Hindi Antarvasna - काला इश्क़
07-14-2020, 01:00 PM,
#69
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 60

मैं कुनमुनाया और अलार्म बंद कर दिया पर ठीक पांच मिनट बाद फिर अलार्म बजा और मैं बड़े गुस्से के साथ उठा और जमीन पर फिर से बैठ गया| खिड़की से आ रही ठंडी हवा और उजाले ने मेरी नींद थोड़ी तोड़ दी थी| मेरा मन अब ये जॉब करने का बिलकुल नहीं था, क्योंकि अब मुझे इसकी कोई जर्रूरत नजर नहीं आ रही थी| ऊपर से ये घर जिसमें रितिका के लिए मेरा प्यार बस्ता था अब मुझे अंदर ही अंदर खाने लगा था| मैं उठा और नहाने चला गया, फिर बाहर आते ही मैंने लैपटॉप पर रेंट पर मकान देखने शुरू किये और तब मुझे याद आया की कहाँ तो मैं अपने और रितिका के लिए बैंगलोर में मकान ढूँढ रहा था और कहाँ लखनऊ में ढूंढने लगा| मन में एक खेज सी उठी .....

लिस्ट में जो नाम सबसे ऊपर था उसी पर कॉल किया और अपनी requirement और budget उसे बता दिया, उसने ग्यारह बजे मुझे मिलने बुलाया| मैंने तुरंत बॉस को फ़ोन किया की मुझे घर शिफ्ट करना है इसलिए मैं आज नहीं आ पाउँगा, ये बोल कर मैं दलाल के पास चल दिया| एक-एक कर उसने मुझे 3-4 options दिखाए पर मुझे जो जच्चा वो था ठेके के पास| एक gated society थी और रेंट 15,000/- था| 2 BHK था बस ऑफिस से बहुत दूर था, पर हाईवे के पास था| वैसे भी मुझे कौन सा ऑफिस जाना था अब, मुझे तो जल्द से जल्द उस घर से निकलना था जहाँ अब मेरा दम घुटने लगा था| मकान मालिक ने मुझसे मेरे काम-धंधे के बारे में पुछा तो मैंने उसे सब कुछ बता दिया और अपने documents भी दिखा दिए| सब बात फाइनल कर मैं ने उनकी बैंक डिटेल्स ले ली और उसी वक़्त उन्हें साड़ी पेमेंट कर दी| दलाल ने सारे कागज बनवाने थे, मैं सीधा घर आया और दो suitcase में अपना समान भरा और घर की चाभी सुभाष अंकल जी को देने चल दिया| उन्हें मैंने ये कहा की मेरी पोस्टिंग अब बरेली में जयदा रहती है इसलिए मैंने नया घर हाईवे के पास लिया है ताकि आने-जाने में आसानी हो| घर की ad मैंने ऑनलाइन डाल दी है और नंबर उन्हीं का डाला है| तो वो खुश हुए की उन्हें नया किरायदार ढूंढने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी|

अपनी बुलेट रानी पर पीछे सारा समान बाँध कर मैं नए फ्लैट पर आ गया और समान रख कर सीधा कुछ समान खरीदने निकल पड़ा| Glass का एक सेट, दारु की बोतल और कुछ चखना ले कर मैं घर लौट आया| अभी मैंने सोचा ही था की मैं पीना शुरू करूँ की दलाल और मकान मालिक कागज ले कर आ गए| उन्होंने देख लिया की बिस्तर पर शराब की बोतल राखी है पर किसी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उनका मुँह-माँगा रेंट जो दे रहा था| कागज साइन कर के उन्होंने एक काम करने वाली दीदी से मिलवाया जो सब के यहाँ झाड़ू-पोछा और बाकी के काम करती थीं| मेरे लिए तो ये ऐसा था जैसे अंधे को आँखें मिल गई हों| मैंने उनसे सारे काम की बात कर ली, झाड़ू-पोछा, कपडे, बर्तन और दिन में एक बार खाना बनाना| उन्होंने डरते हुए 5,000/- कहा और मैं जानता था की ये कम है पर मैंने इस डर से कुछ नहीं कहा की कहीं मकान मालिक इससे commission में पैसे ना लेता हो| मैंने सोचा जब ये काम करने आएँगी तो मैं इन्हें पैसे बढ़ा कर दे दूँगा| मकान मालिक ने जाते-जाते बस इतना कहा; "बेटा प्लीज कोई बखेड़ा खड़ा मत करना|" मैं उनका मतलब समझ गया| "अंकल जी मैं बहुत शांत स्वभाव का आदमी हूँ, यहाँ किसी से मेरी कोई बात-चीत नहीं होगी और न ही आपको कोई शिकायत आएगी|" मैंने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा| दीदी भी कह गईं की वो कल सुबह 7 बजे आएँगी, अब मुझे तंग करने वाला कोई नहीं था| मैंने अपना पेग बनाया और बालकनी में फर्श पर बैठ गया और सड़क को देखते-देखते घूँट भरने लगा| आज पता नहीं पर मेरा मन कह रहा था की शायद....शायद कुछ अच्छा हो जाए!

