Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 02:01 PM,
#78
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उधर सांड़ अपने आपको संभालते हुए अपने आगे के पैरों से ज़मीन की मिट्टी को पीछे की तरफ फेंकता हुआ शंकर पर हमला करने को तैयार हो रहा था,

दोनो की नज़रें एक दूसरे पर जमी मानो एक दूसरे की ताक़त को तौल रही थी, फिर सांड़ एकदम से धाँभर देता हुआ शंकर के उपर झपटा…!

देखने वालों की साँसें जैसे अटक गयी थी…, वो सब दम साधे इस मंज़र को देख रहे थे…!

देखते ही देखते सांड़ शंकर तक पहुँच गया, लेकिन इससे पहले कि वो अपने सिर की टक्कर उसके सीने पर मारता, शंकर के दोनो हाथ उसके सींगों (हॉर्न) पर जम गये, उसने सांड़ को अपनी जगह पर रुकने पर बिवश कर दिया…!

हाफ बाजू कमीज़ से उसके मसल्स मानो फट पड़ने को तैयार थे, लेकिन मज़ाल क्या, लड़का एक इंच भी अपनी जगह से हिला हो…!

सांड़ रह-रहकर ज़ोर देकर उसे पीछे खदेड़ने की कोशिश करता, लेकिन शंकर पीछे को पैर जमाए उसे आगे बढ़ने ही नही दे रहा था…!

सांड़ की लाल-लाल आँखें देखकर किसी की भी घिग्गी बँध जाती, लेकिन शंकर दम साधे उसे हिलने भी नही दे रहा था…

उसका चेहरा लाल भभूका हो चुका था …

इसी ज़ोर आज़माइश में कोई 10-15 मिनिट निकल गये, कभी सांड़ ज़ोर लगाकर शंकर को कुछ कदम पीछे धकेल देता…

फिर शंकर अपनी दम साधकर सांड़ को कुछ कदम पीछे धकेल देता…

कोई किसी से कम पड़ने को तैयार नही था…, सांड़ की साँसें फूलने लगी थी, वो अपने नथुनो से फुसकार मारता हुआ लार फेंकने लगा...

तभी शंकर ने दाँत पर दाँत जमाकर एक तेज झटका सांड़ को मारा, जिससे वो झटके से कुछ कदम पीछे हटने पर मजबूर हो गया,

फिर वो फ़ौरन उसके आगे से एक तरफ को हट गया, ताक़त के ज़ोर्से प्रतिरोध करता सांड़ इतनी गति से आगे बढ़ा, तभी शंकर आगे से हट गया…

नतीजा…. झोंक-झोंक में सांड़ का सिर ज़मीन से जा टकराया, मौके का फ़ायदा उठाकर शंकर ने अपने दोनो हाथों को एक साथ जोड़कर कर मुक्का सा बनाया, और भड़ाक से उसके नथुनो पर दे मारा…!

सांड़ ना चाहते हुए भी डकार मार कर अपने आगे के घुटनों पर बैठने पर विवश हो गया,

इससे पहले कि वो सम्भल कर खड़ा होता, शंकर के दोनो पैरों की किक उसकी टाट (हंबल) पर पड़ी…,

सांड़ वहीं ज़मीन पर लेट कर हान्फ्ते हुए फुसकार सी मारने लगा, उसकी प्रितिरोधक क्षमता जबाब दे गयी…, चारों तरफ से तालियों की गड़गड़ाहट सुन कर प्रिया की तंद्रा टूटी…

वो अभी तक उसी पोज़िशन में पड़ी, दम साधे इस द्वंद युद्ध को देख रही थी.., आज शंकर उसे किसी देवता से कम नज़र नही आ रहा था…!

वो अपनी जगह से खड़ी होकर उसकी तरफ दौड़ पड़ी, और उसके बदन से लिपट कर फफक-फफक कर रोने लगी…!
सांड़ इतने सारे लोगों को अपनी तरफ आते देख वहाँ से उठ खड़ा हुआ, और एक दिशा में भाग गया…!

