Desi Sex Kahani चढ़ती जवानी की अंगड़ाई
03-11-2019, 12:50 PM,
#21
RE: Desi Sex Kahani चढ़ती जवानी की अंगड़ाई
दूसरे दिन जब पूनम की आंख खुली तो काफी उजाला हो चुका था वह जल्दी से बिस्तर से उठकर सीधे बाथरूम में घुस गई और नहा धोकर,,,, अपना बैग लेकर स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई रात वाली बात वह बिल्कुल भूल चुकी थी,, जैसे ही कमरे के बाहर वो जाने लगी फिर से पीछे से उसकी संध्या जाती उसे आवाज़ देते हुए दूध का गिलास लेकर उसके पास आ गई,,,

इतनी बड़ी हो गई है लेकिन क्या मैं तुझे हमेशा बच्चों की तरह अपने हाथ से ही दूध पिलाऊ,,,( संध्या गिलास का दूध पूनम को थमाते हुए बोली,,, संध्या को देखते ही पूनम को रात वाली सारी बातें याद आने लगी और उसकी आंखों के सामने वो नजारा किसी पिक्चर की तरह घूमने लगा जब संध्या खुद अपने ही हाथों से अपनी चूची को दबा रही थी और बेगन को अपने बुर में अंदर बाहर कर रही थी,,, पूनम अपनी चाची के हाथों से दूध का गिलास मुस्कुराते हुए लेली,,

थैंक यू चाची तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो,,,,( इतना कहकर पूनम दूध पीने लगी संध्या वापस अपने काम में लग गई अपनी चाची को देखकर पूनम समझ में नहीं पा रही थी कि चाची का यह कैसा रूप है दिन के उजाले में वह किस तरह के चरित्र में पेश आती हैं और रात को उनका चरित्र किस हद तक सारी हदें पार कर देता है,,,। दूध पीते हुए पूनम यही सब सोच रही थी लेकिन उसके सोचने का ढंग कुछ अलग था क्योंकि यदि वह दुनिया के समाज के अंदर के चेहरे से बिल्कुल भी अनजान थी,,, औरत का चरित्र हर पल सामाजिक रीति रिवाजों और संबंधों के हिसाब से बदलता ही रहता है। औरतों में बहन भी होती है मां भी होती है एक पत्नी भी होती है एक प्रेमिका भी होती है जो कि समय-समय पर अपने चरित्र को बदलती रहती हैं,। दिन में औरत अपने संबंधों के हिसाब से अपने चरित्र को जीती है। दिन भर सुबह अपने भाई के साथ बहन का अपने पिता के साथ बेटी का और अपने बच्चे के साथ मां का फर्ज निभाती है और रात को अपने पति के साथ एक पत्नी धर्म निभाते हुए अपनी सारी शर्म मर्यादा को छोड़कर,, अपने पति की सेवा में अपना तन मन सब कुछ समर्पण कर देती है और यही कार्य पिछली रात को संध्या भी अपनी पति की खुशी की खातिर फोन कर अश्लील बातें करते हो अपने बदन के साथ कामुक हरकत कर रही थी,, जिससे उसे भी उतना ही सुख प्राप्त हो रहा था जितना कि फोन पर सिर्फ उसकी अश्लील हरकतों के बारे में सुनकर उसके पति को हो रहा था,,, पूनम इन सब बातों से बिल्कुल अनजान थी इसलिए उसे यह सब बिल्कुल अजीब लग रहा था लेकिन रात के नजारे की बात याद आते ही उसके बदन में सुरसुराहट दौड़ने लगी,,,, वह अपना दूध का गिलास खत्म कर पाती इससे पहले ही घर के बाहर उसकी सहेलियों ने उसे आवाज़ लगा दी और वह जल्दी से दूध का गिलास खत्म करके गिलास वहीं ही रख कर बाहर की तरफ भाग गई,,,,।


क्या यार तुम तू हमसे पहले कभी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाती जब देखो तब हमारे आने के बाद ही तू आती है,,,
( बेला पूनम को डांटने के अंदाज में बोली।)

नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो कब से तैयार होकर बैठी थी बस तुम दोनों के आने का ही इंतजार कर रही थी,,,( पूनम बातें बनाते हुए बोली,,,।)

हां हां बस रहने की बातें बनाने को हम जानते हैं कि तु तैयार होकर ही बैठी रहती हैं,,,,


