RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--16 सावित्री अगले पल अपने जीभ को सुपादे पर फिराने लगी. सुपादे के स्पर्श से ही सावित्री की जीभ और मन दोनो मस्त हो उठे. सावित्री की जीभ का थूक सुपादे पर लगने लगा और सुपाड़ा गीला होने लगा, सावित्री के नज़रें सुपादे की बनावट और लालपन पर टिकी थी. सावित्री अपने साँवले हाथों मे पंडित जी के खड़े और गोरे लंड को कस के पकड़ कर अपने जीभ से धीरे धीरे चाट रही थी. पंडित जी सावित्री के चेहरे को देख रहे थे और लंड चूसने के तरीके से काफ़ी खुश थे. सावित्री के चेहरे पर एक रज़ामंदी और खुशी का भाव सॉफ दीख रहा था. पंडित जी की नज़रें चेहरे पर से हट कर सावित्री के साँवले और नंगे शरीर पर फिसलने लगी. पंडित जी अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर उसकी काली रंग के बड़े बड़े दोनो चूतदों पर फिरने लगे और चूतदों पर के मांसल गोलाईओं के उठान को पकड़ कर भींचना सुरू कर दिए. ऐसा लग रहा था कि पंडित जी के हाथ सावित्री के चूतदों पर के माँस के ज़यादा होने का जयजा ले रहे हों. जिसका कसाव भी बहुत था. और उनके गोरे हाथ के आगे सावित्री के चूतड़ काफ़ी काले लग रहे थे. सावित्री बगल मे बैठी हुई पंडित जी के लंड और सुपादे पर जीभ फिरा रही थी. पंडित जी से अपने चूतदों को मसलवाना बहुत अछा लग रहा था. तभी पंडित जी बोले "कब तक बस चाटती रहेगी.............अब अपना मुँह खोल कर ऐसे चौड़ा करो जैसे औरतें मेला या बेज़ार मे ठेले के पास खड़ी होकर गोलगापा को मुँह चौड़ा कर के खाती हैं....समझी" सावित्री यह सुन कर सोच मे पड़ गयी और अपने जीवन मे कभी भी लंड को मुँह मे नही ली थी इस लिए उसे काफ़ी अजीब लग रहा था. वैसे तो अब गरम हो चुकी थी लेकिन मर्द के पेशाब करने के चीज़ यानी लंड को अपने मुँह के अंदर कैसे डाले यही सोच रही थी. वह जीभ फिराना बंद कर के लंड को देख रही थी फिर लंड को एक हाथ से थामे ही पंडित जी की ओर कुछ बेचैन से होते हुए देखी तो पंडित जी ने पूछा "कभी गोलगापा खाई हो की नही?" इस पर सावित्री कुछ डरे और बेचैन भाव से हाँ मे सिर हल्का सा हिलाया तो पंडित जी बोले "गोलगप्पा जब खाती हो तो कैसे मुँह को चौड़ा करती हो ..वैसे चौड़ा करो ज़रा मैं देखूं..." पंडित जी के ऐसी बात पर सावित्री एक दम लज़ा गयी क्योंकि गोलगप्पा खाते समय मुँह को बहुत ज़्यादा ही चौड़ा करना पड़ता हैं और तभी गोलगापा मुँह के अंदर जाता है. वह अपने मुँह को वैसे चौड़ा नही करना चाहती थी लेकिन पंडित जी उसके मुँह के तरफ ही देख रहे थे. सावित्री समझ गयी की अब चौड़ा करना ही पड़ेगा. और अपनी नज़रें पंडित जी के आँख से दूसरी ओर करते हुए अपने मुँह को धीरे धीरे चौड़ा करने लगी और अपंदिट जी उसके मुँह को चौड़ा होते हुए देख रहे थे. जब सावित्री अपने मुँह को कुछ चौड़ा करके रुक गयी और मुँह के अंदर सब कुछ सॉफ दिखने लगा. तभी पंडित जी बोले "थोड़ा और चौड़ा करो और अपने जीभ को बाहर निकाल कर लटका कर आँखें बंद कर लो." इतना सुन कर सावित्री जिसे ऐसा करने मे काफ़ी लाज़ लग रही थी उसने सबसे पहले अपनी आँखें ही बंद कर ली फिर मुँह को और चौड़ा किया और जीभ को बाहर कर ली जिससे उसके मुँह मे एक बड़ा सा रास्ता तैयार हो गया. पंडित जी नेएक नज़र से उसके मुँह के अंदर देखा तो सावित्री के गले की कंठ एक दम सॉफ दीख रही थी. मुँह के अंदर जीभ, दाँत और मंसुड़ों मे थूक फैला भी सॉफ दीख रहा था. "मुँह ऐसे ही चौड़ा रखना समझी.....