RE: Hindi Porn Stories सेक्स की पुजारन
सेक्स की पुजारन पार्ट- 4
गतान्क से आगे.............
मैने कुछ कहा नहीं पर उसका सर नीचे धकेल्ति रही. आख़िर मुझ पे तरस खा के वो अपने घुटनो तले ज़मीन पे बैठ गया. ज़मीन पे बैठ के उसने अपने होंठो से मेरे पेट को चाटना शुरू कर दिया. मुझसे अब और बर्दाश्त नही हो रहा था और में अपने दोनो हाथो से उसके सिर को नीचे धकेल रही थी और अपने पैरो को उपर कर रही थी. आख़िर डिज़िल्वा ने मुझ पे तरस खा ही लिया और मेरा एक पैर उठा के उसके कंधे पे रख दिया. उसने झट से मेरी चूत पे अपने होठ रख दिए और चूमने लगा. में खुशी से चीख पड़ी ‘आआईयईईईईई..’. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि चूत चटवाने मे इतना मज़ा आता हैं. डिज़िल्वा अब मेरी चूत को चूमे जा रहा था. मैं दोनो हाथो से उसका सर पकड़ मेरी चूत की तरफ खीच रही थी. डिज़िल्वा ने अब अपना मूह खोल के अपनी जीब बाहर निकाली और एक झटके में मेरी चूत में घुसेड दी. मेरी चूत में आज तक मेरी उंगलियो के सिवा कुछ भी नही गया था. डिज़िल्वा की गरम और गीली जीब को अपनी चूत में पा कर मैं पागल हो गयी. मैं ‘आआआआआहह....आआआआआआअहह’ कर के आवाज़े निकालने लगी. डिज़िल्वा ने जीब को अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. मैं मदहोश हो गयी थी और उसका सर अपने हाथो से पकड़ अपनी चूत उसके चेहरे पे रगड़ रही थी. मेरे सारे बदन में सनसनी फैल गयी थी. मैं झरने ही वाली थी.
डिज़िल्वा ने अब मेरा दूसरा पर भी उठा लिया और उसके दूसरे कंधे पे रख डाला. मेरी दोनो जांघे अब उसके कंधे पे थी और दोनो पैर हवा में थे, मेरी पीठ दीवार पे थी और मैं जैसे अपनी चूत ठेले उसके चेहरे पे बैठी थी. डिज़िल्वा अब अपनी पूरी जीब मेरी चूत के अंदर बाहर कर रहा था. में झार ने लगी. मैने उसका सर अपने हाथो से पकड़ लिया और अपनी गांद उछाल, उछाल के अपनी चूत उसके चेहरे पे ज़ोर से घिसने लगी. मेरे सारे बदन में सनसनी फैल गयी थी. तीन या चार मिनिट तक मैं ऐसे ही ज़ोर से झरती रही. डिज़िल्वा ज़ॉरो से मेरी चूत को अपनी जीब से चोद्ता रहा. आख़िर मेरा झरना बंद हुआ और डिज़िल्वा ने मुझे कंधो से उतार दिया.‘मज़ा आया मेरी जान’ मैने अपना सर हां में हिलाया. मैं ज़ॉरो से साँस ले रही थी. इतनी ज़ोर से झार के में थक गयी थी.
‘अब तेरी बारी हैं मेरी रानी मेरा लंड चुसेगी ?’ मुझे बहुत शरम आ रही थी ऐसी गंदी बात सुनकर. मैने अपना सिर हां में हिलाया. उसने अब मेरे कंधो पे ज़ोर देके नीचे घुटनो तले बैठा दिया. और तुरंत ही अपना लंड मेरे मूह में डाल दिया. मैने अपना मूह पूरा फैलाया और उसका लंड चूसने लगी. पूरा ज़ोर लगा के मैने 6 इंच तक का लंड मूह मे ले लिया और उसे चूसने लगी. डिज़िल्वा ने दोनो हाथ से मेरा सर पकड़ लिया और मुझे रोक कर कहा.
‘पूरा लंड लेगी मेरा मूह में ?’. उसके चेहरे का आभास डरावना था. मुझे समझ में आ गया कि वो मज़ाक नही कर रहा था.
