Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:31 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“क्या बात है? क्यों मार रहे हो आपलोग इसे?” मैं उस आठ दस लोगों की भीड़ में से एक युवक से पूछी।

“यह बच्चा चोर है। बच्चा चोरी करने आया था।”

“तो पकड़ कर पुलिस को दे दो न, पीट क्यों रहे हो?”

“आप समझती नहीं हैं, जाईए अपना काम कीजिए।” दूसरा व्यक्ति बोल उठा। उस कथित बच्चा चोर की हालत बहुत बुरी थी। नाक मुह से खून निकल रहा था। बाल बिखरे हुए थे, शरीर पर अच्छे ही कपड़े थे। उसकी दयनीय अवस्था मुझ से देखी नहीं गयी।

“रुको। छोड़ो इसे।” मैंने उनसे कहा।

“नहीं छोड़ेंगे साले को। मार के यहीं लटका देंगे साले को। बच्चा चोरी करता है मादरचोद” एक आवारा टाईप युवक बोला। उसके बात करने के लहजे और लफ्जों से मुझे भी गुस्सा आ गया।

“क्या बोला?”

“बच्चा चोर बोला, मादरचोद बोला, और तुम हो कौन हमें रोकने वाली, जा अपना काम कर सा….” ढिठाई और अकड़ से बोल रहा था किंतु उससे आगे बोल नहीं पाया, मेरा एक जन्नाटेदार झापड़ उसकी बांयी गाल पर पड़ा, दिन में तारे दिख गये उसे।

“एक औरत से बात करने की तमीज नहीं और सजा देने चले हो हराम के जने। तुमलोग होते कौन हो किसी को सजा देने वाले? मैं पुलिस बुलाती हूं अभी।” गुस्सा आ गया था मुझे।

“पुलिस बुलाएगी मां की लौड़ी। अभी बताता हूं तुझे।” कहते हुए उसका साथी युवक मेरी ओर बढ़ा। मैंने आव देखा न ताव, उसके दाएं हाथ की कलाई को सख्ती से पकड़ा और पलक झपकत घूम गयी, इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसका शरीर हवा में उड़ता हुआ जमीन पर चारों खाने चित्त पड़ा था। यह धोबी पाट था, मेरी पीठ और कंधे के ऊपर से होता हुआ सीधा धड़ाम से जमीन पर गिर कर कराह उठा।

बाकी सभी लोग खुद ब खुद रुक गये।

“शराफत की भाषा तुम लोगों को तो समझ ही नहीं आती है। और कोई है?” मैं क्रोध से उनको घूरती हुई बोली। रणचंडी बन चुकी थी मैं। जो लोग मुझे जानते हैं उन्हें पता है कि ऐसी परिस्थिति में मैं क्या कर सकती हूं। उसके बाद फिर कोई आगे नहीं बढ़ा।

“लेकिन मैडम यह बच्चा चोर है।” सहमा हुआ सा उनमें से एक बोला।

“कैसे मालूम?”

“एक बच्चे को लेकर जा रहा था।”

“कहां है बच्चा?”

“वो रहा।” एक किनारे एक सात आठ साल का बच्चा खड़ा रो रहा था।

मैं उस बच्चे के पास गयी और बड़े प्यार से पूछी, “बेटा, क्या नाम है तेरा?” मेरे काफी आश्वस्त करने के पश्चात बोला, “जी हरीश।”

“ये कौन हैं?” मैं उस घायल व्यक्ति की ओर इशारा करके पूछी।

“बड़े पापा।” उसकी बात सुनकर सन्नाटा छा गया। वह आवारा टाईप लड़का और जमीन पर पड़ा उसका दोस्त भागने की फिराक में थे।

“पकड़ो सालों को,” मैं चीखी। बाकी लोगों ने उन्हें पकड़ लिया। “इन्हें पहचानते हो?” मैंने बच्चे से पूछा।

“हां, रमेश भईया और उसका दोस्त।”

“हूं्हूं्हूं्हूं्ऊंऊं्ऊं्ऊं, तो ये बात है।” मैंने पांडे जी को फोन करके बुला लिया और पूरी बात बता कर उन दोनों लड़कों को उनके हवाले कर दिया। बच्चे को भी पुलिस बल अपने साथ ले गयी। ये सब कांटा टोली के रहने वाले थे। उस घायल व्यक्ति के बारे में पता चला कि उसका नाम रामलाल था, पचपन साल का था। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। शादीशुदा नहीं था, अपने पैतृक आवास पर ही छोटे भाई पर आश्रित था। पारिवारिक संपत्ति के विवाद के कारण उसके बड़े भाई और उनकी संतान उससे और छोटे भाई से बैर रखते थे। यह घटना उसी की परिणति थी।

“पांडे जी, मैं इसे हॉस्पिटल ले जा रही हूं। आप इनके घर में खबर कर दीजिएगा।” कहकर उपचार हेतु रामलाल को अपनी कार में लेकर हॉस्पिटल चली गई। हॉस्पिटल में आवश्यक जांच मे कोई गंभीर चोट नहींं पाई गयी, अतः प्राथमिक उपचार के पश्चात उसे छुट्टी मिल गयी। इतने में उसका छोटा भाई भी हॉस्पिटल पहुंच गया। उसका नाम घनश्याम लाल है। अपने भाई की कुशलता जानकर मेरा शुक्रिया अदा करने लगा।

“शुक्रिया मेरा नहीं, ऊपर वाले का कीजिए, जिस कारण मैं मौके पर पहुंची, वरना वे बदमाश इनकी क्या हाल करने वाले थे यह तो ऊपरवाला ही बेहतर जानता है।” कहकर मैं वहां से चलने लगी, लेकिन घनश्याम जिद करने लगा कि मैं उनके घर चलूं। मजबूरन मुझे उनके घर जाना पड़ा। चाय पी कर मैं वहां से निकल ही रही थी कि रामलाल मेरी चुन्नी पकड़ लिया।

“यह क्या रामलाल जी, छोड़िए मेरी चुन्नी।”

“नहीं, आप मत जाईए।” रामलाल बच्चों की तरह बोलने लगा।

“रामलाल जी, मुझे अपने घर जाना है।” बच्चे की तरह समझा रही थी मैं।

“नहीं, आप यहीं रुक जाईए ना।” किसी अबोध बालक की तरह ठुनकते हुए बोल उठा वह।

“ऐसे थोड़ी न होता है। मेरे घरवाले इंतजार कर रहे हैं ना।” मैं मनुहार करने लगी।

“तो मैं भी चलूंगा आपके साथ।”

“दादा, बहनजी से ऐसे जिद न कीजिए।” घनश्याम बोल उठा।
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11-28-2020, 02:31 PM,
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“जेठ जी, आप मत जाईए।” यह हरीश की मां की आवाज थी। वह मझोले कद की भरे पूरे शरीर और गेहुंए रंगत वाली खूबसूरत औरत थी। उसकी आंखों में एक अबूझ चिंता थी। उस वक्त मैं समझ नहीं पाई।

मैं पशोपेश में थी कि करूं तो क्या करूं। अंततः मैं घनश्याम जी से बोली, “घनश्याम जी, ऐसा करते हैं कि आप भी साथ चलिए, फिर मेरे घर से इन्हें वापस ले आईएगा। ड्राईवर आप दोनों को वापस छोड़ देगा।”

“नहीं प्लीज इन्हें मत ले जाईए।” हरीश की मां पुनः बोली।

“नहीं, मैं तो जाऊंगा, बस।” बच्चों की तरह जिद पर उतर आया वह। घनश्याम बेबस हो गया और मैं भी थक हारकर रामलाल को अपने साथ ले चलने को राजी हो गयी। फिर हम साथ ही घर आए। रात हो रही थी, सो करीब घंटे भर बाद घनश्याम जी लौटने की बात करने लगे, लेकिन रामलाल वापस लौटने को तैयार ही नहीं हो रहा था। अंत में हरिया ही बोला, “ठीक है, इन्हें आज यहीं रहने दो। कल करीम इन्हें छोड़ आएगा।” मन मसोस कर रामलाल को अकेले ही लौटना पड़ा।

रामलाल खुश हो गया। दिमागी तौर पर वह मासूम बच्चा लग रहा था किंतु शारीरिक तौर पर अच्छा खासा हट्ठा कट्ठा स्वस्थ पुरुष था। कद भी करीब छ: फुट था। बेतरतीब हल्की दाढ़ी और मूछें थीं। सर पे घुंघराले बाल थोड़े लंबे और बिखरे हुए थे।

