मैं भी थक कर चूर पसीने से तरबतर वहीं लुढ़क गयी। उनका लिंग सिकुड़ कर छ: इंच का हो गया था। मेरी योनी से अभी भी उनका वीर्य रिस रिस कर बाहर निकल रहा था और बिस्तर गीला होता जा रहा था। रूपचंद जी किसी सूअर की तरह निढाल पड़े लंबी लंबी सांसें ले रहे थे और मैं चुद निचुड़ कर लस्त पस्त निर्जीव प्राणी की भांति पेट के बल ही पड़ी हुई थी। मेरी योनी का तो मानो भुर्ता ही बना डाला था कमीने ने। फूल कर कचौड़ी बन गई थी मेरी योनी। मीठा मीठा दर्द भर दिया था रूप चंद जी ने। मेरी चूचियों को इस बेदर्दी से शायद पहली बार नोच खसोट से गुजरना पड़ा था। लाल हो गयीं थीं दोनों चूचियां। शायद सूज भी गई थीं। पूरे शरीर को मानो तोड़ कर रख दिया हो, ऐसा महसूस हो रहा था।

तभी मैंने अर्द्धचेतन अवस्था में अपने चिकने नितंबों पर किसी के हाथों के स्पर्श को महसूस किया। मैं चौंक कर छिटकना चाहती थी, किंतु मेरा थका मांदा शरीर मेरे इरादे का साथ देने में पूरी तरह सक्षम नहीं था। मैं पलटना चाहती थी, लेकिन पूरी तरह पलट नहीं पाई। किसी तरह कमर से ऊपर के हिस्से और गर्दन को घुमा कर देखा तो पाया कि ज्ञान चंद दुबारा मुझ पर चढ़ाई करने को तत्पर था। जब तक मैं कुछ समझ पाती, ज्ञान चंद ने मेरी कमर को अपने मजबूत हाथों से कस कर पकड़ा और मेरे नितंबों के फांक में अपना थूथन भिड़ा दिया। कुछ पल मेरे नितंबों को चाटा फिर मेरे गुदा द्वार को पागलों की तरह चपाचप चाटने लगा।

“उफ्फ्फ, क्या करते हो, छि:, छोड़ो मुझे” मैं अलसाई सी बोली।
Reply
11-27-2020, 11:08 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
4A2BFAD.gif ज्ञानचंद अपना सर उठाया और बोला, “तेरी गोल गोल चिकनी गांड़ कब से मुझे ललचा रही है रानी। तेरी चूचियां बहुत मस्त थीं, चोदने में बड़ा मजा आया। तेरी गांड़ की खूबसूरती तो गजब ढा रही है। अब बताओ भला, ऐसी गांड़ को बिना चोदे कैसे छोड़ दें।” इतना कह कर दुबारा अपना मुह मेरी गांड़ के छेद पर भिड़ा दिया और पागलों की तरह चाटने लगा। बीच बीच में वह मेरी गांड़ की छेद में भी अपनी लंबी जीभ घुसा घुसा कर चाट रहा था। यह शुरू में बड़ा अटपटा लग रहा था किंतु कुछ ही समय बाद मैं खुद ही छटपटाने लगी। “ओह आह, हाय आह” ये थे मेरे मुह से निकलने वाले उद्गार। मेरे अंतरतम को तरंगित कर रहा था उसका यह घृणित मगर उत्तेजक कार्य। कुछ मिनटों में ही मैं मानो पगला गई थी। “ओह राजा, आह्ह्ह्ह्ह मां, आह डियर, अब चोद भी डालो ना,” मैं उत्तेजना के मारे मानो अपना होश खो बैठी थी। भूल ही गई थी कि उसका लिंग मेरी गुदा का क्या हाल करने वाला है। बस अब और क्या था, ज्ञान आनन फानन में मेरे ऊपर चढ़ गया। दोनों हाथों से मेरी गुदा का फांक खोला और अपना तनतनाया हुआ गधा का लिंग मेरी गुदा द्वार पर रख कर दबाव देने लगा।

उसके लिंग का विशाल सुपाड़ा मेरी गुदा के संकीर्ण मार्ग को फैला कर जैसे जैसे अंदर प्रविष्ट होता गया, “आह्ह्ह्ह्ह मरी रे मरी मैं, ओह्ह्ह्ह धीरे बाबा धीरे हाय फाड़ ही डालोगे क्या ओह मा्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह” दर्द के मारे मैं चीखने लगी।

