Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 02:24 PM,
#33
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
भीमा अपने आपको कंट्रोल करके बहू के शरीर के ऊपर से उठा और धीरे से बिस्तर पर ही बैठ गया बहू अब भी शांत सी पड़ी हुई थी वो बिस्तर पर बैठे हुए ही अपने कपड़े नीचे से उठाकर पहनने लगा था पर नजर बहू के नंगे शरीर पर थी उसके मन में अब भी उसे तन से खेलने की इच्छा थी पर कुछ सोचकर वो कपड़े पहनकर उठा और वही चद्दर से बहू को ढँक कर बाहर की ओर चला गया 

कामया जो कि अब शांत थी भीमा के निकलने के बाद थोड़ा सा हिली पर ना जाने क्यों वो वैसे ही पड़ी रही और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गई 

शाम को ठीक 5 15 पर इंटरकम की घंटी बजी तो वो हड़बड़ा कर उठी और 
कामया- हाँ… 
भीमा-- जी वो आपको माँ जी के साथ मंदिर जाना था इसलिए 

कामया ने झट से फोन रख दिया दूसरी तरफ भीमा चाचा थे वो चिंतित थे कि कही वो सोती रह जाती तो मम्मीजी के साथ वो कैसे मंदिर जाती उसके चेहरे पर एक मुश्कान थी वो जल्दी से उठी और बाथरूम की ओर भागी ताकि नहा धो कर जल्दी से तैयार हो सके 

लगभग 6 बजे से पहले वो बिल्कुल तैयार थी साड़ी और मचिंग ब्लाउज के साथ मम्मीजी के साथ जाना था इसलिए थोड़ा सलीके की ब्लाउस और साड़ी पहनी थी पर था तो फिर भी बहुत कुछ दिखाने वाला टाइट और बिल्कुल नाप का साड़ी वही कमर के बहुत नीचे और ब्लाउस भी डीप नेस्क आगे और पीछे से 


थोड़ी देर में ही बाहर एक गाड़ी आके रुकी तो वो समझ गई थी कि टक्सी आ गई है वो फ़ौरन बाहर की ओर लपकी ताकि मम्मीजी के साथ ही वो नीचे मिल सके मम्मीजी को फोन नहीं करना पड़े नीचे आते ही मम्मीजी ने एक बार कामया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुराती हुई 
मम्मीजी- चले 
कामया- जी 
और बाहर जहां गाड़ी खड़ी थी आके बैठ गये 
गाड़ी में कामया ने बड़े ही हिम्मत करके मम्मीजी को कहा 
कामया- मम्मीजी 
मम्मीजी- हाँ… 
कामया- जी वो 
मम्मीजी- बोलो 
कामया- जी वो असल में मुझे ना यह सब मजा नहीं आता तो क्या में वहां से जल्दी निकलकर घर आजाऊ 
मम्मीजी- अरे ंमुझे भी कहाँ आता है इतनी भीड़ भाड़ में पर क्या करे बेटा जाना पड़ेगा ना तू एक काम कर वहां पार्क है तू थोड़ा घूम आना में वहां थोड़ी देर बैठूँगी और फिर दोनों घर आ जाएँगे 
कामया- जी ठीक है पर क्या मुझे भी वहां बैठना पड़ेगा 
मम्मीजी- तेरी मर्ज़ी नहीं तो आस-पास घूमकर देखना और क्या 
कामया- जी ठीक है 
दोनों ने एक दूसरे की ओर मुस्कुराते हुए देखा और गाड़ी को मंदिर के रास्ते पर घूमते हुए देखते रहे 

जैसे ही गाड़ी मंदिर पर रुकी बहुत से लोग गाड़ी के पास आके मम्मीजी के पैर पड़ने लगे कुछ कामया को भी नमस्कार करते हुए दिखे सभी शायद मम्मीजी को जानते थे मम्मीजी भी सभी के साथ कामया को लेकर मंदिर के सीढ़ियो पर चढ़ने लगी थी 
मंदिर के अंदर जाकर दोनों ने नमस्कार किया और अपनी जगह पर बैठ गये थे वहां बाहर से कुछ लोग आए थे कीर्तन वाले और कुछ गीता वाचक भी थे मंदिर का समा धीरे-धीरे जैसे भक्ति मय होने लगा था पर कामया का मन तो बिल्कुल नहीं लग रहा था 


