Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:24 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
तभी राजेश कमरे से बाहर निकला ...लुटा हुआ पिता हुआ...उसे देख सुनील को अपनी वो हालत याद आ गयी ........जब उसे अपनी असलियत का पता चला था...............

कुछ दिन हुए शादी को.....और कुछ ही दिनो में सब बदल गया ......अपने हरामी होने का अहसास इंसान को जीते जी मार देता है .....जिंदगी भर लड़कियों से दूर रहा.....और जब प्यार हुआ...शादी हुई ...तो पता चला ....वो तो बहन है .....क्या है ये जिंदगी....कैसे हैं इसके रंग ....दम घुटने लगा था राजेश का .....नफ़रत होने लगी थी अपने वजूद से ....विजय के कमरे से बाहर निकल....वो घर से बाहर जाने लगा ....कहाँ...ये शायद वो भी नही जानता था .......

ऐसा कुछ होगा ...इसीलिए सुनील रुका हुआ था .....आख़िर इस सब में राजेश की क्या ग़लती थी .....सुनील के लिए अब वो वक़्त आ गया था जब उसे फिर से एक बार अपने दर्द को जीना था ...वरना राजेश तबाह हो जाता ......

सुनील ने भाग के उसे पकड़ लिया ....कहाँ जा रहा है भाई .....

राजेश ...एक फीकी हँसी के साथ उसे देख बोला ....अब भी भाई....(वो नही जानता था .....सुनील भी उसका भाई है )

सुनील ...हां .....जो तू भुगत रहा है ...मैं भी भुगत चुका हूँ ......चल सब बताता हूँ.........एक बॉटल ले आ वरना ये जहर तुझ से बर्दाश्त नही होगा........

सुनील...आरती से .......मम्मी ये रोना बंद करो और पापा के पास जाओ ..इस वक़्त उन्हें आपकी ज़रूरत है .....मैं इसे संभाल लूँगा.....

आरती रोती हुई राजेश को देखती है ....दिल फटने लगता है उसका और फिर दोनो के सर पे प्यार से हाथ फेरती हुई ....रोती हुई भाग जाती है विजय के पास .....

आरती के जाने के बाद ........देख रहा है माँ की हालत ....क्या सोच रहा है ....क्या हालत हुई होगी पापा की .......और तू चला था बाहर ........भूल गया वो प्यार वो ममता जो दोनो सारी जिंदगी तेरे पे उडेलते रहे .....

लेकिन राजेश को सुनील की कोई बात सुनाई नही दे रही थी ....ये शाम कितनी अजीब थी ...जो उसकी जिंदगी में बवंडर ले आई थी ....उसके वजूद को हिला के रख दिया था .....सारी जिंदगी जिसे वो अपना पिता समझता रहा ...वो उसका पिता नही था....जो उसका पिता था वो उसकी माँ का रेपिस्ट था...ये आघात सहना तो शायद उस उपरवाले के लिए भी आसान नही होगा ....जिस लड़की पे दिल आया .....वो उसकी सौतेली बहन निकली .....क्या संसार में और कोई लड़की नही थी ...जिसपे दिल आता ...नियती ने उसके लिए लड़की चुनी भी तो बहन.......अचानक उसके दिमाग़ में बारूद पे बारूद फटने लगे ...उसे अपने से ज़्यादा कविता की चिंता होने लगी....अगर सुहाग रात मुकम्मल हो जाती तो.........क्या होता कविता का ........क्या गुजर रही होगी उसपे ...कैसे अब कभी एक दूसरे का सामना कर पाएँगे ......उसके होंठों का वो चुंबन...उसके होंठों की मिठास....उसकी चूड़ियों की खन खन...क्या कभी इस अहसास को भूल पाएगा वो ......वो मखमली बदन ...जो सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में रह गया था ...क्या उसकी चमक .....क्या उसका आकर्षण कभी भूल पाएगा वो...वो कमान से तनी भौए....वो लरजते हुए होंठ .....न्न्वोीनननणन्नाआआआहहिईीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई

चिल्ला उठा राजेश और अपने बाल नोचने लगा ...............

शायद पड़ोसी उसके दिल की हालत को बेहतर समझते थे ....जो ये गाना लगा बैठे.......

स्वप्न-झरे फूल से,
मीत-चुभे शूल से,

लूट गये सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे,
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे.

