RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
राज ने मुझे पहले से ही कह रखा था की ऐसा तो होगा और मैं उसके लिए तैयार भी हो चली थी। मैं भली भांति जानती थी की जय मुझे छूने के लिए लालायित रहते थे। मैं उनकी ऐसी छोटी बड़ी हरकतों को नजर अंदाज करने लगी। मैंने सोचा अगर इससे उनको ख़ुशी मिलती है तो ठीक है, जबतक ज्यादा कुछ नहीं होता तब तक ठीक है।
इसी तरह हफ़्तों बीत गए। अब तो हमारे ऑफिस में भी धीरे धीरे अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा था। सब को जय और मेरे बीच कुछ चल रहा था उसका अंदेशा हो रहा था। एक शाम को ऑफिस छूटने के एक घंटे पहले, बॉस मेरे पास आये और मुझे एक मोटी फाइलों का बंडल पकड़ाते हुए बोले, “इस ग्राहक का पूरा बही खाता और नफ़ा नुक्सान का स्टेटमेंट मुझे आज ही तुम्हारे ऑफिस छोड़ने के पहले चाहिए। जाते समय तुम इसे सिक्योरिटी में गार्ड के पास छोड़ कर जाना। मेरे बॉस रात में ही उसे उनके बॉस को पहुंचाएंगे। ऊपर से आर्डर आया है। काम में कोई देरी नहीं चलेगी। काम शाम को ही ख़तम हो जाना चाहिए।”
मैं जानती थी की मेरे लिए वह काम करना नामुमकिन था। एक तो मैं थकी हुई भी थी। मैंने बॉस को समझाने की बड़ी कोशिश की पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। बॉस ने कह दिया की काम तो पूरा करना ही पडेगा। अगर काम नहीं हुआ तो मेरा नौकरी से हाथ धोना तय था। बस और कुछ नहीं बोलते हुए बॉस चले गए। मैंने फाइलें ली और सारा डाटा कंप्यूटर में चेक कर के फीड करने लगी।
काम लम्बा और समय लेने वाला था। मुझे लग रहा था जैसे मुझसे तो वह काम सुबह तक भी नहीं होगा। मुझे काम करते हुए एक घंटा हो गया होगा। दफ्तर बंद होने का समय हो चूका था। एक के बाद एक कर ऑफिस खाली होने लगी। जय घर जाने के लिए तैयार थे। वह मेरे पास आये। मुझे काम पर लगे हुए देख कर पूछने लगे की क्या बात थी की मैं घर के लिए नहीं निकल रही। मैंने उन्हें सारी फाइलें दिखाई और बोस ने मुझे जो कहा था जय को सुनाया। मैंने कहा की मुझसे वह काम होने वाला नहीं था और मेरी नौकरी दूसरे दिन जरूर जाने वाली थी।
जय ने मेरी पीठ थपथपाई और कहा, “उठो, मुझे देखने दो। तुम चिंता मत करो। आरामसे वहां कुर्सी पर बैठो और जब मैं कहूं तो मेरी मदद करो। तुम्हारा काम हो जाएगा।” जय ने सारी फाइलें मुझसे लेली और मेरी कुर्सी पर बैठ कर वह फुर्ती से काम में लग पड़े। बीच बीच में वह मुझे चाय या बिस्कुट या पानी या फाइल देने के लिए कहते रहे। मैं इस आदमी पर हैरान हो गयी जो मेरे लिए इतनी मेहनत और लगन से काम कर रहे थे। उन्हें यह सब करने की कोई जरुरत नहीं थी।