“हरिया चाचा, आप इन्हें हाथ मुंह धुला कर डाईनिंग टेबल पर ले आईएगा। तबतक मैं भी फ्रेश हो कर आती हूं।” कहकर मैं अपने कमरे की ओर बढ़ी।

“नहीं, मैं आपके साथ चलता ह़ू।” उसके बचपने पर मुझे क्रोध नहीं आया, तरस आया।

“नहीं रामलाल, आप मर्द हैं न, मर्दों के साथ जाईए।” मैं समझाती हुई बोली।

“नहीं, मर्द मुझे परेशान करते हैं। मैं तो आपके साथ ही चलूंगा।” बच्चे की तरह ठुनकते हुए बोला वह।

“ओके बाबा ओके, चलिए।” मानसिक रूप से बच्चा ही तो था वह। मैं बिना कि सी आशंका के साथ उसे अपने कमरे में ले गयी। हाथ मुह धुला कर बोली, “अब आप चलिए खाना खाने। मैं फ्रेश हो कर आती हूं।”

“नहीं, मैं आपके साथ ही चलूंगा।”

“अरे बाबा मुझे कपड़े बदलने हैं। आप के सामने कैसे बदलूं। आप मर्द हैं और मैं औरत हूं ना। मुझे शर्म नहीं लगेगी भला?” मेरे समझाने पर बड़ी मुश्किल से वह बाहर गया। रात का खाना खाने के समय भी वह बच्चों की तरह ही खाना खाता रहा। खाना खाने के पश्चात अब सोने के लिए समस्या यह हुई कि वह हरिया के कमरे में सोने के लिए तैयार नहीं हो रहा था।

“ठीक है फिर आप उस कमरे में सो जाईए।” क्षितिज के कमरे की ओर ले गयी।

“अकेले?”

“हां तो?”

“डर लगता है मुझे अकेले में।”

“इतने बड़े होकर भी अकेले में डर लगता है? बहादुर बनिए अब तो।” हमने बड़ी मुश्किल से समझा बुझाकर उस कमरे में सोने के लिए राजी किया। सोने के पहले कपड़े बदलने के लिए उसके पास कपड़े नहीं थे, अतः हरिया की लुंगी उसे दे दी गयी। फिर हम सब अपने अपने कमरे में सोने चले गए।

मैं काफी थकी हुई थी, लेकिन बिस्तर पर पड़ने के बावजूद निद्रा पता नहीं क्यों मेरी आंखों से कोसों दूर थी। मैं बिस्तर पर करवटें बदलती रही कि किसी करवट नींद आ जाए, लेकिन सारा प्रयास व्यर्थ था। रात का करीब ग्यारह बज रहा था। अचानक मैं चौंक उठी। मेरे पैरों पर किसी मर्दाना हाथ का स्पर्श हुआ। मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी।

“कौन?”

“मैं हूं।” यह आवाज रामलाल की थी।

“अरे आप क्या कर रहे हैं यहां?” अकचका कर बोली मैं। लगता था मैं थकावट की अधीकता से बेध्यानी में शयनकक्ष का द्वार अंदर से बंद नहीं की थी।

“पैर दबा रहा हूं और क्या।” वह मासूमियत से बोला।

“नहीं, आप सोने जाओ और मुझे भी सोने दो।” समझाते हुए बोली मैं।

“आप सोईए ना। मुझे आपका पैर दबाना है।”

“लेकिन क्यों?”

“आपको नींद नहीं आ रही है ना? आप थकी हुई हैं। आपने मेरी रक्षा की है। मुझे आपकी सेवा करनी है।”

“नहीं, आप अपने कमरे में जाईए।”

“नहीं, मैं नहीं जाऊंगा। मैं आपका पैर दबाता रहूंगा, जबतक आपको नींद नहीं आती।” वह जबर्दस्ती मेरे पैर दबाने लगा। मेरे पैर दबाते दबाते धीरे धीरे मेरे घुटनों की ऊपर उसका हाथ बढ़ने लगा।

“हटिए, यह आप क्या कर रहे हैं?” मैं मना करने लगी। विरोध करने लगी, लेकिन यह सब मुझे अच्छा भी लग रहा था। शारीरिक थकान दूर होती महसूस हो रही थी। काफी राहत मिल रही थी।

“नहीं, आप आराम से सो जाईए। मैं तबतक पैर दबाता रहूंगा जबतक आपको नींद नहीं आ जाती।” वह जिद पर उतर आया।

“ठीक है बाबा ठीक है, लेकिन यह आप ऊपर क्यों दबा रहे हो? सिर्फ नीचे दबाईए।” मैं ने उसकी जिद देख कर हामी भर दी।

“नहीं, मैं ऊपर भी दबाऊंगा।” वह अब मेरी जांघों तक आ पहुंचा था।

“हाय राम, यह आप ऊपर क्यों दबा रहे हो?” मैं चौंक उठी।

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11-28-2020, 02:31 PM,
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“मुझे अच्छा लग रहा है।” दबाता रहा दबाता रहा और मैं मना करती रह गयी। वह मानने का नाम ही नहीं ले रहा था। वास्तव में अब मुझे भी अच्छा लग रहा था। सारी थकान छूमंतर हो गयी थी। नींद जो आ नहीं रही थी आंखों में, अब आंखें उनींदी हो गयींं और मुझे झपकी आने लगी। तभी मैं चौंक उठी। रामलाल के हाथ मेरी नाईटी के अंदर जांघों से होते हुए कब मेरी योनि तक पहुंचे, पता ही नहीं चला। पैंटी के ऊपर से मेरी योनि के ऊपर उसके हाथों के स्पर्श ने मुझे चौंकने पर मजबूर कर दिया।

“उफ्फ्फ्फ्फ्फ, हट, वहां नहीं, वहां नहीं, ओह नीचे, नीचे।” मैं हड़बड़ाहट में उठ गयी। मैं अपने हाथ से उसके हाथ झटक देने की कोशिश करने लगी, लेकिन शायद मेरी कोशिश कमजोर थी या अंदर से इच्छाशक्ति का अभाव था, असफल रही। रामलाल की आंखों में अब मैं देख रही थी बचपने वाली मासूमियत नहीं थी।

“क्या आपको अच्छा नहीं लग रहा है?”

“छि:, औरत के शरीर पर उधर हाथ नहीं लगाया जाता है।” कमजोर आवाज में बोली।

“मगर हमारे घर में हरीश की मां सरोज तो बोलती है, बहुत अच्छा लगता है। हमारे बगल वाली महमूद की मां रबिया भी बोलती है बहुत अच्छा लगता है।” हतप्रभ रह गयी मैं यह सुनकर। समझ नहीं आ रहा था क्या बोलूं। तो ये स्त्रियां रामलाल की मासूमियत भरी मर्दानगी का खूब लुत्फ उठा रही हैं। वाह रे दुनिया, मैं तो समझ रही थी मेरे अलावा कुछ इक्के दुक्के लोग ही अनैतिक रिश्तों में लिप्त हैं। यहां तो ढंके छिपे, घर घर की कहानी है। हरीश की मां, मतलब रामलाल के छोटे भाई घनश्याम जी की पत्नी, मतलब जेठ और बहू के बीच यह चल रहा है। मैं उत्सुक हो उठी यह सब जानने के लिए। नींद काफूर हो गयी मेरी। कामुकता का नाग फन उठाने लग गया।

“लेकिन यह तो गलत है ना।”

“वे तो बोलते हैं इसमें गलत कुछ नहीं है।”

“बस यही या आगे भी कुछ करते हैं?” कामोत्तेजना मुझ पर हावी हो रही थी।

“हां, हां, आगे भी।”

“आगे क्या?” मेरी सांसे तेजी से चलने लगीं। अब उसने मेरी योनि को पैंटी के ऊपर से सहलाना शुरू कर दिया था।

“आगे? वे लोग अपने कपड़े उतार देते हैं।”

“फिर?”

“फिर मुझे भी लंगटा कर देते हैं।”

“फिर?” अब मेरी आवाज लरजने लगी थीं।

“फिर मुझसे कहते हैं मेरी बूर चाटो।”

“ओ्ह्ह्ह्ओओ, फिर? आपको पता है, बूर क्या है?

