Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
06-21-2018, 12:00 PM,
#11
RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
सुबह छह बजे हम पणजी पहुंचे. मेरी नींद नहीं हुई थी इसलिये थका थका सा लग रहा था. चाची फ़्रेश लग रही थीं, मेरे ऊपर वो करम करके वे आराम से सो गयी थीं. ऑटो से घर जाते वक्त मैंने चाची की ओर देखा. कल बस में जो हुआ, उसके बाद दिन की रोशनी में उनसे क्या और कैसे बोलूं ये मेरे लिये बड़ा धर्मसंकट था. उनसे आंखें भी नहीं मिला पा रहा था. इसलिये मैं बस चुप रहा. मेरा टेंशन देख कर ऑटो में स्नेहल चाची ने मेरी जांघ थपथपायी जैसे कह रही हों कि चिन्ता मत कर, इतना भी मत डर, सब ठीक हो जायेगा.

चाची का घर पणजी से पांच किलोमीटर पर पोर्वोरिम में था. वो भी शहर के थोड़ा बाहर. पुराना पोर्चुगीज़ बंगला था, आजू बाजू में गार्डन था. इतना बड़ा गार्डन था कि छोटे फ़ार्महाउस जैसा ही लग रहा था. आस पास दूर पर एक दो ऐसे ही बंगले और थे, बाकी तो सब हरियाली और बगीचे ही थे. मैं ऑटो को पैसे देने लगा तो चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया. "अब जब तक तू यहां है विनय, ऐसे बिना पूछे पैसे वैसे देना नहीं. मैं जो कहूंगी, बस वही करना. समझ गया ना? और खुद पर काबू रखना, दिमाग को ऐसे बहकने नहीं देना"

मैंने उनकी ओर देखा. उनकी आंखों में यह कहते हुए डिसिप्लिन के साथ थोड़ा आकर्षण भी झलक रहा था. मैं समझ गया, वे सजा देंगी तो भी शायद उसके पीछे उनका भी एक उद्देश्य होगा. चाची ये क्यों कह रही थीं, सिर्फ़ पैसे देने के बारे में नहीं, यहां रहते हुए हर चीज के बारे में कि वे कहें, मैं वैसा ही करूं. और जो उन्होंने कहा कि खुद कुछ मत करना, इसके पीछे उनका क्या मतलब था यह भी मैं थोड़ा समझ गया था. मैं धीमे स्वर में नीचे देख कर बोला "ठीक है चाची"

हम बंगले के अंदर आये. मैंने मन में सोच लिया था कि खुद कुछ करने की झंझट मैं अब नहीं करने वाला. जो करेंगी, वो चाची ही करेंगी. अंदर ड्राइंग रूम में हम पहुंचे तब तक नीलिमा, उनकी बहू वहां आ गयी थी. "ममी, मैंने देख लिया था अपने रूम से आपका ऑटो. नीचे आ ही रही थी. चलो अच्छा हुआ कि आप जल्दी आ गयीं." फ़िर मेरी ओर देखकर बोली "यह विनय है ना? शादी में नहीं आया था पर एक पुराने फोटो पर से पहचान लिया मैंने"

सोफ़े पर बैठते हुए चाची बोलीं "हां और इसको मैं साथ ही ले आयी. इसकी ट्रेनिंग है पणजी में अगले हफ़्ते से. और यह कह रहा था कि वहां गेस्ट हाउस में रहेगा! मैं कान पकड़कर साथ ले आयी कि चुपचाप मेरे साथ चल"

नीलिमा हंस कर बोली "अच्छा किया ममी. यहां अपना घर होते हुए यह ऐसे वहां होस्टल में रहे? और चलिये अब इतने बड़े घर में बस हम दोनों बोर नहीं होंगे. आप नहीं थीं तो अकेले रह कर पागल हो जाऊंगी ऐसा लग रहा था. वैसे वो विमलाबाई रहती थीं सुबह और शाम को. तुम बैठो विनय, मैं चाय बना लाती हूं" जिस तरह से उसका चेहरा आनंदमय हो गया था, उससे यह साफ़ था कि इन सास बहू में अच्छी पटती थी. ऐसा बहुत कम सास बहुओं में होता है. इसलिये मुझे भी पारिवारिक सुख का यह प्रमाण देखकर प्रसन्नता हुई.

ड्राइंग रूम इतना बड़ा था कि लगता है हमारे दो रूम मिलाकर भी उतने बड़े नहीं होते. आखिर गोआ का पुराना बंगला था. बड़ा अच्छा सजा हुआ था. पुराना पर कीमती फ़र्निचर, दीवालों पर कुछ पुरानी सुंदर पेंटिंग्स, सजावट का सामान इत्यादि.

चाय पीते पीते मैंने नजर चुराकर नीलिमा भाभी को नजर भर कर देख लिया. चेहरा एकदम स्वीट था, सुंदर ही था. बाल भी लंबे थे जिसकी एक वेणी उसने बांधी हुई थी. पहली नजर में - फ़र्स्ट इम्प्रेशन - वह मुझे काफ़ी भरे हुए बदन की लगी, याने मोटी सी, जबकि वह चाची से दो इंच ऊंची ही थी. फ़िर कारण मुझे समझ में आया. असल में उसका शरीर प्रमाणबद्ध ही था, कमर भी पतली सी थी. गाउन में से उसके स्तनों का उभार भी मीडियम था याने न ज्यादा बड़े स्तन थे न एकदम छोटे. याने कमर के ऊपर का भाग एकदम ठीक था, हां कमर के नीचे उसके कूल्हे एकदम चौड़े थे. पैर गाउन में से दिख तो नहीं रहे थी पर ऐसा लग रहा था कि टांगें भी मजबूत ही होंगी. इसीलिये कुल मिलाकर एकदम देखो तो ऐसा लगता था कि वह थोड़ी मोटी है. पर वह केवल इल्यूझन जैसा था. वह मोटी नहीं थी, बस कमर के नीचे का भाग भारी था.

मैंने अपने विचारों को लगाम लगायी. खुद को एक गाली दी कि चाची के पीछे पागल होकर और फ़िर कल हुई घटना से अब क्या तू हर औरत को ऐसी वासना की नजर से देखेगा? उनके हर अंग का अंदाजा लगायेगा? माना कि कल जो हुआ वह बहुत मादक और उत्तेजक था पर इस बात की क्या गारंटी थी कि आज भी ऐसा होगा? और नीलिमा भाभी भी घर में थी. उनसे नजर छुपा कर कब और क्या होगा, यह भी पक्का नहीं था. मेरा मन थोड़ा निराश सा हो गया, याने बहुत मीठे लड्डू को टेस्ट करने के बाद बच्चा यह आशा करे कि अब पूरा लड्डू मिलेगा और फ़िर कोई उससे कहे कि बेटा, अब एक ग्लास पानी पी के सो जा.

चाय पीते पीते चाची और नीलिमा में घर के बारे और इधर उधर की बातें होती रहीं. तब तक मैं टहल कर घर देख रहा था. नीचे ड्राइंग रूम के साथ एक बड़ा किचन और एक बेडरूम था; ऊपर सीढ़ी जाती थी. मैंने सीढ़ी पर से देखा तो वहां तीन दरवाजे थे. थोड़ा ऊपर गया. ऊपर एक छोटा ड्राइंग रूम था और तीन बड़े बड़े बेडरूम थे. एक बड़ी बाल्कनी थी.
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