Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:16 PM,
#32
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --32

गतान्क से आगे........................

बिंदिया एक पल के लिए खड़ी रही, जैसे ख़ान से किसी हरकत की उम्मीद कर रही हो पर जब कुच्छ ना हुआ तो दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गयी.

"हेलो डॉक्टर. साहब" थोड़ी देर बाद ख़ान ने डॉक्टर. अस्थाना का नंबर मिलाया.

"कहिए ख़ान साहब" अस्थाना की आवाज़ आई "कैसे याद किया?"

"एक सवाल था दिमाग़ में" ख़ान बोला "आपके हिसाब से ठाकुर के जिस्म पर जो औरत के निशान आपको मिले थे वो कितने पुराने हो सकते हैं?"

"ये बताना तो ऑलमोस्ट इंपॉसिबल है" अस्थाना बोला

"और ऐसे निशान कितने दिन तक पुराने हो सकते हैं?"

"अगर ये मान लिया जाए के ठाकुर साहब हफ़्तो तक नही नहाते थे तो हफ़्ता भर पुराने भी हो सकते हैं"

"और अगर नहाए हों तो" ख़ान ने पुछा

"अगर नहाए हों तो शरीर से धुल जाने चाहिए पर एक बार नहाने के बाद बच भी सकते हैं"

"ह्म्‍म्म" ख़ान सोचते हुए बोला "थॅंक्स डॉक्टर."

डॉक्टर से बात के बाद उसने फोन रखा ही था के उसका मोबाइल फिर बज उठा. कॉल अननोन नंबर से थी.

"हेलो" ख़ान ने कॉल रिसीव की.

"हाई" दूसरी तरफ से एक लड़की की आवाज़ आई जिसे ख़ान फ़ौरन पहचान गया.

किरण, किरण .... कम्बख़्त किरण ... उसने दिल ही दिल में सोचा.

"फोन मत रखना प्लीज़" ख़ान फोन रखने ही लगा था के दूसरी तरफ से किरण ने कहा "बात करनी है कुच्छ तुमसे"

ख़ान फोन पकड़े चुप खड़ा रहा.

"थॅंक्स" किरण बोली

"कहो" ख़ान ठंडी आवाज़ में बोला

"काम था कुच्छ" किरण ने कहा

" अच्छी तरह जानता हूँ के क्या काम है तुम्हें" ख़ान मज़ाक सा उड़ाता हुआ बोला "तुम एक जर्नलिस्ट हो और मैं इस वक़्त एक बड़े मर्डर केस के बिल्कुल बीच खड़ा हूँ. कहानी चाहिए तुम्हें"

कुच्छ देर तक किरण कुच्छ नही बोली.

"कहानी तो मुझे पता है और अगर कुच्छ और जानना चाहती तो पुच्छने के लिए बहुत लोग हैं. मैं सिर्फ़ इस कहानी का तुम्हारा पहलू जानना चाहती हूँ"

"क्यूँ?"

"ऐसे ही" किरण चोर आवाज़ में बोली

"ऐसे ही नही" ख़ान का गुस्सा धीरे धीरे बढ़ने लगा "तुम मेरा पहलू इसलिए जानना चाहती हो ताकि अपनी कहानी में मिर्च मसाला लगा सको"

"मिर्च मसाला?"

"हां मिर्च मसाला. क्या दिखाना चाहती हो? यही के एक निकम्मा इनस्पेक्टर बस बैठा देखता रहा जबकि एक मासूम को फाँसी पर चढ़ा दिया गया? या ये दिखाना चाहती हो के मैं कितना नकारा हूँ? दोबारा फोन मत करना मुझे"

और ख़ान ने फोन पटक दिया.

1 मिनिट बाद ही फोन दोबारा बजा और लाख ना चाहते हुए भी ख़ान ने दोबारा फोन उठा ही लिया.

"तो तुम भी मानते हो के जै मासूम है और ग़लत आदमी को इस केस में फसाया जा रहा है?" कॉल रिसीव करते ही उससे पहले किरण बोल पड़ी.

"मैं भी से मतलब?" ख़ान अपना गुस्सा भूलकर बोला

"मेरा भी यही मानना है" किरण बोली

"क्यूँ?"

"अपनी वजह है मेरे पास" किरण ने कहा

"तो मुझसे क्या चाहती हो फिर?" ख़ान का गुस्सा जैसे फिर चढ़ने लगा.

थोड़ी देर के लिए फोन पर खामोशी च्छा गयी.

"हेलो" ख़ान को आवाज़ ना आई तो उसने फोन चेक किया के कॉल डिसकनेक्ट तो नही हो गयी.

"मैं जै से मिली थी" किरण बोली "उसने बताया के तुम भी यही मानते हो के वो बेकसूर है और उसकी मदद कर रहे हो तो मैने सोचा के मैं भी साथ दूं"

"जै जै जै जै जै ... ख़ान के दिमाग़ में जैसे घंटियाँ बजने लगी. मेरे पीठ पिछे और किस किस से बात की है साले ने?"

