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RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
मैं पानी के हौड़े पर उकड़ू हो कर बैठ गयी. मेरी राइट साइड पर अस्तबल था. मेने अपनी स्कर्ट को जाँघो तक चढ़ा लिया. पॅंटी पहनी न्ही थी. इसलिए चूत पूरी ओपन थी. इतने मे पहलवान जी आते हुए दिखाई दिए.. मैं पानी मे देखने लगी.
वो पानी लेने आया, हाथ मे बाल्टी थी. वो झुक कर पानी उठा ही रहा था कि उसकी नज़र मुझ पर पड़ी. फिर उसकी नज़र मेरी चूत की तरफ गयी. पर मैं पानी मे देखती रही. मुझे पूछा- कोन हो बेटी. मेने कहा शायरा, शादी मे आई हू. आप कोन है? पहलवान ने कहा कि उसका नाम प्यारे है और वो वहाँ काम करता है.
मे- प्यारे जी, ये पानी बहुत गहरा है ना?
प्यारे- अरे न्ही बेटी, रूको मैं दिखाता हू.
ये कहकर उसने अपनी धोती खोल के हौड़े के कोने पर रखी और पानी मे उतर गया. असल मे उसका मकसद मेरी चूत को पास से देखना था. शाम हो गयी थी, सॉफ न्ही दिख रही होगी दूर से. पानी उसके कमर तक था. वो दो कदम बढ़ा के मेरे सामने आ गया. नज़र उसकी मेरी चूत पर थी पर बात मुझसे कर रहा था.
प्यारे- देखा, मेने कहा था ना पानी गहरा न्ही है.
मे- हां.
प्यारे- तुम भी आके देखो, कितना ठंडा पानी है.
मे- न्ही न्ही, मुझे डर लगता हे.
प्यारे- डरने की कोई बात न्ही.
मे- मेरे कपड़े भीग जाएँगे.
प्यारे- अरे तो उसको साइड मे रख दो, जैसे मेने रखे हैं. गीले नही होंगे.
वो एकदम मेरे सामने खड़ा था पानी मे, उसकी नज़र से मेरी चूत सिर्फ़ 3/4 इंच दूर थी. मेरी चूत पर बाल न्ही थे. एकदम चिकनी. वो उसी को देख रहा था. मेने ज़रा गौर से देखा, उसने अपनी धोती तो उतार दी थी, नीचे कुछ पहना हुआ भी था या नही? शाम के अंधेरे उजाले मे ऐसा लगा कि उसने कुछ पहना हुआ नही हे. मेने भी उसको देखने की सोची.
मे- पर मेरी सहेली भीतर अस्तबल मे है.
प्यारे- तो क्या हुआ, वो मना थोड़ी करेगी.
मे- फिर भी, वो देखेगी तो?
प्यारे- कुछ न्ही होगा, तुम कपड़े सूखी जगह पर रख दो, बाहर निकलो तब पहन लेना.
मे- ओके आती हू.
मेने उसके सामने ही टॉप उतारा, समीज़ उतारी. अब सिर्फ़ स्कर्ट थी.. मेने उसके बटन खोले और नीचे सरका के उतार दी. अब मे उसके सामने नंगी थी. चोर नज़रो से देखा, प्रिया अस्तबल के भीतर से देख रही थी.. प्यारे को देखा. वो आँखे फाड़ के मुझ को नंगा देख रहा था, उसका एक हाथ पानी मे था.
पहले मैं हौड़े के किनारे पर बैठी. प्यारे ने मेरा हाथ पकड़ के पानी मे उतार दिया. मेरा बॅलेन्स खराब हुआ. उसने अपने दोनो हाथो से मेरी दोनो चुचि पकड़ ली और सहारा देने लगा. मेने भी संभलते संभलते हुए उसको पकड़ने की कोसिस की और उसका लंड मेरे हाथ मे आ गया. मेने उसको छ्होरा नही.
मे- कितनी फिसलन है पानी मे.
प्यारे- वो तो हे, पर अब ठीक हे, तुम अब नही गिरोगि.
मे- हां, पर आपने मेरी चुचि क्यू पकड़ी,, हाथ भी पकड़ सकते थे.
प्यारे- तुमको गिरने से बचाने के लिए जो सामने आया वो पकड़ लिया.
मे- मेरा हाथ पकड़ लेते. अगर मेने पाइप न्ही पकड़ा होता तो ज़रूर गिर जाती.
