Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 01:51 PM,
#61
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लेकिन ये बात भी अपनी जगह सही थी, कि औरों की तरह उसके भी कुछ सपने तो थे ही, जवान दिल के कुछ अरमान थे जिन्हें वो पूरा करना चाहती है…

लेकिन अपने दिल की बात किसी गैर औरत के सामने कैसे बयान करे कि वो अपने पति के अलावा किसी और के ही सपने देखती है, उसके सपनों का राजकुमार कॉन है…!

वो इसी उधेड़-बुन में उलझी थी, जब काफ़ी देर तक सुषमा ने कुछ नही कहा तो रंगीली ने उसके दिल पर चोट करते हुए कुछ ऐसे अंदाज में कहा, जिसे वो टाल ना सकी –

ओहूओ…बहू रानी, अब नयी नवेली दुल्हन की तरह क्या शरमाना,

मान भी लो, जो मेने कहा है वो सही है…, ये कहकर उसने उसके एक उरोज को प्यार से मसल दिया…!

आअहह…सस्सिईइ… ये सही नही है काकी…! क्योंकि मे जानती हूँ अब उनका मर्द बनाना नामुमकिन है, तो भला ऐसे सपने देखने का क्या लाभ…?

रंगीली – तो इसका मतलब अब आपके दिल में कोई अरमान वाकी ही नही है, कोई सपने ही नही हैं आपके…?

सुष्समा – मेने ऐसा कब कहा..? सपने तो सभी देखते हैं, तो जाहिर सी बात है कि मे भी किसी के सपने देखती हूँ,… पर……..! अपनी बात अधूरी छोड़ कर वो चुप हो गयी…!

रंगीली – पर..? पर क्या बहू रानी.. ? कॉन है वो खुश नसीब जो आपके हसीन सपनों में आकर आपको छेड़ता है… हान्न्न….आअंन्न..बोलो… ये कहकर रंगीली उसकी बगलों में गुद-गुदि करने लगी..….!

लाख अपनी हँसी पर काबू रखने की कोशिश के सुषमा खिल-खिलाकर हंस पड़ी, और उसी खिल-खिलाहट भरी हसी की झोंक में उसके मुँह से निकल गया – आपका बेटा…!

रंगीली अपने मुँह पर हाथ रख कर आश्चर्य जताते हुए बोली – क्या…? मेरा बेटा..? आपका मतलब… शंकर…?

सुषमा ने शर्म से अपना चेहरा अपने दोनो हाथों से ढांप लिया और शरमाते हुए बोली – हां काकी, शंकर भैया मेरे सपनों में आकर रोज़ मुझे सताते हैं,

रंगीली – लेकिन वो तो अभी बच्चा है.. उसके सपने…? मेरा मतलब है, अभी वो ठीक से जवान भी नही हुआ…, औरत मर्द के संबंधों को भी नही समझता… फिर कैसे आपने ये सोच…

सुषमा – जबसे वो इनको कॉलेज के लड़कों से बचाकर लाए थे, उसी दिन से उनकी मर्दानगी मेरे दिलो-दिमाग़ में छप गयी, उनका वो कामदेव जैसा स्वरूप रोज़ मेरे सपनों में आता है,

उनकी वो मासूम सी छवि मेरे मन-मस्तिष्क में बस चुकी है…और अब मे चाहती हूँ, कि इस घर के वारिस के रूप में उनका ही अंश मेरी कोख में आए,
ये कहकर उसने रंगीली के हाथ अपने हाथों में ले लिए और मिन्नतें सी करते हुए बोली

अब मेरा मान-सम्मान आपके हाथ में है काकी, आप चाहो तो मे अपने अधिकार फिर से पा सकती हूँ, वरना तो भगवान ही मालिक है.. पता नही क्या होगा मेरा इस घर में..?

रंगीली कुछ देर चुप रहकर सोचने का नाटक करती रही, सुषमा ने आगे कहा – क्या सोच रही हो काकी, भरोसा रखो, मे ये बात अपने शरीर की हवस मिटाने के लिए नही कह रही,

मे सच में शंकर भैया को चाहने लगी हूँ, और इसलिए मुझे इस घर को वारिस देना है तो यही एक रास्ता है मेरे पास…!

शंकर को मन ही मन अपने होने वाले बच्चे का पिता मान चुकी हूँ मे, उनके अलावा और कोई मेरे सपनों को साकार नही कर सकता…

रंगीली ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा – लेकिन एक वादा आपको भी करना पड़ेगा बड़ी बहू.., इस घर को वारिस देने से पहले, इस घर की कुंजी अपने हाथों में लेनी होगी…!

सुषमा – वो भला क्यों..? जब मे इस घर को इसका वारिस दे दूँगी, तो वैसे ही हवेली में मेरी इज़्ज़त बढ़ जाएगी…! फिर उसकी क्या ज़रूरत रह जाएगी…!

रंगीली – आप बड़ी भोली हैं बड़ी बहू…, मुझे छोटी बहू के चाल-चलन ठीक नही लगते, वो अपने फ़ायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है, आप समझ रही हो ना मेरी बात…!

और फिर ये ना हो कि इस घर को वारिस मिलते ही बड़े मालिक और मालकिन की नज़र घूम जाए, इसलिए आपको ये करना ही बेहतर होगा,

आप बहुत सीधी और संस्कारी घर की बेटी हैं, घर की मान मर्यादा का ख्याल है आपको, लेकिन छोटी बहू ऐसी नही है, ये तो आप भी जानती ही होंगी…!

ये दुनिया बड़ी लालची है बहू…, ये बात मे आपके भले के लिए ही कह रही हूँ.. वरना आप ही बताइए मेरा इसमें क्या स्वार्थ हो सकता है भला…!

आपके मिलनसार और सबको सम्मान देने वाले अच्छे स्वाभाव की वजह से मे आपसे थोड़ा हिट रखती हूँ, और कोई बात नही…!

सुषमा – शायद आप ठीक कह रही हैं काकी, मे वादा करती हूँ… समय आने पर मे अपने अधिकार माँग लूँगी…, लेकिन अब आगे सब आपको देखना होगा…!

रंगीली ने मुस्कराते हुए उसकी रसीली चूत को सहला कर कहा – भला मुझे क्या देखना है..? जो भी देखना है वो आपको ही देखना है,

मे तो बस इतना कर सकती हूँ, कि शंकर ज़्यादा से ज़्यादा समय आपके पास बिताए, गौरी बिटिया के साथ खेलने के बहाने आपके करीब रहे, उसको कैसे पटाना है वो आप जानो…!

सुषमा उसकी बात सुनकर शरमा गयी, और अपनी नज़र झुकाकर बोली – ठीक है, आप इतना करदो वो भी बहुत है.., वाकी मे कोशिश कर लूँगी…!

रंगीली अपने मकसद में कामयाब होती जा रही थी, वो जिस काम के लिए सुषमा के पास आई थी वो हो चुका था, अपनी कामयाबी पर मन ही मन बहुत खुश थी वो…

उसी खुशी में गद-गद होते हुए उसने सुषमा की गान्ड के छेद में अपनी एक उंगली घुसाते हुए कहा – अच्छा बहू, जब आप माँ बन जाओगी, तो मुझे क्या इनाम मिलेगा..?

सुषमा ने उसकी कलाई थाम ली और कराहते हुए बोली – आअहह…काकी, अपनी जान से ज़्यादा कुछ कीमती चीज़ नही है मेरे पास, चाहो तो वो माँग लेना, मना नही करूँगी…!

रंगीली ने उसे अपनी छाती से चिपका लिया फिर उसके माथे को चूमकर बोली – जीती रहो बहू रानी, तुमने इतना कह दिया मुझे सब कुछ मिल गया…!

मे एश्वर से प्रार्थना करूँगी कि तुम्हारी गोद जल्दी से जल्दी भर्दे, मे आज से ही शंकर और सलौनी को आपके पास भेजती हूँ,

आप गौरी की जेममेदारी उनको सौंप देना जिससे वो ज़्यादा से ज़्यादा आपके पास ही रहे…!

इतना समझाकर रंगीली ने अपने कपड़े पहने, और वहाँ से चली गई…, उसके पीछे सुषमा शंकर के हसीन सपनों में खोई बहुत देर तक ऐसे ही पड़ी रही…!

सारा काम धाम निपटाने के बाद रंगीली जब अपने कमरे में पहुँची तो वो कुछ थकि हुई सी लग रही थी, सो आते ही बिस्तर पर लेट गयी, फिर ना जाने कब उसकी आँख लग गयी…!

कल रात से वो अनगिनत बार झड चुकी थी, अपने बेटे के साथ तो वो लगातार पानी बहाती रही थी, फिर कुछ समय पहले भी सुषमा को पटाने के बहाने भी उसे वो मज़ा लेना पड़ा था,

उधर स्कूल के बाद लौटते समय भी सलौनी अपने भाई के साथ मज़े लेने के चक्कर में थी, उसने कोशिश भी की लेकिन शंकर ने उसपर ध्यान ही नही दिया..

घर आकर सलौनी अपनी दादी के पास चली गयी, और शंकर अपनी माँ के पास..!

कमरे में घुसते ही उसकी नज़र अपनी माँ पर पड़ी, जो इस समय बेसूध सोई पड़ी थी, उसके कपड़े अस्त-व्यस्त हुए पड़े थे, उसकी ओढनी एक तरफ पड़ी थी, सो उसकी चोली से उसके कसे हुए दूधिया उरोज झाँक रहे थे…

घांघरा भी घुटनों तक चढ़ा हुआ था, माँ की गोरी-गोरी टाँगें और दूध जैसे फक्क गोरे उरोजो को देखते ही शंकर का लंड खड़ा होने लगा…,

उसने अपना स्कूल बॅग एक तरफ रखा, और माँ के बाजू में बैठकर कुछ देर उसे निहारता रहा, फिर धीरे से वो उसकी गोरी-गोरी पिंडलियों पर हाथ रख कर सहलाने लगा…!

शंकर के हाथ के स्पर्श से उसकी आँख खुल गयी, उन्नीदी आँखों से उसकी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा कर उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके गाल को सहला कर बोली –
आ गया मेरा लाल.., चल तुझे खाना दे दूं, भूख लगी होगी..!

शंकर को तो इस समय किसी और चीज़ की भूख थी, अपनी लालची नज़रों को माँ की चोली में कसे दूधिया उरोजो की घाटी पर जमाए हुए बोला…

खाने से पहले थोड़ी देर अपना दूध पिलादे माँ.., मेरी अच्छी माँ, ये कहकर उसने उसकी एक चुचि को अपने हाथ में लेकर दबा दिया…!

रंगीली ने प्यार से उसके गाल पर एक चपत लगाई, फिर मुस्कुरा कर उसका हाथ हटाते हुए बोली – वो सब रात में.., अभी मेरा मन नही है, रात में तूने बहुत थका दिया था मुझे, उपर से दिनभर का काम…!

ये कहकर वो उसके लिए खाना लेने उठ खड़ी हुई, शंकर अपना लंड मसोस कर बेमन से कपड़े बदल कर खाना खाने बैठ गया…!

खाना खिलाते समय रंगीली ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा – बेटा अपना स्कूल का काम ख़तम करके तुम दोनो भाई-बेहन बड़ी बहू के पास चले जाया करो,

थोड़ा गौरी बिटिया के साथ खेल लिया करो, वो भी अब बड़ी हो रही है, उसे भी खेलने के लिए किसी का साथ चाहिए..,

अपनी माँ की बात मानकर उसने हामी भर दी…, और उसी शाम अपना पढ़ाई का
काम ख़तम करके दोनो भाई-बेहन सुषमा के पास चले गये…!

शंकर को देख कर सुषमा के मन की मुरझाई हुई कली खिल उठी,

उसने गौरी को सलौनी के साथ खेलने के लिए कर दिया, और शंकर को लेकर काम के बहाने से अपने कमरे में चली गयी…!
ऐसा नही था कि सुषमा रंगीली से कम सुंदर थी, वो एक निहायत ही खूबसूरत जवानी से लदी फदि भरपूर औरत थी,

और ऐसा भी नही था कि शंकर को वो अच्छी नही लगती थी, लेकिन अब तक उसने उसे इस नज़र से कभी नही देखा था…!