“हां, यही तो है बूर, सरोज इसे बूर कहती है और रबिया इसे चूत कहती है,” मेरी योनि को सहलाते हुए बोला। “आप भी कपड़े उतारिए ना।”

“हाय राम, नहीं नहीं, शरम आती है।” मैं झूठ मूठ ही बोल उठी।

“इसमें क्या शरम, वे लोग तो आराम से कपड़े उतार कर लंगटी हो जाते हैं और मुझे भी लंगटा कर देते हैं।”

“हे भगवान, फिर?” उसकी बातें सुन कर गनगना उठी थी।

“नहीं, ऐसे नहीं, पहले आप भी लंगटी हो जाईए, मैं भी लंगटा हो जाता हूं। फिर बताऊंगा।” उसकी आंखों में अब जानी पहचानी वासना की भूख स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थीं। यह क्या कह रहा था वह? क्या इसे स्त्री संसर्ग का अनुभव था? अर्धविकसित दिमाग वाला यह पुरुष क्या संभोग सुख से परिचित था? उसकी बातों से तो कुछ ऐसा ही लग रहा था।

“नहीं।”

“हां, होना पड़ेगा लंगटी आपको। देखिए मैं भी लंगटा हो जाता हूं।” इससे पहले कि मैं कुछ बोलती, इतना कह कर उसने अपना कुर्ता निकाल फेंका, लुंगी खोल फेंकी। ओह भगवान! विशाल दानवाकार गठा हुआ शरीर और उतना ही विशाल उसका लिंग। ताकरीबन आठ इंच लंबा गधे जैसा लिंग और वैसा ही मोटा, बिना उत्तेजना की अवस्था में, दोनों पहलवानी जंघाओं के मध्य बेहद डरावनी सूरत में झूलता हुआ, उत्तेजित अवस्था में इसका आकार क्या होगा, कल्पना से ही सिहर उठी मैं। नहीं, संभोग की लालसा जाग उठी थी लेकिन अब लग रहा था यह मुझसे नहीं होगा। दहशत में आ गयी मैं। इससे संभोग मतलब मुसीबत को आमंत्रण देना होता। लेकिन उसने अब मेरी नाईटी को खींचना आरंभ कर दिया, “हो जाईए आप भी लंगटी।”

“नहीं, बस हो गया, अब आप सोने जाईए।” मुझे महसूस हो रहा था घटनाक्रम किस तरफ जा रहा है। दरअसल मैं उसके भयावह लिंग को देखकर घबरा गयी थी।

“ऐसे कैसे? बताता हूं ना, फिर क्या होता है।”

“नहीं।” मैं अब सचमुच में डर गयी थी। उसका लिंग अब तनाव की स्थिति में आ रहा था।

“आप को बताए बिना मैं छोड़ूंगा नहीं।” अब जबर्दस्ती पर उतर आया वह। जोर जबर्दस्ती पर उतर आया वह। मैं उसकी शक्ति के आगे कुछ कर नहीं पा रही थी। स्थिति यहां तक पहुंचने के लिए वास्तव में दोषी मैं ही थी। न मैं उसे यहां तक पहुंचने की छूट देती न बात यहां तक पहुंचती। अब परिस्थिति मेरे नियंत्रण से बाहर हो चली थी।
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11-28-2020, 02:31 PM,
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“नहीं मुझे नहीं जानना।” विरोध करने लगी मैं।

“मगर मुझे बताना है।” जिद पर उतर आया वह।

“जबर्दस्ती?” भयभीत हो कर बोली।

“हां, जबर्दस्ती।” बचपने की जगह उसके चेहरे पर वासना की चिरपरिचित भूख दिखाई दे रहा था मुझे। यह उसकी पाशविक शक्ति थी, जिस कारण मुझ पर छाता जा रहा था। मुझे पता था कि पागलों की शक्ति के आगे आम इन्सान की एक नहीं चलती। भयभीत हो गयी मैं, अपनी दुर्गति की कल्पना मात्र से सिहर उठी थी।। मेरे मना करने का कोई असर नहीं हो रहा था उस पर। छीना झपटी करते करते पहले मेरी मेरी नाईटी को, फिर मेरी पैंटी और ब्रा को ऐसे मेरे तन से अलग किया कि मैं भौंचक्की रह गयी। पूर्णतः नग्न अवस्था में उसके दानवी तन के आगे परकटी पंछी की तरह फड़फड़ा कर रह गयी। चीख कर हरिया और करीम को बुला सकती थी, किंतु पता नहीं मैं ऐसा क्यों नहीं कर पा रही थी या करना नहीं चाह रही थी। उसके लिंग का आकार मुझे डरा भी रहा था और आकर्षित भी कर रहा था। दुविधा की स्थिति थी मेरे लिए। अब तक वह मेरी योनि को चाटना आरंभ कर चुका था। वह बिल्कुल किसी कुत्ते की तरह चपर चपर चाट रहा था। मेरा शरीर शनैः शनैः अवश होता जा रहा था।

“बस बस्स्स्स्स्स, हो गय्य्य्य्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह,” बड़ी मुश्किल से बोली मैं।

“नहीं, अभी तो शुरू हुआ है। फिर मुझे अपनी चूचियों को चुसवाते हैं, ऐसे।” कहकर मेरी चूचियों पर धावा बोला और चप चप चूसने लगा। मुह में भर कर चूसने लगा।

“न्न्न्न्न्नननहींईंईंईंईं, ओ्ओ्ओह्ह्ह। बस करो, उफ्फ्फ्फ्फ्फ।” मैं सिसक पड़ी।

“आगे तो सुनिए। पहले मेरा लंड पकड़ कर खेलिए। वे मेरा लंड पकड़ कर खेलते हैं।” कहते कहते मेरे हाथ में अपना भीमकाय लिंग थमा दिया। बाप रे बाप, उसका गरम और सख्त लिंग अब अपने पूरे शबाब पर था। करीब ग्यारह इंच लंबा हो चुका था और मोटा इतना कि मेरी मुट्ठी में भी नहीं आ रहा था। भयावह, दहशतनाक, आतंकित करने वाला आकार प्राप्त कर चुका था उसका लिंग।

“ओह मां्मां्आ्आ्आ्आ, यह क्या्आ्आ्आ्आ है?”

“लंड है लंड। सरोज इसे लंड कहती है और रबिया इसे लौड़ा कहती है।”

“तो यह भी पता है?”

“हां, जब वे मेरे लौड़े से खेलती हैं तो मुझे बड़ा मजा आता है।”

“उफ्फ्फ्फ्फ्फ, बस करो, आह्ह, मेरे बूर को चाटना बंद करो।” मैं तड़प कर बोली।

“मगर मुझे अच्छा लग रहा है। आपकी चिकनी चमचमाती चूत बड़ी है लेकिन बहुत सुंदर है, ठीक रबिया की बेटी शहला की तरह।” चौंक उठी मैं।

“तो, तो रबिया की बेटी को भी? कितनी उमर है उसकी?”

“पता नहीं, कॉलेज में पढ़ती है।” यह पागल तो बहुत आगे निकल गया है। मैं समझ गयी कि यह अर्धविक्षिप्त और अर्धविकसित दिमाग के बावजूद स्त्री संसर्ग सुख से खूब परिचित है। मेरी उत्तेजना और उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसकी असीमित विक्षिप्त शक्ति से बेबस मैं सिर्फ कसमसा पा रही थी, मेरे उरोजों को पकड़ कर भोंपू की तरह दबा रहा था और योनि को कुत्ते की तरह चाटता चूसता मुझे भी पागल किए दे रहा था। उत्तेजना के अतिरेक में मैं न चाहते हुए भी आनंद विभोर स्खलन में डूब गयी।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह इस्स्स्स्स्स्स्स ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊफ्फ्फ्फ्फ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह।” थरथर कांपती झड़ती चली गयी। लंबी लंबी सांसें लेने लगी।

“हां हां ऐसी ही होती हैं वे भी।” वह मेरी स्थिति को भांप कर बोला।

“फिर? फिर क्या करने को बोलती हैं?” अपनी सांसों पर काबू पाते हुई बोली।

“फिर चोदने को बोलती हैं।”

“चोदने?” चकित हो कर बोली।

“हां चोदने।”

“हाय, कैसे?” अनजान बनती हुई बोली।

“लंड को बूर में ठूंस कर चोदने।”

“बा्आ्आ्आ्आप रे बा्आ्आ्आ्आप, इतने बड़े्ए्ए्ए्ए्ए्ए लंड से?” भयभीत स्वर में बोल उठी मैं।

“हां, हां।”

“ऐसा कैसे संभव है?”