जय को एकदम एकाग्रता से काम करते हुए देख मेरा ह्रदय पिघलने लगा। जय के बारे में जो मैंने उल्टापुल्टा सोचा था उसके लिए मुझे पछतावा होने लगा। तीन घंटे बीत चुके थे। रात के नौ बजने वाले थे। मेरी आखें नींद से भारी होने लगी थी। जय ने मुझे रिसेप्शन में सोफे पर जाकर लेट जाने को कहा।
पता नहीं कितना समय हुआ होगा की अचानक मुझे जय ने कांधोंसे पकड़ कर हिलाया और बोले, “उठो काम ख़तम हो गया। अब खाली प्रिंटआउट लेने हैं।”
मैं हड़बड़ाहट में उठ खड़ी हुई तो नींद के कारण लड़खड़ाई और फर्श पर गिरने लगी। जय ने एक ही हाथ से मुझे पीठ से अपनी बांह में उठाया। उस हाथ के दूसरे छोर पर उनकी उंगलियां मेरे स्तनों को दबा रही थीं। उनके दुसरे हाथ ने मेरे सर को उठा के रखा था। जैसे राज कपूर और नरगिस का स्टेचू होता था वैसे ही हम दोनों लग रहे होंगे।
मैंने अपनी आँखें खोली तो मेरी आँखों के सामने ही जय की ऑंखें पायीं। मुझे ऐसा लगा जैसे जय एकदम जैसे मेरे होंठ से होंठ मिलाकर मुझे उसी समय चुम्बन कर लेंगे। उनकी आँखों में मुझे वासना की भूख दिख रही थी। मेरे बदनमें जैसे बिजली के करंट का झटका लगा हो ऐसे मैं काँपने लगी। यदि उस समय जय ने मुझे चुम लिया होता तो मैं कुछ भी विरोध न करती। मेरी हालत ही कुछ ऐसी थी।
परन्तु जय ने अपने आपको सम्हाला। उन्होंने मुझे धीरे से सोफे पर बिठाया और खुद कंप्यूटर के पास जाकर प्रिंट लेने की तैयारी में लग गए। हमारे बदन की करीबियों से न सिर्फ मैं, परन्तु जय भी हिल गए थे। जय ने मुझे जब तक वह अपनी तैयारी कर लें तब तक दफ्तर के छोटे से स्टेशनरी रूम में से प्रिंटिंग कागज़ का एक पैकेट लाने को कहा।
मैं उठ खड़ी हुई और वह छोटे से कमरे में घुसी जहां छपाई के काम आनेवाले कागज़ के पैकेट एक ऊँचे ढेर में रखे हुए थे। मैंने थोड़ा कूदकर ऊपर वाले पैकेट को लेने की कोशिश की तब अचानक ही एक चूहा जो कगजों के ढेर के ऊपर था, मेरे सर पर कूद पड़ा। मैं जोर से चिल्लाने लगी पर वह चूहा मेरे बालों में घुसा और अचनाक पता नहीं कहाँ गायब हो गया।
जय अपनी जगह से भागते हुए आये और बोले, “क्या बात है? तुम चिल्ला क्यों रही हो?”
डर के मारे मैं बोल भी नहीं पा रही थी। मैं फिर जोर से बोल पड़ी, “चूहा!”
मुझे सुनकर जय जोर से ठहाका मार कर हंस पड़े और फिर अपने आपको नियत्रण में रखते हुए बोले, “चूहा? कहाँ है चूहा?”
