Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:35 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
अबे गांंडू मादरचोद, देख क्या रहा है खड़े खड़े। लाईट जला, जरा देखें तो मैडम का बदन, चेहरा तो देख लिए हैं, बंदरिया बन गयी साली।” उसकी आवाज में अब दहशतनाक गुर्राहट निकली, जंगली भेड़िए सी गुर्राहट। उत्तेजना के मारे पगला रहा था वह। वही हाल मेरा भी था लेकिन मैं जाहिर नहीं कर रही थी। बल्ब की रोशनी में नहा उठी मैं। मेरी भीगी पैंटी देख, सलीम मियां को समझते देर न लगी कि मैं अबतक बेमतलब का नाटक कर रही थी। “वाह मैडम, कमाल का जिस्म है आपका तो। अब ब्रा और चड्डी भी हम ही खोल दें कि आप खुद खोलिएगा।” जहां मैं गिरी थी वहां सीमेंट का एक खुला हुआ आधा बोरा पड़ा था। मेरे गिरते ही सीमेंट का गुब्बार सा उठा और मैं सीमेंट से नहा उठी।

“उफ्फफ ओह्ह्ह्ह्ह।” मैं ने इस हालत की कल्पना नहीं की थी। जबतक मैं संभलती, मिस्त्री सलीम मियां मेरी सीमेंट सने तन पर झपट पड़ा और पैंटी ब्रा से मुझे मुक्त कर दिया। अब मैं नंगी थी। पूर्णतया नंगी। पूरा शरीर तो सीमेंट सीमेंट हो चुका था लेकिन ब्रा और पैंटी के कारण सीमेंट पुतने से बची मेरी बड़ी बड़ी चूचियां और फकफकाती योनि चमचमा रही थीं। मेरी नग्न देह का यह आलम देख कर मिस्त्री की उत्तेजना का पारावार न रहा।

“मैडम जी, अब क्या कहती हैं? आप तो मना कर रही हैं और आपका भोंसड़ा चोदवाने के लिए आंसू बहा रहा है।” वही जानी पहचानी हवस भरी मुस्कान खेल रही थी उसके होंठों पर।

“नहीं तो बोल रही हूं ओह्ह्ह्ह्ह मां्आं्आं्आं।”

“केवल मुंह से।” अब उससे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मेरी फुदकती योनि उसे आमंत्रित कर रही थी। छा गया मेरे सीमेंट से सनी नग्न देह पर और एक हाथ से मुझे दबोच दूसरे हाथ से अपने भीमकाय लिंग के विशाल सुपाड़े को मेरे योनिद्वार पर टिका कर बिना आगा पीछा सोचे कचकचा के घुसेड़ दिया अंदर।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्,” एक दर्द की लहर सी दौड़ गयी मेरे तन में। था भी तो इतना मोटा लिंग। मेरी योनि को चीरता सर्र से प्रविष्ट हुआ था। उसके करारे धक्के से मेरे नितंब के नीचे से सीमेंट का गुबार उठ गया। मेरे शरीर पर सीमेंट का पाऊडर पुत गया था। अपनी इस हालत के लिए मैं खुद ही जिम्मेदार थी, तनिक कोफ्त तो हुई लेकिन मेरे सीमेंट पुते शरीर के साथ सलीम मियां जो कुछ कर रहा था वह भी कम रोमांचक नहीं था। कुछ पलों की उस पीड़ा को मैं पी गयी क्योंकि मुझे पता था कि इसके बाद के आनंद में मैं खुद ही डूब उतरा रही होऊंगी।

“अब काहे का आह ऊह। ससेट दिया मेरा लौड़ा।इतने बड़े भोंसड़े में इतना मोटा लौड़ा इतनी आसानी से खा लेने के बाद ई आह ऊह का ड्रामा काहे का? लंडखोर कहीं की, कोई और होती तो चिल्लाने लग जाती, लेकिन तू तो बहुत बड़ी रंडी है रे मां की बुर, खा ली एक्के बार में पूरा लौड़ा, वाह। अब तो चुदवाती जा बुरचोदी।” पहले धक्के में ही उसे पता चल गया था कि मैं कितनी बड़ी रंडी हूं।

“न न न नहीं नहींईंईंईंईंईंईंई, आह्ह, मैं ऐसी नहींईंईंईंईंईंईंई हूं।” मैं अब भी बाज नहीं आ रही थी नौटंकी करने में।

“चू्ऊ्ऊ््ऊ्ऊ्ऊ्प्प्प्प् साली भोंसड़ी की। देख लिया तेरा ड्रामा साली मां का भोंसड़ा।” अब वह मुझ पर बिंदास कहर ढाने लगा। सीमेंट से पुते मेरी चूचियों को दबोच दबोच कर गूंथ रहा था, साथ ही सटासट मेरी चूत का भुर्ता बनाने में जुट गया। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, ओह अब मैं मस्ती में भर कर आहें भरने को मजबूर हो गयी।

“ओह्ह्ह्ह्ह रज्जा, ओह साले मादरचोद दढ़ियल, उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, चोद हरामी चोद कमीने आह ओह आह।” अब मैं भी सीमेंट के बोरे पर अपनी चूतड़ पटक पटक कर उसके विशाल लंड को घपाघप खाये जा रही थी। इधर उधर लुढ़कते चुदाई के आनंद में इतने खो गये कि पूरा शरीर सीमेंट सीमेंट हो गया। हम भूतों की तरह गुत्थमगुत्थी में लीन हो गये थे। वह गांडू लौंडा वहीं खड़ा हमारी चुदाई को बुत बना आंखें फाड़े देख रहा था।

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11-28-2020, 02:35 PM,
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“हां हां बुरचोदी। ले, ये ले, और ले आह ओह, ऐसा मस्त बदन आज पहली बार मिला चोदने को। इतनी रेजाओं के पसीने और सीमेंट सने बदन को चोदा, खूब चोदा, मगर मैडम जी, तेरे को चोदने का ओह ओह मजा ही कुछ और है। सीमेंट से नहायी, तू भी कोई रेजा से कम नहीं लग रही हो, लेकिन वाह री चुदक्कड़ औरत, ओह साली कुतिया, आह बुरचोदी, ऐसा बुर पहली बार मिला आह इतना गरम चूत, उफ उफ बड़ा्आ्आ्आ्आ मजा आ रहा है। हुम हुम हुम।” गंदी गंदी बातें बिंदास, बेधड़क, बेखौफ, बोलते हुए मुझे रगड़े जा रहा था, रगेद रगेद कर चोदे जा रहा था। हर धक्के से मेरे तन को सीमेंट से अट चुके खाली बोरों पर इंच इंच घसीटे जा रहा था। मैं बेहद जंगली तरीके से लुटती हुई, नुचती हुई, चुदती हुई, हलकान होने की बजाय खुद भी जंगली कुतिया बनी, रंडी की तरह उस गलीज, गंदे वहशी जानवर के, पसीने की बदबू से नहाये और पसीने से चिपचिपे तन से पिसती, उसके दमदार ठुकाई में सुख के अनंत समुंदर मे डूब उतरा रही थी। ऐसे चोद रहा था वह मानो मैं कोई मालकिन, कोई संभ्रांत महिला नहीं बल्कि उसके अधीन काम करने वाली कोई गंदी रेजा हूं, जिन्हें वह इसी तरह अपनी हवस का शिकार बनाता रहता है। इस तरह गंदे तरीके से चुदने का एक अलग ही रोमांच का अनुभव कर रही थी। बड़ा मजा आ रहा था।

