Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-27-2020, 11:25 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
ओह साली की होंठ है कि चूत, उफ्फ्फ अल्लाह, आह्ह्ह्ह्ह मजा आ रहा है वाह" साहिल खिल उठा मेरी इस अदा से। मैं गिनना भूल गई कि उन तीनों की सम्मिलित चुदाई के दौरान कितनी बार झड़ी। करीब पैंंतालीस मिनट तक तो सरदार नें ही चोदते चोदते मेरी चूत का भोसड़ा बना दिया। वह जब झड़ने लगा तो मुझे इतनी सख्ती से जकड़ा कि मानो मेरी सारी पसलियां कड़कड़ा उठी हों। उसके झड़ने के कुछ पलों पश्चात ही घासीराम भी फचफचा कर मेरी गुदा में ही अपने गरमागरम वीर्य का पिचकारी छोड़ने लगा। जैसे ही सरदार किसी जंगली भालू की तरह मुझे चोद कर हांफते हुए हटा, साहिल ने मोर्चा संभाल लिया। मेरे मुह से अपना लिंग निकाल कल सीधे मेरी चूत मे सट्ट से घुसा दिया। इधर घासी भी मेरी गुदा में अपना मदन रस सींच कर मैदान छोड़ चुका था। अब साहिल पूरी स्वतंत्रता के साथ मेरे शरीर से खिलवाड़ करने लगा। मेरी चूचियों को अपने विशाल पंजों से बीच बीच में भींचते हुए मुझे चीखने के लिए मजबूर करता करता। चोदने के अंतहीन ठापों से मुझे बेहाल कर दिया उसनें। झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। लंबे कद और छरहरे बदन का होने के साथ ही साथ काफी लचीला भी था वह। अलग अलग मुद्राओं में उलट पलट कर, तोड़ मरोड़ कर, मेरी चुदाई किए जा रहा था। उसके खतना किए हुए लिंग का भी असर रहा हो शायद, जो उसकी स्तंभन क्षमता इतनी अधिक थी। पानी पानी कर दिया था मुझे। घासीराम, फिर सरदार, और अब साहिल की अंतहीन चुदाई ने मुझे पूरी तरह निचोड़ कर रख दिया था कितनी बार झड़ती रही पता नहीं। बलराम, श्यामलाल के चक्कर में पड़कर मैं कहां से कहाँ पहुंच गई थी मैं। पूरी रंडी बन गई थी मैं उस रात।
"उफ्फ्फ मेरे चोदू, मार ही डालोगे क्या आज? आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ", मैं अपनी पूरी कोशिश करती रही कि किसी तरह इस चुदक्कड़ जानवर की हवस पूरी करके निजात पाऊं। शायद उसके अल्लाह को मुझ पर तरस आ गया, अंततः, करीब एक घंटे की अथक चुदाई के पश्चात स्खलित हुआ वह कमीना। मैं पूरी तरह नुच चुद कर किसी बेजान गुड़िया की तरह बिस्तर पर फैल गई। वे तीनों मुझे चोदकर बेहद खुश हो रहे थे। मेरे बेजान पड़े शरीर के करीब आ कर पुनः मेरे अंग प्रत्यंग का दीदार कर रहे थे। अपनी किस्मत पर शायद उन्हें भी यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी खूबसूरत चिड़िया का शिकार किया था उन लोगों ने। उस वक्त रात का करीब बारह बज रहा था।

"चल घासीराम, एक एक ग्लास और दारू दे। इस मैडम को भी पिला। थोड़ी जान आ जाएगी इस मैडम के शरीर में भी। साली अभी इतनी रात को कहाँ जाएगी। सवेरा होने में अभी बहुत समय है। तबतक हमलोग और थोड़ी मस्ती करते हैं। ऐसी लौंडिया हमें मिलती कहाँ है।" सरदार मेरे शरीर को लार टपकाती नजरों से देखते हुए बोला।
"नहीं नहीं प्लीज, मर जाऊंगी मैं। बहुत हो गया, अब आज और नहीं।" कांप उठी थी मैं।
"अब तू कुछ न बोल रंडी। हमने देख ली तेरी हिम्मत और ताकत। चुपचाप यह दारू पी और हमारे साथ मस्ती करने के लिए तैयार हो जा। तेरे जैसी खूबसूरत चुदक्कड़ औरत हमें और कभी मिलेगी भी या नहीं पता नहीं। आज तो जिंदगी में पहली बार तू हमारी किस्मत से मिली है। ऐसे कैसे छोड़ दें।" सरदार बोला। मैं समझ गई कि आज बड़ी बुरी फंसी हूं मैं। छुटकारे का कोई और मार्ग नहीं था। फिर मन ही मन सोचने लगी कि चलो झेल ही लिया जाय। आखिर मैं भी एक नंबर की चुदक्कड़ जो ठहरी। वैसे भी कल रविवार है, पूरा दिन आराम ही तो करना है।
"ठीक है बाबा ठीक है, लाओ दारू लाओ हरामियों, थोड़ा मेरे बदन में भी जान आने दो, फिर चोदते रहना मादरचोदो। रंडी तो बना ही दिया साले कमीनो, अब जब चुदना ही है तो खुल के क्यों न चुदूं।" मैं खुल कर एकदम रंडीपन पर उतर आई। घर में हरिया को फोन कर दिया कि रात को मैं नहीं आऊंगी, मैं आवश्यक कार्य में व्यस्त हूँ। तीनों कमीनों की बांछें खिल उठी। उसके बाद उस कमरे में वासना का जो नंगा नाच हुआ, वह सवेरे तक चलता रहा। मुझे चलने फिरने तक भी नहीं छोडा़ कुत्तों ने।
"वाह मैडम, दिल खुश कर दिया आपने, वरना आप जैसी खूबसूरत औरतें हमें तो घास तक नहीं डालतींं। यहां की जवान बूढ़ी गरीब मजदूर औरतों से काम चलाना पड़ता है। आपकी दरियादिली का तहे दिल से शुक्रिया।" मुझे छोड़ते वक्त साहिल बोला। उसकी बातों से ऐसा लग रहा था मानो मैंने उन पर बड़ा उपकार किया हो। बेचारगी भी झलक रही थी उसकी बातों में।
"अरे शुक्रिया मत बोल कमीने, सिर्फ तुमलोग ही मजे नहीं लिए हो, मैं भी तुम लोगों के साथ साथ खूब मजा ली हूं। गजब के चुदक्कड़ हो तुमलोग। आती रहूंगी बीच बीच में, और हो सका तो मेरे जैसी और भी औरतें, जिनके पति उन्हें खुश नहीं कर सकते, वैसी औरतें तुम्हारे पास भेज दिया करूंगी," उनके चेहरों पर बेचारगी और मौन निवेदन को पढ़ कर अपनी दुर्दशा के बावजूद मैं बोली, वैसे भी मैं भी तो पूरी रात उनके साथ पूरी मस्ती करती हुई आनंद का उपभोग करती रही थी