“आसान है।”

“विश्वास नहीं होता।”

“विश्वास हो जाएगा आपको।”

“कैसे?”

“अभी चोद कर दिखाता हूं।” कहते कहते मेरी टांगों को जबर्दस्ती फैला कर चोदने को तत्पर हो गया।

“नहींईंईंईंईंईंईंई।” आतंक के मारे घुटी घुटी चीख निकल गयी। हिलन डुलने में असमर्थ थी।

“हांआंआंआंआंआं।” अपने भीमकाय लिंग को मेरी योनि छिद्र के मुख पर किसी माहिर चुदक्कड़ की भांति स्थापित किया।

“नहींईंईंईंईंईंईंई” भय के मारे हलकान हो रही थी।

“हांआंआंआंआंआं, लीजिए, हू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊम्म्म्म्म।” बेदर्दी से उसका विशाल, गधे की तरह भयावह लिंग मेरी योनि को अपनी क्षमता के बाहर फैला कर चीरता हुआ, घुसाता चला गया। एक तिहाई तो एक ही धक्के में अंदर हो गया। बेइंतहा पीड़ा, उफ्फ्फ्फ्फ्फ, मेरी आंखें फटी की फटी रह गयी।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, नननननहींईंईंईंईं।” मैं तड़प उठी दर्द के मारे। तड़प भी तो नहीं सकती थी। उस पीड़ा से अभी संभल भी नहीं पाई थी कि एक और हौलनाक धक्का लगा, और लो, मेरी योनिमार्ग को विशाल गुफा में तब्दील करता हुआ पूरा का पूरा लिंग उतार दिया।

“ओ्ओ्ओह्ह्ह मां्मां्आ्आ्आ्आ, मर गयी्ई्ई्ई्ई्ई।” दबी दबी दर्दनाक चीख निकल गयी। ऐसा लगा,
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11-28-2020, 02:31 PM,
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“ओ्ओ्ओह्ह्ह मां्मां्आ्आ्आ्आ, मर गयी्ई्ई्ई्ई्ई।” दबी दबी दर्दनाक चीख निकल गयी। ऐसा लगा, फट कर बुर का भोंसड़ा बन गया हो।

“दर्द हुआ?”

“हां मादरचोद हां, दर्द से मरी जा रही हूं।” पीड़ा के अतिरेक से मेरी आंखें भर आई थीं। उसके लिंग से बिंध कर हिलने डुलने में भी असमर्थ हो गई थी। हिलने की कोशिश में मैं खुद को और पीड़ा दे बैठी। थक हार कर खुद को परिस्थिति के हवाले कर दिया।

“पहली बार सरोज, रबिया औल शहला भी ऐसा ही बोली थी। शहला तो बेहोश हो गयी थी।”

“मना नहीं किया किसी ने मां के लौड़े?” मैं किलकिला उठी।

“मना किया था। रोकने की कोशिश की थी, लेकिन मैं माना नहीं।”

“क्यों? हरामजादे क्यों साले बुरफाड़ू लंड वाले मादरचोद, क्यों? आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” दर्द से बेहाल मैं बोली।

“क्योंकि पहली बार सरोज की चूत चोदने में मुझे बड़ा मजा आया। सरोज पहले डरी, लेकिन उसी ने मुझे चोदने के लिए उकसाया था, सो चोदा, जम कर चोदा। पहले तो खूब रोई चिल्लाई, फिर थोड़ी देर बाद खूब मजे से चुदवाने लगी। फिर तो वह मेरे लंड से ही चुदवाने लगी। बोलती है बस, मेरी चूत आपके लंड के लिए ही है।” मेरी गालियों से बेपरवाह वह बोलता जा रहा था और मैं दर्द से बिलबिलाती सुनती जा रही थी। सुनने की इच्छा तो अवश्य थी लेकिन इस वक्त जो मरणांतक पीड़ा मैं झेल रही थी, वही मुझ पर हावी थी। झेलने के अलावे मैं कर भी क्या सकती थी। उंगली तो मैंने ही पकड़ाई थी, उसकी मासूमियत का लाभ लेने के लालच में। मुझे क्या पता था कि उंगली पकड़ कर पहुंचा पकड़ने लगेगा वह। मासूमियत के स्थान पर पुरुष जनित वासना की भूख उसकी आंखों में नाच रही थी। खैर अब पछताये क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। कुछ पलों की अकथनीय पीड़ा धीरे धीरे कम होने लगी थी अब। मुझे भी कुछ आराम मिलने लगा था। आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय, उसका ग्यारह इंच का उतना मेटा लंड मेरी चूत में पैबस्त था, और मैं धीरे धीरे पीड़ामुक्त होती जा रही थी। उसने धीरे धीरे लंड बाहर निकाला और फिर गप्प से ठोक दिया। हिल उठी मैं अंदर तक रोमांच से। धीरे धीरे उसने मेरी चूतड़ के नीचे हाथ डाल कर चोदना आरंभ किया और चोदते चोदते बोलता भी जा रहा था अपने चोदने का अनुभव। पीड़ा अब अद्वितीय आनंद में परिवर्तित हो रहा था। मैं उसकी चुदाई के अनुभव को सुनती, उत्तेजित होती चुदती जा रही थी। पीड़ा अब भी थी किंतु अब उस पीड़ा पर संभोग का सुखद अहसास हावी हो रहा था।

“आह ओह आपकी चूत का तो कहना ही क्या। अबतक की सबसे मजेदार चूत। बड़ा मजा आ रहा है चोदने में। ओह मैडम, आह मैडम।” गचागच चोदने में मगन था वह। मैं उसके दानवी लंड से चुदती आनंद मगन अपने को पूर्ण रूप से उसके लिए समर्पित हो गयी।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओह्ह्ह, पहले चुदाई खतम कर मां के लौड़े, फिर बताना बाकी किस्सा, ओह्ह्ह्ह्ह, आज पहली बा्आ्आ्आ्र इतने बड़े लंड से चुद रही हूं, आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह। मजा्आ्आ्आ्आ आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, बहुत मजा आ रहा है।” अब मेरी चूत उस विकराल लिंग के आनुरूप फैल कर सुगमतापूर्वक गपागप खाए जा रही थी लोढ़ा सरीखा लौड़ा। “चोद हांआंआंआंआंआं हांआंआंआंआंआं चोद पागल चोद कमी्ई्ई्ई्ई्ईने्ए्ए्ए्ए, आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” मैं बोल रही थी मस्ती में भर के।

“हां हांआंआंआंआंआं मैडम, मगर ऐसे नहीं ऐसे,” उसने मेरे दोनों पैरों को कंधे पर रख कर दनादन चोदना चालू किया तो उसका पूरा लंड जड़ तक मेरी चूत में घुसता निकलता रहा। ऐसा लगने लगा कि मेरा गर्भाशय भी अब फटी तब फटी हो रही थी। जो भी हो, बड़ा मजा आ रहा था। पागल तो था ही, जानवर भी बन गया था। पूरी ताकत से मुझे रौंद रहा था। मेरा बिस्तर तक चरमरा उठा था। मेरी चूचियों को मुंह में भर कर चूस रहा था, काट रहा था, मेरे शरीर को दबोच कर निचोड़ रहा था, भंभोड़ रहा था, चूत की चटनी बना रहा था, भच्च भच्च, फच्च फच्च, और मैं उस पागल की जंगली जानवरों की तरह चुदाई में आनंदमग्न थी। जीवन में पहली बार ऐसी भयानक चुदाई नसीब हुई। करीब घंटे भर किसी पागल कुत्ते की तरह चोदता रहा चोदता रहा। उस दौरान मैं कम से कम तीन बार झड़ी। उफ्फ्फ्फ्फ्फ क्या चुदाई थी वह। एक घंटे की अथक चुदाई के बाद जब वह झड़ने लगा, मुझे दबोच कर ऐसे चिपका लिया मानो मैं कोई छिपकली हूं। मेरी सांसें मानो कुछ पलों तक रुक गयी हों।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्,” हांफते हांफते मुझ पर ढह गया झड़ कर, किसी भैंसे की तरह डकारता हुआ। मजा आ गय्य्य्य्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।

“बहुत बड़े चुदक्कड़ हो, मार ही डाला मुझे। सच्ची बड़ा्आ्आ्आ्आ मजा आया।” मैं पगली चूम उठी उसे।

“सब ऐसा ही बोलते हैं।”

“सब मतलब?”