पर नहीं जी..... ऊपर वाला तो मुझसे आज कल बहुत खफा था| पास में पड़ा फ़ोन जिमें अभी नुसरत फ़तेह अली का गाना बज रहा था वो अचानक से बंद हुआ और पिताजी का कॉल आ गया|

मैं: जी

पिताजी: बेटा रितिका का रिश्ते पक्का हो गया है, दिवाली के दूसरे दिन ही शादी है!

पिताजी ने हँसते हुए कहा और ये सुन कर मेरा हाल बेहाल था! आँख से एक कटरा एक आँसूँ निकला और बहता हुआ मेरी गोद में गिरा| जिसके दिल पर मेरा नाम लिखा था आज वो किसी और के नाम की मेहँदी रचवाने वाली थी! जो कल तक मेरा नाम लिया करती थी वो अब किसी और की होने जा रही थी| मैं अपने इन्हीं ख्यालों में गुम था और इधर पिताजी उम्मीद कर रहे थे की मैं ख़ुशी से उछाल जाऊँगा|

पिताजी: हेल्लो? मानु? हेल्लो?

मैं: हाँ जी! इधर ही हूँ मैं|

पिताजी: बेटा हम लोगों को तुझसे बात करनी है तू कल के आ जा|

अब में घर जा कर उस बेवफा की सूरत नहीं देखना चाहता था, उससे मेरा गम बढ़ना ही था कम नहीं होना था!

मैं: जी...वो....मैं नहीं आ पाऊँगा| आप बताइये की क्या काम था?

पिताजी: बेटा इतनी ख़ुशी की बात है और तू वहाँ अकेला है? देख भाई साहब भी कह रहे थे की तू कल आ जा वरना हम तुझे लेने आ जाते हैं|

मैं: मैं लखनऊ में नहीं हूँ! मैं.....नॉएडा में हूँ!

पिताजी: क्या? पर क्यों?

मैं: जी वो काम....काम के सिलिसिले में आना पड़ा|

पिताजी: तो कब वापस आ रहा है?

मैं: जी टाइम लगेगा.... 20-25 दिन....

उस टाइम मेरे मुँह में जो झूठ आ रहा था मैं वो सब बोले जा रहा था| मेरी शायद ये बात ताऊ जी भी सुन रहे थे इसलिए अगली आवाज उनकी थी जो बहुत गुस्से में थी;

ताऊ जी: मानु! रितिका के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया है और तू बहाने बनाने में लगा है! मैं कहे देता हूँ की ये रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए, मंत्री जी सामने से रिश्ता ले कर आये हैं! रितिका की शादी से पहले मैं चाहता हूँ की तेरी शादी हो जाए| अच्छा लगता है की चाचा कुंवारा बैठा है और भतीजी की शादी हो रही है?! कल पहुँच यहाँ!

मैं: ताऊ जी मैं आपको पहले ही कह चूका ही की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर आप बार-बार मेरे पीछे क्यों पड़ जाते हैं? जिसका रिश्ता आया है उसकी चिंता करिये पहले! शादी के लिए वो मरी जा रही है मैं नहीं!