कहानी जारी रहेगी

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11-27-2020, 11:26 PM,
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उफ्फ्फ आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह" दर्द भरे वे प्रारंभिक क्षण कब आनंद के क्षणों में तब्दील हो गए इसका मुझे पता ही नहीं चला और मेरे मुंह से आनंद भरी आहें उबलने लगीं।
"आ रहा है ना मजा अब? साली छिना्आ्आ्आ्आल, ओह्ह्ह्ह मेरी जान, ऐसी गजब की लौंडिया है तू। तेरी ऐसी मस्त चूत से पहले कभी पाला नहीं पड़ा। चूत के अंदर जैसे गरमागरम भट्ठी हो। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी चूत से मेरा लौड़ा चूस रही है।" वह मुझे चोदता हुआ बोला। उसके घने बालों से भरा हुआ बदबूदार भीमकाय शरीर का संपर्क मेेेरे शरीर के अंदर की कामुकता को और भड़का रहा था। मेरे शरीर की सारी इन्द्रियाँ मानों तरंगित हो उठी हों। "आह मेरी जान, ओह मेरी रानी, खा मेरा लौड़ा साली लंडखोर" ज्यों ज्यों उसके चोदने की रफ्तार बढ़ती जा रही थी त्यों त्यों मैं मदहोश होती जा रही थी और अब मैं भी खुल कर अपनी गांड़ उछाल रही थी और कुतिया की तरह चुदी जा रही थी।
"वाह वाह, क्या नजारा है। साली बुरचोदी अब आई अपने रंग में। ठीक ऐसा लग रहा है मानो कोई भालू किसी बकरी को चोद रहा है फिर भी बकरी बड़े मजे से चुदवा रही है।" घासीराम हमारी चुदाई को देख कर मजा लेते हुए बोला।
"वाह साले तेजू, अकेले अकेले इतनी खूबसूरत लौंडिया को चोद रहे हो हरामियों", एक अजनबी आवाज से मैं चौंक उठी। सर घुमा कर देखा तो सामने एक छरहरी काया वाला छ: फुटा आदमी खड़ा आंखें बड़ी बड़ी करके हमारी चुदाई देख रहा था। इधर सरदार उस आदमी के आगमन की परवाह किए बिना कुत्ते की तरह धकाधक चोदने में मशगूल था।
"आजा मां के लौड़े साहिल, तू भी आ जा, बड़ी किस्मत से आज ऐसी खूबसूरत लौंडिया हाथ लगी है। तू भी डुबकी लगा ले।" सरदार उस आगंतुक को आमंत्रित कर बैठा।