अपनी माँ के बाद उसे कोई पसंद थी तो वो सुषमा ही थी, लेकिन एक मालिक और नौकर वाली दीवार भी थी, जिसे वो कभी लाँघना नही चाहता था…!

यही कारण था कि जब भी वो उसके नज़दीक जाता था, एक आदर और सम्मान के साथ, जिससे उसके सामने हमेशा उसकी नज़र झुकी हुई रहती…,

सुषमा उसे लेकर अपने कमरे में आई, आज उसने जानबूझकर एक बहुत ही डीप गले का झीने से कपड़े का स्लीवेलेस्स ब्लाउस पहना था…,

उसके कंधे तक उसकी मांसल गोरी-गोरी मरमरी बाहें बहुत ही सुंदर लग रही थी…, झीने कपड़े से उसकी काले रंग की ब्रा साफ दिखाई दे रही थी…

कुछ इधर उधर के काम में अपने साथ लगाकर उसने शंकर से करवाए, फिर वो उसे लेकर पलंग पर बैठ गयी…!

सुषमा – आओ शंकर भैया, थोडा बैठते हैं, मे तो भाई थक गयी..,

शनकर – कोई बात नही भाभी, आप बैठकर मुझे काम बताती जाइए मे कर लूँगा, आपको साथ में लगने की कोई ज़रूरत नही है…

सुषमा – अरे छोड़ो उसे, ऐसा कुछ ज़्यादा भी काम नही है, आओ थोड़ा मेरे पास बैठो, ये कहकर उसने उसका हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गयी…

शंकर वहीं पास में खड़ा रहा…, वो उसके साथ पलंग पर बैठने में हिचक महसूस कर रहा था…

लेकिन सुषमा ने उसे ज़बरदस्ती खींचते हुए कहा – अरे बैठो ना, क्या हुआ…

वो हिचकते हुए बोला – वो..वू..भाभी मे आपके साथ…पलंग पर कैसे…

सुषमा ने थोड़ा हाथ झटक कर उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा – क्यों…क्यों नही बैठ सकते मेरे पास…, आओ कोई बात नही.., बैठो..
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10-16-2019, 01:51 PM,
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आख़िर में शंकर को उसके पलंग पर उसके बाजू में बैठना पड़ा, लेकिन थोड़ी दूरी बनाकर.., सुषमा उसके हाथ को पकड़े सहलाते हुए उससे उसकी पढ़ाई के बारे में पूच्छने लगी…

कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद वो बोली – तुम्हें ताश (प्लेयिंग कार्ड) खेलना आता है…?

शंकर – बहुत ज़्यादा तो नही, बस कुछ-कुछ गेम आते हैं…

सुषमा – चलो वही खेलते हैं थोड़ी देर, मज़ा आएगा…, ये कहकर वो कार्ड लेने उठ खड़ी हुई…

शंकर बोला – सलौनी और गौरी को भी बुला लेते हैं, वो भी साथ में खेल लेंगी…

सुषमा – अरे नही, उन दोनो को वहीं बाहर ही खेलने दो, बेकार में गौरी यहाँ धमाल करेगी, हमें भी खेलने नही देगी, हो सकता है कार्ड ही फाड़ दे…!

सुषमा कार्ड के साथ-साथ एक प्लेट में नमकीन काजू, पिस्ता बगैरह भी ले आई और आकर पलंग पर सिरहाने की तरफ बैठ गयी, शंकर को भी उसने अपने सामने पलंग पर चढ़कर बैठने को कहा…

अब वो दोनो आमने सामने बैठ गये, एक साइड में उन्होने मेवा की प्लेट रख दी, और दोनो के बीच में कार्ड रखकर खेलने लगे…!

ये कोई सीक्वेन्स बनाने वाला गेम था, कुछ कार्ड बराबर नंबर्स में एक दूसरे ने ले लिए, वाकी की गॅडी बीच में रख ली, जिसमें से एक-एक करके कार्ड लेना था,

ज़रूरत का कार्ड अपने पास रख के, बिना ज़रूरत का नीचे डाल देना था, पहले का फेंका हुआ कार्ड अगर दूसरे के काम का होगा तो वो उसे गॅडी की बजाय उसे ले सकता था…

शंकर के सामने सुषमा अपनी तागे फैलाकर बैठी थी, जिससे उसकी साड़ी पीड़लियों के उपर तक चढ़ि हुई थी,

गोरी-गोरी एकदम गोलाई लिए संगेमरमर जैसी सुडौल पिंडलिया देख कर शंकर की निगाह उनपर जमी रह गयी, तिर्छि नज़र से सुषमा उसकी हरेक गतिविधि पर नज़र बनाए हुए थी…

कार्ड खेलते खेलते कभी-कभी वो अपनी टाँगें खुजाने के बहाने अपनी साड़ी को उपर करती जा रही थी, जो अब उसके एक टाँग के घुटने तक जा पहुँची…

शंकर का ध्यान जब भी कार्ड की तरफ होता, वो किसी ना किसी बहाने से उसे अपनी तरफ आकर्षित कर लेती…

इसी शृंखला में उसने अपना आँचल ढलका दिया, और कार्डों में मशगूल होने का नाटक करने लगी..,

जैसे ही शंकर की नज़र उसके खुले गले से लगभग आधे गोरे-गोरे सुडौल दूधिया मम्मों पर पड़ी, उसकी साँसें थम गयी…,

सुषमा के इतने सुंदर दूधों को देखकर उसका लॉडा पाजामे में सिर उठाने लगा.., उसकी नज़र ताड़ते हुए सुषमा मंद-मंद मुस्कराने लगी…

अपने हुष्ण का जादू उसने शंकर के मन-मस्तिष्क पर चला दिया था, यही नही वो नीचे गिरे कार्ड को उठाने के बहाने अपने आपको और आगे को झुका देती, जिससे उसकी चुचियों की मादक घाटी काफ़ी अंदर तक दिखाई देने लगती…

शंकर कार्ड खेलना भूलकर उसकी घाटी में खो गया…, उसकी कार्ड चलने की बारी थी, लेकिन बहुत देर तक भी उसने कार्ड नही चला, सुषमा उसकी हालत का मज़ा लेते हुए बोली –

कार्ड फेंको शंकर भैया, कहाँ खो गये…?

उसकी आवाज़ सुनकर शंकर पहले हड़बड़ा गया, फिर अपने खुश्क हो चुके होंठों को जीभ से तर करते हुए अपना ध्यान कार्ड्स पर लगाया और बिना काम का एक कार्ड फेंक दिया…

सुषमा ने शंकर के उपर से अपना ध्यान हटा लिया, जिससे वो अच्छे से उसके रूप का रस्पान कर सके, और अपना एक हाथ जाँघ पर ले जाकर उसे खुजाने लगी…!

शंकर फिर से उसके रूप लावण्य में खो गया…, मौका ताडकर सुषमा ने अपनी टाँगों का ऐसा पोज़ बनाया जिससे उसकी साड़ी का नीचे का पल्ला और ज़्यादा नीचे हो गया, और उपर का भाग तंबू की तरह दोनो घुटनों पर तन गया…

उसकी दोनो गोरी-गोरी, केले जैसी मोटी-मोटी, चिकनी सुडौल जांघे अंदर तक नुमाया हो गयी…,

शंकर की चंचल नज़रें अंदर तक का एक्सरे करती चली गयी, और अंत में जाकर उसकी गुलाबी रंग की पैंटी पर टिक गयी…,

पैंटी में कसी हुई उसकी मोटी-मोटी जांघों के बीच दबी उसकी चूत के मोटे-मोटे होंठ जो जांघों के दबाब के कारण पैंटी के अंदर और ज़्यादा उभरे हुए से लग रहे थे,

उनपर नज़र पड़ते ही शंकर का घोड़ा अपने अस्तबल में हिन-हिनाने लगा..,

उसने अंडरवेर और पाजामे के बबजूद भी उसके आगे बड़ा सा तंबू बना दिया…, जिसपर नज़र पड़ते ही सुषमा की साँसें तेज होने लगी…

उसकी मुनिया में सुरसूराहट बढ़ गयी, और उसके होंठ गीले होने लगे..,

उसने शंकर के लंड को यहीं चैन से खड़े नही होने दिया, अपने घुटनो को एकदुसरे के करीब लाई जिससे उसकी सुरंग का रास्ता और चौड़ा और साफ, किसी एक्सप्रेसवे की तरह हो गया…,

और फिर आगे झुक कर गॅडी से कार्ड लेने के बहाने अपने उपर की स्क्रीन एकदम शंकर की आँखों के आगे कर दी…..

उठाऊ या गॅडी से खींचू ऐसा बड़बड़ाते हुए झुकी हुई सुषमा ये जताने का प्रयास कर रही थी कि वो ये तय नही कर पा रही है, कि कार्ड गॅडी से ले या शंकर का फेंका हुआ ले…

शंकर की आँखों के सामने दोनो ही स्क्रीन एकदम खुली पड़ी थी…, वो ये फ़ैसला नही कर पा रहा था कि कॉन सी स्क्रीन पर सीन अच्छा चल रहा है, जबकि वो किसी एक से भी नज़रें हटाने की हिम्मत नही कर पा रहा था…

उत्तेजना के मारे उसके कान तक गरम होकर लाल हो गये, लौडे की हालत का तो कहना ही क्या…, वो तो इतने बंदोबस्त के बाद भी ठुमके लगाने लगा, जिसका भरपूर मज़ा कार्ड उठाने के बहाने सुषमा खूब अच्छे से लूट रही थी…

उसकी मुनिया तो खुशी से लार टपकाने लगी…,

फिर दोनो ने अपने आप पर थोड़ा सा काबू किया और गेम को आगे बढ़ाते हुए सुषमा ने अपने हाथ से एक कार्ड सामने फेंका जो शंकर के मतलब का था…
सो उसने झट से उठा लिया, तभी सुषमा बोली – सॉरी शंकर, वो कार्ड मेने ग़लती से फेंक दिया, वो मुझे वापस दे दो, मे दूसरा कार्ड फेकुंगी…,

शंकर – नही अब नही भाभी, ये आपको पहले देखना चाहिए था, एक बार फेंक दिया तो फिर वापस नही ले सकती…

सुषमा – अरे तुम समझा करो, वो कार्ड मेरे काम का है, प्लीज़ वापस दे दो, ये कहकर उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया…

शंकर ने वो कार्ड वाला हाथ पीछे खींचा, जिसे सुषमा छीनने के लिए झपटी….