प्यारे- हां सही कहा. पाइप पकड़ के रहना, गिरोगि नही.
मे- पर मेने पहले जिस पाइप को पकड़ा था वो छोटा और मुलायम था.
प्यारे- ये वही पाइप है बेटी.
अंधेरा हो गया था… प्रिया कब बाहर आ कर खड़ी हो गयी मालूम न्ही हुआ, वो हौड़े के बाहर से देख रही थी. मेने फिर फिसलने की आक्टिंग की, प्यारे ने फिर मेरी चुचि पकड़ ली, सीधा खड़े होने के बाद भी उसने चुचि नही छ्होरी. वो उसको दबाने लगा. मुझे मज़ा आ रहा था. प्रिया का मन भी हुआ पानी मे आने का.. उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और पानी मे आ गयी.
मे- प्रिया, आजा, देख कितना ठंडा पानी है
प्रिया- हां शायरा. वाकई.
मे- मालूम? अगर मेने पाइप न्ही पकड़ा होता तो डूब जाती.
प्रिया- देखु तो कोन सा पाइप.
प्रिया ने पानी क भीतर हाथ डाला और उसने भी लंड पकड़ लिया.
प्रिया- शायरा ये पाइप न्ही है.
मे- तो क्या हे, इतना हार्ड तो पाइप होता है.
प्रिया- प्यारे जी, आप बताओ ये क्या है?
प्यारे- ये मेरा लंड है. शायरा ने इसको पकड़ के खुद को बचाया.
प्रिया- देखु तो ,, और ये कहकर प्यारे का लंड पकड़ लिया.
मैं हौड़े की दीवार की तरफ मूह करके खड़ी हो गयी, मेरी पीठ प्यारे की तरफ थी. मेने घूम कर देखा प्यारे प्रिया को चूम रहा था, प्रिया उसके लंड को पानी मे मसल रही थी. फिर प्यारे ने मेरे पीछे से आकर मेरी बाँहो के नीचे से हाथ डाला और मेरे बूब्स पकड़ लिए. और दाबने लगा. उसका लंड मेरी गंद से टकरा रहा था.
प्रिया ने मेरी चूत मे उंगली घुसा दी और हिलने लगी. मुझे मस्ती आ गयी. मेने अपने पैरो को फैला दिया.. प्रिया दूसरे हाथ से प्यारे का लंड तैयार कर रही थी जैसे वो घोड़े का करती थी.. अब मुझे समझ मे आया कि वो मेरी चुदाई देखना चाहती थी. जब उसका लंड तैयार हो गया तो वो मेरे सामने आ गयी और मुझे किस करने लगी.
प्यारे का लंड छु कर मुझे इतना तो एहसास हो गया था कि इस तरह के लंड से मैं पहले भी चुद चुकी हू, इसलिए मन मे कोई ख़ौफ़ न्ही था. मेने भी प्रिया की चुचि दबानी शुरू कर दी. इधर प्यारे ने अपना लंड मेरी चूत मे घुसाने की कोसिस की. मेने प्रिया से कहा अगर चुदाई देखनी है तो पानी से बाहर आना पड़ेगा, पानी मे कुछ न्ही दिखेगा.
प्रिया राज़ी हो गयी और बाहर आ गयी, मुझे और प्यारे को बाहर आने बोला. हम तीनो बाहर आ गये. अब मेने प्यारे के लंड देखा. वो तना हुआ था और चूत मे घुसने को तैयार था. मेरी चूत भी तैयार थी. मेने खुद को कुतिया की पोज़िशन मे किया. प्यारे मेरे पीछे अपने घुटनो पर बैठ गया,
अब उसका लंड एकदम सीधा था. प्रिया ने मेरी चूत फेलाइ और प्यारे ने अपना लंड उसमे घुसा दिया.. थोड़ा आह के बाद लंड पूरा चला गया और चुदाई शुरू हो गयी.. प्रिया को देख के मज़ा आ रहा था.
मे- प..री..या.. आ आ …. तू…झे..भी… चु…दवा…ना … है ?
प्रिया- हां, पर तुम पहले चुद लो, तुम्हारे बाद मेरा नंबर.
मे- आग…आर…उसका… लंड… दुबा…रा…टाइट…न्ही…हुआ…तो? आ… आहह
प्रिया- हो जाएगा. मास्टर जी से एक बार मे 3/4 बार चुद्ति हू, हर बार उनका लंड चूस के टाइट करती हू, इसका भी कर दूँगी.