"देखो ये हमारे आपस की बात नही है. अगर हम मिलकर काम करें तो एक बेगुनाह की जान बचा सकते हैं"

"और किसने कहा के मुझे तुम्हारी मदद चाहिए?" ख़ान बोला

"किसी ने नही कहा पर शायद तुम ये भूल रहे हो के तुम अकेले जै के तरफ खड़े हो तो मैने सोचा के एक से भले दो"

"और तुम ऐसा क्यूँ कर रही हो?"

"ये नही कहूँगी के मेरा लालच नही है इसमें" किरण बोली "अगर हम उसको बेगुनाह साबित कर दें तो मुझे एक अच्छी कहानी मिल जाएगी"

"और तुम्हारा एक मशहूर रिपोर्टर होने का सपना पूरा हो जाएगा. जानता था मैं के अपने मतलब की ही बात करोगी तुम"

किरण एक पल के लिए कुच्छ कहने लगी पर फिर चुप हो गयी.

"मेरी छ्चोड़ो" उसने जैसे पलटकर वार किया "तुम क्यूँ इतना मरे जा रहे हो जै को बेकसूर साबित करने के लिए. क्या लगता है तुम्हारा?"

"कुच्छ नही लगता" ख़ान बोला "यू सी दुनिया में ज़रा सी इंसानियत अब भी बाकी है इसलिए कुच्छ लोग अब भी कभी कभी अच्छे काम कर लेते हैं वरना यहाँ तो ऐसे लोग भरे पड़े हैं जिनको अपने मतलब के सिवा और कुच्छ नज़र नही आता"

"मेरी तरफ इशारा कर रहे हो?" अब किरण का गुस्सा भी सॉफ ज़ाहिर हो रहा था

"ओह यू गॉट दट? वेरी स्मार्ट. हां तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ" ख़ान दाँत पीसता हुआ बोला

"इंसानियत?" अब दोनो बात कम कर रहे थे और एक दूसरे पर कीचड़ ज़्यादा उच्छल रहे थे "यू नो दट वर्ड साउंड्स फन्नी कमिंग फ्रॉम ए मॅन हू किल्ड हिज़ जूनियर ऑफीसर. तब कहाँ गयी थी तुम्हारी इंसानियत जब उस सब-इनस्पेक्टर को गोली मारी थी तुमने?"

और यहाँ जैसे किरण हद से आगे निकल गयी. जिस बात का ज़िक्र ख़ान करना नही चाह रहा था उसने खुद छेड़ दी.

"दट वाज़ अन आक्सिडेंट" ख़ान चिल्ला उठा "एक एनकाउंटर के दौरान क्रॉस फाइरिंग में वो बीच में आ गया और गोली उसको लग गयी"

"ओह्ह्ह आक्सिडेंट" किरण भी चिल्ला ही रही थी "किसी की जान चली गयी और तुम्हारे लिए आक्सिडेंट? 2 साल का बच्चा था उसका जो आज अनाथ है तुम्हारी वजह से. तब कहाँ गयी थी तुम्हारी इंसानियत? वो तो बेचारा सिर्फ़ तुम्हारा साथ दे रहा था"

"वो मेरा साथ नही दे रहा था, हीरो बनने की कोशिश कर रहा था. बिना मुझे कोई इशारा किए ठीक उस तरफ भागा जिस तरफ मैं गोलियाँ चला रहा था"

"यआः राइट" किरण बोली "यू नो व्हाट, तुम्हें फोन करना मेरी ग़लती थी, तुम्हारे जैसे लोगों के मुँह लगना अपने आप में एक पाप है"

और किरण ने फोन पटक दिया पर 1 मिनिट बाद दोनो फिर फोन पर थे. कॉल इस बार ख़ान ने की थी.

"मेरी इंसानियत पर इल्ज़ाम लगाया है तो सुनती जाओ" ख़ान बोला "अपना शहर का मकान बेच डाला था मैने और जितना पैसा मिला सारा उस सब-इनस्पेक्टर की बीवी को दे आया था ताकि उसके बच्चे को एक बेहतर फ्यूचर मिल सके. और ज़रा अपने गिरेबान में झाँको. बिना कुच्छ जाने मुझ पर जो तुमने अख़बारो में कीचड़ उच्छाला था, वो कहाँ तक जस्टिफाइड था?"

"ओह तो अब हम मेरी बात कर रहे हैं?" किरण भी पिछे हटने वालो में से नही थी "और मिस्टर. इंसानियत, तब कहाँ थे तुम जब मैं समान बाँधे तुम्हारा इंतेज़ार कर रही थी और तुम नही आए? बोलो."

और सालों बात दोनो के बीच फिर वही बात उठ गयी जिसके लेकर दोनो मुद्दत तक अंदर ही अंदर जलते तो रहे, पर एक दूसरे से शिकवा ना कर सके थे.