सरदार की चुदाई से निहाल, सुख की अथाह गहराई में डूबी पागल हुई जा रही थी मैं। किसी प्रकार का व्यवधान नहीं चाहती थी इन सुखद पलों में, "आह ओह उफ्फ्फ, चोद सरदार चोद, तू भी आ जा मादरचोद," उस आगंतुक की ओर मुखातिब हो कर बोली, "आजा, तू भी मुझ कुतिया को चोद ले। साले घासी मादरचोद, ओह्ह्ह्ह हरामी, तू काहे खड़ा तमाशा देख रहा है बौने, तू भी आ जा। ओह मेरी मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, तुम तीनों मिल के मुझे रंडी बना दो, कुत्ती बना दो।" मैं बिल्कुल जंगली बन चुकी थी अबतक। फिर क्या था। वह साहिल नामक लंबा व्यक्ति भी आनन फानन नंगा हो गया। उफ्फ्फ, कितना खूबसूरत लिंग था उसका। सात इंच लंबे लिंग का चमड़ा विहीन गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था।
"हां री लौंडिया, आ गया मैं" कहते हुए वह कूद कर बिस्तर पर चढ़ गया और सीधे अपना लिंग मेरे मुंह के पास ले आया। "ले मेरा लौड़ा चूस।" कहते हुए साहिल ने अपना लिंग मेरे मुह में ठूस दिया। मैं मस्ती के आलम में किसी भूखी कुतिया की तरह साहिल के लिंग को चपाचप चूसने लगी।
"हां ओह आह चूस, अहा, कहां से मिली ऐसी मस्त चुदक्कड़ औरत भाई, यह तो गजब की छिना्आ्आ्आ्आल है उफ्फ्फ" साहिल खुशी के मारे बोल उठा। घासीराम भी अब बिस्तर पर आ चुका था। अब तीन खड़ूस चुदक्कड़ मेरे शरीर की तिक्का बोटी करने को पिल पड़े थे। सरदार अब मुझे अपने ऊपर ले कर खुद नीचे आ गया और नीचे से ही तूफानी रफ्तार से गचागच चोदने लगा। इधर बौना घासी मेरे पीछे आया और आव देखा न ताव, अपने लंड पर थूक लसेड़ कर मेरी गुदा की संकरी गुफा मेंं जबर्दस्ती घुसाता चला गया, "ले मेरा लवड़ा अपनी मस्त मस्त गांड़ में।"
"ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ," मैं एक पल के लिए तड़प उठी, किंतु अगले ही पल जब सटासट घासी का लंड अंदर बाहर होने लगा तो इधर मेरी चूत के अंदर सरदार के मोटे लिंग का घर्षण, उधर मेरी गुदा में बौने के लिंग का घर्षण, आनंद के सागर में गोते खाने लगी मैं और इन्हीं आनंद की रौ में मैं साहिल के लिंग को बेहताशा चपाचप चूसती चली गई। साहिल मेरे चूसने के इस अंदाज से निहाल हो उठा। वह मेरे सर को पकड़ कर अपनी कमर चला चला कर मेरे मुह को चोदने लगा और मै उसकी इस क्रिया में उसे और आनंद देने के लिए चूसना छोड़ कर अपने होठों से उसके लिंग को जकड़ कर होठों को ही चूत बना बैठी।
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11-27-2020, 11:26 PM,
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पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि श्यामलाल और बलराम के चक्कर में मैं किस तरह बलराम के ड्राइवरों के चंगुल में जा फंसी। उस रात पहले बलराम, फिर श्यामलाल की हमबिस्तर बनी और फिर नशे और थकान से बोझिल कदमों के साथ जब उनके यहाँ से लड़खड़ाती हुई निकली तो बौने ड्राईवर घसीराम की गोद में जा गिरी, जो मुझे घर पहुंचाने के बहाने अपने कमरे में लेकर आया और मेरी नशे और थकान से बेहाल जिस्म को भोगा। जबतक वह संभोग से निवृत होता, दूसरे ड्राईवर, सरदार तेजेन्द्र का आगमन हुआ और उसने भी मेरे चुद चुद कर बेहाल शरीर को जी भर के भंभोड़ा। अभी उसकी चुदाई से मुक्ति भी नहीं मिली थी कि तीसरा मुसलमान ड्राईवर आ धमका और फिर उन तीनों की तो निकल पड़ी। रात भर दारू पी पी कर और मुझे पिला पिला कर मनमाने ढंग से मेरे शरीर से खिलवाड़ करते रहे। सवेरे तक मेरी हालत खराब कर दी थी कमीनों नें। आश्चर्य तो मुझे खुद पर हो रहा था कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी मुझे कोई मलाल नहीं था, उल्टे इनकी घृणित वासना के खेल में मैं भागीदार बन कर खूब लुत्फ उठाया और सवेरे पूर्ण संतुष्टि का अनुभव कर रही थी। तुर्रा यह कि उनसे फिर मिलने की तमन्ना भी जाहिर कर बैठी थी और उनकी औरतखोरी के लिए औरतों को मुहैया कराने का आश्वासन भी दे बैठी थी। मैंने सिर्फ आश्वासन ही नहीं दिया, अपने वादे के अनुसार कुछ अतृप्त सेक्स की मारी औरतों और कुछ स्वभाव से लंडखोर औरतों से उनका संपर्क भी करा दिया। इन लोगों से मेरा भी मेरा मिलना जुलना और वासना का नंगा खेल जो आज से दस साल पहले शुरू हुआ था, वह निर्बाध रूप से बदस्तूर चलता रहा। उम्र के इस पड़ाव में भी, जबकि मैं 51 साल की हो चुकी हूं और इनकी उम्र 65 – 70 की हो चुकी है, ये अब भी मेरे संपर्क में हैं और आज भी यदा कदा मेरी कामुक काया रुपी गंगा में डुबकी लगाने आ जाते हैं। मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि जिन पर मेरा दिल एक बार आ जाता है, मैं उनकी अंकशायिनी बनने में कतई संकोच नहीं करती हूं। कई बार मैं अपनी पसंद से मर्दों का चुनाव कर उनकी हमबिस्तर हुई लेकिन कई बार कई अजनबियों से आकस्ममिक मुलाकात में इच्छा से या अनिच्छा से, चाहे वह व्यवसायिक कारणों से या किसी और मजबूरी से हुआ हो, अगर पसंद आ गये तो ऐसे मर्दों से भी मेेेरे अंतरंग ताल्लुकात अब भी वैसे ही हैं। वैसे मुझे इन संबंधों को जारी रखने के लिए मुझे अपनी ओर से किसी प्रकार के खास प्रयास करने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी। जिसने भी एक बार मेरी कमनीय कामुक देह का उपभोग कर लिया और मेरी अदम्य कामुकता का स्वाद चख लिया, वह बाद में भी मुझ से मिलने को ललायित रहता था, जिन्हें उपकृत करने में मैं ने कभी भी कोताही नहीं बरती।
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11-27-2020, 11:26 PM,
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“हां रे रंडी मैडम, साली कुत्ती मैडम, लंडखोर मैडम, ले ले और ले हरामजादी मैडम, बुरचोदी मैडम, हुम्म्म्म्म्म्म हुम्म्म्म्म्म्म, हुम्म्म्म्म्म्म” धकाधक भीषण चुदाई किए जा रहा था। करीब बीस मिनट तक घमासान चुदाई से मुझे निहाल कर दिया।