बस बस बहुत हो गया थोड़ा सा इंतजार क्या कर लेती है ऐसा लगता है कि मुझे अपने सर पर बिठा कर ले जाती है।
( पूनम उन दोनों को गुस्सा करते हुए बोली,,,। इसके बाद उन दोनों में से किसी ने कुछ भी नहीं कहा वह तीनों स्कूल की तरफ जाने लगे ठंडी बड़े जोरों से पड़ रही थी,,, इसलिए पूनम अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए बदन में गर्माहट पैदा करते हुए जा रही थी,,,, यह देखकर बेला चुटकी लेते हुए बोली,,,।)

पूनम तेरे शरीर में ठंडक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है तुझे गर्मी की जरूरत है,।

हारे देखना ठंड कितनी ज्यादा है,,,,


तू एक काम कर दो ना एक ही तरीके से तेरी ठंडी पूरी तरह से गायब हो जाएगी,।

कैसे जरा जल्दी बता मुझे ज्यादा ही ठंड लग रही है,,,,,


किसी मस्त छोकरे के साथ जाकर चिपक जा,,, वह तुझे अपनी हरकतों से इतना गर्म कर देगा कि तू इतनी कड़कड़ाती ठंडी में भी अपने सारे कपड़े उतार कर उस से चिपक जाएगी।

( बेला की बात सुनते ही पूनम गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए बोली,।)

इस कड़कड़ाती ठंडी की वजह से मैं मजबूर हूं वरना ईसी हाथ से तेरे गाल पर एक तमाचा मारती थी तो तु पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो जाती,,,

अरे यार तुझसे तो मजाक भी नहीं कर सकते जब देखो तब गुस्सा हो जाती है।( उसका इतना कहना था कि उसकी नजर उस मोड़ पर ही इंतजार कर रहे मनोज पर पड़ी) ले देख ले तेरा आशिक भी तेरा इंतजार कर,,, रहा है जाकर चिपक जा वह तुझे पूरी तरह से गर्म कर देगा,,, ।
( बेला की बात सुनते ही पूनम की नजर उस मोड़ पर खड़े मनोज पर पड़ी तो उसे देखते ही उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उमड़ पड़े लेकिन वह जल्द ही अपने चेहरे पर गुस्से का भाव लाते हुए बोली,,,।)

इसे भी कोई काम नहीं है जब देखो तब यही खड़ा होकर के इंतजार करता रहता है,,,, दोखना आज तो यह मुझसे कितनी भी बात करने की कोशिश करे लकीन मैं इससे बिल्कुल भी बात नहीं करूंगी,,,

क्यों कोई नाराजगी है क्या (बेला तपाक से बोली)

तू अपनी बकवास बंद रख,,,
( दूसरी तरफ मनोज उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा था वह आज अपने मन की बात बोल देना चाहता था और उससे पूछना भी चाहता था कि वह उसके प्रेम पत्र का जवाब क्यों नहीं दे रही है,,,, लेकिन उसके दिमाग में आया कि ऐसा भी तो हो सकता है कि पूनम ने उसके दिए लेटर को पढ़ा ही ना हो,,
यही सब सोचकर उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था पूनम एकदम करीब आते जा रही थी वह समझ नहीं पा रहा था कि वह उससे बोले या ना बोले,,,, तभी उसंने सोचा कि सबके सामने बोलना ठीक नहीं है क्योंकि पूनम दूसरी लड़कियों की तरह नही हैं। उसके यह सोचते ही सोचते पूनम बिल्कुल उसके करीब आ गई पूनम भी यही सोच रही थी कि मनोज से कुछ बोलें लेकिन इसी कशमकश में मनोज कुछ बोल नहीं पाया हालांकि पूनम उसे करीब पहुंचते ही उसके कदम धीरे-धीरे पड़ने लगे थे,, लेकिन बोले कि ना बोले की कशमकश में मनोज रह गया और पूनम आगे निकल गई,,,, पूनम के लिए कान तरस रहे थे मनोज की आवाज सुनने के लिए उससे बात करने के लिए लेकिन बेला और सुलेखा की होते हुए यह होना मुमकिन नहीं था,,,,, हाथ में आया हुआ मौका मनोज के हाथ से निकल गया था मनोज को यह लगने लगा कि वास्तव में पूनम ने उसका दिया लेटर पढ़ा ही नहीं है,,, वरना वह उसे देखकर कुछ ना कुछ प्रतिक्रिया जरूर करती,,, 
क्लास में बैठा-बैठा मनोज तय कर लिया कि कुछ भी हो वह पूनम से पूछ ही लेगा उसके लिए प्रेम पत्र के बारे में लेकिन ना जाने क्यों मनोज हिम्मत नहीं कर पा रहा था आज पहली बार उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि उसे भी लड़कियों से डर लगता है यह सभी लड़कियों के बारे में नहीं था या फिर पूनम के ही बारे में था क्योंकि इससे पहले उसने जिसको चाहा उस लड़की से अपने मन की बात बोल दिया लेकिन पूनम से बोलने में उसे ना जाने किस बात का डर लगता था। फिर भी वह स्कूल छूटने का इंतजार करने लगा,

