Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
07-25-2018, 11:12 AM,
#22
RE: Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
सुंदरी भी उसके कदम से कदम मिलाती हुई चलने लगी.

"मैं दिन या रात से नही अकेलेपन से डरती हूँ पगली." सुंदरी हंसते हुए बोली.

"मैं समझी नही भाभी, क्या कहना चाहती हो?" शांता थोड़ी हैरान होकर बोली.

"बहनी, तेरी मेरी तो एक जैसी कहानी है. फिर भी तू नही समझी?" सुंदरी आश्चर्य प्रकट करती हुई बोली.

"क्यों मेरा मज़ाक उड़ा रही हो भाभी?" सुंदरी के हँसते खेलते जीवन की तुलना अपनी बेरंग ज़िंदगी से किए जाने पर वह आहत होकर बोली - "सब कुच्छ तो है तुम्हारे पास. मुखिया दद्दा जैसा प्यार करने वाला पति है, बड़ा घर है तुम्हारे पास, अनिता जैसी सुंदर और सुशील बेटी पाई हो. और क्या चाहिए तुम्हे?"

"मैं भी वही कमी महसूस करती हूँ बहिन, जो तुम महसूस करती हो." सुंदरी अचानक से गंभीर होती हुई बोली - "हां बहिन, मेरे पास सब कुच्छ होते हुए भी कुच्छ नही है. पति हैं पर सिर्फ़ दिखाने के लिए और लोगों को बताने के लिए. बेटी है पर फिर भी बांझ कही जाती हूँ." ये कहते हुए सुंदरी सिसक पड़ी.

"तो किसी डॉक्टर के पास क्यों नही जाती." शांता भावुक होकर बोली.

"डॉक्टर क्या करेगा बहिन? जब बीज ही नही बोए जाएँगे तो फल कहाँ से आएगा."

"तो क्या दद्दा से...?" शांता बोलते बोलते रुकी.

"उनसे कुच्छ नही होता बहिन, वैसे तो गाओं भर में बहुत अकड़ कर चलते हैं, पर बिस्तर पर आते ही ढीले पड़ जाते हैं." सुंदरी अपने आँसू पोछती हुई बोली. - "मुझमे और तुम में बस इतना ही फ़र्क है कि मेरा पति मेरे साथ है और तुम्हारा पति तुमसे दूर.

"तो क्या शादी से अब तक तुम......?" शांता की आँखें नम हो गयी. उसके दुख में उसे अपने दुख की परच्छाई नज़र आई. -"तुम अब तक कैसे जीती रही भाभी?"

"ना....बहिन, मैं इतनी सहनशील औरत नही हूँ." सुंदरी शांता से बोली - "शादी के एक साल तक मैं सब सहती रही. लेकिन कब तक....? आख़िर कब तक अपनी देह जलाती? कब तक दूसरे की ग़लती की सज़ा खुद को देती? मैने अपने सुख का मार्ग बहुत जल्दी ढूँढ लिया. उन दिनो बिरजू को मुखिया जी ने नया नया काम पर रखा था. एक दिन उसे किसी बहाने घर के अंदर बुलाई और कर ली मनमानी. उस दिन से लेकर आज तक वही मेरी देह को ठंडक पहुँचा रहा है."

सुंदरी के इस रहस्योउद्घाटन से शांता हैरान रह गयी. उसके बढ़ते कदम धरती पर जाम गये. वो अपने मूह पर हाथ रखे सुंदरी को किसी अजूबे की तरह देखने लगी.

उसे हैरान परेशान सा देख सुंदरी के कदम भी थम गये. लेकिन उसके मन में कोई लज्जा भाव नही आया. वो धीरे से फीकी हँसी हँसी. फिर बोली - "और क्या करती मैं. मैं भला उनकी चिंता करती भी तो क्यों? जिन्होने मेरे दुख का सामान किया. क्या मेरे पिता ने मेरा विवाह करने से पहले ये सोचा कि इस रिश्ते से मेरी बेटी का जीवन सुखमय रहेगा या नही. क्या मेरे पति ने कभी ये सोचा कि वो अपने से आधी उमर की लड़की को पत्नी बनाकर उसे सुखी रख पाएँगे या नही.

नही सखी, ना तो मेरे पिता ने मेरे सुख का सोचा ना मेरे पति ने. पिता को सर का बोझ उतारना था सो उतार लिए. पति को नयी नवेली दुल्हन मिली स्वीकार कर लिए.

ज़रा सोचो बहिन, अगर कोई 35 साल की औरत किसी 20 साल के लड़के से विवाह करे तो लोग कहेंगे की कैसी औरत है इस उमर में चुदने चली है. कोई वेश्या ही ऐसी घृणित कार्य करेगी, ये औरत नही औरत के नाम पर कलंक है, ऐसी औरत के साए से दूर रहना चाहिए. लेकिन यही काम कोई मर्द करे तब लोग कहते हैं वाह क्या मर्द है इस उमर में भी जवान बीवी ले आया है.
तब समाज में उसकी प्रतिष्ठा और बढ़ जाती है, बिस्तर में बीवी चाहें अंगारों पर लेट,ती हो. पर यें बाहर अपनी मूच्छे उँची करके घूमते हैं.

ज़रा अपने बारे में सोच....! तेरा पति तुम्हे छोड़ गया है, वहाँ ना जाने क्या क्या करता होगा. कभी किसी लड़की के साथ सोता होगा तो कभी किसी के साथ. और भी ना जाने कितने बुरे ऐब पाले होंगे वहाँ.
पर जिस दिन वो लौट के आएगा. ना तो तुम ये पुछोगि कि इतने दिन तुम किसके साथ सोए किसके साथ जागे. और ना ये समाज पुछेगा. लेकिन यही काम अगर तू करेगी तो हज़ार मूह एक साथ सवाल करेंगे. पति धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देगा. सारे समाज में तुम्हारी थू थू हो जाएगी. क्योंकि तुम औरत हो."