गंदे आदमी से गंदे तरीके से चुदने का अनुभव था मुझे, लेकिन एक मेहनतकश मजदूर के गंदे, कसरती शरीर से अपने शरीर को इस गंदगी भरे स्थान पर गंदे तरीके से नुचवाने का यह बिल्कुल नया अनुभव था। अपनी सारी शराफत का चोला उतार फेंक कर, “चोद, आह चोद मादरचोद, चोद मां के लौड़े, चोद साले रेजाचोद, बना दे मुझे भी रेजा, बना दे ओह ओह मुझे रंडी साले कुत्ते हरामजादे चुदक्कड़,” बोलती हुई बिल्कुल रंडी की तरह बिंदास चुदी जा रही थी। करीब चालीस पचास मिनट तक वह मुझे, निचोड़ता रहा, रगड़ता रहा, घसीट घसीट कर भंभोड़ता रहा और अंतत: हुआ खल्लास, उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह और क्या खल्लास हुआ, ओह फच्च फच्च मेरी चूत में फौव्वारा छोड़ने लगा अपने गंदगी भरे वीर्य का।

“ले्ए्ए्ए्ए्ए्ए ले्ए्ए्ए्ए्ए्ए आ्आ्आ्आ आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्।” मुझे इतनी जोर से दबोचा कि मेरी सांस ही मानो रुक गयी थी। लेकिन जो भी हो, मैं निहाल हो उठी। बेसाख्ता खुद भी चिपक गयी आनंदमुदित। उस दौरान मैं तीन बार झड़ी, और वाह, क्या खूब झड़ी। कुश्ती के पश्चात जैसे दो पहलवान हांफते हैं, वैसे ही पसीने से लतपत, सीमेंट से पुते, पड़े हांफ रहे थे, पूर्णतयः तृप्त।

“आह रज्जा, बड़ा आनंद दिया रे चोदू, दीवानी बना दिया साले चूतखोर, चुदक्कड़ मियां, जवाब नहीं तेरे लंड का और तेरी चुदाई की।” मेरे उद्गार थे। बेसाख्ता चूम उठी उस हवस के पुजारी को। परवाह नहीं थी अपने शरीर की दुर्दशा की, यादगार जो था वह लंड, यादगार जो थी वह चुदाई, ठीक अपनों की नाक के नीचे, अपने ही परिसर में।

“तेरा भी जवाब नहीं रे लंडखोर रानी। यह तो शुरुआत है। अभी तो हमारे बीच एक से एक चुदक्कड़ बाकी हैं। इस लौंडे से पूछ ले, कैसे हम सबके लंड खाता रहता है अपनी गांड़ में, सब मिलेंगे, सब चोदेंगे, खुश हो जाएंगे सब, ऐसी मालकिन अल्लाह करे सबको मिलें।” वह मुदित मन रहस्योद्घाटन कर रहा था और मैं खुश हो रही थी कि बैठे बिठाए अपने परिसर में ही ऐसे चुदक्कड़ मिल रहे हैं। मिलूंगी, सबसे मिलूंगी, चुदुंगी, सबसे चुदुंगी, यह सोचते हुए अपने नुचे चुदे, थके, गंदे शरीर में सारी शक्ति एकत्रित कर सबकी नजर बचा कर अपने घर में दखिल हुई और सीधे अपने कमरे के बाथरूम में घुस गयी, फ्रेश होने।

आगे की कथा अगली कड़ी में।

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11-28-2020, 02:35 PM,
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प्रिय पाठकों, अब तक आपलोगों ने पढ़ा कि रामलाल के छोटे भाई की पत्नी सरोज किस तरह जिद कर रही थी रामलाल को अपने घर वापस ले जाने के लिए। लेकिन न ले जा पाई। अपने तन की भूख मिटाने का यह साधन था, बेकल हो रही थी फिर से उसे पाने की लेकिन असफल रही। उस क्रम में मैंने उसपर जाहिर कर दिया था कि मैं भी उस मंदबुद्धि औरतखोर रामलाल की अंकशायिनी बन गयी हूं। सरोज को बता चुकी थी कि मुझपर उनके अनैतिक संबंध के राज का पर्दा फाश हो चुका है। सरोज झेंपी, किंतु शारीरक भूख के आगे मेरे प्रस्ताव को मानने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। प्रस्ताव था यदा कदा जरूरत के हिसाब से अपनी कामक्षुधा शांत करने हेतु मेरे यहां आ जाने का, जिसके लिए सदैव हमारा द्वार खुला रहेगा। मुझे पता था कि वह आएगी, रामलाल की दीवानी रबिया और शहला भी आएंगी। वही हुआ भी। निकल पड़ी हरिया और करीम की भी। बहती गंगा में हाथ धोने लगे वे भी। यह तो हुई रामलाल, सरोज, रबिया और शहला से संबंधित बातें। इसके अलावे मैंने एक और बात का जिक्र किया था, अपने वृद्धाश्रम भवन के निर्माण स्थल पर निर्माण की प्रगति के निरीक्षण के दौरान गोदाम में दो पुरुषों को आपस में समलैंगिक संबंध बनाते हुए पकड़ी तो उनमें से ऊपर सवारी गांठने वाला था एक मुसलमान राजमिस्त्री सलीम मियां। एक अल्पवय: मजदूर के साथ गुदामैथुन में लिप्त था। उस मिस्त्री के आकर्षक लिंग के आकर्षण में बंध कर खुद को परोस बैठी। रोष का दिखावा और असहमति का नाटक करते हुए उस कामुक राजमिस्त्री के हवस का शिकार बन बैठी। उस गोदाम के गंदे माहौल में, सीमेंट बोरों के ऊपर, सीमेंट से पुत कर बंदरिया बनी उस गंदे दढ़ियल मिस्त्री के बलात्कारी तरीके से वहशियाना नोच खसोट भरे संभोग के रोमांचक आनंद में मुदित हो उठी। मेरे रंडीपन का गवाह था वहां उपस्थित अल्पवय: मजदूर, जो आंखें फाड़े हमदोनों के बीच हो रहे जंगली जानवरों सरीखे संभोग को प्रस्तर मूर्ति बने देख रहा था।