"तुम्हें तो जैसे पता ही नही, है ना?" ख़ान गुर्राया

"पता है" किरण बोली "जानती हूँ के तुम कहीं मुँह च्छुपाए बैठे थे, डरे हुए थे कि लड़की को अपने साथ भगा के ले गये तो उसका बाप तुम्हारा क्या करेगा. इतना डर लग रहा था तो मुझसे कह देते. मैं कहीं और भाग जाती, कम से कम मेरी ज़बरदस्ती शादी तो नही करा दी जाती."

ख़ान एक पल के लिए चुप हो गया.

"तुम्हारी वजह से, सिर्फ़ तुम्हारी वजह से मुन्ना मैं एक ऐसे इंसान के बिस्तर पर सोती रही जो कहीं से भी मेरे लायक नही था " किरण रो पड़ी "अगर तुमने मुझे भगा कर नही ले जाना था तो झूठ क्यूँ बोला मुझसे? मैं समान बाँधे तुम्हारा इंतेज़ार कर रही थी. अगर पता होता तो तुम्हारा इंतेज़ार करने के बजाय कहीं जाकर च्छूप जाती"

ख़ान फिर भी चुप रहा. किरण गुस्से में उसको फिर उसी नाम से बुला गयी थी जो वो उसे प्यार से बुलाती थी, मुन्ना... शॉर्ट फॉर मुनव्वर. किरण को कभी उसका नाम पसंद नही था.

"आज एक तलाक़-शुदा औरत की ज़िंदगी जी रही हूँ मैं, सिर्फ़ तुम्हारी वजह से" किरण के सिसकने की आवाज़ आई.

ख़ान चौंक पड़ा. उसको नही मालूम था के किरण तलाक़ ले चुकी थी.

"जानना चाहती हो के मैं उस शाम क्यूँ नही आया था?" आख़िर में वो बोला "क्यूंकी तुम्हारे बाप ने मुझे मार मार कर हॉस्पिटल पहुँचा दिया था. जिस वक़्त तुम फेरे ले रही थी उस वक़्त मैं हॉस्पिटल में अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ रहा था"

अब किरण चुप थी.

"और सुनोगी? मैं इस लिए नही आ पाया क्यूंकी मेरी माँ मेरी गोद में दम तोड़ रही थी. मैं इसलिए नही आ पाया क्यूंकी मैं अपनी माँ को दफ़ना रहा था जिसे तुम्हारे बाप के आदमियों ने इतना मारा था के वो बेचारी कभी होश में वापिस आई ही नही. और किसलिए मरी वो? इसलिए के तुम हार मानकर किसी और से शादी कर लो? एक महीने भी मेरे लिए लड़कर इंतेज़ार ना कर सको?"

किरण कुच्छ नही बोली.

"और इतनी कमज़ोर निकली तुम के बाप के डर से शादी तो की ही साथ मेरे घर का पता भी थमा दिया? बहुत हिम्मत की बातें करती थी ना तुम? कहाँ गयी थी तुम्हारी हिम्मत तब? क्यूँ अपने बाप के सामने घुटने टेक दिए? क्यूँ नही कर सकी मेरा इंतेज़ार? इंतेज़ार तो छ्चोड़ो, क्या ये भी जानने की कोशिश की थी के मैं आया क्यूँ नही? या के मैं ज़िंदा भी हूँ या मर गया?

गुस्से में ख़ान ने फिर फोन पटक दिया. इस बार ना उसने वापिस फोन किया और ना किरण ने.

वो वहीं सर पकड़े बैठा रहा. धीरे धीरे रात का अंधेरा फेल रहा था.

रेडियो पर एक पुरानी ग़ज़ल की आवाज़ गूँज रही थी.

दिल के धड़कने का सबब याद आया,

वो तेरी याद थी अब याद आया.

तेरा भूला हुआ मोहब्बत का वादा,

मार जाएँगे अगर अब याद आया.

बैठके तन्हाई में अक्सर,

हम बहुत रोए जब तू याद आया.

हाल-ए-दिल हम भी सुनते मगर,

जब तू रुखसत हुई तब याद आया.

अगले ही दिन ख़ान जै से मिलने जैल गया.

"क्या हुआ?" जै ने ख़ान को अपनी तरफ घूरते देखा तो पुछा.

"डू यू रीयलाइज़ दट आइ आम प्रेटी मच दा ओन्ली वन स्टॅंडिंग बिट्वीन यू आंड ए डेत सेंटेन्स?" ख़ान ने सवाल किया

"यआः आइ नो दट"

"देन वाइ दा फक डू यू वॉंट टू पिस मी ऑफ? यू गॉट ए डेत विश ओर सम्तिंग?" ख़ान गुस्से में अपना हाथ टेबल पर मारता हुआ बोला.

"आए" वहीं बाज़ू में खड़े एक हवलदार ने कहा "ये गुस्सा जाके अपने घर में दिखाने का"

क्रमशः........................................
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