10-22-2018, 11:32 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
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घर पहुँचे तो वहाँ सिर्फ़ 'छोटू' और मम्मी ही थे.. मम्मी पिंकी को देखते ही हंसते हुए बोली... अंजू को तो लगता है तुमने गोद ले लिया.. अब तो ये वहीं रहती है...!"
"मम्मी कहती हैं कि मीनू और अंजलि बहने लगती हैं.. दोनो एक जैसी सुंदर हैं.. मैं क्या सुन्दर नही हूँ चाची...!" पिंकी मम्मी के पास बैठ कर बोली...
"कौन कहता है मेरी बेटी सुन्दर नही है..?" मम्मी पिंकी को दुलर्ते हुए बोली..,"तू तो इन्न दोनो से सुन्दर है..!" मम्मी ने पिंकी को गले लगाया तो पिंकी का चेहरा खिल उठा..,"सच चाची?"
"और नही तो क्या झूठ बोल रही हूँ मैं.. ऐसा करती हूँ.. मैं अंजलि देकर तुझे रख लेती हूँ.. तू सच में बहुत प्यारी है...!" मम्मी ने उस'से अलग होते हुए कहा....
"चाची.. मैं अब शहर में कंप्यूटर सीखने जवँगी.. आप अंजू को भी मेरे साथ भेज दिया करोगे ना....?" पिंकी मौका ताड़ कर बोली...
"इस बारे में तेरे चाचा से बात करना बेटी.. मैं कुच्छ नही कह सकती..." मम्मी ने साफ साफ जवाब दे दिया...
"मम्मी.. हम नीचे बैठे हैं..!" मैने मम्मी को बोला और पिंकी को इशारे से अपने साथ नीचे बुला लिया... मम्मी कुच्छ नही बोली और अपना काम करती रही...
नीचे आते ही मैने मोबाइल ऑन किया तो उस पर एक मेसेज आया हुआ था..' कॉल मी ऑन दिस नंबर. मीनू!'
"ये किसका नंबर. है?" मैं अंजान नंबर. देख कर सोच में पड़ गयी...
"उसी का होगा ज़रूर.. मिला कर देखो...!" पिंकी तुरंत बोल पड़ी...
"नही.. अभी नही.. मैं बाद में मिला लूँगी..." मैने कहा...
"क्यूँ..? अभी क्यूँ नही..?" पिंकी मुझे घूरते हुए बोली...
"ववो.... पिंकी.. वो उल्टी सीधी बातें करता है... तुम्हारे सामने में नही करूँगी बात....!" मैने जवाब दिया...
"मिलाओ ना प्लीज़.. मैं कुच्छ नही बोलूँगी.. तुम्हारी कसम.. अभी मिलाओ...!"
"वो बात नही है पिंकी.. 'वो' बहुत गंदी बातें करता है.. तुम्हे अच्च्छा नही लगेगा..." मैने कहा...
पिंकी कुच्छ देर चुपचाप मेरे पास बैठी रही.. फिर अचानक उसको कुच्छ ध्यान आया..,"तुम सुबह क्या बोल रही थी?"
"क्या?" मुझे कुच्छ ध्यान नही आया..
"वही.. हॅरी के बारे में...!"
"अरे.. वो तो मैं यूँही मज़ाक कर रही थी... छ्चोड़ उस बात को..." मैं टालते हुए बोली... अब मेरे पास करने के लिए 'ज़्यादा' मजेदार 'काम' था....
"नही.. हमारी शर्त लगी है.. तुम्हे अपनी बात सही करके दिखानी ही पड़ेगी...!" पिंकी तुनक्ते हुए बोली...
"छ्चोड़ ना.. क्यूँ बेचारे को... हे हे हे..." मैं अपनी बात बीच में ही छ्चोड़ कर हँसने लगी....
"नही.. मैं देखना चाहती हूँ कि 'वो' भी दूसरों के जैसा निकलता है या नही....!"
"ठीक है... पहले ये काम तो हो जाने दो... देख लेना...!"
"तो करो फोन... अभी के अभी...!"
"कहाँ..?"
"सोनू के पास... मैं भी सुनूँगी...!" पिंकी का व्यवहार मेरे लिए अविश्वसनीय था...
"पिंकी..! वो बहुत गंदी बात करता है.." मैने उसको चेतावनी दी....
"कोई बात नही.. मैं भी सुनूँगी....!" पिंकी अपनी बात पर आड़ गयी......
"देख लो.. मुझे उसकी सारी बातें सुन'नि पड़ेंगी.. बाद में मुझे कुच्छ बोलना मत.." मैने आख़िरी बार पूचछा.....
"ठीक है.. मैं दरवाजा बंद करके आती हूँ.." पिंकी ने जाकर दरवाजे की कुण्डी लगा दी और मेरे पास वापस आकर बोली..,"हॅंडफ्री कर लो...!"
मेरे मंन में धक धक सी हो रही थी.. पता नही पिंकी उसकी बात सुनकर कैसी प्रतिक्रिया दे.. पर अब मुझे उतना भी डर नही लग रहा था.. मैने नंबर. डाइयल करके फोन को हॅंडस्फ्री कर दिया... नंबर. डाइयल करने के बाद मुझे ही पहले बोलना पड़ा..,"हेलो!"
"कौन?" उधर से सोनू की आवाज़ आई...
"मैं......... मीनू!" मैने जवाब दिया..
"क्या हाल हैं मेरी जान!" उसने बेशर्मी से कहा.. मैने पिंकी की आँखों में देखा.. पर कुच्छ बोली नही...
"आज के बाद में तुम्हे इसी नंबर. से फोन करूँगा... ये मेरा नया नंबर. है....!" सोनू ने कहा...
"ठीक है..!" मेरे मुँह से निकला...
"अब बताओ.. क्या सोचा..?" उसने आगे कहा..
"क्या..? एमेम.. मेरा मतलब.. किस बारे में... ?" मैने एक बार फिर पिंकी को देख कर कहा...
"भाई.. एक मिनिट रोक गाड़ी.." सोनू ने गुस्से से कहा और कुच्छ देर बाद फिर से उसकी आवाज़ फोन पर उभरी..,"साली.. तेरी मा चोद दूँगा मैं... कितनी बार बोलूं अब... साफ साफ बता तूने क्या सोचा..?
मैने हड़बड़ा कर पिंकी की ओर देखा.. उसका चेहरा तमतमा सा गया था..
"पर.. तुम हो कौन? ये तो बता दो प्लीज़..." मैने कहा...
"बेहन की लौदी.. इस'से तुम्हे क्या मतलब है...? तू बस इतना समझ ले कि मेरा लौदा तरुण के लंड से मोटा भी है और लंबा भी... एक बार तेरी मक्खन जैसी चूत में फँस गया तो जिंदगी भर बाहर निकालने को नही बोलॉगी.. जल्दी बोलो तुमने सोचा क्या है..? मेरे पास फालतू का टाइम नही है....."
सोनू की बात पूरी होने से पहले ही पिंकी चुपचाप उठकर कमरे से बाहर चली गयी थी.. मैने दरवाजा बंद किया और वापस चारपाई पर आकर लेट गयी....," प्पर.. म्मै तो आजकल कॉलेज भी नही आती..!" मैने चदडार से अपने आपको ढक लिया....
"वो सब तो मैं देख लूँगा.. पहले ये तो बताओ तुम तैयार हो या मैं तुम्हारी फोटो गाँव की गलियों में चिपका दूं...!"
हाए राम.. मैं तो कब की तैयार ही थी... पर प्लान के हिसाब से चलना ज़रूरी था..," नही.. प्लीज़.. ऐसा मत करना... जैसा तुम कहोगे.. मैं वैसा ही करने को तैयार हूँ.... पर.. तुम्हे.. बुरा मत मान'ना प्लीज़.. तुम्हे क्या मिलेगा इस'से...?"
"मैं पाँच मिनिट में ठिकाने पर जाकर फोन करता हून..." सोनू ने कहा और अचानक फोने काट दिया.. मैने देखा.. 'लंबू' के नाम से 7 मिस्ड कॉल्स आई हुई थी..... मैं घर से निकली और भागी भागी मीनू के पास पहुँची.. पिंकी उसके साथ ही बैठी थी..
"दीदी.. वो.. मानव का फोन आ रहा है...! हॅंडस्फ्री कर लेना.." मैने मोबाइल मीनू को पकड़ा दिया... अब भी मानव की कॉल आ रही थी.. मीनू ने बिना मेरी बात सुने कॉल रिसीव करके उसको कान से लगा लिया....,"हेलो सर..!"
"क्या?" मीनू आस्चर्य से बोली.. और हॅंडस्फ्री कर लिया..,"तो कौन है 'वो?"
"पता नही.. पर आज 'सोनू' की लाश नदी से मिली है.. उसका खून तो हफ़्ता भर पहले ही हो गया लगता है...!"
हम सब की आँखें फटी की फटी रह गयी... तीनो हैरान सी एक दूसरी की आँखों में देखने लगी....
"सुनो!" मानव की आवाज़ फोन पर उभरी..,"मामला इतना हल्का नही है.. जितना मैं सोच रहा था.. तुम उस'से फिलहाल बात करना बंद कर दो.. कातिल बहुत शातिर है.. हमें उसके सामने आकर ग़लती करने का इंतजार करना पड़ेगा..!अब तक हम उसकी लोकेशन तक ट्रेस नही कर सकें हैं... अभी रखता हूँ.. बाद में फोन करूँगा...."
"एक मिनिट.. कुच्छ बताओ तो क्या हुआ? और सोनू मर गया है तो ये कौन है जो फोन कर रहा है...?" मीनू ने हड़बड़ा कर पूछा...
"निसचीत तौर पर अभी कुच्छ नही कह सकता.. पर जहाँ तक अंदाज़ा लगाने का सवाल है.. ढोलू और ये 'नया' सोनू ही उन्न दोनो के कातिल हैं... मैं आज ही 'मास्टर' को फिर से उठवा रहा हूँ.. पर जब तक 'ढोलू' गिरफ्तार नही हो जाता.. ये गुत्थी सुलझनी मुश्किल है...!" उधर से मानव की आवाज़ आई...
"म्मै.. उसके दूसरे दोस्तों के नाम बताउ? अगर उनमें से किसी को..." मीनू बोल ही रही थी कि मानव ने बीच में ही टोक दिया..,"नही.. मैं कॉलेज और गाँव में उनके हर दोस्त को खंगाल चुका हूँ... पर उनमें से किसी को कुच्छ नही पता... वैसे भी यह किसी कॉलेज टाइप लड़के का काम नही है.. जो भी है.. 'वो' हद से ज़्यादा चालाकी बरत रहा है... अब तो मैं पहले ढोलू को पकड़ने पर दिमाग़ खराब कर रहा हूँ.. वहीं से उसकी पूंच्छ हाथ में आएगी...!"
"ढोलू को मैं पकड़वा सकती हूँ..." मेरे मुँह से अचानक निकल गया.. और शायद मानव को सुन भी गया...,"ये कौन है?"
"अंजू!" मीनू ने कहा...
"फोन देना एक बार इसको..!" मानव की आवाज़ उभरी...
"ज्जई..." मैं बोली....
"तुम कैसे पकड़वा सकती हो उसको...?" मानव ने पूचछा....
"ज्जई.. पक्का नही है.. पर मुझे विश्वास है कि मैं उसको पकड़वा सकती हूँ..!" अब मैं अपनी बात से पिछे कैसे हट'ती...
"पर कैसे?" मानव खिसिया कर बोला...
"मैं उसको बुला सकती हूँ...!" मैने कहा...
"हे भाग.. ओहूऊ.." शायद मानव मेरी बात समझ गया...," पर 'वो' इतना पागल नही है कि तुम्हारे बुलाने पर गाँव में आ जाएगा... उसको अच्छि तरह मालूम है कि गाँव में घुसते ही 'वो' मेरी चपेट में आ जाएगा.... तुम शहर आ सकती हो क्या?"
"कल मेरा पेपर है...! उसके बाद... मीनू पूच्छ लेगी पापा से...!" मैने कहा...
"उसका नंबर... तुम कहाँ से लॉगी.. उसने तो नंबर. बदल रखा है... तुम फोन करोगी तो उसको शक होगा... नही.. ये प्लान काम का नही है.. वो तुम्हारे लालच में अपनी जिंदगी दाँव पर नही लगाएगा...!" मानव ने कहा तो मुझे लगा जैसे 'वो' मेरे अल्हड़ यौवन को गाली दे रहा है...
"वो आप मुझ पर छ्चोड़ दो.. नंबर. मैं संदीप से ले लूँगी.. और ढोलू के पास उसी के फोन से एक बार फोन भी कर लूँगी...!" मैने ज़ोर देकर कहा....
"तुम्हे तो अब तक पोलीस में भरती हो जाना चाहिए था.." मानव ने व्यंग्य सा किया..," पर संदीप तुम्हे नंबर. क्यूँ देगा भला..."
"मैने कह दिया ना कि ले लूँगी मैं.... आपको कल तक मैं ही उसका नंबर. दे दूँगी.. और बोलो...!" मैने अकड़ कर कहा...
"तुम तो पोलीस वालों की भी कुच्छ लगती हो.. ठीक है.. पहले मुझे ढोलू का नंबर. पता करके दिखाओ.. अगर ऐसा हो गया तो शायद 'ढोलू' तुम्हारे जाल में फँस ही जाए...." मानव की आवाज़ में उम्मीद सी लगी....
"ठीक है.. आज रात तक ही उसका नंबर. आपको ला दूँगी...!" इस बात से बेख़बर कि मानव सब समझ रहा है कि मैं क्या देकर नंबर. लाउन्गि; मेरी आवाज़ में रौब सा था....
"ठीक है.. नंबर. मिलते ही मुझे कॉल करना!.. एक बार मीनू को फोन देना....!" मानव ने कहा तो मीनू बोल पड़ी..,"जी..!"
"देखो ना.. ये लड़की कितनी समझदार है.. तुम भी तो कुच्छ समझो ना यार.. मेरे दिल की बात...!" मानव ने रोमॅंटिक अंदाज में कहा तो मीनू के गालों पर लाली आ गयी.. हॅंडस्फ्री बंद करना उसको ध्यान नही रहा था.. और अब उसका चेहरा देखने लायक था..,"लंबू!" मीनू ने कहा और झट से फोन काट दिया.....
"पता नही क्या बना रहता है...?" मीनू ने अपने गालों को पिचका कर कहा तो मैं और पिंकी खिलखिला कर हंस पड़े....
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"मुझे संदीप के पास जाना पड़ेगा...!" मैने बोल कर पिंकी के चेहरे की ओर देखा... पिंकी अजीब सी नज़रों से मुझे देखती रही.. पर अब उसके पास 'ना' कहने का कोई बहाना बचा नही था... वो कुच्छ नही बोली...
"तुम भी चल रही हो क्या?" मैने दोनो से पूचछा....
"चलो.. शिखा दीदी से भी मिल लेंगे..." कहकर दोनो खड़ी हो गयी.....
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"शिखा!" संदीप के घर के बाहर जाकर मीनू ने आवाज़ लगाई तो उपर से उसकी आवाज़ आई...,"कौन?"
आवाज़ पहचान कर हम तीनो उपर चले गये... हमको देखते ही शिखा के पास बैठा पढ़ रहा संदीप 'वहाँ' से खिसक कर कमरे में भाग गया..
"देखो कैसे भाग गया..? इतना शर्मिला है ये भोन्दु!" शिखा हंसते हुए बोली..,"बैठो यार!"
"हाँ.. वो तो है..!" जवाब मीनू ने दिया.. मैं पिंकी के कारण कुच्छ बोल नही पाई...
"भैया भाभी नही हैं क्या?" नालयक मीनू ने बैठते ही काम की बात छेड़ दी...
"भाभी तो मायके में ही हैं.. 'ढोलू' का कुच्छ पता नही.. पोलीस भी आ चुकी है 2 3 बार घर पर...
"क्यूँ?" मीनू ने यहाँ समझदारी की बात कर दी.. अंजान बने रहकर...!
"वो कह रहे हैं कि तरुण के मामले में पूचहताच्छ करनी है.. अब 10 नंबारी होने के बाद तो पोलीस ऐसे ही उठाती है.. बात बात पर.. इसीलिए कहीं छिप गया होगा भाग कर... वैसे वो तो अगले दिन शाम तक भी यहीं था.. उसके किसी दोस्त ने फोन कर दिया.. तब भागा है यहाँ से...." शिखा मायूस सी दिखने लगी...
"श...वो सोनू.." मीनू कुच्छ बोलने वाली थी कि मैने पहले ही बोल दिया..," सोनू भी गायब है काई दिन से.. कुच्छ पता लगा क्या?" मेरे बोलते ही मीनू ने इस तरह मुझे देखा जैसे थॅंक्स बोल रही हो.. वो कुच्छ और ही बताने वाली थी...
"नही उसका भी कुच्छ पता नही... घर वालों को तो उसकी चिंता हो रही है.. कहीं.. मैं चाय बनाकर लाती हूँ.. तुम बैठो...!" शिखा उठकर खड़ी हुई तो मैं मौका देख कर अंदर संदीप के पास जा पहुँची....,"क्या कर रहे हो..?"
"मरवावगी क्या मुझे..? निकलो यहाँ से...!" संदीप मुझे देख कर आहिस्ता से बोला...
"मुझे 'वो' करना है.. मेरे नीचे खुजली सी हो रही है संदीप.. क्या करूँ?" मैने बेशर्मी से अपनी सलवार पर हाथ रख के कहा...
"कहा ना जाओ यहाँ से.. पिंकी भड़क गयी तो अभी शिखा को बोल देगी..." संदीप मेरी चूचियो को घूरता हुआ अपनी जांघों के बीच मसल्ने लगा....
"चली जाउन्गि.. पर मेरा क्या होगा.. अब.. तुमने ये कैसी आग लगा दी...!" मैने तड़प कर कहा.. पर मेरी तड़प 'आक्टिंग' नही थी....
संदीप ने कमरे के बाहर देखा और जल्दी से अपना हाथ से मेरी सलवार के उपर से ही एक बार मेरी योनि की फांकों को टटोल कर वापस खींच लिया..,"हाए.. क्या करूँ जान.. तड़प तो मैं भी रहा हूँ.. कहते हैं कि दूसरी बार करने में ही असली मज़े आते हैं.. पर अब नही हो सकता.. दीदी सारा दिन यहीं रहती हैं.. और एक दो दिन में भाभी भी आ जाएँगी...."
"चौपाल में आ जाओ ना.. 2 घंटे बाद!" मैने खुद ही रास्ता निकाला...
"क्या? " खुशी से संदीप की बाँच्चें खिल गयी..,"ये तो मैने सोचा ही नही था.. तुम पक्का आ जाओगी ना...?"
"हाँ.. तुझे नही पता मेरी ये अब सारा दिन गीली रहती है... मैं पक्का आ जाउन्गि.. 9 बजे...!"
"थॅंक यू जान.. मज़े हो जाएँगे अब तो...!" संदीप ने खुश होकर एक बार और मेरी योनि की दरार को कुरेद दिया...
"आहह... " मैं सिसक उठी..,"वो.. वो फोन दे दो जो ढोलू ने मुझे दिया था...!" मैने कहा..," मैं फोन कर दूँगी तुम्हे...!"
"पर.. वो तो नही है... अब! ढोलू पूच्छ रहा था तुमने वापस क्यूँ किया...?"
"ववो.. तब मुझे डर लग रहा था... दे दो ना प्लीज़..!" मैने याचना सी करते हुए कहा...
"सच कह रहा हूँ.. मेरे पास नही है 'वो'.. ढोलू ने उसको तालाब में फैंकने को कहा था.. मैने फैंक दिया.. तुम्हारी कसम.... नही तो तुम्हे क्या मना करता...! पर किसी को बताना मत..." संदीप अधीर सा होकर बोला....
"ठीक है.. रात 9 बजे पक्का आ जाओगे ना!" मैने पूचछा....
"तुम्हारी कसम जान.. मैं 9 बजे से पहले ही वहाँ आ जाउन्गा...." संदीप ने कहा और मौका सा देख कर सलवार के कपड़े समेत मेरी योनि के अंदर उंगली ठूंस कर निकाल दी.... मैने उचक कर सिसकी सी ली और उसकी उंगली निकालने के बाद अपनी सलवार का कपड़ा 'योनि' में से निकाला और उसकी और मुस्कुरकर बाहर निकल आई...
मेरे कुच्छ देर बाद ही संदीप कमरे में से निकला और बाथरूम में घुस गया.....
क्रमशः................
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10-22-2018, 11:33 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--29
गतान्क से आगे........................
मैं बार बार दीवार पर टॅंगी घड़ी की ओर देख रही थी.. 8:45 होने को थे.. पर पिंकी मेरा पिच्छा छ्चोड़ने को तैयार ही नही थी.. बार बार एक ही सवाल," और क्या बोला वो?"
"बता तो दिया पिंकी.. इस'से ज़्यादा खुल कर मैं नही बता सकती.. ववो.. मुझे घर जाना है एक बार...!" मैने कहा...
"अब क्या करेगी घर जाकर.. खाना तो तूने खा लिया...!" पिंकी बोली...
"तू समझती क्यूँ नही है.. जाने दे मुझे...!" मैं उसके हाथों से अपना हाथ खींचते हुए बोली...
"नही.. पहले सच्ची सच्ची बताओ.. ! क्या करने जा रही हो.. तुम्हे मेरी कसम..!" पिंकी की आवाज़ में मैने उस दिन से पहले कभी इतनी मिठास नही देखी थी...
"वो...!" मैं अपनी आँखों में जहाँ भर की 'मजबूरी' का अहसास समेटे हुए बोली....," यार.. वो ढोलू का नंबर. आज ही पता करना ज़रूरी है... 'वो' जल्द से जल्द पकड़ा जाना चाहिए.. नही तो मीनू मुसीबत में फँस जाएगी....!"
"पर घर से तुझे ढोलू का नंबर. कैसे... ओहू.. अब समझी.. तुम संदीप के पास..!" पिंकी अचरज से बोली...
"क्या करूँ पिंकी..? मजबूरी है... उसने 9:00 बजे का टाइम दिया है...!" मैने मायूसी भरे लहजे में जवाब दिया...
"पर इतनी रात को...!" पिंकी ने दीवार घड़ी की ओर देख कर मुझे घूरा..,"तुझे डर नही लगेगा..? वो फिर से 'वोही' करने की बोलेगा तो...?"
मैने नज़रें झुका ली.. और अपनी बेमिशल अदाकारी का नमूना पेश किया..," क्या करूँ पिंकी... मीनू को बचाने का कोई और रास्ता भी नही है... मेरी तो बात छिपि भी रह सकती है.. पर 'मीनू' को ब्लॅकमेल करने वाला पकड़ा जाना ज़्यादा ज़रूरी है...!"
जैसे ही पिंकी ने प्यार से मेरे हाथ पर हाथ रखा.. जाने कहाँ से मेरी आँखों में नमी सी आ गयी.. हालाँकि अंदर ही अंदर में जल्द से जल्द चौपाल पहुँचने को उतावली थी...
"तू कितनी अच्छि है अंजू.. मीनू के लिए... मीनू को पता है ये बात..!" पिंकी ने अचानक बात बदल कर पूचछा...
"छ्चोड़ अभी.. जाने दे.. मीनू को ये मत बताना कि मैने तुझे कुच्छ बताया है.. 'वो' मना कर रही थी.. तुझे बताने से.." मैं कह कर बाहर निकलने लगी...
"मतलब मीनू को पता तो है ना...?" पिंकी दरवाजे तक मेरे पिछे पिछे आ गयी... पर मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और निकल गयी....
मैं घर से कोई 100 गज ही चली होंगी की पिछे से मुझे किसी ने आहिस्ता से आवाज़ दी...,"आन्जुउउ!"
मेरे कदम जहाँ के तहाँ ठिठक गये.. आवाज़ संदीप की थी.. पल भर रुकने के बाद मैं बिल्कुल धीरे चलने लगी... उसने जल्द ही मुझे पकड़ लिया और साथ साथ चलते हुए बोला...,"वापस चलो अंजू.. मेरे पिछे पिछे..!" उसने कहा और पलट कर वापस चलने लगा... उसने दुशाला ओढ़ रखा था...
आसमन्झस से कुच्छ सोचती हुई मैं पलटी और तेज़ी से उसके पास जाकर बोली..," क्या हुआ? आ जाओ ना!"
"कुच्छ नही.. तुम चलो तो सही.. उस'से भी अच्छि जगह है.. बोलो मत.. मेरे पिछे पिछे चलती रहो...
"चौपाल में चलो ना.. वहाँ खूब अंधेरा रहता है...!" मैं बिना बोले ना रह सकी....
"कहा ना बोलो मत... चुप चाप आ जाओ..." संदीप ने कहा और तेज़ी से चलता हुआ मुझसे आगे निकल गया....
थोड़ी और आगे जाने के बाद संदीप एक संकरी सी अंधेरी गली में घुस गया... वहाँ भी चौपाल की तरह घुपप अंधेरा था.. जैसे ही मैं गली में घुसी.. संदीप ने दुशाला खोल मुझे भी अपने साथ ही उसमें लपेट लिया और बुरी तरह मेरे गालों को चूमने लगा.. एक बारगी तो मैने भी तड़प्ते हुए अपने होंटो से सिसकियाँ निकालनी शुरू कर दी थी.. पर जल्द ही में चिंहूक कर बोली..," ये क्या जगह है.. यहाँ प्यार कैसे करेंगे...?"
"अरे मेरी जान.. मैने पूरा प्रोग्राम सेट कर रखा है... वो तो बस मुझसे रुका नही गया.. आओ...!" मुझे अपनी बगल में दबाए हुए वा आगे चलने लगा....
"पर.. पर आगे तो ये गली बंद है ना...!" मैने अपना हाथ उसकी कमर में डाला और उस'से चिपक कर चलती रही...
"तभी तो..! यहाँ किसी का घर ही नही है.. तो आएगा कौन.. आगे मेरे चाचा का घेर ( कॅटल यार्ड ) है... सर्दियों में खाली रहता है.. वहाँ मज़े से 'मज़े' करेंगे....
उसकी बात से मुझे कुच्छ उम्मीद सी बँधी.. साँकरी सी वो गली सिर्फ़ 4-5 प्लॉट्स के लिए बनाई गयी थी.. मुझे नही पता था कि गली में बना हुआ एकमात्र घेर उसके चाचा का है.... बाकी घरों का सिर्फ़ पिच्छवाड़ा ही उस गली में लगता था... जैसे ही घेर आया संदीप करीब 8 फीट उँची दीवार पर हाथों के सहारे चढ़ गया...
"मैं कैसे आउ? मुझसे नही चढ़ा जाएगा..." मैने निराश होकर उसकी तरफ देखा...
"एक मिनिट बस.." कहकर वो दूसरी तरफ कूदा और अंदर से सरिया वाले दरवाजे की कुण्डी खोल दी..," ये अंदर से ही बंद रहता है.. ताला नही लगता...!"
संदीप के दरवाजा खोलते ही मैं उस'से बुरी तरह से लिपट गयी.. वासना की अग्नि में जल रहे मेरे चारों होन्ट 'कमरस' से लबरेज थे.. उपर वाले भी.. और नीचे वाले भी..... जल्द ही उसके गालों को अपने होंटो से गीला करते हुए मैने उसके होन्ट ढूँढ लिए और उन्हे जैसे 'चबाने' ही लगी....
