Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछले भाग में आप लोगों ने पढ़ा कि मैं किस तरह अपने नादान पुत्र की नादानी भरी आसक्ति के सम्मुख नतमस्तक हो गयी। मुझ पर उसकी आसक्ति धीरे धीरे मेरे नारी शरीर के आकर्षण में बदल गई। इस आकर्षण ने उत्कंठा को जन्म दिया। उसकी उत्कंठा ने उसे उकसाया कुछ और, कुछ और मुझमें तलाशने के लिए, कुछ और खुशी, कुछ और आनंद पाने की लालसा में उसके नादान प्रयासों ने मुझे मजबूर किया अपनी नारी देह को उसके आगे समर्पण के लिए। समाज की नजरों में यह एक अति निकृष्ट, घृणित कार्य था, किंतु उन सबसे बेपरवाह हम मां बेटे बह गए ऐसे वासना के सैलाब में, जहां से निकलना हमारे लिए कठिन ही नहीं नामुमकिन था। स्त्री शरीर के साथ मैथुन का वह प्रथम अनुभव उसके लिए स्वर्गीय आनंद से कम नहीं था। खुशी के मारे वह तो पागल ही हो गया था मुझसे शारीरिक संबंध का सुख पाकर। मैं कितनी भी गई गुजरी छिनाल हूं, किंतु अपने खुद के पुत्र के साथ संभोग की कल्पना भी कभी मेरे जेहन में नहीं आया था। लेकिन परिस्थितियों नें कुछ ऐसा मोड़ लिया कि मैं उसके सम्मुख पसरने को बेबस हो गयी थी। वासना की आग में धधकती मुझ जैसी छिनाल के नाजुक अंगों के साथ उस नादान बच्चे की हरकतों ने मानो आग में घी का काम किया और मैं अपने को रोक नहीं पाई और नतीजा हम मां बेटे के बीच इस अंतरंग संबंध का जन्म। एक बार जब हम फिसले तो फिर हमने पीछे मुड़ कर देखने की जहमत भी नहीं की और सारी मर्यादाओं को तोड़ कर बेखौफ फिसलते ही चले गये। सिर्फ एक ही रात में हमारे बीच के संबंध में सबकुछ बदल गया था। वह तो बेचारा नादान था, लेकिन मैं एक पूर्ण व्यस्क स्त्री होते हूए भी सबकुछ समझते बूझते रिश्ते को शर्मसार करने में कहां पीछे रही। डूबती गयी, उस गंदे खेल के आनंद में।

रात भर हमारे बीच वासना का जो नंगा नाच हुआ, उसकी खुमारी अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि दिन के उजाले में भी क्षितिज के कमरे में हमने फिर उसी कुकृत्य को दुहराया। काफी देर तक मेरे दरवाजे को भड़भड़ाने से मेरी निद्रा भंग हुई। मैंने देखा एक बज रहा था। हड़बड़ा कर उठी और दरवाजा खोला तो दरवाजे पर चिंतित मुद्रा में हरिया को पाया। “तबीयत कैसी है तुम्हारी अब?”

“ठीक हूं।” संक्षिप्त सा जवाब दिया मैंने।

“फिर ठीक है, आ जाओ खाने की मेज पर, खाना तैयार है”

“ठीक है, आती हूं”, कहकर मैं खाने की मेज पर आ गई। अभी तक थकान पूरी तरह उतरी नहीं थी, किंतु मैं सामान्य होने की कोशिश कर रही थी। जब मैं डाईनिंग हॉल में पहुंची तो देखा, क्षितिज पहले से वहां मौजूद था।

“कैसी है तबीयत मॉम?” अपनी मुस्कुराहट छिपाते हुए पूछा क्षितिज।

“ठीक हूं अब” संक्षिप्त सा उत्तर था मेरा। बनावटी रोष के साथ मैं घूर कर उसे देखी। मन ही मन बोल रही थी, “साले मादरचोद, चोद चोद कर बेहाल कर दिया, अब पूछ रहे हो कैसी हो, मां के लौड़े।” जल्दी जल्दी खाना खा कर उठते हुए बोली, “खाना खा कर थोड़ा आराम कर ले, फिर शाम को शॉपिंग चलना है ना।”

“ठीक है मॉम” कहकर वह खाना खाने लगा। मैं डाईनिंग टेबल से अपने कमरे की ओर जाने लगी तो ऐसा लग रहा था कि क्षितिज की नजरें मुझ पर ही टिकी हों। पलट कर देखी तो पाया कि वह मुझे ही घूरे जा रहा था, उसकी भेदती नजरों से ऐसा लग रहा था मानो मेरे शरीर पर अभी भी कोई वस्त्र नहीं हों। लरज कर रह गई मैं। कमीना कहीं का। अपने कमरे में आ कर धम्म से बिस्तर पर गिरी और नींद के आगोश में चली गई।
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11-28-2020, 02:16 PM,
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शाम को पांच बजे हम मां बेटे बाजार की ओर चल पड़े। जहां क्षितिज फॉर्मल ड्रेस में था, नीली जींस और काले टी शर्ट में वहीं मैं आसमानी रंग की सलवार कमीज पहने थी। काफी फ्रेश और तरोताजा दिख रहे थे हम दोनों। कार मैं ही चला रही थी। क्षितिज मेरे बगल में बैठा शैतानी कर रहा था। अपने दायें हाथ से बार बार मेरी बांयी जांघ पर हाथ फेरता जा रहा था। पूरे रास्ते मैं उसके हाथ को झटकती हुई झिड़कती रही। “हाथ संभालो अपना शैतान, मारूंगी हां।”

“हां, वो तो देख लिया कितना मारती हो। इतने प्यार से मारोगी तो मर ही जाऊंगा मेरी जान।”

“हट बदमाश।”

