Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
दादाजी समझ गए की मम्मी भी शायद यही चाहती है...उन्होंने उनकी गीली चूत को मसलना शुरू कर दिया. दादाजी के हाथों पर लगे तेल और मम्मी की चूत से निकलते तेल से दादाजी के हाथ पूरी तरह से गीले हो गए.. उन्होंने अपने पारखी हाथों से मम्मी की चूत के ऊपर मसाज करी शुरू कर दी, मम्मी तो दादाजी के इस हमले से बुरी तरह से छटपटाने लगी... "ओह्ह्ह्हह्ह पिताजी......म्मम्मम......मजा आ रहा है.....आह्ह......ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......म्मम्मम .....अन्दर.....और अन्दर....से करो....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह...". पिताजी समझ गए की उनकी बहु क्या चाहती है..
उन्होंने अपने बीच वाली मोटी ऊँगली मम्मी के चूत के छेद पर टिकाई और उसे अन्दर घुसेड दिया.. "अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह .....मर्र्र .....गयी......अह्ह्हह्ह्ह्ह ....."
उनकी ऊँगली भी किसी छोटे-मोटे लंड से कम नहीं थी....लगभग चार इंच लम्बी और काफी मोटी....मम्मी को तो ऐसे लग रहा था की कोई उनकी लंड से चुदाई कर रहा है.... उन्होंने अपनी आँखें खोली और दादाजी के हाथ को कस के पकड़ लिया...और उसे अपनी चूत में तेजी से अन्दर बाहर करने लगी..
मम्मी अपनी सुध बुध खो बैठी थी..वो शायद नहीं जानती थी की उन्हें अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करनी थी... पर चूत की आग के आगे किसका बस चला है..उन्होंने किसी भी बात की परवाह किये बिना अपने ससुर के हाथों की उँगलियों को अपनी रसीली चूत के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया...दादाजी भी किसी रोबोट की तरह मम्मी की आँखों में देखकर अपने हाथ को उन्हें सौपकर, किसी आज्ञाकारी नौकर की तरह उनकी तीमारदारी कर रहे थे.
अचानक मम्मी ने अपना एक हाथ आगे करके दादाजी के लंड के ऊपर रख दिया... दादाजी का लंड उनके कच्छे को फाड़कर बाहर आने को तैयार था, जैसे ही मम्मी ने उस पाईप को पकड़ा, दादाजी भोचक्के रह गए.. उन्होंने अपना हाथ मम्मी की चूत के अन्दर से वापिस बाहर खींच लिया...और गहरी साँसे लेते हुए दूसरी तरफ मुंह करके बैठ गए. मम्मी और मुझे लगा की अब तो सारा खेल गड़बड़ हो गया..मम्मी को इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी..वैसे भी दादाजी लाइन पर आ ही रहे थे.. वो अपनी आँखें बंद करे अपने ऊपर काबू पाने की एक और कोशिश कर रहे थे..
पर मम्मी भी हार मानने वालों में से नहीं थी..वो उठी और दादाजी के बिलकुल पास जाकर धीमी आवाज में बोली
मम्मी : "पिताजी...मैं जानती हूँ की आप क्या सोच रहे हैं...पर मैं भी क्या करूँ, हालात ही ऐसे हैं...और आप को इतने पास पाकर मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही हूँ....आप ...आप समझ रहे हैं ना....प्लीस पिताजी...आप....आप मेरे पास आइये.."
पर दादाजी कुछ ना बोले.
मम्मी : "मैंने हमेशा आपका आदर किया है...और आपकी सेवा की है...आज भी मैं आपकी सेवा करना चाहती हूँ...प्लीस मुझे करने दीजिये..आप मना मत करना.. और आप भी जानते है, की यही एक रास्ता है इस साईको की कैद से निकलने का.....मुझे कोई ऐतराज नहीं है...आप को जो करना चाहते हैं ..कर सकते हैं.."
मम्मी ने तो अपनी स्वीकृति दे दी..पर दादाजी शायद अभी भी अपनी हद्द को पार करने में हिचकिचा रहे थे... मम्मी ने आगे बढकर उनके कच्छे का नाड़ा पकड़ा और उसे खींच दिया..वो कुछ ना बोले..मम्मी ने किसी आज्ञाकारी नौकरानी की तरह उनका कच्चा उतार दिया...और अगले ही पल उनका लम्बा और मोटा लिंग फिर से सभी के सामने आ गया... मम्मी ने उसे अपने हाथ में पकड़ा और उसे ऊपर नीचे करने लगी...दादाजी ने मम्मी की तरफ देखा..दोनों की नजरें मिली...और अगले ही पल मम्मी ने उनके लम्बे और मोटे लंड को अपने मुंह में भर लिया...
दादाजी तो गाँव के रहने वाले थे, उनकी पूरी जिन्दगी में किसी ने भी उनके लिंग को मुंह में नहीं लिया था... आज पहला मौका था जब मम्मी ने उसे चूसा था...उनकी आँखें बंद सी होने लगी और उन्होंने आखिर समर्पण कर ही दिया अपनी गर्म बहु के सामने... मम्मी अब उठ कर उनके क़दमों के पास बैठ गयी...और पूरी तन्मन्यता से उनके लंड को चूसने लगी...पूरा लंड तो जा नहीं पा रहा था उनके मुंह में...इसलिए...उन्होंने अपनी जीभ निकाल कर नीचे के हिस्से को चाटना और कुरेदना शुरू कर दिया...दादाजी के मुंह से मजेदार सिसकियाँ निकल रही थी...
"अह्ह्हह्ह्ह्ह ऊऊओ बहु......अह्ह्ह्हह्ह ....रीईइ.......अह्ह्हह्ह......अह्ह्हह्ह......मेरा पहली बार चूसा है......किसी ने.....अह्ह्ह.......म्मम्मम्मम......"
और तभी ऋतू की आँख खुल गयी, उसने जब देखा की मम्मी तो दादाजी का लंड चूस रही है तो वो समझ गयी की अब तो खेल ख़त्म ही समझो....
ऋतू : "अरे वह ...मम्मी....दादाजी....आपने हम सभी को यहाँ से निकालने की खातिर...ये कर ही लिया..."
दादाजी और मम्मी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, ऋतू उठकर मेरे पास आकर बैठ गयी और हम दोनों उनका खेल देखने लगे.. अचानक दादाजी ने मम्मी को ऊपर खींचा और उनके होंठ चूसने शुरू कर दिए, मम्मी ने भी उस अधीर बुढ्ढे का साथ देते हुए अपने होंठ उन्हें समर्पित कर दिए...दादाजी के हाथ मम्मी के मुम्मे दबाने लगे...ये सब देखकर ऋतू भी मेरे लंड को अपने हाथों से मसलने लगी... दादाजी ने मम्मी को किसी गुड्डी की तरह उठाया और उन्हें बेड पर पटक दिया.. उन्होंने अपना लंड हाथ में पकड़ा और उसे मम्मी की चूत से सटाया ही था की ऊपर से स्पीकर से फिर से तेज आवाज गूंजी...
आवाज : "रुको........"
दादाजी के साथ-२ सभी सकते में आ गए..
आवाज : "मैंने तुमसे कहा था की चुदाई करने से पहले तुम्हे बताना होगा की तुमने अपना इरादा क्यों बदला...क्या ये सही है...तुम्हारे हिसाब से...तभी तुम चुदाई कर सकते हो.."
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