“आ्आआह्ह्ह्ह” मैं संभोग के चरम पर पहुंच कर झड़ने लगी तभी वह भी झड़ने को हुआ। उसका लिंग अकड़ कर और बड़ा रूप ले चुका था, अचानक ही उसने अपना लिंग मेरी चूत से निकाल कर कूद कर मेरे मुह के पास ले आया। मैं आह्ह्ह्ह्ह भर ही रही थी कि मेरे खुले मुह में अपने लिंग को ठूंस दिया और अपना नमकीन और कसैला प्रोटीनयुक्त वीर्य मेरे हलक में उतारता चला गया। उत्तेजना के आवेग में मैं भी गटगट पीती चली गई उसका गरमागरम लावा। पूरी तरह खलास हो कर ही वह मेरे ऊपर से हटा।

“आह्ह्ह्ह्ह, इतनी मस्त हो मैडम तुम, ओह्ह्ह्ह मजा आ गया चोदकर” चटखारे लेता हुआ वह बोला।

“ओह मेरे बौने बलम, तूने भी कुछ कम सुख दिया क्या, ओह राजा, दिल खुश कर दिया मेरे राजा,” मैं बेसाख्ता उसके बेढंगे शरीर से चिपट गई और उसके कुरूप चेहरे पर चुंबनों की बौछार कर बैठी।

“तो कसम खाओ मैडम कि अब से हमें भी अपनी चूत खिलाती रहोगी,” वह बोला।

“अरे हां रे हां मेरे चोदू,” मैं बोली।

तभी हम चौंक पड़े, “साले मादरचोद, इतनी मस्त माल को अकेले अकेले चोद लिया।” एक अजनबी आवाज पीछे से आई। सर उठा कर देखा तो एक हट्ठा कट्ठा, करीब 50 साल का सरदार खड़ा था। इससे पहले कि घासीराम कुछ बोलता, सरदार बोलने लगा, “साले हरामी, आज तक मजदूर रेजा, कोयला चुनने वाली औरतों और भिखमंगी औरतों को चोदने वाले कमीने, आज एक खूबसूरत औरत मिली तो अकेले अकेले हाथ साफ कर लिया भैणचोद।”

मैं पूरी नंगी अवस्था में अपने को ढंक सकने में अक्षम थी। मेरे कपड़े फर्श पर पड़े मुझे मुह चिढ़ा रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठना चाह रही थी कि सरदार ने मुझे दबोच लिया। “जाती कहाँ है मेरी जान, अभी तो मैं बाकी हूँ। कुछ देर में साहिल भी आ जाएगा। साली भैण की लौंडी, जब तक हम तुझे चोद नहीं लेते तू यहीं पड़ी रह। अबे ओ कलुए, मादरचोद, ग्लास में दारू डाल, अब मेरे साथ मैडम भी पिएगी। फिर मैं अपने लौड़े का जलवा दिखाऊंगा इस मैडम को। पहली बार ऐसी मस्त माल मिली है।” हाय राम, मैं यह कहाँ फंस गई थी।
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11-28-2020, 02:00 PM,
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इसके बाद की घटनाएं इस तरह थीं, कामिनी की जुबानी –

मेरा एडमीशन महिला कॉलेज रांची में हो गया। मैं कॉमर्स की पढ़ाई करने लगी। बीच बीच में दादाजी और बड़े दादाजी मुझसे मिलने आ जाते थे और अपनी वासना की भूख मिटा कर लौट जाते थे। यहां नानाजी के साथ हरिया और करीम तो थे ही मेरे साथ पति धर्म निभाने को। बीच बीच में मैं पंडित जी से भी रंगरेलियां मना लेती थी। तभी एक अनहोनी हो गई जिसने मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ ले आया। अभी दो ही महीने हुए थे यहां रहते हुए कि मेरी माहवारी बंद हो गई। शंका के समाधान के लिए मेरा चेकअप हुआ तो पता चला कि मैं गर्भवती हो चुकी हूं। हालांकि मैं नानाजी के यहां सामुहिक पत्नी के रुप में रह रही थी किंतु समाज इस शादी को अनैतिक मान कर खारिज कर देता। फलस्वरूप बदनामी के डर से नानाजी ने सबसे सलाह मश्वरा करके भरे मन से मुझे एक सरकारी क्लर्क के पल्ले बांध दिया। मात्र सात महीने बाद ही मैं ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसे डाक्टर ने प्री मैच्योर बेबी कह कर मुझे कलंकिनी कहलाने से बचा लिया। इसके बाद की कहानी आप लोग कहानी की शुरुआत में पढ़ चुके हैं। पति की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात सास की प्रताड़ना से आजिज आ कर मैं ने ससुराल छोड़ दिया और नानाजी के यहां आ कर रहने लगी और अपनी पढा़ई लिखाई पूरी की। नानाजी के घर से वैसे भी मेरा नाता पहले से था। अब मैं कहीं नौकरी ज्वॉईन करके अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी साथ ही साथ मेरी कामुकता को यथाशक्ति नियंत्रण मेंं रखना चाहती थी जो समय के साथ साथ और भी धधकती जा रही थी। मेरी वासना की भूख पहले से और बढ़ गई थी जिसे बूढ़े होते जा रहे मेरे तथाकथित पतियों और पंडित जी से मिटाती आ रही थी।

फिर एक और संयोग ने मेरी जिंदगी में एक और नया मोड़ ला दिया। मेरी कॉलेज की पढा़ई खत्म होने के तुरंत बाद ही एक दिन बाजार में उसी हब्शी से मुलाकात हो गई जिसकी अंकशायिनी बनने के लिए एक कमीने सरदार ने मुझे ब्लैकमेल करके मजबूर किया था।

मैं बच कर निकलना चाहती थी कि उन्होंने मुझे टोक दिया, “Hi, how are you baby?” (हाय कैसी हो बेबी)

