Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:25 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
कामया ने एक बार कामेश और सभी की ओर देखा सबकी चेहरे पर एक ही भाव थे कि आओ सो कामया ने भी अपने कदम आगे बढ़ा दिए और धीरे से मनसा के साथ हो ली, मनसा कामया को लेकर जैसे ही उस कमरे के बाहर निकली वो एक बड़े से गलियारे में थे साइड में बहुत सी ऊँची पैंटिंग लगी थी और गमलों का तो अंबार था कुछ लोग भी थे जो शायद साफ सफाई कर रहे थे जैसे ही कामया को देखा सभी हाथ जोड़े खड़े हो गये थे सबके चहरे पर एक आदर का भाव था और एक इज़्ज़त थी 
कामया उन सबके बीच से होती हुई संकोच और लजाती हुई धीरे-धीरे मनसा के पीछे-पीछे चली जा रही थी चमकीले फर्श पर से उसे सामने का और ऊपर का हर दृश्य साफ दिख रहा था पर शरम का उसके ऊपर एक बोझ सा था कुछ भी ठीक से देख नहीं पाई थी वो एक तो डर था कि कामेश और घर वाले से दूर थी एक अंजान सी जगह पर 

मनसा के साथ चलते हुए वो एक घुमाव दार सीढ़ियो पर से होते हुए दूसरे माले पर पहुँची थी 

मनसा- आइए रानी साहिबा यहां आपका कमरा है 

बड़े-बड़े पर्दे के बीच से होते हुए नक्काशी किए हुए गमले और कुछ आंटीक प्फ्र के बीच से होते हुए कामया एक बहुत बड़े से कमरे में पहुँची थी कमरा नहीं हाल कहिए एक बड़ा सा बेड कमरे के बीचो बीच में था ग्राउंड लेवेल से ऊँचा था काफी ऊँचा था उसके चारो और नेट लगा था कमरे में कुछ नक्काशी दार चेयर्स और दीवान थे कालीन था और ना जाने क्या-क्या पर था बड़ा ही आलीशान 

मनसा- आज से यह कमरा आपका है रानी साहिबा 

कामया- यह मुझे रानी साहिबा क्यों कह रहे हो आप 

मनसा- यहां का उसूल है जो नाम गुरु जी देते है उससे ही बुलाया जाता है बस इसलिए आपको रानी साहिबा आपके पति को राजा साहब और आपकी मम्मीजी को रानी माँ और आपके पापाजी को बड़े राजा साहब 
बस यही नियम है 

कामया- एकटक उस कमरे की वैभवता को देख रही थी और मनसा की बातें भी सुन रही थी 

मनसा- अच्छा आप कपड़े बदल लीजिए 

और एक बड़ी सी अलमारी की ओर बढ़ ती वो पर उसे खोलते ही कामया का दिल बैठ गया था वहां तो सिर्फ़ एक ही लंबा सा वही सफेद कलर का कपड़ा टंगा हुआ था मनसा ने उस कपड़े को निकलकर कामया के सामने रख दिया था 

मनसा- आइए में चेंज कर दूं 

कामया- नहीं नहीं में कर लूँगी और यह क्या है क्या मुझे भी इस तरह का ड्रेस पहनना पड़ेगा 

मनसा- हाँ रानी साहिबा यह अश्राम का नियम है यहां कोई सिला हुआ कपड़ा नही पहनता सिर्फ़ गुरु जी और शायद बाद में आप 

कामया- पर यह तो क्या है सिर्फ़ एक लंबा सा कपड़ा ही तो है फिर 

मनसा- यह आश्रम है रानी साहिबा आपको भी आदत हो जाएगी आइए 

और मनसा कामया की ओर बढ़ी थी कामया थोड़ा सा पीछे की ओर हट गई थी 

कामया- कहा ना हम करलेंगे आप जाइए 

मनसा के होंठों पर एक मुश्कान थी 

मनसा- अब से आदत डाल लीजिए रानी साहिबा आपका काम करने के लिए पूरा अश्राम नत मस्तक है आपको कुछ नहीं करना है बस आराम और आराम बस 

कामया ने एक बार मनसा की ओर देखा था पर हिम्मत नहीं हुई थी सो वो वैसे ही खड़ी रही थी मनसा थोड़ा सा पीछे हटी थी और नमस्कार करते हुए बाहर की ओर जाने लगी थी 

मनसा- आप कपड़े बदल कर थोड़ा आराम कर लीजिए और कुछ जरूरत हो तो साइड टेबल पर रखी घंटी बजा दे में आजाउन्गी ठीक है रानी साहिबा 