वासना के उस तूफान के पश्चात मैं, नुची चुदी, निचुड़ी, थकी मांदी, सीमेंट से नहाई, लड़खड़ाते कदमों से, सबकी नजरें बचाती बाथरूम में घुसी और नहाते हुए सोचने लगी, कामुकता के वशीभूत यह मैं क्या कर बैठी। एक गंदे, वासना के कीड़े राजमिस्त्री के साथ उस गंदे गोदाम में, गंदगी में लिसड़ती घिसटती, कैसे कुतिया की तरह चुदती रही। मेरे साथ यही समस्या है। शारीरिक भूख के आगे वासना की धधकती ज्वाला में मैं अंधी हो जाती हूं। अवसर, स्थान, व्यक्ति, मेरे लिए सब गौण हो जाते हैं, महत्वपूर्ण होता है बस षुरुष/पुरुषों का/के लिंग और उस/उन लिंग/लिंगों से मेरी योनि का मिलन, चाहे तरीका कैसा भी हो, कितनी भी जलालत भरी हो। अब उसी दिन की बात ले लीजिए, उसके गंदे शरीर से उस गंदे स्थान पर, गंदे तरीके से अपने शरीर की भूख मिटाना सच में बेहद रोमांचक और अत्यंत आनंददायक महसूस हो रहा था मुझे और सब कुछ लुटाने के पश्चात भी उस मिस्त्री की बातें सुनकर मेरे मन में अन्य मजदूरों के सम्मुख भी अपने तन को परोसने की आकांक्षा सिर उठाने लगी थी। मुझे साफ साफ महसूस हो रहा था कि इन मेहनतकश मजदूरों के गठे, कसरती शरीरों की दमदार कामक्षमता अतुल्य होगी। गंदे शरीर जरूर होंगे उनके, लेकिन मेरे जैसी कामपिपासु महिला के तन की अदम्य शारीरिक भूख उन मजदूरों से अच्छा शायद ही और कोई मिटा सकता था। वह औरतखोर मिस्त्री सलीम मियां तो एक उदाहरण था। मैं मन ही मन निश्चय कर चुकी थी कि उन कामगरों से इसी प्रकार मजा लूंगी।
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11-28-2020, 02:36 PM,
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मुझे उस समय तक पता नहीं था कि मजदूरों की सही संख्या क्या थी, फिर भी अनुमान के अनुसार लगभग दस की संख्या तो जरूर होगी। जिनमें कुछ औरतें रेजा थीं, कुछ कुली और दो या तीन मिस्त्री और उनके कार्य की देखरेख के लिए अभियंता सह ठेकेदार हर्षवर्धन दास जी नें एक स्थानीय, लगभग पचपन वर्षीय आदिवासी बुजुर्ग, छगना मुंडू को नियुक्त कर रखा था। दूसरे दिन मैं ऑफिस से थोड़ी जल्दी ही आ गयी थी। उस वक्त चार बज रहा था। मैं फटाफट अपना लैपटॉप अपने कमरे में रखकर भवन निर्माण स्थल में पहुंची। मैंने देखा, काम करन वालों में, तीन मिस्त्री, पांच कुली और चार रेजा थे। गोदाम के दरवाजे के बाहर छज्जे के नीचे कुर्सी पर छगना बैठा हुआ था। चूंकि मजदूरों के जाने का समय होने वाला था, इसलिए बचे खुचे मसाले को जल्दी जल्दी खपाने में सभी व्यस्त थे। सभी मजदूर स्थानीय आदिवासी ही थे। मिस्त्रियों में सलीम मियां के अलावे दो और लोग थे, एक करीब चालीस वर्षीय, अधपके बालों वाला हट्ठा कट्ठा काला ठिंगना, और दूसरा मझोले कद का करीब पचास वर्षीय, दुबला पतला गंजा, बेतरतीब दाढ़ीवाला व्यक्ति था। मजदूरों में उस अठारह वर्षीय काले चिकने लौंडे के अलावे बाकी सबकी उम्र बीस से तीस वर्ष के बीच रही होगी। एक लंबे कद का था, करीब छ: फुटा और बाकी सब औसत कद के गठीले शरीर वाले काले कलूटे आदिवासी थे। वहां काम करने वाली रेजाएं भी बीस से तीस की उम्र की थीं। देखने में तीन शादीशुदा लग रही थीं और एक कुवांरी। सभों की कद काठी ताकरीबन एक ही तरह की थी। करीब साढ़े चार से पांच फुट के बीच उनका कद रहा होगा। शादीशुदा रेजाओं का शारीरिक गठन भी काफी अच्छा था। सभी का रंग सांवला था। उनमें कम उम्र, बगैर शादीशुदा रेजा का नयन नक्श बाकी रेजाओं से अधिक आकर्षक था। वह छरहरी काया की आकर्षक शारीरिक बनावट वाली सांवली सी युवती थी। शारीरिक अनुपात तथा उम्र के लिहाज से काफी बड़े बड़े उरोज थे उसके और नितंब भी काफी बड़े थे। कुल मिला कर बहुत ही सेक्सी युवती थी वह। कुवांरी होने के बावजूद काफी चंचल, वाचाल, चतुर और खेली खायी लग रही थी।

मैं घूमती हुई उनके सुपरवाइजर छगना के पास पहुंची।

“नमस्ते मैडम।” छगना खड़ा हो गया। सभी कामगरों का ध्यान अब मेरी ओर पड़ा। सलीम मियां मुस्कुरा रहे थे। उसके सहयोगी मिस्त्री भी मुझे घूर रहे थे। उसी तरह बाकी कामगर भी मुझे विचित्र नजरों से देख रहे थे।

“नमस्ते म़ुंडू जी, बैठिए बैठिए। और बताईए, कैसा चल रहा है सब काम?” औपचारिक तौर पर पूछ बैठी।

“सब ठीक चल रहा है मैडम।” उसने उत्तर दिया। मैंने पहली बार छगना को गौर से देखा। अजीब सा लगा मुझे उसके व्यक्तित्व में। उसकी शारीरिक बनावट अजीब थी, आम मर्दों से कुछ अलग, सीने के उभार उसकी शारीरिक बनावट के हिसाब से कुछ अधिक थे जो आम पुरुषों से मेल नहीं खाते थे। शारीरिक गठन तो बेहद सामान्य था लेकिन असामान्य थे उसके सीने के उभार और नितंब। तभी गोदाम के अंदर से एक और मजदूर, सिर्फ गंदे से पैंट पहने हुए पसीने से लतपत, बाहर निकला। चूंकि कमर से ऊपर वह नंगा था, उसका शारीरिक सौष्ठव देखते ही बन रहा था। कसरती शरीर, चौड़ा चकला सीना, बाहों की मछलियां फड़कती हुईंं। बाकी सभी मजदूरों से लंबा तगड़ा था, कद करीब करीब छ: फुट का होगा। उम्र करीब तीस बत्तीस का होगा। मुझे देखते ही तनिक हडझबड़ा सा गया। चेहरे का रंग तनिक उड़ गया था। मुझे लगा कुछ गड़बड़ है, दाल में कुछ काला अवश्य है। छगना भी तनिक घबरा सा गया था, फिर भी संभल कर बोला, “का रे मंगरू, काम होलौ (क्या रे मंगरू, काम हुआ)?”
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11-28-2020, 02:36 PM,
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एक बारगी तो नि:शब्द रहा फिर वह भी संभल कर बोला, ” ह ह हां होय गेलौ (हो गया)।”

“क्या कर रहे थे तुम?” मैं बोली।

“क क कुछ नहीं, बस अंदर का सामान सजा रहा था।” वह लड़खड़ाती जुबान से बोला।

“आज का काम खतम हो गया ना, तो मैंने सारा सामान को ढंग से सजा कर रखने को कहा था।” मुंडू तपाक से बोला। तभी अंदर से वही कल वाला चिकना लड़का बाहर निकला। वह भी सिर्फ एक गंदा सा पैंट पहना हुआ था। उपर का बदन नंगा बदन पसीने से लतपत था।

“और यह?”