“सरोज, रबिया और शहला।”

“ओह्ह्ह्ह्ह, ठीक है, कल सुनुंगी उनकी बातें, अब सो जाओ मेरे पगले चोदू राजा” मैं उनींदी आवाज में बोली।

उसके पश्चात मैं और वह एक दूसरे के नंगे जिस्म से से चिपके चिपके ही नींद के आगोश में चले गये
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11-28-2020, 02:31 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि क्षितिज अपने कॉलेज वापस चला गया, जाने के पहले उसने मेरी जो दुर्गति की, मैं बता चुकी हूं। नुची चुदी, थकी हारी, आलस की मारी, मजबूरी में ऑफिस जाने को वाध्य थी। क्षितिज नें किसी वहशी दरिंदे की तरह रात भर मुझे नोचते खसोटते अपनी सारी कसर निकाल ली थी और मैं निष्प्राण सी हो गयी थी। उसी अलसाए निचुड़े शरीर के साथ ऑफिस के पेंडिंग कार्यों का निष्पादन करती रही। कमलेश के सहयोग से किसी प्रकार दिन पार करके वापस आ ही रही थी कि बच्चा चोरी के संदेह में पिटते एक अर्धविक्षिप्त व्यक्ति की दयनीय स्थिति से द्रवित हो कर उसकी रक्षा हेतु आक्रामक भीड़ को रोकी और बच्चा चोरी के झूठे आरोप की आड़ में व्यक्तिगत दुश्मनी साध रहे युवकों को पुलिस के हवाले कर घायल अर्धविक्षिप्त व्यक्ति को प्राथमिक उपचार हेतु ले गयी। रामलाल था उसका नाम। उसके भाई घनश्याम के आग्रह पर उनके घर गयी। रामलाल जिद करके मेरे साथ ही हमारे घर आया लेकिन उसके साथ आए छोटे भाई को बैरंग वापस करके हमारे यहां ही रुक गया। उस रात रामलाल नें अपनी मासूमियत से मुझे अपनी कामुकता का शिकार बना लिया। कुछ उसके प्रति सहानुभूति, कुछ उसकी मासूमियत पर आशंका रहित व्यवहार और कुछ मेरी कामुकतापूर्ण ढील, इन सबका मिला जुला परिणाम यह हुआ कि रामलाल मुझ पर हावी हो गया। स्त्री संसर्ग सुख से परिचित रामलाल कृतज्ञता जताने के बहाने मेरी आकर्षक काया का रसपान करने में सफल हो गया। लंबे तगड़े शरीर वाला रामलाल अपने विकराल लिंग से मुझे दहशत में ला दिया था। उस अर्धविक्षिप्त पुरुष नें अपनी अमानवीय शक्ति के आगे मुझे बेबस करके जिस बेरहमी से मेरे तन को मसला, जिस पाशविक तरीके से मेरे तन का कचूमर निकाला, जिस जालिमाना तरीके से अपने अविश्वसनीय रुप से गधे समान विशाल लंड द्वारा मेरी चूत का भोंसड़ा बनाया, सब कुछ शुरुआत में किसी दु:स्वप्न से कम नहीं था, यह अलग बात है कि आरंभिक मर्मांतक पीड़ा के पश्चात मुझे अभूतपूर्व संभोग सुख का स्वाद चखाया। थका कर करीब करीब बेदम ही कर दिया था। फिर भी निहाल थी, अपार संतोष से लबरेज, चिपकी रही उस पागल की नग्न देह से रात भर। सवेरे उठ ही नहीं पा रही थी। सारा बदन तोड़ कर रख दिया था उस पागल चुदक्कड़ नें। चूत को तो करीब करीब फाड़ ही दिया था। सारी शक्ति इकट्ठा कर उठ तो गयी, किंतु चलने की कोशिश में मेरे पांव थरथरा रहे थे। चूत फूल कर कुप्पा हो गयी थी और मीठा मीठा दर्द हो रहा था। हल्का सा मुझे पांव फैला कर चलना पड़ रहा था। वह पागल अब भी नंग धड़ंग भैंसे की तरह बिस्तर पर फैला खर्राटा भर रहा था। उसका सुषुप्त लिंग अब भी आठ इंच लंबा, बड़ी मासूमियत से सो रहा था। साला, चुदाई का यही भयावह औजार, जो रात को शेर बना मेरी चूत के अंदर तांडव कर रहा था, अभी देखो, कैसे चूहा बना हुआ था।

उस वक्त सुबह का सात बज रहा था। अमूमन मैं छ: बजे उठती हूं, आज सात बजे तक सोती रह गयी। हड़बड़ा कर रामलाल को उठाने लगी। “रामलाल जी, उठिए, सवेरा हो गया है।”

उसने उनींदी अवस्था में ही मुझे पकड़ कर खींच लिया और बोला, “नहींं, आईए मैडम, एक बार और चोदने दीजिए।”

मैं उसके ऊपर गिर पड़ी, लेकिन संभल कर बोली, “नहीं, अभी नहीं, मुझे तैयार हो कर ऑफिस जाना है।”

“ऑफिस मत जाईए।”

“बच्चों की तरह बात मत कीजिए।”

“नहीं, चोदने दीजिए।”

“हटिए बदमाश, देखिए आपने मेरी क्या हालत कर दी है? पहली बार तो इतने मोटे और लंबे लंड से चुदी हूं, रात भर में थोडा़ आराम हुआ तो बड़ी मुश्किल से चल पा रही हूं, अब चुदी तो ऑफिस जा नहीं पाऊंगी। रात को चोद कर मन नहीं भरा क्या?”

“नहीं भरा। आप बड़ी खूबसूरत हैं, आपका बदन बहुत सुंदर है, आपकी बूर बहुत अच्छी है। मन करता है चोदता रहूं चोदता रहूं आपको।”

“छि: पागल। मुझे ऑफिस जाना जरूरी है मेरे लंडराजा। अब छोड़िए ना प्लीज।” उसे किसी बच्चे की तरह चूमते हुए समझा बुझा कर उठाई और अपने कमरे में भेजी। फिर मैं तैयार होने चली। ऑफिस जाते वक्त रामलाल फिर मेरे रास्ते में आ गया।

“मैं शाम को इंतिज़ार करूंगा।” उसकी आंखों में आग्रह और अबूझ तृष्णा परिलक्षित हो रही थी। तो क्या यह अपने घर नहीं जाएगा? कोई बात नहीं, ऑफिस से लौटकर उसे घर भेजने की कोशिश करूंगी। वैसे मुझे उसके साथ रात बिता कर यादगार अनुभव हुआ था, बड़ा रोमांचक, आनंददायक। गजब की चुदाई हुई थी मेरी। दर्दनाक शुरूआत के पश्चात अद्भुत आनंद। एक लालच मन में था मेरे। उसके सेक्स जीवन की कथा भी सुनने की इच्छुक थी।

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11-28-2020, 02:31 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
ऑफिस पहुंचते ही कमलेश ने मुझे बताया कि चेन्नई वाले क्लाईंट, एंटरप्राइजेज का प्रतिनिधि शिवालिंगम नायर ठीक दस बजे ऑफिस पहुंचेंगे। मैंने घड़ी देखी, उस वक्त नौ बज कर पांच मिनट का समय हो रहा था। मेरे पास पचपन मिनट का समय था उनके प्रोजेक्ट से संबंधित दस्तावेजों और जानकारियों का पुनर्अवलोकन करने का। यथासमय नायर जी ऑफिस पहुंचे और कमलेश सीधे उन्हें मेरे कक्ष में लेकर आया। स्मार्ट, आकर्षक अधेड़ व्यक्ति थे वे, करीब पैंतालीस पचास की उम्र के, कद ताकरीबन पांच फुट दस इंच का होगा, चेहरा सांवला लेकिन परिपक्वता और बुद्धिमत्ता स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी, शालीन और शुद्ध व्यवसायिक आचार विचार के मालिक थे वे।

“गुड मॉर्निंग मैडम।”

“गुड मॉर्निंग, आईए नायर साहब, हैव अ सीट,” मैंने सामने की कुर्सी की ओर इंगित करते हुए कहा। “कमलेश तुम भी बैठ जाओ।”

“आई होप, आपने हमारा एक्सटेंशन प्लान तो देख लिया होगा।” सीधे मुद्दे पर आया।

“जी हां। आपकी कंपनी सुंदरम ऑटो प्राईवेट लिमिटेड तो काफी नामी कंपनी है, इस एक्सटेंशन की आवश्यकता क्यों पड़ी?”