“I’m fine sir.” (मैं अच्छी हूं श्रीमान) मैं झिझकते हुए बोली।
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11-28-2020, 02:00 PM,
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“What happened? Don’t be afraid of me. I kicked the sardar out of my office, when I came to know about the whole story of that night. I don’t like to exploit the helpless person. I regret for that incident) ” (क्या हुआ? मुझसे डरो मत। जब मुझे सरदार से उस रात की बात पता चली तो उसे नौकरी से निकाल दिया। मुझे किसी की मजबूरी का फायदा उठाना पसंद नहीं। मुझे उस दिन की घटना पर खेद है)

मैं थोड़ी आश्वस्त हुई। उनके चेहरे पर खेद और अपराधबोध का भाव था। “No need to feel sorry for that incident sir. I had already taught him the lesson for his act” (उस घटना के लिए दुखी होने की आवश्यकता नहीं है स्रीमान। मैं ने उसी वक्त उसके कुकृत्य के लिए उसे सबक सिखा दिया था) मैं बोली।

फिर उन्होंने मेरे चेहरे को गौर से देखते हुए मुझ से कहा, “You look a bit worried. What’s the matter? It would be my pleasure if I could help you.” (तुम कुछ चिंतित नजर आ रही हो। क्या बात है? अगर मैं किसी तरह तुम्हारी सहायता कर सकूं तो मुझे खुशी होगी।)

मैं ने जवाब दिया, “Sir, I’m desperately searching a job to lead independent life.” (श्रीमान मैं स्वावलंबी होने के लिए बड़ी शिद्दत से एक नौकरी की तलाश में हूं।)

“What a coincidence, I also need an office assistant. It will be my pleasure to give you that post.” (क्या संयोग है, मुझे भी एक ऑफिस असिस्टेंट की जरूरत है। यह पद तुम्हें देकर मुझे खुशी होगी)
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11-28-2020, 02:00 PM,
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इस तरह एक सुखद संयोग ही था जिससे मुझे एक अच्छी नौकरी भी मिल गई। मैं ऑफिस असिस्टेंट से तरक्की करते करते उपप्रबंधक के पद तक पहुंच गई। इसमें मेरी काबीलियत के साथ साथ मेरी कमनीय काया और मेरी कामुकता का भी बड़ा योगदान था। वह हब्शी रिचर्ड ऐग्न्यू तो मुझ पर खासा मेहरबान था, हालांकि मेरी काबीलियत पर उसे जरा भी संदेह नहीं था, जिसका प्रमाण मैंने कई मौकों पर दिया। मैं कई बार उनकी हमबिस्तर बनी और खुशी खुशी बनी, पूरी रजामंदी से। उन्होंने कभी भी मुझसे जबर्दस्ती नहीं की। वे मुझसे आग्रह करते और मैं खुशी खुशी उनकी आगोश में चली जाती थी और पूरे समर्पण के साथ उनकी और खुद की हवस की आग बुझाती थी। कई बार तो हमने उनके ऑफिस में ही वासना का खेल खेला। वे अपनी घूमने वाली कुर्सी पर बैठे रहते थे, वे मुझे अपनी गोद में बैठा कर चूमते थे। मेरी टॉप के बटन खोल कर मेरी चुचियों को सहलाते थे। अपने मुंह में भर कर मेरी तनी हुई चूचियों को चूसते थे। मैं उनके पैंट की जिप खोल कर अपने हाथ से उनके गधे सरीखे लिंग को पकड़ कर सहलाती थी और खेलती थी। जब कमाग्नि दोनों तरफ बराबर भड़क चुकी होती थी तो मेरी स्कर्ट को धीरे धीरे से ऊपर उठा लेते थे और मेरी पैंटी को नीचे खिसका कर पनिया चुकी योनी में अपने विशाल लिंग को प्रवेश कराने के पश्चात मुझे किसी गुड़िया की तरह कमर से पकड़ कर बैठा लेते थे। तब तक का सबसे विशाल खौफनाक लिंग, जिससे उन्होंने पहली बार उस कमीने सरदार की ब्लैकमेलिंग के माध्यम से परिचित कराया था, पहली बार जो भारतीय स्त्री देख ले वही खौफजदा हो जाए, (हब्शी लिंग से उस दर्दनाक प्रथम संभोग, जिसके स्मरण मात्र से कई दिनों तक मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ जाती थी) ऐसे लंबे और मोटे लिंग को अपनी योनी में पूर्णतयः समा लेती थी और उसी कुर्सी पर संभोग में लीन हो जाती थी। पीछे से मेरे उरोजों को सहलाते हुए, दबाते हुए, वे मेरी कमनीय काया का भोग लगाते थे। मैं इन सबमें पूरे दिल और मन से उनका सहयोग करती हुई संभोग के अखंड आनंद में डूब जाती थी। मैं उसके विशाल शरीर और विकराल दस इंच लंबे और गधे जैसे मोटे लिंग से मैथुन की अभ्यस्त हो चुकी थी।
ऐसा नहीं था कि मेरे आकर्षक व्यक्तित्व और हमारे अनैतिक संबंधों की वजह से ही मुझे आज इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन होने का अवसर मिला, बल्कि मेरी कुशाग्र बुद्धि और कुशल प्रबंधन का लोहा भी मैं मनवा चुकी थी। इन्हीं कारणों से वे हमेशा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग अटेंड करने के लिए वह मुझे ही लेकर जाते थे। होटलों में एक ही कमरे में हम ठहरते और पूरी स्वतंत्रता के साथ, दिल खोल कर, विभिन्न तरीकों से वासना की प्यास बुझाया करते थे। हमारे बीच एक ऐसा संबंध था जो व्यवसायिकता के साथ भावनात्मक भी था। हम दोनों एक दूसरे की भावनाओं का आदर करते थे।

