Ghar Pe Chudai एक और घरेलू चुदाई
08-25-2018, 04:07 PM,
#25
RE: Ghar Pe Chudai एक और घरेलू चुदाई
उसने किवाड़ हल्के से खोला तो देखा कि कुछ बकरिया घुस आई थी उस साइड मे उसने फिर से किवाड़ बंद किया और सुधा की पकड़ लिया तो सुधा बोली- नही बेटे अभी इधर कुछ भी करना ठीक नही है अगर कोई आ निकला तो शामत आ जाएगी तो फिर वो दोनो उस बाथरूम से बाहर आ गये हाथ आई चूत फिसल गयी थी तो सौरभ का मूड उखड़ सा गया था पर सुधा कोई रिस्क नही लेना चाहती थी तो फिर उसने अपने कपड़े समेटे और घर की तरफ चल दी सौरभ वही पर रुक गया 

उधर घर पर विनीता को अकेली देख कर प्रेम उसके पास पहुच गया और उस पर चुंबनो की बोछार कर दी विनीता तो खुद वासना की आग मे जल रही थी उसने मज़े ले लेकर अपने होतो का रस प्रेम को पिलाया प्रेम ने उसकी चूचियो को नंगा कर दिया और बोला चाची कितना इंतज़ार करना पड़ेगा मुझे तुम्हारे बिना जीना बड़ा मुस्किल हो रहा हैं विनीता बोली- मेरी जान मेरा हाल भी ऐसा ही हैं पर ये निगोडी चोट ना जाने कब सही होगी प्रेम ने विनीता की 36” की चूचियो को दबाना शुरू किया तो वो मचलने लगी उसने हाथ आगे कर के प्रेम की चैन खोली और उसके लंड को बाहर निकाल कर हिलाना शुरू कर दिया 

विनीता- आह प्रेम थोड़ा आहिस्ता से एक काम कर थोड़ा सा मेरे उपर झुक जा और मेरी चूत मे अपनी उंगली डाल कर रगड़ बड़ी बेकाबू हो रही हैं ये इसकी खुजली को मिटा बेटे पर थोड़ा ध्यान से कही मेरे पैर को ना हिला देना 
प्रेम उसके उपर आया और उसने विनीता की साड़ी को कमर तक उठा दिया अंदर उसने पैंटी नही डाली थी तो कोई रुकावट की बात ही नही थी बस उसने अपनी चाची की चूत को मुट्ठी मे भर लिया और उसको मसल्ते हुए चूचियो को पीने लगा विनीता की नस नस मे हवस की आग शोलो के रूप मे भड़कने लगी वो बेकाबू हो ने लगी और ज़ोर ज़ोर से प्रेम के लंड को हिलाने लगी दोनो चाची बेटे जैसे तैसे जुगाड़ से लगे हुए थे दो उंगलिया चूत मे जाने से विनीता को थोड़ा सा आराम तो मिला था पर जिसे लंड की आदत हो उसका काम कैसे चले उंगलियो से

पर मजबूरी भी कोई चीज़ होती हैं तो काम ही चलना था प्रेम तेज़ी से चूत मे उंगलिया चला रहा था विनीता बस झड़ने ही वाली थी कि तभी उसे नीचे घर मे किसी के आने की आवाज़ सुनाई दी वो समझ गयी कि उसका बेटा ही होगा तो उसने प्रेम को भगाया वहाँ से इधर प्रेम अपनी दीवार पर उतरा उधर सीढ़िया चढ़ कर सौरभ मम्मी के कमरे मे आया अपना काम बीच मे लटक जाने से विनीता को गुस्सा तो बहुत आया पर वो बेटे के सामने कुछ भी शो नही करना चाहती थी तो उसने अपने कपड़ो को सही किया और बेटे से बात करने लगी 