“कस्टमर्स की डिमांड, हम चार ऑटो मान्युफैक्चरर्स को पार्ट्स सप्लाई करते हैं। आने वाले फाईनांन्शियल ईयर में उनका ऑटो प्रोडक्शन का टारगेट बढ़ गया है। अगर हम उनकी डिमांड नहीं पूरी कर सकेंगे तो वे दूसरे सप्लायर्स की तरफ भागेंगे, इसलिए हम पहले से उसके लिए तैयार रहना चाहते हैं ताकि हमारे कस्टमर हमें छोड़कर दूसरे सप्लायर्स की तरफ न भागें।”

“ओह आई सी। आपको अंदाजा है कि इस प्लान में कितना खर्च होने वाला है?”

“लगभग सौ करोड़।”

“लगभग सही है आपका अंदाजा। हमने आपके एक्सटेंशन प्लान पर काम शुरू कर दिया है। चूंकि यह बड़ा प्लान है, इसलिए थोड़ा टाईम लगेगा और साथ ही साथ आप लोगों के साथ मीटिंग्स होती रहेगी। आपके जो इंजीनियर्स इस प्लान में कार्य कर रहे हैं, उनसे हम संपर्क में रहेंगे।”

“कितना टाईम?”

“देखिए, वैसे तो हमने लगभग पूरे प्लान का खाका तैयार कर लिया है, फिर भी फाईनल टच देने के लिए आप लोगों के टेक्निकल एक्सपर्टीज की आवश्यकता होगी, हालांकि हमारी टीम में भी एक्सपर्ट्स हैं, लेकिन ज्वॉईंट कार्य करने से नतीजा बेहतर निकलेगा और कोई चूक होने से हम बचेंगे, जिससे प्रोजेक्ट का खर्च बजट से बाहर न भागे।”

“राईट, अच्छा सुझाव। I am impressed (मैं प्रभावित हूं)। हम एक टीम की तरह काम करेंगे। आई होप, दो हफ्ता काफी है फाईनल प्लान तैयार होने के लिए।”

“फाईनल प्लान तैयार होने के बाद भी काम शुरू होने से लेकर खत्म होने तक हम लगे रहेंगे।”

“सुनकर अच्छा लगा। आपलोग प्योर प्रोफेशनल हैंं।”

“हम ग्राहक की संतुष्टि ही नहीं, ग्राहकों की खुशी पर विश्वास करते हैं। हम बाद में भी फ्री ऑफ कॉस्ट सर्विस देते हैं।” इस प्रोजेक्ट में हमारी फीस बीस लाख थी, जिस पर वे रजामंद थे। सब कुछ तय होने के बाद हमारी मीटिंग समाप्त हुई।

“ओके, डन, थैंक्स, नाईस मीटिंग। मैं आज रुक कर कल सवेरे वापस जाऊंगा। लौट कर हम रेगुलर कॉंंटैक्ट में रहेंगे।” उसने खड़े होकर मुझसे हाथ मिलाते वक्त मेरा हाथ दबा दिया। मैं चौंक उठी। वह अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ बोला, “beauty with brain (बुद्धि के साथ सुंदरता)। सर्विस वाली बात भी अच्छी लगी। See you again (फिर मिलेंगे)।”

“ओह श्योर।” मैं असमंजस में थी उसके व्यवहार और अंतिम कमेंट से। प्रोजेक्ट के बारे में तो आश्वस्त थी लेकिन नायर का व्यक्तित्व एक पहेली था। जो भी था, नुकसानदेह तो कत्तई नहीं था। खैर मैं उन्हें छोड़ने बाहर तक आई।

बाहर निकलते वक्त उन्होंने फिर कहा, “I am interested in your service, more than the final deal. (मुझे अंतिम अनुबंध से ज्यादा आपकी सर्विस में रुचि है)।”

“क्या?” उसकी आंखों में वासना की चिरपरिचित भूख अब मैं स्पष्ट देख पा रही थी। भौंचक्की रह गयी इस तरह खुले प्रस्ताव पर।

“Yes pretty lady, I know about you very well (हां सुंदर महिला, मैं आपके बारे में अच्छी तरह से जानता हूं)।” अब वे खुल कर बोले। मैं घबरा कर इधर उधर देखी, कोई सुन तो नहींं रहा है। नहीं, आस पास कोई नहीं था।

“ओह्ह्ह्ह्ह”

“तो क्या आप आज मेरे साथ डिनर कीजिएगा?” मैं जानती थी उसका अर्थ क्या है। शराफत का नकाब ओढ़े यह भी उन कामुक भेड़ियों से अलग नहीं है।

“नहीं, प्लीज, मैं ऐसी औरत नहीं हूं।”

“मुझे पता है आप कैसी औरत हैं।” फंस गयी थी मैं। बड़ा डील था, खोना नहीं चाहती थी।

“लेकिन।”

“लेकिन क्या?” चेहरे पर उसकी नगवारी थी।

“आज मैं व्यस्त हूं। मैं फिर कहती हूं कि मैं ऐसी औरत नहीं हूं।।” मैं बोली।

“आप कैसी हैं, यह आपके कहने से बदल नहीं जाएगा। आप नहीं चाहतीं यह अलग बात है।”

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11-28-2020, 02:31 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“ओके, जैसी आपकी मर्जी, लेकिन आज नहीं, आज मैं व्यस्त हूं।” मुझे रामलाल को रुखसत करना था, रामलाल की कहानी सुनने की उत्कंठा थी। आज फिर से उसकी अंकशायिनी बनने की अभिलाषा भी थी।

“Ok, then we will meet tomorrow evening. I have some business deal tomorrow too. (ठीक है, हम कल शाम को मिलेंगे। मेरा कल भी कुछ व्यवसायिक डील है।) आशान्वित हो उठा वह। उसके जाने के पश्चात मैं सोचने लगी कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है? क्या मैं रंडी बनती जा रही थी। एक ढूंढो मिलते हैं हजारों। सबके सब मर्द हवस के पुजारी।

खैर, कल की बात कल देखी जाएगी। मैं ऑफिस के बाद सीधे घर आई। अन्य दिनों की अपेक्षा करीब एक घंटे पहले ठीक साढ़े चार बजे दरवाजे पर जैसे ही पहुंची, रश्मि को अस्त व्यस्त हालत में निकलते हुए देखकर अचंभित रह गयी। वह भी मुझे देख ठिठक कर रुक गयी।

“अरे रश्मि, तुम यहां?” मेरे मुह से निकला।

“हां, मिलने आई थी तुम लोगों से।” चेहरे में झेंपी सी मुस्कान थी।

“कब आई थी?”

“यही करीब एक डेढ़ घंटा पहले।” उसकी आवाज में लड़खड़ाहट भांप गयी थी मैं।

“तो मुझसे बिना मिले लौट रही थी? ओह समझी, ‘मुलाकात’ तो लगता है हो गयी।” अर्थपूर्ण दृष्टि से उसकी अस्त व्यस्त हालत को सर से पांव तक देखती हुई बोली।

“क्या बोल रही हो?” झेंपती हुई बोली वह।

“क्या गलत बोल रही हूं? क्या मैं इतना भी नहीं समझ सकती? किसके साथ? हरिया?”

“नहीं, हरिया और करीम दोनों।” शरमा रही थी वह।

“वाह मेरी जान, आखिर भा ही गये वे दोनों बुढ़ऊ।”

“धत”

“क्या धत, सब समझती हूं। कोई और तीसरे से मुलाकात नहीं हुई?”