इसके बाद की कथा अगली कड़ी में।
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11-28-2020, 02:00 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
अबतक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह कामिनी एक प्रतिष्ठित संस्थान में उपप्रबंधक के पद तक पहुंची। उसने परित्यक्त और असहाय वृद्धों के लिए स्वर्गीय नानाजी के नाम पर “स्व.माधव सिंह वृद्धाश्रम” खोल लिया था जहां रहने वाले वृद्धों की सुख सुविधा का पूरा ख्याल रखा जाता था। उन्हें बिल्कुल भी इस बात का अहसास नहीं होने दिया जाता था कि वे परित्यक्त और असहाय हैं। उनमें से तीन लोग तो विकलांग भी हैं। एक का दाहिना पैर बचपन से लकवा ग्रस्त था जिस कारण, वह पैर छोटा रह गया था और नकारा हो गया था। एक का बांये हाथ की कलाई कोढ़ के कारण गल चुकी थी। इलाज के बाद कोढ़ तो ठीक हो गया मगर बांयें हाथ में ठूंठ केवल रह गया। एक का एक आंख नहीं था। बीस साल पहले चेचक के कारण उसे एक आंख से हाथ धोना पड़ा था। एक मानसिक रोगी था, जिसे मनोरोग चिकित्सालय से चिकित्सा के उपरांत इसी आश्रम में रख लिया गया था क्योंंकि उसके रिश्तेदारों का अता पता ही नहीं था। बाकी ऐसे वृद्ध थे, या तो उनका कोई ठौर ठिकाना नहीं था, या परित्यक्त थे। एक वृद्ध को उनके घर से मार पीट कर घर से निकाल दिया गया था, जिनके बारे में मैं ने सुना था कि वे अपनी बहु पर गंदी नजर रखते थे। क्या सच था क्या गलत यह तो उस वक्त पता नहीं था किंतु उनकी दयनीय स्थिति देख कर उन्हें वृद्धाश्रम मेंं रख लिया गया था। इसी तरह सबकी अपनी अपनी कहानी थी। सभी बेसहारा थे। उनमें स्वावलंबन की भावना बनी रहे इस बात का भी पूरा ध्यान दिया जाता था। वे किसी न किसी कार्य में अपनी उपयोगिता साबित भी करते थे। बागवानी से लेकर गृह उद्योग तक में उनकी भागीदारी थी, जैसे फूलों के पौधों की देखरेख, सब्जियों की खेती, पापड़ बनाना इत्यादि। मैं जब वहां जाती तो सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगता था। उनके बीच आपसी प्रेम और सहयोग देखते ही बनती थी। उनमें हिन्दू, मुस्लिम सिख, इसाई, सभी धर्म के लोग थे, जिनके बीच सौहार्दपूर्ण मधुर संबंध स्थापित हो चुका था। उनके लिए धर्म से ज्यादा आपसी प्रेम का महत्व सबसे ज्यादा था। वृद्धाश्रम की सारी व्यवस्था की देख रेख के लिए हरिया और करीम तो थे ही, उनकी सहायता के लिए और चार लोगों को नियुक्त कर रखा था, दो ससुराल से प्रताड़ित और उपेक्षित विधवा स्त्रियां करीब पैंतीस चालीस की उम्र के और एक युवक राजेश करीब तीस साल का, जो अविवाहित था और विवाह संबंध में उसकी कोई रुचि भी नहीं थी, सारा हिसाब किताब देखता था और एक आदमी रफीक, जो मुस्लिम था, संतान विहीन विधुर, करीब पैंतालीस साल का, मार्केटिंग देखता था। साफ सफाई मेंं, खाना बनाने में और भी अन्य कार्यों में सभी एक दूसरे का हाथ बंटाते थे और वे दो स्त्रियां, पानमती और कुनीबाई इन सब कार्यों में उनकी मदद किया करती थीं। इन चारों को काम पर रखने की भी अलग अलग रोचक घटनाएं थीं, जिनके बारे में मैं आगे बताऊंगी। ये चारों यहां के माहौल में रम गये थे, घुलमिल गये थे और यहां जितने भी लोग थे उनके आपसी संबंधों के बारे में जानकर, (खुले आपसी यौन संबंधों के बारे में भी) इन्हीं में से एक हो गए थे। ये भी बुजुर्गों से यौनाचार में बराबर शरीक हुआ करते थे। इन चारों को वृद्धाश्रम में काम पर रखने के पीछे की कहानियां भी कुछ कम रोचक नहीं हैं।

उन कहानियों से पहले मैं यह बता दूं कि कामिनी को वृद्धाश्रम खोलने की बात उसके दिमाग में कहां से आई। आईए हम इसके बारे मेंं जानने के लिए कामिनी की पिछली जिंदगी के पन्ने पलटते हैं और उसी के संस्मरण के रुप में सुनते हैं।—–
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11-28-2020, 02:00 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
…..नौकरी ज्वॉईन करने के बाद मैं कुछ अधिक व्यस्त हो गई। मैं सवेरे नौ बजे ऑफिस के लिए रवाना हो जाती थी और पांच बजे के बाद घर लौटती थी और कभी कभी काम की अधीकता के कारण नौ दस बजे भी। दरअसल यह एक विदेशी कंपनी थी जो छोटे बड़े उद्योगपतियों के सलाहकार के रुप में कार्य करती थी। इसके देश विदेश में करीब एक सौ शाखाएं थीं जिसमें से बीस शाखाएं भारत में थीं। उनमें से एक शाखा रांची में था। क्लाईंट्स को सलाह देना, योजना का प्रारूप देना ओर मार्गदर्शन करना हमारी कंपनी का मुख्य कार्य था। कंपनी के कार्य के अंतर्गत क्लाईंट्स से मीटिंग्स निश्चित करना और उन बैठकियों में आवश्यकता अनुसार शिरकत करना भी मेरी जिम्मेदारी थी। मेरी वाक्पटुता, व्यवहारकुशलता और मेरा आकर्षक व्यक्तित्व क्लाईंट्स को हाथ से निकलने नहीं देता था। कभी कभी जब क्लाईंट्स हाथ से फिसलने वाले होते थे तो यदा कदा क्लाईंट्स को हाथ में रखने के लिए मैं उन्हें “खुश” करने मेंं भी पीछे नहीं रहती थी। मैं इन मामलों में महारत हासिल कर चुकी थी। मेरी अदम्य कामुकता इन सबमें काफी सहायक सिद्ध होती थी। अलग अलग तरह के अलग अलग रुचि रखने वाले लोगों से मेरा पाला पड़ चुका था। आरंभ में मुझे तनिक असहज महसूस होता था, किंतु अब मैं इन सबकी अभ्यस्त हो चुकी हूं।