“हाय मॉम, तेरी इसी अदा पर तो मरता हूं।” मैं समझ गयी कि इसे कुछ कहना बेकार है। चुपचाप कार चलाती रही और वह मेरी जांघ सहलाता रहा। बाजार पहुंच कर शॉपिंग किया, कुछ नये कपड़े वगैरह लिए फिर हम आईलेक्स में मूवी देखने घुसे। सीट हमें सबसे पीछे से सामने वाली कतार में दाहिने किनारे की मिली थी। मैं दायीं ओर और क्षितिज बांई ओर बैठा था। फिल्म थी “मर्डर”। हालांकि मुझे थ्रिलर फिल्में पसंद नहीं थीं लेकिन क्षितिज की जिद के कारण मैं तैयार हो गयी। वैसे तो यह रहस्य रोमांच से भरी फिल्म थी किंतु उसमें नायक नायिका के कुछ अंतरंग दृश्य भी थे। उन दृश्यों के आते ही क्षितिज मुझसे सट जाता था और अपना दायां हाथ मेरे कंधे पर रखकर अपनी ओर खींच लेता था। एक बार तो उसने मुझे चूम ही लिया। मैं छिटक कर अलग होने की कोशिश करती थी किंतु उसकी पकड़ काफी मजबूत थी। कभी कभी उसका हाथ मेरी जांघ पर होता था और सरकता हुआ मेरी योनि की ओर बढ़ता था जिसे मैं बार बार हटाती रहती थी।

“क्या करते हो? पीछे वाले देख रहे होंगे, शैतान।”

“अरे कोई नहीं देखता है मॉम, सब फिल्म देख रहे हैं।” मेरे कानों में फुसफुसाया वह। फिल्म हम क्या देखते, पूरी फिल्म खत्म होने तक यही सब चलता रहा। फिल्म समाप्त होते होते मुझे काफी गर्म कर चुका था बदमाश। फिल्म हॉल से निकलते वक्त मुझे पीछे से आवाज सुनाई पड़ी, “साले लौंडे को तो जबरदस्त माल हाथ लगी है, हॉल में खूब मस्ती कर रहा था साला।” मैंने पीछे मुड़कर देखा, 22 – 23 साल के और करीब 25 – 26 साल के दो युवक, शक्ल सूरत, कद काठी और कपड़ों से अच्छे भले घर के दिखने वाले, लेकिन उनके होंठों पर शोहदों वाली मुस्कुराहट खेल रही थीं। मैं समझ गई कि हॉल के अंदर क्षितिज की हरकतों को इन लोगों ने देख लिया है। मैंने किसी प्रकार अपने गुस्से को नियंत्रण में रखा। क्षितिज इन सब बातों से बेखबर मुझसे आगे आगे चल रहा था। जब मैं कार का दरवाजा खोल कर अंदर घुसने ही वाली थी कि मेरे भरे पूरे नितंब पर एक हाथ पड़ा और दबा दिया किसी ने, साथ ही आवाज सुनाई पड़ी, “क्या मस्त गांड़ है मेरी जान, इस लौंडे को छोड़, चल हमारे साथ।” गुस्से का पारावार न रहा मेरा। पीछे मुड़ कर देखा तो वही दोनों खड़े अश्लील मुस्कुराहट के साथ मुझे देख रहे थे।

गुस्सा मेरा सातवें आसमान पर था, “साले कुत्तों, तुम लोगों की मां बहन नहीं है क्या घर में?” जोर से चीखते हुए बोली। मेरी आवाज सुनकर आसपास के सभी लोग हमारी ओर देखने लगे।
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11-28-2020, 02:16 PM,
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“क्या हुआ मॉम?” क्षितिज भी मेरी आवाज सुनकर कार से उतरकर मेरे पास आ गया।

“साले लौंडे मॉम बोलता है, हॉल में तो…..” पच्चीस छब्बीस साल वाला कद्दावर युवक क्षितिज की ओर बढ़ते हुए बोला, लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले ही मेरे दायें हाथ का भरपूर घूंसा उसके मुंह पर पड़ा। उसके लिए यह अप्रत्याशित था। वह लड़खड़ा कर एक कदम पीछे हो गया। उसका निचला होंठ फट गया था और खून छलक आया।

उसका दूसरा साथी जैसे ही आगे बढ़ा, क्षितिज उसे देख कर बोला, “अरे सुजीत तुम?” वह युवक चौंक कर क्षितिज को देखने लगा। लेकिन शर्मिंदा होने की जगह बेशर्मी से बोला, “साले क्षितिज बड़ा छुपा रुस्तम निकला रे तू तो। कॉलेज में तो बड़ा शरीफ बना फिरता है मादरचोद। इतनी जबरदस्त माल…..” इससे आगे वह भी बोल नहीं पाया, मेरे बांये हाथ का जन्नाटेदार झापड़ उसके बांये गाल पर पड़ा। सर घूम गया उसका, इतना जबरदस्त प्रहार हुआ था। आश्चर्य से उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं। अपना गाल पकड़ कर जड़ हो गया था अपने ही स्थान पर।

“कौन है यह?” मैं गुस्से से क्षितिज की ओर मुखातिब हुई।

“यह सुजीत है मॉम, एन आई टी में मेरा सीनियर।” क्षितिज घबराहट में बोला, मेरा रौद्र रूप पहली बार देख रहा था वह।

“चल भाग मां के लौंडे यहां से, वरना मार मार के हुलिया बिगाड़ दूंगी, साले लौंडीबाज हराम के जने कमीने।” मैं गुस्से से चीखी। लेकिन तबतक पहले वाला युवक संभल कर फिर मेरी ओर बढ़ा, उसका चेहरा बता रहा था कि इतने लोगों के बीच एक औरत से मार खाने की बेइज्जती से तिलमिलाया हुआ था।