“तीसरा, तीसरा कौन?” कहते न कहते किसी भूत की तरह प्रकट हुआ रामलाल। हमारी बातें सुनकर वह सामने आ खड़ा हुआ था। बड़ी बेसब्री से लगता है मेरा ही इंतजार कर रहा था। उसके चेहरे पर मासूमियत अवश्य थी किंतु उसकी आंखों में मेरे लिए बेसब्र इंतजार स्पष्ट झलक रहा था।

“यह, यह है रामलाल। और रामलाल, यह है रश्मि।” मैंने परिचय दिया। अब रामलाल का ध्यान रश्मि की ओर गया। देखता ही रह गया वह रश्मि को। रश्मि भी रामलाल को देखती रह गयी। अधेड़ था तो क्या हुआ, लंबा तगड़ा, अच्छा खासा तंदरुस्त मर्द उसकी आंखों के सामने खड़ा, बड़ी मासूमियत से उसे निहार रहा था। मेरे मन में तो एक शैतानी कीड़ा काटने लगा। मैंने रश्मि को यह नहीं बताया कि रामलाल अर्धविक्षिप्त और अर्धविकसित मंदबुध्दि पुरुष है।

“तू जा रही है तो जा, तेरा मतलब तो निकल गया, और नहीं तो कुछ देर और रुक कर मेरे साथ चाय पी कर जाना।”

“ओके, ठीक है।” तनिक लज्जित महसूस कर रही थी, उसकी चोरी जो पकड़ी गयी।

“ठीक है मतलब? जा रही हो या रुक रही हो।”

“रुक रही हूं मेरी मां।”

“बढ़िया। हां, तो रामलाल जी, आप दिनभर क्या कर रहे थे?” मैं रामलाल की ओर मुखातिब हो कर बोली।

“कुछ नहीं, खाना खा कर कमरे में आराम करता हुआ आपके आने का इंतजार कर रहा था। आपकी आवाज सुनी तो आ गया।” उसने उसी मासूमियत से उत्तर दिया।

“ओह, ठीक है, मैं आ गयी, अब ठीक है?”

“हां, आपको देखकर अब चैन मिला।” वह बच्चे की तरह खुशी जाहिर करने लगा।

“छि:, अप भी ना, बच्चे ही हैं।” उसके गाल पर थपकी देती हुई बोली। रश्मि हैरानी से हमारे वार्तालाप को सुन रही थी।

“हरिया चाचा।” मैंने हरिया को आवाज दी। हरिया भी अस्त व्यस्त हालत में था। हरिया के साथ साथ करीम भी हरिया के कमरे से निकला। समयपूर्व, अकस्मात मेरे आगमन से हैरानी उनके चेहरे से टपक रही थी। वे रश्मि की ओर देख कर समझ गये कि उनकी चोरी पकड़ी गई थी। दोनों के चेहरे दो बिल्लियों की तरह थी जो अभी अभी दूध पीकर चटखारे ले रहे हों। झेंपी सी मुस्कान थी दोनों के चेहरों पर।

“ऐसे हैरानी से हमें क्यों देख रहे हो साले चूतखोरों। चलिए हमें चाय पिलाईए। रश्मि तू बैठ, मैं अभी फ्रेश हो कर आई” कहकर मैं फ्रेश होने अपने कमरे की ओर बढ़ी।

फ्रेश हो कर ड्राईंगरूम में आते ही मैं ने रामलाल से कहा, “हां और आप रामलाल जी, चलिए आप शुरू हो जाईए, अपनी कहानी शुरू कीजिए, वही, जो रात को बता रहे थे, सरोज, रबिया और शहला वाली।” मैं सोफे पर बैठते हुए रामलाल की ओर मुखातिब हो कर बोली। अबतक चाय भी आ गयी थी। “आप दोनों भी बैठ जाईए” मैंने हरिया और करीम से कहा।

“इन सबके सामने?” अकचका कर बोला वह।

“हां जी हां, शरमाईए मत, यहां सबके सब ऐसे ही हैं।”

“ठीक है तो सुनिए।” शुरू में वह झिझका किंतु धीरे धीरे खुल कर पूरी कहानी बताता चला गया।

कहानी चालू रहेगी
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11-28-2020, 02:31 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
रामलाल के सेक्स जीवन की कहानी सुनने को मैं बेहद उत्सुक थी। मेरे दिमाग मे रश्मि को लेकर एक खुराफाती ख्यालात उमड़ घुमड़ रहा था। मैं जानती थी कि रामलाल की कहानी ज्यों ज्यों आगे बढ़ेगी, यहां का माहौल गरम होता चला जाएगा और फिर हम सभी वासना के पुतलों के मध्य वासना का तूफान अवश्य उठेगा, जिस तूफान की चपेट से रश्मि अछूती नहीं रहेगी और संभवतः उत्तेजना के आवेग में भीमकाय लिंग वाले अर्धविक्षिप्त रामलाल की शिकार भी बन जाए। अगर ऐसा हुआ तो बड़ा मनोरंजक नजारा देखने को मिलना तय था। खैर देखते हैं आगे क्या होता है, यही सोचती हुई मैंने सबके सामने रामलाल को अपनी रासलीला से रूबरू कराने को प्रेरित किया।

रामलाल को मैंने आश्वस्त किया कि यहां सब अपने हैं, इनके सामने अपनी कहानियों को बताने में झिझकने की कोई आवश्यकता नहीं है। उसने जो कुछ अपने ढंग से बताया, उसे यहां पर उसी तरह पेश कर रही हूं।

उसने कहानी शुरू की, “मैं अपने छोटे भाई के साथ रहता हूं। तेरह साल पहले मेरे भाई की शादी हुई। उस वक्त हमारे मां बाप जिंदा थे। शादी के दो साल के अंदर मां बाप चल बसे। घर में सिर्फ धनश्याम उसकी बीवी सरोज और मैं रहते थे। शादी के बाद चार साल तक उसका कोई बच्चा नहीं हुआ। घनश्याम एक कपड़े की दुकान चलाता है। हर मंगलवार को बाजार बंदी के दिन वह खरीदारी के लिए कलकत्ता चला जाता है। करीब नौ साल पहले वह मंगलवार को सुबह कलकत्ता गया हुआ था। दोपहर को खाने के बाद मैंं आराम करने के लिए अपने कमरे की ओर जा रहा था कि मुझेे बावर्चीखाने से सरोज की चीख सुनाई दी। मैं दौड़ कर जैसे ही बावर्ची खाने में पहुंचा तो देखा कि सरोज जमीन पर गिरी पड़ी थी। मैं चुप खड़ा उसे देख रहा था।

“आह, आप देख क्या रहे हैं? हम फिसल कर गिर पड़े हैं। आह, हम उठ नहीं पा रहे हैं। उठाईए ना।” सरोज दर्द में कराहते हुए बोली। मैं आगे बढ़ कर उसे उठा कर खड़ा करने लगा तो वह कराह कर बोली, “आह, लगता है मेरे पैर में मोच आ गयी है, ओह हम खड़े नहीं हो पा रहे हैं।” मैंने सीधे उसे गोद में उठा लिया और लाकर बिस्तर पर लिटा दिया।

“दर्द ज्यादा है?”

“हां, आह, बहुत दर्द है।”

“मैं क्या कर दूं?”

“वहां टेबल पर मूव है। उसे लाकर दाहिनी एड़ी के जोड़ पर लगा दीजिए ना।” मैं मूव ला कर उसकी एड़ी के जोड़ पर लगाने लगा।

“आह, धीरे धीरे, दर्द हो रहा है।” मैं हल्के हल्के मूव लगाने लगा। करीब पांच मिनट बाद वह बोली, “थोड़ा और ऊपर।” मैं उसकी एड़ी से ऊपर मूव लगाने लगा। मूव लगाने के लिए उसकी साड़ी ऊपर उठा दिया। कुछ देर बाद वह फिर बोली, “और थोड़ा ऊपर।” मैं उसके घुटने के ऊपर तक पहुंच गया। “आह, हां, अब थोड़ा अच्छा लग रहा है। और ऊपर लगाईए ना।” ऐसा करते करते उसकी साड़ी जांघों से होते होते कमर तक उठ गयी थी। मैं मूव की मालिश करता करता उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंच गया। बहुत सुंदर टागें थीं उसकी। गोरी गोरी, गोल गोल, केले के थंभों जैसी जांघें बहुत चिकनी थी। पता नहीं क्यों मुझे भी मूव लगाने में बड़ा मजा आ रहा था। साड़ी और पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। बड़ा आश्चर्य हुआ देखकर कि उसका नुनु नहीं था। पेशाब करने की जगह थोड़ा फूला हुआ चिकना सा पेशाब का रास्ता था। उसके ऊपर काले काले बाल थे। जैसे ही मेरा हाथ वहां पहुंचा, सिसक पड़ी

वह, “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओह्ह्ह।” मैं घबरा कर हाथ हटा लिया।

“आह्ह क्या हुआ? रुक क्यों गये जेठ जी?” तड़प कर वह बोली। उसकी आंखें बंद थीं। चेहरा लाल हो चुका था।

“यह, कककक्या है?” मैं चकित था।

“ओह बुद्धू जेठ जी, यह चूत है।” वह बोल पड़ी।

“चूत?”