"एक मिनिट शांति रखो जान..." वह हटकर बोला... ," अंदर तो आओ एक बार....."
मैं पहली बार उस जगह पर गयी थी.. एक बरामदे से होकर हम भैंसॉं 'वाले कमरे में घुस गये.. वही घुसकर मुझे पता चला कि उसके साइड में एक और कमरा है जहाँ लाइट जल रही है... अंदर वाला कमरा बाहर वाले कमरे से काफ़ी 'नीचाई' पर था... वो काफ़ी बड़ा कमरा था जिसे 'भूसा' रखने के लिए बनाया गया था... करीब आधा कमरा खाली था और उसमें एक जगह 'अच्छे' से 'प्राल' बिच्छकर उसे एक पुरानी सी चादर से ढका गया था... मैं देखते ही समझ गयी कि ये 'संदीप' का काम' है... मुझमें अचानक मस्ती सी च्छा गयी और में धदाम से उस 'काम्चलाउ बिस्तेर पर ढेर हो गयी... मैने अपने नीचे वाले होन्ट को दाँतों से दबाकर शरारत से संदीप को देख कर जैसे ही मुस्कुराइ वो पागल सा हो गया......
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10-22-2018, 11:34 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--30
गतान्क से आगे........................
संदीप ने झट से अपनी शर्ट उतार फैंकी.. उसकी गोरी छाती पर हुल्के हुल्के बाल देख कर मैं रोमच से भर उठी... छाती पर दोनो और आकड़े हुए उसके 'तिल' भर के दाने मुझे बड़े प्यारे लग रहे थे.. जैसे ही उसने पास बैठ कर मेरी चूचियो को दबाना शुरू किया.. मैने झट से बैठ कर उसको नीचे गिरा लिया और उसके पाते पर हाथ फेरती हुई उसके 'दानो' को चूमने लगी....
"आ.. क्या कर रही हो अंजू..? गुदगुदी हो रही है..." वह एकदम मस्ती से छॅट्पाटा कर उठा और एक बार फिर मुझे अपने नीचे दबोच लिया...
"करने दो ना.. मुझे मज़ा आ रहा है बहुत..." अपनी छाती पर उसके हाथ का दबाव महसूस करके मैं तड़प कर गिड़गिडाई और अपना हाथ बिना देर किए उसकी पॅंट में डाल दिया और 'कछे' के उपर से ही उसके 'फुफ्कार्ते' हुए साँप का 'फन' अपनी मुट्ठी में दबोच लिया....
"ओह्ह..होह..." मेरे हाथ की मौजूदगी का अहसास होते ही संदीप के लिंग ने एक झटके के साथ अंगड़ाई सी ली.. और आकार में अचानक बढ़कर सीधा होने की कोशिश करने लगा...
"इसको चूसो ना जान... आहह... तुम्हारे 'काम' की चीज़ तो ये है..." संदीप कहते हुए अपनी पॅंट का 'हुक' खोलने लगा.. जल्द ही उसकी पॅंट उसकी टाँगों से बाहर थी और उसका 'लिंग' कछे को 'फाड़' देने पर उतारू हो गया...
संदीप मेरी ओर मुँह करके खड़ा होकर मुस्कुराने लगा.. उसका इशारा समझ कर मैं उसके आगे घुटने टेक कर बैठ गयी और कछे के उपर से ही लिंग को हाथ में पकड़ कर उसको अपने दाँतों से हल्का सा 'काट' लिया...
वह उच्छल पड़ा..,"आह.. किस मूड में हो आज? प्यार से करो ना...!"
"नही.. आज तो मैं तुम्हे कच्चा ही खा जाउन्गि..," मैने कहा और अंजाने में ही मेरे हाथ मेरी सलवार के उपर से ही मचल उठी योनि को कुरेदने लगे...
"प्यार से भी तो खा...." संदीप अचानक बोलते बोलते रुक गया... उसके पॅंट की जेब में रखे मोबाइल के वाइब्रेशन्स की 'घररर..घर्ररर..' सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी..,"एक मिनिट..." उसने पॅंट की जेब से अपना मोबाइल निकाला और कोने में जाकर कॉल रिसीव की....
"कुच्छ देर चुप रहने के बाद संदीप ने सिर्फ़ इतना ही कहा..,"आधा घंटा".. और फोन काट दिया....
"किसका फोन था...?" मैने उत्सुकता से पूचछा...
"कुच्छ नही.. एक दोस्त था..!" संदीप ने जल्दी जल्दी में अपना कच्च्छा निकलनते हुए कहा...
"आधा घंटा क्या?" मैने पूचछा...
"ओफ्फो..मुझे उसके घर जाना है.. चलो.. जल्दी जल्दी करते हैं...!" संदीप मेरे पास आया और अपना लिंग मेरे होंटो से सटा दिया....
"क्या? सिर्फ़ आधा घंटा ही...!" मैं मायूस होकर बोली..,"आधे घंटे में क्या होगा..." मुझे अचानक ध्यान आया कि 'इस' काम के साथ मुझे एक और काम भी करना था.....
"ओह्हो.. एक बार तो कर लो.. बाद की बाद में देखेंगे..." कहते हुए संदीप ने घुटनो के बल बैठ कर मेरी सलवार का नाडा खींचने के लिए बाहर निकल लिया...
मैने उसका हाथ वहीं दबोच लिया..,"तुम.. तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो ना संदीप?"
"और नही तो क्या..? ये तुम आज कैसी बातें कर रही हो... जल्दी निकालो अपनी सलवार..!" संदीप हड़बड़कर बोला...
"नही...!" मैने मुँह बनाकर कहा....
"क्यूँ..? अब क्या हुआ?" वह घिघिया कर बोला....
"पहले मुझे 'वो' मोबाइल चाहिए...!" मैने दाँव फैंका...
"कौनसा.. ओहो.. कितनी बार बताऊं.. वो नही मिल सकता अब.. थोड़े दीनो में नया लाकर दे दूँगा.. तुम्हारी कसम... बस!" संदीप ने कहा और ज़बरदस्ती मेरा नाडा खींच कर सलवार ढीली कर दी.... मैं नीचे गिर गयी.. पर मैने जांघों को कसकर भींच कर अपनी योनि को छिपा कर रखा हुआ था...
"नयी.. तुम झूठ बोल रहे हो.. 'ढोलू' ने मना कर दिया होगा देने से... मुझे सब पता है..." मैने नाराज़गी भरे लहजे में कहा और झट से खड़ी होकर अपना नाडा फिर से बाँध लिया....
"आन्जुउउउउ.... ये क्या कर रही हो यार.. मेरे पास ज़्यादा टाइम नही है.. अब नखरे बंद करो अपने.." नंग धड़ंग संदीप जैसी ही पागल सा होकर मेरी तरफ लपका.. उसकी हालत देख कर मेरी हँसी छूट गयी...,"नही.. पहले मोबाइल की बात!" मैं खिलखिलाते हुए इधर उधर भागने लगी....
"तुम्हारी कसम जान.. ढोलू से पूच्छ लेना चाहे... आ जाओ ना..!" मेरी हँसी से हतोत्साहित होकर वो एक जगह खड़ा हो गया और अपना कच्च्छा वापस डाल लिया.. शायद उसको अहसास हो गया था कि मैं उसके नंगेपन पर हंस रही हूँ...
"ठीक है.. पुच्छवा दो पहले....!" मैं तपाक से बोली... संदीप ने मुझे कमर से पकड़ कर अपनी और खींच लिया....
"अब... जब 'वो' आएगा तो उस'से पूच्छ लेना.. मेरे पास उसका नंबर. नही है..." मेरी छातियो को वो अपनी नंगी छाती से दबाकर भींचते हुए बोला...
"फिर झूठ.. अया..." जैसे ही संदीप ने मेरी जांघों के बीच हाथ दिया.. मैं कसमसा उठी...," जब तक तुम मोबाइल वाली बात क्लियर नही करवाते.. मैं कुच्छ नही करूँगी...
उसने ज़बरदस्ती मुझे वापस वहीं पटक लिया और यहाँ वहाँ हाथ मार कर मुझे उकसाने की कोशिश करने लगा... पर मैं जानबूझ कर हँसती रही और मौका मिलते ही अपनी टाँगों के सहारे उठाकर उसको दूर पटक देती.....,"पहले मोबाइल.. बाकी 'काम' बाद में.." मैं अपनी ज़िद पर आडी रही....
तक हार कर 'वो' मुझसे दूर हट गया...," ठीक है.. मेरी कसम खाओ ये बात किसी को नही बतओगि....!"
"कौनसी बात?" उसके दूर हट'ते ही मेरा सारा बदन बेचैन सा हो उठा था....
"यही कि मैने तुम्हारी बात ढोलू से करवाई है....!" संदीप बोला...
"कब करवाई है...?" मैं अपनी आँखें सिकोड ली और उसके पास जाकर उस'से चिपकती हुई बोली...
"एक मिनिट..." संदीप ने मोबाइल निकाला और एक नंबर. डाइयल कर दिया...," हेलो भाई!"
"ये.. ये आपसे बात करना चाहती है... एक मिनिट..!" संदीप ने कहा और फोन मेरे कान से लगा दिया....
"हेलो.." मैने कहा...
ढोलू का जवाब काफ़ी देर बाद आया.. उसकी आवाज़ में हल्की सी हड़बड़ाहट थी....,"कौन?"
"मैं... अंजलि....!"
"और कौन है वहाँ..?" ढोलू ने पूचछा...
"कोई नही...!"
"ओह्ह.. मैं तो डर गया था.. तुम हमारे घर पर हो क्या?"
"ना.. ववो.. हां! मैं शिखा से मिलने आई थी.. मैने बात को सुधारा...
"शिखा कहाँ है..?"
"ववो.. दूसरे कमरे में है....!"
"बोलो.. क्या बात है...?" ढोलू जल्दी जल्दी में बोल रहा था....
"ववो.. ये संदीप फोन वापस नही दे रहा... मुझे तुमसे बात करने का दिल करता है...!" मैने मासूमियत से कहा...
"हाए मेरी जान..! ज़रा अलग होना संदीप से...!" ढोलू अचानक उत्तेजित सा लगने लगा....
"हां.. आ गयी... "मैने वहीं खड़े खड़े कहा....
"तुम्हारा सच में दिल करता है क्या.. मुझसे बात करने का...!" ढोलू पासीज सा गया था...
"और नही तो क्या? उस दिन के बाद तुम मिले ही नही हो... मेरा बुरा हाल करके छ्चोड़ गये....!" मेरी आवाज़ में कामुकता तो पहले ही थी.. अब शब्द भी कामुक हो गये....
"क्या करूँ जान.. मजबूरी है... बस थोड़े दिन रुक जाओ.. तुम्हारी सील मैं ही तोड़ूँगा...!"
"मुझसे नही रुका जाता अब.. जल्दी आ जाओ... मेरे वहाँ पता नही कैसा हो रहा है...
"हाए मेरी जान... कहाँ कैसा हो रहा है...." ढोलू का बुरा हाल हो गया लगता था..
"वहाँ.. नीचे...!" मैं संदीप की ओर मुस्कुरा कर बोली...
"हाए मेरी छम्मक्छल्लो.. एक बार बोलो.. मेरी चूत लंड माँग रही है...!"
"हां.. सच्ची...!" मेरा हाथ मेरी सलवार में घुस चुका था... संदीप अजीब सी नज़रों से मुझे घूरता रहा...
"हाँ नही.. बोल कर दिखाएक बार.. क्या माँग रही है तेरी चूत....?"
"मुझे नही पता.. तुम जल्दी आकर खुद ही देख लो..." मैं शरारत से कसमसाती हुई बोली.....
"तुम समझती नही जान.. ये पोलीस मेरी दुश्मन बनकर मेरे पिछे लगी है.. बस थोड़े से दिन और रुक जाओ...!"
"ये संदीप ना तो तुम्हारा नंबर. दे रहा है.. और ना ही मोबाइल...!" मैने शिकायती लहजे में कहा...
"वो ठीक ही कर रहा है जान.. थोड़े दिन रुक जाओ.. मैं नया मोबाइल दे दूँगा तुम्हे..!"
"कम से कम अपना नंबर. तो दे दो... मैं तुम्हे फोन तो कर लूँगी..." मैने अपनी योनि की फांकों को उंगली से कुरेदते हुए पूचछा....
कुच्छ देर ढोलू कुच्छ नही बोला... मैने एक नया पत्ता फैंका..,"मैं कल या परसों शहर आ रही हूँ... वहाँ तो मिल सकते हो ना!"
"मेरा नंबर. लिख लो... ध्यान रखना.. किसी के हाथ लग गया तो मेरी मा चुद जाएगी अच्छे से... तुम किसी को नही दोगि ना...!"
"नही.. तुम्हारी कसम...." उसके साथ बातों में खोए खोए मुझे पता ही नही चला की कब संदीप ने मेरी सलवार खोलकर नीचे सरका दी थी... जैसे ही उसने मेरे 'पेडू' से नाक' सटाते हुए मेरी 'योनि' में गरम साँस छ्चोड़ी.. मैं उच्छल पड़ी... इसके साथ ही मेरी टाँगों में जैसे जान बची ही ना हो... संदीप के हल्का सा ज़ोर लगते ही मैं पिछे गिर पड़ी... संदीप ने मेरी जांघों को हाथों में दबोच कर अपना मुँह उनके बीच घुसा दिया...
ज़ोर से सिसक कर मैने अपनी जांघें कसकर उसकी कमर के उपर रख दी..,"अया...!"
"क्या हुआ ...?" ढोलू ने मेरी सिसकी लेने का तरीका सुन कर चौंकते हुए पूचछा....
"आ.. कुच्छ नही... नीचे पता नही क्या हो रहा है...अयाया..." आनंद के मारे मरी सी जा रही मैं अपनी जांघों को खोलने भींचने लगी.. संदीप पूरे मज़े से मेरी योनि को चाट रहा था... जैसे ही उसकी जीभ की नोक मेरी 'योनि' के दाने पर आकर टिकती.. मुझे खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता और मैं सिसक उठती....
"तुम हो कहाँ इस वक़्त...?" ढोलू को कुच्छ शक सा होने लगा था....
"अया... तुमसे बात करते हुए चौपाल में आ गयी हूँ... संदीप का मोबाइल लेकर...!" मैने बहाना बनाया....
"ओह्ह.. संदीप कहाँ है..?"
"घर पर ही होगा...आईईई!" मैं एक बार फिर धहक उठी... संदीप ने फांकों को चौड़ा करते हुए अपनी जीभ मेरी योनि के छेद में घुसा दी थी....
"तुम अपनी चूत रगड़ रही हो ना...?" ढोलू खुश होकर बोला....
"आअहाआनन्न!" मेरी आँखें बंद हो चुकी थी.. मेरे जवाब देने का लहज़ा बदल गया था....
"फोन पर चूत मरवावगी?" ढोलू ने पूचछा...
"अया... कैसे...?" मैं बिलबिला उठी थी... संदीप ने अचानक मेरी पूरी योनि को अपने मुँह में भरकर उसको दातों से हल्के हल्के कुतरना शुरू कर दिया था....
"ऐसे ही.. एक मिनिट.. मेरी बात का जवाब देती जाना... तुम्हे भी बहुत मज़ा आएगा... तुम्हारी चूत कैसी है?"
"अया... गोरी..."
"आ.. गोरी नही मेरी रानी... मक्खन मलाई जैसी बोलो.. बोल कर दिखाओ...!"
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10-22-2018, 11:34 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
"अयाया... अया... मैं स्खलन के बिल्कुल करीब थी.. जैसे तैसे मैने बोलने के लिए शब्द ढूढ़ ही लिए..," मेरी चूऊऊथ मक्खन मलाई हैईआआआह्ह्ह्ह...!"
ढोलू की आवाज़ में भी कंपन सा शुरू हो गया था.....,"मेरे लौदा कैसा है रानी!"
"अया... तेरा लौदा क़ाला... अया.. नही.. तेरा लौदा 'डंडे' जैसा है...." मैं फुदक्ति हुई बोली...
"शाबाश... लड़की की चूत किसलिए होती है बता!"...
"प्याअर करने के लिए...!"
"नही सलीईइ.... चूत चोदने के लिए होती है.. लंड अंदर पेलने के लिए होती है....!"
"आह्ह्हाआ..ओहूओ.. हाआअन्न्न्न्न..अया!" संदीप ने अपनी दो उंगलियाँ मेरी योनि के अंदर डाल दी थी और लपर लपर योनि की फांकों को चूस और चाट रहा था....
"लौदा किसलिए होता है बोल...?" ढोलू ने मस्त होकर पूचछा....
"अया... मुँह में लेकर चूसने के लिए.... आऔर्र्र... चूत चोदने के लिए.....!" मैं गन्गनति हुई बोली....
"और गांद मारने के लिए भी... हाए जान.. मुझसे गांद मरवाएगी ना अपनी...!" ढोलू आगे बोला....
"हाआँ.... ज़ाआआअँ...." अचानक मेरी इंदरियों ने काम करना बंद कर दिया.. मुझे अपनी योनि में से कुच्छ रिस्ता हुआ महसूस हुआ.. संदीप अब भी पागल से होकर उसस्पर लगा हुआ था.. अपनी उंगलियाँ निकाल कर 'वो' अंदर तक मेरी योनि के छेद को जीभ से चाटने लगा.....
"बोल किस'से चुदेगि तू....?" धलोलू ने पूचछा तो मैं कोई जवाब ना दे पाई.... बस पड़ी पड़ी आँखें बंद किए सिसकती रही...
"बोल ना.. किस'से चुदेगि तू....... क्या हुआ? निकल गया क्या?" ढोलू बोला...
"हाआँ...." मेरी आवाज़ से सन्तुस्ति और बेताबी दोनो झलक रही थी....
"नही अभी नही.. थोड़ी देर और... अभी मेरा काम नही हुआ है.. बोल ना.. किस'से अपनी सील तुडवाएगी तू....?" ढोलू तड़प कर बोला... उस बेचारे को क्या मालूम था कि 'सील' तो अब स्वर्ग सिधार चुकी है...
"तेरे से... तेरे लौदे से...!" मैने जवाब दिया...
"ऐसे नही जान.. क्या बोलेगी तू मेरा लौदा हाथ में पकड़ कर.. बोल ना!"
"मैं कहूँगी... मुझे चोद दो.. मेरी सील तोड़ दो.. मेरी चूत को फाड़ डालो... !"
"हाए मेरी रानी.. क्या चीज़ है तू.. एक बाआअर ओउर्र.. बोल ना..!" ढोलू कामुक ढंग से बोला...
"अया.. मेरी मक्खन मलाई चूत में अपना डंडे जैसा लौदा फँसा दो... मुझे चोद दो.." मैने बोलते हुए संदीप को उपर खींच लिया.... मेरा इशारा समझ कर संदीप उपर आया और मेरी जांघों को खोल कर उनके बीच उकड़ू होकर बैठ गया.. मैं एक बार फिर बदहवास सी होकर बोलने लगी...," घुसा दो मेरी चूत में अपना लोड्ा... जल्दी करो ना.. मैं मरी जा रही हूँ... चीर डालो इसको... चोद दो मुझे... " मुझे फोन पर ढोलू के हाँफने की आवाज़ें सॉफ सुनाई दे रही थी.. पर वह कुच्छ बोल नही रहा था...
संदीप ने मेरी योनि के बीचों बीच अपना 'डंडा' टिकाया और एक ही झटके में अंदर पेल दिया... आनद की उस अलौकिक प्रकाष्ठा पर पहुँचते ही मैं बावली सी हो गयी...,"हाईए... संडीईईप!"
मुझे बोलते ही अपनी ग़लती का अहसास हो गया था.. पर तीर कमान से निकल चुका था....
"साली बेहन चोद.. तू संदीप के बारे में सोच रही है कुतिया....
"नही.. ववो.. उसका मोबाइल.. अयाया...." संदीप का लिंग बाहर निकल कर एक बार फिर मेरे गर्भाष्या से जा टकराया..," आआआआहह... वो तो उसका ध्यान आ गया था.. ऐसे ही.. तुझसे ही चुदवाउन्गि जान!"
"कुतिया... तू एक नंबर. की रंडी है.. तेरा कोई भरोसा नही.. पर एक बार सील मुझसे तुद्वा लेना.. फिर चाहे कुत्तों से अपनी गांद मरवाना.. समझ गयी... तुम कल ही शहर आ जाओ.. मेरा नंबर. देख लेना मोबाइल में से....
"ठीक है...", मुझे उसकी गालियाँ मदहोशी में बड़ी अच्छि लग रही थी...," तुझसे ही अपनी चूत मराउन्गि... अया.. अया...!"
"एक बार मरवा कर देखना साली.. और किसी का लंड पसंद आ जाए तो बताना फिर... कल पक्का आ रही है ना...?"
"हाँ..!"
"ठीक है.. फोन वापस दे आना.. और किसी को मेरा नंबर. मत बताना.. ठीक है ना...?" ढोलू ने पूचछा...
"हाँ...!" मेरे कहते ही ढोलू ने फोन काट दिया.... मैने ढोलू का नंबर. याद किया और फोन एक तरफ पटक दिया...,"अया... अयाया....!" बोल बोल कर धक्के मारो ना जान...!"
"ढोलू से तो बहुत गंदे तरीके से बात करती हो.. मुझसे ऐसे क्यूँ नही करती...!" संदीप धक्के लगाता हुआ बोला....
पहली बार वाली दिक्कत अब नही हो रही थी... सच में मेरी योनि आज मक्खन मलाई जैसी लग रही थी... संदीप का लिंग पूरी सफाई से मेरी योनि की दरारों को चीरता हुआ अंदर बाहर हो रहा था....
"पता नही मुझे क्या हो गया है.. मुझे अब कुच्छ भी बोलते हुए शर्म नही आ रही.. मज़ा आ रहा है गंदा बोलते हुए.....!" मैने संदीप की छाती पर हाथ फेरते हुए कहा और अपने नितंबों को उचकाने लगी...
"तो बोलो ना.. मुझे भी बहुत अच्च्छा लग रहा है.." संदीप धक्के मारते हुए बोला...
"नही.. अब नही बोला जा रहा.." मैं साथ साथ तेज धक्के लगाने लगी थी.. तभी मुझे अहसास हुआ कि संदीप की गति कुच्छ बढ़ गयी है.. मुझे अचानक ख़तरे का अहसास हुआ तो मैने झट से उसका लिंग बाहर निकलवा दिया...
"ये क्या किया? सारा मज़ा खराब कर दिया......!"
"नही अंदर नही... बाहर निकाल लो" मैं थरथरती हुई बोली.. मेरा 'काम' हो गया था....
"ठीक है..."संदीप मान गया और मेरी कमीज़ को चूचियो से उपर चढ़ता हुआ मेरी बराबर में लेट गया......
एक हाथ से वह मेरी चूची को मसलता हुआ दूसरी को मुँह में लेकर चूसने लगा.. अपने दूसरे हाथ से वह धीरे धीरे अपने लिंग को आगे पिछे कर रहा था... मस्ती में चूर होकर मज़े लेते हुए में जल्दी ही एक बार फिर गरम हो गयी.. मेरी योनि फिर से उसका 'लिंग' निगलने के लिए तड़पने लगी....
"संदीप!" मैं करहती हुई सी बोली....
"हाँ!"... उसने चूची के दाने को मुँह से निकाल कर पूचछा...
"अभी.. कितनी देर और लगेगी.....?"
"क्यूँ? जल्दी है क्या? " संदीप ने पूचछा...
"नही.. मुझे एक बार और करना है.."मैं तड़प कर बोली...
"थॅंक्स!" अगले ही पल वह उठा और बड़ी फुर्ती से मेरी जांघों के बीच में आ गया...
"नही.. ऐसे नही...!" मैं हड़बड़कर खुद को समेट कर बैठ गयी...
"तो कैसे?" उसने नासमझ सा बनकर पूचछा....
"पहले निकाल लो.. फिर दोबारा करना.. अंदर इसका रस नही निकलना चाहिए...." मैने उसका लिंग अपने हाथ में पकड़ लिया और सहलाने लगी...
"एक बात बोलूं.. बुरा मत मान'ना....!" संदीप गिड़गिडता हुआ सा मेरी ओर देखने लगा...
"क्या?" मैं उसके सामने उल्टी होकर लेट गयी और उसके लिंग के सूपदे को जीभ निकाल कर चाटने लगी.. वह सिसक उठा...
"पीछे कर लूँ क्या?" वह आहिस्ता से टेढ़ा होकर जैसे ही लेटा.. उसकी चीख सी निकल गयी...,"आईईई..."
"क्या हुआ?" मैने चौंक कर पूचछा...
"कुच्छ नही..." वह अपनी कोहनी को सहलाता हुआ बोला..," पथर पड़ा है शायद नीचे..." उसने चदडार को पलटा तो सचमुच वहाँ करीब 2-2.5 किलो का पत्थर निकला... संदीप ने 'वो' निकाला और पिछे डाल दिया.... वापस ऐसे ही वह मेरे नितंबों की तरफ मुँह करके लेट गया और उन्न पर प्यार से हाथ फेरता हुआ बोला....,"पिछे कर लूँ क्या अंजू?"
उसके सूपदे को एक बार मुँह में लेकर उसको जीभ से गुदगुदकर मैने 'पूच्छ' कि आवाज़ के साथ उसको बाहर निकाला और गौर से उसके लिंग के छिद्र को देखती हुई बोली..,"पीछे?... पीछे क्या?"
मेरे नितंबों को दोनो हाथों से अलग अलग चीर कर उसने मेरी योनि में उंगली घुसा दी.. मैं उच्छल सी पड़ी.. अगले ही पल उसने रस से सनी उंगली मेरे गुदा द्वार पर रख दी और हल्का सा दबाव बनाते हुए बोला,"इसमें..!"
"इसमें क्या? पता नही क्या बोल रहे हो...?" मैने कहा और उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए आँखें बंद किए उसके लिंग को चूस्ति रही....
"अपना लौदा इसमें घुसा दूँ क्या?" बोलते हुए उसने अचानक उंगली का दबाव मेरे गुदा द्वार पर बढ़ा दिया... मैं दर्द से बिलखती हुई छ्ट-पटाने लगी..,"आई मुम्मय्यी... निकालो बाहर इसको!" उसकी उंगली का एक 'पोर' मेरे अंदर घुस गया था....
उंगली निकाल कर वा बोला..," मज़े आए ना!"
"मज़े?" मैने गर्दन घूमकर उसको घूर कर देखा..,"जान निकल गयी होती मेरी... दोबारा फिर ऐसा किया तो फिर कभी तुमसे प्यार नही करूँगी.....!"
"तुम तो वैसे ही डरी हुई हो.. पहली बार तो आगे भी दर्द हुआ था... एक बार घुस्वा कर तो देखो... 'गांद' मारने और मरवाने में और भी मज़े आते ही...."
"तुम मरवा लेना.. ये तो तुम्हारे पास भी है ना...!" मैं कहकर हंस पड़ी और फिर से उसके लिंग को मुँह में दबा लिया... वह भौचक्क सा मेरी और देखता रहा.. फिर अपने 'काम' पर लग गया....
"अच्च्छा.. ठीक है.. मुँह में तो निकालने दोगि ना....?" उसने मेरे नितंबों पर दाँतों से हल्का सा काट लिया.. मैं सिसकती हुई उच्छल कर बैठ गयी...,"हां.. ये मान लूँगी... तुम्हारा 'रस' बहुत अच्च्छा लगा था मुझे..."