वो चाह कर भी वहां बैठ नहीं पा रही थी एक तो बहुत जोर से माइक बज रहा था और फिर लोगों की बातें उसे समझ नहीं आ रही थी वो इधर उधर सभी को देख रही थी और किसी तरह वहां से निकलने की कोशिश करने लगी थी मम्मीजी आखें बंद किए कीर्तान की धुन पर झूम रही थी और कही भी ध्यान नहीं था 
कामया- मम्मीजी 
मम्मीजी के हाथों को हिलाकर कमी आने अपनी और ध्यान खींचा था 
मम्मीजी- हाँ… 
कामया- जी में थोड़ा बाहर घूम आऊ 
मम्मीजी- हाँ… हाँ… जाना में यही हूँ 
कामया की जान में जान आई वो लोगों की तरफ देखती हुई थोड़ा सा मुस्कुराती हुई सिर पर पल्ला लिए हुए धीरे से उठी और बाहर की ओर चलने लगी बहुत सी आखें उसपर थी 

पर एक आखों जो कि दूर से उसे देख रही थी कामया की नजर उसपर जम गई थी वो भीड़ में खड़ा दूर से उसे ही निहार रहा था वो घूमकर उसे देखती पर अपने को उस भीड़ से बच कर जब वो बाहर निकली तो वो आखें गायब थी वो मंदिर के बाहर सीढ़ियो पर आके फिर से इधार उधर नजरें घुमाने लगी थी पर कोई नहीं दिखा उसे 



पर वो ढूँढ़ क्या रही थी और किसे शायद वो उस नजर का पीछा कर रही थी जो उसे भीड़ में दिखी थी पर वो था कौन उसे वो नजर कुछ पहचानी हुई सी लगी थी पर एक झटके से उसने अपने सिर को हिलाकर अपने जेहन से उस बात को निकाल दिया की उसे यहां कौन पहचानेगा वो आज से पहले कभी मंदिर आई ही नहीं वो मंदिर की सीढ़िया उतर कर बाहर बने हुए छोटे से पार्क में आ गई थी और धीरे-धीरे चहल कदमी करते हुए बार-बारइधर-उधर देखती जा रही थी लोग सभी मंदिर की और जाते हुए दिख रहे थे कुछ उसे देखते हुए तो कुछ नजर अंदाज करते हुए पर तभी उसकी नजर मंदिर के पास खड़े हुए उस इंसान पर पड़ी जिसे देखते ही उसके रोंगटे खड़े हो गये वो बिल्कुल मंदिर की सीढ़ियों के पास दीवाल से टिका हुआ खड़ा था वो उसे ही देख रहा था पर बहुत दूर था कामया ने जैसे ही उसे देखा तो वो थोड़ी देर के लिए वही ठिटक गई और, फिर से उसे देखने लगी थी 

वो दूर था पर उसे पता चल गया था कि कामया की नजर उसे पर पड़ चुकी थी वो धीरे-धीरे मंदिर के पीछे की ओर जाने लगा था कामया अब भी वही खड़ी हुई उसे जाते हुए देखती रही पर पीछे की ओर जाते हुए वो थोड़ा सा अंधेरे में ठिटका और पीछे मुड़कर एक बार फिर से कामया की ओर देखा और अंधेरे में गुम हो गया कमाया अपने जगह पर खड़ी हुई उस अंधेरे में देखती रही और उस नजर वाले को तौलती रही वो अपने चारो ओर एक नजर दौड़ाई और धीरे से उस ओर चल दी जहां वो इंसान गायब हुआ था उसके शरीर में एक अजीब सी उमंग उठ रही थी 

वो चलते-चलते अपने पीछे और आस-पास का जायजा भी लेती जा रही थी पर सब अपने में ही मस्त थे सभी का ध्यान मंदिर में चल रहे सत्संग की ओर ही था और जल्दी से अपनी जगह लेने की कोशिश में थे कामया बहुत ही संतुलित कदमो से उस ओर जा रही थी 

वो अब मंदिर के साइड में आ गई थी पर उसे वो इंसान कही भी नहीं दिख रहा था वो थोड़ा और आगे की ओर चली पर वो नहीं दिखा वो अब बिल्कुल अंधेरे में थी और उसकी नजर उस नजर का पीछा कर रही थी जिसके लिए वो यहां तक आ गई थी पर वहां कोई नहीं था वो थोड़ा और आगे की ओर बढ़ी पर अंधेरा ही हाथ लगा वो कुछ और आगे बढ़ी तो उसे एक हल्की सी लाइट दिखी जो की शायद किसी के घर के अंदर से आ रही थी वो जिग्याशा बश थोड़ा और आगे की ओर हुई तो उसे वही इंसान एक दरवाजा खोलकर अंदर जाते हुए दिखा वो थोड़ी सी ठिटकि पर जाने क्यों वो पीछे की ओर देखते हुए आगे की ओर बढ़ती ही गई वो उस दरवाजे पर पहुँची ही थी कि अंदर से लाइट आफ हो गई और घुप अंधेरा छा गया 
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