Free Sex Kahani काला इश्क़!
10-10-2019, 06:30 PM,
#7
RE: काला इश्क़!
update 3 

सात बजे घर पहुँचे तो ताऊ जी और ताई जी बहुत नाराज हुए|
ताऊ जी: कहाँ मर गए थे दोनों?
मैं: जी वो... आज ऋतू का जन्मदिन था तो.....(आगे बात पूरी होती उससे पहले ही उन्होंने फिर से झाड़ दिया|)
ताऊ जी: जन्मदिन था तो? इतनी देर तक बहार घूमोगे तुम दोनों? कुछ शर्म हाय है दोनों में या शहर पढ़ने जा के बेच खाई?
इतने में वहाँ पिताजी पहुँच गए और उन्होंने थोड़ा बीच-बचाव करते हुए डाँटा|
पिताजी: कहा था ना जल्दी आ जाना? इतनी देर कैसे लगी?
मैं: जी वो जीप ख़राब हो गई थी| (मैंने झूठ बोला|)
ताऊ जी: (पिताजी से) तुझे बता के गए थे दोनों?
पिताजी: हाँ
ताऊ जी: तो मुझे बता नहीं सकता था?

पताजी: वो भैया मैं तिवारी जी के गया हुआ था वो अभी-अभी आये हैं और आपको बुला रहे हैं|

ये सुनते ही ताऊ जी कमर पे हाथ रख के चले गए और साथ पिताजी भी चले गए| उनके जाते ही मैंने चैन की साँस ली और रितिका की तरफ देखा जो डरी-सहमी सी खड़ी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थीं|       
मैं: क्या हुआ?
रितिका: मेरी वजह से आपको डाँट पड़ी!
मैं: अरे तो क्या हुआ? पहली बार थोड़े ही है? छोड़ ये सब और जाके कपडे बदल और नीचे आ|
 
रितिका सर झुकाये चली गई और मैं आंगन में चारपाई पर बैठ गया| तभी वहाँ माँ आई और उन्होंने भी मुझे डाँट लगाईं| खेर रात गई बात गई!

अगली सुबह मैं अपने दोस्त से मिलने गया ये वही दोस्त है जिसके पिताजी यानि तिवारी जी कल रात को आये थे|

 
संकेत तिवारी: और भाई मानु! क्या हाल-चाल? कब आये?
मैं: अरे कल ही आया था, और तू सुना कैसा है?
संकेत तिवारी: अरे अपना तो वही है! लुगाई और चुदाई!
मैं: साले तू नहीं सुधारा! खेर कम से कम तू अपने पिताजी के कारोबार में ही उनका हाथ तो बताने लगा! अच्छा ये बता यहाँ कहीं माल मिलेगा?
संकेत तिवारी: हाँ है ना! बहुत मस्त वाला और वो भी तेरे घर पर ही है!
मैं: क्या बकवास कर रहा है?
संकेत तिवारी: अबे सच में! तेरी भाभी.... हाय-हाय क्या मस्त माल है!

मैंने: (उसका कॉलर पकड़ते हुए) बहनचोद साले चुप करजा वरना यहीं पेल दूँगा तुझे!
संकेत तिवारी: अच्छा-अच्छा.......... माफ़ कर दे यार.... सॉरी!
 मैं ने उसका कॉलर छोड़ा और जाने लगा तभी उसने आके पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा और कान पकड़ के माफ़ी माँगने लगा|
संकेत तिवारी: भाई तेरी बचपन की आदत अभी तक गई नहीं है! साला अभी भी हर बात को दिल से लगा लेता है|
मैं: परिवार के नाम पर कोई मजाक बर्दाश्त नहीं है मुझे! और याद रखिओ इस बात को दुबारा नहीं समझाऊँगा|
संकेत तिवारी: अच्छा यार माफ़ कर दे! आगे से कभी ऐसा मजाक नहीं करूँगा| चल तुझे माल पिलाता हूँ!

खेत पर एक छप्पर था जहाँ उसका टूबवेल लगा था| वहीँ पड़ी खाट पर मैं बैठ गया और उसने गांजा जो एक पुटकी में छप्पर में खोंस रखा था उसे निकला और फिर अच्छे से अंगूठे से मला और फिर सिगरेट में भर के मेरी ओर बढ़ा दी| मैंने सिगरेट मुंह पर लगाईं और सुलगाई और पहला काश मारते ही दिमाग सुन्न पड़ने लगा और मैं उसकी की चारपाई पर लेट के काश मारने लगा| सिगरेट आधी हुई तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और वो भी फूँकने लगा|