‘कल तूने अछा चूसा था मेरा लंड पर अब में तुझे दिखाता हूँ कि 10 इंच का लंड पूरे का पूरा कैसे चूसा जाता हैं’. यह कह कर डिज़िल्वा ने अपना लंड मेरे मूह में धीरे धीरे घुसेड़ना शुरू किया. मैने उसको अपने हाथो से दूर करने की कोशिश की पर उसने बहुत ज़ोर से मेरा सर पकड़ा था. उसका लंड अब 7 इंच तक मेरे मूह मे था. मूह में ज़रा भी जगाह बाकी नही थी फिर भी डिज़िल्वा मेरा सर पकड़ लंड आगे धकेल्ता रहा. अब लंड मुझे मेरे हलक में घुसते हुए महसूस होने लगा. मैं ज़ोर से डिज़िल्वा को मारती रही पर उसपे कोई असर नही था. उसने अपने लंड को आगे बढ़ाना जारी रखा. मेरी आँखों से आँसू निकल रहे थे पर डिज़िल्वा बेरहमी से लंड आगे धकेलते गया. अब उसका 10 इंच का लंड पूरा मेरे मूह में था. मुझे अपने गले में उसका लंड महसूस हो रहा था. मुझे ख़ासी आ रही थी पर में ख़ास भी नही सकती ती. मेरे जबड़े और मूह में अब बहुत दर्द हो रहा था और मैं चीखना चाहती थी पर चीखती भी कैसे.मैं अपने हाथ ज़ोर ज़ोर से डिज़िल्वा पे मार रही थी और अपना सर उसके लंड से दूर लेने की कोशिश कर रही थी पर उसने अपने दोनो हाथो से मेरा सर पकड़ के रखा था. उसने मेरे सिर को अपनी तरफ इतना खीच लिया था कि मेरा चेहरा अब उसके पेट पे दब रहा था. पूरा लंड मूह में होने के बावजूद भी वो मेरा सर अपनी तरफ ओर खीच रहा था.
वो अब अपने लंड से मेरे मूह में धक्के लगाने लगा. वो सिर्फ़ एक आध इंच लंड बाहर निकालता और फिर उसे अंदर घुसेड देता. वो ऐसा दस मिनिट तक मेरे मूह को चोद्ता रहा. मेरा दर्द कम हनी का नाम नहीं ले रहा था. दस मिनिट बाद अचानक उसने अपना लंड लगभग पूरे का पूरा निकाल दिया. एक सेकेंड के लिए मेरे दिल में थोड़ी सी राहत हुई पर अगले ही पल उसने पूरा लंड फिर से अंदर डाल दिया. अब वो मेरे मूह को अपने पूरे 10 इंच लंड से ऐसे ही चोदने लगा. हर बार वो अपना लंड बाहर लेता मैं ज़ोर से खाँसती पर दूसरे ही सेकेंड वो लंड फिर मेरी मूह में होता. अब मैने हार मान के अपने हाथ नीचे कर लिए थे. दर्द इतना बढ़ गया था कि मुझे लग रहा था कि में शायद बेहोश हो जाऊंगी.
पता नही कितनी देर उसने मेरे मूह को ऐसे ही अपने 10 इंच के लंड से चोदा. आख़िर उसका झरना शुरू हुआ और वो कुत्ते की तरह और तेज़ी से मेरे मूह को चोदने लगा. इससे मेरा दर्द और भी भाड़ गया और मैने फिर से उसको हाथों से मार के दूर करने की कोशिश की. हरेक धक्के पे मेरे जबड़े से होकर मेरे सारे बदन में एक दर्द फैल जाता. वो आवाज़े निकालने लगा ‘आआआआहह…. आआआआआअहह…..’. उसके लंड से वीर्य बहने लगा. उसका लंड झटके मारते मारते वीर्य छोड़ता रहा.उसका लंड मेरे गले के अंदर तक था और मेरे निगले बिना ही सीधा अंदर चला गया. वो तकरीबन 3 या 4 मिनिट तक झरता रहा. सारे वक़्त में डिज़िल्वा को अपने हाथो से मार मार के अपने से दूर करने की कोशिश कर रही थी लेकिन इससे उसको और मज़ा मिल रहा था. उसके झरने के बाद उसकी पकड़ कुछ कमज़ोर हुई और में अपना मूह उससे दूर करने में कामयाब हो गयी. मूह से लंड निकालने के बाद मैं ज़मीन पर तक के गिर पड़े और अब रो रही थी और ज़ॉरो से खांस रही थी. ख़ास खाते खाते मेरे मूह से थूक के साथ डिज़िल्वा का वीर्य भी निकल रहा था. में कुछ देर ऐसे ही खांस. रही. मेरी खाँसी बंद हुई तो देखा की डिज़िल्वा ने कपड़े पहेन लिए थे. ‘कल यहाँ मिलना इसी वक़्त’ ऐसा कह के वो चला गया. में उसपे चिल्ला ना चाहती थी पर दर्द के मारे मेरे मूह से आवाज़ भी नही निकल रही थी.
