Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:24 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुमन और सोनल की तो चीख ही निकल गयी और सुनील लपका कविता की तरफ……….

पूरा मिनी फ्रिड्ज खाली था …मिनियेचरर्स की बोटले इधर उधर लुड़की पड़ी थी …..कविता के मुँह से वॉमिटिंग निकली पड़ी थी और वो बेहोश थी …ऐसी कॉकटेल तो कोई पियाक्कड भी नही पचा सकता …कविता बेचारी कहाँ से पचा पाती …..

सोनल बाथरूम भागी …गीला टवल ले के आई …और कविता को सॉफ किया ….सुनील ने उसे उठा बिस्तर पे लिटा दिया …..सुमन ने उसका चेक अप किया और एक ठंडी साँस ली ….ख़तरे की कोई बात नही थी….सुनील कमरे से बाहर निकल गया ताकि दोनो …कविता के कपड़े बदल सकें…और हाउस कीपिंग को बुला लिया ताकि रूम की ठीक सफाई हो सके…

इस सब में कोई घंटा निकल गया……..

कमरा सॉफ हो चुका था .......कविता बिस्तर पे नशे की वजह से सोई पड़ी थी ........इनका खाना भी आ गया ...दिल किसी का नही था खाने के लिए .....पर सुमन के ज़ोर देने पे सब ने कुछ ना कुछ खा लिया ....

फिर सोनल खुद ही बोल पड़ी कि वो कविता के पास रहेगी ....सुनील और सुमन दूसरे कमरे में जा कर आराम से सो जाएँ ...कोई बात होगी तो वो बुला लेगी जिसकी वैसे कोई आशंका नही थी क्यूंकी कविता सुबह से पहले नही उठनेवाली थी....

सोनल ने जान भुज के ऐसा किया था ..क्यूंकी वो जानती थी कि आज रात सुनील को सुमन की ज़्यादा ज़रूरत पड़ेगी......

सुनील ने उसके होंठों को काफ़ी देर तक चूमा फिर सुमन और सुनील दूसरे कमरे में चले गये.......


कमरे में पहुँच …पहले सुनील ने कपड़े बदले और आराम से कुर्सी पे बैठ अपने लिए पेग बनाने लगा …..सुमन फिर बाथरूम में घुस गयी और जब बाहर निकली तो गदर मचा रही थी …सुनील तो बस उसे देखता रह गया ……

सुमन ने सिर्फ़ एक पारदर्शक ब्रा और पैंटी पहनी थी ....ऐसा उसने जान भूज के किया था ताकि सुनील अपने दिमाग़ में दौड़ती सभी मुसीबतों को एक तरफ कर उसके हुस्न में खो जाए और उसे कुछ पल सकुन के मिलें....
**********

राजेश विजय के कमरे में घुस्स उसके पैरों पे गिर पड़ा …….मुझे माफ़ कर दो डॅड ….मुझे माफ़ कर दो …पागल हो गया था मैं…..

‘पगले तेरी जगह मेरे दिल में है पैरों में नही …’ विजय ने उसे उठा गले से लगा लिया ….आज तो बहुत खुशी का दिन है रे …आज मुझे दूसरा बेटा भी मिल गया ….

‘डॅड …मैं कविता को लेने जा रहा हूँ….’

‘नही …तुम ऐसा कोई कदम नही उठाओगे …जब तक तुम्हें खुद कविता नही बुलाती के आ कर ले जाओ …या सुनील उसे खुद छोड़ने नही आता ……तुम कहीं नही जाओगे ....वक़्त दो उसे हालत को समझने के लिए और ये फ़ैसला उस पर छोड़ दो .......इस तरहा उसके पीछे जाने से कोई फ़ायदा नही ......'

'पर डॅड इस वक़्त उसे मेरी ज़रूरत है .......'

'किस रिश्ते से .......क्या समझे वो तुम्हें...भाई या पति ......और तुम क्या समझते हो उसे ...बहन ...या बीवी .........ये फ़ैसला वक़्ती फ़ैसला नही होता ........खुद को अच्छी तरहा टटोलना पड़ता है ...और इस मे वक़्त लगता है ........काफ़ी वक़्त लगता है ....'