तभी शंकर ने वो हाथ अपनी पीठ के पीछे कर लिया, वो उसे हर हालत में पाने की गरज से उसपर झपट पड़ी, इसी चक्कर में वो शंकर के उपर जा गिरी…

शंकर अपनी जगह पर पीछे को लुढ़क गया, और सुषमा उसके उपर…

शंकर का कार्ड वाला हाथ उसकी पीठ के नीचे दब गया था, जिसे निकालने के लिए वो उसके हाथ को पकड़ने के लिए अपना हाथ भी घुसाने लगी…

सुषमा के पुष्ट कड़क दूधिया उभार शंकर की कठोर चौड़ी छाती से दब गये, जिससे वो अब उसके ब्लाउस के और ज़्यादा बाहर को निकल पड़े,

अपनी आँखों के ठीक सामने उसके दोनो उभार जो दबकर एक-दूसरे पर ओवेरलेप हो रहे थे देखकर शंकर की साँसें तेज होने लगी,

उधर सुषमा भी कार्ड-वॉर्ड सब भूल गयी, और शंकर के लंड के तंबू को अपनी जांघों के ठीक बीच में अपनी चूत के होंठों के उपर महसूस करके उसके दिल की धड़कनें बुलेट ट्रेन की तरह चलने लगी…

आँखों में वासना के डोरे तैरने लगे, वो अपनी लाल-लाल नशीली आँखों से शंकर की आँखों में झाँकने लगी, जहाँ उसे वासना के कीड़े बिज-बीजाते हुए दिखे…

उसने अपनी गान्ड का दबाब और बढ़ाकर अपनी चूत को उसके लंड के उभार पर और बढ़ा दिया, जिससे उसकी मुनिया बुरी तरह से गीली होने लगी…

दोनो के दिल इतने पास-पास थे, कि वो धाड़-धाड़ बजते दोनो एक दूसरे के दिलों की धड़कन को साफ-साफ सुन रहे थे…

दोनो को ये होश नही रहा कि वो कहाँ और किस स्थिति में हैं,

ना जाने वो कितनी देर और यौंही पड़े रहते कि तभी बाहर से मम्मी…मम्मी चिल्लाते हुए गौरी की आवाज़ सुनाई दी…

सुषमा जैसे किसी भंवर से बाहर निकली हो, होश आते ही वो फ़ौरन शंकर के उपर से उठकर अपनी जगह पर बैठ गयी, तब तक गौरी कमरे के अंदर आ चुकी थी…

अभी वो अपने कपड़े ठीक कर ही रही थी कि पीछे से सलौनी भी अंदर आ गयी…,

उसने राहत की साँस ली कि चलो बच गये, वरना अगर सलौनी उसे ऐसी हालत में देख लेती तो ना जाने क्या सोचती…

वो सब कुछ देर और बैठे कार्ड खेलते रहे, फिर गौरी को दूसरे दिन आने का प्रॉमिस करके दोनो भाई-बेहन अपनी माँ के पास चले गये…!
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10-16-2019, 01:51 PM,
#63
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
जब से सुषमा ने शंकर को रिझाना शुरू किया, तब से वो उसकी तरफ खींचता ही जा रहा था, सोने पे सुहागा ये की उसकी माँ ने उसे चूत का चस्का भी लगा दिया था,

जैसा कि आप सभी लोग अनुभवी हैं, जब किसी नवयुवक को नया नया चूत का चस्का लगता है, तो उसे अपने चारों ओर चूत ही चूत दिखाई देती हैं…

वो हर संभव औरतों के कामुक अंगों को घूर्ने की चेष्टा ही करता रहता है…, उत्तेजित होकर सारे-सारे दिन अपने लौडे पर ज़ुल्म ढाता रहता है…!

यहाँ तो सुषमा जैसी निहायत खूबसूरत औरत सामने से अपने रूप यौवन को उसके सामने परोसने में कोई कोर कसर नही छोड़ रही थी…,

शंकर को जब भी मौका हाथ आता वो सुषमा के कसे हुए दूधिया उभारों को नज़र भर निहारता ही रहता, वो भी उसे रिझाने के लिए कोई ना कोई तरकीब लड़ाती ही रहती…

जब शंकर उसे चाहत भरी नज़रों से उसके अंगों को देखता, ये देखकर सुषमा अंदर ही अंदर आनंद से भर उठती,

उसे इस बात की तसल्ली होती कि चलो अपने रूप सौंदर्या से वो उसे अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो रही है…, और अब जल्दी ही उसकी ये इच्छा पूरी हो सकती है..

एक रात जब दोनो माँ-बेटे ज़मीन पर बिस्तर लगाए सोने की कोशिश कर रहे थे.., शंकर दिन की बातें सोच-सोच कर सुषमा की भरी जवानी को अपनी सोचों में पाकर उत्तेजित हो रहा था…!

वो जैसे ही अपनी आँखें बंद करता, सुषमा के गोरे-चिट्टे ब्लाउस से झाँकते हुए दूधिया उरोजो के बीच की खाई सामने आ जाती,

उसकी गोरी-गोरी पिंडलियाँ और आधी-अधूरी केले जैसी गोरी चिकनी जांघों की झलक आँखों में आते ही उसका घोड़ा हिन-हिनाने लगा…

उसका लंड कड़क होकर पाजामे में उच्छल कूद मचाने लगा, अब नींद उसकी आँखों से कोसों दूर भाग चुकी थी….

जब उससे नही रहा गया तो वो अपनी माँ के बिस्तर पर आकर पीछे से उसकी गान्ड की दरार में अपना मूसल अटका कर चिपक गया…!

रंगीली भी अपने ही ख्वाबों ख़यालों में गुम अभी तक सो नही पाई थी, शंकर का लंड अपनी गान्ड पर महसूस कर उसने करवट बदली और सीधी लेट गयी..

शंकर का हाथ अपनी चुचियों पर रखकर बोली – क्या बात है रे बदमाश, नींद नही आ रही..?

वो उसकी मुलायम गोल-गोल चुचियों को सहलाते हुए बोला – बहुत मन कर रहा है माँ, एक बार करने दे ना…!

रंगीली ने भी अब उसकी तरफ मुँह कर लिया, और उसके खड़े लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर दबाते हुए बोली – क्या करने दूं…?

शंकर – वू.. माँ…वू…, तू देख ही रही है…ये साला आज बहुत परेशान कर रहा है, एक बार अपनी उसमें डालने दे ना इसे…!

रंगीली – ये क्या ये, वो, उसमें, करने दे बोलता रहता है, सीधे सीधे बोलना क्या करने दूं तुझे..? सीधे सीधे बोल ना क्या चाहिए..?

शंकर – वू..मुझे तेरे सामने ऐसे गंदे शब्द बोलने में शर्म आती है…!

रंगीली उसके लंड को मुठियाते हुए बोली – अच्छा मदर्चोद, माँ की चूत चोदना चाहता है, बोलने में शर्म आती है,
खुलकर बोला कर ये सब, इन कामों में शर्म नही करते, खुलकर बोलने में ज़्यादा मज़ा आता है… समझा…

शंकर – तो तू बुरा तो नही मानेगी ना, अगर मे कहूँ कि मुझे तेरी चूत में अपना लंड डालकर चोदना है तो…!

रंगीली – हां ! ये हुई ना कुछ बात, तो मेरे चोदु बेटे का अपनी माँ को चोदने का मॅन कर रहा है,, हां..,

ये कहकर उसने उसके पाजामा का नाडा खींच दिया, और उसके लंड को बाहर निकालकर मूठ मारते हुए बोली – पर अचानक से मन क्यों करने लगा तेरा…?

शंकर – वो माँ..वू…आज सुषमा भाभी की मस्त गदर चुचियाँ देख-देखकर इतना मज़ा आ रहा था..मत पुच्छ....आअहह…क्या मस्त गदराई हुई है वो… एकदम दूध जैसी गोरी…!

रंगीली – तो उन्हें ही सोच-सोचकर तेरा ये लंड फन-फ़ना रहा है,, क्यों..? वैसे वो तेरे साथ कुछ छेड़-छाड़ भी करती है…?

शंकर ने माँ की चुचियों को उसके बटन खोकर चोली से बाहर निकाल लिया और उसके एक निपल को अपनी जीभ से चाट कर बोला – बहुत छेड़ती है भाभी, पर मुझे डर लगता है, इसलिए मे अपनी तरफ से कुछ कर नही पाता…!

रंगीली उसके सिर के पीछे अपना एक हाथ रखकर उसके मुँह को अपनी चुचि पर दबाते हुए बोली – देख बेटा, कोई भी औरत अपने मुँह से कभी सीधे-सीधे ये नही कहेगी कि आजा मेरे राजा चोद ले मुझे…!

वो ऐसी ही छेड़-छाड़ करके मर्द को उकसा सकती है, अब तू ठहरा नादान, भला कैसे समझेगा कि उसकी चूत तेरा ये मूसल लेने के लिए मचल रही है…!

शंकर ने उसके लहँगे को कमर तक चढ़ा दिया और उसकी जांघों को सहलाते हुए उसका हाथ उसके मुलायम चूतड़ पर चला गया, उसे अपनी मुट्ठी में भरने की कोशिश करते हुए बोला –

तो इसका मतलब सुषमा भाभी मेरे से चुदना चाहती है…?

रंगीली कराहते हुए बोली – आहह…हां.. बेटा, वो बहुत प्यासी औरत है, उसने मुझे भी बोला था तुझे उसके पास जाने के लिए, इसलिए तो मेने तुम दोनो को गौरी के साथ खेलने के लिए कहा था…!

शंकर ने अपनी माँ की केले के तने जैसी चिकनी टाँग को अपने उपर रख लिया और उसकी रसीली चूत में उंगली डालकर बोला – इसका मतलब तू भी चाहती है कि मे उन्हें चोद दूं..!

रंगीली सीसियाते ही बोली – ससिईइ….आअहह…हहान..मेरे लाल, बहुत प्यासी है बेचारी…, मौका देखकर चोद डाल उसे…, पिला दे अपने लंड का पानी उसकी चूत को…, बना दे अपने बच्चे की माँ…!

सस्सिईई…हाईए…रीए…मदर्चोद उंगली ही करता रहेगा या अब चोदेगा भी मुझे… डाल अपना मूसल मेरी ओखली में… बहुत खुजा रही है सालीइीइ…. ससिईईईईई…
हाईए..रीए.., कर्दे जमके कुटाइईई इस निगोडी कििई..….

शंकर अपनी माँ की कामुक बातें सुनकर फ़ौरन उसकी टाँगों के बीच आकर बैठ गया.., और उसकी टाँगों को चौड़ी करके, अपना गरम दहक्ते हुए लंड का टोपा अपनी माँ की प्यासी चूत में पेल दिया…!

एक ही झटके में आधा लंड उसकी चूत में सरक गया…. रंगीली कराह उठी…आअहह…. मेरे घोड़े… धीरे.., बहुत मोटा खूँटा है तेरा…, मेरी चूत को चीर दिया रे….मदर्चोद…..उउफफफ्फ़….

शंकर ने उसके होंठों को चूमा और चुचियों को मसल्ते हुए एक और धक्का लगा दिया, अपने लंड को जड़ तक माँ की चूत में चेंपकर वो उसके उपर पसर गया…

अपने दर्द पर काबू पाने के लिए रंगीली ने उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया…, और अपने पैरों को उसकी कमर में लपेटकर गान्ड को उपर उठा दिया…!

अब धीरे-धीरे चोद बेटा, हाआंन्न…शाबास मेरे शेर, फाड़ अपनी माँ की चूत.. बहुत गरम है ये साली…, और ज़ोर्से..एयेए..ययईीीई…म्माआ…उउउफफफ्फ़…बहुत अच्छा..चोद रहा है तुऊउ.….

ऐसी ही उत्तेजक बातें करते हुए वो उसे और ज़ोर्से चोदने के लिए उकसाने लगी.... शंकर उसकी कामुक बातों से ज़्यादा उत्तेजित होकर और दम लगाकर ठुकाई करने लगा..,

दोनो माँ-बेटों की अब अच्छे से ट्यूनिंग सेट हो गयी…, जब शंकर अपने लंड को बाहर खींचता तब रंगीली अपनी गान्ड को बिस्तेर पर लॅंड करा देती…

फिर जैसे ही वो उपर से धक्का मारता, रंगीली नीचे से अपनी कमर उचका देती जिससे शंकर के मजबूत कठोर जांघों के पाट उसकी गान्ड से टकराते और एक थपाक की आवाज़ कमरे में गूँज उठती…

शंकर का लंड एकदम सुपाडे तक बाहर आता और एक ही झटके में जड़ तक उसकी रसीली चूत में फ़चाक से समा जाता…!

दोनो को इस समय जो मज़ा आरहा था उसे तो वो दोनो ही बता सकते थे…, इस घमासान चुदाई से रंगीली थोड़ी ही देर में अपनी चूत का ढक्कन खोल बैठी…

उसके बाद शंकर ने उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी चुदाई शुरू करदी.. अपना नलका खुलने तक वो उसे दे दनादन चोदता रहा…!