वह अगले ही पल खड़ा हुआ और अपनी टाँगें चौड़ी करके मेरे होंटो पर अपना लिंग रख दिया.. मैं मुस्कुराइ और अपने होन्ट उसके लिंग के स्वागत में पूरे खोल दिए... उसने आगे होकर अपना आधा लिंग मेरे हलक में उतार दिया.. मैने अपने हाथ से उसकी जांघें पकड़ कर उसको 'बस' करने का इशारा किया...
संदीप जो काम थोड़ी देर पहले अपने हाथ से कर रहा था.. अब वह काम मेरे होन्ट कर रहे थे... उसने जैसे ही अपना लिंग आगे पिछे करना शुरू किया, मैने अपने होन्ट उसके चारों ओर कस दिए...
उसने पिछे से मेरे बालों को पकड़ा और धक्कों की स्पीड बढ़ा दी.. हर बार उसका लिंग मेरे गले में ठोकर मार रहा था.. तीन चार बार मुझे अजीब सा महसूस हुआ.. पर उसकी सिसकियाँ सुन सुन कर मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं और भी जोश से उसका लिंग अपने होंटो में दबोच कर उसको आगे पिछे होते देखती रही... अचानक उसने मेरे बालों को खींच लिया और अपना लिंग अंदर करके खड़ा खड़ा काँपने सा लगा... अगले ही पल उसके 'रस' की धार सीधी मेरे गले में जाकर टकराई.. पर पता नही क्यूँ मैं उसको गटक नही पाई.. इसके बाद तीन चार और झटकों में मेरा मुँह पूरा भर गया... लगातार काफ़ी देर तक हान्फ्ते रहने के बाद उसने अपना लिंग जैसे ही बाहर निकाला.. मैने एक तरफ होकर उल्टी सी कर दी....
"क्या हुआ?" वह घबराकर बैठ गया...
"कुच्छ नही.. अंदर नही पिया गया..." मैने कहा और बड़ी बेताबी से उसके आधे झुके हुए झंडे को मुँह में दबोच लिया और जीभ से उसको 'पापोलने' लगी.... संदीप से भी ज़्यादा मुझे उसके लिंग के 'तन' कर सीधा हो जाने का इंतजार था... कुच्छ ही देर बाद संदीप ने अपने दोनो हाथों में मेरी गोल तनी हुई चूचियो को थाम लिया और सिसकियाँ भरने लगा....
"ये लो.. कर दिया खड़ा..." मैं खुश होकर जैसे ही उसके लिंग को मुँह से निकाल कर पिछे हटी.. मुझ पर मानो आसमान टूट पड़ा... मेरा अंग अंग काँप उठा... मेरी आँखें डर के मारे 'सुन्दर' पर ही जमी रह गयी....
'सुन्दर' दूसरे कमरे की 'दहलीज पर बैठा मुस्कुरा रहा था...,"साले.. लौदा खड़ा करने में ही तुझे आधा घंटा लगता है.. 'वो' भी ऐसे करार माल के सामने! हट पिछे.. तू फिर कभी करना.. मेरी बारी आ गयी.....!" सुन्दर ने मेरी दोनो बाहें पकड़ी और किसी गुड़िया की तरह सीधी खड़ी कर लिया.... मैं अपने आपको छुड़ाने के लिए छ्ट-पटाने लगी.. पर उस मुस्टंड के आगे मेरी क्या चलती...."
"कुच्छ याद आया..? कहा था ना कि एक दिन तुझे अपने लंड पर बिठा कर चोद चोद कर जवान करूँगा...!" उसने बड़ी बेशर्मी से कहा और पिछे से मेरे नितंबों के बीच हाथ डाल कर हवा में उठा लिया......
"छ्चोड़ दो मुझे..." मैने हवा में ही पैर चलते हुए सहायता के लिए नम आँखों से संदीप की ओर देखा.. पर वह 'चूतिया' सा मुँह बनाए अलग होकर हूमें देखता रहा.....
"अच्च्छा.. साली कुतिया रंडी की बच्ची... उस दिन मेरा हाथ लगवाने से भी परहेज कर रही थी... आज ये सारा 'प्रोग्राम' तुझे छ्चोड़ने के लिए नही.. चोदने के लिए किया है.. गांद मारूँगा तेरी... तेरी मा की तरह चोदुन्गा.. तेरी चूत का भोसड़ा ना बना दूँ तो नाम बदल देना......" बोलते हुए सुन्दर ने मेरी योनि में उंगली डाल दी... मैं बिलखने लगी थी.. और कर भी क्या सकती थी....!
"चल कमीज़ निकाल कर पूरी नंगी हो जा... आज तुझे 'मुर्गी डॅन्स' कराता हूँ..." कहते हुए उसने मुझे नीचे पटक दिया...," तुझे जाना है या खड़ा होकर तमाशा देखेगा...!" उसने संदीप से कहा....
"मैं बाद में कर लूँगा भाई... !" संदीप खड़ा खड़ा बोला....
"बाद में क्या घंटा मज़ा आएगा तुझे... मेरे चोदने के बाद ये तीन चार दिन तक चोदने लायक नही रहेगी...ले जल्दी चोद ले.. तेरा माल है.. पहले तेरा ही हक़ बनता है...." कहकर सुन्दर वापस जाकर कमरे की दहलीज पर बैठ गया.....
मैं आँखों में ढेर सारे आँसू लिए हुए संदीप को निरीह नज़रों से देखती हुई बोली..," ऐसा क्यूँ किया तुमने....?"
"वववो.. म्मै.. कुच्छ नही होगा अंजू...! ये भी आराम से करेगा....! मैं बोल दूँगा...." संदीप धीरे धीरे मेरे पास सरक आया....
मेरी आँखों से झार झार आँसू बहने लगे.... मेरे शरीर में मानो जान बची ही ना हो... संदीप ने जैसे लिटाया मैं लेट गयी... उसने मेरी जांघें सुन्दर के सामने ही खोल दी..
सच कहूँ तो पहली बार मुझे तब अहसास हुआ था कि 'शर्म' और इज़्ज़त क्या होती है... मुझे जो आदमी फूटी कोड़ी नही सुहाता था.. 'वो' मेरे नंगेपन का लुत्फ़ उठा रहा था.... उस दिन मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मैं कितनी गिरी हुई हूँ.. अगर अपनी आकांक्षाओं पर काबू रखती तो शायद ऐसा दिन कभी ना आता....
इस आपा धापी में संदीप का लिंग सिकुड गया था.. वह बेचैन सा होकर मेरी योनि को मसलता हुआ दूसरे हाथ से उसको खड़ा करने की कोशिश करने लगा...
तभी सुन्दर खड़ा होकर मेरे पास आकर बैठ गया..," जवान हो गयी.. हैं..क्या बात है..?" उसने कहा और मेरी चूची की एक घुंडी पकड़ कर मसल दी... मैं दर्द से बिलख उठी...
"वैसे एक बात तो है... तेरी मा के बाद गाँव भर के मर्दों को संभालने लायक माल बन चुकी है तू.... देख क्या कड़क चूचिया हैं.. तेरी मा की भी जवानी में ऐसी ही थी... साली को बचपन से चोद रहा हूँ... अब तुझे चोदुन्गा!.... बुढ़ापे तक.. हा हा हा...!" सुन्दर ने कहा और मेरी चूचियो पर झुक गया... अपने काले काले मोटे होन्ट जैसे ही उसने मेरी चूचियो पर लगे.. मुझे लगा मुझे तुच्छ और घृणित लड़की इस पूरी दुनिया में नही होगी.... मेरा रोम रोम बिलख उठा.. मंन में आ रहा था कि जैसे....
अचानक मेरे मंन में एक ख़याल आया... संदीप का सिर झुका हुआ था.. सुन्दर आँखें बंद किए मेरी छातियो पर लेटा हुआ उन्हे बारी बारी चूस रहा था.. मैं अपने हाथ धीरे धीरे पिछे ले गयी और 'वो' पत्थर ढूँढने लगी.... मेरी किस्मत कहें या सुन्दर का दुर्भाग्या.. कुच्छ देर बाद 'वो' पत्थर मेरे हाथ में था....
मैने आव देखा ना ताव.. पूरी सख्ती से चिल्लाते हुए मैने पत्थर सुन्दर के सिर में दे मारा... उसने दहाड़ सी मारी और एक तरफ गिर कर अपना सिर पकड़ लिया.. उसका खोपड़ा खुल गया था....
अब मेरे पास ज़्यादा समय नही था... अवाक सा संदीप जब तक बात को समझ पाता.. मैने खींच कर एक लात उसकी छाती में दे मारी... मैं अब भी रो रही थी.. हड़बड़ाहट में मैं उठी और अपनी शॉल और सलवार ले कर बद-हवास सी बाहर भागी... संदीप मेरा पिच्छा करते हुए बरामदे तक आया और फिर लौट गया....
"पूरी गली मैने भागते हुए पार की... गली के कोने पर मूड कर देखा.. पर किसी के आ रहे होने की आहट सुनाई नही दी.. मैने जल्दी से अपनी सलवार पहनी और सुबक्ती हुई तेज़ी से घर की ओर चल दी......
"क्या हुआ अंजू...?" मीनू दरवाजा खोलते ही मेरे टपक रहे आँसुओं को देख कर भयभीत हो गयी....
"दीदी!" मैने इतना ही कहा और उस'से लिपट कर बिलखने लगी...... तब तक पिंकी भी मेरे पास आ चुकी थी...,"क्या हुआ अंजू?"
"कुच्छ मत बोल इस'से अभी.." मीनू मुझे अपने सीने से लगाए हुए बोली... चुप हो जा अंजू.. मम्मी ने सुन लिया तो तमाशा हो जाएगा.... 'ववो.. सोनू की लाश गाँव में आ चुकी है... पापा नीचे आए थे.... हमने कह दिया था कि तू बाथरूम में है...... शुक्र है तू आ गयी.. वरना पापा आते ही फिर पूछ्ते..... बस कर.."
कुच्छ देर रज़ाई में मीनू के साथ लेटी रहने के बाद मेरा सुबकना भी रुक गया... पर रह रह कर सुन्दर का ख़याल आते ही मेरे मंन में झुरजुरी सी उठ रही थी....
"क्या हुआ अंजू...?" मुझे सामान्य होता देख पिंकी भी मेरे पास आ बैठी....
अब मैं कुच्छ भी छिपाना नही चाहती थी... जो कुच्छ भी हुआ.. मैने सब बता दिया...!
"मैं ना कहती थी तुझसे.. संदीप एक नंबर. का कुत्ता कमीना है... क्यूँ गयी तू वहाँ...?" पिंकी तुनक कर बोली...
"बस कर पिंकी.. इसने जो कुच्छ भी किया.. मेरे लिए ही तो किया है...!" कहकर एक बार फिर मीनू मुझे सीने से लगा कर दुलार्ने लगी..... मेरी सुबाकियाँ एक बार फिर शुरू हो गयी.....
उस रात के 36 घंटे बाद भी मेरे दिमाग़ से वो घिनौना पल निकल नही पाया था... आख़िरी पेपर में संदीप ने अपने आप ही बोलकर मुझे सुन्दर से सावधान रहने को कहा था.. उसने बताया कि सुन्दर के सिर में 6 टाँके आए हैं.. यह भी कि वो मुझे पूरे गाँव के सामने जॅलील करने की बात कह रहा है.. मैं सहमी हुई थी.. मुझे नही पता था कि आगे क्या होने वाला है...
मेरे ज़िद करने पर मीनू ने पापा से मुझे शहर ले जाने की बात भी की.. पर पापा ने साफ मना कर दिया....
मीनू शहर कॉलेज जाने को तैयार होकर बैठी थी.. तैयार तो पिंकी और मैं भी थे.. पर मेरे बिना मीनू ने पिंकी को भी ले जाने से मना कर दिया...
पिंकी अपना मुँह फुलाए बैठी थी और हम दोनो उसके पास चुप्पी साधे बैठे थे..
"अच्च्छा अंजू.. मैं चलती हूँ...!" गहरी साँस लेकर मीनू खड़ी हो गयी...
"नही दीदी.. मैं भी आपके साथ चल रही हूँ...!" मैने अचानक अपना मंन बनाते हुए कहा....
"नही.. तू कैसे चल सकती है.. चाचा ने साफ साफ मना कर दिया है...!" मीनू मायूस होकर बोली... दिल तो उसका भी बहुत कर रहा था मुझे साथ लेकर जाने का.. मानव का भी ये बात सुनकर मूड ऑफ हो गया था कि मैं शहर नही आ सकती.. उसने कहा भी था कि दोबारा बात करके देख लो.. पर उसको पापा के नेचर का पता नही था.. हम दोबारा बात करने की सोच भी नही सकते थे....
"नही दीदी.. मेरा चलना बहुत ज़रूरी है.. पापा तो खेत में गये हैं.. उनको क्या पता लगेगा...! शाम तक तो हम वापस आ ही जाएँगे..." मैने पूरा मंन बना लिया था.. पिंकी चुपचाप हमारी ओर देखती हुई निर्णय का इंतजार कर रही थी...
"पर.. अगर पता चल गया तो...!" मीनू ने आशंका से मेरी और देखा...
"कोई बात नही.. देखा जाएगा वो भी.... मैं चल रही हूँ आपके साथ...!" मैं खड़ी हो गयी...
कुच्छ देर की चुप्पी के बाद मीनू अपने माथे पर बल लाती हुई बोली...,"ठीक है.. तुम दोनो आगे चलो.. मैं तुमसे पिछे आउन्गि..."
"हुर्रेयययी..." पिंकी ने कहा और खुश होकर मुझे बाहों में भर लिया..,"चलो चलें.. बस ना निकल जाए कहीं...!"
मैं चाह कर भी अपने चेहरे पर हँसी के भाव नही ला सकी... हम दोनो घर से बाहर निकल कर बस स्टॅंड की ओर चल पड़े....
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
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शहर जाते हुए मेरे मंन में खुद के लिए कोई उत्साह नही था.. कुच्छ था तो सिर्फ़ ढोलू को पकड़वा कर मीनू और पिंकी की नज़रों में ये साबित करने का कि उस दिन मैने जो कुच्छ भी किया था सिर्फ़ और सिर्फ़ मीनू के लिए ही किया था... ऐसा करके मैं कुच्छ हद तक आत्मग्लानि से भी मुक्त हो रही थी...
दरअसल.. सुन्दर के उस रात के डाइलॉग मेरे दिमाग़ में रह रह कर हथोदे की तरह चोट कर रहे थे.. आख़िरकार मैं अपना 'वजूद' टटोलने पर मजबूर हो ही गयी थी...
पिंकी जैसी मेरी उमर की जाने कितनी ही लड़कियाँ थी जो लड़की होने का मतलब जानती थी.... अपनी मर्यादायें अच्छि तरह से समझती थी और उन्हे खुशी खुशी निभा भी रही थी... फिर उस कच्ची उमर में मेरा मंन ही क्यूँ बहक रहा था? मैं ही क्यूँ 'जल्दी' जवान होने को मचल उठी थी... मैं ही क्यूँ लड़कों की 'मर्दानगी' से इतनी जल्दी रूबरू होना चाहती थी.... ? सच कहूँ तो इन्न सब सवालों का जवाब मेरे पास उस वक़्त कतयि नही था.. पर इतना ज़रूर था कि उस वक़्त मुझमें भी 'पिंकी' जैसी बन'ने की इच्च्छा सिर चढ़ कर बोलने लगी थी....
"मैने मानव को बता दिया कि तू आ रही है.. सुनते ही खुश हो गया.." मीनू ने पिच्छली सीट से मेरे कान के पास होन्ट लाकर बताया.. मैं आनमने से ढंग से मुस्कुरा दी...
"क्या कह रही हैं दीदी?" पिंकी ने मचलते हुए मुझसे पूचछा.. बस की आवाज़ में शायद 'वो' सुन नही पाई थी...
"कुच्छ नही.. मानव को बता दिया कि मैं आ रही हूँ... खुश हो गया!" मैने धीरे से उसको कहा...
"और मैं..?" पिंकी ने मेरी तरफ देखा और फिर पिछे मूड गयी..," मेरे बारे में क्या बोले दीदी..?"
"चुप करके बैठी रह.. चल कर पूच्छ लेना...!" मीनू ने उसको दुतकार सा दिया.. पिंकी अपना सा मुँह लेकर बैठ गयी.....
"इस आदमी का क्या करें..? ये तो कल से फोन पर फोन कर रहा है...!" मीनू ने एक बार फिर मेरे कान में ही कहा......
"वहीं चल कर पूच्चेंगे.. उन्होने मना किया है ना?" मैने कहा...
"क्या?" पिंकी ज़्यादा देर चुप ना बैठ सकी.....
"वो मैं कह रही हूँ कि पिंकी को 'जलेबी' बहुत पसंद हैं...!" मुझसे पहले ही मीनू बोली और हँसने लगी....
"हाँ.. और चॉककलते और 'समोसा' भी...." पिंकी का चेहरा खिल उठा....
सुनकर मैं भी हँसे बिना ना रह सकी... पर हमारी हँसी से अंजान 'पिंकी' कुच्छ देर बाद फिर बोल उठी...,"आज तो मैं गोलगप्पे भी खाउन्गि.... मेरे पास 100 रुपए हैं...!"
"बस कर भूखी... सब सुन रहे हैं...!" मीनू ने उसके कान के पास आकर उसको लताड़ लगाई......
9:00 बजे से कुच्छ पहले ही हम शहर के बस स्टॅंड पहुँच गये.. मीनू ने नीचे उतरते ही मानव को फोन किया..,"हाँ.. वो.. हम यहाँ पहुँच गये.. बस अड्डे पर...!"
"पर मैने बताया तो था कि 9:00 बजे के आसपास हम पहुँच जाएँगे..!" मीनू ने फिर से कहा....
"ठीक है.. हम यहीं वेट करते हैं तब तक....!" मीनू ने मायूस होकर फोन काट दिया...
"क्या बोले वो?" मैने मीनू के कॉल डिसकनेक्ट करते ही पूचछा....
"कह रहा है अभी टाइम लगेगा.. हमने रात को मना कर दिया था ना... वो अभी घर पर ही है...!" मीनू ने इधर उधर देखते हुए कहा और फिर बोली..,"आओ.. वहाँ अंदर बैठते हैं...!"
हम दोनो मीनू के पिछे पिछे जाकर बस-स्टॅंड के अंदर एक जगह बैठ गये...
"चलो ना दीदी.. तब तक मार्केट घूम आते हैं..." पिंकी से रहा ना गया...
"चुप करके बैठ जा थोड़ी देर...! पहले ही दिमाग़ खराब है...इतने दीनो बाद तो कॉलेज आई थी.. लगता है आज भी क्लास अटेंड नही कर पाउन्गि...!" मीनू ने हताशा से कहा....
तभी अचानक पिंकी ने मेरे कान में फुसफुसाया..,"हॅरी!"
नाम मुझे सुन गया था.. पर मैं मतलब नही समझ पाई..,"क्या हॅरी?"
पिंकी का चेहरा अचानक तमतमा सा गया.. उसने सकपका कर मीनू की ओर देखा और हड़बड़ा कर इशारा करते हुए बोली...,"कुच्छ नही.. वो.. हॅरी जैसा लग रहा है ना..!"
हम दोनो की नज़रें उसकी उंगली का पिच्छा करते हुए हमसे काफ़ी दूर खड़े होकर रह रह कर हमारी ही ओर देख रहे हॅरी पर पड़ी...
"हाँ.. हॅरी ही है.. वो शहर नही आ सकता क्या?" मीनू उसको पहचान कर पिंकी की ओर देखते हुए बोली..,"तो क्या हुआ?"
"न्नाही.. ववो.. मुझे लगा शायद वो हॅरी नही है...!" पिंकी की साँसे उखड़ गयी...
शायद हमें अपनी और लगातार देखता पाकर हॅरी हमारे पास ही आ गया..,"वो.. आज यहाँ कैसे..?"
"बस.. कुच्छ काम सा था.. !" मीनू बनावटी तौर पर मुस्कुरकर बोली....
"ओह्ह... 9:00 वाली बस में आई हो क्या..?" हॅरी ने पूचछा...
"हाँ.. तुम भी?" पिंकी से बोले बिना रहा ना गया....
"नही.. मैं बस थोड़ी देर पहले ही गाड़ी से आया हूँ.. मुझे पता होता तो..." हॅरी कुच्छ कह ही रहा था कि मीनू ने बीच में ही टोक दिया...,"नही.. कोई बात नही....
"यहाँ कैसे बैठी हो..? किसी का इंतज़ार है क्या?" हॅरी ने आगे पूचछा....
"नही.. हाँ.. ववो एक फ्रेंड आनी है मेरी...!" मीनू ने सकपकते हुए बोला....
"लो.. तब तक पेपर पढ़ लो.. मैं भी किसी का इंतजार ही कर रहा हूँ..." कहकर हॅरी मीनू वाली साइड आकर बैठ गया......"
कुच्छ देर हम चारों चुप चाप बैठे रहे.. अचानक मीनू मुझे अख़बार देकर खड़ी हो गयी..,"अच्च्छा.. मैं चलती हूँ.. मेरी फ्रेंड बाहर आ गयी होगी... उसका फोन आएगा तो मैं बोल दूँगी कि तुम यहाँ बैठे हो...! आजा पिंकी.. कॉलेज घुमा लाती हूँ..."
"नही दीदी.. मैं अंजू के साथ ही बैठती हूँ... पर आप..?" पिंकी कुच्छ बोलते बोलते रुक गयी...
"कोई बात नही.. तुम आराम से बैठे रहो.. अभी तो थोड़ी देर हॅरी भी यहीं होगा.....!" मीनू ने मुड़कर कहा...
"हाँ.. मैं तो काफ़ी देर यहीं हूँ..." हॅरी ने कहा और मीनू के बस-स्टॅंड से बाहर निकलते ही मुझसे पूचछा...,"कौन आ रहा है...?"
"ववो.. कोई.. एक रिलेटिव है.." और कुच्छ मेरी समझ में ही नही आया....
"ओह्ह... कहीं आगे जा रहे हो क्या?" हॅरी कुच्छ ज़्यादा ही सवाल जवाब कर रहा था....
"हाँ.. वो.. पिंकी!" मैने पिंकी का हाथ पकड़ कर कहा...,"आना एक बार...!" और उसको उठाकर दूर ले गयी....
"ये क्यूँ आ गया?" मैने पिंकी की आँखों में देख कर डर से कहा..," पहले ही मेरी टांगे डर के मारे काँप रही हैं... अब ये.. इनस्पेक्टर इसके सामने ही कुच्छ बोल ना दे!"
पिंकी की आँखों में एक अलग ही नूर चमक रहा था...,"कुच्छ नही होगा.. तुम्हे पता है ना ये किसी को कुच्छ नही बताता कभी..."
"वो तो ठीक है.. पर ये खुद क्या सोचेगा...?" मैने बुरा मुँह बनाकर कहा.. मेरी कही गयी ये बात मुझमें बदलाव का पहला सबूत थी....
"कुच्छ नही होगा... और वो.. तुम इसको 'पटाकर दिखाने की बोल रही थी.. दिखाओ अब!" पिंकी ने मुझे चॅलेंज करने के अंदाज में कहा....
"प्लीज़ पिंकी.. मुझसे ऐसी बात मत करो.. मेरे सिर में दर्द हो रहा है...!"
"ठीक है... मार्केट चलें तब तक.. हॅरी को ले चलेंगे साथ..." पिंकी खिसियकर बोली...
"पागल है क्या तू.. इनस्पेक्टर आने वाला होगा... आधे घंटे से उपर... वो शायद आ ही गया...!" बस स्टॅंड के पिछे आकर रुकी पोलीस ज़ीप को देखकर मैं बोली...
कुच्छ देर बाद मानव सीधा हमारे पास आकर खड़ा हो गया...ब्लॅक जीन्स और वाइल टी-शर्ट में 'वो' बड़ा ही स्मार्ट लग रहा था... शायद मीनू के लिए तैयार होकर आया था...," इसको क्यूँ उठा लाए...? इसको थोड़े ही साथ लेकर चल सकते हैं....!" मानव पिंकी को देख कर बोला....
पिंकी अपने उपर हुए इस अप्रत्याशित हमले को देख कर भौचक्क रह गयी.. वो रोनी सूरत बनाकर मानव की ओर देखने लगी..
"ववो.. हॅरी है यहाँ.. उसके पास रह लेगी तब तक...!" मेरे मुँह से हड़बड़ाहट में निकल गया.....
"कौन.. दूर बैठे हॅरी को हमारी ही तरफ देखते पाकर मानव बोला..,"वो.. ! वो तुम्हारे साथ ही है क्या?"
"हाँ..!" मैने कह दिया....
"ठीक है.. तुम यहीं बैठना.. थोड़ी देर बाद मीनू आ जाएगी या हम.. तब तक कहीं जाना नही.. ठीक है...!" मानव ने जल्दी जल्दी में कहा और मेरी ओर देख कर बोला...,"आओ.. मेरे साथ!"
मैं बार बार मुड़कर पिंकी की ओर देखती हुई उसके पिछे चल दी.. पिंकी की शकल रोने जैसी हो गयी थी.. वो अब तक वहीं खड़ी थी.. हॅरी से दूर...!
"नंबर. याद है...?" मानव ने पूचछा....
"हन..! आपके साथ और पोलीस वाले नही हैं क्या?" मैने पूचछा....
"वो यार.. जल्दी निकलना पड़ा.. फिर तुम यहाँ इंतजार कर रहे थे.. मैने बोल भी दिया है वैसे.. कोई टाइम तक आ गया तो ठीक है.. वरना.... पर क्यूँ पूच्छ रही हो..?" मानव ने अचानक पूचछा....
"मुझे डर लग रहा है बहुत..." मैं सचमुच्च डरी हुई थी...
"मुझसे?" वा हंसता हुआ बोला....
"नही... उस'से!" मैने सपस्ट किया....
"तुम्हे सिर्फ़ एक फोन ही तो करना है... फोन करके उसको यहाँ बुला लो... बाकी मैं देख लूँगा.... इसमें डरने वाली क्या बात है...?"
हम दोनो अभी बस-स्टॅंड की चारदीवारी के अंदर ही खड़े थे... उसने मुझे सारी बातें खोल कर समझाई और मुझे बस-स्टॅंड के सामने पी.सी.ओ. के बारे में बताता हुआ बोला..,"वो जहाँ कहे.. वहीं खड़ी हो जाना... किसी भी तरह का डर मंन में मत रखो.. वह जहाँ भी खड़ा होने को बोले.. खड़ी हो जाना.... मेरी नज़र तुम पर ही रहेगी.. ठीक है...? डरना मत!"
मैने सहमति में सिर हिलाया और बस-स्टॅंड के बाहर निकल कर पी.सी.ओ. जा पहुँची...
"हेलो..." मैने ढोलू के फोन उठाते ही कहा....
"हाए मेरी रानी...! कल से शहर में डेरा डाले पड़ा हूँ तेरे लिए... कहाँ है तू....?" ढोलू की आवाज़ में उत्साह सॉफ झलक रहा था....
"मैं शहर आ गयी हूँ... बस-स्टॅंड के बाहर से फोन कर रही हूँ...!" मैने अपनी आवाज़ को यथासंभव सामान्य बनाते हुए कहा.....