“हां चूत। कैसा है?”

“बहुत सुंदर।”

“तो चूत की भी मालिश कीजिए ना।” वह जल्दी से बोली। मुझे भी मजा आ रहा था। मैं उसकी चूत की मालिश करने लगा। “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, करते रहिए, ओह्ह्ह्ह्ह करते रहिए, बड़ा्आ्आ्आ्आ अच्छा लग रहा है।”

उसकी चूत के बीच वाले छेद से चिपचिपा सा कुछ निकल रहा था, यह पेशाब तो नहीं था।

“यह क्या है?”

“यह चूत का रस है बुद्धू जेठ जी, चुदाई के पहले निकलता है।” उसकी सांसें बड़ी तेजी से चल रही थीं।

“चुदाई? यह क्या होता है?” मुझको भी कुछ कुछ हो रहा था। मेरे शरीर में सनसनी हो रही थी। पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था। अजब तरह का आनंद आ रहा था। मेरे पैजामे के अंदर मेरा नुनु पता नहीं क्यों टाईट हो रहा था। लकड़ी की तरह सखत। मेरे अंडरपैंट के अंदर मेरा नुनु खड़ा हो रहा था। बेचैन हो रहा था, पता नहीं क्यों।

“बुद्धू जेठ जी, आह्हह्ह्ह, कैसे बताएं। औरत और मरद के लंड और चूत का मिलन जी।”

“चूत तो समझ गया, यह लंड क्या होता है?”

“आपके पैजामा के अंदर क्या है? लंड है लंड।”

“यह तो नुनु है।”

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11-28-2020, 02:32 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“पागल, यह नुनु नहीं, लंड है जेठ जी। आह मेरे बुद्धू, यही लंड मेरी चूत में घुसा कर चुदाई होगा।” वह मेरी नुनू, जिसे लंड बोल रही थी, पजामे के ऊपर से पकड़ कर बोली। “यहां हम चुदने के लिए मरे जा रहे हैं और आप अबतक कपड़े पहने हुए हैं। समझ ही नहीं रहे हैं।” वह पागल हो रही थी।

“लेकिन तेरे पैर में तो मोच है। दर्द नहीं होगा तेरे पैर में?” मैं पूछा।

“अरे पागल, दर्द तो बहाना था। असल में हमें आपको अपनी चूत दिखा कर आपसे चुदवाना है। हमें चोदकर मां बना दीजिए जेठ जी।” बेकरारी से बोली।

“लेकिन मेरा लंड तेरी चूत में घुसेगा कैसे?”

“घुसेगा, पूरा घुसेगा, पहले अपने कपड़े तो उतारिए मां के लौड़े।” वह बड़ी उतावली हो रही थी। मैं भी अपने लंड की सख्ती से परेशान था। मेरे अंडरपैंट के अंदर मेरा लंड दर्द करने लगा था। मैंने जल्दी से अपने कपड़े उतार डाले और पूरा लंगटा हो गया।

“बाआ्आ्आ्आप रे्ए्ए्ए्ए्ए बा्आ्आ्आ्आप, इत्ता बड़ा्आ्आ्आ्आ लंड!” वह मेरे लंड को देख कर डर गयी। आंखें बड़ी बड़ी हो गयी थी उसकी।

“हां, यही तो लंड है मेरा।” मैं अपना टनटनाया लंड दिखाता हुआ बोला। कपड़े से आजाद हो कर मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था। मेरा लंड आजाद हो गया था।

“ना बाबा ना। यह तो गधा का लंड है।” घबरा गयी थी वह।

“मैं बोला था ना, तेरी चूत में लंड नहीं घुसेगा।” हालांकि मुझे अब उसकी चूत में लंड डालकर देखने का मन कर रहा था, कैसा लगता है? मुझे लग रहा था कि इससे मेरे लंड की परेशानी शायद कुछ कम होगी। मैं अब तनिक बेसब्र हो रहा था।

“आदमी का लंड घुसता है इसमें, गधे का नहीं।”

“मैं आदमी नहीं हूं क्या?”

“आपके भाई का लंड तो छ: इंच का है, आराम से घुस जाता है, मगर आपका तो दस इंच से भी ज्यादा लंबा है और गधे के लंड जैसा मोटा भी। फट जाएगी हमारी चूत। मर जाएंगे हम। ना बाबा ना।” बिस्तर से उठते हुए बोली।

“न न न न, उठो मत। जरा सा चोदने दे न। पहली बार किसी औरत के चूत को देख कर मेरा लंड खड़ा हुआ है। बहुत बेचैन है मेरा लंड। देखो, दर्द कर रहा है।” मैं बेचैनी से बोल उठा। रहम आ गया उसे मुझ पर।

“तो मैं क्या कर दें हम? डर लग रहा है हमारी चूत के लिए। लाईए हम आपके लंड का पानी निकाल दें।” कहकर मेरा लंड दोनों हाथों से पकड़ ली।

“आह बहुत अच्छा लग रहा है।” मैं बोला। गनगना उठा मैं। वह मेरे लंड को पकड़ कर ऊपर से नीचे तक सहलाने लगी।

“ओह्ह्ह्ह्ह मां्आं्आं्आं, पहली बार इत्ता बड़ा्आ्आ्आ्आ लंड देख रही हूं। आप तो चोद कर मार ही डालिएगा।” वह मेरे लंड को सहलाते हुए बोली। लेकिन अब उसकी आवाज में डर नहीं था। “हम आपसे चुदवा कर मां बनना चाह रही थी मगर……..।”

“मगर?”

“मगर इत्ता बड़ा लंड देखकर हमारी हिम्मत नहीं हो रही है।”

“चोदने से अगर मां बन सकती हो तो डर काहे रही हो?” मुझे अब चोदने का बड़ा मन कर रहा था। पहली बार मुझे यह मौका मिल रहा है और यह डर रही है, करूं तो क्या करूं। लेकिन उसके सहलाने से मेरे लंड को बड़ा सुकून मिल रहा था। सोच रहा था कि सहलाने से इतना अच्छा लग रहा है तो चोदने में कितना अच्छा लगेगा? “थोड़ा हिम्मत करके एक बार मुझसे चुदवा ही लो न।”

“हटिए जी, बड़े जालिम हैं आप। मार डालने का इरादा है क्या?” उसकी आवाज तनिक धीमी हो गयी थी। उसकी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी। मेरे लंड को सहलाते सहलाते वह लाल हो गयी थी। दो तीन मिनट बाद उसके मुंह से आवाज निकली, “आह्ह, बड़ा है मगर मस्त है, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, कोशिश करती हूं, मगर धीरे धीरे आराम से चोदिएगा।”

“ठीक है, ठीक है, आराम से चोदुंगा, तुम बताती जाओ, मैं वैसा ही करूंगा।” मैं खुश होकर जल्दी से बोला।

“पहले मेरे कपड़े तो उतारने दे पगले।” फटाफट अपने कपड़े उतार कर पूरी लंगटी हो गयी वह। मैं उसके लंगटे बदन को देख कर अचंभित रह गया, बहुत सुंदर बदन था उसका।

“वाह आपका थन तो बड़ा सुंदर है। बड़ा बड़ा, चिकना, गोल गोल।” मैं उसके थन को छू कर बोला। सखत था उसका थन।

“थन नहीं पागल, चूची। चूचियां हैं मेरी।”

“अच्छा अच्छा, चूचियां हैं। मैंने बचपन में मां का दूध पिया है। दूध निकलता है ना इससे?”

“हां जी हांआंआंआंआंआं, दूध निकलेगा, लेकिन अभी नहीं, बच्चा होने के बाद।”

“ओह, मुझे इनसे खेलने का मन कर रहा है।”

“तो खेलिए ना। मना कौन कर रहा है। आपका भाई भी खेलता है।”

“कैसे?”

“सहलाता है, दबाता है, चूसता है।”

“मैं भी ऐसा ही करूं?”

“हां बाबा हां, बकवास मत कीजिए, जो मर्जी कीजिए, जल्दी कीजिए।” कलप कर बोली। मैं उसकी सखत चूचियों को सहलाने लगा, दबाने लगा। बड़ा मजा आ रहा था मुझे। वह मेरे लंड को सहलाती जा रही थी।
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