RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे विराज ने अपनी सुहागरात पर यह जाना कि उसे कुँवारी लेकिन बहुत ही वासना से भरी चुदक्कड़ और शायद थोड़ी अनुभवी पत्नी मिली है। वो उसे अपने दोस्त के साथ मिल कर चोदना चाहता था लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? ये तो आगे चल कर ही पता चलेगा। अब आगे…
अगले दिन जब विराज ने सारी बात जय को बताई तो जय को बड़ी ख़ुशी हुई। उसने विराज को मुबारकबाद दी और मिलवाने के लिए कहा।
विराज- मिल लेना यार, ये सब मेहमान चले जाएं तो आराम से मिलवा दूंगा और तू कहे तो और भी बहुत कुछ कर सकते हैं साथ मिल कर।
जय- नहीं यार, ऐसे एक तरफ़ा काम नहीं करते। मेरी भी शादी हो जाने दे, फिर अगर दोनों की तरफ से हाँ हुई तो करेंगे साथ में।
विराज- तो फिर जल्दी से शादी कर ले यार … सब मिल के मस्ती करेंगे फिर।
कुछ ही दिन में जय को भी लगने लगा कि वो अब विराज के साथ उतना समय नहीं गुज़ार पा रहा था और जो मस्ती वो पहले किया करते थे वो काफी कम हो गई थी। विराज को भी अपनी पत्नी को समय देना ज़रूरी था और फिर एक विषम-लैंगिक पुरुष को तो स्त्री के साथ ही सम्भोग करने का मन करेगा। जय के साथ तो ये सब इसलिए शुरू हुआ था कि कोई और चारा नहीं था और अब केवल दोस्ती निभाने के लिए चल रहा था।
जय ने भी अपने पिता को शादी के लिए इशारा किया कि हमारे घर में भी बहू होती तो काम आसान हो जाता। उनको भी बात सही लगी तो उन्होंने अपनी बिरादरी की एक पढ़ी-लिखी सुन्दर लड़की ढूँढ निकाली और शादी पक्की कर दी। लड़की का नाम शीतल था। पास के छोटे शहर में शीतल के पिता की रेडियो और घड़ी की दूकान थी। शीतल की माँ बचपन में ही गुज़र गईं थीं और बाप-बेटी अकेले वहीं शहर में रहते थे।
बहरहाल शादी हो गई और सुहागरात की बारी आई। जय के घर में कोई महिला नहीं थी इसलिए शादी के बाद रिश्तेदारों में भी कोई महिला रुकी नहीं। आखिर विराज और शालू ने ही मिल कर सुहागरात के लिए कमरा सजाया और शालू ने शीतल को उसके बिस्तर पर बैठा कर एक सहेली की तरह समझा कर बाहर आ गई।
शालू- अरे, अब आपस में चिपकना बंद करो। अब तो देवर जी को तो सुन्दर सी दुल्हन मिल गई है। जाओ देवर जी अपनी गिफ्ट खोल के देखो कैसी मिली है?
जय- आपने तो देख ली है ना आप ही बता दो कैसी है?
शालू- बाहर से तो बहुत अच्छी है। अब अन्दर से तो आप ही खोल के देखोगे ना!
शालू ने चुटकी लेते हुए कहा और खिलखिला के हँसते हुए अपने घर की तरफ चली गई।
विराज- चल भाई जा, मुझे तो पता है कि तू आज पूरी चुदाई नहीं करेगा। तेरी सलाह पे तो मैंने 15 दिन लगा दिए पूरा लंड घुसाने में, तू पता नहीं कितने दिन लगाएगा। मौका मिले तो पूछ लेना। भाभी भी शालू जैसी बिंदास हुई तो मज़े करेंगे साथ में।
जय- देखते हैं क्या लिखा है किस्मत में। शालू भाभी सही कह रहीं थीं। गिफ्ट खोल के देखेंगे तभी पता लगेगा।
इतना कह कर जय ने विराज से विदा ली और अपनी सुहागरात के सपने सजाए अपने कमरे की ओर चला गया। सुहागरात मनी और ठीक ही मनी लेकिन उसमें ऐसा कुछ हुआ नहीं जिसको जय उतने ही जोश से सुना पाता जितने जोश से विराज ने उसे अपनी सुहागरात की कहानी सुनाई थी।
शीतल के ऊपर कम उम्र में ही ज़िम्मेदारियों का बोझ आ गया था और शहर में जीवन कुछ ऐसा होता है होता है कि बाहर के लोगों से मेलजोल कम ही हो पाता है उस पर शीतल के पिता को डर था कि कहीं बिन माँ की बेटी गलत रास्ते पर चली गई तो जीवन बरबाद हो जाएगा इसलिए हमेशा उसे ऐसी शिक्षा दी कि कभी स्कूल-कॉलेज की सहेलियों के साथ भी सेक्स के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं कर सकी।
एक तरह से उसके मन में सेक्स को लेकर एक डर भर गया था। मानो सेक्स करने से कुछ तो बुरा हो जाएगा। इतना तो उसे पता था कि शादी के बाद पति के साथ ये सब सामान्य जीवन का हिस्सा होता है लेकिन फिर भी सेक्स को लेकर उत्साह तो दूर की बात है, वो तो कामक्रीड़ा को लेकर सहज भी नहीं हो पा रही थी।
जय भी सौम्य पुरुष था और उस पर किसी तरह का जोर डालना नहीं चाहता था।
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