Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:03 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
जैसे जैसे रूबी के जेवर उतर रहे थे वैसे वैसे उसके चेहरे पे लाज की लालिमा और भी गहरी होती जा रही थी, साँसों और दिल के धड़कने की ध्वनी कमरे में गूंजने लगी थी, जिसमे जुड़ती रूबी की सिसकियाँ कमरे के महॉल को और भी कामुक बना रही थी.

सुनील की प्रेम लीला चले और प्रकृति उसमें हिस्सा ना ले ये तो हो ही नही सकता, अमूमन ऐसा होता नही है, पर शायद सुनील के साथ कुदरत कुछ खांस ही मेहरबान थी, जो इस रात को और भी रंगीन बने पे तूल गयी थी.

समुद्र एक दम शांत हो गया, चाँद और सूरज जो कभी मिल नही सकते एक प्रयास सा करने लगे कि शायद इनकी तरहा हम भी मिल जाएँ.

वातावरण में कुछ गूंजने लगा तो बस रूबी के कंठ से निकली हुई सिसकियाँ जिसकी मधुरता में सामुद्री जीव तक अपनी क्रियाएँ भूल गये और एक दम शांत हो गये.


प्यार का ये असर शायद ही किसी ने देखा होगा, और ये दोनो भी कहाँ जानते थे कि बाहर क्या हो रहा है, ये तो बस एक दूसरे में सामने को व्याकुल होते जा रहे थे.

सुनील का जिस्म इतना तपने लगा , कि उसने फट से अपना कुर्ता और बनियान उतार फेंकी, रूबी का घूँघट धलक चुका था और चोली में कसे उसके उरोज़ मुक्त होने की राह देख रहे थे, दोनो एक दूसरे की आँखों में देखने लगे और सुनील के हाथ रूबी के कंधो को सहलाते हुए पीछे पीठ पे चले गये और चोली की डोरी खुल गयी, धीरे धीरे सुनील ने रूबी की चोली उतार दी, और रूबी ने शर्म के मारे अपने आँखें बंद कर अपने दोनो हाथ कैंची बना अपने उरोज़ ढकने की असफल कोशिश करी, पर सुनील ने उसके दोनो हाथ हटा दिए और रूबी के उन्नत उरोज़ हर सांस के साथ उपर नीचे होने लगे.

तभी आसमान में बिजली कडकी और दोनो एक दूसरे से लिपट गये और फिर शुरू हुआ होंठों से होंठों का मिलन, दोनो एक दूसरे के होंठों का रस चूसने में मगन हो गये.

सब कुछ भूल चुके थे दोनो, अगर कुछ अहसास बाकी था तो बस इतना के दोनो एक दूसरे में सामने को आतुर थे, रूबी के लिए ये मिलन उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी नैमत थी. इसके आगे उसे जिंदगी से कुछ नही चाहिए था, चुंबन गहरा होता चला गया, दोनो की ज़ुबान एक दूसरे को अपना अहसास दिलाने लगे और एक दूसरे से मिल अपने स्वाद को महसूस करने लगी, नोबत यहाँ तक आ गयी कि मुश्किल से हान्फते हुए अलग हुए और रूबी ने शरमा के अपने चेहरे को ढांप लिया और अपनी साँसे दुरुस्त करती हुई बिस्तर पे लेट गयी.

सुनील साँसों पे को काबू करता हुआ उस पर झुक गया और उरोजो की घाटी से एक दम नीचे से चाटता हुआ नाभि तक जाने लगा, मचल के रह गयी रूबी, चेहरे से हाथ कब हटे पता ना चला और अह्ह्ह्ह उम्म्म्म उसकी सिसकियों का ज़ोर बुलंद होने लगा

अह्ह्ह्ह सुनील...उम्म्म्मम क्या कर रहे हो....अह्ह्ह्ह गुदगुदी होती है ....उफफफफफफ्फ़ ऊऊऊऊ म्म्म्मीममममाआआआआआआ

सुनील उसकी नाभि में में अपनी ज़ुबान घुमाता रहा और रूबी इधर उधर मचल के उसे हटाने की कोशिश करती रही, जब सहना मुश्किल हो गया तो सुनील को बालों से पकड़ उपर खींच लिया.....'जान निकालोगे क्या'

'उम्म हूँ...सिर्फ़ प्यार...'