मैंने थोड़ा गुस्से में कहा क्योंकि कोई नहीं जानता था की मेरे दिल में क्या आग लगी है! हर किसी को अपनी करनी है तो करो, मैं भी अब वही करूँगा जो मुझे करना है|

ताऊ जी: जुबान लड़ाता है? तुझे जरा सी छूट क्या दी तू तो हमारे सर पर नाचने लगा?

मैं: आप को ये रिश्ता अपने हाथ से नहीं जाने देना ना तो आप करो उसकी शादी| मेरे लिए कौन सा प्रधान मंत्री का रिश्ता आया है जो आप एक दम से शादी-शादी करने लगे?

दारु का नशा अब मुझसे सब बुलवा रहा था|

पिताजी: (चिल्लाते हुए) तू होश में है? क्या बोले जा रहा है? नशा-वषा किया है क्या? ऐसे बदतमीजी से बात करेगा तू भाई साहब से?

मैं: मैं इतनी बार तो आप सब से कह चूका हूँ की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर हर 6 महीने बाद आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़ जाते हैं? आपको समाज की क्यों इतनी चिंता है? शादी के बाद बीवी को खिलाऊँगा क्या? या ये दुनिया वाले रोज 3 टाइम का खाना देने आएंगे मुझे?

शायद ताऊ जी को मेरी बात समझ आई और वो नरम होते हुए बोलने लगे;

ताऊ जी: ठीक है, तुझे शादी नहीं करनी ना? पर अपनी भतीजी की शादी में तो आ जा!

उनकी नरमी देख मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ की उन्होंने तो मेरा दिल नहीं तोडा ना?

मैं: ताऊ जी मुझे माफ़ कर देना, मुझे आपसे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी! मैं अभी शहर में नहीं हूँ, नॉएडा आया हूँ काम के सिलसिले में| कम्पनी के कुछ लिकनेसेस का काम है, इसलिए उसमें टाइम लगेगा| रही रितिका की शादी की बात तो मैं आ जाऊँगा, आप निश्चिन्त रहिये| अभी तो तकरीबन 2 महीने हैं ना हमारे पास?

मैंने बड़ी हलीमी से बात की और ताऊ जी मान भी गए| फ़ोन कटते ही मैंने एक लार्ज पेग बनाया और उसे एक सांस में गटक गया| मैं कैसे उसकी शादी में जाऊँगा? कैसे उसे अपनी आँखों के सामने विदा होते हुए देखूंगा? काश ये सब देखने से पहले मैं मर जाता! ये सोचते-सोचते मैं पूरी बोतल पी गया पर कोई हल नहीं मिला| दिल और दिमाग को चैन नहीं मिल रहा था, अब तो दारु भी खत्म हो गई थी तो कुछ तो चाहिए था मुझे? मैं लड़खड़ाता हुआ उठा और गाँजा ढूँढने लगा, सारा समान उथल-पुथल करने के बाद मुझे वो मेरी ही पैंट की जेब में मिला| ठीक से दिख भी नहीं रहा था, इसलिए बड़ी मुश्किल से उसे सिगरेट में भरा और पहला कश लेते ही मैं वापस जमीन पर बैठ गया| दारु की खाली बोतल में मुझे एक आखरी बूँद दिखाई दी, मैंने उसे मुँह से लगाया और वो आखरी बूँद भी पी गया| ऐसा लगा मानो सबसे जयदा स्वाद उसी आखरी बूँद में था| फटाफट मैंने सिगरेट पी ताकि उसका नशा मेरा दिमाग जल्दी से सुन्न कर दे और मैं चैन से सो सकूँ| हुआ भी वही अगले दस मिनट में ही मेरी आँख लग गई और फिर सुबह खुली जब दीदी ने बेल्ल बजा-बजा कर मेरी नींद तोड़ी| मैंने बड़ी मुश्किल से उठ कर दरवाजा खोला, दरवाजा खुलते ही दीदी को दारु का एक बहुत तेज भभका सूंघने को मिला| उन्होंने ने एक दम से अपनी नाक सिकोड़ ली और मुझे ये देख कर एहसास हुआ की मैंने क्या छीछालेदर किया है! मैं बिना कुछ कहे बाथरूम में घुसा और नहा-धो कर तैयार हुआ, अब घर में बर्तन तो थे नहीं की मुझे चाय मिलती| घर की सफाई हो चुकी थी और मुझे तैयार देख दीदी कहने लगीं की वो कपडे शाम को कर देंगी| मुझसे उन्होंने पुछा की मैं कितने बजे लौटूँगा तो मैंने उन्हें 6 बजे बोल दिया और फिर मैं ऑफिस के लिए निकल गया| आज मैंने सोच लिया था की सर को अपना रेसिग्नेशन दे दूँगा| ऑफिस आ कर जब मैंने जॉब छोड़ने की बात कही तो सर ने मुझे अपने सामने बिठाया और पुछा;

