RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#१३
ये कार प्रज्ञा की थी . जल्दी गाड़ी मेरे पास आ गयी ,मैंने कुदाली साइड में रखी और शर्ट पहनते हुए उस तरफ गया. वो तब तक उतर चुकी थी
प्रज्ञा- कबीर, बड़ी मुश्किल से ढूंढा तुम्हारा ठिकाना , और तुम इतने दिन से कहाँ गायब थे .
मैं- आओ, बताता हूँ
बिजली नहीं आ रही थी तो ,मैं अन्दर से दो कुर्सिया ले आया और हम पेड़ के निचे बैठ गए.
मैं- कुछ कामो में उलझा था
वो- कम से कम मुझे तो बता सकते थे न .
मैं- बताना चाहता था पर तुम भी मंदिर की तरफ नहीं आई , फिर मैं नहीं जा पाया.
वो- बहुत दिनों से याद कर रही थी तुम्हे आज फिर मैं आ ही गयी.
मैं- अच्छा किया. चाय पियोगी
वो- नहीं , कोई जरुरत नहीं . तुम बस बैठो मेरे पास
मैं- पहले से और खूबसूरत लग रही हो.
वो- क्या तुम भी ऐसे झूठ बोलने की जरुँत नहीं तुम्हे.
मैं- नहीं सच में ,
वो- शायद शराब छोड़ने का असर है
मैं- अच्छी बात है जो तुमने छोड़ दी.
वो-तुमने कहा था तो बस छोड़ दी. , और बताओ क्या चल रहा है
मैं- कुछ खास नहीं, बस छोटे मोटे काम ही
वो- मैंने कहा न, तुम हमारे लिए काम कर सकते हो , मैं तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी अपने उधर ही करवा दूंगी.
मैं- नहीं, प्रज्ञा ,मेरी अपनी कुछ मजबुरिया है .
वो- चले जाने को , एक ख़ुशी की बात बताती हूँ हमने शहर में एक होटल ख़रीदा है , जिसकी ख़ुशी में एक पार्टी है तुम आओगे न , देखो मना मत करना .
मैं- पर वहां और लोग भी तो होंगे, ऐसे में मैं कैसे, और किसी ने पूछा तो क्या कहोगी,
वो- तुम ये मत सोचो तुम मेहमान होंगे हमारे. मुझे अच्छा लगेगा
मैं- प्रज्ञा, तुम बड़े लोग मैं एक मामूली, ये तो तुम्हारा बड़प्पन है जो तुमने मुझे इस काबिल समझा है पर ये दुनिया , .................. कही मेरे कारण तुम्हे परेशानी ना हो .
प्रज्ञा- कैसी बाते करते हो तुम कबीर, हम दोस्त हैं न , और अपनी दोस्त की ख़ुशी में शरीक होना तो अच्छी बात होती है न .
मैं- ठीक है , पर आना कब है
वो- परसों
प्रज्ञा के आने से बहुत अच्छा लगा था , कुछ ही मुलाकातों में अपनों से भी अपनी लगने लगी थी , तमाम बातो को दरकिनार करते हुए जिस तरह से हमारा ये दोस्ती का रिश्ता बन गया था ,सुख था इसमें . दो ढाई घंटे वो मेरे साथ रही फिर लौट गयी.
पिछले कुछ समय में जीवन में परिवर्तन सा आ गया था, मैं ताई से दुबारा सम्भोग करने की उम्मीद कर रहा था , पर शायद विवाह की तैयारियों में लगी थी, कई दिन बल्कि चुदाई वाले दिन के बाद सही वो इस तरफ नहीं आई थी. पीठ का \जख्म भर गया था पर दिल घायल था .
शाम को मैं गाँव में गया था कुछ काम से और चौपाल पर मेरी मुलाकात मेरे पिता से हुई. कायदे से हम दोनों को एक दुसरे को नजरअंदाज कर देना चाहिए था पर उस दिन ऐसा हुआ नहीं .मुझे देखते ही उनके कदम पाने आप मेरी तरफ बढ़ गए.