शंकर ने प्रिया को चुप करते हुए कहा – चुप हो जाइए प्रिया दीदी, वो चला गया, अब आपको घबराने की ज़रूरत नही है…!

सारे लोग वहाँ आकर जमा हो गये, आगे बढ़कर सुप्रिया ने प्रिया के कंधे पकड़ कर शंकर से अलग किया, और बोली – सब लोग देख रहे हैं दीदी, अब चलो घर चलते हैं…!

प्रिया शर्मिंदा होती हुई उससे अलग हुई, वो अभी भी सूबक रही थी,

शंकर ने सुप्रिया से कहा – अब आप लोग घर जाइए, और देखिए इन्हें कहीं चोट तो नही आई…!

प्रिया की एल्बो में थोड़ी सी खरोंच थी जिससे हल्का-हल्का खून रिस रहा था, उनमें से एक मजदूर ने एक घास जैसी उखाडकर उसका रस अपनी हथेलियों से मसल कर उसकी खरोंच पर टपका दिया…

फिर वो सब गाओं की तरफ चल दी, जाते-जाते दोनो बहनें पलटकर शंकर को चाहत भरी नज़रों से देखती जा रही थी..!

घटना इतनी रोमांचकारी थी, की उनके हवेली पहुँचने से पहले ही ये खबर वहाँ पहुँच गयी…!

शंकर की बहादुरी की बात सुनकर एक ओर सभी आश्चर्य चकित थे, वहीं उसकी माँ का सीना फूलकर गजभर का हो गया, उसने मन ही मन उसे शाबाशी देते हुए कहा – बस बेटे ऐसे ही अपनी बहादुरी दिखाता जा…!

दोनो बहनों के हवेली पहुँचने के बाद जब उन्होने इस बात की पुष्टि की, तो लाला जी अपने अंश की बहादुरी पर फूले नही समा रहे थे,

मन ही मन फिर से उनके दिल में ये टीस उठी, कि काश वो उसे अपने बेटे का दर्जा दे पाते…, खैर बिगड़ैल घोड़ी प्रिया रंगीली को देखते ही उससे लिपटकर रोने लगी…

मुझे माफ़ करना काकी, मेने ना जाने कितनी बार आप दोनो माँ-बेटों के साथ कितना ग़लत व्यवहार किया, और भगवान का इंसाफ़ तो देखो, उसी बेटे ने मेरी रक्षा करके मुझे बिनमोल खरीद लिया…

आज ये जिंदगी उसी की दी हुई है, वरना वो सांड़ मुझे मार चुका था…!

रंगीली उसे सांत्वना देते हुए बोली – ये तो उसका फ़र्ज़ था बीबीजी…, अपने मालिक की बेटी की जान बचाकर उसने अपना फ़र्ज़ पूरा किया है…!

और हां ! आप अपने मन में कोई मेल मत रखो, की हमें आपके व्यवहार से कोई ठेस लगी हो, ये तो हम नौकरों का नसीब होता है…!

रंगीली की ऐसी दरियादिली की बातें सुनकर प्रिया फिर एक बार उससे लिपट गयी- आप सच में नेक दिल हो काकी…,

सुप्रिया को आपके करीब देखकर मैं उसे चिढ़ाया करती थी.., लेकिन आज मुझे पता चला कि वो मुझसे कहीं ज़्यादा इंसानी समझ रखती है…!

अभी वो ये बातें कर ही रहे थे, कि हवेली के बाहर शोर सुनकर सब दरवाजे की तरफ लपके....

देखा तो लोगों का हुजूम, शंकर को अपने कंधे पर उठाए उसकी जय-जय कार करता हुआ हवेली की तरफ ही आ रहा था…!