मे- ठ… ईक…है ,, हां .प्या.. रे.. ज़ोर ….से ज़ोर… से
प्यारे पहलवान तो था ही. मेरी कमर पकड़ के इतनी ज़ोर ज़ोर से धक्का लगा रहा था कि मेरा पूरा सरीर हिल रहा था. फिर अचानक उसने अपना लंड बाहर निकाला और मेरी गंद मे घुसा दिया. और जबरदस्त तरीके से पेलने लगा.. लंड के नीचे की बॉल हर थाप के साथ मेरी चूत को टक्कर मार रही थी… करीब 15 मिनिट के बाद उसने अपना जूस मेरी गंद मे निकाल दिया. और मुझे अलग कर दिया.
अब प्रिया का नंबर था.. उसने प्यारे के लंड को चूसना शुरू किया. वो फिर टाइट हो गया. उसने प्यारे को ज़मीन पर लिटाया और कहा कि वो प्यारे को चोदेगि. प्यारे का लंड सीधा उपर की तरफ टाइट खड़ा हुआ था. वो प्यारे के उपर आई, अपनी दोनो टाँग प्यारे के दोनो साइड मे की, थोड़ी सी चूत फैलाई और लंड पर रख दी.
अब वो उसपर बैठने लगी.. लंड उसकी चूत मे जाने लगा. वो उसपर बैठती चली गयी.. धीरे धीरे उसने पूरा लंड अपनी चूत मे समा लिया. अब वो लंड पर गोल गोल घूमने लगी और अपनी गंद हिलाने लगी. प्यारे चुद रहा था और प्रिया चोद रही थी.. मेने अपनी चूत प्यारे क मूह पर रख दी. वो चाटने और चूसने लगा.. 15/20 मिनिट तक प्रिया की चुदाई के बाद उसका रस निकल गया..
आज हम दोनो बहुत खुस थी.. हमारी चुदाई हुई थी, सरीर हल्का हो गया. प्यारे और हमने अपने कपड़े पहने.. कल भी यही प्रोग्राम के लिए हमने प्यारे को कह दिया.. हम दोनो सहेलिया हवेली की तरफ खुशी खुशी चल दिए.. आज पहले दिन ही हमारा काम हो गया था.. 9 दिन और बचे थे.. हमने प्लान बनाया कि प्यारे तो है ही, अगर कोई एक और मिल जाए तो ट्राइ करेंगे.
हवेली पहुचे. आंटी बोली कहाँ थी तुम दोनो . हमने कहा कि हम गार्डेन मे थी,, गाओं की फ्रेश एर खा रही थी,, सहर मे ये सब कहाँ? आंटी बोली ओके बेटी, जब तक यहाँ हो, तुम दोनो खूब एंजाय करो.. फिर ये मौका नही मिलेगा.. हम दोनो सहेलियो ने एक दूसरे को देखा और मुस्करा दी… हां हम खूब एंजाय करेंगे..
दोस्तो कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त....
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RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
चुदाई का ट्यूशन पार्ट--1
अनिल ने अब तक जितनी भी लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाया था दिव्या उन सबसे सेक्सी और चुदाई के लिए पकी हुई थी. मेकॅनिकल इंजिनियरिंग के सेकेंड एअर में पढ़ रहे अनिल ने इससे पहले केवल 7थ - 8थ के स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाया था... उस उम्र में कुच्छ लड़कियों के स्तन उभर तो आते हैं पर जो आकार और गोलाई 11थ में पढ़ रही दिव्या की चुचियों में था वो उनमे में नही था. और उस समय अनिल भी कहाँ केर करता था. इंजिनियरिंग कॉलेज में आने के बाद ये तीसरी लड़की है जिसे अनिल ट्यूशन पढ़ा रहा था. इससे पहले उसने मीनाक्षी और देवयानी को पढ़ाया था. मीनाक्षी तो दुबली पतली थी और उसकी चुचियाँ अभी तक विकसित नही हुई थी. हां देवयानी सेक्सी थी और इसे लाइन भी दे रही थी पर अनिल को कभी हिम्मत ही नही हुई पहल करने की. छ्होटे सहर के संस्कारी वातावरण से आए अनिल के लिए ये समझना बहुत कठिन था कि देवयानी जान बूझ कर अपने ब्रा और चुचियाँ उसे दिखा रही है या बस ग़लती से उसे दिख जा रहा