बॉस: पहले तो तू ये बता की ये क्या हालत बना राखी है अपनी? और क्यों ये जॉब छोड़ना चाहता है? कहीं कोई और जॉब मिल गई?

मैं: सर कुछ पर्सनल कारन हैं!

बॉस: जॉब छोड़ने के लिए पर्सनल करना है या फिर ये दाढ़ी उगाने की वजह पर्सनल है?

सर बार-बार कारन जानने के लिए कुरेदते रहे क्योंकि पिछले कुछ महीनों में उन्होंने under staffing की थी और एकाउंट्स में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, यानी मैं और अरुण और हम दोनों ही पूरा एकाउंट्स का काम देख रहे थे, हेडोफ़्फ़िस का भी और यहाँ ब्राँच का भी| अब मुझे सर को कुछ न कुछ बहाना मारना था तो मैंने कहा;

मैं: सर मैं बोर हो गया हूँ! इतनी दूर से आना पड़ता है!

बॉस: अरे भाई अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है जो बोर हो गए? अभी तो साड़ी उम्र पड़ी है! दूर से आना पड़ता है तो यहाँ कहीं नजदीक घर देख ले!

मैं: सर यहाँ कहाँ बजट में घर मिलेगा?

बॉस: तो अब तो मेट्रो शुरू हो गई उससे आ जाया कर!

पर मैं तो मन बना चूका था की मुझे जॉब छोड़नी है इसलिए सर ने कहा;

बॉस: ठीक है यार अब तेरा मन बन ही चूका है तो, पर देख एक महीना रुक जा और ये काम निपटा दे फिर बाकी का अरुण संभाल लेगा|

मैं: जी ठीक है पर सर सुबह के टाइम में थोड़ा relaxation दे दो! रात को आप जितनी देर बोलो उतनी देर बैठ जाऊँगा!

सर मान गए और मैंने सोचा की अब महीना तो शुरू हो ही चूका है तो रो-पीट कर दिन पार कर लेता हूँ! इधर जब ये खबर अरुण को पता चली तो उसने चुप-चाप सिद्धार्थ को फ़ोन कर दिया और शाम को जबरदस्ती मेरे साथ मेरा घर देखने के बहाने से मेरे साथ आ गया| रास्ते में ही उसने सिद्धर्थ को भी पिक करने को कहा| जैसे ही सिद्धार्थ ने मेरी हालत देखि तो वो गाली देते हुए कहने लगा; "बहनचोद क्या हालत बना राखी है अपनी?" पर मेरे जवाब देने से पहले ही अरुण बोल पड़ा; "साहब आज कल मजनू हो गए हैं!" मैं बीएस झूठी हँसी हँस कर रह गया, दोनों को एक मिनट छोड़ कर मैं कुछ लेने चला गया, वापस आया तो मेरे पास चिप्स, नमकीन और सोडे की बोतल थी|

