RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
खैर, मामी चिल्लाती रही और मामा ने मामी को उठाया और पलंग पर पटका। मामा ने फिर अपने कपडे एक के बाद एक निकाले और खड़े खड़े ही नंगे हो गए। तब मैंने देखा की मामा की टांगों के बीच में से उनका लंबा और मोटा लण्ड लटक रहा था। मैंने किसी भी मर्द के लण्ड को तब तक नहीं देखा था। मामा का लण्ड पहली बार देखा तो मैं तो डर गयी। मामा का इतना बड़ा लण्ड ऐसा लगता था जैसे मैंने एक बार एक घोड़े का लण्ड देखा था। मामी का बदन भय से काँप रहा था।
मेरे मामा लम्बे और भरे हुए बदन के थे। उनका पेट भी थोड़ा सा निकला हुआ था। आधे अँधेरे में उनका शरीर बड़ा ही डरावना लग रहा था। उन्होंने मामी के पाँव चौड़े किये और खून से लथपथ मामी के दो पाँवों के बीच में उन्होंने अपना लण्ड घुसेड़ दिया और उसे अंदर की और धकेलते रहे। उसके बाद बस मुझे मामी की कराहटें और मामा की जोर जोर से चलती साँसों के अलावा कुछ सुनाई नहीं पड़ा। थोड़ी देर बाद सब शांत हो गया। बाद में मुझे पता चला की जो मामा मामी को कर रहे थे उसे चोदना कहते थे और मामा मामी को चोद रहे थे।
यह देख मैं एकदम घबड़ा गयी थी। तब मैंने तय किया की मैं कभी शादी नहीं करुँगी और सेक्स तो कभी भी नहीं करुँगी, क्यूंकि मुझे उस तरहसे किसी की मार खाना और जुल्म सहना गंवारा नहीं था। मेरे मने में एक भयानक डर उस दिन से घर कर गया जो राज की लाखों कोशिशों के बावजूद पूरी तरह से गया नहीं था।
खैर उस बात को सालों बीत गए थे। अब तो मैं लड़की से एक औरत बन गयी थी जो अपने पति से हजारों बाद चुदवा चुकी थी। अब मुझे पति से चुदवा ने में कोई झिझक नहीं होती थी, पर अगर कोई और मर्द मुझे छू ले तो मुझे कुछ अजीब सा नकारात्मक भाव होता था।
जय के बारे में राज की बात सुनकर मुझे बड़ा सदमा लगा। राज की बात सौ फीसदी सही थी। मुझे समझ नहीं आ रहाथा की मैं क्या बोलूं। आखिरमें राज जुंझला कर बोले, “तुम औरतें न, बात का बतंगड़ बनाने में बड़ी माहीर हो। तुमने ही यह आग लगाई है अब तुम्ही उसे बुझाओ।”
मैंने अपना सर हिलाकर अपनी सहमति देते हुए पूछा, “डार्लिंग तुम सही हो। मुझे बड़ा पश्चाताप हो रहा है। मैंने जय के साथ कई बार बात करने की कोशिश की पर वह मुझसे बात करना ही नहीं चाहता। तुम्ही बताओ अब मैं क्या करूँ?”
राज ने मेरी परिस्थिति देख सहानुभूति भरे स्वर में कहा, “जानू अब तुम यह काम मुझ पर छोड़ दो। अब मैं ही कुछ करता हूँ।
दूसरे दिन, सुबह मेरी ऑफिसमें राज ने मुझे फ़ोन किया और कहा की वह फ़ोन मैं जय को दूँ। वह जय से बात करना चाहता था। मैं जय के पास गयी और उसे फ़ोन देते हुए कहा की राज राज, जय से बात करना चाहते थे। जय को थोड़ा आश्चर्य तो हुआ पर उसने मुझसे फ़ोन लिया और राज से बात करने लगा। मैं तुरन्त ही अपने स्थान पर आ गयी। जय की राज से काफी समय तक बात चली। मुझे पता नहीं उनमें क्या बात हुई। जब जय मुझे फ़ोन वापस करने आया तो बोला, “तुम्हारा पति राज एक अच्छा, सुलझा और समझदार व्यक्ति है। शुक्र है, तुम सही व्यक्ति की देखभाल में हो।
राज से बात करने के उपरान्त जय में थोड़ा परिवर्तन जरूर आया। वह अब हम सबसे ज्याद अच्छी तरह से बात करने लगे। परंतु उनके अंदर जो पहले की चुलबुलाहट और जोश खरोश था वह पूरी तरह से गैर हाजिर था। मुझे अब लगने लगा की मैंने मेरी सख्ती से जय के दिल का कोई कोना तोड़ डाला था जो जोड़ना अब मुश्किल था।
एक रात को फिर अच्छे खासे सेक्स के बाद जब राज अच्छे मूड में थे तब मैंने उनको जय के बारेमें कहा. मैंने कहा की अब जय बात तो करने लगे हैं, पर वह पहले वाली आत्मीयता या तत्परता नहीं थी। उनकी सारी बातें खोखली सी लग रही थी।
राज ने मेरी और देखा और पूछा, “जानू, क्या तुम सचमुच जय को पहले की ही तरह देखना चाहती हो?”
मैंने सहज रूप से थोड़ा आश्चर्य जताते हुए कहा, “हाँ, पर तुम मुझे यह क्यों पूछ रहे हो?”
तब राज ने मुझे बड़ी गंभीरता से कहा, “क्योंकि, जय की सहजता और वही आत्मीयता लानेके लिए तुम्हें कुछ ख़ास करना पड़ेगा, और मैं नहीं जानता की तुम वह करने के लिए तैयार होगी।” मैंने कोई जवाब न देते हुए राज की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।
राज ने कहा, “तुम्हें अपना स्वाभिमान और गैर मर्द के प्रति उदासीनता या नफरत के भाव पर नियत्रण रखना होगा। तुम्हे अधिक उत्साहित होना पड़ेगा और अपने स्त्री सुलभ चरित्र से जय को यह जताना है की तुम वास्तव में अपने किये पर पछता रही हो। तुम्हें जय के साथ एकदम तनाव मुक्त हो कर आराम से बात करनी होगी। यदि वह कोई सेक्सुअल या दुहरे अर्थ वाले जोक कहता है तो उनका हंसकर मजाक में लेना है। यदि गलती से या फिर जानबूझकर अनजान बनते हुए तुम्हारे स्तनों को या तुम्हारे कूल्हों को थोड़ा सा छू लेता है तो तुम कोई अड़ंगा मत खड़ा करना, तुम उसे हंसी मजाक में ले लेना। दफ्तर में, खेल में, साथियों में ऐसा होता रहता है। युवा युवतियां इसको एन्जॉय करती हैं, बुरा नहीं मानती। तुम कोई चिंता मत करो, बाकी मैं सब सम्हाल लूंगा।”
मैं बड़े ही असमंजस में पड़ गयी। मैं सोचने लगी की क्या मैं ऐसा कर पाउंगी? मेरे लिए राज की बात मान कर आगे बढ़ना बड़ी ही टेढ़ी खीर थी। पर अब मेरे आस और कोई चारा भी तो नहीं था। मैंने अपना सर हिला कर हामी भर दी।
दूसरे दिन राज ने मुझे ऑफिस में फ़ोन किया और फ़ोन जय को देनेके लिए कहा। राज और जय में थोड़ी देर बात हुई और फिर जय मुझे फ़ोन वापस करने आया और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोला, “राज ने मुझे रातको डिनर पर बुलाया है। वास्तव में तुम्हारा पति एक बहुत अच्छा इंसान है।”
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