"ऐसा करो... कोई ऑटो कर लो.. उसको बोलो कि 'काले के ढाबे' के पास उतार दे.. वहाँ मेरे लड़के मिल जाएँगे...!" ढोलू ने कह कर मुझे संशत में डाल दिया....
"पर.. पर मैं... तुम यहीं आ जाओ ना... मैं कैसे आउन्गि वहाँ..?" मैं हड़बड़ा सी गयी....
"अरे तुझे पता नही है... मैं शहर के अंदर नही आ सकता... बताया तो था तुझे... 'वो' लड़के भी नही आ सकते... किसी और को मैं भेजूँगा नही.. क्या पता मेरे से पहले ही 'वो' तेरा 'काम' कर दे..... तू जल्दी आ जा.. ढाबे से तुझे वो आराम से मेरे पास ले आएँगे....!"
"नही.. मैं अपने आप नही आ सकती...!" मैने असम्न्झस से कहा...
"तो अपनी गांद मारा भौसदि की.. साली कुतिया.. तुझे गांद मरवाने की तो पड़ी है... मेरी जिंदगी का कोई ख़याल नही तुझे.. रख दे फोन.....!" कह कर ढोलू ने अचानक फोन काट दिया.....
मैने जाकर मानव को सारी बात बता दी......
"ओह्ह्ह..." मानव के माथे पर बल पड़ गये... कुच्छ देर ऐसे ही वो अपने बालों में खुजली करता रहा.. फिर बोला..," मेरे साथ चल सकती हो वहाँ?"
"हां पर... 'वो'लड़के आपके साथ थोड़े ही मुझे उसके पास लेकर जाएँगे...." मैं बोली....
"देखते हैं... तुम जाकर उसको फोन कर दो कि तुम आ रही हो..." उसने कहा ही था कि दो आदमी मोटरसाइकल पर हमारे पास आकर रुक गये..," जैहिन्द जनाब!" उन्होने आते ही कहा...
"ओह्ह.. आ गये तुम.. अब सब ठीक हो जाएगा अंजू... जाकर फोन कर दो... और फोन करके यहीं आ जाना....." मानव ने कहा....
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मैं फोन करके वापस आई तो मानव का रंग रूप देख कर दंग रह गयी.. एक बार को तो मुझे लगा.. उसके जैसी शकल का कोई और है...
"चलो में'शाब! ऑटो तैयार है..." मानव ने टपोरी लहजे में कहा....
मैं हँसे बिना ना रह सकी... मानव ने ग्रीस में काला हो चुका एक कुर्ता पाजामा डाल रखा था.. पाजाम छ्होटा होने की वजह से उसके टखने सॉफ दिख रहे थे... उसके पास ही एक ग़रीब सा लड़का मानव की जीन्स डाले खड़ा बड़ा ही अजीब लग रहा था...
"आप मेरे साथ ऐसे चलोगे...?" मैं अपना चेहरा हाथों में छुपा कर बोली...
"तुम्हारे पास पैसे हैं...?" मानव बोला...
"मेरे पास 50 रुपए ही थे.. मैने शरमाते हुए नोट निकाल कर दिखाया..,"ये हैं..!"
"गुड.. लाओ.. मुझे दो...!" कह कर उसने नोट झटक लिया.....,"आओ..!"
लड़का हमारे साथ ही था... मानव जाकर आगे बैठ गया..," इसके गियर वेर कैसे लगेंगे भाई...?"
लड़के ने हंसते हुए मानव को ऑटो चलाने के कुच्छ टिप्स दिए.. और मानव को नीचे उतरने को कहकर रस्सा खींच कर ऑटो स्टार्ट कर दिया..,"संभाल के ले जाना साहब.. मेरी रोज़ी रोटी यही है..." कह कर लड़का अलग हट गया....
"बैठो में'शाब!" मानव ने एक बार फिर मुस्कुरकर मुझे इज़्ज़त बखसी और मेरे बैठते ही ऑटो इधर उधर बहकाता हुआ चलाने लगा......
क्रमशः.............................
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--31
गतान्क से आगे............
"सर्र.. ववो...!"
"चुप करके बैठो यार.. दिखता नही क्या? ऑटो चला रहा हूँ...!" मानव ने मुझे बोलते ही टोक दिया....,"और ययए.. सर सर.. कहना छ्चोड़ दो... अभी मैं ऑटो वाला हूँ... ठीक है...!"
अभी हम शहर के बीचों बीच ही चल रहे थे..,"नही सर.. वो मैं पूच्छ रही थी कि....."
"फिर सर.. अकल नही है क्या..? मुझे सर वर मत बोलो.. सारा खेल खराब करओगि क्या...?" मानव ने मुझे फिर झिड़क दिया...
"तो क्या बोलूं?" मैने चिड़ कर पूचछा....
"भैईय.. नही नही.. भैया कैसे बोल सकती हो...!" मानव अपने आप ही हँसने लगा... कहा ना.. कुच्छ मत बोलो.. अभी चुप चाप रहो... मुझे ऑटो वाला समझ कर बैठी रहो...."
"पर.. ऑटो वाले तो आप लग ही नही रहे...!" उसके सामने लगे आईने में उसकी शकल निहारती हुई मैं बोली...
"क्यूँ..?" मानव ने झट से ऑटो रोक दिया...,"क्या खराबी है मुझमें...?"
"ना.नही.. वो.. आपके बाल.. आपका चेहरा.. ये सिर पे बाँध लो..!" मैने झेंपटे हुए पिछे सीट पर पड़ा मैला सा तौलिए जितना कपड़ा आगे बढ़ाते हुए कहा....
"हां.. ये बात तो सही है..." मानव ने शीशे में अपनी शकल देख कर कहा और फिर कपड़ा मेरे हाथ से लेकर सिर पर लपेटने लगा..,"दिमाग़ तो बहुत है तुझमें.. बस सही जगह लगाती नही है.... अब बोल क्या कह रही थी....?"
"वो मैं कह रही थी कि.. कहीं वो मुझे ले गये तो?".....
"ऐसे कैसे ले जाएँगे.. मैं किसलिए हूँ साथ.. बस एक बात का ध्यान रखना... मैं तुमसे किराया मांगू तो कह देना कि दे तो दिया था मैने...!"
"ठीक है..." मैं उसकी बात का मतलब समझे बिना ही बोली..,"पर मुझे बहुत डर लग रहा है.. आप..मुझसे दूर मत जाना...!"
"तुम फिकर मत करो.. वो दोनो पोलीस वाले भी हमारे पिछे पिछे ही हैं... एक बात बताओ.. रेवोल्वेर चलानी आती है...?"
"नही.. मैने तो बस एक बार 'ढोलू' के पास रखी देखी थी... "मैने जवाब दिया...
"मतलब चलानी नही आती ना?" उसने फिर पूचछा...
"कह तो रही हूँ.. मैने तो....!"
"फिर ठीक है... लो ये अपने पास रख लो... " उसने कुर्ते के अंदर से एक रेवोल्वेर निकल कर मुझे पकड़ा दी...,"कभी भी ख़तरा लगे तो ये उन्न पर तान देना सीधी....!"
"पर.. पर मैं इसको छिपाउंगी कहाँ.. ये तो बहुत भारी है...!" मैने उत्सुकता से पूचछा......
"ओफफो.. तुम तो पका देती हो.. अब ये भी मैं ही बताऊं क्या?.. लाओ.. वापस दो.. मुझसे दूर मत होना...!" कहकर मानव ने वापस रेवोल्वेर मेरे हाथ से झटक ली.. मैं उसका मुँह देखती रह गयी... उसने फिर से ऑटो चलानी शुरू कर दी...,"वहाँ ये मत दिखाना कि तुम मुझे जानती हो.....!"
"ठीक है.. मैं मुँह चढ़ा कर बोली.....
"काले का ढाबा तो यही है..." मानव ने ऑटो की स्पीड कम करते हुए कहा.. हम शहर से बाहर खेतों में आ गये थे....
हमारी ऑटो रुकते ही ढाबे के दूसरी और से दो लड़के भागते हुए हमारी तरफ आए... आते ही उनमें से एक ने पूचछा..,"तू अंजू है..?"
मैं अचानक सिहर सी गयी... मेरे सारे शरीर में कंपन सी शुरू हो गयी.. सच में ही मैं हद से ज़्यादा डर गयी थी.. मानव के साथ होने पर भी मेरे पसीने से छ्छूटने लगे.. मैने एक बार घबराहट में मानव की ओर देखा और फिर अपनी गर्दन हिला दी....
"आजा नीचे... भाई के पास चलना है ना...?" उसी लड़के ने फिर पूचछा और फिर दूसरे लड़के को देख कर आँख मारते हुए बोला...,"क्या आइटम है यार.... प्रियंका जैसी लगती है.. नही?? हे हे हे..."
मैने डर के मारे सहमे हुए ही आईने में मानव की ओर देखा.. उसने मुझे आँखों ही आँखों में नीचे उतरने का इशारा किया... मैं हड़बड़ाई हुई सी नीचे उतरी ही थी कि एक ने मेरा हाथ पकड़ लिया....,"आजा.. अपना भी नंबर. लग जाए तो... हाए...!"
"किराया तो देती जाओ मेडम!" लड़के ने जैसे ही मेरा हाथ पकड़ा.. मानव बोल पड़ा...
"आ.. इतनी चिकनी लौंडिया से भी कोई किराया लेता है क्या..? बहुत अच्छि बोहनी हो गयी तेरी.. जा अब घर जाकर सीट को सूंघ पूरा दिन.. चल अपना काम कर...!" मेरे कुच्छ बोलने से पहले ही वो लड़का मानव के पास जाकर खड़ा हो गया....
"लेकिन भाई साहब... मेरी रोज़ी का सवाल है.. किराया तो देना ही पड़ेगा इसको....!" मानव ऑटो से नीचे आकर खड़ा हो गया....
तभी दोनो पोलीस वाले भी आकर तमाशबीनो की तरह हमारे पास बाइक रोक कर खड़े हो गये....,"क्या हो गया भाई?"
"दे ना यार इसको.. चलता कर.. क्यूँ बेमतलब का लोचा करवा रहा है..." दूसरे लड़के ने जेब से 10 रुपए निकाल कर मानव की ओर बढ़ा दिए....
"ये क्या भीख दे रहे हो... ? 100 रुपए में बात हुई थी....!" मानव तैश में आकर अपनी बाहें उपर करने लगा....
"100 रुपए.. साले तुझे क्या हम विदेशी लगते हैं... बस स्टॅंड से ही तो लेकर आया है... चूतिया बना रहा है.. 100 रुपए....!" मेरा हाथ थामे जो लड़का खड़ा था.. उसने कहा....
"आबे.. मैं कौनसा फोकट के माँग रहा हूँ.. 100 रुपए में बात हुई थी.. पूच्छ लो मेडम से!" मानव बोला....
तभी दूसरा लड़का मानव के कान के पास जाकर सिर उठाकर धीरे से बोला...," तेरा टाइम अच्च्छा है भोसड़ी के.. लॅफाडा करने का मूड नही है हमारा.. वरना तेरी गांद में गोली ठोक देता अभी... भाग जा वरना...!"
उस लड़के की बात सुनकर दोनो पोलीस वाले एक दम बाइक से नीचे आ गये थे.. पर मानव के हाथ का इशारा पाकर रुक गये...,"क्यूँ लड़ाई कर रहे हो भाई... दे दो ना बेचारे के पैसे.. जो बात हुई थी....!"
"आए.. चलो अपना रास्ता नापो.. यहाँ कोई रामलीला नही हो रही..." लड़का मेरा हाथ छ्चोड़ कर पोलीस वालों से बोला और जेब में हाथ डाल कर मोबाइल निकाल लिया... उसके नंबर. डाइयल करते ही तुरंत उधर से फोन उठा लिया गया.. आवाज़ मुझ तक सॉफ सॉफ आ रही थी.. वो ढोलू ही था...,"आ गयी क्या?"
"आ तो गयी भाई.. उस ऑटो वाले को कुच्छ खुजली है.. 100 रुपए माँग रहा है यहाँ तक के.... साला मान ही नही रहा.... मेरा तो मंन कर रहा है कि...." लड़के ने कहा....
"ना.. वहाँ तमाशा मत करो... ऐसा करो.. तू उसके साथ ही ऑटो मैं लेकर बैठ जा लौंडिया को... यहीं दे देंगे उसको खर्चा पानी... ले आ अपने साथ ही.. बाइक तेजा ले आएगा....!"
"ठीक है भाई.. ये सही है....!" लड़का बोला और उधर से फोन कट गया....
"थोड़ी आगे तक चलना पड़ेगा... 200 दे देंगे... बोल!" लड़के ने मानव को घूरते हुए कहा....
"ठीक है.. पर पूरे 200 ही लूँगा... आओ.. बैठो...!" मानव कहकर ऑटो में बैठ गया... मैं तो मानव से भी पहले ऑटो में आ चुकी थी.. मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था....
उस लड़के के बताए अनुसार रोड पर ही एक जगह मानव ने ऑटो रोक दी... लड़का ऑटो से उतरते ही बोला..," हां! रुपए लेगा ना तू?"
"हाँ.. और पूरे 200 रुपए...!" मानव ने ठोक कर कहा....
लड़का जाने क्या सोच कर हंस पड़ा.. ,"आजा.. मेरे साथ आजा.. तू भी क्या याद रखेगा...साले!" उसने कहा और मेरा हाथ पकड़ने लगा....
"छ्चोड़ दो.. मैं चल रही हूँ अपने आप...!" मैने उसका हाथ झटका और मानव के साथ साथ चलने लगी.....
"आए हाए.. तेरे नखरे..! क्या करती है तू...?" लड़के ने अपने होंटो पर जीभ फेरते हुए कहा..... मैने कोई जवाब नही दिया... तभी हम एक ट्यूबिवेल के साथ बने 2 कमरों वाले मकान के आगे जाकर रुक गये.. वो लड़का अंदर घुस गया था...
"आ ना.. डर क्यूँ रही है...? " लड़के ने मुड़कर कहा..और फिर मानव की तरफ देख कर बोला..,"तू भी आजा चिकने.. अब फट गयी क्या? ले ले 200 रुपए भाई से.. आजा.. पूच्छ.. हा हा हा...."
मानव ने दाई तरफ देखा... वो दोनो पोलीस वाले भी बाइक ऑटो के पास रोक कर तेज़ी से हमारी ओर चले आ रहे थे... मानव झट से अंदर घुस गया.... मैं अभी भी उस'से पीछे थी.....
लड़के के पिछे मानव जैसे ही दरवाजे पर जाकर खड़ा हुआ.. मेरी नज़र सीधी अंदर तीन और लोगों के साथ बैठे ढोलू पर पड़ी... चारों बीच में गिलास रखे ताश (कार्ड्स) खेल रहे थे.. वो खाली कछे में बैठा था और उसकी तोंद सॉफ दिख रही थी....
"ले आया... ढोलू मुझे देखते ही खुश होकर खड़ा हो गया और कछे पर हाथ मारते हुए मानव की ओर देखा...,"ये...?"
"भाई ऑटो वाला! अब 200 माँग रहा है..साला... हे हे हे.."
"तो मैं क्या आरती उतारू अब.. जा दूसरे कमरे में ले जाकर दे दो....जितने माँग रहा है..!" ढोलू ने कहा और फिर नज़रें फाड़ कर कुच्छ देर मानव की ओर घूर्ने के बाद बोला...," ओ तेरी बेहन को चोदु साले... थानेदार को ले आया...!" ढोलू की सिट्टी पिटी गुम हो गयी... उसने कहा और पिच्छले दरवाजे से निकल भागा....
ढोलू की बात सुनकर वहाँ बैठे सभी लोगों के कान खड़े हो गये... वो तो उठ भी ना सके... जैसे ही मैने कहा कि वही ढोलू है... मानव मेरे बारे में भूल कर सीधा पिच्छले दरवाजे से ही निकल कर ढोलू के पिछे दौड़ गया....
मानव को अपनी तरफ आता देखा तो तीनो के होश ही ऊड गये थे.. पर जैसे ही मानव उनके उपर से कूद कर पिछे गया.. उनकी जान में जान आई और 'वो' तीनो उठकर मेरी तरफ भागे... मैं खड़ी खड़ी थर थर काँप रही थी... पर वो मेरी और नही.. अपनी जान बचाने को बाहर की ओर भागे थे.. पर 'वो' बच ना सके.. बाहर निकलते ही उनमें से दो को उन्न पोलीस वालों ने दबोच लिया.. और तीसरा अपनी तरफ रेवोल्वेर का मुँह देख अपने आप ही गिर पड़ा... पर जो लड़का मुझे लेकर आया था.. उसका कहीं पता नही चल पाया......
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करीब 15 मिनिट बाद मानव ढोलू को लेकर वहीं आ पहुँचा... उसने ढोलू की उंगलियाँ अपनी उंगलियों में फँसा रखी थी.... ढोलू का सारा शरीर पसीने से तर हो गया था और वो बुरी तरह हाँफ रहा था.... तभी वहाँ पोलीस की जीप सायरेन बजाते हुए आ पहुँची....
पसीने से तर मानव के चेहरे पर अनोखी चमक थी... मेरे पास आते ही वह हानफते हुए बोला..,"थॅंक यू मेम्शाब!"
मानव को देखकर ही मेरी जान में जान आई.. मुझे नही पता था कि अब क्या होने वाला है...! पोलीस वालों ने तीनो को ज़ीप में डाल लिया...," बैठो जनाब!"
"यार.. वो.. ऑटो भी तो वापस करके आनी है.. तुम चलो हम आते हैं..." मानव ने कहा....
"वो हम भिजवा देंगे जनाब.. आप फिकर ना करो...!" पोलीस वालों में से एक ने कहा.....
"समझा करो यार...! चलो तुम... मैं आता हूँ.. कहकर मानव मुस्कुरा दिया... वो पोलीस वाले भी अजीब ढंग से मुस्कुराए और अपनी ज़ीप मोड़ने लगे... मैं उनकी मुस्कुराहट का मतलब समझ गयी थी.. पर मुझे विश्वास नही था कि मानव मेरे साथ ऐसा करने की सोच भी सकता है... मैने घूर कर मानव की तरफ देखा......
"एक बात पूच्छू..?" मानव ट्यूबिवेल पर अपने हाथ पैर और चेहरा धोने के बाद मेरी तरफ मुड़कर बोला....
"क्या?" मैं अपनी जगह पर ही खड़ी रही.....
"ववो... आओ बैठो ना थोड़ी देर... साले बहा... सॉरी.. आदत हो जाती है पोलीस में... बहुत भगाया कुत्ते के बच्चे ने....!" मानव एक जगह बैठ कर सुसताने लगा... मैं कुच्छ ना बोल सकी... वहीं खड़ी रही....
"बैठो ना यार.. थोड़ी देर बैठ जाओ..." मानव ने खड़ा होकर मेरा हाथ खींचा और अपने पास बैठा लिया...
"कैसा लगता हूँ मैं?" मानव ने पूचछा...
मैं कुच्छ देर तो मुँह से कुच्छ निकल ही ना पाई... पर जब वो मुझे देखता ही रहा तो मेरे मुँह से निकल गया.,"क्या मतलब?"
"मतलब क्या यार.. सिंपल.. कैसा लगता हूँ मैं...?" मानव ने फिर पूचछा....
"पोलीस वाले या ऑटो वाले..?" मैने मुँह पिचका कर कहा.. मुझे उसके अरमानो पर शक पैदा होने लगा था....
"हा हा हा.. तो तुम मज़ाक भी कर लेती हो...." थोड़ी देर मानव हंसता रहा फिर एक दम गंभीर होकर बोला...," मैं तुम्हारे बारे में ग़लत सोच रहा था.. तुम वैसी नही हो जैसी तुम तुम्हारी आँखों में देखने पर लगती हो...!"
"क्क्या मतलब?" मैं सिहर सी गयी थी....
"मतलब कि तुम बहुत बहुत अच्छि हो.. बहूऊत अच्छि..." मानव मुस्कुराया...
सच कहूँ तो ये बात सुनकर मुझे उस वक़्त उतनी खुशी नही हुई जितनी हो सकती थी.. मेरे मंन में अजीब सा डर पैदा हो रहा था.. मानव को लेकर... मैने नज़रें झुका ली.....
"एक बात पूच्छ लूँ.. किसी को कहना नही....!" मानव ने कहा तो मेरा दिल धड़क उठा...,"क्या?" मैने धीरे से नज़रें झुकाए हुए कहा...
"ववो.. तुम ग़लत मत सोचना... ववो.. मीनू मेरे बारे में बात करती है क्या?"
"ऑश..." मेरी जान में जान आई...," हां.. कभी कभी.. मैं उसकी ओर देख कर मुस्कुरा पड़ी....
"क्या बात करती है..?" उसने उत्सुकता से पूचछा....
"उम्म्म.. यही.. केस के बारे में ही.. वो मुझे सब बताती है... कब आपको फोन करके क्या बताया.. और.. आपकी प्लॅनिंग... सब!"
"ये नही यार.. और कुच्छ.. और कुच्छ जैसे.... चलो छ्चोड़ो.. तुम नही समझोगी...!" मानव खड़ा हो गया...,"आओ चलते हैं.... पिंकी भी वेट कर रही होगी....!"
मैं मानव के पिछे पिछे चल पड़ी... मीनू के बारे में उसने क्यूँ पूचछा.. वो तो मैं साफ साफ समझ ही गयी थी... मानव का ये कहना कि तुम बहूत अच्छि हो.. अब मेरे दिल को गहरा सुकून दे रहा था.....
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"लो भाई.. बहुत बहुत धन्यवाद..." मानव ने ऑटो से उतार कर ऑटो वाले से कहा और उसके हाथ में 500 रुपए पकड़ा दिए....
"ये किसलिए साहब?" वो चौंक कर खुश होते हुए बोला....
"रख ले यार.. तुझे ऑटो की सर्विस तो करवानी ही पड़ेगी लगता है..." मानव ने उसकी पीठ थौन्क कर कहा और फिर तपाक से बोला..,"अभी मत बैठ यार.. बाथरूम में चल... ये कपड़े पहन कर थाने गया तो फोटो छप जाएगी अख़बार में..." मानव हंसता हुआ बोला तो ऑटो वाला झेंप सा गया...,"हाँ साहब.. ये तो मैं भूल ही गया था.....!"
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मैं सीधी बस-स्टॅंड के अंदर गयी.. हॅरी एक जगह बैठा था और पिंकी उसके पास खड़ी होकर बाहर की ओर ही देख रही थी... मुझे देखते ही वो भाग कर बाहर आई....
मैं उसके पास आते ही मुस्कुरकर बोली..,"हो गया काम!"
पर पिंकी ने कोई प्रतिक्रिया ना दी.. उसकी सूरत रोने जैसी लग रही थी... मैने एक बार हॅरी की तरफ देखा और फिर उस'से बोली,"क्या हुआ पिंकी?"
"कुच्छ नही.. मुझसे बात मत करो..." पिंकी चिड़ कर बोली....
तभी हॅरी हमारे पास आ गया..,"मैं जाउ अब?"
मैने उसको देख कर अपना सिर हिला दिया..," हाँ जाओ... पर इसको क्या हो गया...?"
"पता नही.. मार्केट से चोवमीन खाकर आए थे.. तब से ऐसे ही बैठी है.. पेट खराब हो गया शायद... गोली लाकर दूँ क्या?" हॅरी ने प्यार से पूचछा...
"नही.. मुझे नही चाहिए कुच्छ....!" पिंकी तुनक कर बोली और अपना मुँह फेर लिया....
"वैसे मुझे भी गाँव ही जाना है.. तुम कहो तो मैं इंतजार कर लेता हूँ..." हॅरी ने उसके तेवरों पर ध्यान नही दिया.....," मीनू को फोन करके देख लो..."
"पर हमारे पास नंबर. तो नही है... हां.. एक मिनिट..." मैं भाग कर बाहर गयी.. वहाँ शायद मानव मेरा ही इंतजार कर रहा था.....,"वो.. मुझे मीनू के पास फोन करना है... उसका नंबर.?" मैने पूचछा....
"वो बस दो मिनिट में आ रही है यहीं.. बात कर्वाउ क्या?" मानव ने पूचछा....
"नही रहने दो फिर तो...." मैने बोला ही था कि मीनू मुझे हमारी ही ओर आती दिख गयी...
"पिंकी कहाँ है..?" उसने आते ही पूचछा......
"यहीं है अंदर... ववो.. हमने ढोलू को पकड़ लिया!" मैने गर्व से बताया....
"हाँ.. ववो.. बता दिया इन्होने...!" मीनू लगातार सिर झुकाए खड़ी थी..," हम जायें अब?"
"हाँ.. तुम चलो... मैं शाम को फोन करके बताता हूँ.. सारी बात...!" मानव ने कहा...
"ठीक है..." मीनू ने कनखियों से एक बार मानव की सूरत देखने की कोशिश भर की और मेरा हाथ पकड़ कर अंदर चल दी... पिंकी अभी भी मुँह फुलाए खड़ी थी... मैने हॅरी की बात उसको बताई....
मीनू कुच्छ देर सोचने के बाद बोली...,"ठीक है.. चलते हैं.. अब क्या काम बचा है...?"
"ठीक है.. मैं पार्किंग से गाड़ी लेकर आता हूँ.. बाहर आ जाओ तब तक..!" हॅरी ने कहा और हमसे दूर चला गया.....
पता नही पिंकी कितनी देर से अपना दुखड़ा छिपाए बैठी थी.. जैसे ही हॅरी हमसे दूर गया.. पिंकी दहाड़े सी मार कर रोने लगी....
"क्या हुआ पिंकी.." मीनू ने अचानक चिंता में डूब कर पिंकी के गालों को सहलाते हुए पूचछा.....
"ववो..."पिंकी रोते रोते हॅरी की ओर मासूम सी सूरत बनाते हुए उंगली करके बोली..," वो मेरे 100 रुपए का चीनुमीनु खा गया...!" पिंकी ने कहा और मोटे मोटे आँसू टपकाने लगी.....
"चाउमीन खा गया?.." एक पल तो मीनू भी सकपका गयी.. फिर थोड़ा खिज कर बोली..,"बस कर अब.. यहाँ तमाशा क्यूँ कर रही है.. तूने दिए ही क्यूँ उसको पैसे?"
आसपास के लोगों को अपनी ओर घूरते देख कर पिंकी सहम गयी और उसने तुरंत अपने आँसू पौंच्छ लिए..,"मैने कहाँ दिए थे उसको पैसे..! वो तो.. वो तो मैने उसको सिर्फ़ यही कहा था कि चलो 'समोसा' खायें...!"
"फिर?" मीनू उसकी शकल देख मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रही थी....
"फिर क्या? कहने लगा मुझे भी भूख लगी है... समोसे में क्या होगा.. ये कहकर वो मुझे बाहर बड़े होटेल में ले गया.... वहाँ जाकर उसने 2 चीनुमीनु और 2 'ठंडे' मंगवा लिए... 'ठंडा' तो मैं कभी पीती भी नही...." कहते ही सुबाकी रोकने की कोशिश में पिंकी की हिचकी निकल गयी... थोडा साँस लेकर वह फिर बोलने लगी..," खाने के बाद अपनी जेब पर हाथ मारकर बोला.."ओह्हो.. पर्स तो गाड़ी में ही रह गया.. " पिंकी ने मुँह बनाकर मटकते हुए उसकी नकल की..,"बेशरम ने मुझसे पैसे माँग लिए...."