शंकर के दमदार धक्कों से वो पूरी तरह हिल जाती थी, उसकी गोल-मटोल सुडौल चुचियाँ सागर की लहरों की तरह हिलोरें मार रही थी…

जब उसने अपनी माँ की चूत में अपना रस छोड़ा तब तक वो दो बार और झड चुकी थी, और पस्त होकर औंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी,

शंकर का लंड अपनी चूत में लिए हुए ना जाने कब उसकी झपकी लग गयी….!
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10-16-2019, 01:52 PM,
#64
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लेकिन शंकर का लंड अभी भी ढीला नही हुआ था, चूत में डाले हुए ही वो फिर से तुनकने लगा…,

उसने उसे हिलाने की कोशिश की, लेकिन वो तो 3 बार अपना पानी फेंक कर गहरी नींद में डूब चुकी थी…

बेचारे को थक-हार कर अपना खड़ा लंड चूत से बाहर निकालना ही पड़ा.., और अपनी मा के गाल पर एक किस करके लॉडा हाथ में लेकर सोने की कोशिश करने लगा…!

एक दिन सलौनी किसी काम से अपनी दादी के पास ही रुक गयी, फिर भी रंगीली ने शंकर को अकेले ही गौरी के साथ खेलने के लिए भेज दिया…

वो और सुषमा दोनो उसके घर में गौरी के साथ खेल रहे थे…,

ये कोई छुआ-च्छुई का खेल था, गौरी की बारी थी उन दोनो में से किसी एक को छुने की, पहले उसने शंकर को छुने की कोशिश की लेकिन वो हाथ नही आया..

फिर वो अपनी माँ को छुने के लिए लपकी, उससे बचने के लिए वो झटके से पीछे को मूडी, सामने पलग था, सो झपट कर पलंग पर चढ़ गयी…

उसी आपा-धापी में पलंग से नीचे उसने जंप लगाई, क्योंकि गौरी उसके पीछे ही थी, उसी चक्कर में उसकी पीठ में झटका सा लगा…

वो अपनी पीठ पकड़ कर वहीं बैठ गयी और कराहने लगी…, शंकर लपक कर उसके पास आया और बोला – क्या हुआ भाभी, चोट लगी क्या..?

सुषमा कराह कर बोली – हाँ भैया, लगता है झटके से मेरी पीठ चटख गयी…

वो उसे उठाने के लिए आगे बढ़ा, और उसका एक बाजू अपने कंधे पर रख कर बोला – चलो मेरे सहारे पलंग तक चलो, फिर मे माँ को भेजता हूँ, वो कुछ ना कुछ ज़रूर करेगी…!

वो कराह कर बोली – आअहह…मेरे से खड़ा नही हुआ जा रहा.., मुझे गोद में लेकर पलंग तक ले चलो…!

शंकर ने सकुचा कर उसकी तरफ देखा, वो कराहते हुए फिर बोली – आअहह…क्या सोच रहे हो, ले चलो मुझे…म्माआ…आहह…

शंकर ने उसकी पीड़ा समझकर उसे गोद में उठा लिया, सुषमा ने अपनी बाहें उसके गले में लपेट दी, और अपनी गदर रस से भरी चुचियों को उसके सीने में दबाते हुए लिपट गयी…!

चुचियों के मखमली एहसास से उसका लंड खड़ा होने लगा, जिसे सुषमा ने अपनी गान्ड के नीचे महसूस किया, और वो भी उत्तेजित होने लगी…!

बिस्तर पर लिटाकर उसने सुषमा से कहा – आप थोडा आराम करो भाभी, मे अभी माँ को भेजता हूँ, वो आकर आपकी मालिश कर देगी तो आप जल्दी ठीक हो जाओगी, इतना बोलकर वो वहाँ से जाने के लिए उठा…!

सुषमा ने फ़ौरन उसकी कलाई थाम ली, और बोली – गौरी चली जाएगी काकी को बुलाने, तुम यहीं रहो मेरे पास, मुझे बहुत दर्द है पीठ में, आअहह… ज़रा तबतक तुम ही सहला दो…प्लीज़…!

फिर उसने गौरी से कहा – बेटा ज़रा रंगीली काकी से बोल माँ को पीठ में दर्द हो रहा है, शंकर काका उनके पास हैं…!

अपनी माँ की बात सुनकर गौरी दौड़ती हुई रंगीली को बताने चल दी, और वो खुद बिस्तर पर औंधे मुँह लेट गयी……!

गौरी के जाते ही सुषमा ने शंकर से कहा – ज़रा दरवाजा बंद करदो शंकर,
शंकर ने चोंक कर कहा – क्यों भाभी…

सुषमा – अरे बुद्धू, तुम मेरी पीठ की मालिश करोगे, इस बीच कोई आ गया तो खम्खा कुछ ग़लत-सलत सोचेगा..,

उसने जाकर दरवाजा बंद किया, इतने में सुषमा ने अपने ब्लाउस के हुक खोल दिए और अपनी साड़ी को ढीला करके पेटिकोट के नाडे को भी खोल दिया…

जब वो गेट बंद करके लौटा तो सुषमा ने औंधे मुँह लेटे हुए ही फिर कहा – अब देखो तो ज़रा वहाँ ड्रेसिंग टेबल पर मूव रखा होगा, वो ले आओ तो…!

शंकर वहाँ से मूव की ट्यूब ले आया, तो वो फिर बोली – अब ज़रा इसमें से थोडा-थोड़ा अपनी उंगलियों पर लेकर मेरी कमर और पीठ पर मलो…!

शंकर कुछ देर तक असमंजस में खड़ा रहा, उसकी हिम्मत नही हो रही थी कि वो सुषमा के बदन पर मालिश करे, जब कुछ देर तक उसने शुरू नही किया तो वो कराह कर बोली…

अब खड़े क्यों हो शंकर, जल्दी से मेरी पीठ की मालिश करो आअहह…बहुत दर्द है, मेरी पीठ फटी जा रही है दर्द के मारे…माआ….!

उसने हिचकिचाते हुए सुषमा की सारी को पीठ से अलग किया, पिच्छवाड़े से उसके गोरे चिट्टे बदन की बनबत देखकर उसके शरीर में कंप-कपि सी होने लगी…!

उपर से नीचे तक उसकी पतली कमर किसी शंकु के आकर में जिसके बीचो-बीच रीड की गहरी नाली सी…,

उसके बाद उपर को खूब उभरे हुए उसके कूल्हे, दो चट्टानों जैसे जो साड़ी में कसे हुए किसी का भी लंड खड़ा करदें…

अपनी माँ के अलावा अभी तक उसने किसी और स्त्री के बदन को छुआ तक नही था, सो दर्र और उत्तेजना के मारे उसका शरीर काँपने लगा,

हिम्मत जुटाकर उसने थोड़ा सा ट्यूब अपनी उंगलियों पर लिया, और अपने घुटने टेक कर उसके बगल में बैठ गया…

काँपते हाथों से उसने जैसे ही सुषमा की पीठ को छुआ, दोनो के ही शरीर में बिजली के करेंट की तरह एक लहर सी दौड़ गयी...,

शंकर अपनी उंगलियों के पोर से उसकी पीठ पर हल्के हाथ से मूव को मलने लगा, ठंडी-ठंडी मूव क्रीम जिसमें थोड़ी चुन-चुनाहट सी सुषमा को हो रही थी,

वो सिसकते हुए बोली – सस्सिईई…आअहह…शंकर भैया, थोड़ा ज़ोर्से मलो ना, क्या लड़कियों के जैसे हाथ चला रहे हो, और थोड़ा उपर तक मालिश करदो…

शंकर उसकी बात मानकर अपने पूरे हाथ की हथेली से उसकी मालिश करने लगा, वो कराह कर बोली – आअहह…हां ऐसे ही, अब थोड़ा उपर तक भी…

शंकर – लेकिन भाभी, उपर तो आपका ब्लाउस है…

सुषमा – आहह…अपना हाथ तो डालो अंदर…, चला जाएगा वो, जी कड़ा करके शंकर ने जैसे ही अपना हाथ उपर को सरकाया,

उसकी उंगलियाँ और फिर पूरा हाथ ब्लाउस के अंदर घुसता चला गया, शंकर फ़ौरन समझ गया कि आगे से इसके हुक्स खुले हुए हैं..

अंदर हाथ जाते ही उसकी उंगलियाँ जैसे ही उसकी ब्रा की स्ट्रीप से टकराई…, दोनो की ही साँसें तेज हो गयी…, वो कुछ देर उसके आस-पास ही मालिश करने लगा..,

सुषमा एक कामुक भरी आहह.. लेकर बोली – आअहह…शंकर, भैयाअ…मेरी ब्रा के हुक खोलकर पूरी पीठ पर मूव मलो ना…!

उसके मुँह से ब्रा के हुक खोलने की बात सुनते ही शंकर का लंड उसके पाजामे में झटके मारने लगा, उसका मुँह कानों तक लाल हो गया..., हुक पर उसके हाथ बुरी तरह से काँप रहे थे…

उसकी इस मनोदशा को बिस्तर में मुँह छुपाये सुषमा बड़ी अच्छी तरह समझ रही थी, वो खुद उसके हाथों के स्पर्श से बहुत ज़्यादा गरम हो चुकी थी, नीचे उसकी चूत गीली होने लगी थी…

जैसे तैसे करके शंकर ने उसकी ब्रा के हुक खोल दिए, और अब वो थोडा सा ट्यूब लेकर उसकी पूरी पीठ पर मालिश कर रहा था……………!

उधर गौरी जब रंगीली के पास पहुँची, और उसको बताया जो उसकी माँ ने कहने के लिए बोला था,

वो मुस्करा उठी, और उसको अपनी गोद में लेकर बोली – तुम चिंता ना करो बिटिया रानी, वहाँ शंकर काका हैं ना, वो मम्मी को बिल्कुल ठीक कर देंगे..!

चलो अपन लोग सलौनी के पास चलते हैं उसके घर, चलोगि ना…
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10-16-2019, 01:52 PM,
#65
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
घूमने के नाम से हर समय हवेली में क़ैद रहने वाली बच्ची खुश हो गयी, रंगीली उसे अपनी गोद में उठाए अपने घर की ओर चल दी…!

इधर पीठ की मालिश करते हुए शंकर का बुरा हाल था, ब्रा की स्ट्रीप खुल चुकी थी, ब्लाउस चढ़कर गले तक पहुँच चुका था…

अब थोड़ा नीचे भी तो करो, आहह…कमर भी तो दुख रही है…

शंकर अब किसी रोबोट की तरह उसके कहे शब्दों को फॉलो कर रहा था, तभी उसे अपनी माँ के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे…

कोई औरत अपने मुँह से नही बोलती बेटा कि उसे चोदो, उसकी छेड़-च्छाद और इशारे बताते हैं कि वो क्या चाहती है…

ब्रा के हुक्स खुलवाते ही वो समझ चुका था कि सुषमा उससे चुदने के लिए तैयार है, लेकिन फिर भी वो अपनी तरफ से कोई पहल नही करना चाहता था,

वो बस उसकी बात मानता जा रहा था, देखना चाहता था, कि ये खेल और कितनी देर तक चलता है, अब उसे भी इस खेल में मज़ा आने लगा था…, डर अब उत्तेजना में तब्दील हो चुका था…!