नींद भी खुली ना थी कि है धूप ढल गयी,
पावं जब तलक उठे कि ज़िंदगी फिसल गयी,
पात-पात झर गये कि शाख-शाख जल गयी,
चाह तो निकल सकी ना पर उमर निकल गयी.

गीत अश्क बन गये,
छन्द हो दफ़न गये,
साथ के सभी दिए धुआँ-धुआँ पहेन गये,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके,
उमर के चढ़ाव का उतार देखते रहे,
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आईना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन और आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुच्छ हवा चली,
लूट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली,
और हम लूटे-लूटे,
वक़्त से पीते-पीते,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे,
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

हाथ थे मिले कि ज़ुलफ चाँद की संवार दूँ,
होंठ थे खुले की हर बहार को पुकार दूं,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और चाँद यूँ कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं,
हो सका ना कुच्छ मगर,
शाम बन गयी सहेर,
वो उठी लहर की ढह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़-कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे,
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक जब नयी-नयी किरण,
ढोलके धुनुक उठी, ठुमूक उठे चरण-चरण,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाओं सब उमड़ पड़ा, बहेक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज़ एक वो गिरी,
पुंच्छ गया सिंदूर, तार-तार हुई चूनरी,
और हम अज़ान से,
दूर के मकान से,
पालकी किए हुए कहर देखते रहे!
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!!

जिसका एक एक लफ्ज़....राजेश के दिल की हालत ब्यान कर रहा था.....गिर पड़ा घुटनो के बल और फुट फुट के रोने लगा..........सब कुछ तो छिन गया था उसका ....कैसी अजीब शाम थी ये .....

उसकी ये हालत देख सुनील की आँखें भी छलच्छला गयी पर ये वक़्त उसके लिए भावनाओं में बहने का नही था ...इस वक़्त तो उसे खुद को फिर से सूली पे चढ़ाना था ...ताकि एक जिंदगी ....बर्बाद होने से शायद बच जाए ...या यूँ कहो कि दो ज़िंदगियाँ ....और दोनो ही उसके अपने थे.......

सुनील....चल उठ...यूँ लड़कियों की तरहा रोते नही ...जिंदगी का सामना करते हैं...एक दिन मेरी भी यही हालत थी ...क्यूंकी मेरा बाप भी वही था जो तेरा बाप था.........ये एक नया बॉम्ब था राजेश के लिए .....वो रोते हुए आँखें फाडे सुनील को देखने लगा.....

सुनील ने राजेश को उठाया ….और उसकी के बेडरूम में जा कर दोनो बैठ गये ……

ऐसा शायद सुनील ने जानभूज के किया था…ताकि राजेश को कविता की याद आए …….उन पलों की याद आए जो उसने कविता के साथ गुज़ारे थे …….

लव अट फर्स्ट साइट …..बहुत घातक होता है ……अगर ना मिले तो जिंदगी बर्बाद भी हो सकती है…और सुनील से बेहतर इस वक़्त राजेश को कों समझ सकता था….

कमरे में घुस राजेश की नज़र बिस्तर पे पड़ी और वो पल उसकी नज़रों के सामने आने लगे…जब …ये बिस्तर सुहाग सेज बना हुआ था …और वो मृगनयनि उसका इंतेज़ार कर रही थी …वो झील से गहरी आँखें…उसका वो मचलता मदमाता बदन….उफफफफफ्फ़ ……राजेश ने नज़रें बिस्तर से फेर ली ….

सुनील ने दो लार्ज ड्रिंक बनाए ........और एक उसे पकड़ा के सीधा बॉटम्स अप कर दिया ...राजेश भी उसे देख एक सांस में ग्लास खाली कर गया ......फिर शुरू हुई सुनील की दर्द भरी यात्रा....