बंद मत करना....अब तुम्हारे मुँह के अंदर की लाज़ मैं अपने लंड से ख़त्म कर दूँगा और तुम भी एक बेशर्म औरत की तरह गंदी बात अपने मुँह से निकाल सकती हो.....यानी एक मुँहफट बन जाओगी.., और बिना मुँह मे लंड लिए कोई औरत यदि गंदी बात बोलती है तो उसे पाप पड़ता है... गंदी बात बोलने या मुँहफट होने के लिए कम से कम एक बार लंड को मुँह मे लेना ज़रूरी होता है " अगले पल पंडित जी ने बगल मे बैठी हुई सावित्री के सर पर एक हाथ रखा और दूसरे हाथ से अपने लंड को सावित्री के हाथ से ले कर लंड के उपर सावित्री का चौड़ा किया हुआ मुँह लाया और खड़े और तननाए लंड को सावित्री के चौड़े किए हुए मुँह के ठीक बीचोबीच निशाना लगाते हुए मुँह के अंदर तेज़ी से थेल दिए और सावित्री के सिर को भी दूसरे हाथ से ज़ोर से दबा कर पकड़े रहे. लंड चौड़े मुँह मे एकदम अंदर घुस गया और लंड का सुपाड़ा सावित्री के गले के कंठ से टकरा गया और सावित्री घबरा गयी और लंड निकालने की कोशिस करने लगी लेकिन पंडित जी उसके सिर को ज़ोर से पकड़े थे जिस वजह से वह कुछ कर नही पा रही थी. पंडित जी अगले पल अपने कमर को उछाल कर सावित्री के गले मे लंड चाँप दिए और सावित्री को ऐसा लगा कि उसकी साँस रुक गयी हो और मर जाएगी. इस तड़फ़ड़ाहट मे उसके आँखों मे आँसू आ गये और लगभग रोने लगी और लंड निकालने के लिए अपने एक हाथ से लंड को पकड़ना चाही लेकिन लंड का काफ़ी हिस्सा मुँह के अंदर घुस कर फँस गया था और उसके हाथ मे लंड की जड़ और झांते और दोनो गोल गोल अंदू ही आए और सावित्री के नाक तो मानो पंडित जी के झांट मे दब गयी थी. सावित्री की कोसिस बेकार हो जा रही थी क्योंकि पंडित जी सावित्री के सर के बॉल पकड़ कर उसे अपने लंड पर दबाए थे और अपनी कमर को उछाल कर लंड मुँह मे चॅंप दे रहे थे. दूसरे पल पंडित जी सावित्री के सिर पर के हाथ को हटा लिए और सावित्री तुरंत अपने मुँह के अंदर से लंड को निकाल कर खांसने लगी और अपने दोनो हाथों से आँखों मे आए आँसुओं को पोंछने लगी. इधेर लंड मुँह के अंदर से निकालते लहराने लगा. लंड सावित्री के थूक और लार से पूरी तरह नहा चुका था. पंडित जी खाँसते हुए सावित्री से बोले "चलो तुम्हारे गले के कंठ को अपने सुपादे से चोद दिया हूँ अब तुम किसी भी असलील और गंदे शब्दों का उच्चारण कर सकती हो और एक बढ़िया मुहफट बन सकती हो. मुहफट औरतें बहुत मज़ा लेती हैं.." आगे बोले "औरतों को जीवन मे कम से कम एक बार मर्द के लंड से अपने गले की कंठ को ज़रूर चुदवाना चाहिए....इसमे थोडा ज़ोर लगाना पड़ता है ...ताकि लंड का सुपाड़ा गले के कंठ को छ्छू सके और कंठ मे असलीलता और बेशर्मी का समावेश हो जाए. " सावित्री अभी भी खांस रही थी और पंडित जी की बातें चुपचाप सुन रही थी. सावित्री के गले मे लंड के ठोकर से कुछ दर्द हो रहा था. फिर सावित्री की नज़रें पंडित जी के तननाए लंड पर पड़ी जो की थूक और लार से पूरा भीग चुका था. फिर पंडित जी ने सावित्री से बोला "मैने जो अभी तेरे साथ किया है इसे कंठ चोदना कहते हैं..