उसने अपने हाथ सुषमा की वेल्ली में जमा दिए, मूव को आगे पीछे मलते हुए उसके हाथ साइड तक पहुँचने लगे थे…

आहह…थोड़ा और नीचे तक करो, सुषमा अब बनावटी कराहते हुए जैसे ही बोली – शंकर ने उसे पुच्छने की जहमत नही उठाई कि साड़ी और पेटिकोट नीचे करो,

वो समझ गया कि यहाँ भी ब्लाउस की तरह सब कुछ खुला ही होगा, सो उसने अपने दोनो हाथ उसके दो चट्टानों की तरह उपर को सिर उठाए हुए गान्ड के दोनो पाटों की तरफ बढ़ा दिए…,

गान्ड के उभारों तक हाथों को लेजा कर वो उन्हें अच्छे से रगड़ने लगा…फिर उसने उसकी गान्ड की चोटियों को अपने दोनों पंजों में भींच लिया…

सुषमा बुरी तरह से सिसक पड़ी…सस्सिईईई… आअहह…शंकर… ऐसे ही करो… आअहह…बहुत अच्छा लग रहा है…,

शंकर ने उसके दोनो मटके जैसे चुतड़ों की मालिश करते हुए अपने एक हाथ की उंगली उसकी गान्ड की दरार में फँसा कर उपर से नीचे तक फेरने लगा,

गान्ड के छेद पर उसकी उंगली पहुँचते ही सुषमा की सिसकियाँ तेज हो गयी, सस्सिईईई…आअहह…और आगे तक करो राजा…आहह…बहुत अच्छा लग रहा है…

शंकर ने अपना हाथ पैंटी में और अनादर तक घुसा दिया, और जैसे ही उसकी उंगलियाँ उसकी रस गागर के मुँह पर पहुँची,

गचाक्क्क से उसकी बीच की उंगली अपने आप उसके रस कुंड में डूब गयी.. जैसे किसी रह चलते हुए के सामने अचानक से दलदल आजाए और वो उसमें डूब जाए…!

गचाकककक…से शंकर की उंगली उसके अमृत कुंड के अंदर जाते ही, सुषमा ने अपनी दोनो जांघों को कस कर भींच लिया, जिससे शंकर की उंगली, उसके गरम कुंड में जप्त होकर रह गयी…!

मूव की झंझनाहट से उसकी गरम चूत और ज़्यादा गरम हो गयी, कुछ देर उसे अपनी चूत में मूव की चुन-चुनाहट महसूस हुई, लेकिन जल्दी ही मज़े में वो उसे नज़रअंदाज कर गयी…

शंकर अपनी उंगली को अंदर ही अंदर इधर से उधर गोल-गोल घुमाने लगा…, रस कुंड लबालब भरा होने की वजह से उसकी उंगली को चुत में इधर-उधर चलने से भी हल्की हल्की चप-चॅप जैसी आवाज़ आ रही थी…

उत्तेजना के कारण सुषमा का बुरा हाल हो रहा था, उसकी चूत बुरी तरह पनिया गयी थी, उसे अब अपने आपको रोक पाना मुश्किल होने लगा था…!

वो उत्तेजना की चरम सीमा लाघ कर अपना कामरस छोड़ने ही वाली थी कि तभी शंकर ने अपनी उंगली बाहर निकाल ली और उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगा…!

चपर-चपर उंगली के चूसने की आवाज़ सुनकर सुषमा अपनी सारी संकोच की दीवार तोड़कर उठ बैठी, और वो शंकर से किसी बेल की तरह लिपट गयी…!

आअहह…शंकर, मेरे राजा… मेरे सपनों के राजकुमार…, अब नही रहा जाता मुझसे… चोद डालो अपनी रानी को… ,

वो उसके लंड को मुट्ठी में लेकर बोली - मे अब तुम्हारे इस लंड के बिना नही रह पाउन्गि मेरे हीरो…..!

ये कहकर उसने उसे बिस्तर पर धकेल दिया, और शंकर के उपर सवार होकर उसके कपड़ों पर टूट पड़ी……!

सुषमा के मुँह से खुलेआम चुदने की बात सुनकर शंकर के चेहरे पर स्माइल आ गयी, वो उसके कपड़े उतार रहे हाथों को पकड़कर रोकते हुए बोला –

ये आप क्या कर रही हैं भाभी, मे आपका नौकर हूँ, भला मे आपके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूँ, प्लीज़ छोड़िए मुझे, जाने दीजिए मुझे वरना अनर्थ हो जाएगा…!

वो किसी ख़ूँख़ार बिल्ली की तरह उसके कपड़े उतारते हुए गुर्राई…नही शंकर, तुम मेरे नौकर नही हो, तुम तो मेरे सपनों के राजकुमार हो मेरे राजा.., आज अगर तुमने मेरी प्यास नही बुझाई, तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा…!ना जाने में क्या कर बैठूँगी, मे खुद भी नही जानती.., इसलिए अब ज़्यादा सोचो मत और अपनी इस दासी की प्यास बुझा दो मेरे सरताज…!

ये शब्द कहते-कहते जैसे वो रो ही पड़ी…, उसकी सुनी आँखों जिनमें अब उम्मीद की किरण आती दिखाई देने लगी थी, से दो बूँद पानी की टपक कर शंकर के सीने में दफ़न हो गयी…!

उसे अपनी माँ के कहे शब्द याद आने लगे…, सुषमा बहुत प्यासी औरत है बेटा, उसकी प्यास बुझा दे…!

ये याद करते ही उसने नीचे से उसकी बगलों में अपने हाथ डालकर उसे बिस्तर पर पलट दिया,
और खुद उसके उपर आकर उसके दोनो अनारों को अपने बड़े-बड़े हाथों में थामकर मसलते हुए उसके प्यासे होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए…!

अंधे को मानो दो आँखें मिल गयी हो, सुषमा के बरसों से प्यासे होंठ लरज उठे, उसकी मरमरी बाहों ने शंकर की पीठ पर अपना घेरा बना लिया, और अपने होंठों में जगह देकर उसका साथ देने लगी…!



सुषमा के मीठे लज़ीज़ होंठों की लज़्ज़त पाकर शंकर के होंठों में तरावट आ गई, वो अपनी जीभ उसके मुँह में डालकर उसकी जीभ के साथ अठखेलियाँ करवाने लगा…!

सुषमा के लिए ये सब एकदम अनूठा और आनंद से भरा अनुभव था, जो उसे किसी सपने की तरह लग रहा था,

इस तरह के अनूठे सुख की लालसा वो इस जीवन में त्याग चुकी थी, सो अनायास उसे पाकर दीन दुनिया भूलकर शंकर की बाहों में पिघलने लगी…!

जब उसने सुषमा के होंठों को छोड़ा, उसकी आँखें जो अब तक बंद थी, उसके अलग होते ही खुल गयी, वो अपनी वासना से सुर्ख हो चुकी सवालिया निगाहों से उसे घूर्ने लगी, उसे शंकर का यूँ रुकना पसंद नही आया…!

शंकर ने उसकी आँखों में झंकार पुछा – एक बार और सोच लो भाभी…, ऐसा ना हो बाद में आपको कोई पश्चाताप हो…!

सुषमा उसके हाथों को अपने उभारों पर रख कर बोली – पश्चाताप की आग में तो मे आजतक जलती आरहि हूँ उस आग को बुझा दो शंकर, तुम्हारी माँ भी यही चाहती हैं…!
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10-16-2019, 01:52 PM,
#66
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर ने उसके आमों को मसल्ते हुए मुस्करा कर कहा – फिर ठीक है मेरी जान, हो जाओ तैयार एक नये सफ़र के लिए…, आज मे आपको वो..वो दुनिया दिखाउंगा, जिनकी आपने कल्पना भी नही की होगी…!

सुषमा – हां मेरे राजकुमार, मे तुम्हारे इस ऊडनखटोले में बैठकर आसमानों की शैर पर जाना चाहती हूँ, ले चलोगे ना मुझे…!

ये कहकर वो दोनो एक दूसरे से चिपक गये…!

दोनो ने अपने-अपने कपड़े निकाल फेंके…, सुषमा की नंगी गोरी सुडौल गोल-गोल चुचियों को देखकर शंकर उनपर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा..

उसने अपने कठोर हाथों में भरकर ज़ोर्से मसल दिया…, दर्द की एक मीठी सी लहर सुषमा के बदन में दौड़ पड़ी.., वो कराह कर बोली –

आअहह….आराम से मेरे राजा…दर्द होता है.., लेकिन शंकर पर उसकी कराह का कोई असर नही हुआ और वो उन्हें पूरे जोश के साथ मीँजने लगा…,

मर्दाने कठोर हाथों की मीजाई से सुषमा की दर्द मिश्रित सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी, उसकी रस गागर छलकने लगी…,

एक हाथ से चुचि मींजते हुए दूसरे अनार को उसने अपने मुँह में भर लिया और चुकुर-चूकर उसका रस चूसने लगा,

बीच-बीच में वो उसके कड़क हो चुके ब्राउन कलर के निपल्स को भी मरोड़ देता या दाँतों में दबाकर हल्के से काटने लगता…

इसी बीच उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उसके रस कुंड को अपनी मुट्ठी में भर कर मसल दिया…

तीन तरफ के हमले से सुषमा को बचाव का कोई रास्ता नज़र नही आया, हारकर उसकी चूत ने अपना कामरस छोड़ दिया..,

वो शंकर के मर्दाना हमलों के आगे नतमश्तक होकर हाँफने लगी…

फिर शंकर ने अपना लंड सुषमा के हाथ में देकर कहा – इसकी कुछ सेवा तो करो भाभी…

गरम हथौड़े जैसा लंड अपने हाथ में लेकर सुषमा की आँखें चौड़ी हो गयी, उसने आजतक ऐसे सुंदर और तगड़े लंड की कभी कल्पना भी नही की थी,

उसने तो आज तक कल्लू की लुल्ली ही देखी थी, सो शंकर के मतवाले सुर्ख दहक्ते हुए गेंहूआ रंग के 7.5” लंबे और खूब मोटे किसी खूँटे जैसे लंड को देख कर उसकी मुनिया ने डर के मारे अपने होंठ फिर से गीले कर दिए…!

वो उसे अपने हाथ से सहलाते हुए बोली – हाईए राम… ये तो अभी से इतना बड़ा है.., आगे चलकर और कितने रूप बदलेगा…!

बिना पीरियड के ही बच्चेदानी का मुँह पकड़कर उसमें अपना बीज़ उडेल देगा ये.., उसकी बातें सुनकर शंकर मन ही मन मुस्करा रहा था…

सुषमा ने उसे चूमकर कहा – थोड़ा आराम से डालना इसे मेरे अंदर, इतना बड़ा पहली बार ले रही हूँ.. हां..!

शंकर ने अपने मूसल को पकड़ कर उसके होंठों से लगाते हुए कहा – पहले इसे मुँह में लेकर चूसो रानी..…, अभी से अंदर लेने के लिए क्यों उतबली हो रही हो भाभी मेरी जान…!

सुषमा उसे कल्लू जैसा ही समझ रही थी सो बोली – कहीं मुँह में लेते ही इसने अपना जहर उगल दिया तो, मे तो प्यासी की प्यासी ही रह जाउन्गि…!

उसकी ये बात सुनकर शंकर का दिमाग़ भिन्ना गया, उसने अपना लंड उसके हाथ से खींच लिया और झिड़कते हुए बोला - छोड़ो अगर नही लेना है तो, मे चला अपने घर…, कितने सवाल करती हो ?

सुषमा उसकी घुड़की सुनते ही मिमियाने लगी, उसने बिना कुछ कहे फ़ौरन उसे फिर से पकड़ कर अपने मुँह में गडप्प कर लिया, और लॉलीपोप समझ कर चूसने लगी…!



कुछ ही देर में उसे पता चल गया कि लंड चूसने का भी अपना अलग ही मज़ा है, भले ही लंड उसके मुँह में चल रहा था, लेकिन उसका असर उसकी चूत में होने लगा, वो अपने पंजों पर बैठी बूँद-बूँद करके रिसने लगी…!

अब वो उसे मुँह से निकालने को राज़ी ही नही थी, लेकिन शंकर ने उसे रोक दिया, और उसे पलंग पर लिटाकर खुद उसकी टाँगों के बीच बैठकर उसकी रस से सराबोर चूत में अपना मुँह घुसा दिया…!

एक इतनी बड़ी बेटी की माँ सुषमा को, एक टीनेज लड़के से और ना जाने कितना सीखने को मिलने वाला था आज, चूत चटवा कर तो वो मानो सचमुच ही आसमानो की शैर करने निकल पड़ी थी…!

जिंदगी में पहली बार किसी के होंठ उसकी चूत की फांकों को नसीब हुए थे… उसके मुँह से कामुक सिसकियों की मानो बाढ़ सी आ गई उस कमरे में…!