में वहाँ ज़मीन पर ही लेटी रही. मुझ में अब खड़े होने की ताक़त नहीं थी. मेरा मूह, जबड़ा और गला ज़ॉरो से दर्द कर रहा था. बाजू की टाय्लेट से मुझे टीचर और लड़के की आवाज़ आई.विवेक मेरे मूह की चुदाई देख झार गया था पर टीचर का लंड अभी भी टाइट हो कर खड़ा था. उसने कहा. ‘चल घूम जा’विवेक की गांद अभी भी चुदाइ से लाल थी.
‘नहीं सर प्लीज़. मुझे अभी भी दर्द हो रहा है’
टीचर अब खड़ा हो गया था. ‘ज़्यादा नखरे मत कर मादेर्चोद’ उसने विवेक को खड़ा कर लिया और उसका हाथ पकड़ के मोड़ दिया. हाथ ऐसे मोड़ने पे वो घूम गया. टीचर ने उसको आगे धकेल के दीवार से चिपका दिया और पीछे से आ कर अपना लंड उसके गांद पे रख ज़ोरदार धक्का लगाया. लंड गांद को चीरते हुए अंदर घुस गया. टीचर अब विवेक की खड़े खड़े गांद मार रहा था. हरेक धक्का इतना ज़ोरदार था कि विवेक के पैर हवा में उछाल. जाते. वो ज़ोर से चीख रहा था...
मैं टाय्लेट की ज़मीन पर लेटी हुई थी और विवेक की चीख सुन रही थी. मेरी ऐसी हालत मे भी मुझे वो चुदाई सुन कर मज़ा आ रहा था. मैं चुदाई सुनते सुनते वैसे ही ज़मीन पर लेटी रही. कुछ देर बाद टीचर लड़के की गांद में झार गया. उस के बाद दो मिनिट बाद दोनो वहाँ से चले गये. कुछ देर और लेटी रहने के बाद मैं धीरे से खड़ी हो गयी और अपने कपड़े पहेन लिए. मेरे शर्ट के एक दो बटन बाकी थे और मैने वो लगा दिए और वहाँ से निकल घर चली गयी. घर जा कर मैने अपने शर्ट के बटन सी लिए और मेरी मा के घर आने से पहले ही सोने को चली गयी. मेरे जबड़े में इतना दर्द था कि मुझे सारी रात नींद नहीं आई. अगले दिन में स्कूल नहीं जा पाई. घर पे कह दिया कि तबीयत नहीं अछी पर असल में दर्द के मारे मेरा हाल बुरा हो रहा था. मेरे मूह और जबड़े में दर्द तो था लेकिन सारे वक़्त मेरे दिमाग़ में सिर्फ़ डिज़िल्वा का मोटा लंड था. घर के नौकर को मैने बाहर भेज दिया और अकेली घर में नंगी हो कर बिस्तर पर अपनी चूत से खेलती रही. मैं सोचती रहती कि अगर डिज़िल्वा का कहना मानकर में टाय्लेट में उससे फिर से मिली होती तो वो मेरे साथ क्या क्या करता. यह सोच सोचते सोचते में झार जाती. झरने के वक़्त में ज़ॉरो से चिल्ला.. ऐसे ही ना जाने कितनी बार में झार गयी. मेरे दिमाग़ में अब सिर्फ़ चुदाई थी.
मेरे मूह और जबड़े का दर्द तीन दिन तक नही गया. आख़िर किसी को शक ना हो इसलिए में डॉक्टर के पास चली गयी. डॉक्टर से कहा कि मेरे पैरों में मोच हैं और दर्द कम करने की दवाई ले ली. आख़िर मुझे थोड़ा अछा लगने लगा. पाँच दिन बाद मेरा दर्द चला गया और में स्कूल जाने के लिए तैयार हो गयी. उन पाँच दिनो मैने सिर्फ़ लंड के बारे मैं सोचा और ना जाने कितनी बार झार गयी. अब सेक्स की पुजारन बन गई थी
में जब स्कूल में अपनी क्लास में पहुचि तो पता चला कि मेरी बगल की सीट विवेक ने ले ली थी. क्लास शुरू होते ही उसने मुझ से कहा ‘सुना हैं तुम्हारी तबीयत खराब थी ? अभी ठीक हो ?’
‘हां अभी ठीक हूँ’
‘तुम्हे पता हैं मैने तुम्हे टाय्लेट मे देखा था’
‘हां पता है’
‘उस मदरचोड़ ने तुम्हारे साथ बहुत गंदा सलूक किया’ ऐसा कह कर विवेक मेरे और नज़दीक आ गया. हम क्लास की पिछली वाली सीट पे बैठे थे इस लिए कोई हमे देख नही सकता था.
‘आज लंच टाइम पे स्पोर्ट्स टीचर ने तुम्हे अपने ऑफीस में बुलाया है’. विवेक के यह कहने से मेरे मन में लड्डू फूटने लगे. टीचर का वो मोटा काला लंड मेरे दिमाग़ में आ गया.