“चुप कर साली रंडी, अभी बोल रही थी चोद डालो, अभी कुतिया की तरह कांय कांय कर रही है। चुपचाप चोदने दे बुरचोदी। इतनी सुंदर गांड़ को बिना चोदे छोड़ दूं, ऐसा कैसे हो सकता है। ले ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में, आह्ह्ह्ह्ह हुम्म्म्म्म्म्म,” कहते कहते मेरी दर्दाई चूचियों को पीछे से कस के दबोच कर बेरहमी से घुसाता चला गया अपना गधे सरीखा लंड। “ओह कितना टाईट और गरम है रानी तेरी गांड़, उफ्फ्फ ऐसा लग रहा है मेरा लौड़ा किसी संकरी भट्ठी में घुस रहा हो, आह्ह्ह्ह्ह”, कहते कहते धीरे धीरे पूरा का पूरा लिंग मेरी गुदा में जड़ तक उतार दिया हरामी ने। दर्द से मेरा बुरा हाल हो रहा था। मेरी गुदा का हाल अब फटी तब फटी वाली हो रही थी। मैं छटपटाने से भी बेबस थी, इस बुरी तरह से उसने मुझे दबोच रखा था। पीछे हाथ लगाया तो एक बार तो मुझे भी यकीन नहीं हो रहा था। उसके लिंग का एक सेंटी मीटर भी बाहर नहीं था। मलद्वार में ऐसा लग रहा था मानो किसी ने खंजर से चीर दिया हो। अंदर ऐसा लग रहा था मानो उसके लिंग का अगला भाग मेरी अंतड़ियों को फाड़ ही डालेगा।

“निकाल मादरचोद अपना लंड, आह्ह्ह्ह्ह साले कुत्ते की औलाद,” पीड़ा की अधीकता से मैं चीख पड़ी। मैं सिर्फ चीख ही सकती थी, हिलने डुलने में मुझे असमर्थ कर दिया था उस ठिंगने पहलवान ने।

“चूऊ्ऊऊ््ऊऊप्प्प्प्प्प्प छिना्आ्आ्आ्आल, पूरा लौड़ा तो खा ही ली, अपनी गांड़ में, अब काहे चिल्लाती हो।” मेरी चूचियों को पूरी ताकत से भींचते हुए बेहद खौफनाक आवाज में ज्ञान चंद बोला। अब उसकी वहशियत खुल कर सामने आ चुकी थी। मेरा चीखना चिल्लाना बेमानी था। जो हो रहा था उसे रोक पाना मेरे वश में नहीं था। चुपचाप गांड़ चुदवाने में ही मेरी भलाई थी। अब उसने मेरी कमर के नीचे से मेरे पेट की तरफ हाथ डालकर एक झटके से उठा कर चौपाया बना दिया और सर्र से आधा लिंग बाहर निकाल कर पुनः सटाक से ठोंक दिया जड़ तक। अब यह क्रम चल निकला। सटासट मेरी गांड़ की संकरी गुफा को अपने मूसल से कूट कूट कर ढीला करने लगा। धीरे धीरे सच में मेरी गांड़ की संकरी गुफा ढीली होने लगी और यह फैल कर बड़ी गुफा में तब्दील हो गई। अब उसका विकराल लिंग अविश्वसनीय रूप से बड़ी सुगमता से मेरी गांड़ के अंदर बाहर हो रहा था। ओह उस घर्षण का आनंद, जो पहले पहल अत्यंत पीड़ा दायक था, अब अद्भुत सुख प्रदान कर रहा था।
Reply
11-27-2020, 11:08 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“आह आह इस इस उफ ओह चोद राजा ओह चोदू, आह मेेेरे गांड़ के रसिया, आह मजा आ रहा है साले बहनचोद,…..” मैं मस्ती में भर गई थी। मेरी चूत में सुरसुरी होने लगी। मैं एक हाथ की उंगली से अपनी चूत रगड़ने लगी।मेरी हालत वहां उपस्थित सभी लोग बड़े मजे से देख रहे थे। अब तक रूपचंद जी का लिंग फिर से जागृत हो कर फनफना उठा था। वे भी पुनः कूद पड़े इस मैदाने जंग में। वे घुस गये मेरे नीचे से, मेरे हाथ को मेरी चूत से हटाया और अपने फनफनाते लंड को मेरी चूत मेंं टिका कर बिना किसी कष्ट के सटाक से एक ही बार में चूत के अंदर कर दिया। “आह मेरी जान, तेरी चूत स्वर्ग का द्वार है। ओह्ह्ह्ह जितनी बार भी चोदो, साला मन ही नहीं भरता। ले मेरा लौड़ा आह” कहते हुए भिड़ गये गपागप चोदने। मेरी चूचियों को बारी बारी से कभी चूसते कभी हाथों से दबाते और कभी मेरे निप्पल्स को दांतों से हल्के से काट लेते थे।