हम तीनों दारु लेते हुए घर आ गए, बालकनी में तीनों जमीन पर बैठ गए और मैंने तीनों के लिए small-small पेग बनाये| इधर सिद्धार्थ ने खाना आर्डर कर दिया, उन दोनों ने एक सिप ही ली थी और मैं एक साँस में गटक गया| "अबे साले! आराम से, तू तो कतई देवदास हो रखा!" सिद्धार्थ बोलै पर आगे बात होने से पहले ही दीदी आ गईं और मैंने दरवाजा खोला| वो चुप-चाप बाथरूम में कपडे धोने लगीं| अरुण ने बात शुरू करते हुए कहा; "जनाब नौकरी छोड़ रहे हैं!" ये सुनते ही सिद्धार्थ चौंक पड़ा और बोला; तू पागल हो गया क्या? एक लड़की के चक्कर में पड़ कर इतनी अच्छी नौकरी छोड़ रहा है? होश में आ और life में practical बन जा| देख तुझे मैं एक Sure shot तरीका बताता हूँ उस लड़की को भूलने का| घर के अंदर बैठेगा तो इसी तरह ऊल-जुलूल हरकतें करेगा, घर से बाहर निकल और पेल दे किसी लड़की को! मेरे ऑफिस में है एक लड़का मैं उससे किसी लड़की का नंबर माँगता हूँ, उससे मिल और घापा-घप्प कर और Move- On कर! वो भी लड़की तो move-on कर गई होगी तू क्यों उसके चक्कर में अपना नास (नाश) कर रहा है!

"देख भाई, तेरे ये आईडिया तू अपने पास रख| मेरा गम बीएस मैं ही जानता हूँ और उसका ये इलाज तो कतई नहीं है|" मैंने दूसरा पेग बनाते हुए कहा|

"अच्छा तू ये बता की हुआ क्या एक्साक्ट्ली?" अरुण ने पुछा|

"कुछ नहीं यार, उसे कोई और पसंद आ गया| पैसे वाला था और वो उसे अच्छी जिंदगी दे सकता था|" मैंने जयदा डिटेल ना देते हुए कहा|

"तो Gold Digger थी वो?" सिद्धार्थ ने पुछा|

"ऐसी थी तो नहीं पर ......छोड़ ना! तू देख आर्डर कहाँ पहुँचा|" मैंने बात बदलते हुए कहा क्योंकि अब मुझे रितिका के बारे में कोई बात नहीं करनी थी| सिद्धार्थ भी समझ गया और उसने आगे कुछ नहीं बोला पर अरुण पर शराब का नशा चढ़ने लगा था और अब उसके मन में 'भाई के लिए प्यार' जाग गया था|

"बहनचोद! साला अगर उसने तुझे छोड़ा है तो वो किसी की सगी नहीं हो सकती! साले 1...2...3...4...5 साल से जानता हूँ तुझे!

अरुण ने उँगलियों पर गिनते हुए कहा और उसे ऐसा करता देख मैं और सिद्धार्थ हँस दिए|

"इसे और मत दे! साला रास्ते में ड्रामे छोड़ेगा और घर पर भाभी हमारी खाट खड़ी कर देगी!" सिद्धार्थ ने अरुण को और पेग देने से मना किया, मैंने उसका पेग हम-दोनों में आधा-आधा बाँटना चाहा तो उसने एक डीएम से पेग छीन लिया और गटक गया|

"ओ भोसड़ी के!" सिद्धार्थ चिल्लाया पर तब तक अरुण पेग पी चूका था और हम दोनों फिर से हँसने लगे| तभी खाना आ गया, मैं दरवाजा खोलने गया तो दीदी भी कपडे धो कर निकल आईं, अब उन्हें कपडे डालने थे बालकनी में और वहां तो हम महफ़िल जमा कर बैठे थे|

"दीदी रहने दो मैं दाल दूँगा बाद में! अच्छा आप नॉन-वेज खाते हो ना?" मैंने पुछा तो वो एक दम से हैरान हो गईं और हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने उनके लिए भी एक प्लेट नूडल मंगाए थे जो मैंने उन्हें दे दिए| पहले तो वो मना करने लगीं फिर मैंने थोड़ी जबरदस्ती कर के उन्हें दे दिया| वो मुस्कुरा कर चली गईं और मैं हम तीनों के लिए खाना ले कर बालकनी में बैठ गया| एल्युमीनियम के डिब्बे में नूडल्स आये थे तो प्लेट की जर्रूरत नहीं थी| हम तीनों ने खाना शुरू किया पर अरुण मियाँ पर नशा फूल शबाब पे था; "साला लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं? मेरे गऊ जैसे दोस्त को छोड़ कर चली गई.... तू...तू चिंता मत कर....मैं...बहनचोद....तेरी शादी कराऊँगा.... उससे भी अच्छी लड़की से.... रुक अभी तेरी भाभी को कॉल करता हूँ|" इतना कह कर वो फ़ोन मिलाने को हुआ तो मैंने उसके हाथ से फ़ोन छीन लिया|