“यह भी यही कर रहा था। का रे खोकोन, होलौ ना (क्या रे खोकोन, हुआ ना)?” मुंडू बोला।

“हां दादा होय गेलौ (हां दादा, हो गया)। वह धीरे से बोला और आगे बढ़ गया। उसकी चाल बिल्कुल लड़कियों की तरह थी, कमर मटका कर चल रहा था साला गांडू की औलाद। इस कमसिन उम्र में ही इन कामुक भेड़ियों के हत्थे चढ़ गया था और अब तो पूरा माहिर हो गया होगा। हो क्यों नहीं गया होगा, जब सलीम के जैसे इतने बड़े लिंग से आनंदपूर्वक गुदा मैथुन करवा सकता है तो, परिपक्व हो ही गया होगा। समझ तो मैं गयी थी कि अंदर क्या सजा रहे थे दोनों। निश्चित ही इस लौंडे की गुदा मेंं महेश अपना लिंग सजा रहा था। खैर मैं अनजान बन गयी। उधर सभी मिस्त्री और मजदूर मुस्कुरा रहे थे। उनकी रहस्यमयी मुस्कान से मुझे आभास हो गया था कि गोदाम के अंदर जो कुछ हो रहा था उससे वे अनभिज्ञ नहीं हैं। उनकी नजरें मुझ पर भी थीं। उनकी नजरों में मैं अपने लिए हवस की भूख स्पष्ट देख रही थी। पहले तो कभी मैंने उन्हें इस तरह मुझे देखते हुए नहीं देखा था। आज यह परिवर्तन क्यों था? तो क्या, तो क्या, कल वाली बात इन्हें पता चल गयी है? शायद, शायद क्यों, उनकी मुस्कान और नजरों में जो कुछ था, चीख चीख कर चुगली कर रहा था कि अवश्य उन्हें गोदाम में मेरे साथ हुए गंदे खेल का पता चल चुका है। सोच कर ही झुरझुरी सी दौड़ गयी मेरे तन में। हाय राम, यह क्या हो गया? मैं थोड़ी विचलित हो उठी। थोड़ी शर्मिंदा भी। क्या सोच रहे होंगे सब मेरे बारे में? मेरी मालकिन वाली गरिमा चिंदी चिंदी हो चुकी थी शायद उनकी नजरों में। एक संभ्रांत, सुंदर महिला अवश्य थी, मगर कामुकता के वशीभूत खुद को बड़ी सस्ती बना बैठी थी। अब हो भी क्या सकता था, जैसी करनी वैसी भरनी। भुगत अब, साली कमीनी कुतिया, देख तेरी लंडखोरी नें तुझे इन लोगों की नजरों में कहां ला खड़ा कर दिया है, मैं मन ही मन खुद को कोसने लगी। लेकिन अब चिड़िया तो खेत चुग चुकी थी, अब पछताये का होत। इस परिस्थिति से मुझे खुद निकलना था, लेकिन यहां निकलना किसे था। मैं खुद ही तो इस गड्ढे में कूदी थी। बड़ी अजीब मन:स्थिति से गुजर रही थी। एक तरफ अपने सस्ते होने की शर्मिंदगी, तो दूसरी तरफ इन मजदूरों से अपनी शारीरिक भूख मिटाने की अदम्य इच्छा। अंततः पहले की तरह जीत शैतान की हुई। मन के कोने में बैठा शैतान बोल रहा था, “अब सोच क्या रही है साली छिनाल, जा जा, आगे बढ़, इतने चुदक्कड़ मर्द तुझे चोदने को तैयार हैं और तू किस दुविधा में फंसी फड़फड़ा रही है? मजा ले ले। दुनिया में औरतें इसी लिए तो बनायी गयी हैं, वरना भगवान को औरत बनाने की क्यों सूझी। स्वर्ग नर्क किसने देखा है? यहीं स्वर्ग है पगली, यही स्वर्गीय सुख है। तेरे मन में ऐसा सुखद विचार डालने वाला और तुझसे करवाने वाला वही है, वही है, लूट मजा लूट, दे मजा दे, बांट मजा बांट।” और बस, शैतान जीत गया। मैं मन ही मन ठान बैठी, उस स्थिति से निकलने की नहीं, उस स्थिति में डूब कर मजा लेने की। मुंडू की बात सुनकर खास कर उस कम उम्र चंचल रेजा की हंसी रुक ही नहीं रही थी।
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11-28-2020, 02:36 PM,
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काहे रे कांता, बड़ा हंसी आवा थौ (क्यों रे कांता, बड़ी हंसी आ रही है)?” मुंडू बोला।

“अईसने ही, तोर बात सुईन के (ऐसे ही, तेरी बात सुनकर)।” वह हंसती हुई बोली।

“अईसन का बोलली हम (ऐसा क्या बोला मैं)? अपन काम से काम रख छमिया, नहीं तो….” आंखें तरेर कर मुंडू बोला।

“नहीं तो का?” कोई फर्क नहीं पड़ा कांता पर।

“तोर से सो बाते करेक बेकूफी हौ। चल छुट्टी कर, भाग हियां से (तुम से तो बात करना ही बेवकूफी है। छुट्टी करो और दफा हो जाओ यहां से)।” मुंडू नें हथियार डाल दिया।

“जा थी, जा थी, बड़ा आय हौ भगाएक वाला (जा रही हूं, जा रही हूं, बड़ा आया है भगाने वाला)।” कांता पैर पटकती हुई बोली और हाथ मुंह धोने चली। मुंडू खिसिया गया। अब सभी हंस पड़े। मैं उस नकचढ़ी छमिया को देखती रह गयी। अबतक सभी अपने काम समेट चुके थे और हाथ पांव धोने लगे। मुंडू भी अपना सामान समेटने लगा। एक एक कर सभी रुखसत होने लगे। मैने ध्यान दिया कि कल वाला मिस्त्री सलीम, अपने और दो साथी मिस्त्रियों के साथ धीरे धीरे हो रहा था।

“तो मैडम, अब हम चलते हैं।” मुंडू अपना बैग उठाते हुए बोला।

“ठीक है।” मैं सिर्फ इतना ही बोली।

“सलीम, सामान वगैरह देख लेना। कोई सामान बाहर न रहे।” कहते हुए वह निकला।

“हां जी, देख लेंगे।” संक्षिप्त सा उत्तर दिया उसने। उसकी आशा भरी निगाहें मुझी पर टिकी थीं। उन तीन मिस्त्रियों को छोड़ कर मुझे विचित्र निगाहों से देखते, मुस्कुराते हुए सभी जा रहे थे। चाहते हूए भी मुंह खोल कर तो बोल नहीं सकती थी कि, जा कहां रहे हो हरामियों, चुदने के लिए मरी जा रही इस लंडखोर को तड़पती छोड़कर। उन सबके निकलते ही मैं तनिक मायूस घर की ओर मुड़ी, लेकिन तभी, “मैडम जी।” सुनकर पांव जम गये मेरे। यह आवाज थी सलीम की।

“क्या है?” मन बल्लियों उछलने लगा।

“आज नहीं होगा?”

“क्या?”

“वही, कल वाला।”

“क्या कल वाला?”

“भूल गयीं, गोदाम के अंदर वाला?”

“क्या?”

“अब ड्रामा मत कीजिए। देखिए, आज रफीक मियां और बोदरा भाई भी हैं।”

“यह ककककक्या्आ्आ्आ्आ्आ बोल रहे हो?” मन ही मन खुश हो गयी।

“कुछ नया तो नहीं बोल रहा हूं।”

“तततततो तुमने इन्हें भी बता दिया?” तनिक नाराजगी से बोली।

“हां बता दिया, गलत किया क्या?”