यूं तो सामान्यत: क्लाईंट्स के साथ सारे डील हमारी कुशल और प्रभावी प्रस्तुति से ही हो जाया करते थे, तथापि कुछ कुछ शौकीन मिजाज हवस के पुजारी क्लाईंट्स की कामलोलुप नजरें मेरी कमनीय देह पर चिपकी रहतीं थीं और डील को अंतिम रुप देने में बहाने बाजी करते थे। कारण स्पष्ट नहीं बता कर टाल मटोल करते थे। ऐसे किस्म के क्लाईंट्स अक्सर रस्मी तौर पर व्यवसायिक मीटिंग के पश्चात फाईनल एग्रीमेंट से पहले मुझसे व्यक्तिगत तौर से मिलने की ख्वाहिश जाहिर करते और जब मैं अकेले में उनसे बातचीत करती तो एग्रीमेंट की शर्त के तौर पर मेरे सामने हमबिस्तर होने का खुला प्रस्ताव रखते थे।

पहली बार जब एक ऐसे ही क्लाईंट से मेरा पाला पड़ा तो मुझे स्पष्ट तौर पर कुछ समझ नहीं आया, हालांकि उनकी नजरों में अपने लिए हवस की भूख अच्छी तरह देख सकती थी। शुरुआत सीधे तौर पर न हो कर मेरी अनभिज्ञता मेंं हुआ।

उनके साथ शुरूआती बातचीत कुछ इस प्रकार थी।

उन्होंने मेरे बॉस रिचर्ड साहब से कहा, “मैं इस डील पर ऊपरी तौर पर सहमत हूँ लेकिन इस पर हस्ताक्षर करने के पहले मैं इस प्रोजेक्ट का बारीकी से अध्ययन करना चाहता हूं और मैं चाहता हूं कि आप अपने असिस्टेंट के हाथों में शाम को होटल अशोका भेज दीजिए। मैं वहीं कमरा नं 10 में ठहरा हूं।”

“Do you have time in the evening Kamini? (कामिनी, क्या तुम्हारे पास समय है शाम को?)” बॉस ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखते हुए पूछा।

“Yes boss, I will manage to spare time for this. (जी हां सर, मैं इसके लिए समय निकाल लूंगी)” मैं तनिक झिझकते हुए बोली।

“OK, done Mr. Mehta, you will get the file in the evening today itself as your wish. (ठीक है मि. मेहता, आपको आज ही शाम आपकी इच्छा अनुसार फाईल मिल जाएगी।” बॉस ने कहा। सिर्फ मैं ओर मेहता जी ही

शाम को ठीक छ: बजे, जैसा कि तय हुआ था, मैं प्रोजेक्ट की फाईल लेकर होटल अशोका पहुंच गई। मैं ने गहरे नीले रंग की खूबसूरत शिफॉन की साड़ी पहन रखी थी और उसी से मैच करती हुई लो कट ब्लाऊज। मैं दिल ही दिल में सशंकित भी थी। तनिक घबराहट भी थी, पहली बार मुझे किसी क्लाईंट से इस तरह अकेले कमरे में व्यवसायिक अनुबंध के लिए मिलना हो रहा था। वैसे भी मेहता जी की नजरों से और उनके हाव भाव से उनके के बारे में मेरे दिल में कोई अच्छी राय नहीं थी, किंतु मेरे लिए अनुबंध पर मेहता जी का हस्ताक्षर ज्यादा महत्वपूर्ण था, अतः मैं ने अपने मन से झिझक और घबराहट को झटक दिया और कमरा नं. 10 के दरवाजे पर दस्तक दी। कुछ ही पलों में दरवाजा खुला, मगर दरवाजा खोलने वाला मेहता जी के बदले कोई विशाल डील डौल शख्शियत वाला छ: फुटा, अर्द्धगंजा, कंजी आंखों और तोते जैसी नाक वाला, होंठों पर बड़ी ही भद्दी मुस्कुराहट लिए कोई अजनबी अधेड़ था। मैं असमंजस में थी, तभी पीछे से मेहता जी की आवाज आई, “अंदर आ जाईए कामिनी जी, ये राधेश्याम जी हैं, हमारे बिजनेस पार्टनर। इन्हें भी हमारे प्रोजेक्ट की डिटेल देखने के लिए मैंने बुलाया है।”
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11-28-2020, 02:01 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“ओह” मैं ने सिर्फ इतना ही कहा और अंदर आ गई। पीछे से उस व्यक्ति ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। अंदर मैं ने देखा बड़े से कमरे के एक तरफ लंबे सोफे पर मेहता जी बैठे हुए थे। उनके होठों पर भी कामुकता भरी मुस्कुराहट खेल रही थी। मैं तनिक असहज महसूस करने लगी।