कामया ने एक बार घूमकर उस टेबल पर रखी हुई घंटी को देखा और फिर सिर हिलाकर उसे विदा किया था मनसा के कमरे से बाहर जाते ही वो एक बार उस कपड़े को पलटकर देखने लगी थी वो सिर्फ़ बीच से थोड़ा सा कटा हुआ था ताकि सिर घुसा सके और कुछ कही नहीं था यानी कि उसे सिर से घुसाकर पहनना था और वही कमर के चारो और वो एक सुनहरी सी डोरी पड़ी थी उसे बाँधना है 

कामया ने एक बार कमरे के चारो ओर देखा था एक डोर और था वो आगे बढ़ी थी और उसे खोला था बाथरूम था या हाल बाप रे बाप इतना बड़ा बाथरूम क्या नहीं था वहाँ चेयर भी था अरे बाथ टब पर सोने की नक्काशी किया हुआ था फ्लोर एकदम साफ चमकता हुआ सा और जैस दूध से नहाया हुआ था उसका बाथरूम पर्दे और ना जाने क्या-क्या कामया बाथरूम में घुसी और अपने कपड़े चेंज करने लगी थी मनसा ने बताया था कि सिले हुए कपड़े नहीं पहनना है तो क्या ब्रा और पैंटी भी नहीं फिर क्या ऐसे ही छि 

पर क्या कर सकती थी वो किसी तरह से अपने कपड़े उतार कर उसने वही रखे हुए टेबल पर रख दिए थे और जल्दी से वो कपड़ा ऊपर से डाल लिया था कमर में डोरी बाँध कर अपने आपको मिरर में देखा था वह कोई रोमन लेडी लग रही थी हाँ शायद रोमन लोग इस तरह का ड्रेस पहनते थे साइड से थोड़ा सा खुला हुआ था उसने किसी तरह से कपड़े को खींचकर अपने आपको ढका था और डोरी से बाँध कर अपने आपको व्यवस्थित किया था 

अब ठीक है वो मुँह हाथ धोकर वापस कमरे में आ गई थी और बेड की ओर बढ़ी थी एक छोटी सी तीन स्टेप की सीढ़ी थी जो कि बेड पर जाती थी उठकर वो बेड पर पहुँचि थी और बेड कवर को खींचकर हटाया था बेड वाइट और पिंक कलर के हल्के से प्रिंट का था शायद पूरा का पूरा ही सिल्क का था कामया थकि हुई थी इसलिए कुछ ज्यादा देख ना सकी और जानने की चाहत होते हुए भी उसने जल्दी से अपने आपको बिस्तर के सुपुर्द कर दिया था लेट-ते ही वो अंदर की ओर धँस गई थी शायद बहुत अंदर क्या गधा था वो नरम और इतना आराम दायक बाप रे किससे बना था यह 
पर बहुत जल्दी ही वो सो गई थी और शायद किसी के हिलाने से ही वो उठी थी 

मनसा- उठिए रानी साहिबा आपके स्नान का समय हो गया है 

कामया को समझ नहीं आया कि अभी नहाना है पर अभी क्या बजा है अरेक्या है यह क्या रिवाज है धात 

कामया- टाइम क्या हुआ है 

मनसा- जी गो धूलि बेला हो गई है 

कामया- क्या 

मनसा- जी शाम हो गई है शायद 7 बजे होंगे 

कामया- तो अभी नहाना पड़ेगा 

मनसा- जी रानी साहिबा असल में गुरु जी का आदेश है आपके काया कल्प का उसके लिए जरूरी है चलिए आपके लिए चाय लाई हूँ आपको चाय की आदत है ना, 

कामया ने एक बार मनसा की ओर देखा बहुत ही साफ रंग था मेच्यूर थी पर बड़ी ही गंभीर थी सुंदर थी नाक नक्स एकदम सटीक था कही कोई गलती नहीं अगर थोड़ा सा सज कर निकलेगी तो कयामत कर देगी पर 
मनसा ने उसे चाय का कप बढ़ाया था कामया जल्दी से चद्दर के नीचे से निकलकर बैठी थी वो कपड़ा ठीक ही था ढँका हुआ था पर चद्दर के अंदर वो उसके कमर तक आ गया था उसने अंदर हाथ डालकर एक बार उसे ठीक किया था और हाथ बढ़ा कर चाय का कप ले लिया था मनसा उसके पास खड़ी थी नीचे नज़रें किए हुए 

कामया सहज होने की पूरी कोशिश कर रही थी पर एक अलग सा वातावरण था वहां शांत सा और बहूत ही शांत इतने सारे लोगों होने के बाद भी इतनी शांति खेर चाय पीकर कामया ने खाली कप मनसा की ओर बढ़ा दिया था 

