RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
हम थोडी देर और वहीं बैठ के बातें करते रहे और फ़िर वापस चलने का शोर होने लगा! वापसी में मैं आराम से अपने मर्दाने ड्राइवर को ही देखता रहा! मेरे बगल में ज़ाइन था! जिसको मैं आराम से रगड भी रहा था... दो और लोग भी थे! बनारस पहुँचते पहुँचते ७ बज गये थे! सब थके हुये थे! मैं जब अपने घर जाने लगा तो शफ़ात दिखा!
"आओ, थोडा आराम कर लेते हैं..."
"बस १० मिनिट में आता हूँ, थोडा सा काम है... बस आता हूँ, आप चाय बनवाइये..." वो अपने शोल्डर पर एक बैग टाँगें हुये था! वापस आया तो मैं अपने कमरे में था! मेरा रूम सैकँड फ़्लोर पे था! थर्ड फ़्लोर पर बस दो कमरे थे और फ़ोर्थ पर, जैसा मैने बताया था, सिर्फ़ एक ही था! उसने अपना बैग उतार के बगल में रख दिया!
"कहाँ भाग के गये थे??? गुडिया को देखने गये थे क्या?"
"अरे नहीं... आप भूल गये क्या? कुछ बात हुई थी... या आपने इरादा बदल दिया?"
"क्या?"
"पेग वाली बात..."
"अच्छा... अरे तो पूछ तो लेते... मेरे पास स्टॉक है..."
"मैं अपनी ब्राँड लाने गया था..." कहकर उसने व्हाइट मिस्चीफ़ की बॉटल निकाल के दिखाई और वापस बैग में रख दी! मैं बेड पर टेक लगा के लेटा हुआ था! वो भी बेड पर ही बैठ गया!
"ग्लास-व्लास का इन्तज़ाम कर लीजिये ना..."
"हाँ... हो जायेगा..." मैं अब एक्साइटेड हो रहा था! लौंडा जिस आसानी से मेरे जाल में फ़ँसा था मुझे खुद ताज्जुब था! नमकीन सा चिकना लौंडा, जिसके बडे भाई को फ़ँसाने के लिये मैने बहुत कोशिश की थी मगर फ़ँसा नहीं पाया था! पहले पैग में ही उसने मेरा दिल तोड दिया!
"वैसे, आज मैं जल्दी चला जाऊँगा... मेरे रूम मेट की बर्थ-डे है..."
"तो??? अच्छा, ठीक है... चले जाना..."
"आओ ना, छत पर चलते हैं..." फ़िर मैने माहौल चेंज करने की कोशिश की!
"चलिये, खुली हवा में बैठेंगे..."
हम सबसे ऊपर वाली चत पर बैठे, चारों तरफ़ का नज़ारा देख रहे थे!
"आप बहुत चुप हैं..." तीसरे पेग के बाद वो बोला!
"यार, तूने दिल जो तोड दिया..."
"क्यों?"
"जाने की बात करके..."
"अरे ठीक है... देखा जायेगा... अभी तो हूँ, अभी तो बात-चीत करिये... आज दिन में तो बहुत बातें कर रहे थे, अब इतना चुप हैं..."
हम ज़मीन पर एक गद्दा डाल के मुंडेर से टेक लगा के बैठे थे!
"सच बताइये ना, आज कैसा लगा?"
"आज का दिन तो बहुत ही अच्छा निकला यार..."
"हाँ लाइव ब्लू फ़िल्म देखने को मिली... मगर साले का लौडा था बडा भयँकर..." उसने फ़िर शिवेन्द्र के लँड की तारीफ़ की!
"उसको देख के लगा नहीं था कभी की इतना लँड मोटा होगा..."
"हाँ यार, देख के नहीं लगता..."
"देसी आदमी है ना... देसी लौंडों के लँड बडे होते हैं..."
"अब बडा तो किसी का भी हो सकता है..."
"किसी गे को मिल जाये तो वो तो उसके लँड को छोडे ही नहीं..." शफ़ात ने कहा और अचानक ये कह कर उसने मेरी तरफ़ देखा!
"हाँ, वो तो है..."
"अगर मेरी जगह वो होता आज तो?"
"क्या मतलब... अच्छा अच्छा... तब तो मुझे दोनो हाथों से पकडना पडता... हा हा हा..."
"मगर उसका चूस नहीं पाते आप..." कहते कहते उसने मेरे कंधों पर अपना एक हाथ डाल दिया तो उसके हाथ की गर्मी से मैं मचलने सा लगा और मेरी ठरक जग उठी!
"तुम्हें कैसे पता कि नहीं चूस पाता?"
"मुह में ही नहीं ले पाते... साँस रुक जाती..."
"बडे लँड चूसने का अपना तरीका होता है..." मुझे नशा भी था और ठरक भी... इसलिये मैं हल्के हल्के खुल के ही बात करने लगा था!
"तुम्हारा कितना बडा है?"