और जिस औरत की एक बार कंठ चोद दी जाती है वह एक काफ़ी रंगीन और बेशरम बात करने वाली हो जाती है. ऐसी औरतों को मर्द बहुत चाहतें हैं ..ऐसी औरतें गंदी और अश्लील कहानियाँ भी खूब कहती हैं जिसे मर्द काफ़ी चाव से सुनते हैं..वैसे कंठ की चुदाई जवानी मे ही हो जानी चाहिए. गाओं मे कंठ की चुदाई बहुत कम औरतों की हो पाती है क्योंकि बहुत लोग तो यह जानते ही नही हैं. समझी ...अब तू मज़ा कर पूरी जिंदगी ... " पंडित जी मुस्कुरा उठे. सावित्री के मन मे डर था कि फिर से कहीं लंड को गले मे ठूंस ना दें इस वजह से वह लॅंड के तरफ तो देख रही थी लेकिन चुपचाप बैठी थी. तभी पंडित जी बोले "चलो मुँह फिर चौड़ा करो ..घबराव मत इस बार केवल आधा ही लंड मुँह मे पेलुँगा...अब दर्द नही होगा...मुँह मे लंड को आगे पीछे कर के तुम्हारा मुँह चोदुन्गा जिसे मुँह मारना कहतें हैं..यह भी ज़रूरी है तुम्हारे लिए इससे तुम्हारी आवाज़ काफ़ी सुरीली होगी..चलो मुँह खोलो " सावित्री ने फिर अपना मुँह खोला लेकिन इस बार सजग थी की लंड कहीं फिर काफ़ी अंदर तक ना घूस जाए. पंडित जी ने सावित्री के ख़ूले मुँह मे लंड बड़ी आसानी से घुसाया और लंड कुछ अंदर घुसने के बाद उसे आगे पीछे करने के लिए कमर को बैठे ही बैठे हिलाने लगे और सावित्री के सिर को एक हाथ से पकड़ कर उपर नीचे करने लगे. उनका गोरे रंग का मोटा और तननाया हुआ लंड सावित्री के मुँह मे घूस कर आगे पीछे होने लगा. सावित्री के जीभ और मुँह के अंदर तालू से लंड का सुपाड़ा रगड़ाने लगा वहीं सावित्री के मुँह के दोनो होंठ लंड की चमड़ी पर कस उठी थी मानो मुँह के होंठ नही बल्कि बुर की होंठ हों. पंडित जी एक संतुलन बनाते हुए एक लय मे मुँह को चोदने लगे. आगे बोले "ऐसे ही रहना इधेर उधेर मत होना...बहुत अच्छे तरीके से तेरा मुँह मार रहा हूँ...साबाश..." इसके साथ ही उनके कमर का हिलना और सावित्री के मुँह मे लंड का आना जाना काफ़ी तेज होने लगा. सावित्री को भी ऐसा करवाना बहुत अछा लग रहा था. उसकी बुर मे लिसलिसा सा पानी आने लगा. सावित्री अपने मुँह के होंठो को पंडित जी के पिस्टन की तरह आगे पीछे चल रहे लंड पर कस ली और मज़ा लेने लगी. अब पूरा का पूरा लंड और सुपाड़ा मुँह के अंदर आ जा रहा था. कुछ देर तक पंडित जी ने सावित्री की मुँह को ऐसे ही चोदते रहे और सावित्री के बुर मे चुनचुनी उठने लगी. वह लाज के मारे कैसे कहे की बुर अब तेज़ी से चुनचुना रही है मानो चीटिया रेंग रही हों. अभी भी लंड किसी पिस्टन की तरह सावित्री के मुँह मे घूस कर आगे पीछे हो रहा था. लेकिन बुर की चुनचुनाहट ज़्यादे हो गयी और सावित्री के समझ मे नही आ रहा था कि पंडित जी के सामने ही कैसे अपनी चुनचुना रही बुर को खुज़लाए. इधेर मुँह मे लंड वैसे ही आ जा रहा था और बुर की चुनचुनाहट बढ़ती जा रही थी. आख़िर सावित्री का धीरज टूटने लगा उसे लगा की अब बुर की चुनचुनाहट मिटाने के लिए हाथ लगाना ही पड़ेगा. और अगले पल ज्योन्हि अपने एक हाथ को बुर के तरफ ले जाने लगी और पंडित जी की नज़र उस हाथ पर पड़ी और कमरे मे एक आवाज़ गूँजी "रूको.....बुर पर हाथ मत लगाना...