कविता....सुमन और सोनल के साथ होटेल आ गयी ...उसके आँसू थमने का नाम ही नही ले रहे ....कुछ दिनो में क्या से क्या हो गया......क्या जिंदगी मिली थी उसे ...सारी जिंदगी पिता के प्यार को तरसती रही .....जो उसे एक नाजाएज जिंदगी दे कर छोड़ गया था ....और उसकी माँ जाने क्या क्या झेलती हुई उसे पाली थी और एक दिन वो भी इस निष्ठुर दुनिया से लड़ते लड़ते थक गयी थी ....और छोड़ गयी मझधार में.....एक प्यारा सा भाई मिला किस्मत से ...जो उसपे जान देता था ......उसके ही हाथों नियती ने ये गुनाह करवा दिया ...शादी करवा दी ....वो भी उस इंसान के बेटे से .......जिसने सारी जिंदगी उसकी माँ को तड़पने के लिए छोड़ दिया ....उसका पति उसका सौतेला भाई निकला ....क्या पाप किया था मैने ...जो मुझे ये सज़ा मिली.......


सुमन ......कवि बेटी खुद को सम्भालो ...इस तरहा जिंदगी नही जी जा सकती ........जिंदगी में बड़े बड़े तुफ्फान आते हैं...उनका सामना ही नही करना पड़ता ..उनमें से गुजर कर जीत के बाहर आना होता है ...ज़रा सोचो इस वक़्त राजेश की क्या हालत होगी ....सोचो उस वक़्त सुनील की क्या हालत हुई होगी....

कवि.....मम्मी भाई मिला तो वो भी उस आदमी का बेटा निकला ...पति मिला तो वो भी उस आदमी का बेटा निकला जिसकी वजह से मेरी जिंदगी बर्बाद हुई थी ...मेरी माँ की जिंदगी बर्बाद हुई थी

आग लग गयी सोनल को ......कवि की ये बात सुन...इससे पहले वो भड़कती ...सुमन ने इशारे से उसे चुप करवाया......


सुमन...थोड़ा गुस्से में...तेरा दिमाग़ खराब हो गया है क्या कवि......राजेश ...विजय का बेटा है..उसमे विजय के संस्कार हैं...सुनील...सागर का बेटा है ....इन दोनो में सिर्फ़ घिनोना बीज समर का था ...उसका असर भी कब का ख़तम हो गया ......अगर सुनील सागर का बेटा ना होता ....तो रोन्द डालता सोनल को और मुझे भी ...आज हम पति पत्नी नही होते ....वासना के पुजारी होते ........अगर राजेश के अंदर ज़रा भी असर होता ....समर का ...तो वो इतना नही टूटता ...जितना वो टूट रहा है ...खुद सोच कैसा बर्ताव था उसका तेरे साथ सुहाग रात में ....अगर वो समर का बेटा होता तो तू अभी तक कुँवारी नही होती ....इंसान को पहचानना सीख गुड़िया ...क्या कभी सुनील ने ग़लत नज़र से तुझे देखा ....मैं जानती हूँ किस तरहा मैने उसे सोनल से शादी करने पे तयार किया था ......मैं जानती हूँ...कितना लड़ता था वो खुद से ....हीरा है वो हीरा ...और राजेश भी कुछ कम नही .....ये नियती का खेल था ...जिसे हम रोक नही सके.......ठंडे दिमाग़ से सोच .....यूँ उतावले पन में...भावनाओं में बहक जिंदगी के फ़ैसले नही लिए जाते


कवि ...सब अच्छा चल रहा था ..फिर क्यूँ ये तुफ्फान आप लोगो ने हमारी जिंदगी में घोल दिया ....छुपा रहने देते सब कुछ ...


सुमन....और जब बाद में तुम्हें सच का पता चलता ...किसी भी ज़रिए से ...तब क्या होता .....जो आज हो रहा है उससे भी बुरा होता ...तब शायद तुम माँ बन चुकी होती .....आज कितनी आसानी से तुम वो घर छोड़ बाहर निकल आई ...कल ये कर पाती .......तब दो नही बहुत सी ज़िंदगियाँ बर्बाद हो जाती ...तब तुम हमे कसूरवार ठहराती ...कि पहले सच क्यूँ छुपाया ........जिंदगी काश बहुत आसान होती .....तो उसे जिंदगी ना बोलते कुछ और ही बोलते .......थोड़ा सकुन दो अपने आप को और ठंडे दिमाग़ से सोचो क्या करना है .....

कविता चुप तो हो गयी पर उसका चेहरा बता रहा था कितने बवंडारों से जूझ रही थी वो ...ये लड़ाई उसने अकेले लड़नी थी ....ये रास्ता उसने अकेले तय करना था ...अपनी मंज़िल को खुद अब अकेले पहचानना था ...और ये इतना आसान नही था...
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