“साली कुतिया, अभी बताता हूं तुझे।” वह खूंखार लहजे में बोला। क्षितिज भी आगे बढ़ा मगर मैंने उसे पीछे ढकेल दिया और उस युवक को और कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया मैंने। मेरी एक करारी लात उसके पेट पर पड़ी। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह,” कहते हुए पेट पकड़ कर दोहरा हो गया, तभी मेरे दायें घुटने का प्रहार उसके चेहरे पर हुआ, वह वहीं उलट कर धराशायी हो गया। इधर रोहित उसे उठाने के लिए बढ़ा और क्षितिज की ओर खूंखार नजरों से देखते हुए धमकी भरे अंदाज में बोला, “साली तुम्हें देख लूंगा और साले क्षितिज, तुझे तो कॉलेज में समझाऊंगा।” यह सुनकर क्षितिज आगे बढ़ा तो मैं क्षितिज को किनारे ढकेल कर राहुल के सामने गई, “क्या बोल रहा था कमीने? मुझसे बात कर साले।”

“साली रंडी तुझे तो…” उसकी बात अधूरी रह गई। मेरे दाएं हाथ का भरपूर मुक्का उसके जबड़े पर पड़ा। वह पीछे की ओर गिर पड़ा, फिर तो मैंनें उसे अपनी लातों में रख लिया और मारते मारते बेदम कर दिया।
“कमीने कुत्ते, धमकी किसी और को देना, फिर कभी तू या तेरा यह घटिया दोस्त, क्षितिज या मुझे, कोई नुकसान पहुंचाने की सोच रहे हो तो भूल जाओ, जिंदा दफन कर दूंगी। तम लोगों को पता नहीं तुम्हारा पाला किससे पड़ा है।” फुंफकारते हुए मैं बोली। फिर क्षितिज को घसीटते हुए कार के अंदर ढकेल कर कार स्टार्ट करके वहां से चल पड़ी। वहां खड़ी मूकदर्शक हिजड़ों की फौज में से न ही कोई हमें बचाने आगे आया, न ही कोई उनके समर्थन में आगे आया।

इसके आगे की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए आज्ञा दीजिए।

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11-28-2020, 02:16 PM,
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पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तर आईलेक्स से निकल कर दो शोहदों नें मुझे छेड़ा और उनकी अश्लील हरकतों और ढीठ कमेंट्स ने मुझे उकसाया कि उन्हें सबक सिखाऊं। फलस्वरुप मैंने उनकी जमकर पिटाई की।

अब आगे:-

वहां से निकलते ही मेरे रौद्र रूप से स्तब्ध क्षितिज कुछ देर तक तो कुछ बोल नहीं पाया। उसके लिए मेरा यह रूप बिल्कुल नया था। कोमलांगी सी दिखने वाली मुझ जैसी स्त्री रणचंडी का रूप भी धर सकती है, यह उसे पता नहीं था। कहां एक दु:स्वप्न के कारण भय से थरथर कांपने वाली स्त्री और कहां आज की यह वीरांगना। असमंजस में पड़ा कुछ देर की चुप्पी के बाद क्षितिज अचंभित और प्रशंसात्मक शब्दों में बोला, “मॉम, आपने दो दो मुस्टंडों को इस तरह अकेले सरेआम पीट कर जमीन पर बिछा दिया, यकीन नहीं हो रहा है।”

“अपनी आंखों से देख लिया ना? यकीन कर ले। ऐसे लफंगों से निपटना मुझे बखूबी आता है।” मैं बोली।

“लेकिन मॉम, यह सुजीत बहुत बड़ा कमीना है। मैंने बताया था न, एक नंबर का छिछोरा। वह चुप नहीं बैठने वाला है।”

“अच्छा ऐसा? वह रहता कहां है?”

“लालपुर चौक के पास। आनंद विहार अपार्टमेंट में, क्यों?”

“तू कुछ मत पूछ, देखता जा, इनकी अच्छी खातिर करवाती हूं।” कहकर मैंने एस पी को फोन करके सुजीत और उसके साथी के साथ हुई घटना के बारे में बताया और कहा कि उसे दो दिन तक लॉकअप में बंद कर के बढ़िया से खातिर करवाएंं। S. P. साहब से मेरा ‘बहुत अच्छा’ परिचय था। (एस पी राठौर पहले हजारीबाग में थे। लंबे तगड़े, रोबदार लंबी मूंछों वाले राठौर साहब बड़े रंगीन मिजाज, बहुत बड़े रूप के रसिया और औरतखोर हैं। वहां से उनका तबादला हुआ रांची। स्थानीय गुंडों की रंगदारी से संबंधित केस के सिलसिले में मेरी मुलाकात उनसे हुई थी। मुझे देखते ही मुझ पर फिदा हो गए। उनकी नजरों को पहचानना मेरे लिए क्या मुश्किल था। वैसे भी मैं ठहरी एक नंबर की छिनाल। उन्होंने मुझे अपने सरकारी बंगले पर बुलाया, पहुंच गई मैं, रातभर उन्होंने मेरी कमनीय देह का रसपान किया और हो गया मेरा काम। उन गुंडों से स्थायी मुक्ति मिल गयी। उनके अपने रसूख के कारण अभी तक उनका तबादला रुका हुआ है। अभी भी यदा कदा वे मुझे बुला लिया करते हैं। वैसे थानेदार पांडे जी, भी एस पी साहब की वजह से मुुुझे अच्छी तरह पहचानते हैंं। मुुुझे मालूम था कि इन दो दिनों में हवालात में उनकी जो कुटाई होने वाली थी, उससे उनकी सारी हेकड़ी बाहर निकल जाने वाली थी।

“वाऊ मॉम, आप भी कमाल हो।” फोन पर एस पी साहब से मेरे वार्तालाप को सुनकर बोला क्षितिज। घर पहुंचते पहुंचते 10 बज गए, तबतक मैं सामान्य हो चुकी थी, क्षितिज के चेहरे पर चिंता की रेखाएं अबतक गायब हो चुकीं थीं, फिर भी उसे आश्वस्त करती और विषय बदलती हुई बोली, “हां वो तो हूँ, लेकिन तू भी क्या कम कमाल है? रात भर अपनी मां को चोदा, दिन को भी चोदा, अब आज फिर रात को चोदने की सोच रहा है, कमाल तो तू है मेरे प्यारे चोदू बेटे।”

“उफ्फ्फ मॉम, यू आर रियली ग्रेट, आज आपको चोदने का कुछ और ही मजा आएगा, वीरांगना लक्ष्मीबाई जी।” वह निश्चिंत होकर मुझे अपनी बांहों में ले कर चूम लिया।