मीनू और मैं पिंकी के अंदाज पर खिलखिलाकर हंस पड़े.. पिंकी गुस्से से हमारी और देखने लगी थी तभी मीनू हंसते हुए ही बोली..," तो क्या हो गया... उसका पर्स गाड़ी में रह गया होगा.. दे देगा तेरे पैसे... क्यूँ मातम मना रही है....?"
"नही देगा वो.. मुझे पता है.. उसने अपनी 'गोली' के पैसे काटने के लिए ही किया है ऐसा... देने होते तो अब तक दे ही ना देता... मैं आधे घंटे से उसको याद दिला रही हूँ ये बोल बोल कर की गाड़ी कहाँ है..? मैने उसको गाड़ी में चलने को भी बोला.. पर वो चला ही नही.. ऐसे ही टालता रहा...." पिंकी अब भी गुस्से में थी....
"तो क्या हो गया.. तूने भी तो खाया है ना उसके साथ.. 'चीनुमीनु' हे हे हे.." मीनू हंस कर बोली..,"और ईडियट 'वो' चाउमीन होता है.. चीनुमीनु नही!"
"कुच्छ भी हो.. पर मुझे 'वो' थोड़े ही खाना था... मुझे तो..." तभी हॅरी हमारे पास ही आ पहुँचा...,"तुम आए नही बाहर.. मैं वेट करके आया हूँ..."
"हमें नही जाना अभी.. हम तो शॉपिंग करके आएँगे...!" पिंकी मुँह चिडा कर बोली...
"कोई बात नही.. मैं भी तुम्हारे साथ चल पड़ता हूँ..... अगर दिक्कत ना हो तो.. वैसे बस में ही जाना है तो अलग बात है....!" हॅरी बेचारा सा मुँह बनाकर बोला....
"नही.. तुम भी साथ चलो..!" पिंकी अचानक बोल पड़ी......
"चलो फिर....!" कहकर हॅरी खुश होकर हमारे साथ चल पड़ा.. मीनू उसके साथ थोड़ी असहज महसूस कर रही थी... इसीलिए 'वो' बहुत कम बोल रही थी....
गाड़ी में बैठ कर हम शहर में घुसे ही थे कि पिंकी अचानक चहक सी उठी..,"मुझे चॉकलेट लेनी है....!"
"ओके.. " हॅरी ने तुरंत एक दुकान देखकर गाड़ी साइड में लगाकर खड़ी कर दी...,"मैं लेकर आता हूँ.. कितनी लाउ?"
मीनू बोलने ही वाली थी कि बीच में बैठी पिंकी ने उसका हाथ पकड़ कर दबा दिया...,"कितने की आती है..?"
"ववो.. तो डिपेंड करता है...." हॅरी बोला...
"ठीक है.. 100 रुपए की ले आओ!" बोलते ही पिंकी ने अपनी हँसी रोकने के लिए अपने होंटो को कसकर भींच लिया.. और मेरी और देखने लगी...
"ठीक है..." हॅरी बोलकर जैसे ही पलटा.. पिंकी तालियाँ पीट'ते हुए हँसने लगी..,"अब चखाउन्गि इसको मज़ा!"
"शर्म नही आई तुझे बेशर्म.." मीनू चिड कर बोली....
"मुझे क्यूँ आएगी शर्म.. कंजूसों के साथ ऐसा ही करना चाहिए... अब मैं पूरा बदला लूँगी..... अभी तो मुझे जलेबिया, समोसे और गोलगप्पे भी खाने हैं.... हे हे हे..." पिंकी का चेहरा चमक उठा....
उस दिन पिंकी ने जो कुच्छ हॅरी के साथ किया.. याद करके आज भी पेट में बल पड़ जाते हैं... हॅरी 'और कुच्छ' कहते कहते थक गया था.. पर पिंकी की फरमाइशे ख़तम नही हुई.... गोलगप्पे और समोसा खाने के बाद जब पेट में जगह नही बची तो पिंकी ने 2 किलो देसी घी की जलेबियाँ पॅक करवा ली... अब भी शायद उसका मंन भरा नही था... पर मीनू ने इस बार उसको कसकर डाँट पीला दी..,"घर चल एक बार.. तुझे देखती हूँ में... आज के बाद आना तू मेरे साथ शहर में...!"
इस बार हेरी ने 'और कुच्छ कहा तो पिंकी ने बिना कुच्छ कहे अपना सिर झुका लिया... हॅरी की मुस्कुराहट साफ बता रही थी कि उसको मालूम था पिंकी उसको तंग करने की कोशिश कर रही है.... पर वह पिंकी का भी उस्ताद निकला....
शहर से बाहर जाते ही हॅरी ने 100 का नोट निकाल कर पिछे बढ़ा दिया..,"पिंकी; ये तुम्हारे 100 रुपए...!"
अचानक पिंकी का चेहरा पीला पड़ गया.. उसको शायद लगा कि उसकी शैतानी पकड़ी गयी है.. वह झेंप कर बोली..,"नही.. रख लो!"
"अरे रख लो क्या..? मैं तो भूल ही गया था.. अभी याद आया...! ये लो.. पाकड़ो!" कहकर हॅरी ने नोट पिछे ही छ्चोड़ दिया....
उसके बाद तो गाँव तक पिंकी की आवाज़ तक नही निकली... हम दोनो हंस हंस कर पागल हो रहे थे.. पर शायद हमारी हँसी का राज हॅरी समझ नही पाया होगा...
क्रमशः........................
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10-22-2018, 11:34 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--32
गतान्क से आगे............
"हे भगवान! जाने कौनसी बिजली गिर गयी है...हमारे गाँव पर...बताओ! कोई किसी पर भरोसा करे भी तो कैसे करे? दोस्त ही दोस्त की जान लेने लगेगा तो भरोसा किस पर रहेगा....?" हम घर पहुँचे तो चाची माथे पर हाथ रखे चाचा से बतिया रही थी....
"क्या हुआ मम्मी?" मीनू ने उपर जाते ही पूचछा...चाची की बात हमने सीढ़ियों से ही सुन ली थी...
"हुआ क्या बेटी...? वो मनीषा बता रही थी... बेचारे तरुण को सोनू ने ही मारा था....?" चाची उदासी भरे लहजे में बोली....
"सीसी..सीसी..क्या?" हम तीनो के पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी...," ये क्या कह रही हो मम्मी.... वो क्यूँ खून करेगा....?" मीनू सकपका सी गयी.....
"मैं क्या कह रही हूँ..? ये तो मनीषा बता रही है आज!" चाची ने जवाब दिया....
"पर.. चाची.. उसने पहले क्यूँ नही बताया...? और.. और उसको कैसे पता?" मैं अपने आपको बोलने से रोक ना पाई......
"उसको पहले डर लग रहा था.. डर वाली बात भी ठीक है उसकी.. खंख़्वाह गाँव में दुश्मनी कौन मोल लेगा.... अब जब सोनू रहा ही नही तो उसने बता दिया सब कुच्छ...!"
"और सोनू को..? उसको किसने मारा....?" मीनू पास बैठ कर बोली.. हम दोनो अभी भी खड़ी ही थी......
"अब उसका क्या पता बेचारी को....? उसको तो किसी ने बाहर ही मारा है...! बुरी करनी का फल मिल ही गया ना उसको भी.....!" चाची बुदबुदाई....
"पर मम्मी... मनीषा को कैसे पता चला... खोल के बताओ ना सारी बात....!" मीनू उत्सुकता से बोली.....
"अरे उसने सब सुनी थी उनकी बातें... आवाज़ भी पहचान ली थी दोनो की... सोनू तरुण से कुच्छ माँग रहा था... उसने इनकार कर दिया तो सोनू ने चाकू घोप दिए बेचारे के पेट में.... मनीषा ने चीख भी सुनी थी... और बोलो.. पोलीस हमारे पिछे पड़ी है.. हमारी बेटी पर शक कर रही है......!" चाची मानव को कोसते हुए बोली....
"शक कहाँ कर रहे हैं मम्मी... वो तो बस मदद ले रहे हैं.. थोड़ी सी...!" मीनू खिसिया कर बोली....
"जा अपना काम कर... तुझे ज़्यादा पता है क्या इन पोलीस वालों का... ये ऐसे ही बात करते हैं.. मान में कुच्छ और बाहर कुच्छ.. मदद लेनी होती तो मनीषा से ना लेते.. दोबारा उसके पास गया 'वो' कभी... यहाँ आ जाता है भाग कर.. लोग भी जाने क्या क्या बातें करने लगे होंगे.....!" चाची चिड़ कर बोली....
"पर मम्मी... मनीषा उसके कॉलेज लाइफ के बारे में थोड़े ही बता सकती है... वो तो..." मीनू ने मानव का बचाव करने की कोशिश की....
"अब तो पता लग गया ना...? अब आने दो उस मुए को यहाँ... भला ये भी कोई तरीका हुआ उसका... आता है और हमें भगा देता है... तेरे पापा को तो आज ही पता चला... लड़की से पूचहताच्छ के लिए लेडी पोलीस होनी ज़रूरी होती है.....!" चाची का चेहरा ख़ूँख़ार हो गया.....
"छ्चोड़ो ना मम्मी... मुझ पर भी भरोसा नही है क्या...? वो सिर्फ़ काम की बातें पूछ्ते हैं....... अंजलि भी तो पास रहती है ना.... पूच्छ लो..!" मीनू नाराज़ सी होकर बोली...
"हां चाची.. सिर्फ़ काम की बातें ही करते हैं..." मैने चाची के बिना पूच्छे ही मीनू की हां में हां मिला दी.....
"चलो छ्चोड़ो.... और हाँ... मैने तेरी मम्मी को बता दिया था कि तू और पिंकी मीनू के साथ शहर गये हो... अपने पापा को मत बताना.. तेरी मम्मी मना कर रही थी......" चाची ने कहा तो मैं हड़बड़ा सी गयी...,"हां.. ववो.. चाची..."
"पिंकी.. ज़रा दो कप चाय तो बना दे बेटी.....!" चाचा ने हस्तक्षेप करते हुए कहा....
मीनू किसी को बिना कुच्छ बोले नीचे भाग गयी... मुझे भी तरुण और सोनू के बारे में जान'ने की दिलचस्पी थी.... मैं भी तुरंत उसके पिछे पिछे हो ली....
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"ये मनीषा झूठ तो नही बोल रही दीदी?" मेरे मंन में उथल पुथल सी मची हुई थी.....
"क्यूँ? उसको क्या मिलेगा झूठ बोल कर.... पर फिर सोनू को किसने मारा यार...?" मीनू मेरे बात पर प्रतिक्रिया देने के बाद बोली....,"और.. सोनू क्या माँग रहा होगा उस'से... जिसके बदले उसने खून कर दिया!"
"क्या पता.. आपके लेटर माँग रहा हो...!" मैने आइडिया लगाया...
"पर 'वो तो उसकी जेब में ही मिल गये ना... ऐसा करता तो वो उनको लेकर नही जाता क्या?" मीनू बोली....
"वो... तरुण का फोन...? उसमे भी आपके फोटो थे ना...? और ववो.. स्कूल वाली वीडियो भी..."
"हाँ ...ये हो सकता है...! पर तरुण का फोन तो उसके पास है जो अब हमें फोन कर रहा है....!" मीनू झल्ला कर बोली....
"हो सकता है उसीने फोने छ्चीन कर खून कर दिया हो उसका......" मैं असमन्झस से बोली...,"कुच्छ समझ नही आ रहा दीदी.. सोनू का फोन ढोलू के पास... तरुण का किसी और के पास..."
"अब पता लग जाएगा... मानव ढोलू से सारी बातें उगलवा लेगा.... पता नही क्या होने वाला है .. हे भगवान!" मीनू हाथ जोड़ कर बोली.....
"फोन कर लो ना दीदी.... अभी....!" मैने मीनू से कहा...
"नही.. वो अपने आप ही कर देगा.. उसने शाम को फोन करने को बोला था ना... ऐसे बार बार अच्च्छा नही लगता....!" मीनू शायद मेरे सामने उस'से बात नही करना चाहती थी......
"उसको ये तो बता दो... मनीषा वाली बात!" मैने ज़ोर देकर कहा...
"बता दूँगी थोड़ी देर में....!" मीनू ने एक बार फिर मुझे टालने की कोशिश की....
"बता दो ना दीदी.. अभी...!"
"चल ठीक है.. जीने वाला दरवाजा बंद कर दे....!" मीनू ने कहकर फोन निकाल लिया...
मेरे दरवाजा बंद करके आते ही उसने मानव को फोन लगा दिया....
"हां मीनू!" मानव की प्यार भरी आवाज़ हमारे कानो में गूँजी.. पर वो थोड़ा बिज़ी लग रहा था....
"ववो.. एक बात बतानी थी...!" मीनू ने हिचकते हुए कहा... मुझे लग रहा था कि ये हिचक मेरी वजह से है....
"बोलो ना!" उसने फिर कहा... अब दूसरी तरफ से आ रही आवाज़ें कम सुनाई देने लगी थी....
"वो.. मनीषा कह रही है कि तरुण को सोनू ने मारा था...."
"क्क्याअ?" मानव भी चौंक पड़ा...,"कौन मनीषा....?"
"वो ही जिसने चौपाल में आवाज़ें सुनी थी....!" मीनू ने याद दिलाया....
"ओह्ह हां... पर उसने पहले क्यूँ नही कहा ये सब....!" मानव कुच्छ सोचने के बाद बोला....
"पता नही... वो तो कह रही है कि पहले उसने 'सोनू' के डर से नही बोला कुच्छ... बाकी आप पूच्छ लेना... आपको कुच्छ पता लगा...?" मीनू बोली....
"क्या? किस बारे में...?" मानव ने यूँही शांत लहजे में पूचछा.....
"ढोलू ने कुच्छ बताया नही क्या?" मीनू ने मेरी और देख कर मुँह बनाया...
"ओह्ह.. ना! इसने तो और उलझा दी हैं बातें...!" मानव बोला....
"क्या मतलब?" मेरी भी कुच्छ समझ नही आया था....
"मतलब वही.. धाक के तीन पात.. कुच्छ खास फयडा नही हुआ... इसको ज़्यादा कुच्छ पता नही है....!"
"पर सोनू का फोन भी तो इसीके पास है ना... और तरुण वाले फोन पर भी इसकी बात होती हैं... फिर ये भाग क्यूँ रहा था पोलीस से....?" मीनू ने एक ही साँस में जाने कितनी बातें बोल दी...
"हां.. वो सब तो बता दिया... पर केस तो अब भी वहीं का वहीं है... 'उस' आदमी के बारे में कुच्छ खास पता नही चल पाया...." मानव ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए कहा....
"पर.. क्या पता ये झूठ बोल रहा हो....?" मीनू ने आशंका जताई....
"ना! मुझे नही लगता... पेशेवर अपराधी अदालत में जाकर झूठ बोलते हैं.. पोलीस के सामने नही.. इनको पता होता है कि यहाँ तो सब कुच्छ बताना ही पड़ेगा.. चाहे शुरू में बता दो.... या हड्डियाँ सीधी होने के बाद... बाकी रात को एक घंटी और लूँगा इसकी.. देखो कुच्छ और निकल कर आ जाए तो.... अभी तो मैं गाँव आ रहा हूँ.. मनीषा से मिलने... चाय पीने आ जाउ क्या?" मानव कहने के बाद हँसने लगा....
"कल आ जाना.. मम्मी पापा कहीं जा रहे हैं कल... मम्मी बहुत गुस्सा हैं आपसे.. जिस तरीके से आप आते हो!"
"तो ठीक है.. अब की बार सेहरा बाँध कर आउन्गा.. तब तो गुस्सा नही करेंगी ना....!" मानव ने हाज़िरजवाबी का परिचय दिया.....
मीनू के मुँह से एक बोल भी ना निकला.... पर मेरे मंन में एक सवाल रह रह कर उमड़ रहा था...,"सर.. ववो.. तो क्या आप ढोलू को छ्चोड़ दोगे..?"
"भाई कुच्छ नही मिला तो छ्चोड़ना तो पड़ेगा ही... वैसे अगर तुम्हे निज़ी दुश्मनी निकालनी हो तो 7/11 में अंदर करवा सकता हूँ हफ़्ता भर....!" मानव बोला....
"नही.. पर वो गाँव में आकर मुझसे......."
मेरे पूरी बात बोलने से पहले ही मानव समझ गया...," ये तुमने अब सोचा है... ये तो तुम्हे बहुत पहले सोच लेना चाहिए था....."
मैं एकदम से डर गयी..,"वो तो मुझे छ्चोड़ेगा नही.. अगर वापस आ गया तो.. मैने उसको पकड़वाया है....!" मैं घबराकर बोली....
"कौन कहता है?" मानव अजीब से ढंग से बोला..,"तुमने कैसे पकड़वाया है उसको... ये तो पोलीस का कमाल था...."
"नही.. मुझे सच में बहुत डर लग रहा है..." मैं उसकी बात को नज़र अंदाज करती हुई बोली.....
"अच्च्छा... तुम क्या मुझे आइवेइं ही समझती हो...? मैने ये बात तभी सोच ली थी जब तुमने कहा था कि तुम ढोलू को पकड़वा सकती हो... चिंता मत करो.. मैने सब सेट कर रखा है पहले से ही.." मानव मुस्कुराया....
"कैसे?" मुझे चैन नही आया था....
"ये लो! कह दिया ना कोई दिक्कत नही होगी... ढोलू यही समझता है कि तुम्हे नही पता था कि ऑटोडराइवर एक पोलीस वाला है...."
"प्लीज़ बता दो ना.. ऐसे मुझे चैन नही आएगा.." मैने याचना सी की....
"कल पेपर के बाद पोलीस संदीप को उठा लाई थी.. पूचहताच्छ के बहाने... ! अभी थोड़ी देर पहले छ्चोड़ा है उसको.... ढोलू का फोन सरविलेन्स पर तो लगा ही हुआ था... तुम्हारी और ढोलू की जो बातें रात को हुई थी.. उनमें से कुच्छ मैने संदीप को सुनवा दी.... और उस'से पूचछा कि ये लड़की कौन है! उसके तुम्हारा नाम बताने के बाद मैने उसके सामने ही ऐसे ही किसी को फोन करके तुम्हारा नाम पता देकर तुम पर 'कड़ी' नज़र रखने को कह दिया था... और बस स्टॅंड के बाहर एक 'ऑटो' का प्रबंध करने की बात भी कही थी.... आज मैने उन्न दोनो के सामने भी इस बात को उठाया था.. बाकी बात संदीप ने खुद उसको समझा दी होंगी....
अब ढोलू जिंदगी भर यही समझेगा कि मेरे बिच्छाए जाल में फंसकर तुम 'मेरी' ऑटो में बैठ गयी होगी... इसी को कहते हैं कि हींग लगे ना फिटकरी.. और रंग चोखा.. समझी!" कहकर मानव हँसने लगा तो मैं भी उसके साथ हंस पड़ी...
अचानक मुझे कुच्छ याद आया...,"तो क्या आपने ढोलू के साथ मेरी बात...!" मेरा चेहरा लाल हो गया...
"सुनी हैं.." मानव हंसता रहा...," तुम बहुत शातिर हो!"
क्रमशः.....................
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10-22-2018, 11:35 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--33
गतान्क से आगे............
गतान्क से आगे..................
"फिर आ रहे हो क्या?.. आज ही.." मीनू बीच में ही टपक पड़ी....
"नही.. आज नही.. कल सुबह ही आउन्गा..." मानव ने कहा और फिर गौर देकर पूचछा..," तुम ये बातें किसी और को तो नही बताती ना...?"
"कौनसी?" मीनू ने पूचछा.....
"यही.. केस से रिलेटेड मैं जो तुम्हारे साथ डिसकस कर लेता हूँ!"
"नही.. हम क्यूँ बताएँगे किसी को...?" मीनू ने तपाक से कहा....
"गुड! ठीक है.. कल मिलकर ही कुच्छ सोचते हैं.. आगे के बारे में... बाइ!" मानव ने कहा...
"बाइ!" मीनू ने बड़ी नज़ाकत से कहा और फोन काट दिया....
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"आन्जुउउउउउउ!" अगले दिन करीब 9:00 बजे पिंकी ने हमारे घर आकर नीचे से ही मुझे आवाज़ दी.....
"आई....!" मैं जाने की सोच ही रही थी उस वक़्त... मानव को जो आना था वहाँ....
"कहाँ जा रही है...? घर पर रहा कर... कल भी तेरे पापा गुस्सा कर रहे थे.. तू अब वहीं पड़ी रहती है सारा दिन...." मम्मी ने मुझे नीचे जाते देख कर टोक दिया....
"अभी आ जाउन्गि मम्मी...! बस थोड़ी देर में...." मैने मम्मी की बात को अनसुना कर दिया और नीचे दौड़ गयी....,"हाँ पिंकी!" मैने चलते चलते कहा...
"कुच्छ नही.. मीनू दीदी बुला रही हैं.. वो 'लंबू' आ गया आज फिर.. हे हे हे..!"
"उसको तो आना ही था... और कौन हैं घर पे?" मैने पूचछा....
"कोई नही.. मीनू अकेली है.. तभी तो आपको बुला रही है....!" पिंकी ने जवाब दिया...
मेरे मंन में हज़ारों सवाल थे जो जाकर मानव से पूच्छने थे... ढोलू को भी कुच्छ नही पता तो फिर किसको पता होगा भला! मैं तेज़ी से पिंकी के साथ कदम बढ़ती हुई चलती रही.......
"ववो... अंजू... मैं कह रही थी कि...." पिंकी ने बात अधूरी छ्चोड़ मेरी ओर देखा...
"क्या?... बोल!"
"वो.. हॅरी के पास चलें क्या आज एक बार...!" पिंकी सकुचते हुए बोली....
"तू खुद चली जाना.. मेरा मंन नही है सच में... !" मैने कहा....
"चल पड़ना ना अंजू.. प्लीज़.. मुझे उसके पैसे देकर आने हैं...!" पिंकी याचना सी करती हुई बोली....
"कौँसे पैसे..?" मैं उसकी बात समझ नही पाई थी....
"वही कल वाले... उसने इतना खर्चा कर दिया... मैं तो ना भी जाती.. पर दीदी कह रही हैं कि मैं उसको पैसे वापस करके नही आई तो वो मम्मी को बता देंगी...."
"बताने दे... उसने अपनी मर्ज़ी से ही तो किया है सब कुच्छ..." मैने तर्क दिया...
"नयी... ऐसे अच्च्छा नही लगता ना... क्या सोचेंगी मम्मी..? क्यूँ किया होगा उसने ऐसा... तू समझ रही है ना....." पिंकी अपनी मोटी मोटी आँखों से मुझे देखती हुई बोली....
"हां.. मैं तो सब समझ रही हूँ... मुझे तो चोर की दाढ़ी में तिनका लग रहा है..." मैं हंसते हुए बोली....
"क्या मतलब?" मतलब शायद पिंकी समझ गयी थी... उसका चेहरा ये बता रहा था....
"चल छ्चोड़.. बाद में बात करेंगे...!" पिंकी का घर आ गया था....
हम अंदर पहुँचे तो नीचे मानव अकेला ही बैठा था... बोलना तो दूर.. मैं उस'से नज़रें भी नही मिला पाई.. सीधी उपर भाग गयी.. मीनू चाय लेकर नीचे ही आ रही थी...,"चल ना.. नीचे ही चल....!"
"कुच्छ बताया दीदी...?" मैने उसके साथ ही वापस पलट'ते हुए पूचछा....
"नही.. अभी तो मैं नीचे गयी ही नही हूँ... अब चलकर पूछ्ते हैं...!" मीनू नीचे उतरती हुई बोली...,"तू उपर ही रह ना पिंकी!"
"क्यूँ?" पिंकी ने अपने कंधे उचका दिए...,"मैं भी आउन्गि..."
दोबारा मीनू ने कहा भी नही... हम नीचे आ गये.... पर मैने एक बार भी मानव से नज़रें नही मिलाई... मैं और पिंकी चुपचाप आकर चारपाई पर बैठ गये... मानव को चाय देकर मीनू भी हमारे साथ ही आ बैठी....
"अंकल आंटी कहाँ गये...?" मानव ने पहला सवाल यही किया....
मीनू पहले हमारी और जवाब के लिए देखने लगी.. पर जब हम'में से कोई कुच्छ नही बोला तो उसको ही जवाब देना पड़ा....,"किसी रिस्तेदार के यहाँ गये हैं... कल आएँगे... कुच्छ पता चला....?"
"हां.. वो... उसके बारे में बाद में बात करूँगा..... पहले ये बताओ कि ये मनीषा किस टाइप की लड़की है....?"
"किस टाइप की है...!.. मैं समझी नही...!" मीनू आँखें सिकोड कर बोली... लगभग यही ख्याल उसके सवाल पूछ्ते ही मेरे दिमाग़ में आया था... 'उस' रात मैं मनीषा को अच्छे से जान गयी थी...
"मतलब.. उसकी बात पर कहाँ तक विश्वास किया जा सकता है..?" मानव ने सपस्ट करते हुए पूचछा...
"ठीक है.. किसी से ज़्यादा बात तो वो करती भी नही.. अपने काम से काम रखती है... आक्च्युयली घर सिर्फ़ उसी के भरोसे चल रहा है... ताउ जी तो किसी काम के हैं नही...!" मीनू ने अपनी प्रतिक्रिया दी...,"बुलाउ उसको?"
"हां.. अगर वो यहीं आ जाए तो बहुत अच्च्छा रहेगा.. मैं अभी इस मॅटर को उच्छालना नही चाहता..." मानव ने हामी भरते हुए कहा...
"जा अंजू... बुला ला एक बार!" मीनू मुझसे बोली....
"पिंकी को भेज दो ना दीदी.. प्लीज़..." मैने धीरे से मीनू के कान में कहा... दरअसल मुझे उसके पास जाते हुए डर सा लग रहा था....
"मैं बुला लाती हूँ...!" मीनू के बोलने से पहले ही पिंकी ने खड़े होकर कहा और बाहर निकल गयी....
"ववो.. सच में कुच्छ पता नही चला क्या?" थोड़ा झिझक कर नीरस आँखों से मानव को देखते हुए मीनू ने पूचछा.....
"उस'से जितना और जो कुच्छ में पता कर पाया हूँ.. उसके आधार पर मैने इस डाइयरी में कहानी सी बना ली है.. ताकि छ्होटे से छ्होटा पेंच भी आँखों से बच ना पाए...!" मानव ने अपने साथ रखी डाइयरी हमें दिखाते हुए कहा...,"बाद में पढ़ लेना.. पहले मनीषा की बातें सुन लेते हैं.. वो क्या कह रही है अब? कमाल की लड़की है.. पहले नही बताया तो अब क्यूँ बता रही है ये...?"
"वो कह रही है कि पहले उसको 'सोनू' से डर लग रहा था.. इसीलिए नही बताई... बाकी हमें भी अभी ज़्यादा नही पता.. मम्मी को एक आंटी ने बताया है कि 'वो' अब ऐसा बोल रही है....." मीनू ने कहा...
"हुम्म.. देखते हैं...!" मानव ने कहा और उठकर बाहर चला गया... मैं अब तक भी उसके सामने बोलने की हिम्मत नही कर पा रही थी.....