“हां गलत किया। बहुत गलत किया। कल भी तुमने गलत किया। जो भी किया जबर्दस्ती किया।” मैं कम बदमाश थोड़ी न थी। इतनी आसानी से उन लोगों से चुद जाती क्या? मन तो कर रहा था कि ये लोग टूट पड़ें मुझ पर। बेवजह बातों में समय जाया क्यों कर रहे हैं।

“मजाक मत कीजिए मैडमजी। आपकी मर्जी न होती तो हमारी क्या मजाल कि आपको छू भी सकें।”

“सबको बता दिया?” मैं बोली।

“मैंने रफीक को बताया, रफीक नें बोदरा को बताया और बाकी को उस लड़के खोकोन नें बताया है शायद। वह भी तो कल वहीं था।” अभी हमारी बातें हो ही रही थीं कि रामलाल टपक पड़ा।

“अरे मैडम आप यहां हैं, मैं सब जगह आपको ढूंढ़ रहा था।” रामलाल आते ही बोला।

“क्यों ढूंढ़ रहे थे?” खीझ उठी मैं।

“ऑफिस से लौटने के बाद देखा नहीं ना।”

“अब देख लिया ना। जाईए अब, देख रहे हैं ना हम बात कर रहे हैं।”

“नहीं, आप बात कर लीजिए फिर चलिए मेरे साथ।” वह जिद करने लगा।

“आप भी ना, कैसी बात कर रहे हैं।” मैं नरम हो कर समझाने लगी, “मैं आ रही हूं ना।”

“नहीं, आप मुझसे आजकल दूर दूर रहती हैं। मैं नहीं जाऊंगा यहां से।” बच्चों जैसी जिद थी। तभी मेरी नजर हरिया पर पड़ी।

“हरिया चाचा, रामलाल को ले जाईए यहां से, करीम को बोलिए इन्हें कहीं घुमा लाए। तबतक मैं इनसे निबट लेती हूं। रामलाल जी अभी आप जाईए, फिर रात को मिलते हैं। मैं कहीं भागी जा रही हूं क्या?” किसी तरह रामलाल से पीछा छुड़ाया मैंने। समझ गयी कि आज रामलाल मुझे छोड़ेगा नहीं। रामलाल के जाने के बाद मैं सलीम और उसके सहयोगी मिस्त्रियों से मुखातिब हुई।

“हां तो क्या कह रहे थे तुम?”

“यही कि आज फिर……”

“लललललेकिन कल तुम अकेले थे और आज तुम तीन?” मैं घबराने का नाटक करने लगी।

“तो क्या हुआ?”

“क्या हुआ मतलब? मुझे क्या समझा है तुमने?” मैं रोष से बोली।

“जो समझना था कल ही समझ लिया। चलिए अंदर।” अरे यह तो हुकुम चला रहा था।

“नहीं जाती।” विरोध था मेरा।

“चल साली बुरचोदी अंदर।” मुझे संभलने का मौका दिए बिना अपनी मजबूत बांहों में दबोच कर गोदाम के अंदर ले आया जिसका दरवाजा खोले ठिंगना बोदरा बड़ी बेकरार मुद्रा में खड़ा था। हमारे साथ साथ वह दुबला पतला टकला दढ़ियल रफीक भी दाखिल हुआ। हमारे अंदर दाखिल होते ही भड़ाक से गोदाम का दरवाजा बंद हो गया।
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11-28-2020, 02:36 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
नह्ह्हीं्ई्ं्ईं्ईं्ईं्ईं, पपपपप्ली्ई्ई्ई्ई्ईज्ज्ज्ज। ऐसा मत करो।” मैं गिड़गिड़ाने का नाटक करने लगी। चाहती तो छूट सकती थी, मुक्त हो सकती थी और वे मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकते थे। लेकिन चाहती तब ना।

“कैसा न करें? न चोदें? छोड़ दें बिना चोदे? कल तो आह राजा, ओह राजा, चोद राजा बोल रही थी और आज क्या हुआ?” अब वह अपनी औकात पर आ गया था। मैं अंदर ही अंदर खुश हो रही थी।

“यह तुम क्या कर रहे हो?” मेरा नाटक बदस्तूर जारी था।

“वही जो कल किया था।”

“लेकिन कल तुम अकेले थे।”

“तो तुझे क्या फर्क पड़ता है?”

“फर्क पड़ता है। मैं अकेली और तुम तीन। मार डालोगे क्या?”

“तू? तू मरेगी नहीं साली नौटंकी बाज। अऊर तू लोग का देखाथा मादरचोद, पकड़ साली कुतिया के, खोल हरामजादी केर कपड़ा। (और तुमलोग क्या देख रहे हो मादरचोद, पकड़ो साली कुतिया को, खोलो हरामजादी के कपड़े)।” वह खूंखार लहजे में बोला। बस क्या था, पिल पड़े तीनों के तीनों मुझ पर और देखते ही देखते नंगी हो गयी मैं।

“हाय राम, नहीं नहीं। ओफ्फोह, मैं ऐसी नहीं हूं।” मैं न न करती रही।

“तू कैसी है, पता चल गया कल ही” वह फटाफट अपने कपड़े खोलने लगा। इस वक्त मेरा नंगा बदन फर्श पर बिछे सीमेंट के खाली बोरों के बिछौने पर गिरा पड़ा था। बल्ब की रोशनी में मेरा नंगा बदन चमक रहा था। मेरे दपदपाते नंगे जिस्म को देख कर उन तीनों के चेहरे की रंगत बदल गयी। अब तक झिझक रहे बाकी मिस्त्री, रफीक और बोदरा भी अब दुर्दांत भेड़िए की मानिंद दिख रहे थे। उनकी आंखों में वासना की चमक स्पष्ट देखी जा सकती थी। उन्होंने भी अपने कपड़ों से मुक्त होने में बिल्कुल समय नहीं गंवाया। साला चार फुटिया ठिंगना बोदरा तो कुछ अधिक ही बेकरार था। काला, ठिंगना बनमानुष जैसा आदमी, जिसका काले काले झांट से भरा अविश्वसनीय काला फनफनाता लिंग, करीब सात इंच लंबा बोदरा

“वाह सलीम भाई, खूब जबरदस्त माल पाईले (पाया) भाई। बड़ा किस्मत से अईसन (ऐसी) माल चोदे ले (चोदने के लिए) मिललक (मिला) भाई। अईज (आज) तक कहां करिया करिया (काली काली) रेजा मन केर बूर चोदत रहली अऊर अईज मिललक अईसन सुंदर जनी, वाह मजा आए गेलक (रेजा लोगों की चूत चोद रहे थे और आज मिली ऐसी सुंदर औरत, वाह मजा आ गया)।” कहते कहते कूद कर चढ़ गया मुझ पर और सीधे मेरी चूचियों पर धावा बोला। जिस हड़बड़ाहट और बेदरदी से उन्होंने मेरे कपड़ों को नोच नाच के खोला था, मैं हलकान थी, संभलना चाह कर भी संभल नहीं पाई और गिर पड़ी थी उसी सीमेंट के खाली बोरों की बिछावन पर और अभी सांसें संभली भी नहीं थीं कि बोदरा रुपी बनमानुष का आक्रमण हुआ था। वह मुझ पर चढ़ा हुआ मेरी चूचियों को पहले तो सहलाने लगा, “अहा, केतई मस्त गोल गोल, बड़का बड़का चूची आहे रे (अहा, कितनी मस्त गोल गोल, बड़ी बड़ी चूची हैं रे)” कहते हुए दबाना शुरू कर दिया।

“ओह, नहीं, ओह बाबा छोड़ो मुझे। ओह इस तरह जलील मत करो मुझे।” मैं तड़प कर बोली।

“जलील? और तुझे? यही तो चाह रही थी ना?” सलीम हंसता हुआ बोल उठा।

“ऐसा तो नहीं चाह रही थी उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह।”

“अब कैसा चाह रही थी, उससे हमें क्या, अब तो तू नंगी, हम नंगे, नोचा नोची, ठेल्लम ठेल्ली तो होगा ही। तू मान न मान, चोदा चोदी तो होगा ही।” सलीम बेशर्मी पर उतर आया। इधर इतनी देर से चुप वह दुबला पतला टकला दढ़ियल भी नंगा भुजंगा मेरी चूत सहलाने लगा। मैं गनगना उठी।