“चल हट बदमाश कहीं के मेरे शरारती चुदक्कड़।” मैं उसकी बांहों से आजाद हो कर उसके गाल पर प्यार से चपत लगा कर बोली। दरवाजा हरिया ने खोला। घर के अंदर घुसते ही मैंने क्षितिज से कहा, “जा जल्दी फ्रेश हो कर खाने की मेज पर आ जा, बड़ी जोर की भूख लगी है।” खाना खाते वक्त क्षितिज मुझे देख देख कर मुस्कुरा रहा था।
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11-28-2020, 02:16 PM,
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“क्या बात है बेटा, बहुत मुस्कुरा रहे हो?” हरिया बोला।

“नानाजी, ये जो सामने बैठी मॉम शांति से खाना खा रही है ना, यह वास्तव में लक्ष्मीबाई है।”

“क्यों ऐसा कह रहे हो?”

“आज दो मुस्टंडों की मरम्मत की है इन्होंने।” फिर सारी घटना बता दिया उसने।

“उनकी किस्मत खराब थी बेटा जो इससे उलझ बैठे।” हरिया बोला।

“हां वो तो है, उनकी हालत देखकर तो ऐसा ही लग रहा था।” हंसते हुए क्षितिज बोला।

“बस बस बहुत हुआ तुम लोगों की बकबक, अब खाना खतम करो और सोने चलो। रात बहुत हो गई है।” कहकर मैंने उनके वार्तालाप को बीच में ही रोक दिया।

खाना खाकर हम अपने अपने कमरे में जाने लगे। मैं दरवाजे में घुस ही रहीथी कि मेरे कानों में क्षितिज की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी, “आ रहा हूं मेरी जान तैयार रहना, दरवाजा अंदर से बंद मत कर लेना।” मेरे सारे बदन में चींटियां सी दौड़ गयीं। मैं तुरंत कर कमरे में दाखिल हुई और सोचने लगी, अंततः कपड़े तो उतरनी ही है फिर कपड़ों के बोझ से क्यों न कभी ही मुक्त हो जाऊं। हौले से दरवाजा सिर्फ उढ़का दिया और लाईट ऑफ करके नाईट बल्ब जला दिया। सारे कपड़ों से मुक्त हो कर मादरजात नंगी, एक पतली चादर ओढ़े बिस्तर पर औंधी लेट गयी। आज मेरे मन में कुछ नया करने की कामना थी। उस नादान आशिक के लिए एक नया तोहफा देने की। मेरा हृदय उसके इंतजार में धाड़ धाड़ धड़क रहा था। सहसा मुझे अहसास हुआ कि मेरे ऊपर से पतले चादर का आवरण हट रहा है। कब वह अंदर आया, मुझे पता ही नहीं चला। चादर मेरे पैरों की ओर से खींचा जा रहा था। अंतत: मेरे संपूर्ण निर्वस्त्र शरीर का पृष्ठभाग अनावृत हो गया। उफ्फ्फ भगवान, उसका अगला कदम क्या होगा, अपने अंदर के रोमांच, उत्कंठा, उत्तेजना को समेटे आंखें बंद किए लेटी रही।

“उफ्फ्फ मॉम, सामने से जितनी खूबसूरत हो उतनी ही पीछे से भी, वाऊ, ब्यूटीफुल बैक। ” यह प्रशंसात्मक उद्गार थे उसके। मैंने प्रत्युत्तर में कुछ नहीं कहा, मौन रही, सिर्फ कसमसा कर उसकी उसकी प्रशंसा को स्वीकार किया। सर्वप्रथम उसने मेरी सुराहीदार गर्दन का स्पर्श किया। उसकी उंगलियों का स्पर्श मेरी गर्दन से ले कर पीठ से होता हुआ मेरी कमर और और फिर, और फिर मेरे भरे भरे गोल गोल नितंबों पर आ कर रुका। मैं सिहर उठी। फिर मैं ने उसकी गरग गरम सांसें अपनी गर्दन पर महसूस की। उसके होंठों का स्पर्श मेरी गर्दन पर हुआ, उफ्फ्फ, सारा शरीर रोमांचित हो उठा। उसने एक बार चूमना शुरू किया तो फिर रुका नहीं, चूमता चला गया गर्दन से होते हुए मेरी पीठ पर, ओह भगवान, और नीचे और नीचे मेरी कमर पर आह्ह् मेरी मां, और नीचे और नीचे, हाय रा्आ्आ्आ्आ्आम, मेरे भरे भरे चिकने नितंबों पर ओह्ह्ह्ह्ह्ह अब और नहीं, बर्दाश्त की भी एक हद होती है, ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ। या खुदा, कैसा जालिम है यह, मेरी सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा है क्या? धमनियों में रक्त का संचार इस तीव्रता से हो रहा था मानो फट पड़ने को बेताब हों।
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11-28-2020, 02:16 PM,
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“अपनी मुनिया को छुपा लो मॉम छुपा लो, देखता हूं कितनी देर छुपाओगी।” वह बेसब्र होता जा रहा था। उसने अब चूमना छोड़ कर चाटना आरंभ कर दिया था, हाय दैया उस निर्दयी के जीभ का स्पर्श ज्यों ही मेरे नितंबों पर हुआ, तड़प उठी मैं। चाटते चाटते उसकी जीभ मेरे नितंबों के बीच के दरार पर दौड़ने लगी। हाय रा्आ्आ्आ्आ्आम, उसकी जीभ का रुख मेरी गुदा द्वार की ओर थी। मेरी गुदा द्वार पर ज्यों ही उसकी जिह्वा का स्पर्श हुआ चिहुंक उठी मैं। बमुश्किल खुद को रोक पा रही थी। इस्स्स्स्स मां, कैसे एक नर खुद ब खुद अपनी आदमजात भूख मिटाने हेतु मार्ग तलाश लेता है? अचम्भा हो रहा था मुझे। थरथरा उठी आनंद के उस अनिर्वचनीय पलों में मैं। यदा कदा उसकी जिह्वा का स्पर्श मेरी पनिया उठी फकफकाती योनि पर भी हो रहा था। मेरे पैर अपने आप धीरे धीरे फैलने लगे।अब? आगे क्या? क्या करने वाला था वह अनाड़ी पागल? मेरी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। योनि मैथुन का स्वाद तो चख चुका था वह, आनंदित भी खूब हुआ वह। तो क्या अब मैं अपनी गुदा की ओर उसे आकर्षित कर सकी थी? शायद, या फिर निश्चित तौर पर। देखती हूं आगे क्या करता है यह पगला। उसकी इन उत्तेजक हरकतों से निहाल होती हुई अपने शरीर को उस अनाड़ी बच्चे के हाथों समर्पित कर चुकी थी। यह क्या? उसने यकायक मेरी गुदा द्वार के अंदर अपनी जिह्वा प्रविष्ट करा दी, उफ्फ्फ वह आहसास, असहनीय, अकथनीय, अवर्णनीय आनंद। उसके बाद तो मानो वह पागल हो गया। सटासट मेरी गुदाद्वार के अंदर डाल डाल कर कुत्ते की तरह चाटने लगा। मिल गया था उसे एक और स्वर्गीय सुख का मार्ग, बिन बताए।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह मेरे राजा, बहुत हो गया, ओ्ओ्ओह्ह्ह् मेरे चोदू, मेरे बर्दाश्त की और परीक्षा न ले पागल, अब चोद भी डाल हरामी।” अंततः मेरा धैर्य जवाब दे बैठा।