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"आ गयी..." पिंकी ने अंदर आते ही कहा और फिर पिछे मूड कर बोली..,"अंदर आ जाओ ना दीदी!"
मनीषा कमरे के अंदर आ गयी.. वो कुच्छ सहमी हुई सी लग रही थी...,"कहाँ गये इनस्पेक्टर साहब...?" उसने आते ही पूचछा...
"यहीं तो खड़े थे अभी.. बाहर! हैं नही क्या?" मीनू खड़ी होकर बाहर झाँकते हुए बोली....
"नही.. बाहर तो कोई भी नही है...!" पिंकी ने बाहर जाकर चारों और नज़र घुमाई....
मैने एक नज़र मनीषा पर डाली और फिर नज़रें फेर ली... मैनशा आकर वहीं बैठ गयी जहाँ थोड़ी देर पहले मानव बैठा था...," तुमने बताया है क्या इनको कुच्छ?" मनीषा ने हमारी तरफ देख कर पूचछा....
"क्या? किस बारे में...?" मीनू अंजान बनकर बोली...
"ववो.. तरुण के बारे में.....!" मनीषा ने कहा और मीनू को गौर से देखने लगी....
"नही तो... इन्होने खुद आकर जिकर किया था थोड़ा सा.. तूने किसी को बोला होगा...!" मीनू ने सॉफ झूठ बोला.....
मनीषा चारपाई पर बैठी अपनी उंगलियाँ मतकाती रही.. फिर कुच्छ देर बाद अचानक बोली..,"यहाँ क्यूँ आए है फिर ये?"
"ववो.. क्या है कि इनसे हमारी पहले की जान पहचान है.. इसीलिए आ जाते हैं केयी बार.. पहले भी आए हैं ये...!" मीनू सफाई सी देने लगी....
मनीषा सहमति में सिर हिलाने लगी.. कुच्छ देर चुपचाप बैठी रहने के बाद मुझसे बोली,"आ जाया कर अंजू.. तू आती ही नही कभी... क्या बात है.. नाराज़ है क्या...?"
"ना..नही.. ववो.." मेरा जवाब पूरा होता इस'से पहले ही मानव अंदर आ गये.. उसको देखते ही हड़बड़ा कर मनीषा चारपाई से उठ गयी...
"बैठो बैठो...!" मानव ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उसके साथ वाली चारपाई पर बैठ कर मनीषा के पास रखी डाइयरी उठाकर अपने पास रख ली...,"तुम्हारा नाम भूल गया था मैं...!"
"हां जी..?" मनीषा एक बार फिर अपनी उंगलियाँ मटकाने लगी थी....
"हूंम्म.. मनीषा..! क्या करती हो?" मानव ने पूचछा....
"ज्जई.. ववो कुच्छ नही.. घर का और खेत का काम ही करती हूँ...!" मनीषा ने सकुचते हुए जवाब दिया....
"गुड! एक बात पूच्छू..?" मानव ने आयेज कहा...
"ज्जई..."
"ययए... ये सब तुमने पहले क्यूँ नही बताया...?"
"ज्जई.. क्या?"
"यही की तरुण का खून सोनू ने किया है.. ये तुम्हे पता था...!" मानव ने उसको पैनी निगाह से घूरते हुए पूचछा...
"ज्जई.. ववो.. मुझे डर लग रहा था..."
"अब नही लग रहा...!"
"ज्जई.. ववो.. सोनू तो मर ही गया अब!"
"हुम्म.. मतलब अब किसी का डर नही है...?"
"ज्जई.. डर तो अब भी है.. पर मेरे मुँह से यूँही किसी के आगे निकल गया था...!"
"तुम्हे डरने की कोई ज़रूरत नही है.. मैं तुम्हे गवाह बनाकर अदालतों के चक्कर नही कत्वाउन्गा.. ना ही अपनी तरफ से किसी को ये बात ही बताउन्गा की तुमने मुझे कुच्छ बताया है....मैं सिर्फ़ ये जान'ना चाहता हूँ कि हुआ क्या था!.. कहो तो इनको भी बाहर भेज दूं?"
"ज्जई.. नही.. ठीक है..!"
"तो सच सच बतओगि ना...?" मानव ने पूचछा...
"जी ...बता दूँगा!" मनीषा ने एक गहरी साँस ली.....
"ठीक है.. बताओ फिर.. देखो कुच्छ भी झूठ मत बोलना.. जो कुच्छ पता है.. सब कुच्छ बता दो..!"
"ज्जई...!" मनीषा ने अपना सिर हिलाया.. उसकी नज़रें अब भी ज़मीन में ही गढ़ी हुई थी...
"बताओ फिर!" मानव ने कहा....
मनीषा अपनी नज़रें उठाकर हमारे पिछे वाली दीवार को घूरती हुई बोलने लगी....
" ज्जई.. वो उस दिन मैं अपनी भैंसॉं को चारा डाल रही थी.. तभी मुझे चौपाल में बहस होने की आवाज़ें आनी शुरू हो गयी.. मैं यूँही दीवार के उपर से कान लगाकर कुच्छ सुन'ने की कोशिश करने लगी.. पर कुच्छ सॉफ सुनाई नही दिया.. उत्सुकता वश मैने कंबल औधा और अपने घर से निकल कर चौपाल में घुस गयी.. वहाँ..."
बोलती हुई मनीषा को मानव ने टोक दिया...,"उन्होने तुम्हे देखा नही..?...चौपाल में जाते हुए....?"
"नही.. वहाँ रात को बहुत अंधेरा होता है... कुच्छ दिखाई नही देता... मैं दबे पाँव अंदर गयी थी...." मनीषा बोली...
"तुम्हे डर भी नही लगा.. ? अंधेरे में अंदर जाते हुए?" मानव ने उत्सुकता से पूचछा...
"नही... डर की क्या बात है..!" मनीषा दृढ़ता से बोली....
"फिर भी यार.. तुम लड़की हो! अंधेरे में ऐसे जाते हुए डर तो लगता ही है...."
"ऐसे तो मैं रात रात भर खेतों में रहती हूँ.. मुझे अंधेरे से डर नही लगता...!" मनीषा बोली...
"गुड... फिर क्या हुआ?" मानव गौर से उसको देखता हुआ बोला....
"मैं उनसे थोड़ी ही दूर एक दीवार की आड़ में खड़ी हो गया.. मैने आवाज़ें पहचान ली थी.. वो दोनो सोनू और तरुण ही थे.... सोनू तरुण से कुच्छ माँग रहा था.. और तरुण उसको देने से मना कर रहा था.. बार बार....!"
"क्या माँग रहा था..? तुम्हे तो सब कुच्छ याद होगा...!" मानव ने एक बार फिर उसको टोक दिया....
"हां.. वो कुच्छ पैसों की बात कर रहे थे.. 1 लाख.. 2 लाख.. 5 लाख.. पूरी बात मेरी समझ में नही आई... सोनू ने उस'से उसका मोबाइल भी माँगा था... तरुण कह रहा था कि उसके पास अब कुच्छ नही है... सोनू लेटर'स की बात भी कर रहा था.. अचानक उन्न दोनो में बहस बहुत ज़्यादा बढ़ गयी और दोनो एक दूसरे को गाली देने लगे... लात घूँसे भी चले थे उनमें... अचानक सोनू ने चाकू निकाला और तरुण को चाकू मारने लगा.... तरुण एक दो बार चीखा पर बाद में एक दम शांत हो गया..... कुच्छ देर बाद सोनू वहाँ से भाग गया... " कहकर मनीषा चुप हो गयी.....
"ओह्ह.. तुमने तरुण को बचाने की कोशिश क्यूँ नही की.. तुम उस वक़्त अगर किसी को बता देती तो वह बच भी सकता था...." मानव कुच्छ देर बाद बोला....
मनीषा कुच्छ देर तक यूँही शुन्य को घूरती रही.. अचानक उसकी आँखों में आँसू आ गये...,"मैने सोचा वो मर गया होगा..!"
"और तुम वापस जाकर चुपचाप सो गयी.. है ना?" मानव थोडा उत्तेजित सा लगने लगा... पर मनीषा ने उसकी इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दी....
"चाकू अभी भी तुम्हारे पास ही है या कहीं फैंक दिया..?" मानव की बात सुनकर हम भी उछले बिना ना रह सके... मेरी समझ में नही आया कि उन्होने ऐसा क्यूँ कहा...
"क्क्याअ? मुझे क्या पता चाकू का...? ववो तो सोनू अपने साथ ले गया.. होगा!" मनीषा व्यथित सी होते हुए बोली......
"जस्ट जोकिंग...! वैसे तुमने ठीक से देखा था कि चाकू कैसा था... या कितना लंबा था?" मानव बात को बदलते हुए बोला...
"नही... मैं कैसे देखती.. वहाँ तो बिल्कुल अंधेरा था...!" मनीषा बोली...
"तुमने अभी कहा था ना कि.. सोनू ने चाकू निकाला..." मानव उसको उसकी बात याद दिलाते हुए बोला..,"इसीलिए मैने सोचा की...."
"नही.. वो तो मैने अंदाज़ा लगा कर कह दिया था.. निकाल कर ही मारा होगा.. हाथ में पहले से लेकर क्या करता...." मनीषा ने कहा.....
"तुम्हारे पास मोबाइल है?" मानव ने पूचछा....
"ज्जई... नही!" मनीषा ने जवाब दिया....
"और कुच्छ.. याद हो..? मतलब उस रात से रिलेटेड?" मानव ने पूचछा.... मनीषा ना 'ना' मैं सिर हिला दिया...
"ठीक है.. ज़रूरत पड़ी तो मैं फिर बात कर लूँगा... अभी तुम जाओ...!" मानव कहने के बाद मुस्कुराया....
मनीषा बिना कुच्छ बोले तुरंत वहाँ से उठकर चली गयी.....
"क्या लगता है तुम्हे? ये सच बोल रही है या..." मानव उसके जाते ही बोलने लगा तो मीनू बीच में ही बोल पड़ी...,"झूठ क्यूँ बोलेगी.. इसको क्या पड़ी है.. झूठ बोलने की..."
"अंजू?"
"ज्जई. सर..." मैं अचानक जैसे नींद से जागी... हड़बड़ा कर मानव को देखते ही मैने तुरंत सिर झुका लिया...
"तुम कुच्छ उदास लग रही हो.. क्या बात है?" मानव मुझसे बात कर रहा था.. ,"एक तुम्ही तो खुलकर मेरा साथ दे रही हो यार.. तुम ऐसे करोगी तो कैसे चलेगा...
"ज्जई.. सर.. मैं ठीक हूँ.." बोलते हुए ही मैं सिर झुकाए दाँतों में उंगली दबाकर नाख़ून कुतरने लगी....
"मैं सोनू के घर होकर आता हूँ... तब तक तुम 'ये' डाइयरी पढ़ लो.. इसमें मैने ढोलू के बयान लिख रखे हैं.. 'मैं' का मतलब ढोलू समझना..." मानव ने खड़ा होकर डाइयरी मेरे हाथों में पकडाई और वहाँ से चला गया....
"आओ दीदी, पढ़ते हैं..." मानव के जाते ही मैने झिझक का चोला उतार फैंका...
"तुम्ही पढ़ लो.. मुझे नही पढ़नी..." मीनू अचानक तुनक कर बोली..
मैं उसके मुँह को देखती रह गयी...,"क्या हुआ दीदी?"
"कुच्छ नही..!" मीनू गुस्से में लग रही थी....
"बताओ ना.. क्या हुआ?" मैने मीनू का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा....,"आओ ना पढ़ते हैं...!"
"नही.. तुम्ही तो हो जो उसका साथ दे रही हो खुलकर.. तुम ही पढ़ लो.. मैं क्या करूँगी पढ़कर..." मीनू सुर्ख लहजे में बोली.. पिंकी चुपचाप सारा तमाशा देख रही थी....
"ओह्हो... आप भी ना! ववो.. मैं कुच्छ बोल नही रही थी ना.. इसीलिए कह रहे होंगे... आ जाओ प्लीज़..." मैने प्रार्थना सी की...
"तो मैं क्या उसके सिर पर चढ़ि हुई थी.. मैं भी तो चुपचाप ही बैठी थी.. तुम्हारी बड़ी फिकर हो रही है उसको!" मीनू ने मुँह बनाकर कहा और मेरे हाथ से डाइयरी छ्चीन कर एक तरफ जा बैठी... मैं चुपचाप उसको घूरती रह गयी....
"आ जाओ अब!.. पढ़नी नही क्या?" थोड़ी देर बाद मीनू ने मुझसे कहा.. पिंकी पहले ही उसके पास पहुँच चुकी थी....
मैने मुस्कुरकर मीनू की ओर देखा और उसके पास जाकर बैठ गयी....,"आप बोल बोल कर पढ़ दो!"
मीनू के एक दो पन्ना पलटने के बाद हमें 'वो' मिल गया जिसको हम ढूँढ रहे थे......
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जिस दिन तरुण का खून हुआ.. उस दिन करीब 4:00 बजे मेरे पास माथुर साहब का फोन आया...
"जी माथुर साहब! बड़े दीनो में याद किया मुझे... कहाँ हो आजकल?"
"ढोलू भाई कैसे हो?" माथुर साहब के पहले शब्द यही थे....
"ठीक हूँ.. साहब.. अपनी सूनाओ!" मैने कहा....
"क्या सुनाऊं यार... खंख़्वाह का लोचा हो गया एक... तुम्हारे गाँव के सोनू और तरुण को जानते हो?"
"हूंम्म.. हां जानता हूँ... सोनू तो अपना ही पत्ता है.. हूकम करो!" मैने कहा.....
"यार.. ववो.. दरअसल मेरी एग्ज़ॅम में ड्यूटी लगी हुई है.. तुम्हारे गाँव के पास ही...!"
"तो फिर आओ ना माथुर साहब.. बोलो कैसी खातिरदारी चाहिए....!"
"वो तो होती रहेगी यार.. पहले मेरी बात तो सुन लो...."
"बोलो ना साहब.. आपकी दिक्कत मेरी दिक्कत है.. कुच्छ कर दिया क्या बच्चों ने?" मैने एक बार फिर उनको टोक दिया...
"सुन तो लो यार.. बीच में मत बोलो.. ववो दरअसल तुम्हारे गाँव में एक लड़की है अंजलि.. अभी बोर्ड के एग्ज़ॅम दे रही है.....!"
"हाँ है.. बोलो..."
"पेपर में उस'से नकल मिली थी.. चालू टाइप की लगी मुझे.. मैने पेपर के बाद उसको रोक लिया था.. उसके साथ एक और लड़की थी.. पता नही क्या नाम है... खैर छ्चोड़ो.... मैं उनके साथ थोड़ा टाइम पास कर रहा था तो उन्न बेहन के यारों ने मोबाइल में उसकी वीडियो बना ली....!"
"श.." मेरी हँसी छ्छूट गयी..,"दिक्कत क्या है?" मैने पूचछा....
"अब दिक्कत ये है कि साले मुझे ब्लॅकमेल कर रहे हैं.. एक पेटी माँग रहे हैं मुझसे... समझा यार उनको.. तेरे गाँव के हैं.. नही तो मैं उनको अब तक बता भी देता कि माथुर क्या चीज़ है....!"
"क्या करना है..?" मैने पूचछा...
"करना क्या है यार.. एक तो तू तेरा ही पत्ता बता रहा है.. समझा दे उनको.. वीडियो डेलीट कर देंगे और भूल जाएँगे बात को...!"
"हो जाएगा साहब.. और बोलो.. मैं अभी सोनू को बुला कर समझा देता हूँ...!" मैने कहा..
"ठीक है यार.. मेरी टेन्षन दूर हो जाएगी.. तू अभी कर दे ये काम...!"
"कर देता हूँ.. मेरा खर्चा पानी...?"
"आबे.. इतने छ्होटे से काम के पैसे लेगा? बदल गया है तू.. !"
"क्या करें साहब..? अपने कोई दारू के ठेके तो हैं नही.. इसी में काम ज़्यादा कर लेते हैं... कुच्छ तो करो.. आपकी भी तो 'पेटी' बच रही है आख़िर....!" मैने कहा...
"बता फिर कितने लेगा... आइन्दा में भी याद रखूँगा...!" माथुर ने कहा...
"अरे जो भी खुशी से आप दें..! प्रसाद समझ कर रख लूँगा..." मैने हंसते हुए कहा.....
"चल ठीक है.. 5 ठीक हैं ना...?"
"बड़ी मेहरबानी होगी सरकार.. मैं अभी आपका काम कर देता हूँ..." मैने माथुर साहब का फोन काटा और तुरंत सोनू को फोन लगाया....
"हां भाई?" सोनू ने तुरंत फोन उठा लिया....
"किधर है?" मैने पूचछा....
"यहीं हूँ भाई... कुच्छ काम था क्या?"
"तरुण तेरे साथ ही है क्या?" मैने पूचछा....
"अभी गया है मेरे पास से... कुच्छ काम है क्या?" सोनू ने पूचछा....
" हां काम है तभी तो...! तू ऐसा कर... तरुण को लेकर जल्दी मेरे पास आजा... बहुत ज़रूरी काम है...!"
"तरुण को क्यूँ भाई?" उसने पूचछा....
"तू उसको लेकर आजा.. यहीं बैठ कर बताउन्गा....!" मैने कहा....
"ठीक है भाई.. मैं आता हूँ उसको लेकर...!" सोनू ने कहा और फोन काट दिया......
क्रमशः....................
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10-22-2018, 11:35 AM,
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sexstories
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--34
गतान्क से आगे..................
करीब 7 बजे सोनू अकेला ही मेरे पास आया था..
"तरुण को क्यूँ नही लाया?" मैने सोनू से पूचछा...
"भाई.. ववो.. घर पर मिला नही.. मैं देखने गया था.. पढ़ने गया होगा... बात क्या है?"
"स्कूल में क्या लाफद हुआ था आज.. पेपर के बाद?" मैने पूचछा...
"स्कूल में?.. आपको कैसे पता...?" सोनू हड़बड़ा कर बोला...
"मुझे सब पता है.. अंजू के साथ दूसरी लड़की कौन थी मास्टर के पास...?" मैने पूचछा...
"भाई.. ववो.. पिंकी.. मीनू की बेहन.. पर आपको कैसे पता लगा...?"
"तू छ्चोड़ इन्न बातों को... पूरी बात बता मुझे....!" मैने गुर्रा कर कहा...
"भाई.. ववो.. तरुण के पास किसी का फोन आया था.. की स्कूल के कमरे में एक मास्टर हमारे गाँव की 2 लड़कियों के साथ चुदाइ कर रहा है " सोनू ने बताया...
"किसका?" मैने पूचछा....
"भाई.. ये तो पता नही... फिर हमने स्कूल में जाकर पिछे के रोशन दान से उनकी वीडियो बना ली...!"
"अब क्या करोगे?" मैने पूचछा....
"कककुच्छ नही भाई.. वो तो बस ऐसे ही....!" सोनू ने झूठ बोला....
"अच्च्छा.. चूतिया बना रहा है मेरा.. सीधे तरीके से नही बताएगा तू.. तेरी मा बेहन करनी पड़ेगी.. लाख रुपए नही माँगे तुमने मास्टर से....!"
सोनू ने इस पर अपना सिर झुका लिया...,"हां भाई ववो तरुण ने ही..."
" कोई पंगा नही करना यहाँ.. चुपचाप 'वो' वीडियो ख़तम कर दो.. मास्टर मेरा खास है...!" मैने कहा....
"पर भाई.. तरुण नही मानेगा.. वो तो कह रहा था कि लंबा हाथ मारूँगा.. तीनो चिड़िया जाल में हैं...!"
"मानेगा कैसे नही सस्सला.. तीनो कौन?" मैने उस'से पूचछा....
"वही... मीनू, पिंकी और अंजलि.....!" उसने बताया...
"जाल में हैं मतलब..? और मीनू कैसे आई जाल में..?"
"भाई.. तरुण ने उसके भी नंगे फोटो खींच रखे हैं एक बार.... कह रहा था कि उन्न तीनो को ब्लॅकमेल करके उनके साथ 'ब्लू फिल्म' बनाउन्गा... एक पार्टी है उसके पास.. जो ऐसी ही फिल्में बनाने का धंधा करती है... वो बता रहा था कि सारा काम वो ही करेंगे... उसको बस लड़कियों को उन्न तक लेकर जाना है... 5-10 लाख का काम बता रहा है....." सोनू ने बता दिया....
"अच्च्छा.." मेरी आँखें आस्चर्य से फटी रह गयी.... ऐसी कौनसी पार्टी है यार... तू जानता है उनको...?"
"नही.. मैने पूचछा था.. पर उसने बताया नही... मेरे बस मास्टर वाले पैसों में से आधे हैं...." सोनू ने बताया....
"तू उनका पता कर ना! मैं और भी लड़कियाँ दे दूँगा.. 50-50 कर लेंगे.." मैने कहा...
"कहा ना भाई.. मैने पूचछा था.. वो बताएगा नही.. बाकी आप बात कर लेना....!"
"फोन कर एक बार उसको.. अभी बुला ले.. और फोन लेता आएगा अपना...." मैने कहा तो सोनू ने फोन मिला दिया.. करीब 8:30 - 9:00 का टाइम होगा.... तरुण ने फोन उठा लिया...
"तरुण यार.. ढोलू बुला रहा है तुझे अभी....!" सोनू ने कहा....
"अभी तो बिज़ी हूँ यार... कल मिल लूँगा.. बोल देना...!" तरुण की आवाज़ आई....
"तू अभी आजा यार..बहुत ज़रूरी बात है.... और मोबाइल लेते आना अपना...!" सोनू ने कहा तो तरुण के कान खड़े हो गये..,"क्यूँ?"
"वो यार.. वो उस मास्टर की भाई के साथ उठ बैठ है... वीडियो डेलीट करनी पड़ेगी हमें...!" सोनू ने कहा...
"क्यूँ? साले तूने उसको क्यूँ बता दिया...?" तरुण गुस्से से बोला...
"मैने कुच्छ नही बताया यार... तू आ तो जा एक बार... यहीं बैठ कर बात कर लेंगे...." सोनू ने कहा....
"मैं अभी घर से चलूँगा... तू 15 मिनिट में पुरानी चौपाल के पास आ जा... वहाँ से दोनो साथ चल पड़ेंगे....!" तरुण ने कहा....
मेरे इशारा करने पर सोनू ने फोन काट दिया.... मुझे लालच आ गया था...," यार जब हमें इतने पैसे मिल रहे हैं तो मास्टर से लेने की क्या ज़रूरत है...?"
"वो तो ठीक है भाई.. आप देख लेना जैसे ठीक समझो.. बात कर लेना उस'से.. पर वीडियो डेलीट कर दी तो उन्न दोनो को ब्लॅकमेल कैसे करेंगे...?" सोनू ने कहा....
"नही करेंगे डेलीट.. मैं मास्टर को बोल दूँगा कि कर दी... पर मास्टर से पैसे मत माँगना...!" मैने कहा...
"ठीक है भाई... आप बात कर लेना तरुण से....!" सोनू ने कहा...
"मुझे कितना दोगे....?" मैने पूचछा...
"भाई, अब मैं क्या बताउ...! आप तरुण से कर लेना बात...." सोनू ने कहा...
"मा की चूत तरुण की ... मैं उसका मोबाइल ही छ्चीन लूँगा... जो कोई भी पार्टी होगी.. उसके नंबर. पर फोन तो करेंगी ही.. मैं अपने आप सेट्टिंग कर लूँगा... तू बता...!" मैने उसकी राई पूछि....
"क्या?"
"तू कितने लेगा..? तरुण को हटा बीच में से....!" मैं बोला....
"देख लेना भाई.. 50-50 कर लेंगे..." सोनू ने कहा....
"ठीक है.. तू जा तरुण के पास... उसको यहाँ छ्चोड़ कर घर चला जा.. मैं अपने आप बात कर लूँगा....
"मैं घर नही जाउन्गा भाई... आज रात एक लेफ्डा करना था.. घर पर शादी के बारे में जाने की बात बोल रखी है...." सोनू ने कहा....
"कैसा लेफ्डा...?" मैने पूचछा...
"ववो.. भाई एक गर्ल फ्रेंड है.. उसके घर कोई नही है आज.." सोनू ने हंसते हुए कहा....
"कौन है...?" मैने पूचछा...
"ववो.. पर्सनल है भाई...!" सोनू एक बार फिर हंसा....
"हुम्म... चल ठीक है.. तू उसको ले आ और जाकर ऐश कर..... !" मैने कहा....,"अपना फोन मुझे दे जा तब तक....?"
"फोन! क्यूँ भाई?"
"दे तो साले... टाइम पास कर लूँगा तब तक..." दरअसल में उसके फोन में किस किस के नंबर. हैं.. ये देखना चाह रहा था... और ये भी की उसमें वीडियो है ना नही..... मुझे उस पर भरोसा नही था......
सोनू मेरे पास फोन रख कर चला गया.......
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करीब आधे घंटे बाद सोनू मेरे पास हांफता हुआ आया..,"भाई.. लेफ्डा हो गया... मैं तो गया.... तरुण को किसी ने मार दिया..." सोनू पूरी तरह पसीने से भीगा हुआ था....
उसकी बात सुनकर मेरे भी होश ऊड गये....,"क्या? किसने?" मैं बिस्तेर से उच्छल ही पड़ा था.....
"पता नही भाई... मैं काफ़ी देर उसका इंतजार करने के बाद चौपाल में पेशाब करने गया था... वहाँ मैं उस'से ठोकर लग कर गिर पड़ा.... मैने ये टॉर्च जलाकर देखा तो वो खून से लथपथ वहाँ मरा पड़ा था... मैं तो भाग आया भाई...!" सोनू काँप रहा था....
"फिर तू क्यूँ इतना डरा हुआ है..? किसने मारा होगा उसको...?" मैने पूचछा....
"मुझे चौपाल से बाहर निकलते हुए किसी ने देख लिया... और पहचान भी लिया.. मेरा नाम पुकारा था उसने..." सोनू थरथरते हुए बोला....
"किसने?"
"पता नही भाई.. मेरे तो होश उड़े हुए थे... मैं तो भागते हुए ही यहाँ तक आया हूँ...." सोनू ने कहा......
" तेरी तो गयी भैंस पानी में... मेरे पास नही आना चाहिए था तुझे... ऐसा कर भाग जा कुच्छ दिन के लिए... थोड़े दिन में सब शांत हो जाएगा... पोलीस ने उठा लिया तो तू करने खाने लायक नही रहेगा....!" मैने उसको सलाह दी....
"ठीक है भाई.. मैं जा रहा हूँ अभी....!" सोनू ने कहा और मेरे घर से चला गया.... उसके बाद मुझे उसका कुच्छ पता नही... जब माथुर का फोन दोबारा मेरे पास आया तो मैने उसके घर फोन किया.. उसकी बीवी ने बताया कि वो तो थाने गये हैं... मैं डर गया कि कहीं पोलीस मुझे भी ना लपेट ले... बस! इसीलिए मैं गायब हो गया....
उसके 2 दिन बाद ही एक आदमी के फोन मेरे पास आने शुरू हो गये... 'वो मीनू और दोनो लड़कियों के बारे में जानकारी माँग रहा था... मैने उसको मीनू के घर का नंबर. दिया था.. और कुच्छ नही...! पूरा 'काम' बन जाने पर उसने मुझे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था.... मैं उस'से कभी मिला नही हूँ.... पर उसने अपना नाम 'सोनू' ही बताया था.. पर मैं जानता था कि ये 'वो' सोनू नही है......