विवेक ने अब मेरा हाथ ले के अपने लंड पे रख दिया. मैं पॅंट के उपर उपर से उसे सहलाने लगी. उसने अपनी ज़िप खोलदी और अपना लंड बाहर निकाला. उसका लंड लगभग 4 इंच का होगा और उसी की तरह पतला था. मैने उसके लंड को पकड़ लिया और उससे धीरे से हिलाने लगी. लंड हिलाते दो मिनिट भी नही हुए थे कि विवेक अपना हाथ मेरे हाथ पे रख ज़ोर से लंड को हिलाने लगा और झार गया.
‘टीचर ने कहा हैं कि लंच टाइम तक मैं तुम्हारा अच्छा ख़याल रखू’ यह कह के विवेक ने अपना हाथ मेरे स्कर्ट के अंदर डाल दिया और मेरी जाँघ. को सहलाते सहलाते मेरी चूत तक पहुच गया. पॅंटी के उपर उपर से वो मेरी चूत को सहलाने लगा. मुझे मज़ा आ रहा था.
लंच टाइम होने तक विवेक ने मेरी चूत को सहला सहला कर मुझे पागल सा कर दिया था. मुझे अब टीचर के लंड की भूक थी. मेरे पूरे बदन में अब सेक्स चढ़ गया था. लंच होने पे विवेक टीचर के ऑफीस में चला गया और मुझसे पाँच मिनिट बाद आने को कहा. पाँच मिनिट में मैने टीचर के ऑफीस में प्रवेश किया.अंदर का नज़ारा देख में दंग रह गयी.....
टीचर अपनी ऑफीस में डेस्क के पीछे बैठा था. उसके साइड में विवेक पूरा नंगा होकर अपने घुटनो तले ज़मीन पे बैठा था. उसके गले में कुत्तो को पहनाने वाला पट्टा था.
‘आओ मानसी. दरवाज़ा ज़रा बंद कर दो.’ मेने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया.
‘मेरा नाम. वेंकट हैं. मैं तुम्हारी क्लास को नही पढ़ाता हूँ.’ उसने मुझे विवेक को देखते देखा और मुस्कुरा के कहा
‘और यह मेरा पालतू कुत्ता हैं. अगर तुम्हे अछा लगे तो तुम इससे खेल सकती हो’
मैने कुछ नहीं कहा. मुझे बहुत शरम आ रही थी. ‘बैठो मानसी. अपने जूते उतार दो’ मैने जूते उतार दिए और रूम के दूसरे कोने में जो कुर्सी थी उस पे बैठ गयी. मेरे बैठते ही विवेक अपने हाथ और घुटनो के बल मेरे पास आ गया और मेरे पैर चाटने लगा. मुझे थोड़ी गुदगुदी हो रही थी पर मज़ा भी आ रहा था.
‘लगता हैं तुम मेरे कुत्ते को बहुत अछी लग गयी हो’ टीचर ने हसके कहा ‘पर तुम हो ही ऐसी’. विवेक ने अब मेरे पैर की उंगलियाँ अपने मूह में लेके चूसना शुरू कर दिया था. मुझे अच्छा लग रहा था और मेरी चूत में गर्मी बढ़ रही थी.
तब टीचर ने कहा ‘कुछ दिन पहले में जेंट्स टाय्लेट में अपने कुत्ते को ट्रैनिंग दे रहा था तो मैने देखा कि तुम भी वाहा थी. तुम भी शायद कुछ ट्रैनिंग ही ले रही थी’ टीचर मे मुस्कुराते हुए कहा. ‘क्या तुम्हे पता हैं कि हम तुम्हे देख रहे थे’. मेने अपना सिर हां में हिलाया. ‘क्या तुमने मुझे कुत्ते को ट्रैनिंग देते हुए देखा’. मैने फिर से हां में सिर हिलाया.
‘मज़ा आया हमे देख के ?’
‘जी हां’. टीचर ने अपना एक हाथ डेस्क के पीछे ले लिया. मुझे पता था कि वो ज़रूर अपने लंड से खेल रहा होगा. विवेक अब ज़ोर ज़ोर से मेरे पैर चाटते चाटते मेरे घुटनो तक आ गया था. उसकी जीब के एहसास से मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
‘क्या तुमने मेरा लंड देखा’
‘जी’
‘अछा लगा तुम्हे’
मेने कुछ नहीं कहा.
‘शरमाओ मत मानसी. बोलो. क्या तुम्हे अच्छा लगा’
मैने कुछ कहे बिना अपना सर हां में हिलाया.
दोस्तो मानसी सेक्स की पुजारन बन चुकी थी आगे उसने क्या क्या गुल खिलाए ये जानने के लिए पढ़ते रहिए
इस कहानी के अगले भाग आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः..........
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