“वाह मॉम, ये हुई न बात। चोदूंगा जानेमन चोदूंगा, मगर आपकी मुनिया को तो बाद में देखूंगा, पहले इस दरवाजे को तो देख लूं। एक और दरवाजा मिला है अभी। आपके पीछे वाला दरवाजा, आपका हग्गू दरवाजा।” वह बोला। उसकी उत्तेजना उसकी आवाज में झलक रही थी।

हंसी आ गयी मुझे, “हग्गू दरवाजा नहीं रे मादरचोद, गुदा बोल, गांड़ बोल।”

“हां हां वही, गांड़। मस्त चिकनी है, लग भी रही है बहुत टाईट। आप बोलिए तो गांड़ चोदूं?” बह बेताब हो रहा था।

“चोद न रे हरामी, पूछ क्या रहा है। पूरी की पूरी मैं तुम्हारी हूं। जो चोदना है चोद, मगर जल्दी चोद, कहीं मर न जाऊं इंतजार में।” मैं तड़प कर बोली।
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11-28-2020, 02:16 PM,
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“वाऊ, गुड। यही सुनना चाहता था मेरी लंडरानी मॉम।” नंगा तो न जाने कब का हो चुका था। कूद कर आ गया मैदाने जंग में। मेरी कमर पकड़ कर उठा लिया और चौपाया बना दिया मुझे। बहुत जल्दी जल्दी सीख रहा था मेरा अनाड़ी बेटा। आश्चर्य हो रहा था मुझे, कैसे बिना बताए जीव जंतु नैसर्गिक तौर पर शारीरिक संबंधों को अंजाम देते हैं, आनंद का मार्ग खोज निकालते हैं। एक ही दिन में उसने मेरे मुख मैथुन से लेकर योनि मैथुन से होते हुए गुदा मैथुन तक का मार्ग तलाश लिया था। वाह रे प्रकृति।

बिना समय गंवाए उसने अपने आठ इंच लंबे लंड का सुपाड़ा मेरी गांड़ के मुहाने पर रखा और लगा दिया एक करारा प्रहार।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, फाड़ ही डालोगे क्या हर्र्र्र्र्र्र्रा्आ्आ्आ्आ्म्म्म्म्मी्ई्ई्ई्ई्ई, निर्दयी मां के लौड़े, हाय, ऐसी भी क्या बेसब्री, आराम से रे मादरचोद आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, एक ही बार में पूर्र्र्र्आ्आ्आ्आ्आ पेल दिया इतना मोटा लौड़ा।” उसके एक ही करारे प्रहार ने मेरे मुख से चीख निकालने पर मजबूर कर दिया। अनाड़ी चुदक्कड़ से गांड़ चुदवाना मतलब गांड़ की दुर्गति। कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ। एक ही झटके में उसने मेरी गांड़ के अंदर जड़ तक ठोंक दिया था अपना आठ इंच का मोटा हथियार। ऐसा कभी हुआ नहीं था मेरे साथ शायद। जिसने भी मेरी गांड़ चोदी, क्रमशः दबाव देते हुए आराम से डाला था अपना लंड मेरी गांड़ के अंदर। इसमें उस बेचारे को भी क्या दोष देना। खुद मैं भी तो मरी जा रही थी गांड़ मरवाने के लिए। उत्तेजना के आवेग में मैं बिना सोचे समझे उस नादान बच्चे को आमंत्रण दे बैठी और नतीजा मेरे सामने था। पीड़ा के मारे मेरा चेहरा विकृत हो गया। ऐसा लगा मानो किसी ने पूरा भाला घुसेड़ दिया हो मेरी गांड़ में, गांड़ चीरता हुआ सीधे मेरी अंतड़ियों को फाड़ डालने को आतुर। मेरी दर्दनाक चीख सुन कर घबराहट में एक ही झटके में उसने पूरा लंड बाहर खींच लिया। ऐसा लगा मानो मेरी गुदा मार्ग में अचानक शून्यता तारी हो गई। ऐसा लगा मानो उसके लंड ने मेरी अंतड़ी खींचने की पुरजोर कोशिश की हो। उफ्फ्फ, इस प्रकार का अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” लंड निकलने पर भी पीड़ा। “लो, लंड डालो तो मुश्किल, निकालो तो मुश्किल, क्या करूं मैं?” क्षितिज बोला।