“कर्ण की शादी है, तुम्हे मालूम तो होगा ही ” पिताजी ने कहा
मैं- सुना मैंने
पिताजी- सारे गाँव का न्योता है आ जाना तुम भी
मैं- छोटे लोग अमीरों की दावतो का हिस्सा नहीं होते
पिताजी- बड़े लोग अक्सर ऐसे आयोजनों पर गरीबो को बक्शीश देते है , रूपये पैसे उपहार देते है तुम्हे भी मिलेगा.
मैं- ये हाथ देखो मेरे, मजदूरी के लोहे में तप चुके है , पूरा दिन पसीना बहाते है तो शाम को जो रोटी मिलती है न , कोई राजा महाराजा भी उस स्वाद को नहीं दे सकता बक्शीश में ,
पिताजी- चलो मजदूरी के बहाने ही आ जाना, वैसे भी आजकल बड़ी मुफलिसी में दिन गुजर रहे है तुम्हारे.
मैं- गरीबी ही सही, किसी का हक़ तो नहीं मारा , किसी के घर में अँधेरा करके अपनी खुशिया रोशन नहीं की
पिताजी- ये तुम कह रहे हो. मेरे घर के एक हिस्से में तुम्हारी वजह से अँधेरा है ,हर पल मैं एक कमी महसूस करता हु,
मैं- पर मैं ऐसा नहीं समझता, मैंने जो किया सही किया और मुझे एक पल भी शर्मिंदगी नहीं है , हाँ दुःख है , बहुत दुःख है , पर फिर भी सकूं है की जिन्दगी में एक अच्छा काम किया
पिताजी की आँखों में मैंने अपने लिए अपार नफरत महसूस की , आस पास के लोगो की वजह से उन्होंने और फिर कुछ नहीं कहा, वापिस मुड गए वो . मैं सविता मैडम के घर की तरफ बढ़ गया .पर वहां ताला लगा था , मालूम हुआ शहर गयी है .
अगला दिन भी बस यूँ ही बीत गया , पर उस से अगला दिन खास था , मुझे शहर जाना था , प्रज्ञा ने होटल का पता दे दिया था. बेशक मेरा मन नहीं था पर दोस्ती थी, निभानी थी, ताई ने पैसो की गड्डी दी थी , उनमे से कुछ नोट खर्च करके मैंने अपने लिए नए कपडे खरीद लिए थे, तैयार होकर एक नयी शाम के लिए होटल पहुच गया .
एक दम शानदार होटल था, पांच मंजिल का, बनाने वाले ने पूरा मन लगाकर ऐसी शानदार इमारत बनाई होगी. सामने ही दोनों तरफ अप्सराओ की संगमरमर वाली मुर्तिया थी , एक बीचोबीच एक शानदार पानी का फव्वारा था और जब मैं अन्दर गया तो मैं हैरान रह गया. मैंने कल्पना की की, पुराने ज़माने में राजा महाराजो का क्या रुतबा रहा होगा.
न जाने कितने मेहमान थे वहा पर, कोई गिनती नहीं , एक कोने पर कुछ गायक फ़िल्मी गाने गा रहे थे, कितने ही बैरे घूम रहे थे खाने पीने का सामान लिए.
मैं जानता था की प्रज्ञा अमीर है पर इतनी अमीर ये मुझे आज मालूम हुआ . मेरी नजरे उस चेहरे को तलाश कर रही थी जिसके न्योते पर मैं यहाँ आया था . मैं वही एक कोने में बैठ गया . और जूस पीते हुए तमाशे को देखने लगा. करीब आधे घंटे बाद मैंने उसे देखा . और देखता ही रह गया.
खूबसूरत तो वो थी , पर कातिलाना खूबसूरती क्या होती है मैंने उस खास लम्हे में जाना था .
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