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दो बार डाइयरी पढ़ने के बाद भी हमारी समझ में कुच्छ नही आ रहा था....," फोन किसने किया होगा दीदी?"
"कौनसा फोन?" मीनू भी अब तक भय से जकड़ी हुई सी थी....
"वोही.. कि मास्टर स्कूल के कमरे में....." मैं बोली....
"क्या पता...? हो सकता है सोनू झूठ बोल रहा हो.... मुझे तो ये सारी कहानी झूठी लगती है... या तो सोनू ने ढोलू को झूठी कहानी सुनाई है.. या फिर ढोलू ही असली बात छुपा रहा है....!" मीनू बोली... पिंकी आँखें फ़ाडे हम दोनो को देख रही थी....
"और मनीषा?" मैने पूचछा...
"वो क्यूँ झूठ बोलेगी.. उसको क्या पड़ी है.....?" मीनू ने तपाक से बोला....
"कुच्छ भी हो सकता है दीदी... पर 'उस आदमी का कैसे पता लगेगा जो 'सोनू' बनकर आपके पास फोन कर रहा है... तरुण का फोन भी उसके ही पास है... मुझे तो लगता है कि उसने ही तरुण का खून किया है.....!" मैने कहा.....
"उसका तो कल के बाद से फोन भी नही आ रहा.. नही तो एक एक घंटे में 10 10 मिस्ड कॉल्स आती थी.... मेरा तो दिमाग़ चकरा रहा है... अब क्या होगा भगवान...?" मीनू अपने घुटनो पर हाथ रख कर छत की ओर देखने लगी......
सहसा उसकी आँखों में आँसू उमड़ पड़े.. और बरबस ही पिंकी की आँखें भी नम हो गयी.. वा उठी और जाकर मीनू के आँसू पोंच्छने लगी,"कुच्छ नही होगा दीदी.. बस करो अब.. जो होना था हो चुका...!"
"मुझे नही पता था कि मेरी ग़लती से ये सब हो जाएगा.. ना ही मैं 'तरुण' से दोस्ती करती और ना ही ये सब होता... सब कुच्छ मेरी वजह से ही हुआ है.. तुम दोनो को भी मुसीबत में डाल दिया....!" मीनू की आँखें जैसे पिघलने सी लगी थी.. उनसे टपक रहे आँसू अचानक बरसने से लगे थे.....
"बस करो ना दीदी.. प्लीज़.. मुझे भी रोना आ रहा है.. 'वो' लंबू सब ठीक कर देगा.. देखो! उसने अभी तक मम्मी पापा को कुच्छ बताया भी नही.. 'वो' भी अच्च्छा आदमी है...." पिंकी भोलेपन से मीनू की गाल से अपने गाल सताती हुई बोली....
"वो आया नही अभी तक.. कहीं चला ना गया हो!" मैने कहा....
"फोन करके देख लो दीदी!" पिंकी ने आइडिया दिया....
"नही.. आ जाएगा जब आना होगा... गाँव में ही बैठा होगा तो? .. ऐसे फोन करना ठीक नही है...!" मीनू कुच्छ सोचते हुए बोली....
"ववो.. हम हॅरी के पैसे दे आयें दीदी...?" पिंकी ने मौका सा देख कर पूचछा...
"नही.. आज नही.. पिच्चे से वो आ गया तो...?" मीनू बोली...,"पर दे आना ज़रूर.. ऐसे किसी के पैसे रखते नही हैं....!"
"तो शाम को चले जायें?" पिंकी ने फिर पूचछा..,"इसके जाने के बाद!"
"चली जाना अम्मा.. अभी से क्यूँ दिमाग़ चाट रही है....!" मीनू थोड़ा सा झल्लाकर बोली.. और अचानक बदल गये पिंकी के चेहरे के रंग को देख कर हँसने लगी..," अच्च्छा चली जाना.. मानव के जाने के बाद.. ठीक है..?"
पिंकी ने अपना सिर झुकाया और 'हाँ' में हिला दिया.......
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हम पूरा दिन इंतजार करते रहे... दिन ढलते ढलते शाम के 5:00, 6:00, 7:00 भी बजे और फिर रात के 8:00 भी.... पर मानव अब तक वापस नही आया था.. इस बीच में घर होकर भी आ गयी थी.. पर पापा ने कुच्छ खास डाँट नही पिलाई.. दरअसल मुझसे ज़्यादा उन्हे मीनू और पिंकी पर भरोसा था... शायद इसीलिए आज फिर रात को मीनू और पिंकी के साथ सोने की बात पर वो खाली बड़बड़ा कर रह गये... मना नही किया... मैने कह दिया था कि चाचा चाची घर पर नही हैं... इसीलिए वो मुझे बुला रही हैं.....
"मुझे लगता है 'वो' चला गया होगा.... वरना अभी तक तो आ ही जाता....!" मैने कहा...
"नही.. ऐसे कैसे चला जाएगा... उसकी डाइयरी भी तो यहीं रखी है..." मीनू ने दरवाजे से बाहर आहट सी सुनते हुए कहा...,"लगता है आ गया...!" उसने हड़बड़ाहट में खड़ी होकर अपनी चुननी ठीक की.....
पिंकी ने बाहर झाँक कर देखा...,"नही.. कोई और ही गया है.. वो तो बाइक पर आएँगे... आवाज़ नही सुनाई देगी क्या?"
"हाँ...!" मीनू ने सहमति में सिर हिलाया...,"ये बात तो है.. हो सकता है चले भी गये हों... मैं फोन करूँ...?"
"हां करके देख लो दीदी.. फिर हम भी आराम से सोने की तैयारी करें..." मैने कहा...
मीनू ने उनको फोन करने के लिए अपने तकिये के नीचे से फोन निकाला ही था की हमें बाइक की आवाज़ सुनाई दी.. मीनू ने फोन वापस च्छूपा दिया..,"देखना...!"
"हां शायद आ गये...! बिके हमारे ही घर के आगे रुकी है...!" हम सबने बाइक के रुकने की आवाज़ सुनी....
"हे भगवान..!" मीनू ने पता नही ऐसा क्यूँ कहा था.. एक बार फिर वो चारपाई से खड़ी हो गयी और अपनी चुननी ठीक करने लगी... डाइयरी उसने पहले ही अपने हाथ में ले ली थी..... तभी मानव सीधा अंदर आ गया और आते ही चारपाई पर पसार गया....
"क्क्या हुआ?" मीनू ने हड़बड़ा कर पूचछा....
"कैसे लोग हैं यार इस गाँव में... पूरे दिन से किसी ने खाने के लिए नही पूचछा... चाय पीला पीला कर ऐसी तैसी कर दी सालों ने...." मानव बैठता हुआ बोला... वह बहुत थका हुआ लग रहा था....
हम तीनो हक्के बक्के से होकर एक दूसरे की आँखों में देखने लगे थे.. ऐसी भाषा में मानव....
"हम अभी बनाकर लाते हैं...!" मीनू ने सकपका कर कहा और मेरा हाथ पकड़ कर सीढ़ियों की और खींच लिया.... पिंकी भी हमारे पिछे पिछे आ गयी...
"जा पिंकी.. दरवाजा तो बंद करके आ.. कोई देखेगा तो क्या सोचेगा.. इस वक़्त.." मीनू ने पिंकी को वापस नीचे भेज दिया....
"ये पीकर आया है क्या?" मीनू ने मुँह बनाकर मुझसे पूचछा...
"लग तो मुझे भी ऐसा ही रहा है दीदी.. बहकी बहकी सी बातें कर रहा है....!" मैने उसकी बात का समर्थन किया....
तभी पिंकी हँसती हुई लोटपोट सी होती उपर आई...,"दीदी.. लंबू गाने गा रहा है...!"
"क्याअ?" हम दोनो के मुँह से एक साथ निकला...
"हाँ... ये कहीं पीकर तो नही आया है?" पिंकी ने भी आते ही हमारी बात पर मोहर लगा दी....
"मैं बताती हूँ इसको.. यहाँ पीकर आने की हिम्मत कैसे हुई...?" मीनू तुनक कर बोली...
"रहने दो दीदी... पी भी ली होगी तो.. खाना खाकर चले जाएँगे.... हमें क्या?" मैं समझाते हुए बोली....
"दारू पीना कोई अच्छि बात है क्या?" मीनू इस तरह भड़क रही थी जैसे 'मानव' उसका कोई अपना हो.....
"छ्चोड़ो ना.. चलो खाना बनाते हैं....!" पिंकी बोली....
"मैं नहा लेती हूँ एक बार.. सब्ज़ी मैने बना दी थी... तुम रोटियाँ बना लॉगी ना?" मीनू मुझसे बोली...
"हां.. बना लूँगी....!" मैने कहा और पिंकी को लेकर किचन में घुस गयी.....
"बस अंजू.. उसकी और मत बनाना.. मना कर दिया उसने!" पिंकी किचन में आकर प्लेट मेरे साथ वाली स्लॅब पर रखती हुई बोली....
"हमारी तो बना लूँ..?" मैने रोटी बेलते हुए पूचछा...
"रहने दो ना! उसके जाने के बाद गरम गरम खा लेंगे.. बस करो!" पिंकी के कहा... तभी मीनू भी नाहकार किचन में आ गयी...,"गया वो?"
"नही.. अभी तो खाना खा रहे हैं...." जवाब पिंकी ने दिया था... मैने मुड़कर देखा तो मीनू को देखती रह गयी... बड़ी प्यारी और सेक्सी लग रही थी वो.. हल्क नाभि रंग का लोवर उसकी जांघों से बिल्कुल चिपका हुआ था.. उपर उसने शॉल औध रखा था इसीलिए मैं उस वक़्त देख नही पाई थी कि उसने क्या डाल रखा है... पर उसका चेहरा पुर्नमासी के चाँद की तरह ही खिला हुआ था... उसकी मुस्कान सॉफ बता रही थी कि उसके मंन से अनहोनी के डर का साया गायब होकर कुच्छ पल के लिए ही सही पर अब सतरंगी सपनो से सराबोर हो च्छुका है...
"ऐसे क्या देख रही है... पहले कभी देखा नही क्या?" मुझे अपनी और लगातार घूरते पाकर मीनू हड़बड़ा सी गयी...
"नही बस ऐसे ही..." मैं हल्क से मुस्कुरा दी..,"नीचे चलें....!"
"चलो.. वो इंतजार कर रहा होगा.. जाना भी है उसको....!" मीनू ने कहा और हम तीनो लाइन बनाकर नीचे चल पड़े.. सबसे आगे पिंकी थी और सबसे पिछे मीनू.....
मानव दीवार के साथ तकिया लगाकर अढ़लेता सा हो डाइयरी के पन्ने पलट रहा था... हमारे नीचे जाते ही सीधा होकर बैठ गया....,"पढ़ा इसको...?"
मीनू ने जवाब के लिए मेरी और देखा.. आख़िरकार मुझे बोलना ही पड़ा..,"हां.. पर..."
"क्या लगता है?" मानव ने मुझे बीच में ही टोक दिया...
"ववो.. हमें तो लगता है कि ढोलू झूठ बोल रहा है... या फिर सोनू ने उसको झूठ बोला होगा...!" मेरे कुच्छ बोलने से पहले ही मीनू बोल पड़ी....
"बैठो ना यार.. खड़ी क्यूँ हो तुम..?" मानव ने इस तरह कहा मानो 'वो' हमारे घर में नही; हम उसके घर में हों... खैर.. हम तीनो पहले की तरह लाइन में एक चारपाई पर एक दूसरी से सत्कार बैठ गये.....
"हो सकता है मनीषा ही झूठ बोल रही हो...?" मैने बैठते ही कहा....
"हां.. लगा था मुझे भी.. पर झूठ बोलने के लिए कोई वजह होनी चाहिए... अभी इसको छ्चोड़ो.. पहले असली मुद्दे पर बात करो... अब हमें कोई मामले की तह तक पहुँचा सकता है तो वो है ये 'नया सोनू! जो यहाँ फोन कर रहा है..." मानव ने कहा....
"पर कल से तो कोई फोन आ ही नही रहा उसका?" मीनू तुरंत बोली....
"हुम्म.. उसको ढोलू के पकड़े जाने की खबर मिल गयी होगी.. और ये भी की उसको किस तरह पकड़ा गया है... हो सकता है वो इसीलिए गायब हो गया हो... देखते हैं...."
हुमने सहमति में सिर हिलाया....
"अभी मैं उस लड़के के गाँव जाकर आया हूँ.. जिसके नाम पर इस सोनू ने कनेक्षन ले रखा है... वो तुम्हारे ही कॉलेज में पढ़ता है और शहर में किराए पर कमरा लेकर रह रहा है... आज वो गाँव में ही आया हुआ है.. कम से कम 'वो' तो सोनू नही है... और ना ही शायद उसको इस गोरखधंधे के बारे में कुच्छ पता है... उसको ये भी मालूम नही कि उसके नाम पर किसी और ने कनेक्षन ले रखा है.. अभी मैने उसको डिसकनेक्षन की रिक्वेस्ट डालने से मना कर दिया है...पर एक बड़ी मजेदार बात सामने आई है..." मानव बोलकर हमारी ओर देखने लगा....
"क्या?" मैं और मीनू एक साथ बोले....
"उसने प्रिन्सिपल मेडम के घर कमरा ले रखा है... जो उस दिन स्कूल में मुझे मिली थी...."
"तो?" मीनू ने कहा.. बात मेरी भी कुच्छ समझ में नही आई.....
"तो का तो बाद में पता चलेगा... पर जिस तरह से मास्टर ने उसके सामने ही उसके चरित्रा का गुणगान किया था.. मुझे लगता है कि हमें 'वहाँ' कुच्छ मिल सकता है... हो सकता है कि उस मेडम ने ही 'प्रिन्स' की आइडी सोनू को दी हो...!"
"प्रिन्स कौन?" मीनू ने मानव को टोकते हुए कहा....
"वही जो उसके घर में रह रहा है..... हो सकता है तुम भी जानती हो उसको.. वो तो तुम्हे अच्छि तरह जानता है....!" मानव ने जवाब दिया....
"ओह्ह.. वो प्रिन्स.. हां मैं जानती हूँ.. वो तो बहुत ही शरीफ लड़का है...!" मीनू बोली....
"तुम तो तरुण को भी शरीफ मानती थी.. तुम्हारा क्या है?" मानव ने उसका मज़ाक सा उड़ाते हुए कहा... मीनू बग्लें झाँकने लगी....
"खैर छ्चोड़ो... ढोलू के अनुसार सोनू ने उसको ये बताया था कि किसी ने उनको फोन करके स्कूल में बुलाया था... अगर ऐसा हुआ है तो हो सकता है कि मेडम ने ऐसा किया हो.. आजकल मेडम जो नंबर. यूज़ कर रही हैं.. वो दो दिन पहले का ही लिया हुआ है... उनका पुराना नंबर. भी मैने ले लिया है.. घर जाकर तरुण की कॉल डीटेल में 'वो' ढूँढना पड़ेगा...!" मानव हमे एक एक बात खोल कर बता रहा था....
"आप.. मेडम के पास भी गये थे क्या?" मीनू ने पूचछा...
"नही.. और अभी जाउन्गा भी नही... मैं नही चाहता कि मैं असली मुजरिम को बच निकलने का कोई मौका दूँ... अगर मेडम इस ग़मे में शामिल भी हैं तो वो बस एक मोहरा भर होंगी... हमें 'असली मुज़रिम' तक पहुँचना है.. जो इस खेल का ग्रॅंडमास्टर है.... मेडम के दोनो नो. मैने बातों बातों में प्रिन्स से लिए हैं...
"पर मेडम तरुण को फोन कैसे करेंगी.. 'वो तो उनको जानती भी नही..." मैं खुद को बोलने से रोक नही सकी....
"कुच्छ कह नही सकते... तरुण का ये कहना कि उसके पास कोई 'पार्टी' है.. और मेडम का अजीब सा चरित्र... कुच्छ भी हो सकता है... हालाँकि अभी सब कुच्छ अंदाज़ा ही है.. पर अब अंधेरे में ही तीर मारने पड़ेंगे.. क्या करें?" मानव गहरी साँस लेते हुए बोला.....
"तो क्या सच में ही तरुण को सोनू ने मार दिया होगा... पैसे के लालच में...?" मीनू ने कहा....
"हो भी सकता है और नही भी... " मानव ने कंधे उचकाते हुए कहा..," दरअसल हमें तरुण की बॉडी से कोई फिंगरप्रिंट नही मिला.. और ना ही वो चाकू जिसस'से तरुण का मर्डर किया गया... लेटर्स पर भी सिर्फ़ तरुण की ही उंगलियों के निशान हैं.... पर घान्वो की गहराई बता रही है कि काम किसी तगड़े आदमी का है.. सोनू हो सकता है.. पर ज़रूरी नही... मुझे ढोलू लग रहा था पर उस'से भी कुच्छ नही मिला.. बुल्की मामला कुच्छ और उलझ सा गया.... कुल मिलाकर जब तक मामले की जड़ तक नही पहुँच जाते.. कुच्छ भी सॉफ नही होगा... और जड़ मिलेगी इस नये सोनू के हाथ आने से... अभी मैं सिर्फ़ उसी पर फोकस कर रहा हूँ...!" मानव कहकर चुप हो गया.....
"आप.. लेट नही हो रहे...?" मीनू ने थोडा झिझक कर कहा....
"क्यूँ.. किसलिए?" मानव ने इस तरह प्रतिक्रिया दी जैसे मीनू की बात उसकी समझ में आई ही ना हो....
"नही.. ववो.. मेरा मतलब है की.... 9:30 बज गये हैं...." मीनू ने जैसे तैसे अपनी बात पूरी की....
"ओह्ह्ह.. अच्च्छा.. सॉरी.. चला जाता हूँ!" मानव ने इस तरह कहा मानो उसको ज़बरदस्ती निकाला जा रहा हो... खड़ा होकर मुस्कुराया और बोला..,"मेरी डाइयरी..!"
"ये लो...!" मीनू ने डाइयरी तुरंत उसके हाथ में थमा दी....
मानव ने एक बार और मीनू को देखा और बाहर निकल गया....
"बुला लो ना दीदी... बुरा मानकर गये हैं.. हम उपर सो जाएँगे.. मैं नही बताउन्गि मम्मी पापा को..." पिंकी याचना सी करती हुई बोली....
मीनू असमन्झस से मेरी और देखने लगी.. पर कुच्छ बोली नही....
"मुझे नही पता.. मैं वापस बुलाकर लाती हूँ...!" पिंकी ने मीनू की ओर देखकर कहा और जब उसने कुच्छ नही कहा तो बाहर भाग गयी....
मानव भी शायद ऐसी ही कुच्छ कामना कर रहा था... पिंकी के एक बार कहते ही उसने बाइक बिना स्टार्ट किए अंदर बरामदे में लाकर खड़ी कर दी.... और मुस्कुराता हुआ कमरे के अंदर आ गया..,"अगर तुम मुझे वापस नही बुलाती तो मैं इस दिन को हमेशा याद रखता... इतनी रात को घर से निकाल दिया....!"
"नही.. ववो.. मम्मी पापा होते तो..." मीनू ने आगे कुच्छ नही कहा....
"ठंड में बाइक चला कर देखना कभी.. पता चल जाएगा अपने आप....!" मानव ने कहा और वापस उसी चारपाई पर बैठ गया.....
"हम खाना खाकर आ जायें..?" मीनू नज़रें झुकाए हुए ही बोली....
"हां क्यूँ नही...!" मानव मीनू के चेहरे को देख मुस्कुराता हुआ बोला...
क्रमशः....................
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10-22-2018, 11:35 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--35
गतान्क से आगे..................
"अब देख ले इसकी करतूत..." मीनू खाना शुरू करते ही बोली...,"वापस क्यूँ बुला लिया उसको...? देख लेना अगर मम्मी पापा को पता चल गया तो मैं तो सीधा सीधा तेरा नाम ले दूँगी...!" मीनू जल्दी जल्दी खाना खा रही थी....
पिंकी का नीवाला उसके मुँह में जाते जाते रह गया.. वा आँखें निकल कर बोली..,"क्यूँ? ... मेरा नाम क्यूँ लोगि...?"
"और नही तो क्या? अच्च्छा भला जा रहा था.. क्या पड़ी थी तुझे उसको वापस बुलाने की... घर में हम तीन लड़कियाँ और ये अकेला मर्द...! किसी को भी पता चल गया तो क्या सोचेगा?" मीनू टुकूर टुकूर पिंकी की ओर देखते हुए बोली....
"मुझे नही पता.. भेज दो बेशक वापस..मेरा नाम क्यूँ लोगि..?" .. मैने तो...!"पिंकी ने बोलते हुए मेरी ओर देखा और अचानक चुप हो गयी...
"क्या मैने तो..? बोल अब!" मीनू तुनक कर बोली...
"कुच्छ नही...!" पिंकी ने अपना सिर झुका लिया....
"नही नही.. भेज अब तू ही वापस..! तू ही बुला कर लाई थी ना अंदर... अब तू ही बोल दे उसको.. चला जाएगा.. उसको खुद भी तो सोचना चाहिए..! है ना अंजू?" मीनू ने मुझसे पूचछा.. मैं खाली उसको देख कर रह गयी....
"ठीक है बोल देती हूँ...!" पिंकी ने गुस्से से खाली थाली ज़मीन पर पटक कर रखी और खड़ी हो गयी.. बोल देती हूँ अभी जाकर.. कि मीनू कह रही है आप चले जाओ...!" पिंकी ने कहा और बाहर निकलने लगी....
"आ पागल...!" मीनू उसके पिछे दौड़ती हुई बाहर निकली..,"रुक जा.. ऐसे थोड़े ही कहते हैं... अच्च्छा कुच्छ नही कहूँगी... बस! आजा!" मीनू उसको पकड़ कर ज़बरदस्ती अंदर खींच लाई....
"नही.. आप तो ऐसे कह रही हो जैसे... आपके लिए ही तो मैने उसको रोका है...!" तुनकती हुई पिंकी ने मेरे सामने ही मीनू की पोले खोल दी.... मैं आस्चर्य से मीनू के मुँह की ओर देखने लगी.....
"अच्च्छा.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे तूने मुझ पर अहसान कर दिया... मेरे लिए क्यूँ रोका है..? शर्म नही आती तुझे ऐसा बोलते हुए..." मीनू ने सकपका कर पिंकी को छ्चोड़ दिया.. पर पिंकी वहाँ से नही हिली....
"और नही तो क्या? मुझे पता है आप उनसे प्यार करती हो....!" पिंकी का चेहरा मुरझाया हुआ था लेकिन उसकी आँखों में चमक थी....
"मैं है ना तेरी...." मीनू दाँत पीस कर बनावटी गुस्से से बोली...,"क्या बकवास कर रही है तू... बित्ति भर की लड़की है.. ज़ुबान इतनी चला रही है.. तुझे पता चल गया 'प्यार' क्या होता है.. हाँ? आने दे मम्मी को.. कल तेरी खैर नही...." मीनू का चेहरा सफेद हो गया था..... हड़बड़ाहट में उसने एक चांटा पिंकी के गाल पर रसीद कर दिया... पिंकी चुप होकर मुस्कुराती हुई अपने गाल को सहलाने लगी...
"थोड़ी देर नीचे चलें...!" जैसे ही हुमारा खाना पूरा हुआ.. पिंकी ने कहा...
"जाओ जिसको जाना है..!.. बड़ी आई... मुझे नही जाना..." मीनू बड़बड़ाती हुई बोली..,"ये दूध ले जाना उसका.. और रज़ाई माँगे तो निकाल कर दे आना...!" मीनू अपना सा मुँह लेकर बैठ गयी....
"ठीक है.. हम तो जा रहे हैं.. आ जा अंजू.. रहने दे इसको यहीं...!" पिंकी ने उसको चिड़ते हुए सा कहा...
"नही.. मैं क्या करूँगी..? तुम जाकर दे आओ!" मीनू के बिना मुझे भी नीचे जाना अच्च्छा नही लगा....
"आ ना.. सुन तो!" पिंकी ने मुझे लगभग ज़बरदस्ती खींच लिया.. फिर ज़्यादा विरोध मैने भी नही किया था.. एक बार मीनू को देखा और उसके साथ बाहर निकल गयी... पिंकी ने दूध का गिलास भरा और हम दोनो नीचे चले गये.....
हम नीचे उतरे तो मानव चारपाई पर बैठा सीढ़ियों की ओर ही देख रहा था.. उसके हाथ में डाइयरी थी.... पिंकी ने उसको दूध का गिलास पकड़ाया और अलमारी से रज़ाई और कंबल उसके साथ वाली चारपाई पर रख दिए... मानव का ध्यान अब भी सीढ़ियों की ओर ही जमा हुआ था...,"मीनू सो गयी क्या?"
"नही उसने नीचे आने से मना कर दिया...!" पिंकी सीधे सीधे शब्दों में बोली....
"अच्च्छा?" मानव ने मुस्कुरकर कहा और फिर अपने होंटो पर उंगली करके हमें चुप रहने का इशारा किया... बात हमारी समझ में नही आई थी.. पर उसके इशारा करते ही हम दोनो चुप हो गये....
मानव ने चुपके से दूध का गिलास फर्श पर रखा और बिना जूते डाले खड़ा होकर आहट किए बगैर सीढ़ियों की ओर जाने लगा... तब तक भी हमारी समझ में नही आया था कि उसका इरादा क्या है....
जैसे ही मानव ने सीढ़ियों के पास जाकर अंदर झाँका.. हम अवाक रह गये.. हमें मीनू की चीख सी सुनाई दी..,"आआईय....!"
"हा हा हा... यहाँ छुप कर क्या सुन रही हो..! नीचे आ जाओ ना!" मानव हंसते हुए पलट कर अपनी चारपाई पर जा बैठा... शरमाई और सहमी हुई सी मीनू नीचे कमरे में आई और अलमारी में कुच्छ ढूँढने का दिखावा करने लगी...," म्मे तो अपना कुच्छ.. ढूँढने आई थी....!"
मीनू को रंगे हाथों पकड़े जाते हुए देख कर पिंकी जिस तरीके से खिलखिला कर हँसी.. मैं भी अपनी मुस्कान को छिपा कर ना रख सकी....
"क्या है...?" मीनू के गालों पर उड़े हुए रंग के साथ ही हल्की सी शर्म की लाली भी पसरी हुई थी...,"बताऊं क्या तुझे?"
"क्या?" पिंकी ढीठ होकर अब भी हंस रही थी....
"कल बताउन्गि तुझे...?" मीनू बड़बड़ाई और अलमारी से बिना कुच्छ लिए उपर जाने लगी....
"क्या हो गया यार? इतना गुस्सा क्यूँ?" मानव ने भी हंसते हुए ही कहा तो मीनू के कदम वहीं ठिठक गये... पर वो कुच्छ बोल नही पाई....
"बता दूँ दीदी?" पिंकी के चेहरे पर अब भी अजीब सी शैतानी झलक रही थी.. शायद उसको पता था कि मानव के आगे मीनू उसको कुच्छ नही कहेगी... या फिर उसको पता था कि मीनू का गुस्सा हाथी के दाँत हैं.... सिर्फ़ दिखाने के लिए...