“धीरे धीरे डाल मेरे रसिया, धीरे धीरे निकाल चोदू, ढीला होने दे मेरी गांड़ को मादरचोद। फिर चोदना, जी भर के चोदना, रगड़ रगड़ के चोदना, पटक पटक के चोदना, गाली दे दे के चोदना, कुत्ते की तरह चोदना, कुतिया बना के चोदना, रंडी बना के चोदना, जैसी मर्जी वैसा चोदना, मैं खुद गांड़ उछाल उछाल के चुदवाऊंगी मेरे अनाड़ी बलमा।” मैं दर्द बर्दाश्त करती हुई बोली।

“ओके मेरी जान। वैसे बड़ी टाईट और रसीली है आपकी गांड़ मॉम। मस्त मस्त। चोदने के लिए आदर्श छेद। वाह क्या गांड़ है, आपकी गांड़ तो मुनिया से भी बढ़कर है। उफ्फ्फ, डाल रहा हूं मेरी मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” बोलते बोलते धीरे धीरे घुसाता चला गया अपना लंड।

“आह ओह हां हां ऐसे हीई्ई्ई्ई्ई उफ्फ्फ, अब अच्छा लग रहा है मेरे बच्चे।” उसके लिंग के प्रवेश से होने वाले घर्षण से मेरी गुदा मार्ग में स्थित स्नायु तंत्र तरंगित हो रहे थे। इसी तरह जब वह अपना लिंग बाहर निकाल रहा था, वही आनंदमय घर्षण। “आह्ह्ह् आह्ह्ह् आह्ह्ह्’ करता रह ओह मेरे बच्चे, करता रह ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरे चोदू बेटे, चोदता रह अब मजा आ रहा है ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरे बेटे” खुशी के उद्गार निकल रहे थे मेरे मुख से।
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11-28-2020, 02:16 PM,
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“हां हां मेरी मां, मेरी प्यारी बुरचोदी मां, मेरी प्यारी चूतमरानी मां, आह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह मजा आ रहा है उफ्फ्फ, ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में ओह मेरा पपलू पागल हो रहा है अहा ओहो” उसे पता चल गया कि अब मुझे भी मजा आ रहा है। अब वह बड़े आनंद से चोदने लगा, मजा ले कर चोदने लगा, मेरी कमर पकड़ कर बिल्कुल कुत्ते की तरह भकाभक मेरी गांड़ का भुर्ता बनाने लग गया।

“चोद मादरचोद, गाली दे मुझे मेरे चोदू बेटे, ओह गंदी गंदी गाली दे साले मां के लौड़े, मेरे लंडराजा, मेरे कुत्ते, मेरे रसिया, चोद मुझे लौड़े के ढक्कन, अपनी मां को रंडी बना दे हरामजादे कमीने आह्ह्ह् मेरे नादान चुदक्कड़।” मैं आनंदित हो कर बड़बड़ाती जा रही थी।

“ठीक है, ठीक है मेरी रंडी मां, मेरी कुत्ती मां, आह साली चूतमरानी मॉम, साली बुरचोदी मॉम, ओह मेरी रंडी, ओह मेरी कुतिया, ले मेरा लंड ओह्ह्ह्ह्ह्ह आह्ह्ह्,” दनादन दनादन चोदे जा रहा था, भकाभक, किसी जंगली कुत्ते की तरह पिल पड़ा था। अब वह मेरी चूचियों को दबोच कर मसल रहा था। मेरी गर्दन, कंधे पर किसी कुत्ते की तरह दांत लगा दे रहा था। उफ्फ्फ, वासना का वह सैलाब मुझे और मेरे बेटे को कहां बहाए जा रहा था होश ही नहीं था। मेरी शह पाकर पागल हो चुका था क्षितिज, जंगली जानवर बन चुका था। मैं कहां किसी कुतिया से कम थी, गांड़ उछाल उछाल कर चुदवाती जा रही थी। करीब चालीस मिनट तक उस युवा चुदक्कड़ ने मेरे जिस्म पर अपनी युवा मर्दानी शक्ति का भरपूर प्रदर्शन किया। उफ्फ्फ, मां बेटे के रिश्ते की मर्यादा को इतने घृणित तरीकों से तार तार करने में हमें जरा भी संकोच नहीं हो रहा था। पहले मैंने अपने नग्न देह से उसे खेलने दिया, उसके यौनांग से मैं खेली, चूसी, उसे मेरे यौनांगों से खेलने दिया, चाटने दिया, फिर अपनी चुदासी योनि में उसके कुवांरे लिंग को समाहित करने का जघन्य पाप कर बैठी, पाप या अपराध, जो भी था गया मेरी चूत में, उस आनंद के सामने क्या पाप क्या पुण्य, सब माफ उस सुख के समुंद्र में डूब कर, अब मेरे बेटे के साथ अप्राकृतिक मैथुन, ओह्ह्ह्ह्ह्ह हम कहाँ से कहाँ पहुंच गये थे। अप्राकृतिक ही सही, पाप या अपराध ही सही, भाड़ में गया सब, गांड़ में गया सब, उस आनंद के आगे हमें और कुछ नहीं सूझ रहा था। गुत्थमगुत्था होते रहे, आनंदित होते रहे। अंततः जब वह स्खलन के कागार पर पहुंचा, मेरी तो मानों पसलियां कड़कड़ा उठी हों। इतनी जोर से दबोचा था हरामी ने।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओह्ह्ह् सा्आ्आ्आ्ली्ई्ई्ई्ई कु्त्त्त्त्ती्ई्ई्ई्ई, आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह सा्आ्आ्आली्ई्ई्ई रंडी्ई्ई्ई्ई्ई,” कहते हुए झड़ने लगा, उफ्फ्फ गरमागरम लावा फचफचा कर मेरी गुदामार्ग को सराबोर करता रहा। मैं निहाल हो गई। मैं भी झड़ी तीन बार झड़ी। खूब डूब कर झड़ी। गांड़ मरवाते हुए तीन बार झड़ी, कमाल हो गया, ओह्ह्ह्ह्ह्ह मजा, सुख, आनंद, अपने चोदू बेटे के सामर्थ्य की दाद देती हूं। आखिर है तो मुझ जैसी कामुकता की ज्वालामुखी का उपज, उन हरामी चुदक्कड़ मर्दों के सम्मिलित चुदाई का फल। मुझ कमीनी मां के दिल को सुकून मिला कि चलो मेरी अंतरात्मा की हां ना के झंझावत में डूबती उतराती अंततः मेरा बेटा सयाना हो गया।