"उतना बडा तो नहीं है... फ़िर भी काम लगाने लायक सही है..."
"अब सबका उतना बडा तो होता नहीं है... वो तो एक्सेप्शन था..." मैने कहा और उसकी जाँघ पर हाथ रख के हल्के हल्के सहलाने लगा!
"सोच रहा हूँ... अब ना जाऊँ, वरना पीने का सारा मज़ा खत्म हो जायेगा..." उसने कहा तो मैं खुश हो गया!
"हाँ, नहीं जाओ... यहीं रह जाओ आज..."
"मगर कपडे नहीं है..."
"मेरे ले लो ना... क्या पहन के सोते हो?"
"कुछ भी चलता है... वैसे आज लुँगी सही रहेगी और यहीं छत पर सोते हैं... कुछ ओढने के लिये ले आयेंगे!"
"चलो, अभी ही ले आते हैं..."
उसने एक लुँगी पहन ली और मैने एक शॉर्ट्स! वो ऊपर बनियान पहने हुये था और मैं अपनी एक टी-शर्ट! अब लुँगी के अंदर उसका लँड फ़िर उभर के हिलता हुआ दिखने लगा था और मैने भी शॉर्ट्स में अपना लँड खडा कर लिया था!
इस बार जब हम छत पर बैठे तो उसने लुँगी मोड के घुटनों पर कर ली और अपनी चिकनी जाँघें दिखाने लगा!
"बताइये... कभी सोचा भी नहीं था कि आपके साथ बैठ कर ऐसे दारू पियूँगा..."
"जब होता है ना तो ऐसा ही लगता है... क्यों अच्छा नहीं लग रहा है क्या?"
"अच्छा तो बहुत लग रहा है..."
"एक बात पूछूँ? बुरा तो नहीं मानेंगे आप..."
"पूछो यार..."
"आपने कभी ऐसा सीन पहले कहीं देखा था?"
"नहीं यार..."
"आपने मेरा पकड क्यों लिया था?"
"अब तुम्हारा इतना खडा था और खूबसूरत लग रहा था..."
"खूबसूरत?"
"हाँ खडा हुआ उछलता हुआ लँड खूबसूरत ही होता है..."
"पहले कभी... मतलब..."
"हाँ, एक दो बार..."
"कहाँ?"
"यहाँ भी... दिल्ली में भी..."
"आपके पकडने के स्टाइल से समझ गया था..."
"और तुमने किया कभी?"
"अभी तक तो नहीं... मगर एक बात बताऊँ? सच सच..."
"बताओ ना..."
"आज जब शिवेन्द्र उसकी ले रहा था, और जो उसकी गाँड दिख रही थी, मेरा दिल हुआ कि जब वो चूत ले रहा था, मैं उसकी गाँड में लँड डाल दूँ..."
"वाह यार, क्या सीन बताया... अगर ऐसा होता तो देख के मज़ा आ गया होता..."
"मैं उसकी गाँड के अंदर धक्के देता और वो चूत में धक्के देता..." अब उसका नशा बोल रहा था और उसने अपना लँड पकड लिया था!
"तो दे देते ना..."
"कहाँ हो पता है ऐसा... आप का क्या मन हुआ था?"
"मैं तो उसकी गाँड में मुह दे देता... उसकी बालों से भरी गाँड में..."
"वाह भैया वाह.. और... और..."
"और चूत से लँड निकलवा के चूस डालता..."
"अआह... चूत के पानी में डूबा हुआ लँड... मज़ा आ गया होता..."
"साले ने आपके मुह में मूत दिया होता तो?"
"उसको भी पी जाता..."
"हाँ... दारू का पेग बना के पी जाते हम... मतलब आप..."
"हाँ, यार हाँ... तुमको भी पिला देता..."
"मैने कभी पिया नहीं है..."
"तो आज पी लेते... वैसे तुम भी गे हो क्या?" मेरे अचानक पूछने पर वो चुप हो गया!
"पता नहीं... कभी हुआ ही नहीं तो क्या बताऊँ... वैसे दोनो का ही दिल करता है... चूत और गाँड दोनो का..."
मैने अब उसका लँड थाम लिया! वो सुबह की तरह फ़िर हुल्लाड मार रहा था!
"तुम्हारा लँड बहुत प्यासा है..."
"हाँ साले की प्यास आज तक बुझी ही नहीं है ना..."
"मैं बुझा दूँगा..." कहकर मैं झुका और मैने उसके लँड को मुह में लेकर चूसना शुरु कर दिया और देखते देखते हम नँगे हो गये! उस रात शफ़ात ने मुझे अपनी जवानी से हिला दिया! ऐसे ऐसे धक्के दिये कि मैं मस्त हो गया! उसने मुझे उस रात पहले दो बार चोदा, फ़िर भोर में जब हम नीचे कमरे में आ गये तो तीसरी बार फ़िर अपना लँड चुसवाया! उसमें बहुत भूख थी! वही भूख जिसकी मुझे प्यास रहती है!
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