 
संकेत तिवारी: और बता ... कोई लड़की-वड़की पटाई या फिर अब भी अपने हाथ से हिलाता है?
मैं: साले फर्स्ट ईयर में हूँ अभी घंटा कोई लड़की नहीं मिली जिसे देख के आह निकल जाए!
संकेत तिवारी: अबे तेरा मन नहीं करता चोदने का? बहनचोद स्कूल टाइम से देख रहा हूँ साला अभी तक हथ्थी लगाता है|
मैं: अबे यार किससे बात करूँ, सुन्दर लड़की देख के लगता है की पक्का इसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड होगा| फिर खुद ही खुद को रिजेक्ट कर देता हूँ|        
संकेत तिवारी: अबे तो शादी कर ले!
मैं: पागल है क्या? शादी कर के खिलाऊँगा क्या बीवी को?
संकेत तिवारी: अपना लंड और क्या?
मैं: बहनचोद तू नहीं सुधरेगा!!!
संकेत तिवारी: अच्छा ये बता ये माल कब फूँकना शुरू किया?
मैं: यार कॉलेज के पहले महीने में ही कुछ दोस्त मिल गए और फिर घर की याद बहुत आती थी| इसे फूँकने के बाद दिमाग सुन्न हो जाता और मैं चैन से सो जाया करता था|
संकेत तिवारी: अच्छा ये बता, रंडी चोदेगा?
मैं: पागल हो गे है क्या तू?
संकेत तिवारी: अबे फट्टू साले! तेरे बस की कुछ नहीं है!
मैं: बहनचोद मैं तेरी तरह नहीं की कोई भी लड़की चोद दूँ! प्यार भी कोई चीज होती है?!    
संकेत तिवारी: ओये भोसड़ीवाले ये प्यार-व्यार क्या होता है? बेहजनचोद पता नहीं तुझे तेरी भाभी के बारे में?
मैं: (चौंकते हुए) क्या बोल रहा है तू?
और फिर संकेत ने मुझे सारी कहानी सुनाई जिसे सुन के सारा नशा काफूर हो गया| खेत में खड़ा वो पेड़ जिसमें दोनों प्रेमियों की अस्थियां हैं जहाँ पिताजी कभी जाने नहीं देते थे वो सब याद आने लगा| ये सब सुन के तो बुरी तरह फट गई और दिल में जितने भी प्यार के कीड़े थे सब के सब मर गए! मैंने फैसला कर लिया की चाहे जो भी हो जाये प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पडूँगा! खेर उस दिन के बाद मेरे मन में प्यार की कोई जगह नहीं रह गई थी| मैंने खुद का ध्यान पढ़ाई और पार्ट-टाइम जॉब में लगा दिया और जो समय बच जाता उसमें मैं रितिका के साथ कुछ खुशियां बाँट लेता| दो साल और निकल गए और मैं थर्ड ईयर में आ गया और रितिका भी दसवीं कक्षा में आ गई| अब इस साल उसके बोर्ड के पेपर थे और उसका सेंटर घर से कुछ दूर था तो अब घर वालों को तो कोई चिंता थी नहीं| उनकी बला से वो पेपर दे या नहीं पर मैं ये बात जानता था इसलिए जब उसकी डेट-शीट आई तो मैं ने उससे उसके सेंटर के बारे में पूछा| वो बहुत परेशान थी की कैसे जाएगी? उसकी एक-दो सहलियां थी पर उनका सेंटर अलग पड़ा था!
 
मैं: ऋतू? क्या हुआ परेशान लग रही है?
रितिका: (रोने लगी) चाचू ... मैं....कल पेपर नहीं दे पाऊँगी! सेंटर तक कैसे जाऊँ? घर से अकेले कोई नहीं जाने दे रहा और पापा ने भी मना कर दिया? दादाजी भी यहाँ नहीं हैं!
मैं: (ऋतू के सर पर प्यार से एक चपत लगाई|) अच्छा ?? और तेरे चाचू नहीं हैं यहाँ?
रितिका: चाचू ... पेपर तो सोमवार को है और आप तो रविवार को चले जाओगे?
मैं: पागल ... मैं नहीं जा रहा! जब-जब तेरे पेपर होंगे मैं ठीक एक दिन पहले आ जाऊँगा|