शंकर की जीभ और उंगली के कमाल ने उसे बिस्तर पर ही पड़े-पड़े कत्थक करने पर मजबूर कर दिया…

वो अपने मुँह से कामुक सिसकियाँ भरती हुई अपनी कमर को लहराने लगी…,

शंकर की चतुर, चटोरी जीभ ने कुछ ही देर में उसे फिर एक बार बुरी तरह से झडा दिया, और खुद उसके सारे रस को चूस गया…!

उसके चूतरस को चाटते हुए एक लंबा सा चटकारा लेकर शंकर बोला – बहुत टेस्टी हो भाभी.., मज़ा आ गया आपका रस पीकर…!

उसकी ऐसी कामुक बातें सुनकर सुषमा शर्म से दोहरी हो गयी, लपक कर वो उसके चौड़े कठोर सीने ले लिपट गयी…,

और उसके हल्के रोंगटे वाले सीने को चूमते हुए बोली – तुम कोई जादूगर तो नही… शंकर मेरे राजा… आइ लव यू..!!

शंकर ने उसे अपनी गोद में खींचकर उसके होंठों को चूमते हुए कहा – आइ लव यू टू मेरी जान भाभी.., आप वाकाई मेरे मन को भा गयी हो…!

मे कोई जादू-वादू नही जानता, ये तो आपके इस हुष्ण का जादू है जो मेरे सिर चढ़ कर ये सब करने को मजबूर कर रहा है…!

सुषमा किसी छोटी बच्ची की तरह उसकी गोद में बैठी उसके सीने को सहलाते हुए बोली – क्या सच में तुम्हें मे इतनी अच्छी लगती हूँ..!

शंकर ने उसकी गान्ड के छेद को अपनी एक उंगली के पोर से सहलाते हुए कहा – हां भाभी, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो..,

जब माँ ने मुझे आपके पास आने के लिए कहा तो मुझे बहुत खुशी हुई थी….!

खैर छोड़ो ये सब बातें और अब तैयार हो जाओ असली सफ़र के लिए…,

ये कह कर उसने फिर से उसे पलंग पर लिटा दिया, और उसकी टाँगों को चौड़ी करके अपने गरमा गरम लंड को उसकी गीली चूत की फांकों के उपर रख कर रगड़ने लगा…!

लंड की गर्मी पाकर उसकी झड़ी हुई मुनिया फिर से गरम होने लगी…!
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10-16-2019, 01:52 PM,
#67
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उसका लंड आधे घंटे से अपने लिए सुरंग की तलाश में बाबला सा होकर बुरी तरह से किसी घोड़ा पछाड़ नाग की तरह लहरा रहा था…

उसके चारों तरफ लंबी और मोटी मोटी नसें उभर आई थी…, देखने से ही वो किसी लोहे की रोड जैसा सख़्त लग रहा था…

उसकी कठोरता की एक झलक पाते ही सुषमा को झूर-झूरी सी आ गयी…वो सिसक कर बोली – अब डाल दो इसे आराम से, और ना सताओ राजा…!

सुषमा का इतना कहना ही था कि उसने उसकी फांकों को खोलकर अपने सुपाडे को उसके छोटे से छेद पर रखा और एक तीव्र झटका अपनी कमर में लगा दिया…!

आआईयईई……..म्म्माआआआआअ………माररर्ररर…गाइ.. रीईईईईई…,

शंकर ने फ़ौरन अपनी हथेली उसके मुँह पर जमा दी, वरना कुछ ही पलों में वो पूरी हवेली को इकट्ठा कर लेती उस कमरे में…!

उसका आधा लंड ही अंदर गया था अभी, लेकिन सालों पहले बेटी को जन्म देने के बाद इतनी बड़ी चीज़ चूत में कभी गयी ही नही थी, उसका छेद सिकुड़कर छोटा हो गया था,

आज एक तगड़े झटके से शंकर के खूँटे ने उसकी चूत को चीर कर रख दिया था…!

उसकी आँखों में पानी आ गया, वो इशारों से ही उसको रुकने के लिए मिन्नतें करने लगी, शंकर ने उसके मुँह से अपना हाथ हटाया, तो वो कराहते हुए शिकायत भरे स्वर में बोली –
हाए रीए….बहुत निर्दयी हो तुम्म…आराम से नही कर सकते थे, मेरी जान ही निकाल दी तुमने तो..,

शंकर – मेने सोचा आप एक बेटी की माँ हो तो इतना तो झेल ही लोगि…!

सुषमा कराहते हुए बोली – बेटी को पैदा हुए सालों हो गये, अब ये तुम्हारा सोट जैसा मूसल, इसने फाड़के रख दी मेरी छोटी सी मुनिया....,

शंकर – क्यों कल्लू भैया नही चोदते क्या आपको…?

सुषमा – उनकी उंगली जैसी लुल्ली से क्या फरक पड़ता है.., पता भी नही चलता है गीली चूत में कुछ जा भी रहा है या नही..

शंकर – कोई बात नही, अगर आपको मेरा लंड लेने में ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है तो मे निकाल लेता हूँ इसे, आप किसी छोटे लंड से ही चुदवा लेना….,

इतना कहकर वो अपने लंड को उसकी चूत से बाहर निकालने लगा……..!

सुषमा ने फ़ौरन अपने हाथ उसकी पीठ पर कस लिए और बोली – मेने आराम से डालने को कहा था राजा जी इसे निकालने को नही,

और तुम क्या मुझे रंडी समझते हो जो किसी से भी चुदवा लूँगी…हां ! तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो,

मे तुम्हें अपना दिल दे चुकी हूँ इसलिए तुम्हारा अंश अपनी कोख में चाहती हूँ.... अब करो धीरे-धीरे प्लीज़……..,

शंकर ने अपने लौडे को बड़े आराम से सुपाडे तक बाहर खींचा, कसी हुई चूत की अन्द्रुनि स्किन भी उसके साथ बाहर को खिचने लगी…,

ऐसा लग रहा था मानो सुषमा की चूत अपने प्रियतम से जुदा ही नही होना चाहती हो…, बाहर को निकालते हुए भी उसकी कराह निकल गयी…

उसने जल्दी ही फिर से एक हल्का सा धक्का लगा दिया, लंड अपनी पहली मंज़िल से दो इंच और आगे तक सरक गया, वो फिर कराह उठी लेकिन इस बार उसने कोई प्रतिरोध नही किया..

एक-दो प्रयासों के बाद शंकर का पूरा लंड सुषमा की कसी हुई चूत में समा गया, कुछ देर वो एक दूसरे से बस यौंही चिपके पड़े रहे, एक दूसरे के बदन को सहलाते रहे..!

पूरा लंड अंदर पहुँचते ही शंकर ने सुषमा की एक टाँग को उसके सीने से सटा दिया, और फिर फर्स्ट गियर डालकर गाड़ी को आगे बढ़ाया,

इस पोज़िशन में उसका लंड सुषमा को और ज़्यादा गहराई में एकदम उसकी बच्चे दानी के अंदर तक जाता महसूस हुआ..,

उसने कस कर बिस्तर की चादर को अपनी मुत्ठियों में जाकड़ लिया और अपने होंठों को भींचकर दर्द को पीने की कोशिश करने लगी…

कुछ देर शंकर ने गाड़ी को फर्स्ट गियर में ही चलाया, फिर जब देखा कि अब वो उसे सहन कर पा रही है उसने गियर चेंज किए, दूसरा, तीसरा और फिर चौथा, आख़िर में टॉप गियर डालकर जैसे ही उसने एग्ज़िलेटर दिया…



सुषमा की मर्सिडीज का एंजिन घन-घानकर पानी माँगने लगा, वो चक्कर्घिन्नि होकर 5 मिनिट में ही भल-बला कर पानी फेंकने लगी…!

लेकिन 5 मिनिट में तो शंकर का पिस्टन रबां भी नही हो पाया था, सो उसकी रस से लबालब चूत में अपने करार धक्कों की बरसात करता ही रहा…

फुच्च..फुच्च..करके उसकी चूत का सारा पानी कुछ धक्कों में ही बाहर आ गया, जिससे अब उसकी चूत सूखने लगी,

कसी हुई सुखी चूत में शंकर के मूसल के धक्कों ने सुषमा को फिर से करहने पर मजबूर कर दिया, उसकी चूत में जलन सी होने लगी…!

वो उसके सीने पर अपनी हथेली जमाकर कराहते हुए बोली – आअहह…थोड़ा रूको शंकर, मेरी चूत में जलन हो रही है, देखो ना कैसा जकड लिया है तुम्हारे लंड को इसकी फांकों ने…

शंकर ने अपना लंड बाहर खींच लिया, और उसकी कमर में हाथ डालकर उसे घोड़ी बना दिया,

फिर पीछे से उसकी गोल-गोल, गद्देदार गान्ड के पाटों पर थपकी देकर उनके बीच अपना मुँह डालकर उसकी गान्ड के छेद को अपनी जीभ से कुरेदने लगा,



गान्ड के छेद का करेंट सीधा उसकी चूत में लगा और वो फिर से गीली होने लगी, कुछ देर उसकी गान्ड और चूत को चाट कर उसने पीछे से ही अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया…!
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10-16-2019, 01:52 PM,
#68
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
एक ही झटके से पूरा लंड लेने में सुषमा को नानी याद आ गई, धक्का ना झेल पाने की वजह से वो उंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी,

शंकर ने उसकी गान्ड को नीचे हाथ डालकर थोड़ा उपर उठाया और उसके गोल-गोल गान्ड के पाटों पर धप-धप अपनी जाघो से थप्पड़ जैसे मारने लगा,

दे दनादन उसका पिस्टन सुषमा के सिलिंडर में अंदर बाहर होने लगा..

सुषमा के मुलायम उभरे हुए चूतड़ शंकर की जांघों के पड़ते ही और ज़्यादा उभर कर उपर को उठ जाते,



धक्कों की मार से सुषमा का बुरा हाल था, उसका पूरा बदन भूकंप के झटकों की तरह हिलने लगा..वो ज़्यादा देर नही झेल पाई ये मार और एक बार फिर से झड गयी,

लेकिन अब वो असली चुदाई को समझ चुकी थी, आज उसे अपने जीवन की बगिया हरी भरी होती दिखाई दे रही थी,

वो जैसे तैसे करके अपने साथी के मज़े तक अपने आपको संभालना चाहती थी…

करीब आधे घंटे की ताबड-तोड़ चुदाई के बाद शंकर के अंदर का लावा उबलने लगा…,

वो किसी बिगड़ैल घोड़े की तरह हिन-हिनाकार सुषमा की गान्ड से अपने चौड़े कसरती जांघों के पाटों को चिपकाते हुए झड़ने लगा….

उसके गरम वीर्य की बौछार अपनी बच्चे दानी के अंदर महसूस करती सुषमा अपार सुख की अनुभूति कर रही थी…

छटांक भर देसी घी उसकी चूत में उडेल कर वो उसकी पीठ पर ही लद गया…!

सुषमा की चूत किसी राइफल की गोलियों की बौछार जैसी लंड की पिचकारियों को अपनी बच्चेदानी में महसूस करके एकदम से शांत पड़ गयी,

उसकी चूत ने आज इतने अंदर तक जिंदगी की पहली बरसात को महसूस किया था, वो खुशी के मारे फूलने-पिच्कने लगी,
उसकी फांकों ने शंकर के लंड को कस कर जकड लिया मानो अपने प्रियतम को खुश करने के लिए वो उसका चुंबन ले रही हो…!

एक असली मर्द के दमदार लंड की मार से वो बेहोशी जैसी हालत में पहुँच गयी थी, उसे होश ही नही रहा कि शंकर जैसा बलिष्ठ नौजवान कितनी ही देर से उसके उपर पड़ा हुआ है..

फिर शंकर ने साइड में लुढ़क कर उसे हिलाया, दो-चार बार हिलाने के बाद वो कुन्मुनाई, तो उसने पुछा – क्या हुआ भाभी..? आप ठीक तो हो ना..!