“अरे अरे इकर बुर देख, सार हरामजादी बड़ा शरीफ दिखात रहे अपन के। एतई बड़का बुर में तो दू दू लौड़ा घुईस जातौ। चल सलीम, अईज हम दुन्नो मिल के चोदब ई रंडी के (अरे इसकी बुर देखो, साली हरामजादी बड़ी शरीफ दिखा रही थी खुद को। इतनी बड़ी बुर में तो दो दो लंड घुस जाएगा। चल सलीम, आज हम दोनों मिलके चोदेंगे इस रंडी को)।” वह दढ़ियल टकला, लिक्कड़ भी कम नहीं था। कांप उठी मैं उसकी बात सुनकर। छटपटाने लगी मैं छूटने के लिए।

“नहीं ओह नहीं, ऐसा मत करो मेरे साथ, मर जाऊंगी मैं।” मैं बेबसी में बोली।

“हट साली रंडी, तू मरेगी थोड़ी। तू तो मजे से चुदवाएगी। सब दिख रहा है। सब पता चल रहा है, तू कितनी बड़ी लंडखोर है। साली इत्ता बड़ा पावरोटी जैसा फूला हुआ भोंसड़ा बना के भी ड्रामा कर रही है। चल रे रफीक, दुन्नो मिल के चोदबई और तोंय बोदरा, का करबे बोल इकर संगे (चल रफीक, दोनों मिलकर चोदेंगे और तू बोदरा, इसके साथ क्या करोगे बोल)।” मेरी योनि खुद ही बता रही थी कि मैं कितनी बड़ी लंडखोर हूं और सलीम जैसे चुदक्कड़ों को भला कैसे पता नहीं चलता।

“अरे दिखाई नहीं देवथे, इकर गांड़ के देख, एतई सुंदर गोल गोल मक्खन जैसन गांड़ के कईसन छोईड़ देबौ, ई एक्के ठो गांडू खोकोन केर गांड़ तो खूब चोईद लेलों, अईसन सुंदर गांड़ बड़ा किसमत से मिल आहे, कईसन छोड़बौ। पहिले तुहिन चोदा, उकर बाद मोंय इकर गांड़ केर बाजा बजाबूं, तबतक चूस रे रंडी हमर लौड़ा। (अरे दिखाई नहीं दे रहा है, इसकी गांड़ देखो, इतना सुंदर गोल गोल मक्खन जैसा गांड़ कैसे छोड़ दूं। इस एक ही गांडू खोकोन की गांड़ तो खूब चोद लिया, ऐसा सुंदर गांड़ बड़ी किस्मत से मिला है, कैसे छोड़ूं। पहले तुमलोग चोद लो, उसके बाद मैं इसकी गांड़ का बाजा बजाऊंगा, तबतक चूसो रंडी मेरा लौड़ा)।” बोदरा मादरचोद, गांड़ का रसिया, लार टपकाती आवाज में बोला और अपना दुर्गंध युक्त लिंग मेरे मुंह में घुसेड़ने लगा।
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11-28-2020, 02:36 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
रुक बे लौड़े के ढक्कन, पहले हमें इसकी चूत में लंड तो फिट करने दे, बाद में चुसवाना अपना लंड।” सलीम बोला और खुद सीमेंट के बोरे पर बैठ गया और मुझे किसी गुड़िया की तरह उठा कर अपनी गोद में ऐसा बैठाया कि उसका मूसलाकार लिंग मेरी योनि को फैलाता हुआ सरसरा कर घुस गया।

“ये ले मां की चूत, ई गया मेरा लौड़ा।” सलीम की विजय घोषणा थी।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्, ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्।” बस यही आवाज निकली मेरे मुंह से। तभी रफीक सामने से मुझ पर चढ़ दौड़ा। करीब साढ़े छ: इंच ल़ंबा खतना किया हुआ लिंग, पहले से बिंधे मेरी योनि में घुसेड़ने लगा।

“अब ई ले मेरा लोड़ा्आ्आ्आ्आ आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्।” जबर्दस्ती ठूंसता चला गया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् मां्आं्आं्आं, ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बाबा्आ्आ्आ, फट्ट्ट्ट्ट्ट गय्य्य्यीई्ई्ई्ई्ई फट्ट्ट्ट्ट्ट गय्य्य्यीई्ई्ई्ई्ई।” मैं कलप उठी। लेकिन सलीम की सख्त पकड़ में बेबस पंछी की तरह छटपटा कर रह गयी। दो लंड मेरी चूत में, ओह्ह्ह्ह्ह मां्आं्आं्आं, पहले भी हो चुका था ऐसा मेरे साथ मगर आज की बात कुछ और थी। दोनों लंड खतना किए हुए। दोनों साले दढ़ियल चुदक्कड़। रफीक देखने में दुबला पतला था, लंड की लंबाई भी आम लंडों से कुछ ही ज्यादा थी लेकिन मोटाई, ओह्ह्ह्ह्ह भगवान, गधे जैसा मोटा। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह। खैर झेल गयी। फटी भी नहीं मेरी चूत, मगर फैल कर सचमें भोंसड़ा जरूर बन गयी। बस अब क्या था, गचागच, भचाभच, ठोंकने का मानो दौरा सा चढ़ गया उनपर। इधर बोदरा बेटीचोद हरामजादा, अपने दुर्गंधयुक्त लंड को मेरे मुंह में ठूंसता चला गया। अब तो हो गया मेरा बंटाढार। तीन लंड, मेरे अंदर। बड़ी मुश्किल से बोदरा का लंड मुंह में ले पा रही थी लेकिन वह कसाई तो मेरी हलक तक लंड ठोंके दे रहा था। बड़ी मुश्किल से सिर्फ घों घों की घुटी घुटी आवाज मेरे मुंह से निकल रही थी।

खैर जैसे तैसे करीब दो तीन मिनट की तकलीफदेह दौर के गुजरने के पश्चात मुझे आनंद मिलने लगा। उफ्फ वह रोमांच भरा आनंद, शब्दों में बयां करना मुश्किल है। दो आदमियों के मोटे मोटे लिंग का घर्षण मेरी योनि में, उफ्फ भगवान, पागल हो गयी मैं तो। तभी बोदरा मुझे छोड़ कर अलग हो गया। मेरी जान में जान आई।

“हट साला, अईसन लौड़ा चुसवाएक से मजा नी आवाथौ। पहिले तुहिने चोईद लेवा, उकर बाद मोंय इकर गांड़ चोदबौ, आराम से (हट साला, ऐसे लंड चुसवाने से मजा नहीं आ रहा है। पहले तुमलोग चोद लो, फिर मैं इसकी गांड़ चोदूंगा आराम से।)” बोदरा बोला।

“ठीक, ठीक, एखन हमिन के चोदेक दे (ठीक, ठीक, अभी हमें चोदने दे)। आह् ओह ओह आह, ले ले ओह सार रंडी, आह सार बुरचोदी” रफीक मेरी चूचियों को निचोड़ता हुआ चोदने में मगन बोला। मेरा मुंह अब खुला था। मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थीं। मैं चाह कर भी अपनी आहें, सिसकारियों को रोक नहीं पा रही थी। मैं इनकी स्थानीय भाषा न सिर्फ समझती थी बल्कि अच्छी तरह बोल भी सकती थी। मैं इस घटना में स्वभाविकता लाने के लिए अब उन्हीं की भाषा का इस्तेमाल करने जा रही हूं।