'तुम्हारा ये प्यार तो मेरी जान लेलेगा'

'प्यार से कभी जान जाती है क्या' और सुनील फिर उसके होंठों चूसने लग गया और दोनो हाथ पीछे ले जा कर उसकी ब्रा खोल दी......


अहह रूबी सिसक पड़ी और उसके उरोज़ क़ैद से आज़ाद होते ही और उपर उठ गये....सुनील ने ब्रा उपर सरका दी और मखमली उरोजो पे गुलाबी तने हुए छोटे निपल देख खुद को रोक ना सका और सीधा एक निपल को मुँह में भर लिया और चूसने लग गया.

अह्ह्ह्ह सीयी उफ़फ्फ़ उम्म्म्म अहह ओह माँ अहह श्श्श्श्श्शुउउउउउउन्न्न्निल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल उम्म्म्मममम

रूबी की सिसकियाँ और ज़ोर पकड़ने लगी, सुनील कभी एक निपल चूस्ता और कभी दूसरा, फिर सुनील ने दूसरे उरोज़ को भी थाम लिया और उसके निपल मसल्ने लगा. रूबी की तो जान पे बन गयी, वो अपनी टाँगें बिस्तर पे पटकने लगी, जिस्म कभी कमान की तरहा उपर उठता तो कभी बिस्तर पे गिरता.

चूत में कुलबुलाहट शुरू हो गयी और बाकी कपड़े उसे चुभने लगे.....

कुछ ही देर में उसके दोनो उरोज़ लाल सुर्ख हो चुके थे और सुनील की उंगलियों की छाप लग चुकी थी.

रूबी अपना सर बिस्तर पे इधर से उधर पटक रही थी और जब अति हो गयी तो सुनील के सर को अपने उरोज़ पे दबा ज़ोर से उसका नाम चीखी और भरभराती हुई झड़ने लगी, उसकी पैंटी तो क्या लेनहगा भी अच्छी तरहा भीग गया.

आनंद की लहरों से जब बाहर निकली तो उसे बहुत शरम आई, ये क्या हुआ, क्या किया सुनील ने उसके साथ जो बिना चुदे ही अपने चर्म पे पहुँच गयी, चेहरे पे चमक तो आ ही गयी थी बेचारा लाल सुर्ख हो गया, सुनील से आँखें मिलाने की हिम्मत ना हुई रूबी में और उसे अपने उपर से हटा वो पलट गयी, गीली पैंटी और लहंगा उसे अब तकलीफ़ दे रहे थे वो जल्द अपने इन कपड़ों से छुटकारा पा कम से कम लाइनाये पहनना चाहती थी, पर मुँह से बोल ही ना निकल पाई.

सुनील उसकी मनो दशा समझ गया और उसकी पीठ को चूमते हुए उसके लहंगे के बँध खोलने लग गया, चन्द मिंटो में लहनगा उसके जिस्म से अलग था.

'ओह! माँ ये तो मुझे यहीं नंगी करने जा रहे हैं.' ये ख़याल दिमाग़ में आते ही रूबी बोल ही पड़ी, प्लीज़ मेरी नाइटी तो दे दो.

सुनील में बहुत संयम था, वो कोई जल्दबाज़ी नही करना चाहता था, चुप चाप उठा और अलमारी से एक नाइटी रूबी के पास रख वो कमरे से बाहर चला गया और हॉल में बैठ के स्कॉच पीने लगा.