अचानक मैंने महसूस किया की मेरी ब्रा के अंदर मेरे स्तनों के ऊपर कुछ चहल पहल हो रही थी। चूहा मेरी ब्रा में घुसा हुआ था और मेरी निप्पलों से खेल रहा था। मैंने जय से चिल्लाते हुए कहा, “वह तो मेरे ब्लाउज में घुसा हुआ है। उसे तुम जल्द निकालो। प्लीज?” मैं ड़र के मारे लड़खड़ा गयी और गिरने लगी।
जय ने कुछ सोचे समझे बिना अपना एक हाथ मेरे कूल्हे के नीचे रखा और मुझे ऊपर उठा कर मेरी दोनों टांगों को अपनी दोनों टांगों के बीच में जकड लिया ताकि मैं नीचे न जा गिरूं और दुसरा हाथ मेरी ब्रा को हटा कर उसमें डाल दिया और चूहेको बाहर भगा दिया। चूहा नीचे गिर पड़ा और भाग कर जाने कहाँ चला गया। लेकिन जय का हाथ जस के तस मेरे स्तनों के ऊपर ही रहा और वह धीरे धीरे मेरे दोनों स्तनों को दबाने और सहलाने लगे। उनकी उंगलियां मेरी निप्पलों के साथ खेलने लगीं। उन्होंने अपनी हथेली में मेरे स्तनों को दबाया और फिर मेरी फूली हुई निप्पलों को जोरों से दबाने लगे। उनका दुसरा हाथ मेरे कूल्हों के नीचे मेरी गांड के बीचो बीच की दरार पर था और वह मेरी साडी के ऊपर से ही अपनी उँगलियों को अंदर घुसाने की कोशिश में लगे हुए थे।
शुरू में तो चूहे के डर के मारे, मेरे होशो हवास उड़े हुए थे। पर जैसे मुझे जुछ समझ आने लगा तो जय के मेरे स्तनों से खेलने और मेरे कुल्हेमें उंगली करने से मैं जैसे मंत्रमुग्ध सी हो गयी। ऐसा मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। चाहते हुए भी मैं उनका हाथ मेरी चूँचियों पर से हटाने में अपने आपको असमर्थ पा रही थी। मुझे लगा जैसे मैं एक नशे में थी। ऐसे ही दो या तीन मिनट बीत गए होंगे और मुझे पता भी न चला।
धीरे धीरे मुझे परिस्थिति का एहसास होने लगा। मैं समझ गयी की अगर मैंने उस समय कुछ नहीं किया तो पक्का ही था की उस रात वहाँ कुछ न कुछ जरूर हो जाता। मैंने धीरेसे जय का हाथ मेरे स्तनों पर से हटाया और अपने आपको संतुलित करने की कोशिश की।
मैं खड़ी हुई और अपने आप को सम्हाला। मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं चूहे निकालने के लिए जय शुक्रिया करूँ या मेरी चूँचियों को और कूल्हों को सहलाने और दबाने के लिए उनकों डाँटू। मैं चुप रही। और क्या करती? मैं बड़ी ही उलझन में थी। इसलिए नहीं की जय ने मेरे साथ जो किया वह ठीक नहीं था, पर इसलिए की मैं जय की शरारत का विरोध करना तो दूर, मैं उसके कार्यकलाप से उत्तेजित हो रही थी। जय का मेरी चूँचियों को सहलाना मुझे अच्छा लगने लगा था। जय भी मुझे बाहों में लेकर बहुत गरम हो गए थे। उन्होंने जब मेरी दोनों टांगों को अपनी दोनों टांगों के बीच जकड़ कर पकड़ा हुआ था तब उनका लण्ड एकदम कड़ा और खड़ा हुआ था और मेरी जांघों के बीच में ठोकर मार रहा था ।
जब जय की उत्तेजना कम हुई और उन्हें अपनी गलती समझ आयी तो वह एकदम शर्मिंदा होकर हिचकिचाते हुए माफ़ी मांगते हुए बोले, “मुझे माफ़ करदो डॉली। मैं अपने होशोहवास में नहीं था। जो हुआ वह इतना अचानक हो गया। ऐसा करनेका मेरा कोई इरादा नहीं था प्लीज?
मैंने जय की और देखा। ऐसा लग रहा था की वह वास्तव में दिल से पश्चाताप कर रहे थे। मैं जय की और देखकर मुस्काई और मैंने कहा, “चलो भाई, ठीक है। चिंता मत करो। कभी कभी ऐसा हो जाता है। हम बहाव में बह जाते हैं।” मैं खड़ी हुई और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए अपनेआपको सम्हालते हुए काममें लग गयी।
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