लाला ने आगे बढ़कर उसे अपने कलेजे से लगा लिया, और आशीर्वाद देते हुए बोले – जीता रह बेटे, आज दूसरी बार तूने इस घर की बेटी की रक्षा करके जता दिया, कि तू कितना महान है…

यहाँ शंकर की जय-जैकार और उसकी बहादुरी की चर्चा चल रही थी, कि तभी कल्लू शराब के नशे में धुत्त हवेली पहुँचा…,

लाला जी उसे इस हालत में देखकर अंदर तक तिलमिला उठे, उन्हें फिर से इस बात का मलाल हुआ कि काश वो शंकर को अपना बेटा कह पाते………..!

उसके एक घंटे बाद शंकर अपने हवेली के बगल में मिले घर में था, उसे एक चौकी पर बिठाकर रंगीली उसकी नज़र उतार रही थी…!

उसके शरीर का उपरी हिस्सा नग्न था, पहले रंगीली ने एक फटी हुई चमड़े की जूती को उसके सिर के उपर से 7 बार उतारा, फिर उसके तले पर 7 बार थूका और उसे ज़मीन पर दे मारा.

फिर उसने एक रूई की मोटी सी बत्ती बनाकर उसे शंकर के सिर से लेकर पैरों तक 7 बार उतारा, और उसे तेल में सराबोर करके उसे जलाकर लटका दिया,

उसमें से जलती हुई मोटी-मोटी बूँदें नीचे रखे पानी के बर्तन में टपक-टपक कर छन्न..छन्न की आवाज़ें करने लगी…

सलौनी और शंकर इसे कौतूहलता से देख रहे थे, रंगीली ने अपने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा –

देखो बच्चो, किसी की इतनी बुरी नज़र है, जो मेरे बेटे को बुरी नज़र से देख कर कोस्ती है.., देखो वो नज़र कैसी झड रही है…!

मे जानती हूँ वो डायन कुतिया कॉन-कॉन हैं जो मेरे बेटे का बुरा चाहती हैं..,

जलो नाश्पीतियो, ऐसे ही जलती रहो, जब तक मे हूँ, कोई भी बुरी नज़र मेरे बच्चों का कुछ नही बिगाड़ पाएगी…!

उधर खिड़की से बाहर खड़ी सुप्रिया ये सब नज़ारा अपनी आँखों से देख रही थी, उसे रंगीली की बातों से कोई सरोकार नही था, वो तो बस शंकर के नंगे बदन को ही निहारे जा रही थी,

हल्की लालमी लिए उसका पत्थर जैसा कठोर गोरा कसरती बदन उसके दिल की गहराइयों तक उतरता चला गया, इस समय शंकर उसे किसी देव-पुरुष जैसा लग रहा था…!

इसी बीच सलौनी की नज़र खिड़की पर खड़ी सुप्रिया पर पड़ गयी, और वो चहकते हुए बोली – अरे सुप्रिया दीदी, आप बाहर क्यों खड़ी हैं, अंदर आइए ना…!

सलौनी की बात सुनकर वो अंदर आने लगी, रंगीली उसे दौड़कर गेट से उसका हाथ पकड़कर अंदर लाई…!

शंकर ने हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा और अपनी उतरी हुई कमीज़ से ही अपने बदन को ढकने की नाकाम कोशिश करने लगा…!

सुप्रिया ने मुस्करा कर कहा – चिंता मत करो शंकर मेरी नज़र इतनी खराब नही है कि तुम्हें कोई हानि पहुँचाए, क्यों काकी सही कह रही हूँ ना…!

रंगीली – हां छोटी बीबी, आपकी नज़र तो सिवाए खुशी चाहने के और कुछ दे ही नही सकती, आप तो दिल की इतनी अच्छी हैं, कि हम ही क्या हवेली के सारे नौकर इस बात को मानते हैं, कि सुप्रिया बीबी जैसी इस घर में और कोई नही है…!
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