Hindi Porn Stories कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र
08-13-2017, 01:06 PM,
#64
RE: Hindi Porn Stories कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र
दोस्तो यहाँ से कहानी अपनी वास्विकता मे आती है


रात के 12 बज रहे थे. मम्मी मेरे कमरे में नींद की गोली खा कर बेख़बर सो रही थी. लाइट आने का कोई अंदेशा नहीं था. बाहर तूफान अब भी ज़ोरों पर था. इधर मेरे दिल और दिमाग़ पर भी बचपन की यादों ने ज़ोर का तूफान ला दिया था. इतने में पापा के आने आवाज़ सुनाई दी. मैं झट से कॅंडल जला के मम्मी के बिस्तेर पे पेट के बल लेट गयी और चादर से मुँह धक लिया, लेकिन पेटिकोट को चूतरो तक ऊपर चढ़ा लिया. मेरी मांसल जांघें बिल्कुल नंगी थी. ध्यान से देखने वाले को जांघों के बीच से झँकति हुई गुलाबी पॅंटी की झलक भी मिल जाती. पापा कमरे में आए. शायद काफ़ी पी रखी थी. लरखरा रहे थे. अंडर आके उन्होने कपड़े उतारने शुरू किए. मेरे मन में एक बार आया की कह दूं मम्मी मेरे कमरे में सो रही है. मैं इसी उधेर बुन में थी कि पापा बिल्कुल नंगे हो गये. अब तो बहुत देर हो चुकी थी. अब तो जो होगा देखा जाएगा. मेरी नज़र उनके लॉड पे पर गयी. बिल्कुल सिकुदा हुआ नहीं था लेकिन खड़ा भी नहीं था. कॅंडल की रोशनी में बहुत मोटा और डरावना लग रहा था. बाप रे ! खड़ा हो के तो बहुत ही मोटा हो जाएगा. आज कयि बरसों के बाद पापा के लंड को देखा था. पहले से कहीं ज़्यादा काला और मोटा लग रहा था. पापा ने एक नज़र मेरी तरफ डाली. मेरी गोरी गोरी मांसल नंगी जांघें कॅंडल की लाइट में चमक रही थी. पापा थोड़ी देर तक मेरी नंगी टाँगों को देखते रहे. उनके लंड ने हरकत शुरू कर दी थी. उन्होने मेरी नंगी जांघों की ओर देख कर धीरे धीरे अपने लंड को दो तीन बार सहलाया और फिर बाथरूम में पेशाब करने चले गये. मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. वापस आ के उन्होने मेरी ओर ललचाई नज़रों से देखा. उनका लंड थोड़ा और बड़ा हो चुक्का था. लंड में तनाव आना शुरू हो गया था. उनका इरादा सॉफ था. फिर उन्होने कॅंडल को बुझा दिया और नंगे ही बिस्तेर पे आ गये और मुझसे चिपक गये. मेरी पीठ उनकी ओर थी. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. धीरे धीरे मेरे चूतरो को सहलाने लगे. उनका लंड तन चुका था और मेरे चूतरो की दरार में चुभ रहा था. मैं गहरी नींद में होने का बहाना कर रही थी. पापा ने मेरा पेटिकोट मेरे चूतरो के ऊपेर खिसका दिया. अब तो मेरे विशाल नितुंबों की इज़्ज़त मेरी छ्होटी सी पॅंटी के हाथ में थी. पेटिकोट ऊपर करके पॅंटी के ऊपेर से ही मेरे चूतरो को सहलाते हुए बोले,

“कविता, सो गयी क्या? इतना तो मत तडपाओ मेरी जान. आज बरसों बाद तो तुम्हें चोदने का मौका मिला है.” मैं चुप रही. अब पापा ने मेरी टाँगों के बीच हाथ सरका दिया और पॅंटी के ऊपेर से मेरी चूत सहलाते हुए बोले,