सुनील के कमरे से बाहर निकलते ही रूबी को तेज झटका लगा, और खुद पे गुस्सा होने लगी ...ये मैने क्या कर दिया, वो तो नाराज़ हो गये. उठ के उसने पैंटी बदली और जो लाइनाये सुनील रख गया था वो पहन ली.

लाइनाये पहनने के बाद वो कुछ इस तरहा दिख रही थी, पैंटी के नाम पे एक पतला थॉंग और अंदर ब्रा नही पहनी थी. खुद को शीशे में देख इतना शरमाई के ज़मीन में धँस जाए.

हुस्न की तारीफ करने वाला तो कमरे से बाहर चला गया था. अब रूबी पशोपश में पड़ गयी, क्या करूँ, पता नही मुझे क्या हो गया था, जो नाइटी माँग बैठी.

खुद से लड़ती हुई, हिम्मत बाँध वो हॉल की तरफ बढ़ ही गयी, जहाँ सुनील स्कॉच पीता हुआ समुंद्र को निहार रहा था........आज जाने क्यूँ समुद्र में कोई हलचल नही थी, शायद रूबी की सिसकियों का असर अब भी बाकी था.

रूबी के कदम हॉल के दरवाजे पे ही रुक गये, सुनील ने बाहर का दरवाजा खोल रखा था जिससे ठंडी ठंडी हवा अंदर आ रही थी, स्कॉच की चुस्कियाँ लेता हुआ पता नही क्या सोच रहा था.

दरवाजे पे खड़ी रूबी, कार्पेट को पैर के अंगूठे से कुरेदने लगी. अंदर जाने की आज उसमें हिम्मत ही नही हो रही थी. लेकिन अपने अहसास को सुनील तक पहुँचने में नही रोक पाई.

'यार दरवाजे पे क्यूँ खड़ी हो अंदर आ जाओ' सुनील ने बिना उसकी तरफ देखते हुए कहा.

रूबी हैरान सुनील को कैसे पता चला उसने तो कोई आवाज़ भी नही की थी.

धीरे धीरे चलती हुई सुनील के करीब पहुँची और सर झुका खड़ी हो गयी.

बैंगन की तरहा उसकी लटकी शकल देखा सुनील की हँसी छूट गयी ज़ोर से और में में पड़ी स्कॉच पिचकारी की तरहा सीधे रूबी के वक्षस्थल पे गिरने लगी.

कुछ पल तो रूबी को भी पता ना चला कि हुआ क्या, सुनील यूँ क्यूँ हंसा और मदिरा की पिचकारी उसे कैसे भिगो गयी, जिसकी वजह से उसके तने निपल सॉफ झलकने लगे, सफेद पारदर्शी लाइनाये में से.

'ऊऊऊऊुुुुुुुऊउक्कककककककककचह ये क्या!' वो एक दम बौखला गयी जब उसे अपनी हालत का अहसास हुआ और सुनील और भी ज़ोर से हँसने लगा.

सुनील को यूँ और भी ज़ोर से हंसता देख रूबी की शकल रोनी हो गयी 'गंदा कर दिया और हंस रहे हैं'

'गंदा ! कहाँ देखूं तो सही' सुनील की हँसी अब भी नही रुक रही थी.

'जाओ, नही बोलती' और रूबी वापस कमरे की तरफ जाने लगी.

'अरे कहाँ चली मेरी छम्मक छल्लो' सुनील ने लपक के उसे पकड़ लिया और गोद में उठा बाहर ले गया. रूबी चीखती रही 'छोड़ो मुझे, उतारो, गिर जाउन्गि'

सुनील ने एक ना सुनी और बाहर जो पूल था वो नीचे लगे बूल्स की वजह से जगमगा रहा था सुनील ने रूबी को पूल में पटक दिया.

छपक से पानी उछल के चारों तरफ गिरा और रूबी ज़ोर से चीखी .आाआईयईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई
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