और हुआ भी यही .... मैं पेपर के समय रितिका को सेंटर छोड़ देता और जब तक वो बहार नहीं आती तब तक वहीँ कहीं घूमते हुए समय पार कर लेता और फिर उसे ले के घर आ जाता| रास्ते में हम उसी के पेपर को डिसकस करते जिससे उसे बहुत ख़ुशी होती| सारे पेपर ख़तम हुए और आप रिजल्ट का इंतजार था| पर इधर घर वालों ने उसकी शादी के लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिया| जब ये बात रितिका को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि वो हर साल स्कूल में प्रथम आया करती थी पर घर वाले हैं की उनको जबरदस्ती उसकी शादी की पड़ी थी| रितिका अब मायूस रहने लगी थी और मुझसे उसकी ये मायूसी नहीं देखि जा रही थी, परन्तु मैं कुछ कर नहीं सकता था| शुक्रवार शाम जब मैं घर पहुँचा तो रितिका मेरे पास पानी ले के आई पर उसके चेहरे पर अब भी गम का साया था| रिजल्ट रविवार सुबह आना था पर घर में किसी को कुछ भी नहीं पड़ी थी| मैंने ताई जी और माँ से रितिका के आगे पढ़ने की बात की तो दोनों ने मुझे बहुत तगड़ी झाड़ लगाईं! ''इसकी उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है!" ये कह के उन्होंने बात खत्म कर दी और मैं अपना इतना सा मुंह ले के ऊपर अपने कमरे में आ गया| कुछ देर बाद रितिका मेरे पास आई और बोली; ''चाचू... आप क्यों मेरी वजह से बातें सुन रहे हो? रहने दो... जो किस्मत में लिखा है वो तो मिलके रहेगा ना?"

"किस्मत बनाने से बनती है, उसके आगे यूँ हथियार डालने से कुछ नहीं मिलता|" इतना कह के मैं वहाँ से उठा और घर से निकल गया| शनिवार सुबह मैं उठा और फिर घूमने के लिए घर से निकल गया| शाम को घर आया और खाना खाके फिर सो गया| रविवार सुबह मैं जल्दी उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया| मैंने रितिका को आवाज दी तो वो रसोई से निकली और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; "जल्दी से तैयार होजा, तेरा रिजल्ट लेने जाना है|" पर मेरी इस बात का उस पर कोई असर ही नहीं पड़ा वो सर झुकाये खड़ी रही| इतने में उसकी सौतेली माँ आ गई और बीच में बोल पड़ी; "कहाँ जा रही है? खाना नहीं बनाना?"

"भाभी मैं इसे ले के रिजल्ट लेने जा रहा हूँ!" मैंने उनकी बात का जवाब हलीमी से दिया|
"क्या करोगे देवर जी इसका रिजल्ट ला के? होनी तो इसकी शादी ही है! रिजल्ट हो या न हो क्या फर्क पड़ता है?" भाभी ने तंज कस्ते हुए कहा|
"शादी आज तो नहीं हो रही ना?" मैंने उनके तंज का जवाब देते हुए कहा और रितिका को तैयार होने को कहा| तब तक मैं आंगन में ही बैठा था की वहाँ ताऊ जी, पिताजी, चन्देर, माँ और ताई जी भी आ गए और मुझे तैयार बैठा देख पूछने लगे;
ताऊ जी: आज ही वापस जा रहा है?
मैं: जी नहीं! वो ऋतू का रिजल्ट आएगा आज वही लेने जा रहा हूँ उसके साथ|
पिताजी: रिजल्ट ले के सीधे घर आ जाना, इधर उधर कहीं मत जाना| पंडितजी को बुलवाया है रितिका की शादी की बात करने के लिए|
मैंने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया की तभी रितिका ने ऊपर से साड़ी बात सुन ली और उसका दिल अब टूट चूका था| मैंने उसे जल्दी आने को कहा और फिर अपनी साईकिल उठाई और उसे पीछे बिठा के पहले उसे मंदिर ले गया और वहाँ उसके पास होने की प्रार्थना की और फिर सीधे बाजार जा के इंटरनेट कैफ़े के बहार रुक गया|

मैं: रिजल्ट की चिंता मत कर, तू फर्स्ट ही आएगी देख लेना!
रितिका: क्या फायदा! (उसने मायूसी से कहा)
मैं: तेरी शादी कल नहीं हो रही! समझी? थोड़ा सब्र कर भगवान् जर्रूर मदद करेगा|
 
पर रितिका बिलकुल हार मान चुकी थी और उसके मन में कोई उम्मीद नहीं थी की कुछ अच्छा भी हो सकता है| करीब दस बजे रिजल्ट आया और दूकान में भीड़ बढ़ने लगी, मैंने जल्दी से रितिका का रोल नंबर वेबसाइट में डाला और जैसे ही उसका रिजल्ट आया मैं ख़ुशी से उछाल पड़ा! उसने 97% अंक स्कोर किये थे| ये जब मैंने उसे बताया तो वो भी बहुत खुश हुई और मेरे गले लग गई| हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी दूकान से मार्कशीट का प्रिंट-आउट लेके निकले और मैं उसे सबसे पहले मिठाई की दूकान पर ले गया और रस मलाई जो उसे सबसे ज्यादा पसंद थी खिलाई| फिर मैंने घर के लिए भी पैक करवाई और हम फिर घर पहुँचे|

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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:24 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:26 PM
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RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-14-2019, 08:59 PM
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RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-15-2019, 11:56 AM
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