'डॅड....' दर्द था राजेश की आवाज़ में.....

'मैं ठीक कह रहा हूँ बेटा ....ऐसे हालातों में जल्द बाजी नही की जाती ....अगर तुम दोनो सच में प्यार करते हो आपस में तो कोई तुम्हें दूर नही रख पाएगा ...पर अगर ये प्यार एक तरफ़ा है ...तो इसके कोई माइने नही रह जाते .....जाओ अभी सो जाओ ..ठंडे दिमाग़ से सोचना ...'

भुजे दिल से राजेश कमरे से तो निकल गया ...पर नींद उसकी उड़ चुकी थी...शायद हमेशा के लिए .....वो कमरे में पहुँचा ...तो उसे कविता नज़र आने लगी ...दुल्हन बनी उसका इंतेज़ार करते हुए ........आँसू टपक पड़े उसके .......अब जिंदगी का सिर्फ़ एक ही मतलब रह गया था ....इंतेज़ार ...इंतेज़ार ..इंतेज़ार

सुमन सीधा सुनील की गोद में आ कर बैठ गयी .....होनी हो कर रहती है ...क्यूँ खुद को इतना परेशान करते रहते हो ...अब राजेश और कविता के बीच जो हुआ ...उसके ज़िम्मेदार तुम नही ....ना ही खुद को दोषी मानो ......हर वक़्त यूँ खुद को मत तडपाया करो ...जिंदगी एक बार ही मिलती है ..उसे खुल के जीओ......

सुनील ने सुमन की कमर में बाँह डाल दी और उसे खुद से चिपका लिया ....जिंदगी साथ में ज़िम्मेदारियाँ भी लाती है ...उनसे मुँह तो नही मोड़ा जा सकता.......

सुमन....बजा फरमाया हज़ूर पर इस वक़्त जो आप की ज़िम्मेदारी अपनी बीवी के लिए है अब उसे पूरा कीजिए ....और अपने होंठ सुनील के होंठों से सटा देती है........

सुनील भी उसके होंठों की मिठास का लुत्फ़ लेने लगता है .


ये चुंबन धीरे धीरे गहरे स्मूच में तब्दील हो गया .....

जब सांस फूलने लगी तो दोनो अलग हुए ....अपनी सांसो को ठीक करने लगे ....सुनील ने अपना अधूरा पड़ा पेग उठा लिया ......और होंठों से लगाने लगा ....

सूमी ने उसके हाथों से पेग खींच अलग रख दिया .....उसकी आँखें छलक पड़ी...सुनील का हंस एक के लिए इतना भावुक होना...इतना तड़पना उससे बर्दाश्त नही होता था....ये अच्छी बात थी ...के वो दूसरों के लिए अपनी ज़िम्मेदारी समझता था ...पर इतना भी क्या ....की खुद जीना छोड़ दे........

उसके लबों पे एक गीत आ गया ....उसका मक़सद बस सुनील को शराब से दूर रखना था ..उसका दिल लुभाना था.........

गम की दवा तो प्यार है
गम की दवा शराब नही
ठुकराओ ना हमारा प्यार
इतने तो हम खराब नही
गम की दवा तो प्यार है

जाता है जो जाने दो
आता है वो आने दो
जाता है जो जाने दो
आता है वो आने दो
बीती बातें बीत गयी
नयी बहारें आने दो
बगिया मे फूल हज़ारो हैं
एक ही तो गुलाब नही
गम की दवा शराब नही

घाव जिया के भर देंगे
टूटा दिल हम जोड़ेंगे
घाव जिया के भर देंगे
टूटा दिल हम जोड़ेंगे
बन के रहेंगे साथी
हम साथ कभी ना छोड़ेंगे
अब कोई तुमको सता सके
इतनी किसीमे ताब नही
गम की दवा तो प्यार है
गम की दवा शराब नही
ठुकराओ ना हमारा प्यार
इतने तो हम खराब नही
गम की दवा तो प्यार है.
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