मेरी झिझक को ताड़ कर मेहता जी ने कहा, “आप घबराईए मत, यहां आ कर सोफे पर रिलैक्स हो कर बैठ जाईए और अपनी फाईल सामने सेंटर टेबल पर रख कर हमें प्रोजेक्ट की बारीकियों को विस्तार से समझाईए। राधेश्याम जी आप भी आ जाईए।” कहकर उन्होंने मुझसे अपने दाहिने बगल में बैठने के लिए बुलाया। मैं झिझकते हुए उनके बगल में उसी सोफे पर थोड़ी सिमट कर बैठ गयी। इधर राधेश्याम जी भी उसी सोफे पर मेरी दाहिनी ओर आ कर बैठ गए। मैं और तनिक सिमट गई। अब मैं ने ज्यों ही फाईल खोला, राधेश्याम जी और मेहता जी मुझ से और सट कर बैठ गए, फाईल को ध्यान से देखने के बहाने। अभी मैं ने फाईल खोल कर बताना शुरू ही किया था कि राधेश्याम जी ने अपना बांया हाथ मेरी दांयी जांघ पर रख दिया।

मैं घबरा कर बोली, “राधेश्याम जी, यह आप क्या कर रहे हैं। अपना हाथ हटाइए यहां से।” मैं ने उनका हाथ हटाने की कोशिश की, किंतु उन्होंने हाथ हटाने की बजाय मेरी जांघ को सहलाना शुरू कर दिया।

“अरे उस फाईल को मारो गोली, हम तो पहले इस ‘फाईल’ को खोल कर ‘पढ़ेंगे’ फिर अपनी ‘कलम’ से ‘साईन’ करेंगे।” अपनी भोंड़ी आवाज में राधेश्याम जी ने कहा।

मैं हड़बड़ा कर उठने को हुई, तभी मेहता जी ने मेरी कमर पर हाथ डाल दिया और वासना से ओतप्रोत आवाज में बोले, “जाती कहाँ हो मेरी जान, हम दोनों पार्टनर जबतक अच्छी तरह से ‘इस खूबसूरत फाईल’ को नहीं पढ़ लेते, तब तक उस फाईल में हस्ताक्षर नहीं करेंगे। जब से तुझे देखा है, यह मेरा लंड है कि सो ही नहीं रहा है।” अब उन्होंने अपनी मंशा खुल कर जाहिर कर दी।

“देखिए मैं उस तरह की औरत नहीं हूं। प्लीज मेरे साथ ऐसा मत कीजिए।” मैं ने रुआंसी आवाज में विरोध जताया।

“तू किस तरह की औरत है उससे हमें कुछ लेना देना नहीं है। हमें तो सिर्फ इतना पता है कि तू एक खूबसूरत सेक्सी औरत है, जो खुद चल कर हमारे पास आई है और हम ठहरे खूबसूरत औरतों के रसिया, हम तुम्हें ऐसे ही कैसे जाने दें।” बोलते हुए राधेश्याम जी अपने थूूूथन से मेेेरे गालोंं पर चुुंबनों की बौछार करने लगे। इसी दौरान उन्होंने जबरदस्ती मेरी साड़ी को घुटनों से ऊपर उठा दिया और मेरी योनी पर पैंटी के ऊपर से ही हाथ रख दिया। मैं चिहुंक उठी। मैं दोनों हवस के पुजारियों के बीच सैंडविच बनी कसमसाती रह गई।

“प्लीज मुझ पर रहम खाईए। मुझे छोड़ दीजिए ना।” मैं मरी सी आवाज में बोली। अब अंदर से मेरा विरोध कमजोर होता जा रहा था लेकिन बाहरी तौर पर विरोध जारी था। “मैं शरीफ घर की एक शरीफ औरत हूं, मुझे बरबाद मत कीजिए प्लीज।”

“अरे बावली, हम तुझे कहां बरबाद कर रहे हैं। खुद मजे ले और हमें भी मजे लेने दे। तेरी जैसी खूबसूरत औरत तो हम मर्दों को मजे देने और खुद मजे लेने के लिए बनी है।” कहते हुए मेहता जी नें मेरी साड़ी का पल्लू गिरा कर मेरे ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरे कसे हुए उन्नत उरोजों को बेदर्दी से मसलना शुरू कर दिया। धीरे धीरे वे मुझ पर छाते जा रहे थे। उनकी कामुक हरकतों से अब मैं भी उत्तेजित होने लगी थी किंतु दिखावे के लिए मैं छटपटाती रही, कसमसाती रही, विरोध का नाटक करती रही।

“मैं चिल्लाऊंगी, छोड़िए मुझे प्लीज।” मैं परकटी पंछी की तरह असहाय उन वहशियों के चंगुल से निकलने की व्यर्थ कोशिश करती हुई बोली।

“चिल्लाओगी, चिल्लाओ साली हरामजादी,” कहते हुए दानव राधेश्याम जी ने मुझे सोफे पर ही पटक दिया और मेरे ऊपर सवार हो गया।
“इस साऊंड प्रूफ कमरे से बाहर तुम्हारी आवाज किसी को सुनाई भी नहीं पड़ेगी। चुपचाप हमारा साथ दे।” मेहता जी गुर्राए। मेरे शरीर से खिलवाड़ करते हुए वे भी एक एक करके अपने वस्त्रों से मुक्त होते गए। उन दोनों ने मेरे विरोध की परवाह किए बगैर मेरी साड़ी उतार दी, मेरे पेटीकोट का नाड़ा, जो कि खुल नहीं रहा था, राधेश्याम जी ने एक ही झटके में तोड़ डाला और पेटीकोट को एक तरफ उतार फेंका। उसी तरह आनन फानन में मेहता जी ने मुझे ब्लाऊज से मुक्त कर दिया। अब मैं सिर्फ पैंटी ओर ब्रा में थी। उस अवस्था में मेरी संगमरमरी काया को देख कर उनकी आंखें फटी की फटी रह गयीं।

आगे की घटना अगली कड़ी में।

तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
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