शांता कुछ ना बोली. वह खामोशी से सुंदरी की बातों को सच्चाई की तराजू पर तौलती रही. सुंदरी के मूह से निकले एक एक बात में सच्चाई छीपि हुई थी. उसे सुंदरी से सहानुभूति हो हो चली थी.

"बोल बहनी, जो मैं झूठ बोलती हूँ तो अपनी चप्पल मेरे सर पर दे मारो." सुंदरी उसे खामोश देख आगे बोली - "मैने तो इन मर्दों की परवाह करना बंद कर दिया है. अब परिणाम जो भी हो मुझे फिक़र नही. मैं तो अपनी ज़िंदगी जी रही हूँ और ऐसे ही जियूंगी."

"पर भाभी औरत की कुच्छ मर्यादायें भी तो होती है?" शांता ने मन में उठते प्रश्न को सुंदरी के सामने रखा.

"ये भी मर्दों के बनाए हुए हैं." सुंदरी जवाब में बोली - "बहनी, हमारी विवशता यह है कि हमें मर्दों ने इतना डरा रखा है कि हम अपनी खुशी कम और उनके सम्मान की ज़्यादा सोचते हैं. सच पुछो तो हम अपने लिए जीते ही नही हैं. हमारी खुशी भी उनकी मर्ज़ी की दास है और हमारा मान सम्मान भी उनकी जागीर है. हमारा अपना कुच्छ है ही नही. ना ये समाज ना ये घर.....! हम केवल वस्तु हैं. जब जिसकी मर्ज़ी हुई उपयोग कर लिया.

मैं सच कहती हूँ बहनी, आज मेरे दिल में मुखिया जी से कहीं ज़्यादा बिरजू के लिए सम्मान है. क्योंकि मुझे अब तक जितनी भी खुशी मिली है बिरजू से मिली है, पति से सिर्फ़ दुख और झिड़की के कुच्छ ना मिला है. मैं तो कहती हूँ तू भी किसी का हाथ पकड़ ले. क्यों अपनी जवानी गला रही है? अभी भी तुझमे बहुत आकर्षण बाकी है, किसी भी मर्द का मन हिला सकती है"

"ना भाभी." सुंदरी की बात से शांता घबराकर बोली - "मुझसे ये सब ना होगा. अब थोड़ी से ज़िंदगी बची है कैसे भी काट लूँगी."

"शांता क्यों अपनी जवानी बर्बाद कर रही है उस शराबी के इंतेज़ार में. छोड़ दे उसका इंतेज़ार और थाम ले किसी का हाथ, मैं तुम्हे दूसरा विवाह करने की बात नही कह रही हूँ, सिर्फ़ किसी की बाहों में सिमट कर सुख भोगने की बात कर रही हूँ. सच बता क्या तेरा मन नही करता कि तुझे कोई प्यार करे, तेरे इन खूबसूरत होंठों का रस पीए, कोई तेरे इन नाज़ुक अंगो पर हाथ धरे" ये कहते हुए सुंदरी ने अपने एक हाथ से उसके बूब्स दबा दिए.

"भाभी.....ये क्या कर रही हो?" शांता चिहुन्क कर पीछे हटी. सुंदरी के छुने से उसके पूरे बदन में एक सनसनाहट सी भर गयी. उसकी आँखें उत्तेजना में भारी हो गयी थी. वह काँपते होंठों से शांता से बोली - "मेरे सोए अरमान ना जगाओ भाभी, मैं बदनामी से डरती हूँ. मुझसे वो सब ना होगा जो तुम कर लेती हो."


"बहनी, क्यों एक दिन की बदनामी के डर से अपनी सारी ज़िंदगी को जहन्नुम बनाती हो. अभी तुम्हारी उमर ही कितनी हुई है? तू अभी भी खूब मज़े ले सकती है. छोड़ दे दुनिया की परवाह.....जी ले अपनी ज़िंदगी. तू कहे तो मैं तेरी मदद कर दूँ. बिरजू बहुत दमदार मर्द है. उसका मर्दाना अंग बहुत शानदार है." सुंदरी ने एक आ भरी फिर बोली - "ज़ालिम क्या रगड़ता है बिस्तर पर, सखी सच कहती हूँ, जब वो देह पर चढ़कर उच्छलता है तो मैं संसार को भूल जाती हूँ. एक बार तू उसकी सेवा लेकर देख....फिर देख वो कैसे तेरी सालों की प्यास बुझता है."

शांता की आँखें नशे में लाल हो गयी. बदन में वासना लहू बनकर दौड़ उठा. शरीर इतना गरमाया कि उसकी योनि गीली हो गयी. सुंदरी की बातों से एक बार उसके विचारों में बिरजू का मजबूत शरीर घूम गया. उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कुच्छ देर पहले जिस बूब्स को सुंदरी ने दबाया था अब उसी बूब्स पर बिरजू के हाथ रेंग रहे हों. इस एहसास से उसके विचार और गहराए.....अब उसे लगने लगा जैसे बिरजू के हाथ उसके समस्त शरीर को छु रहे हों, उसे कभी अपने बूब्स पर बिरजू के कठोर हाथों का स्पर्श महसूस होता तो कभी अपने नितंबो पर उसके हाथों की थपकी. तो कभी उसे ये लगता कि बिरजू उसे अपनी बाहों में जकड़े हुए उसके होंठो को चूस रहा है.
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