"अबे चूतिया हो गया है क्या? चुप-चाप खाना खा|" मैंने कहा और आगे किसी को भी पीने नहीं दी| आज बहुत दिनों बाद मुझे खाना खाने में मजा आ रहा था| खाना खाने के बाद सिद्धार्थ बोला; "देख यार! मेरी बात मान जा और ये जॉब मत छोड़| मैं मानता हूँ तुझे थोड़ा टाइम लगेगा और तू उसे भूल जायेगा|" मैंने बस हाँ में सर हिलाया पर ये तो मेरा मन ही जानता था की मैं अंदर से बिखरने लगा हूँ|

घडी में अभी बस 10 बजे थे और अरुण भैया तो लौटने लगे थे और अब उन्हें घर छोड़ना अकेले सिद्धार्थ के बस की बात नहीं थी| मैंने कैब बुलाई और फिर हम ने मिलकर अरुण को कैब में बिठाया और पहले उसे घर छोड़ा और भाभी से माफ़ी भी मानगी की मेरे बर्थडे ट्रीट की वजह से भाई को थोड़ी जयदा हो गई| फिर सिद्धार्थ को छोड़ मैं उसी कैब में वापस आया और रस्ते में ठेके से एक और बोतल ली| घर आते ही मैं बालकनी में बैठ गया और फिर से उसी दर्द की आगोश में चला गया| लार्ज बना के जैसे ही होठों से लगाया तो रितिका की शक्ल याद आ गयी और उसी के साथ गुस्सा भी खूब आया| एक सांस में पूरा पेग खींच गया और फटाफट दूसरा पेग बनाया, तभी याद आया की माल भी तो तैयार है! मैंने जेब से फेमस मलना की क्रीम की छोटी सी पुड़िया निकाली और लग गया पूरा सेटअप बनाने| पूरी Heisenberg वाली फीलिंग आ रहे थी और मैं अपने इस बचकाने ख्याल पर मुस्कुराने लगा| आज पहली बार था की मैं अपने ही इस तरह के बचकाने ख्याल पर हँस रहा था| पर मेरे मन ने मुझे ये ख़ुशी जयदा देर तक एन्जॉय नहीं करने दी और मुझे अचानक से रितिका का हँसता हुआ चेहरा याद आ गया, मैं ने तैयार सिगरेट वहीँ जमीन पर छोड़ दी क्योंकि मेरा मन मुझे इस गम से बाहर नहीं जाने देना चाहता था| मैं पेग ले कर उठा और बालकनी में खड़ा हो कर ऊपर आसमान में देखने लगा| एक पल के लिए आँख मूँदि तो रितिका मुझे शादी के जोड़े में दिखी और फिर मेरी आँख से आँसू बह निकले और एक कटरा मेरे ही पेग में गिरा| मैंने सोचा की चलो आज अपने आंसुओं का स्वाद भी चख के देखूँ! झूठ नहीं कहूँगा पर ये वो स्वाद था जिसने दिल को अंदर तक छू लिए था! पेग खत्म हुआ और मैं वापस आ कर निचे बैठ गया पर अब दिल बगावत करने लगा था, उसे अब बस ऋतू चाहिए थी! चाहे जो करना पड़े वो कर पर उसे अपने पास ले आ! और अगर तू इतना ही बुजदिल है की अपने प्यार को ऐसे छोड़ देगा तो धिक्कार है तुझ पर! मर जाना चाहिए तुझे!!! मन ने ये suicidal ख्याल पैदा करना शुरू कर दिए थे| ऋतू को अपने पास ला सकूँ ये मेरे लिए नामुमकिन था और मरना बहुत आसान था! तभी नजर कमरे में घूम रहे पंखे पर गई.....
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RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़ - by desiaks - 07-14-2020, 01:00 PM

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