“उई मां, दर्द होता है, आह,” मैं चीख पड़ती। मगर उस वक्त मेरी सुनने वाला कौन था वहां। नीचे से रूप चंद जी ऊपर से ज्ञानचंद, दो ठिंगने राक्षस, लगे हुए थे मुझे भंभोड़ने, नोचने, चोदने। उनकी जालिमाना हरकतों से अब मुझे दर्द के साथ साथ जो मजा मिल रहा था वह अवर्णनीय था। दर्द मिश्रित आनंद, अद्वितीय आनंद, जिसमें मैं डूबती उतराती चुदती जा रही थी।

“आह्ह्ह्ह्ह मेरे चुदक्कड़ राजाओ, ओह्ह्ह्ह रूप, आह ज्ञान, हाय हाय रंडी बना दिया ओह मुझे जन्नत की सैर करा रहे हो उफ्फ्फ साले मां के लौड़ों…..” पागल कर दिया था उन दोनों ने। धमाधम उधम मचा दिया था दोनों कामुक भेड़ियों ने।

“साली कुतिया, मां की लौड़ी, अब आ रहा है ना मजा, चूत मरानी….” रूपचंद अपने पूरे वहशी बन चुके थे। चोदते हुए मेरे शरीर को पागलों की तरह नोचते खसोटते रहे।

“भाई, ये तो अब हमारे लंड की हो गयी दीवानी। उफ्फ्फ ऐसा माल फिर कहां मिलेगा। साली कितने मजे से चुदवा रही है। मैं तो इसकी गांड़ और चूचियों का दिवाना हो गया हूं, ओह्ह्ह्ह” ज्ञान चंद भी पागलों की तरह लगा हुआ था मुझे चोदने। मेरे अंदर ऐसा लग रहा था मानो भूचाल आ गया हो। करीब आधे घंटे तक इस बार उन दोनों ने जी भर कर मुझे भोगा। इस आधे घंटे में उन्होंने मिलकर मेरे शरीर का सारा कस बल निकाल दिया था। अविश्वसनीय रूप से इस दर्दनाक चुदाई में भी मैं ने भरपूर आनंद का उपभोग किया। इस दौरान मैं तीन बार झड़ कर बिल्कुल बेजान सी हो गई थी। एक एक करके उन दोनों ने भी अपने मदन रस से मेरी गुदा और योनी को सराबोर कर दिया। मेरे दोनों यौन छिद्रों का तो कचूमर ही निकाल दिया था कमीनों ने। हम तीनों थक कर निढाल उसी बिस्तर पर लस्त पस्त पसर गये थे। तीनों पसीने से तर बतर। कोई भी देखता तो उन्हें विश्वास नहीं होता कि मुझ जैसी कमनीय काया वाली खूबसूरत स्त्री इन बदसूरत ठिंगने सूअरों जैसे गोल मटोल पुरुषों के साथ इस तरह कामलीला कैसे कर सकती है। मगर मैं ही जानती हूं कि इनके साथ संभोग में मैं ने कितना आनंद उठाया था। मेरी चूचियों को इस बुरी तरह से नोचा था कि वे लाल हो गयीं थीं। सूज गयीं थीं। मेरी योनी का तो भोसड़ा ही बना डाला था। ज्ञान का लिंग जब मेरी गुदा से बाहर आ रहा था तो ऐसा लग रहा था मानो मेरी अंतड़ियाँ भी बाहर निकल पड़ेंगी। कुल मिलाकर कहूँ तो अपनी कामक्षुधा शांत करते करते मुझे पूरी तरह निचोड़ डाला था उन कमीने भाईयों ने। मैं भी कहां कम कमीनी थी। जीवन में पहली बार ऐसी चुदाई का सामना करना पड़ा था, यादगार चुदाई, यादगार लिंग, अविस्मरणीय दर्द मिश्रित आनंद का अनुभव।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,558,586 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 550,907 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,257,468 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 950,561 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,686,991 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,108,952 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,999,109 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,216,366 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,089,972 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 290,512 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 9 Guest(s)