“ओह मेरी रानी, स्वर्ग का सुख दे दिया तूने” स्खलन के सुख में डूबा, थक कर निढाल, मेरी नग्न देह को बांहों में भरकर चूम लिया और बोला।

“और तूने मुझे क्या कम सुख दिया मेरे चोदू अनाड़ी बलमा।” खुशी के मारे लिपट गई उससे और चुंबनों की झड़ी लगा बैठी उसके चेहरे पर। आखिर ठहरी रंडी की रंडी। अपने कोख जाए बेटे से संभोग का लुत्फ उठा कर मन में न कोई ग्लानि थी न ही रंचमात्र अपराधबोध।

कहानी जारी रहेगी
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11-28-2020, 02:16 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि किस तरह मैं अपने बेटे क्षितिज, जो कि बिल्कुल अनाड़ी था स्त्री संसर्ग के लिए, संभोग सुख से अपरिचित, के साथ हमबिस्तर हुई। वह मेरे आकर्षण के वशीभूत वह सब कुछ कर बैठा जो हमारे समाज के लिए वर्जित है। इसमें मेरी भूमिका बेहद अहम थी। मैं सबकुछ जानते बूझते उसके इस कुकृत्य में सहभागी हुई। अगर मैं दृढ़ता पूर्वक मना कर देती तो बात यहां तक नहीं बढ़ती लेकिन मेरी खुद की कमजोरी के कारण यह सब संभव हुआ। मेरी वासना की अदम्य भूख के आगे सारी वर्जनाएं छिन्नभिन्न हो कर रह गयीं। पहले मैंने उसे मुख मैथुन का सुख दिया, उससे मुख मैथुन का सुख लिया, फिर योनि मैथुन के लिए प्रोत्साहित किया और हम दोनों ने बेशर्मी की हदें पार करते हुए योनि मैथुन का आनंद लिया। अंततः रही सही कसर पूरी हो गई गुदा मैथुन से। स्त्री की नग्न देह का किन किन तरह से उपभोग करना है, इससे वह बखूबी परिचित हो गया। स्त्री देह के विभिन्न अंगों से किस तरह आनंद लेना है यह वह बखूबी सीख गया था। स्त्री शरीर के विभिन्न महत्वपूर्ण उत्तेजक अंगों से परिचित हो गया था। एक तरह से कहूँ तो कामक्रीड़ा में दक्ष होता जा रहा था। अच्छा रूप रंग था, शरीर शौष्ठव अच्छा था, अच्छा लिंग था, संभोग के लिए उपयुक्त समुचित शक्ति थी उसमें, स्तंभन क्षमता गजब की थी। सिर्फ आवश्यकता थी तो कामक्रीड़ा को और आनंदमय बनाने हेतु विभिन्न कलाओं के प्रशिक्षण की, विभिन्न मुद्राओं, वभिन्न आसनों के जानकारी की। फिर तो पूरा कामदेव का अवतार ही बन जाना था उसे। उसकी मां होकर भी मैं ने जब उसे अपने शरीर के माध्यम से संभोग सुख का परिचय करा दिया तो अब आगे के प्रशिक्षण का दायित्व भी मुझे ही निभाना था। बेगैरत, बेहया, वासना की पुतली, कमीनी, कुलटा, छिनाल तो थी ही, मां बेटे के पाक रिश्ते की धज्जियां उड़ाने में जिसे तनिक भी झिझक नहीं हुई उसके लिए यह कार्य कौन सा मुश्किल था। मैं भी खुद चाहती थी कि वह इन सारी कलाओं में दक्ष हो जाए और कूप मंडूक न रह कर घर के बाहर की विस्तृत दुनिया में अपने मन मुताबिक अन्य नारियों के संसर्ग का लुत्फ ले। कामदेव सरीखा तो वह था ही, मुझे पूर्ण विश्वास था कि ऐसी लड़कियों, नारियों की कमी नहीं होने वाली थी उसके लिए, आखिर कब तक मैं उसे अपने पल्लू से बांध कर रखती। मैं खुद भी तो एक नंबर की आजादीपसंद चुदक्कड़ ठहरी, विभिन्नता पसंद, बेलौस, अदम्य वासना की भूखी कुतिया। एक पुरुष से बंध कर कैसे रह सकती थी भला। नित नये मर्दों से चुदवाने की चाहत में किसी भी हद तक जा सकती हूं। ऐसी ही हूं या परिस्थितियों वश ऐसी ही बना दी गई हूं।

गुदा मैथुन में क्षितिज एक नवीन आनंद से रूबरू हुआ था उस रात। नारी शरीर के विभिन्न अंगों से इतने विभिन्न तरीकों से आनंद लिया जा सकता है, यह उसे बहुत जल्द पता चल रहा था। गुदा मैथुन का दौर खतम होने के बाद हम एक दूसरे की नग्न देह से चिपके हुए कुछ देर उस आनंदमय सुखद आहसास में डूबे हुए थे। मेरी गांड़ का भुर्ता बन चुका था लेकिन मैं बेहद खुश थी। अब मुझे तलब हो रही थी मेरी भूखी चूत की भूख मिटाने की। फिर से कुतिया बनना चाहती, कुतिया बनकर चूत चुदवाना चाहती थी। मेरा हाथ उसके सीने से होता हुआ धीरे धीरे उसके पेट की ओर बढ़ने लगा। वह आंखें बंद किए मेरे हाथ के स्पर्श का आनंद ले रहा था। शनैः शनैः मेरा हाथ उसके पेट से होते हुए उसकी नाभी तक पहुंच चुका था। मैं और नीचे अपना हाथ ले गई, उसकी नाभी से नीचे, और नीचे, और नीचे, उसके रोयेंदार झांट को सहलाने लगी। अब वह तनिक कसमसाया।
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11-28-2020, 02:17 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“जा मेरी जान, और नीचे जा, मेरे पपलू, मेरे लौड़े तक ओह हां, हां खेल मेरी माँ मेरे लौड़े से मेरी प्यारी बुरचोदी मॉम।” उद्गार थे उसके। छू लिया मैंने उसके सख्त होते लंड को। सहलाने लगी उसके गरम होते हुए लौड़े को, ऊपर से नीचे तक। पकड़ लिया अपनी मुट्ठी में उसके मोटे होते हुए गधे जैसे हथियार को। लंड के ऊपरी चमड़े को हौले हौले ऊपर नीचे करने लगी। “आह्ह् ओह्ह अच्छा लग रहा है उफ्फ्फ, करती रह ओह मेरी चूतमरानी मां।” उत्तेजित करने में सफल हो गयी थी। काफी सख्त और मोटा हो चुका था उसका लंड।