‘क्या बात है मेरी जान आज तो तुम्हारी चूत कुच्छ ज़्यादा ही फूली हुई लग रही है?’ मैं तो बिल्कुल चुपचाप पड़ी रही. मेरी चूत अब गीली होने लगी थी. कोई जबाब ना मिला तो बोले,

“ समझा, बहुत नाराज़ लग रही हो. माफ़ कर दो मेरी जान, थोरी देर हो गयी. देखो ना ये लॉडा तुम्हारे लिए कैसा पागल हो रहा है.” यह कहते हुए उन्होने अपना तना हुआ लॉडा मेरे चूतरो से सटा दिया और एक हाथ सामने डाल कर धीरे धीरे मेरी चूचियाँ सहलाने लगे. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. मेरी हिम्मत टूट रही थी लेकिन अब कोई चारा नहीं था. धीरे धीरे पापा ने मेरे ब्लाउस के बटन खोलने शुरू कर दिए. ब्रा तो पहना नहीं था. पीठ नंगी हो गयी. उनके मोटे लॉड ने मेरी पॅंटी को चूतरो की दरार में धकेल दिया था. मेरी चूत बुरी तरह से गीली हो गयी थी. अब पापा ने मेरी बारी बारी नंगी चूचिओ को सहलाना शुरू कर दिया. मेरे निपल तन गये थे. अचानक पापा ने मेरी चूचिओ को पकड़ कर ज़ोर से दबा दिया और मुझे अपनी तरफ पलटने की कोशिश की. चूचियाँ इतनी ज़ोर से दबाई थी कि अब और नींद का नाटक करना मुश्किल था.मैने हड़बड़ा के गहरी नींद में से उठने का नाटक किया,

“ क्क्क…कौन ? पापा आप !”

पापा को तो जैसे बिजली का झटका लगा. नशे के कारण मानो सोचने की शक्ति ख़तम हो गयी थी. उनके हाथ अब भी मेरी चुचिओ पे थे.

“कंचन तुम ! बेटी तुम यहाँ कैसे ?” पापा हड़बड़ाते हुए बोले.

“ज्ज्ज्जी… मम्मी के सिर में बहुत दर्द हो रहा था, तबीयत बहुत खराब थी इसलिए उन्होने हमे यहाँ सुला दिया और वो हम कमरे में सो रही है. आप कब आए हमे पता ही नहीं चला.”

“ बेटी मैं तो अभी अभी आया. मैने समझा कि मम्मी यहाँ सो रही है.”

मैं उनके बदन पे हाथ रख के चौंकते हुए बोली,

“ हाई राम ! आप तो बिल्कुल नंगे…….. हमारा मतलब है… आपके…..आपके कपड़े..? और …और… ऊई.. माआ ये क्या ?…! हमारा ब्लाउस ……..?”

पापा अब बुरी तरह घबडा गये थे.

“देखो बेटी, हमें क्या मालूम था कि तुम यहाँ लेटी हो. हम तो समझे कि तुम्हारी मम्मी लेटी है.” पापा का लंड भी अब सिकुड़ने लगा था.

“लेकिन हमारे कपड़े क्यों….?”

“बेटी तुम तो शादीशुदा हो, तुम्हें तो समझना चाहिए. हमने तो मम्मी समझ के तुम्हारे कपड़े….”

“ओ ! समझी. आपको मम्मी की ज़रूरत है. ठीक है मम्मी को ही आपके पास भेज देती हूँ.”

“नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है. उन्हें सोने दो. तबीयत खराब है तो क्यों डिस्टर्ब करती हो. लेकिन बेटी, मम्मी को आज जो कुच्छ हुआ उसका पता नहीं लगना चाहिए. नहीं तो अनर्थ हो जाएगा. हम से जो कुच्छ हुआ अंजाने में हुआ.”“ आप फिकर क्यों करते हैं पापा ?. मम्मी को कुच्छ नहीं पता चलेगा.”

क्रमशः.........
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