वो अपनी उसी खुमारी में बोली – हुउंम्म…मे ठीक हूँ, थोड़ा रूको..!

लगभग 15 मिनिट के बाद उसने अपनी आँखें खोली, पलट कर वो उसके सीने से लिपटकर फफक-फफक कर रोने लगी…!

शंकर की डर के मारे गान्ड फट गयी, वो सोचने लगा, कि साला कहीं ज़्यादा तो नही फट गयी इसकी चूत,

वो डरते हुए बोला – सॉरी भाभी, मुझे माफ़ करदो, मे अपने आप पर कंट्रोल नही कर पाया…!

सुषमा ने अपनी आँसुओं भरी आँखों से उसकी तरफ देखा, फिर उसके होंठों को चूमकर उसने अपना मुँह उसके सीने में छुपाकर बोली – थॅंक यू शंकर, मेरे शहज़ादे…

तुमने आज मेरे जीवन की सारी हसरतें पूरी करदी, मुझे एक संपूर्ण औरत होने का एहसास दिलाकर मेरे जीवन में फिर से हरियाली ला दी…,

तुम्हें सॉरी कहने की ज़रूरत नही है, तुम एक सच्चे जवा मर्द हो जो किसी भी औरत को अपनी मर्दानगी के बलबूते पर अपना बना सकते हो,

असली मर्द भी वही है, जो औरत को अपने लंड के दम पर कंट्रोल कर सके, आज ये सुषमा इस हवेली की होने वाली मालकिन तुम्हें वचन देती है, कि तुम जिस चीज़ पर अपना हाथ रख दोगे वो तुम्हारी हो जाएगी…!

शंकर ने उसकी गान्ड सहलाते हुए कहा – मुझे आपकी खुशी से बढ़कर और कुछ नही चाहिए भाभी..,

शंकर की ये बात सुनकर सुषमा उसके गले से लिपट गयी और गद गद होते हुए बोली – ओह्ह्ह…शंकर , तुम सच में बहुत नेक दिल हो, बस मुझे ऐसे ही प्यार करते रहना मेरे साजन…!

अभी वो दोनो और ना जाने कितनी देर ऐसे ही लिपटे हुए बातें करते रहते, कि तभी दरवाजे पर हल्की सी दुस्तक हुई, सुषमा समझ गयी कि ये रंगीली काकी का संकेत है..

सो वो झटपट उठ खड़ी हुई, अपने कपड़े पहने और शंकर को भी कपड़े पहनने को कहा…

गेट खोलते ही सामने गौरी को गोद में लिए रंगीली खड़ी मुस्करा रही थी, शंकर अपने कपड़े पहन चुका था..,

रंगीली गौरी को उसकी गोद में देते हुए उसके कान में फुसफुसा कर बोली – काम बना बहू रानी..?

सुषमा ने शरमा कर अपनी गार्डेन नीची करके हां में अपना सिर हिला दिया,

रंगीली की कौली भरकर वो फफक-फफक कर रो पड़ी, और सुबक्ते हुए बोली – धन्यवाद काकी, आपने मेरा जीवन संवार दिया…!

रंगीली ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – बस अब खुस रहा करो बहू, एशावर ने चाहा तो जल्दी ही आपकी गोद में एक नन्हा मुन्ना राजकुमार खेलेगा…!

फिर शंकर को देख कर थोड़ी उँची आवाज़ में बोली – अब तू यहाँ कब तक खड़ा रहेगा नलायक, जा अपनी पढ़ाई कर सलौनी के साथ...

शंकर मुस्कराते हुए अपनी नज़र झुककर वहाँ से जाने लगा…,

वो दोनो भी कुछ देर और इधर-उधर की बातें करती रही, उसके बाद रंगीली भी अपने घर चली आई……….!

सुषमा को जन्नत की सैर कराकर आज शंकर को ना जाने क्यों बड़ी खुशी महसूस हो रही थी, सुषमा जैसी सुंदर और मस्त जवान प्यासी औरत के साथ चुदाई करने में उसे बहुत मज़ा आया था…!

चुदाई के वक़्त जो संकोच की दीवार वो अपनी माँ के साथ महसूस करता था, वैसी कोई दूबिधा सुषमा को चोदने में उसे पेश नही आई…,

कुछ देर पहले सुषमा के साथ बिताए हसीन लम्हों को याद कर-करके वो रोमांचित हो रहा था, पाजामा में उसका लंड अंडरवेर फाड़कर निकलने की कोशिश करने लगा…

रास्ते में उसे ये डर भी सता रहा था, की खुदा-ना-ख़स्ता सामने से कोई आते-जाते देखेगा तो क्या सोचेगा उसके बारे में..

इन्ही ख़यालों में खोया हुआ वो अपने घर सलौनी के पास पढ़ने के लिए जा रहा था…,

अपना तंबू छुपाने के लिए उसने उसके टोपे को पेट से सटा कर उसके उपर अपने अंडरवेर की एलास्टिक चढ़ा ली…

घर के बाहर सलौनी अपनी एक सहेली लल्ली के साथ गप्पें लगा रही थी, लल्ली स्कूल तो नही जाती थी, मात्र 8वी क्लास के बाद ही वो पढ़ाई छोड़ चुकी थी,

वैसे वो उम्र में सलौनी से एक साल बड़ी थी, लेकिन लंबाई में वो सलौनी से भी कुछ कम दिखती थी,

उसके शरीर के उठान सलौनी की तुलना में कुछ ज़्यादा ही थे, 5’2” की लल्ली का बदन 32-24-32 का था, बेहद पतली कमर के उपर और नीचे का हिस्सा किसी भी मर्द को चोदने का निमंत्रण देने को काफ़ी था…!

एक नयी जवान होती लल्ली ना ज़्यादा गोरी और ना ही ज़्यादा साँवली, मध्यम गेंहूआ रंग की वो ज़्यादातर घांघरा चोली में ही दिखाई देती थी…

घर का काम-काज निपटाने के बाद उसका ज़्यादा तर समय सहेलियों के साथ गप्पें मारना ही होता था, जिसमें ज़्यादातर बातें नयी उम्र के हिसाब से चुदाई से संबंधित क़िस्सों पर ही आधारित होती थी…

इस समय भी वो दोनो चबूतरे पर रास्ते की तरफ पैर लटकाए बैठी आपस में ऐसी ही कुछ बातें कर रही थी..,

लल्ली अपने काका-काकी की चुदाई के बारे में सलौनी को बता रही थी, जो उसने छुपकर उनके कोठे के रोशदान से देखी थी…

चुदाई का आँखों देखा हाल सुनकर और सुना कर दोनो की कोमल भावनाएँ भड़कने लगी थी, सलौनी की मुनिया अप्रत्याशित रूप से गीली होने लगी थी,

वहीं लल्ली जो पहले से ही अपनी उंगलियों का जादू चलाना सीख चुकी थी उसकी मुनिया में कुछ ज़्यादा ही गीलापन आ चुका था,

जिसे वो अपने लहंगे को चूत के मुँह पर दबाकर उसे टपकने से रोकने लगी…

तभी उन दोनो की नज़र शंकर पर पड़ी, जो अपनी ही धुन में सामने से चला आ रहा था…,

उसपर नज़र पड़ते ही लल्ली के मुँह से आअहह… निकल गयी, जिसे सुनते ही सलौनी ने उससे पूछा…

क्या हुआ लल्ली की बच्ची, तू ऐसे क्यों कर रही है…?

लल्ली – तेरे भाई को देख कर मेरी मुनिया फुदकने लगी है यार.., काश तेरे भाई का लंड मुझे मिल जाए, मे तुझे गॅरेंटी देती हूँ, सारी रात उसे अपनी टाँगों में जकड़े रहूंगी…!

सलौनी ने उसे झिड़कते हुए कहा – तू कोशिश भी मत करना, मेरा भाई ऐसा वैसा नही है…, मुँह नोच लूँगी तेरा अगर मन में ऐसा वैसा ख़याल भी लाई तो…!

लल्ली हँसते हुए बोली – क्यों री, तू तो ऐसे भड़क रही है जैसे तूने ही उसके लंड का बैनामा करा लिया हो..,

सलौनी उसे मारने झपट पड़ी – साली छिनाल, रंडी, कुतिया, क्या बकवास कर रही है, वो मेरा भाई है…,

लल्ली हँसते हुए अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और उसे छेड़ने वाले अंदाज में बोली – भाई है तो क्या उसका लंड तेरी चूत के लिए मना थोड़ी कर देगा…!
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10-16-2019, 01:52 PM,
#69
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
इतनी गंदी बात सुनकर सलौनी उसे मारने दौड़ पड़ी…, लल्ली भागते हुए सामने से आ रहे शंकर के पीछे छिप्ने लगी, और इसी बहाने से वो उसके बदन से चिपक गयी…!

उसके बिना ब्रा के कच्चे कच्चे अमरूद शंकर की कठोर पीठ में गढ़ गये, जिनका मखमली स्पर्श पाकर दोनो के ही शरीर में करेंट की लहर दौड़ गयी…

सामने से उसके पीछे-पीछे भाग कर आती सलौनी ने शंकर के सामने से ही अपने हाथ बढाकर लल्ली को पकड़ना चाहा…

इस चक्कर में वो शंकर से सट गयी, उपर को चढ़ा हुआ उसका खूँटा सलौनी के पेट पर लगा.., पहले तो वो ये समझ नही पाई कि ये रोड जैसी चीज़ भाई ने यहाँ क्यों लगा रखी है…

लेकिन फिर जैसे ही उसके दिमाग़ ने काम करना शुरू किया, वो फ़ौरन समझ गयी कि ये भाई का हथियार है,

ये समझते ही वो उत्तेजना से भर उठी, और जान बूझकर और ज़्यादा लल्ली को पकड़ने की कोशिश करने लगी,

उधर लल्ली ने भी शंकर को पीछे से कस कर जकड़ा हुआ था, और वो उपर नीचे, इधर-उधर होकर अपनी कुँवारी कच्ची चुचियों को उसकी कठोर पीठ से रगड़ने लगी…

शंकर को पक्का लगने लगा, कि ये दोनो कच्ची कलियाँ उसके साथ मज़ा ले रही हैं.., वो जल्दी ही इन दोनो से अलग होना चाहता था,

क्योंकि उसके लंड का टेंपरेचर तो पहले से ही हाइ लेवेल पर था, अब ये दोनो… उउउफ़फ्फ़… भेन्चोद कहीं फट ही ना जाए,
सो उसने दोनो के बाजू पकड़ कर अपने से अलग किया और सलौनी से बोला – क्या हुआ सलौनी, क्यों उधम मचा रही हो तुम दोनो..? क्यों पीटना चाहती है इसे..?

अब सलौनी बेचारी अपने भाई को क्या जबाब दे कि वो उसे क्यों मारने भागी थी..?

वो अपनी गीली हो चुकी मुनिया को टाँगों से भींचकर नज़र झुकाए बोली –

कुछ नही भाई, बस ऐसे ही हम खेल रहे थे, तू बता कैसे आया इधर..?

शंकर – चल ! अब खेलना बंद कर, चलकर पढ़ाई करते हैं कुछ देर…!

चौक में दोनो भाई-बेहन एक चारपाई डालकर पढ़ने बैठ गये, बीच-बीच में शंकर का ध्यान कुछ देर पहले की गयी सुषमा की चुदाई पर चला जाता था, ना चाहते हुए ही उसका लंड पाजामा के अंदर तुनकने लगता…

सामने बैठी सलौनी की नज़र जब उसके तूनकते तंबू पर पड़ती तो उसकी मुनिया भी सुर-सुराने लगती, अब बेचारी भाई के सामने खुजा भी तो नही सकती थी, सो उसने अपनी जांघों को कस कर दबा लिया…

उधर शंकर की नज़र अपनी बेहन की नज़रों का पीछा करते हुए अपने तंबू पर पड़ी, वो बुरी तरह सकपका गया, और उसने भी अपने तंबू को अपनी टाँगों के बीच छुपाने की कोशिश की…!