“वाह मेरा राजा बेटा, मेरा लंड राजा, कितना मस्त लंड पाया है रे तू। सचमुच गधे जैसा लंड। हाय, लड़कियां और औरतें तो मर ही जाएंगी ऐसे लंड पर। ओह मेरे रसिया, जरा आंखें खोल कर देख दुनिया को चारों तरफ, एक से एक बढ़कर कितनी खूबसूरत लड़कियों और औरतों से भरी हुई है दुनिया, तेरे जैसे खूबसूरत मर्द पर मर मिटने को तैयार।” मैं भा्सनात्मक शब्दों के साथ क्षितिज के लिंग को सहलाती हुई बोलती जा रही थी। मैं किसी न किसी तरह उसके मन में एकमात्र मेरे प्रति आसक्ति और मोह को सामान्य पुरुषों की भांंति अन्य नारियों के प्रति पुरुषों के विपरीत लिंग के बीच वाले सामान्य आकर्षण में बदलने की कोशिश करने लगी ताकि मैं उसके मोहपाश से स्वतंत्र होकर यहां वहां मुंंह मार सकूं। आखिर कामुकता की साक्षात प्रतिमूर्ति मर्दखोर औरत जो ठहरी।

“मेरी जान देखूंगा देखूंगा, दुनिया भी देखूंगा। फिलहाल तो सिर्फ मुझे आप ही आप दिख रही हो मॉम, मेरी चूतमरानी, बुरचोदी, खूबसूरत, मस्त मस्त दुनिया की सर्वोत्तम मॉम, जो अपने बेटे की खुशी के लिए गर्लफ्रैंड बन सकती है, बेड पार्टनर बन सकती है, मन से भावनात्मक रिश्ते को निभाते हुए अपने शरीर को भी अर्पित कर सकती है। कमाल हो मॉम, आई रीयली लव यू।” उसने मुझे बांहों में भींच कर कहा।

“पागल कहीं का। तेरे भले के लिए कह रही हूं पागल। अभी तू जवान होता जा रहा है और मैं बूढ़ी। तेरी जवानी मुझ बुढ़िया पर बरबाद होते नहीं देख सकती मैं। मेरी खुशी चाहता है ना तू?”

“हां मॉम, आपकी खुशी के लिए मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं।”

” तो मेरी खुशी के लिए ही सही, एक बार मेरे अलावे किसी और नारी को ट्राई कर के देख नारियों की भीड़ में। कसम से तू एक खोजेगा, तुझे दस मिलेंगी। चुनाव कर, स्थाई न सही अस्थायी ही सही, चख कर देख, चोद कर देख, जिंदगी खूबसूरत बन जाएगी तुम्हारी।” आप सोच रहे होंगे कितनी कमीनी हूं मैं। ऐसी ही हूं मैं। जानबूझकर उसे धकेल रही थी वासना के उस दलदल में जहां इस वक्त मैं थी। अरे क्या गलत क्या सही कौन जानता है, आपसी रजामंदी से जिंदगी का मजा लेते रहने में मुझे तो कोई गलती नजर नहीं आती है।

“ओके मॉम, आपने कह दिया और सोच लीजिए मैंने कर दिया। लेकिन इसकी शुरुआत मैं आपके जैसी ही किसी मैच्योर लेडी से करना चाहता हूं। जो आपकी जैसी समझदार और आजादख्याल हों।”
“ओह माई स्वीट सन, आई लव यू” खुश हो गयी मैं। चूम लिया मैंने उसे खुशी के मारे। “बस कुछ बातों का ख्याल रखना होगा तुझे। धूर्त औरतों से दूर रहना। जबर्दस्ती किसी से करना नहीं, अगर जबर्दस्ती करना भी हो तो उनसे करना जिसके बारे में तुम्हें विश्वास हो कि उसे तेरी चुदाई की दीवानी बना सको। कई ऐसी औरतें मिलेंगी जो पारिवारिक सेक्स से असंतुष्ट रहती हैं, ऐसी औरतों पर उपकार करने से परहेज न करना। कोई ऐसी बदचलन लड़की जिसे तुम पसंद नहीं करते अगर जबर्दस्ती तेरे गले पड़ना चाहे तो आरंभ में ही सख्ती से मना कर दो, कई बार ऐसी लड़कियां बाद में कैंसर बन जाती हैं। इन सबके अलावे भी कई ऐसी बातें हैं जिन्हें तुम समय के साथ अपने अनुभव से सीख लोगे, ऐसा मेरा विश्वास है। वैसे फिलहाल तुम्हारी सलाहकार मैं तो हूं ही, लेकिन अपने विवेक से काम लेना भी तुम सीख लोगे ऐसा मेरा मानना है।” मैंने देखा कि उसपर मेरी बात का असर हो रहा है। मैं कामयाब हो रही थी अपने मकसद में। उसका ध्यान अन्य स्त्रियों की ओर भटकाने में, अन्य स्त्रियों में उसकी रुचि जगाने में।

आगे क्या हुआ यह आप अगली कड़ी में पढ़िएगा।

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