“आह् रे ओह रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए, हाय रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए, आ्आ्आ्आ्ह, मजा, एखन मजा आवाथौ रज्जा, आह हाय रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए हमर बुर, भोंसड़ा बईन गेलक रज्जा, आह्ह ओह्ह अब बड़ा मजा आवाथौ रे्ए्ए्ए्ए्ए मादरचोद, चोद चोद सार कुकुर मने ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए मोके रंडिए बनाए देवाथा आह ओह (अब मजा आ रहा है रज्जा, आह, हाय रे मेरी बुर, भोंसड़ा बन गया रज्जा, आह ओह बड़ा मजा आ रहा हे रे मादरचोद, चोदो चोदो साले कुत्ते लोग, ओह रे, मुझे रंडी ही बना दे रहे हो आह ओह)। मैं मस्ती मे भर के उछल उछल कर चुदवाने लगी। उन्हें समझ आ गया कि अब मैं मस्ता गयी हूं। उनमें दुगुना जोश चढ़ गया। हुम्मच हुम्मच के ठोंकने लगे मेरी योनि में। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, मेरी बातों, उद्गारों ने मानो आग में घी का काम किया, धमाधम कुटाई होने लगी, मानो एक सिलेंडर में दो दो पिस्टन।

“आ्आ्आ्आ्ह, मोंय गेलों, ओह मोंय गेलों (मैं गयी, मैं गयी)” और मैं जड़ने लगी। झड़कर निढाल होने लगी लेकिन वे कसरती मिस्त्रि झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे मेरे निढाल शरीर को बी नोचते रहे, निचोड़ते रहे, कूटते रहे कूटते रहे करीब घंटे भर कुटाई चलती रही और मैं झड़ती, निढाल होती, फिर जगती, फिर झड़ती, यह कःरम करीब तीन बार मेरे साथ हुआ। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह निचोड़ कर रख दिया उन दढ़ियल कुत्तों नें। फिर जब उनके झड़ने की बारी आई तो, “आ्आ्आ्आ्ह आ्आ्आ्आ्ह बुरचोदी माय केर बुरचोदी्ई्ई्ई्ई्ई् बेट्ट्टी्ई्ई्ई्ई्ई, सा्आ्आ्आ्आर रंडी्ई्ई्ई्ई्ई आ्आ्आ्आ्ह (आ्आ्आ्आ्ह बुरचोदी मां की बुरचोदी बेटी, साली ऱडी, आ्आ्आ्आ्ह)” ऐसे कस के मुझे दबोचा कि मानो मेरी सांसें ही रुक गयीं। इतनी जोर से कसा था मेरे शरीर को मानो शरीर का सारा रस ही निचोड़ डालेंगे। थक कर निढाल, बदबूदार पसीने से लतपत, वहीं लुढ़क गये दोनों के दोनों और भैंसों की तरह डकारने लगे ,हांफने लगे, मानो मीलों दौड़ लगा कर आए हों। मेरी तो पूछो ही मत, जन्नत की सैर करते करते जैसे अचानक धम्म से जमीन पर गिर पड़ी थी। परवाह नहीं थी कि मैं वहां बिछे सीमेंट के बोरों में लगे सीमेंट से पुती जा रही थी।
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11-28-2020, 02:36 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
अभी मेरी सांसें सामान्य भी नहीं हुई थीं कि इतनी देर से मेरी गांड़ चोदने को बेकरार बोदरा अपना लंड उठाए चढ़ बैठा मुझ पर। “ननननहीं्ई्ई्ई्ई्ईं्ईं्ई़,” मैं मना करने लगी लेकिन मेरे नि:शक्त शरीर में इतनी जान नहीं थी कि उसे रोक पाती। मेरे नितंब पर सीमेंट पुता हुआ था, मगर उसे क्या, उसे तो बस चोदना था, मेरी गांड़ चोदना था।

“चुप रंडी, चोदे दे, बहुत देरी से लौड़ा पकईड़ के खड़ा रहलों बुरचोदी, चोदबे करब़ूं, चोदे बिना कईसन छोईड़ देबूं (चुप रंडी, चोदने दे, बहुत देर से लंड पकड़ के खड़ा हूं बुरचोदी, चोदूंगा ही, चोदे बिना कैसे छोड़ दूं)” कहते हुए मेरे निश्प्राण से शरीर को पलट दिया और मेरी सीमेंट पुते गांड़ की छेद तलाश कर भिड़ गया अपना सात इंच का हथियार लेकर। घप्प, और लो, हो गया, मेरी गांड़ का बंटाढार। पता नहीं सीमेंट के पाऊडर समेत किस तरह उसने अपना लंड घुसाया मेरी गांड़ में।

“आ्आ्आ्आ्ह, ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह, बथा थौ बथा थौ (दर्द हो रहा है दर्द हो रहा है)” मैं कराह उठी।

“एखन बथा थौ हरामजादी, तब्बे से बड़ा्आ्आ्आ्आ मजा आवत रहौ नी, एखन हमर पारी आलौ तो बथा थौ (अभी दर्द कर रहा है हरामजादी, अभी मेरा नंबर आया तो दर्द कर रहा है)” कहते कहते बेरहमी से चोदना चालू कर दिया। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, दर्द, आरंभ में भयंकर दर्द हुआ, जिसे मैं जबड़ा भींच कर पी गयी, लेकिन दर्द के कारण मेरी गुदा के रास्ते थोड़ा पीला पीला मल निकल गया, जिससे सन कर सीमेंट का पाऊडर पेस्ट बन कर ग्रीस का काम करने लगा और एक बार जब गुदाद्वार फिसलन भरा हुआ तो फिर मजा आने लगा। न उसे परवाह थी कि मेरे मल लिथड़े गांड़ की ऐसी तैसी कर रहा है और न ही मुझे परवाह थी। वस पीछे से मेरी चूचियों को दबोच दबोच कर चोदने लगा और मैं अपनी चूतड़ उछाल उछाल कर अपनी गांड़ का मलीदा बनवाने लगी। यह क्रम करीब आधे घंटे तक चला। फिर झड़ा वह, हरामजादा कुत्ता झड़ा, एकदम कुत्ते की तरह हांफता हुआ झड़ा और मेरी गांड़ में अपने गंदगी भरे वीर्य का फव्वारा छोड़ बैठा। तीनों के तीनों चुदक्कड़ तो मुझे चोद कर मुदित थे, लेकिन मैं, मैं तो नुचे चुदे शरीर के साथ वहीं पड़ी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही थी। कर क्या सकती थी और। कामुकता के वशीभूत मुसीबत को आमंत्रण देने में भी मैं कहां पीछे रहती थी। कोई और होता तो इसे सजा समझता, मगर इतनी जलालत भरी चुदाई के बावजूद मैं तृप्ति के सुखद अहसास से भर उठी थी। खासकर इस तरह की जोर जबर्दस्ती भरी चुदाई मुझे बेहद संतोष प्रदान करता थी, वही हुआ भी मेरे साथ।

खैर जब मैं कुछ सामान्य हुई तो खुद की हालत पर बड़ी कोफ्त हुई। सलीम और रफीक तो मेरी हालत देख कर मुस्कुरा रहे थे। वे अपने कपड़े पहन भी चुके थे। इधर बोदरा भी उठकर अपने बदन को झाड़ रहा था, उसके लंड पर सीमेंट, मेरा मल और खुद का वीर्य लिथड़ा हुआ था। वैसे ही नंगे वह बाहर के नल में धोने चला गया। टूटते बदन के साथ मैं किसी प्रकार उठी। गोदाम के अंदर तो रोशनी थी, मगर बाहर शाम गहरा गयी थी। मैं भी नंग धड़ंग बेशरमी के साथ बोदरा के पीछे पीछे नल के पास गयी और वैसी ही नल के नीचे बैठ कर सर से पांव तक खुद को धोने लगी। धो धा कर जब फिर गोदाम में आयी, तबतक बोदरा भी तैयार हो चुका था।

