Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:59 PM,
#66
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"बेटा, कब तक चलेगा ऐसे? बेटा, अगर ऐसे ही रोते रहोगे तो अपनी आंखों की रोशनी भी खो दोगे। अब तो रात ही अन्धेरी लगती है, फिर तो दिन भी रात की तरह अन्धेरा हो जायेगा....और इस दुनिया में....इस अन्धेरी दुनिया में तुम अपनी वहनों को कैसे ढूंढ पाओगे? बेटा, यूं रोकर अपनी आंखों को बेकार न करो।” काका भावुक हो गये।

सलाखों को पकड़े विनीत की रोई सुर्ख आंखों को देखने लगे। "आप सही कहते हैं काका....।" विनीत ने निःश्वांस भरी- मैं भी अपनी ये जेल की जिन्दगी हंस-हंसकर व्यतीत कर देना चाहता हूं। जब औरों को देखता हूं तो सोचता हूँ मैं औरों की तरह हंसू। दूसरों की ही तरह मुस्कराकर जीबन बिताऊं। मगर क्या करूं काका! वहनों की यादें आंखों में अश्कों का सागर बहाती हैं। मगर....काका अब मैं कोशिश करूंगा कि मैं नरोऊँ।"

“ओके। बेटा, तुमने मेरी बात रख ली। अब तुम सो जाओ, मैं चलता हूं।” सन्तरी आगे बढ़ गया। विनीत कम्बल ओढ़कर नीचे ही लेट गया।

सोने की तमाम कोशिशें नाकाम हो गई थीं। मगर वह आंखें बंद किये हए....सोने की कोशिश में लगा रहा। उसको रात के तीन बजे तक भी नींद न आयी। उसके बाद उसको कब नींद आयी पता नहीं।

बक्त ने कभी रुकना नहीं सीखा। बह अपनी समान गति से निरन्तर आगे की ओर बढ़ता ही चला जाता है। अतीत बहुत पीछे रह जाता है....वर्तमान उसमें पिसता रहता है और भविष्य दूर खड़ा हुआ कातर दृष्टि से उसकी ओर देखता रहता है। पता नहीं उसकी ओर बढ़ने वाला समय उसके साथ कैसा व्यवहार करे। दिन और रात के क्रम में बंधा हुआ किसी वक्त की प्रतीक्षा नहीं करता....कभी किसी के लिये नहीं रुकता। एक चीखता है....दूसरा आंसू बहाता है। कोई छटपटाता है....दूसरा चूंट भरके उस पीड़ा को पीता रहता है। एक ओर उल्लास है, दुनिया की हर खुशी है....दूसरी ओर जैसे सारे संसार के दुःख एक ही स्थान पर आकर जमा हो जाते हैं। सुख और दुःख....स्थान-स्थान पर हेरियां लग जाती हैं..... परन्तु बक्त! उसे इन्सानों से क्या बास्ता? उसका काम चलना है....निरन्तर आगे बढ़ते जाना....और वह बहुत आगे बढ़ गया था। विनीत की सजा के दिन पूरे हो चुके थे। उसके अच्छे व्यवहार पर उसकी कुछ दिनों की सजा भी माफ कर दी गयी थी। संतरी ने जब उसे यह समाचार सुनाया तो वह प्रसन्नता से झूम उठा। परन्तु उदास भी हो गया।

"जेलर साहब बुला रहे हैं...चलो..."

“काका।” विनीत ने संतरी से कहा- “क्या मैं जिंदगी भर इस कोठरी में नहीं रह सकता?"

"क्या तुम्हें इस बात से खुशी नहीं हुई कि तुम आज कैद से मुक्ति पा रहे हो?"

“हुई।” उसने का था-"परन्तु काका, गमों से तब छुटकारा मिला जब जिन्दगी में कुछ भी न रहा। कौन मुझे जीने देगा दुनिया में?"

"अपनी आत्मा।" संतरी ने कहा था-"अपना साहस....."

सुनकर वह धीरे से मुस्कराया। कुछ कहना तो चाहता था परन्तु कह न सका। थोड़ी देर बाद वह जेलर के कमरे में था। जेलर ने अपनी गरदन उठाकर उसकी ओर देखा, फिर कहा-"विनीत , तुम्हारे अच्छे व्यबहार के कारण तुम्हारी सजा के बाकी दिन माफ कर दिये गये हैं। आज तुम्हें मुक्ति मिल रही है।"

"थै क्यू सर......"

"तुम्हें मुझसे वायदा लेना होगा कि तुम अपनी उसी दुनिया में जाकर अपने चरित्र को ऊंचा उठाने का प्रयत्न करोगे तथा किसी के भी प्रति बदले की भावना को मन में स्थान नहीं दोगे।"

"तुम जीवन में फिर कभी इस ओर नहीं आओगे।"

"मैं वचन देता हूं जेलर साहब।"

"ईश्वर तुम्हें सद्बुद्धि दे। लो...इन कपड़ों को उतार कर इन्हें पहन लो।” जेलर ने आलमारी में रखी बुशर्ट और पैंट उठाकर उसे दे दी तथा कुछ रुपये भी मेज पर रख दिये। "इन रुपयों को भी रख लो।"

"जी....?"

"तुम्हारे ही हैं।” जेलर साहब ने कहा-"प्रत्येक कैदी की रिहाई के समय मिलते हैं।"

विनीत ने बे रुपये उठाकर जेब में रख लिये। आज वह इस जगह को छोड़ रहा था। इस जगह उसने जिंदगी के बहुत से दिन गुजारे थे। आज वह घुटन भरी इस जिंदगी से दूर जा रहा था। इस दुनिया में जहां घूमने-फिरने की आजादी होगी। न जाने क्यों विनीत का दिल भर आया था। उसने अभिवादन के लिये हाथ जोड़े। उसके अभिवादन का उत्तर देने के बाद जेलर ने एक बार फिर कहा-"उम्मीद है, तुम मेरी बातों को ध्यान में रखोगे।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा सर।" जैसे ही वह बाहर निकला, बाहर ही वह संतरी खड़ा था। ठिठककर उसने कहा-"जा रहा हूं काका।"

“जाओ बेटा....जाओ। ईश्वर तुम्हें खुश रखे।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:59 PM

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