मनसा- अब चलिए स्नान का वक़्त हो गया है 

कामया- अभी स्नान 

मनसा- जी आज से आपका काया कल्प का दौर शुरू हो रहा है रानी साहिबा बाहर की दुनियां को कुछ दिनों के लिए भूल जाइए 
कामया- पर अभी शाम को स्नान कोई नियम है क्या 

मनसा- नहीं रानी साहिबा आपके लिए कोई नियम नहीं है पर गुरु जी का आदेश है 

इतने में साइड टेबल पर रखा इंटरकम बज उठा था मनसा ने दौड़ कर फोन रिसीव किया था 

मनसा- जी गुरु जी जी 

और फोन कामया की ओर बढ़ा दिया था 

कामया- जी 

गुरु जी- कैसी हो सखी अच्छे से नींद हुई 

कामया- जी 

गुरु जी- अच्छा मेरी बात ध्यान से सुनो और अगर मन ना हो तो मत करो ठीक है 

कामया- जी 

गुरु जी- जब तक तुम आश्रम में हो अपना तन मन और धन का मोह छोड़ दो और अपने आपको इस संसार के लिए तैयार करो आने वाले कल आपको हमारी जगह संभालनी है इसलिए तैयार हो जाओ और किसी चीज का ध्यान मत करो फिर देखो कैसे तुम्हारा तन और मन के साथ धन तुम्हारे पीछे-पीछे चलता है यह संसार तुम्हारे आगे कैसे घुटने टेके खड़ा रहता है और तुम हमारी सखी कैसे इस संसार पर राज करती है 

कामया- 

गुरु जी -- हमारी बात ध्यान से सुनना सखी कोई नहीं जानता कि कल तुम क्या करोगी पर हम यानी की में और आप ही यह बात जानते है इस अश्राम में रहने वाला हर इंसान तुम्हारा गुलाम है एक आवाज में वो अपनी जान तक दे सकता है और जान भी ले सकता है इसलिए तैयार हो जाओ और जो मनसा कह रही है करती जाओ कोई संकोच मत लाना दिमाग में नहीं तो जो कुछ तुम पाना चाहती हो वो थोड़ा सा पीछे टल जाएगा और कुछ दिनों के बाद तुम अपने पति सास ससुर के साथ आराम से इस अश्राम में रह सकती हो और राज कर सकती हो 

कामया- जी 

गुरु जी- हम तुम्हें दो दिन बाद मिलेंगे तब तक तुम्हारा काया कल्प हो जाएगा और तुम अपने घर से भी घूम आओगी ठीक है ना सखी 

कामया- जी 
और फोन कट गया था रिसीवर मनसा की ओर बढ़ा दिया था 

और अपने ऊपर से चद्दर खींचकर अलग कर दिया था जैसे ही अपने आपको देखा तो वो जल्दी से अपने आपको ढकने की कोशिस करने लगी थी 

मनसा- आइए रानी साहिबा 

और अपने हाथों से कामया की जाँघो को ढँक कर उसे सहारा देकर बेड से उतरने में सहायता की कामया ने भी अपने जाँघो को थोड़ा सा ढँका फिर कुछ ज्यादा ना सोचते हुए अपने पैर नीचे जमीन पर रख दिए पैरों में हल्की सी गुदगुदी मची तो नीचे देखने पर पाया कि सफेद सिल्क का बना हुआ एक स्लीपर रख हुआ था मनसा ने आगे बढ़ कर उसके पैरों में वो स्लीपर डाल दिया और आगे आगे चल दी कामया उस अजीब सी पोशाक पहने हुए मनसा के पीछे-पीछे चल दी चलते समय उसकी टाँगें बिल्कुल खाली हो जाती थी और उसके ऊपर से कपड़ा हट जाया करता था जिससे कि उसकी टाँगें जाँघो तक बिल कुल चमक उठ-ती थी 

कामया की चाल में एक लचक जो थी पता नहीं क्यों अब कुछ ज्यादा दिख रही थी वो जा तो मनसा के पीछे रही थी पर निगाहे हर जगह घूम रही थी कॉरिडोर से चलते हुए जो भी मिलता था अपनी नजर नीचे किए हुए था और एक आदर भाव से नतमस्तक हुए खड़ा था सफेद और गोल्डन कलर के बड़े-बड़े पर्दो के बीच से होते हुए कामया एक बड़े से कमरे में पहुँचि थी जहां बीचो बीच एक बड़ा सा तालाब बना हुआ था और पास में वैसे ही कुछ छोटे कुंड बने हुए थे शेर के मुख से पानी की निर्मल धार बहुत ही धीमे से बह रही थी एक कल कल की आवाज़ से वो कमरा भरा हुआ था कुंड के पानी में गुलाब की पंखुड़िया तैर रही थी 
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