विनीता- कहाँ गया था बेटा कितना टाइम हुआ तुझे गये हुए
सौरभ- मम्मी वो घर पर पानी नही आया तो मैं नहाने और कपड़े धोने खेत पर चला गया था और फिर वहाँ पर कई और काम भी करने थे तो देर हो गयी
विनीता – खाना खाया तूने
सौरभ- जी हाँ खा लिया था 
सौरभ- मम्मी क्या बापू आज आएँगे
विनीता- बेटे, उसका हाल तो तुझे पता ही है जब तक उसको मुफ़्त की दारू मिलती रहेगी वो घर का मूह नही देखेगे पर मैं हूँ ना बता क्या बात हैं 
सौरभ- कुछ किताबें ख़रीदनी हैं तो पैसे चाहिए 
विनीता- कल जब तू सहर जाएगा तो ले जाना 
सौरभ- ठीक हैं अभी आपके पैर का दर्द कैसा है हाई रे, पूरे दिन मे आपके घुटने की मालिश करना तो मैं भूल ही गया मैं अभी बाम लेकर आता हूँ

सौरभ बाम लेने चला गया और विनीता को अपनी गीली चूत का ख्याल आया जो रस से भरी पड़ी थी उसको ये पता था कि जब बेटा उसके घुटने की मालिश करेगा तो अंदर का नंगा नज़ारा उसकी निगाहो से छिपा नही रह सकेगा पर उसके पास ना तो इतना टाइम था और ना ही वो इस हालत मे थी कि फटाफट से पैंटी पहन सके तो हाई रे ये मजबूरी जो जवान बेटे की आँखे अपनी गदराई हुई माँ की जवानी से सेंकने का इंतज़ाम कर रही थी उसने एक गहरी सांस ली और अपने आप को हालत के हवाले कर दिया 

इधर सुधा जब घर पर पहुचि तो उसने देखा कि प्रेम अपने कमरे मे किताबो मे डूबा हुआ है उसकी नज़र आँगन मे तार पर लटकी उषा की ब्रा-पैंटी पर पड़ी तो वो उसको डाँट लगाते हुए बोली- बेशरम, थोड़ी बहुत तो शरम कर लिया कर घर मे जवान भाई है तेरे इन अन्द्रूनि कपड़ो को ऐसे खुले मे लटके देखे हुए देखेगा तो क्या सोचेगा सुधा अपने मन ही मन मे बोली और वैसे भी आजकल उसकी निगाहें कुछ और ही बयान करने लगी हैं 

उषा- जी, माँ वो जब मैं नहा कर आई थी तो भाई घर पर था नही और फिर मुझे इन्हे उतारना ध्यान नही रहा , आगे से ध्यान रखूँगी ऐसा कह कर वो उनको लेकर अपने कमरे मे चली गयी
उषा कपड़ो को अलमारी मे रखते हुए- मेरी भोली माँ, अब तुम्हे क्या पता तुम इन कपड़ो की बात कर रही हो तुम्हारा भोला बेटा पूरी रात मुझे अपनी गोदी मे बिठाए रखता हैं प्रेम के साथ की चुदाई का ख्याल आते ही उषा के तन बदन मे मस्ती सी भरने लगी तो उसने देखा सुधा रसोई मे व्यस्त हैं तो वो उपर प्रेम के कमरे मे पहुच गयी 

अपनी दीदी को कमरे के दरवाजे पर खड़े देख कर प्रेम मुस्कुराया और खड़ा हो गया उषा आगे आई और बिना देर किए प्रेम के जिस्म से चिपक गयी और अपने नाज़ुक नाज़ुक होंठो को अपने भाई के लिए खोल दिया प्रेम ने अपने होंटो पर जीभ फेर कर उनको गीला किया और फिर दीदी के निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच मे फसा लिया उषा के शहद से भी मीठे लबों के रस को चूमते हुए प्रेम सलवार के उपर से ही उसकी गान्ड को सहलाने लगा अपने दोनो हाथो से उसको भीच रहा था उषा की मुनिया फिर से गीली होने लगी 
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