अपनी झेंप मिटाने के लिए उसने सलौनी से बात करना मुनासिब समझा, सो बोला –
ये लल्ली के साथ ऐसी क्या बातें हो रही थी, सो तू उसे मारने दौड़ पड़ी…?

सलौनी ने जब भाई को अपना तंबू छुपाकर बात शुरू करते देखा तो उसने अपनी नज़रें झुका ली और बोली – कुछ नही भैया वो..हम..वो..आपस में ऐसी ही कुछ बातें कर रहे थे…!

शंकर – वोही तो बता, आख़िर ऐसी क्या बात हुई जो तू उसे मारने दौड़ी.., ?

सलौनी – छोड़ ना भाई, क्या करेगा जानकार, हम लड़कियों की भी अपनी अलग ही बातें होती हैं…!

शंकर- अच्छा मे भी तो सुनू, ऐसी क्या अलग तरह की बातें होती हैं, जो आपस में मार-पीट तक की नौबत आ जाती है…!

सलौनी – वो..ना..वो..तेरे बारे में गंदी-सन्दि बातें कर रही थी…!

शंकर – मेरे बारे में..? क्या गंदी बातें कर रही थी..?

सलौनी – मे नही बता सकती.., तू चुप चाप मेरा ये सवाल हाल कर्दे वरना मे चली दादी के पास…!

शंकर समझ गया, कि कुछ तो ये लोग उसी के बारे में बातें कर रही होंगी, जो सलौनी को अच्छी नही लगी होगी, और वो उसे मारने दौड़ी..,

लेकिन अब वो उन बातों से ध्यान हटाकर उसका सम सॉल्व करने लगा…! कुछ देर उसे पढ़ाकर दिन छिप्ते ही वो अपनी माँ के पास वापस लौट आया…!

रात को खाने के बाद दोनो माँ-बेटे सोने की तैयारी में थे, एक ही बिस्तेर पर शंकर अपने ही विचारों में गुम सोने की कोशिश कर रहा था, तभी
रंगीली ने अपना हाथ उसके गाल पर रखा और उसका मुँह अपनी तरफ करके बोली-

तो आज सुषमा भाभी के साथ क्या-क्या किया मेरे लाल ने…?

शंकर ने एक नज़र अपनी माँ के चेहरे पर डाली, उसकी चेहरे की मुस्कराहट और आँखों की चंचलता देखकर वो समझ गया, क़ि माँ मज़े लेने के मूड में है…

सो उसकी एक चुचि सहलाते हुए बोला – गौरी तुझे बुलाने आई थी, फिर तू कहाँ चली गयी थी, पता है सुषमा भाभी को कितना दर्द था पीठ में…!

रंगीली ने उसकी गान्ड पर हाथ लगाकर उसने अपनी ओर खींचकर अपने से सटा लिया और अपनी एक टाँग उसके उपर रख कर बोली – अच्छा, मुझे तो ऐसा कुछ भी नही लगा कि उसे कहीं दर्द हो…?

शंकर ने मुस्कराते हुए अपनी माँ की चोली के बटन खोलते हुए कहा – वो तो मेने ही फिर मूव की मालिश कर दी थी,

रंगीली ने अपनी चूत को उसके लंड से चिपकते हुए कहा – वोही तो पुच्छ रही हूँ, मूव की मालिश कैसे की..!

शंकर उसे शुरू से सारी बातें बताने लगा…, वो जैसे जैसे बताता जा रहा था, दोनो के शरीरों में गर्मी बढ़ने लगी, हाथ अपना काम करने में लगे थे, और देखते देखते दोनो के बदन से कपड़े अलग हो चुके थे…!
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10-16-2019, 01:52 PM,
#70
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली ने शंकर के सिर पर हाथ रखकर उसे नीचे को दबा दिया, इसका मतलब था वो अपनी चूत चटवाना चाहती है…,

फिर क्या था, इशारा पाकर चूत का चटोरा हो चुका शंकर, लग गया अपनी माँ की चूत का स्वाद लेने, और अपनी जीभ और उंगली के कमाल से 5 मिनिट में ही उसे झडा दिया…!

रोज़ की तरह जैसे ही वो उसे चोदने के लिए तैयार हुआ, रंगीली ने उसका लंड जो अब किसी रोड की तरह सख़्त हो चुका था अपनी मुट्ठी में पकड़ कर बोली –

आज नही बेटा, आज मेरा मन नही है चुदने का, तू जा उपर चौबारे में सुषमा तेरा इंतेज़ार कर रही होगी, उसकी जम के प्यास बुझा दे जा…!

शंकर अपना लंड पकड़े चूतिया की तरह अपनी माँ की शक्ल देखता ही रह गया…!

रंगीली ने उसकी गान्ड पर चपत लगाते हुए कहा – ऐसे क्या देख रहा है, जा ना, एक ताज़ी चुदि चूत तेरे इस मूसल का इंतेज़ार कर रही है, जल्दी जा…, बेचारी इंतेज़ार करते-करते कहीं नीचे ना आजाए…,

अपनी माँ की बात सुन खाली पाजामा चढ़ाकर वो वहाँ से उपर जाने वाले झीने (स्टेर्स) की तरफ दबे पाँव बढ़ गया…!

घर का चौबारा : छत को जाने वाली सीडीयों को कवर करता एक कमरा नुमा जिसमें इतनी जगह होती है कि पलग बिछाकर सोया भी जा सके,

लेकिन लाला की हवेली के चौबारे पे दो और कमरे बने हुए थे, लेकिन कोई सोने नही जाता था, क्योंकि नीचे ही इतनी ज़्यादा जगह थी कि एक बारात रह सके…!

शंकर का लंड अपनी माँ के द्वारा कलपद कर देने से बुरी तरह बग़ावत करने लगा था, वो उसे जैसे-तैसे अपनी मुट्ठी में क़ैद करके उपर चौबारे में पहुँचा…,

सुषमा उसे चौबारे में कहीं नज़र नही आई, फिर वो उसे बाहर खुली छत पर आकर ढूँढने लगा, मुँह से आवाज़ निकाल कर अपनी उपस्थिति किसी और को बताना नही चाहता था…!

अंत में कमरों के पीछे जाकर उसे सुषमा छज्लि के साथ खड़ी दिखाई दी, जो तारों भरे नीले आसमान में देख रही थी…!

बारिश के मौसम के बाद आसमान एक दम धुल सा जाता है, उसकी आभा वाकई के साल के दिनो से बढ़ जाती है…!

शंकर के दिमाग़ में शरारत सूझी, वो दबे पाँव उसके पीछे जा पहुँचा, और पीछे से ही उसे अपनी बाहों में भर लिया, उसके सोटे जैसा लंड उसकी गान्ड की दरार में घुस गया…!

अनायास ही अपने बदन को किसी मर्द की मजबूत बाहों में जकड़े जाने पर सुषमा बुरी तरह से घबरा गयी, उसका बदन थर-थर काँपने लगा…!

फिर जैसे ही उसे पता लगा कि ये मजबूत बाहें किसी और की नही उसके नये प्रेमी की हैं, उसके लंड की चुभन अपनी गान्ड की दरार में महसूस करके वो गन-गना उठी..

उसने पलट कर शंकर के होंठों पर किस करते हुए कहा – तुमने तो मुझे डरा ही दिया था…

ऐसा मत किया करो शंकर मेरे राजा, वरना किसी दिन मेरी जान निकल जाएगी.., उसकी बात पूरी होने से पहले ही फ़ौरन शंकर ने अपने तपते होंठ उसके होंठों पर टिका दिए, और एक लंबा सा किस करके बोला…

ये जान अब मेरी है, इसे ऐसे कैसे निकल जाने दूँगा मेरी जान.., ये कहकर उसने फिर से उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया…!

वो दोनो खड़े खड़े ही एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे…, सुषमा इस समय मात्र एक झीनी सी नाइटी में खड़ी थी,

बिना ब्रा के उसके उन्नत उरोज, शंकर के सीने में धन्से हुए थे जिनका मखमली एहसास पाकर उसका नाग और बुरी तरह से फुफ्कारने लगा…,

काफ़ी देर से उसकी माँ ने उसे गरम करके अधूरा छोड़ दिया था इस वजह से अब उसे सबर करना भारी पड़ रहा था,

उसका लंड फुल टाइट होकर सुषमा की नाभि को छेड़ रहा था, फिर शंकर ने उसके दोनो अनारों को अपनी मुट्ठी में लेकर कमर को नीचे किया, जिससे उसका खूँटा उसकी जाँघो के बीच कबड्डी करने लगा…!

सुषमा ने सिसकते हुए अपनी जांघें खोल दी, शंकर का मूसल उसकी मुनिया के नीचे लहराने लगा, तभी वो थोड़ा उपर को हुआ…!

कड़क लंड की रगड़ से उसकी चूत की फाँकें फैल गयी.., सुषमा को लगा जैसे वो कपड़ों समेत उसकी सुरंग में घुस रहा है..,
बुरी तरह सिसकते हुए उसने शंकर को अपनी बाहों में भर लिया और किसी जोंक की तरह उससे चिपक गयी…!

शंकर का सब्र अब जबाब दे रहा था, सो उसने आव ना देखा ताव वहीं उसकी नाइटी निकाल फेंकी, अपना पाजामा नीचे खिसका कर खड़े-खड़े ही सुषमा की एक टाँग उठाकर अपना लंड उसकी चूत में सरका दिया…

आधे लंड के अंदर जाते ही मारे उत्तेजना के सुषमा अपने एक पैर के पंजे पर खड़ी हो गयी, अपनी बाहों को उसके गले में लपेटकर वो उससे चिपक गयी…

उसका रहा सहा लंड भी उसकी सुरंग में समा गया…, उसके मुँह से एक मादक कराह निकल पड़ी…आअहह…सस्स्सिईईई….मेरे रजाअ…उउउफफफ्फ़….मार्रीइ…हाईए रामम्म… उउउफ़फ्फ़…सस्सिईई… उउंम्म..…!

उसकी मादक सिसकियों के असर से शंकर का जोश और दुगना हो गया, और उसने अपने हाथ उसकी गान्ड के नीचे लगाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया…
अब सुषमा पूरी तरह से उसके गले से चिपकी अपनी चूत उसके लंड पर चेन्प्कर उसकी गोद में बैठी थी…!

खड़े-खड़े ही शंकर ने उसकी गान्ड पकड़कर उसकी चूत को अपने लंड पर पटकने लगा.., वो उसे किसी फूल की तरह हल्की महसूस हो रही थी…!

सस्सिईइ…आअहह…अंदर चौबारे में ले चलो शंकर, वहाँ पलंग पर ठीक रहेगा…!

लेकिन शंकर का मन एक राउंड खुले आसमान के नीचे चुदाई करने का था सो वो उसे गोद में लिए हुए उसकी मखमली गान्ड को मसल्ते हुए धक्के पे धक्के जड़ने लगा…!

10 मिनिट में सुषमा की चूत पानी छोड़ बैठी, झड़ने के बाद उसने अपने पैर नीचे लटका दिए…!

शंकर अब औरत के इशारों को बड़े अच्छे से समझने लगा था, उसे पता चल गया कि सुषमा झड चुकी है, अतः उसने उसे अपनी गोद से नीचे उतारा और उसे बिठा कर लंड चूसने का इशारा किया…!

सुषमा वहीं अपने पंजों पर बैठकर उसके लंड से खेलने लगी, अपनी चूत का कामरस उसने उसके सुपाडे पर मल दिया, फिर उसके चारों ओर अपनी जीभ से चाट कर अपने मुँह में भर लिया…,

लंड चूस्ते चूस्ते उसकी चूत फिर से रिसने लगी, शंकर ने उसे छजलि पे हाथ टिका कर घोड़ी बना दिया और पीछे से उसकी मस्त गान्ड पर थपकी देकर अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया…!

सुषमा एक बार फिर से आसमानों में उड़ने लगी…
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