लंड मुँह से निकाल और चटाई पर लेट जा" और सावित्री का हाथ तो वहीं रुक गया लेकिन बुर की चुनचुनाहट नही रुकी और बढ़ती गयी. पंडित जी का आदेश पा कर सावित्री ने मुँह से लंड निकाल कर तुरंत चटाई पर लेट गयी और बर की चुनचुनाहट कैसे ख़त्म होगी यही सोचने लगी और एक तरह से तड़पने लगी. लेकिन पंडित जी लपक कर सावित्री के दोनो जांघों के बीच ज्योहीं आए की सावित्री ने अपने दोनो मोटी और लगभग काली जांघों को चौड़ा कर दी और दूसरे पल पंडित जी ने अपने हाथ के बीच वाली उंगली को बुर के ठीक बीचोबीच भीदाते हुए लिसलिशसाई बुर मे गाच्छ.. की आवाज़ के साथ पेल दिया और पंडित जी का गोरे रंग की बीच वाली लंबी उंगली जो मोटी भी थी सावित्री के एकदम से काले और पवरोती के तरह झांतों से भरी बुर मे आधा से अधिक घूस कर फँस सा गया और सावित्री लगभग चीख पड़ी और अपने बदन को मरोड़ने लगी. पंडित जी अपनी उंगली को थोड़ा सा बाहर करके फिर बुर मे चॅंप दिए और अब गोरे रंग की उंगली काली रंग की बुर मे पूरी की पूरी घूस गयी. पंडित जी ने सावित्री की काली बुर मे फँसी हुई उंगली को देखा और महसूस किया कि पवरोती की तरह फूली हुई बुर जो काफ़ी लिसलिसा चुकी थी , अंदर काफ़ी गर्म थी और बुर के दोनो काले काले होंठ भी फड़फड़ा रहे थे. चटाई मे लेटी सावित्री की साँसे काफ़ी तेज थी और वह हाँफ रही थी साथ साथ शरीर को मरोड़ रही थी. पंडित जी चटाई मे सावित्री के दोनो जांघों के बीच मे बैठे बैठे अपनी उंगली को बुर मे फँसा कर उसकी काली रंग की फूली हुई बुर की सुंदरता को निहार रहे थे कि चटाई मे लेटी और हाँफ रही सावित्री ने एक हाथ से पंडित जी के बुर मे फँसे हुए उंगली वाले हाथ को पकड़ ली. पंडित जी की नज़र सावित्री के चेहरे की ओर गयी तो देखे कि वह अपनी आँखें बंद करके मुँह दूसरे ओर की है एर हाँफ और कांप सी रही थी. तभी सावित्री के इस हाथ ने पंडित जी के हाथ को बुर मे उंगली आगे पीछे करने के लिए इशारा किए. सावित्री का यह कदम एक बेशर्मी से भरा था. वह अब लाज़ और शर्म से बाहर आ गयी थी. पंडित जी समझ गये की बुर काफ़ी चुनचुना रही है. इसी लिए वह एकदम बेशर्म हो गयी है. और इतने देखते ही पंडित जी ने अपनी उंगली को काली बुर मे कस कस कर आगे पीछे करने लगे. सावित्री ने कुछ पल के लिए अपने हाथ पंडित जी के हाथ से हटा ली. पंडित जी सावित्री की बुर अब अपने हाथ के बीच वाली उंगली से कस कस कर चोद रहे थे. अब सावित्री अपने जाँघो को काफ़ी चौड़ा कर दी. सावित्री की जंघें तो साँवली थी लेकिन जाँघ के बुर के पास वाला हिस्सा काला होता गया था और जाँघ के कटाव जहाँ से बुर की झांटें शुरू हुई थी, वह काला था और बुर की दोनो फांके तो एकदम से ही काली थी जिसमे पंडित जी का गोरे रंग की उंगली गच्छ गच्छ ..जा रही थी. जब उंगली काले बुर मे घूस जाती तब केवल हाथ ही दिखाई पड़ता और जब उंगली बाहर आती तब बुर के काले होंठो के बीच मे कुछ गुलाबी रंग भी दीख जाती थी. पंडित जी काली और फूली हुई झांतों से भरी बुर पर नज़रें गढ़ाए अपनी उंगली को चोद रहे थे कि सावित्री ने फिर अपने एक हाथ से पंडित जी के हाथ को पकड़ी और बुर मे तेज़ी से खूद ही चोदने के लिए जोरे लगाने लगी.
Sangharsh--16
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