मीनू ने पलट कर पिंकी को उंगली दिखाई...,"बहुत बोल रही है तू.. तुझे तो मैं....!"
"अब बता भी दो..! ऐसा क्या हो गया 15 मिनिट में ही....!"
"2 बातें हैं..." पिंकी मीनू की चेतावनी को अनसुना करते हुए मुस्कुराइ....
"अच्च्छा...! वो क्या?" मानव भी मीनू को परेशान करने के लिए पिंकी की तरफ हो गया...
"दीदी इसीलिए गुस्सा हैं क्यूंकी मैने आपको वापस...." पिंकी की इतनी बात सुनते ही मीनू क्रोधित होकर उसको मारने को दौड़ी... पर पिंकी के पास तो जैसे आज अचूक तरीका था.. बचने का... वो हंसते हुए ही भाग कर मानव के पास जाकर खड़ी हो गयी... और वहाँ तो जैसे मीनू के लिए लक्षमण रेखा खींची हुई थी.. मानव से कुच्छ दूरी पर ही उसके कदम ठिठक गये... मानव को अपनी तरफ देखता पाकर मीनू शर्म से झंझनती हुई वापस पलट गयी और मेरे पास आकर बैठ गयी..,"तुझे तो मैं...!" मीनू सचमुच गुस्सा हो गयी थी..,"झूठ बोल रही है ये.. मैने ऐसा नही बोला था...!" मीनू सफाई देने लगी.....
"क्या? मेरी तो बात ही समझ में नही आई... ठीक से बताओ ना!" मानव पिंकी की तरफ देख कर बोला....
"रहने दो... अब ये मना कर रही है तो.. फिर दूसरी बात होगी....!" पिंकी ने चटखारे लेकर कहा....
"तो वो ही बता दो....?" मानव ने बोलते हुए पिंकी का हाथ पकड़ना चाहा.. पर वो सकुचा कर पिछे हट गयी...
"ववो.. वो आप इसी से पूच्छ लेना.. मैं नही बता सकती....!" पिंकी शरारती लहजे से बोली....
"तुम ही बता दो यार...!" मानव मीनू की ओर देखता हुआ बोला....,"कुच्छ नही है.. बकवास कर रही है ये.. कल मम्मी को बताउन्गि तो एकदम सीधी हो जाएगी.. आपके सामने ही इसको ज़्यादा बातें आ रही हैं..." मीनू पिंकी को देख गुर्रकार बोली....
मानव ने एक गहरी साँस ली और मीनू की ओर देखता रहा.. पर मीनू उस'से नज़रें नही मिला पा रही थी.. रह रह कर अपनी पलकें उठाती और वापस झुका लेती.. ऐसा लग रहा था जैसे दोनो एक दूसरे को आँखों ही आँखों में कुच्छ कहना चाहते हैं... पर शायद हम 'काँटे' बने हुए थे....
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शायद पिंकी भी वैसा ही सोच रही थी जैसा मैं..,"सॉरी दीदी.. अब कुच्छ नही बोलूँगी...!" कहते हुए वह धीरे धीरे उसके पास आकर खड़ी हो गयी.. मीनू ने कोई जवाब नही दिया....
"मैं अभी वापस आई..." पिंकी ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर बोली...,"आना अंजू एक बार...!"
"क्या?" मैने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश नही की.....
"आ तो एक बार... आप बैठो दीदी.. हम अभी आते हैं...!" पिंकी ने एक बार फिर से कहा तो मैं खड़ी होकर उसके साथ चल दी...
"म्म्माइन भी आ रही हूँ...!" मीनू हड़बड़ा कर हमारे साथ ही खड़ी हो गयी...
"ववो.. मीनू.. मुझे तुमसे बात करनी थी.. बैथोगि थोड़ी देर....!" मानव की ये बात तो हमें सुनाई दे गयी थी.. पर मीनू ने क्या जवाब दिया.. ये मुझे नही पता... हम उपर चढ़ चुके थे.... मीनू नही आई......
पिंकी जाते ही बिस्तेर पर रज़ाई लेकर लेट गयी... मैने खड़े खड़े ही उस'से पूचछा..," तू कुच्छ करने आई थी ना उपर?"
"नही.. ऐसे ही नींद आ रही है...!" पिंकी ने कहा और रज़ाई में चेहरा ढक लिया...
"पर तूने तो ये कहा था कि अभी आए.. मीनू वेट कर रही होगी हमारा...!" मैने भी अपनी रज़ाई लेकर बैठते हुए कहा.....
"वो तो मैने ऐसे ही कह दिया था... हमने एक मिनिट भी बेचारों को अकेले बात करने नही दी..." कहकर पिंकी हँसने लगी....
"आए.. एक बात बता.. मीनू क्या सच में मानव से प्यार करती है...?" मैने उत्सुकता से पूचछा....
"और नही तो क्या? ऐसे ही उसकी बातें कर कर के मेरे कान खाती है क्या? तुम्हे नही लगता?" पिंकी ने उल्टा मुझसे ही सवाल किया....
"ऐसी क्या बात करती है वो..?" मैने उसके चेहरे से रज़ाई हटा दी....
"अब क्या बताउ.. सारा दिन मानव ये.. मानव वो.. मानव इतना अच्च्छा है.. मानव उतना अच्च्छा है... सारा दिन.. मैं क्या समझती नही हून कुच्छ.. वो गुस्सा भी तुम्हे दिखाने के लिए ही कर रही थी.. मुझे सब पता है.. उसको बहुत अच्च्छा लगा होगा जब मैने कहा कि वो मानव से प्यार करती है...!" पिंकी मुस्कुराइ....
"ऐसे तो तू भी सारा दिन हॅरी ये.. हॅरी वो.. करती रहती है.. तो क्या तू भी...?" मैने जान बूझ कर उसको च्छेदा....
"चुप हो जा अब.. सो जा..." पिंकी मेरी बात सुनकर शर्मा गयी.. उसने तकिया अपने सिर के नीचे से निकाल कर अपने सीने से चिपकाया और करवट लेकर मुँह ढक लिया......
मैने जानबूझ कर पिंकी को ज़्यादा तंग नही किया... इधर उधर घूम कर मेरा दिमाग़ मानव और मीनू की जोड़ी पर आकर टिक गया... सच में बहुत ही प्यारे लगते थे दोनो एक साथ.. मानव का 'ये' पूच्छना कि मीनू मेरे बारे में क्या बातें करती है.. अब मेरी समझ में आ रहा था.. उस वक़्त तो मैं यही सोच बैठी थी कि 'वो' मुझ पर ही लाइन मार रहा है....
अचानक मुझे ख़याल आया.. मीनू आधे घंटे से नीचे ही बैठी है... 'कहीं मानव और मीनू....' सोच कर ही मेरे बदन में चिरपरिचित झुरजुरी सी दौड़ गयी.. 'मानव तो कुच्छ नशे में भी लग रहा था.. कहीं शुरू तो नही हो गया....?' मेरे मॅन में कौंधा....
वो कहते हैं ना... कि चोर चोरी से जाए हेराफेरी से ना जाए... कामवासना की लपटों में खुद को झुलसा लेने के बाद भी मेरे मंन में अजीब सा कोतुहल मच रहा था... 'च्छूप कर मानव और मीनू की बातें सुन'ने का...
आख़िर पता तो करूँ.. चक्कर क्या है.. मैं मंन ही मंन सोच ही रही थी की पिंकी उठ बैठी.. ये सोचकर कि कहीं पिंकी मुझे जागी देख कर बातें ना करने लग जाए.. मैने तुरंत आँखें बंद कर ली....
वो चुपचाप चारपाई से उठी और बाहर निकल गयी....
ये सोचकर कि वो पेशाब करने बाथरूम में गयी होगी.. मैं अपनी आँखें बंद किए पड़ी रही और उसके वापस आकर सो जाने का इंतज़ार करने लगी... पर हद तो तब हो गयी जब उसको गये हुए भी 10 मिनिट से उपर हो गये.....
"आख़िर माजरा क्या है?" मैने सोचा और जो कुच्छ मेरे मंन में आया.. मेरा माथा ठनक गया.... "कहीं पिंकी मुझे जानबूझ कर उपर लेकर तो नही आई थी...?" मंन में आते ही में झट से उठी और बाहर बाथरूम के पास जाकर देखा.. पर बाथरूम तो बाहर से बंद था....
"हे भगवान! दोनो बहने एक साथ....!" उस वक़्त यही बात मेरे मंन में आई थी.. मैने नीचे जाने का फ़ैसला कर लिया......
मैने वापस अंदर आकर अपनी शॉल ली और उसमें खुद को लपेट कर जैसे ही आहिस्ता से सीढ़ियों में कदम रखा... मेरी हँसी छ्छूटने को हो गयी...
पिंकी नीचे वाले दरवाजे की झिर्री में अपनी आँख लगाए कमरे में हो रही गतिविधियों को देखने की कोशिश कर रही थी... मैने उपर से ही हल्की सी आवाज़ की..,"श्ह्ह्ह्ह्ह!"
पिंकी बौखलाकर उच्छल सी पड़ी... मुझे देखा और शरमाई हुई सी धीरे धीरे चलकर उपर आ गयी.....
"क्या देख रही थी..." मैने धीरे धीरे हंसते हुए पूचछा....
"कककुच्छ नही.. ववो.. मीनू को मत बताना प्लीज़.. बहुत मारेगी मुझे!" पिंकी सकुचती हुई बोली....
"नही यार.. मैं नही बोलूँगी कुच्छ... पर मीनू अब तक उपर क्यूँ नही आई.. क्या कर रहे हैं दोनो..?" मैने होंटो पर शरारत भरी मुस्कान लाते हुए पूचछा....
"कुच्छ नही.. दोनो वहीं बैठे हैं जहाँ पहले बैठे थे..." पिंकी ने बत्तीसी निकाली...,"पर दरवाजा बंद कर रखा है..." पिंकी ने बताया....
"क्यूँ? दरवाजा क्यूँ बंद है फिर....? " मैने आँखें सिकोड कर पूचछा...
"वही तो मैं देखने गयी थी... ईडियट हैं दोनो!" पिंकी हँसने लगी.....
"चल कर एक बार फिर देखें...?" मैने पूचछा....
पिंकी खुश हो गयी...,"हां, चलो! मानव दीदी को पटाने की कोशिश कर रहा है... पर दीदी मान नही रही... भाव खा रही हैं.. हे हे हे...!" पिंकी ने हंसते हुए कहा और हम दोनो दबे पाँव नीचे चल पड़े....
नीचे जाते ही हम दोनो ने आगे पिछे खड़ी होकर दरवाजे की झिर्री से आँख लगा ली.... पिंकी अपने उपर से मुझे देखने देने के लिए थोडा झुकी हुई थी.. इस कारण मेरी एक जाँघ उसके नितंबों की दरार में धँसी हुई थी..... मैने एक हाथ दरवाजे के साथ दीवार पर रखा और दूसरा हाथ उसके कूल्हे पर रख कर अंदर का दृश्या देखने लगी......
"सच मीनू... तुम्हारी कसम यार!" ये पहली आवाज़ थी जो हुमने अपने आँख और कान दरवाजे पर लगाने के बाद मानव के मुँह से सुनी थी.. वा अभी भी मीनू से प्रायपत दूरी बनाए अपनी चारपाई पर बैठा अपनी उंगलियाँ मटका रहा था...," कुच्छ तो बोलो... प्लीज़...!"
मीनू अभी भी उसी चारपाई पर थी जिस पर आधे पौने घंटे पहले हम तीनो बैठे थे.... वा चुप चाप नज़रें झुकाए खिसियाई हुई सी अपने बायें हाथ से दाई बाजू को उपर नीचे खुजा रही थी... वो कुच्छ नही बोली....
"प्लीज़ यार.. कुच्छ बोल दो.. मेरा दिल बैठा जा रहा है... मैने तुमसे अपने दिल की बात कहने के लिए ही थोड़ी सी पी ली थी आज....!" मानव ने याचना सी की....
आख़िरकार हड़बड़ाई हुई सी मीनू के लब बोलने के लिए हीले...,"दरवाजा खोल दो प्लीज़.. मुझे डर लग रहा है...." कहते हुए उसने एक बार भी नज़रें उपर नही की....
"यार.. अगर जाना ही है तो दरवाजा खोल कर चली जाओ.. मैने कोई ताला थोड़े ही लगाया है.. कुण्डी ही तो लगा रखी है.. मैं कुच्छ नही बोलूँगा... पर अभी यहाँ से चला जाउन्गा.. तुम्हारी कसम.....!" मानव हताश सा होकर बोला....
"म्मैइन.. मैं जा थोड़े ही रही हूँ... पर दरवाजा खोल दो प्लीज़... अच्च्छा थोड़े ही लगता है ऐसे..." मीनू ने एक बार अपनी पलकें उपर की और मानव को देखते ही तुरंत झुका ली.... मैं मानव की जगह होती तो मीनू के कान के नीचे बजा कर बोलती.. ,"तुम खुद भी तो उठकर खोल सकती हो... जब खोलना ही नही चाहती तो ड्रामा करने की क्या ज़रूरत है.. आ जाओ ना बाहों में..." हे हे हे.... पर मानव था ही इस मामले में अनाड़ी.. ये तो मैने ट्यूबिवेल पर ही जान लिया था...
पर मानव ने कोई दूसरी ही डोर पकड़ रखी थी...,"सिर्फ़ एक बार बोल दो.. मुझसे प्यार करती हो या नही.... फिर में कुच्छ नही पूच्हूंगा...!" सुनते ही हम दोनो के कान खड़े हो गये.. हम दोनो एक दूसरी की आँखों में देख कर मुस्कुराए.. और फिर से दरवाजे की झिर्री ढूँढने लगे.....
मीनू इस बार भी चुप ही रही...
"बोल दो ना यार... मेरी जान लोगि क्या अब..? कुच्छ तो बोलो..." मानव बेकरार हो उठा था.....
पता नही मीनू ने अपने होन्ट हिला कर क्या कहा.. मानव को भी नही सुना.. हमें कैसे सुनता..,"क्या? क्या बोल रही हो...?" मानव उठकर उसके पास आ बैठा.. मीनू तुरंत च्छुईमुई की तरह मुरझा कर एक तरफ खिसक ली...
"बोलो ना प्लीज़.. क्या बोला था अभी...?" मानव ने मीनू का हाथ पकड़ लिया... मीनू के चेहरे का रंग देखते ही बन रहा था तब... कसमसकर उसने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश की.. पर असफल रही.. आख़िरकार अपना हाथ ढीला छ्चोड़ कर वा अचानक तरारे से बोली...,"तुम्हारा साथ तो सिर्फ़ अंजू दे रही है ना...! उसी को बोल दो ये सब भी अब... "
"क्या? उसने ऐसा बोला...!" मानव अचरज से भरकर बोला...
"उसने क्यूँ बोला..? तुम्ही तो आज दिल खोल कर तारीफ़ कर रहे थे उसकी.. जो साथ दे रही है.. उसी को बोलो ना..!" मीनू की लज्जा चिड़चिड़ेपन में बदल गयी....
"ओफ्फो.. वो बात..." मानव ने अपने माथे पर हाथ मारा...,"तुम भी ना... अच्च्छा तुम्ही बताओ.. अंजू जो कुच्छ तुम्हारे लिए कर रही है.. कोई दूसरी लड़की कर देती क्या?"
"वो तो ठीक है.. पर..." मीनू का मुँह अभी भी चढ़ा हुआ था... बोलते बोलते वो चुप हो गयी...
"पर क्या? बोलो..." मानव अचानक चारपाई से उठा और फिल्मी स्टाइल में मीनू के सामने ज़मीन पर एक घुटना टेक कर बैठ गया... शुक्रा रहा पिंकी की हँसी उसके होंटो से बाहर नही आई....
मीनू ने हड़बड़कर हटने की कोशिश की पर मानव ने अपने दोनो हाथ उसके घुटनो की बगल में चारपाई पर जमा दिए.. वह वहीं बैठी रहने पर मजबूर हो गयी.. उसने अपना चेहरा और भी झुका लिया.. ताकि मानव के नयन वानो से बच सके....
"इस बार तो जवाब में मीनू का रही सही आवाज़ भी नही निकली... होंटो को बस हिलाते हुए उसने अपना शर्म से लाल हो चुका चेहरा 'ना' में हिला दिया......
"एक बार इधर तो देखो, मीनू?" मानव उसकी आँखों में देखने की कोशिश करता हुआ बोला...
मीनू ने उसके 'प्यार' को इज़्ज़त बखसी और पल भर के लिए उस'से नज़रें चार कर ली... अनाड़ी से अनाड़ी भी उन्न आँखों की भाषा पढ़ सकता था... मानव पता नही किस बात का इंतज़ार कर रहा था.. बावलीपूछ! मेरे बदन में झुरजुरी सी उठी और एक पल के लिए पिछे हटकर अंगड़ाई सी ली.. जैसे ही मैने वापस झिर्री से आँख सटाई.. मुझे पिंकी की मनोस्थिति का भी अंदाज़ा हो गया... उसने थोडा पिछे हटकर वापस मेरी जाँघ के बीचों बीच अपने नितंब सटा दिए....
"तुम्हारी कसम मीनू... मैने तुमसे पहले 'प्यार' को कभी नही जाना... उस दिन जब तुम्हे पहली बार देखा था.. तब से ही तुम्हारा चेहरा मेरे दिल में बस गया था... वरना मैं कभी 'कातिल' को पकड़ने के लिए इतना लंबा रास्ता नही अपनाता.... सिर्फ़ तुम्हारे लिए.. तुम्हारी कसम...!
मम्मी अब घर में जल्द से जल्द अपनी 'बहू' देखना चाहती हैं... मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि उनके मंन में अपनी बहू की जो भी छवि होगी; तुमसे बेहतर नही हो सकती... मेरे बस उनको बताने भर की देर है.. वो दौड़े चले आएँगे यहाँ...!"
मानव के कहते कहते सुनहरे सपनो की सजीली डोर से बँधे मीनू के हाथ अपने आप ही रैंग रैंग कर मानव के हाथों पर जाकर टिक गये... पर नज़रें मिलाने का साहस वह अब भी नही कर पा रही थी.... उसकी गर्दन एक दम लंबवत झुकी हुई थी.. होन्ट खुले हुए थे.. शायद कुच्छ बोलना चाहते होंगे.. पर बोल नही पा रहे थे.....
मानव ने एक बार फिर बोलना शुरू किया...,"पर जब तक तुम हाँ नही कह देती.. मैं उनको यहाँ कैसे भेज सकता हूँ... कुच्छ बोलो ना प्लीज़.. कुच्छ तो बोलो... मेरे लिए पल पल काटना मुश्किल हो रहा है... मैं तुम्हे पाने को बेकरार हूँ.. अपने पहलू में... हमेशा हमेशा के लिए...... तुम्हे बाहों में लेकर उड़ना चाहता हूं... प्लीज़.. कुच्छ बोलो...."
हम दोनो साँस रोके मीनू की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे... जब हमारा ही ये हाल था तो..मीनू का दिल तो बाग बाग हो गया होगा... अपने लिए प्रेम भरे शब्दों का अमृत कलश पीकर....
मीनू ने बिना कुच्छ बोले एक लंबी साँस ली... काश मानव उस गरम साँस के साथ चिपक कर बाहर निकले प्रेमाणुओं को ही पहचान लेता... किसी 'अया' जैसी मदभरी गहरी 'वो' साँस' उसकी बेकरारी और स्वीकृति का परिचायक ही तो थी.... उसके थिरक उठे अनबोल, अनमोल लबों पर 'प्यार' का संगीत ही तो बाज रहा था उस वक़्त.... उसकी छातियो में अचानक उभर कर दिखने लगा कसाव 'प्रण पीड़ा' का ढिंढोरा ही तो पीट रहा था.... और मानव के हाथों पर कंपन सहित लहरा उठी मीनू की हथेलिया क्या 'ना' बोल रही थी?
पर मानव ये सब समझ जाता तो उसको हम 'घोनचू' क्यूँ कहते भला... पर बंदा हिमम्मत गजब की दिखा रहा था... अपने हाथों पर रखे मीनू के हाथों की उंगलियों को मानव ने अचानक अपनी उंगलियों में फँसा लिया...," बोलो ना मीनू!"
इस बार मीनू के होंतों से निकली 'आह' सीधी उसके 'कलेजे' से निकल कर आई लगती थी... पर फिर भी वो उसको शब्द नही दे पाई,"म्म..मुझे नही पता...!" कहकर मीनू ने अपने हाथ च्छुड़वा लिए... और 'बेसहारा' हो गये मानव के हाथ 'धुमम' से मीनू की गदराई जांघों पर आ गिरे... गिरे ही क्या.. वो तो वहीं चिपक कर रहे गये जैसे... आअस्चर्य की बात तो ये थी की मीनू ने भी उनको वहाँ से हटाने का दुस्साहस नही किया....
"तुम्हे मेरी कसम.. जो दिल में है बोल दो... अब भी अगर तुमने नही बोला तो मैं अभी चला जाउन्गा...!" मानव ने अलटिमेटम सा दे दिया....
आईला... कसम दी थी या कोई कामदेव प्रदत्त प्रेमस्त्रा ही छ्चोड़ दिया 'घोनचू' ने... मानव की धमकी अभी पूरी भी नही हुई थी कि जाने कब से शरमाई, सकूचाई बैठी मीनू एक दम से चारपाई से नीचे सरक कर उसके पहलू में ही आ बैठी...छाती से चिपक कर मीनू ने एक बार फिर वैसी ही 'आह' भरी.. पर अब की बार 'आह' ने शब्दों का चोला पहन लिया था...,"आइ... लव यू मानव!"
उधर दोनो के दिल 'सारंगी' पर छिदि तान की भाँति झंझणा उठे होंगे और इधर चोरी छिपे प्रेम रस के सच्चे आनंद में डूबे हुए हम दोनो भी यौवन रस से भीग गये.... अब झिर्री से आँख हटाना तो क्या, पलकें झपकना भी हमें दुश्वार लग रहा था... पर मैने पिंकी के कसमसाते हुए नितंबों की थिरकन को अपनी जाँघ पर महसूस कर लिया था... जाने अंजाने ही 'वो' मेरी जाँघ को अपनी 'कच्ची मछ्लि' पर रगड़ कर वैसे ही आनंद उठना चाह रही होगी जैसा उस वक़्त मीनू को मिल रहा होगा.. उसके 'इतने' करीब जाकर....
अचानक मीनू अपने आपको मानव के बाहुपाश से मुक्त करवाने के लिए च्चटपटाने लगी..,"छ्चोड़ो अब.. दूर हटो.. अया.. हह"
उसकी च्चटपटाहत भी ठीक ही थी.... 'दूर' रहकर जवानी की तड़प को नियंत्रण में रखना जितना मुश्किल है... महबूब की बाहों में पिघल कर भी 'यौवन रस' में डूबी 'योनि' पर हो रहे जुदाई के ज़ुल्म को सहना उस'से लाख दर्जे मुश्किल होता है....,"प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़... उन्हू.. छ्चोड़ दो ना.... जाने दो अब.. बोल दिया ना...!" मानव जैसे ही मीनू की बगल और घुटनो के नीचे हाथ डाल कर उसको बाहों में लेकर खड़ा हुआ... मस्ती से गन्गना उठी मीनू अपने पाँव हवा में पटाकने लगी......
शुक्र हुआ कि मानव कम से कम अब उसकी 'ना ना' को 'हाँ हाँ' समझने लगा था... मानव अपनी बाँह को उपर करते हुए मीनू के सुर्ख गुलाबी हो चुके चेहरे को अपने होंटो के करीब लाया और मीनू की 'बोलती' बंद कर दी..... इधर मेरा हाथ भी पिंकी के कूल्हे से सरक कर उसके कमसिन पेट पर जा चिपका था और पिंकी को मेरे करीब खींचने में जुट गया था.....
"आआअहह..." जैसे ही मानव मीनू के रसीले होंटो का रसास्वादन करके पिछे हटा.. मीनू आँखें फाड़ कर मानव के चेहरे को देखने की कोशिश करने लगी... कोशिश इसीलिए कह रही हूँ कि वह सच में अपनी आँखों को खोले रखने के लिए कोशिश ही कर रही थी... लगभग मदहोश हालत में मीनू बड़बड़ाई," मैं पागल हो जाउन्गि.. छ्चोड़ दो प्लीज़.... मुझसे सहन नही हो रहा ये सब...!"
मानव के होंटो से मीनू को 'पी' लेने की तृप्ति भी झलक रही थी और उसकी आँखों से 'अधूरी प्यास' भी..," अब नही जान... अब पिछे नही हटा जाएगा... आज ही.. अभी... प्लीज़... कर लेने दो मुझे मनमानी....!" मानव उसको अपनी गोद में लिए हुए ही चारपाई पर बैठ गया......
"अया... एक बार उपर जाकर देख तो आने दो.... कहीं कोई जाग ना रही हो अभी..." मीनू ने मानव की च्चती से चिपक कर जैसे ही ये शब्द बोले.. हम पर मानो पहाड़ सा टूट पड़ा.. स्वपन लोक से हम सीधे धरती पर आकर गिरे थे... पिंकी हड़बड़कर पीछे हटी और फुसफुसाई..,"भागो जल्दी.....!" और हम बिना आहट किए दो दो पैदियों को एक साथ लाँघते हुए अपने बिस्तेर में आकर दुबक गयी और रज़ाई औध ली.......
मीनू चुपके से आई... कुच्छ देर वहीं खड़ी रही और फिर हमारे कमरे में जल रही लाइट बंद करके तेज़ी से नीचे उतर गयी....
"गयी अंजू... अब वो क्या करेंगे....?" बेताब सी नज़रों से मुझे देखते हुए पिंकी ने पूचछा.....
"आओ, देखें....!" मैं झट से बिस्तेर से उठ कर खड़ी हो गयी.....
"नही.. अब मैं नही जाउन्गि..." पिंकी की बात पर मुझे आस्चर्य हुआ...,"क्यूँ? चल ना...!"
पिंकी ने 'ना' में सिर हिला दिया..,"मैं नही जाउन्गि.. तू भी मत जा....!"
"पर क्यूँ यार.. आ ना.. मज़े आएँगे..." मैने हाथ खींचते हुए उसको बैठाने की कोशिश की....
"नही.. मुझे सब पता है... अब 'वो' दोनो कपड़े निकल कर नंगे हो जाएँगे... मुझे शर्म आ रही है..!" पिंकी के कयामत ढा रहे उत्तेजित हो चुके चेहरे से बरबस ही भोलेपन का रस टपक पड़ा था.....
"तुझे नही जाना तो मत जा... मैं तो जाउन्गि...!" मैने कहा और बाहर आकर सीढ़ियाँ उतरने लगी....
पर सिवाय मायूसी के.. मेरे हाथ कुच्छ नही लगा... ज़ालिमों ने 'लाइट ऑफ' कर रखी थी.... फिर भी मैं काफ़ी देर तक दरवाजे से चिपकी खड़ी रही... दोनों का प्रथम प्रण मिलन अद्भुत रहा होगा... रह रह कर कमरे से आ रही मस्ती की मस्त किलकरियों , आआहएं.. पीड़जनक क्षणिक चीत्कार.. और आनंद में डूबी सिसकियाँ इस बात का सबूत थी.....
आवाज़ें आनी बंद होते ही मैं अपने हाथ मलते हुए उपर चढ़ने लगी....
क्रमशः...........................
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