स्कुल छुट़ चुकी थी छूटने की घंटी बजते ही वह जल्दी से अपने क्लास से बाहर निकल कर गेट पर खड़ा होकर पूनम का इंतजार करने लगा,,,, पूनम उसे अकेले ही आती नजर आई उसे अकेला देखकर वह खुश हो गया। पूनम की भी नजर मनोज पर पड़ गई मनोज पर नजर पड़ते ही उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव साफ नजर आने लगे वह जल्दी से अपने अगल बगल देखी बेला और सुलेखा कहीं भी नजर नहीं आ रही थी। वह भी जल्दी से मनोज के करीब पहुंची लेकिन वह इस तरह से गई थी मनोज को यहां पर बिल्कुल भी ना हो कि वह खुद उसके पास चल कर आई है,,, पूनम को देखते ही मौका पाकर मनोज बोला,,,,।

पुनम मुझे तुमसे कुछ बात करनी है,,,

मुझसे लेकिन मुझसे क्या बात करनी है,,,,

ऊसी लेटर के बारे में,,,

लेटर कौन सा लेटर,,, कीस लेटर के बारे मे बात कर रहे हो तुम,,,( पूनम आश्चर्य के साथ बोली,,,।)

वही लेटर जो मैंने लिख कर तुम्हारी इंग्लिश की नोट में तुम्हें दिया था।

पर मुझे तो ऐसा कोई लेटर नहीं मिला,,,,,


तुम अपनी इंग्लिश की नोट खोलकर देखना उसमे जरूर मेरा लिखा हुआ लेटर भी है और मेरा मोबाइल नंबर भी है,,,,।

पर ऐसा क्या लिखा है उस लेटर में जिसके लिए तुम इतने बेताब नजर आ रहे हो,,, ( पूनम मनोज के चेहरे के बदलते हावभाव को देखते हुए बोली)

पूनम वह तो मैं इस समय तुम्हें नहीं बता सकता हूं वह तुम अपने आप ं पढ़ोगी तो तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा कि मैं तुम्हें क्या कहना चाहता हूं,,,,( तभी उसकी नजर बेला और सुलेखा पर पड़ी जो कि ईसी तरफ चली आ रही थी लेकिन उन लोगों का ध्यान इधर बिल्कुल भी नहीं था,,,) देखो तुम्हारी दोनों सहेलियां भी आ रही है मैं उन लोगों के सामने कुछ नहीं कहना चाहता बस तुम मेरा दिया हुआ लेटर एक बार पढ़ लेना,,, मैंने तो अपने मन की बात उस लेटर में लिख दिया हूं तुम्हारे मन में क्या है यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जो भी हो मुझे बता जरुर देना,,,, बस मैं चलता हूं बाय,,,,,,
( इतना कहकर मनोज चला गया तभी उसकी सहेलियां उसके करीब आ गई और तीनों अपने घर की तरफ जाने लगी रास्ते भर पूनम सोचती रही कि आखिर वह इंग्लिश के नोट्स में उसे लेटर क्यों दिया,,, वह मुझसे क्या कहना चाहता है और अपनी मन की बात क्या है उसके मन की बात यह सब सोच कर उसका दिमाग चकरा जा रहा था उसका एक बुनियादी कह रहा था कि कहीं वह उसे प्रेम पत्र तों नहीं लिख कर दिया है।,,, अजीब से असमंजस में पड़ गई थी वह लेटर की बात से उसके बदन में सुरसुराहट सीहोने लगी थी।,, वह लेटर उसके स्कूल बैग में ही था,,, जिसे पढ़ने के लिए अब वह बेताब नजर आ रही थी।,,, वह घर पर पहुंचते ही उस लेटर को पढ़ना चाहती थी लेकिन जैसे ही वह घर पर पहुंची उसकी मम्मी ने उसे काम पर लगा दी घर पर वैसे भी सारा काम पड़ा हुआ था मन मार कर वह काम में जुट गई,,,,

इधर-उधर करने में ही कब शाम हो गई उसे पता ही नहीं चला,,, अब उसके पास अपना बैग खोलकर उस लेटर को पढ़ने का टाइम बिल्कुल भी नहीं था इसलिए वह सोची की रात को सोते समय अपने कमरे में ही ईत्मिनान से उस लेटर को पढ़ेगी तब तक वह घर के कामकाज को करती रही,,,
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