RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
चाँदनी में मेरा तन्नाया लंड और उसका सूजा लाल सुपाडा देख कर उनके मुँह से भी एक सिसकारी निकल गयी. उसे हाथ में लेकर पुचकारते हुए वे बोलीं. "हाय कितना प्यारा है, मैं तो निहाल हो गयी मेरे राजा."
और झुक कर उन्होंने मेरा सुपाडा मुँह में ले लिया और चूसने लगीं. उनकी जीभ के स्पर्श से मैं ऐसा तडपा जैसे बिजली छू गयी हो. झुकी हुई चाची की चोली में से उनके मम्मे लटक कर रसीले फलों जैसे मुझे लुभा रहे थे. इतने में चाची ने आवेश में आकर अपना मुँह और खोला और मेरा पूरा लंड जड. तक निगल लिया जैसे गन्ना हो.
"चाची, यहा क्या कर रही हैं? मैं झड. जाऊन्गा आप के मुँह में" कहकर मैंने उनका मुँहा हटाने की कोशिश की तो उन्होंने हल्के से अपने दाँतों से मेरे लंड को काट कर मुझे सावधान किया और आँख मार दी. उनकी नज़र में गजब की वासना थी. फिर मुँह से मेरे लंड को जकड कर उसपर जीभ फिराती हुई वी ज़ोर ज़ोर से मेरा लौडा चूसने लगीं.
दो ही मिनिट में मैंने मचल कर उनके सिर को पकड़. लिया और कसमसा कर झड. गया. मुझे लग रहा था कि वे अब मुँह में से लंड निकाल लेंगी पर वे तो ऐसे चूसने लगीं जैसे गन्ने का रस निकाल रही हों. पूऱा वीर्य निगल कर ही उन्होंने मुझे छोड़ा.
मैं चित पड़ा हान्फता हुआ इस स्वर्गिक स्खलन का मज़ा ले रहा था. मुँह पोंछती हुई चाची फिर मुझ से लिपट गयी और मेरे गालों और होंठों को बेतहाशा चूमने लगीं. "लल्ला, तुम तो एकदम कामदेव हो मेरे लिए, मैं तो धन्य हो गयी तेरा प्रसाद पाकर" "आप को गंदा नहीं लगा चाची?" "अरे बेटे तू नहीं समझेगा, यह तो एकदम गाढी मलाई है मेरे लिए. अब तू देखता जा, इन दो महीनों में तेरी कितनी मलाई निकालती हूँ देख."
मुझे बेतहाशा चूमते हुए वे फिर बोलीं. "तुम बड़े पोंगा पंडित निकले लल्ला. शाम से तुझे रिझा रही हूँ पर तू तो शरमा ही रहा था छोकरियों की तरह." मैंने उनके गाल को चूम कर कहा. "नहीं चाची, मैं तो कब का आपका गुलाम हो गया था. बस डर लगता था कि चाचाजी को पता चल गया क्या सोचेंगे."
वे मुझे प्यार से चपत मार कर बोलीं. "तो इसलिए तू दबा दबा था इतनी देर. मूरख कहीं का, उन्हें सब मालूम है." मेरे आश्चर्य पर वे हँसने लगीं.
"ठीक कहा रही हूँ अनिल. मैं कब से भूखी हूँ. तेरे चाचाजी भले आदमी हैं पर अलग किस्म के हैं. उन्हें ज़रा भी मेरे शरीर में दिलचस्पी नहीं है. इतने दिन मैंने सब्र किया, ऐसे भले आदमी को मैं धोखा नहीं देना चाहती थी. परपुरुष की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा. पर पिछले महने मैं इनसे खूब झगडी. आख़िर जिंदगी ऐसे कैसे कटेगी. वे भी जानते और समझते हैं. बोले, अच्छा जवान लडका घर में ही है, उसे बुला लिया कर जब मान चाहे. तू उसके साथ कुछ भी कर, मुझे बुरा नहीं लगेगा. इसलिए तो तीन माह से वे तुझे चिठ्ठी लिखकर आने का आग्रह कर रहे हैं. और तू है कि इतने दिनों में आया है."
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