“तो, कैसन लगलक? (तो कैसा लगा?)” सलीम बोला। मैं अबतक वैसी ही बेशरमी के साथ नंगी ही खड़ी थी उनके सामने। उनकी नजरें अभी भी मेरी धुली धुलाई नग्न देह पर चिपकी हुई थीं।

“हरामजादा मन, मोराईए देवेक कर बिचार रहे का? (हरामजादे लोग, मार ही डालने का इरादा था क्या?)” मैं बेशरमी से मुस्कुरा उठी।

“मोरले का? (मरी क्या)” लार टपकाती नजरों से घूरता रफीक बोला।

“कोनो कसर छोईड़ रहा का? (कोई कसर छोड़े थे क्य?)” म़ै मीठी मुस्कान के साथ बोली।

“अच्छा ई सब बात छोड़, सच बताव, कईसन लगलक? (अच्छा यह सब छोड़ो, सच बताओ, कैसा लगा?” सलीम मेरे पास आया और मेरी नग्न देह को थाम कर चूचियों को सहलाता हुआ बोला।

“हट हरामजादा, अब ई भी पूछेक केर बात आहे का? (हट हरामी, अब यह भी पूछने की बात है क्या?)” मैं उसके सीने पर सर रख कर बड़ा लाड़ दिखाती हुई बोल उठी।
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11-28-2020, 02:36 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“हा हा हा हा,” सभी हंस पड़े।

“तो अब तोंय हमिन केर होय गेले। जे जे काम करेक आवेना, सोब के बोईल देबौ। तोंय हमिन केर मालकिन नहीं, बुरचोदी रानी अहिस। (तो अब तू हम लोगों की हो गयी। जो जो काम करन आते हैं सबको बोल दूंगा। तू हम लोगों की मालकिन नहीं, बुरचोदी रानी हो।)” मेरी चूचियां दबाते हुए बोला सलीम।

“हट रे बदमाश। ई का कहथिस? (हट रे बदमाश, यह क्या कह रहे हो?)” मैं उसके पैंट के ऊपर से ही लंड ऐंठते हुए बोली। फिर से टनटना उठा था उसका लंड।

“का गलत कहलक सलीम। ठीके तो कहलक। कईल से जेके मन करी, सेहे तोके चोदेकले आजाद होय जाबैं। तोके का फरक पड़ी, तोंय तो अहिसे अईसन, तोके तो लौड़ा से मतलब हौ ना। अब तो हम जईन गेली कि तोंय केतई बड़का लंडखोर जनी अहिस। पहिले तोर सुंदर काया के देईख देईख के हमिन केर लौड़ा खड़ा होय जात रहौ, मगर तोंय ठहरले बड़का घर केर इज्जतदार जनी, सो देईख के मन मसोस के रईह जात रही, मगर अब तो बाते कुछ और होय गेलौ। हमिन के का पता रहे कि तोंय इतई रंडी किसिम केर जनी रहिस, नहीं तो अईज तक हमिन में से एक्को जन बाकी नहीं रहतयं, सोभे तोके चोईद लेतैं अईज तक। (क्या गलत बोला सलीम। ठीक ही तो बोला। कल से जिसको मन होगा, वही तुम्हें चोदने के लिए स्वतंत्र होगा। तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा, तुम तो हो ही ऐसी, तुम्हें तो लंड से मतलब है ना। अब तो हमें पता चल गया है कि तुम कितनी बड़ी लंडखोर औरत हो। पहले तुम्हारी सुंदर काया देख देख कर हमारे लंड खड़े हो जाते थे, मगर तुम ठहरी बड़े घर की इज्जतदार औरत, सो देख कर मन मसोस कर रह जाते थे, लेकिन अब तो बात ही कुछ और हो गयी है। हमें क्या पता था कि तुम इतनी रंडी किस्म की औऋत हो, नहीं तो आज तक हममें से एक भी बाकी नहीं रहता, सभी आजतक तुम्हें चोद लेते।)” रफीक मेरी गांड़ सहलाते हुए बोलता जा रहा था।

“अच्छा होलौ। जे होलो, ठीक होलौ। नहीं तो आईज तक मोके रंडी बनाए देता तुहिन। (अच्छा हुआ। जो हुआ ठीक हुआ। नहीं तो आज तक मुझे रंडी बना चुके होते तुम लोग)” मैं मेरी गांड़ सहलाते रफीक का हाथ पकड़ कर बोली। “रंडी तो तोंय पहिले से हिकिस। (रंडी तो तुम पहले से हो।)” बोदरा बोला।

“चल हट कुत्ता कहीं का।”

“कुत्ता हैं तभी तो पीछे से चोदते हैं।”

“हां हां चोदते हो, चोदा ना, वो भी मेरी गांड़, बजा दिया बाजा मेरी गांड़ का, मेरे प्यारे कुत्ते।” मैं नंगी ही उन लोगों से घिरी, पैंट के ऊपर से ही रंडी की तरह बोदरा का लंड पकड़ कर बोली।

“तोहरा गांड़ हईए है अईसन मक्खन जैसन चीकन और गोल गोल की बस पूछ ही मत। (तेरी गांड़ है ही ऐसी मक्खन जैसी चिकनी और गोल गोल कि पूछो मत)” बोदरा बोला।

“अब हिंदी में बात किया करो मेरे साथ। नागपुरी में बात करने में दिक्कत होती है मुझे।” अबतक तीनों मेरी नंगी देह से सट गये थे और कोई मेरी चूची सहला रहा था, कोई मेरी गांड़ तो कोई मेरी चूत। मैं फिर से अवश होती जा रही थी, किंतु समय काफी हो चुका था।

“मगर हमको हिंदी में बात करने में दिक्कत होता है।”

“होने दो, जैसा आता है वैसा ही बोलो।”

“ठीक है। देख रानी, हमारा लौड़ा फिर से बमक रहा है। एक बार और देगी चोदने। मन न भरा है।” सलीम मेरा हाथ अपने लंड पर रखता हुआ बोला।

“नहीं, बस, अभी और नहीं, बहुत देर हो गयी है। अब जो करना है कल कर लेना।” मैं बोली।

“लेकिन कल तो एतवार है। हम लोगों का छुट्टी है। हम थोड़ी न आवेंगे काम करने।” रफीक मुझे दबोच कर बोला और चूमने लगा।

“ओह मां्आं्आं्आं, बस बस, आज का हो गया। अब कल, छुट्टी है तो क्या हुआ, आ जाना, घर बनाने के काम से नहीं, मेरा काम करने।” मैं रफीक से चिपकी एकदम रंडीपन पर उतर आई थी।

“का कहते हो भाई लोग?” सलीम उनसे पुछा।

“अब इसमें पूछने का का बात। आवेंगे भाई, आवेंगे, ऐसी सुंदरी औरत बुलाए और हम न आवें, ई तो हो नाही सकेगा। लेकिन एक्के ठो समस्या है।” रफीक बोला।

“ऊ का?” सलीम बोला।

“अरे भाई, कल छुट्टी है, घर में औरत को का बोलेंगे? अऊर अगर काम में जा रहे हैं बोलेंगे तो बगल में रहने वाली ऊ साली छमिया कांता का का करेंगे? हमरा घरवाली अऊर कांता में बहुत पटता है। उससे पता चला तो घरवाली हरामजादी पूछेगी कि कांता काहे नहीं गयी तो?” रफीक बोला।

“अबे चूतिया, तू भी एक नंबर का गधा है। कांता को भी ले आ। वो हरामजादी कम है का। इतना बार चोदा ऊ रंडी को और अब उसको भी बुलाने में का समस्या? बोल देना सबको कि कल भी काम है। सबके आने के बाद देखा जाएगा।” सलीम फट से बोल उठा।
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