है. अपनी ग़लती का एह्शास तो उसे तब हुआ जब एग्ज़ॅम से पहले वो देवयानी को बेस्ट ऑफ लक विश करने गया था तो घर में अकेली देवयानी ने उससे लिपट कर उसकी छाती पर अपनी चुचियाँ दबा दी थी. जब अनिल के उम्मीद से अधिक देर तक और अधिक ज़ोर से देवयानी उससे लिपटी रही तो अनिल की पॅंट में कुच्छ गतिविधि हुई और उसका हाथ देवयानी की छोटी सी स्कर्ट में छिपी गोल कोमल गांद पर गया. देवयानी ने अपने पैर उपर उठा अनिल की पॅंट में उभड़ रहे पर्वत को उसके अनुकूल स्थान के निकट ला दिया. अनिल के हाथों का ज़ोर बढ़ा और उसने देवयानी को बगल की दीवार की ओर धकेल कर उसके बदन को अपने बदन से मसल्ने लगा. देवयानी ने आँखे बंद कर अपने चेहरे को उपर की तरफ उठाया, अनिल ने आमंत्रण स्वीकार करते हुए उसके गुलाब के पंखुरियों समान नशीले होंठों पर चुंबन जड़ दिया. दवयायानी ने अपने मुँह को खोल अनिल की जीभ को उकसाया. सिर्फ़ अनिल की जीभ दवयायानी के मुँह में नही गयी, उसका हाथ भी दवयायानी की शर्ट में घुस उसकी ब्रा में दबी रसगुल्ले जैसी चुचियों को मसल्ने लगा था. दवयायानी के संपूर्णा समर्पण से प्रोत्साहित हो अनिल उसकी शर्ट के बटन को खोल काले ब्रा में आधी धकी हुई सफेद चुचियों के गुलाबी निपल को चूसने लगा. राक कॉन्सर्ट के ड्रम की तरह धड़कते दिल, धड़कन के साथ लयबद्ध हो फूलती चुचियाँ, और वॅक्यूम क्लीनर की तरह चलती साँसों के साथ दीवार से अटकी दवयायानी अपनी आँखे बंद सबकुच्छ लुटाने को तैयार खड़ी थी. उसकी चुचियों से सारे रस को निचोड़ लेने के बाद अनिल अपने लक्ष्या की तरफ बढ़ा, स्कर्ट खोल कर नीचे गिरने और स्कर्ट सरका कर रेशमी बालों के बीच सुगंध बिखेरती अमृत टपकाती दवयायानी की गुलाबी चूत को प्रकाशमान करने में अनिल को अधिक वक़्त नही लगा. चूत को पहली बार आँखों के सामने प्रत्यक्ष देख कर अनिल के मुँह और लंड दोनो से लार टपक पड़ी. अपनी उंगलियों के नाख़ून को अपनी हथेली में दबाती हुई, अपने निचले होंठ को दांतो तले दबा, आँखों को बंद कर बढ़ती धड़कन और तेज़ होती साँसों के साथ दवयायानी मुर्तिवत खड़ी हो अपनी पंखुरियों के खुलने और भवरे द्वारा रस को चूसने का इंतेज़ार कर रही थी. थोड़ी देर रेशमी झाड़ियों से खेलने के बाद अनिल की उंगलियाँ शबनम से गीली हो चुकी गुलाबी पंखुरियों के बीच जा पहुँची. उन पंखुरियों के गीलेपन, चिकनाई और गर्मी का एह्शास करते हुए उसकी उंगली प्रेम की गहराइयों में जा घुसी. दवयायानी मचल उठी, उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल गयी. सिसकारियो ने अनिल को भी जोश में ला दिया और अनिल की उंगलियाँ गहराई में जा उस कच्ची कली की सिंचाई करने लगी. उंगलियों से सिंचाई कर कली को फूल बनाने की पूरी तैयारी कर अनिल कली को फूल बनाने के लिए बिस्तर पर ले गया और अपनी पॅंट की ज़िप को खोल जल से भरे ट्यूबिवेल को बाहर निकाला. तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी. दवयायानी स्प्रिंग की तरह उच्छल कर अपने स्कर्ट की ओर लपकी और अपने कपड़े ठीक करने लगी. अनिल ने भी जल्दी से अपने हथियार को अंदर डाला और दवयायानी के कमरे से निकल कर भागा.
इसके बाद तो एग्ज़ॅम हुए, फिर ट्यूशन बंद और फिर दोनो को कभी मिलने का मौका नही मिला. चुदाई के इतने नज़दीक पहुँच कर मिस कर जाने पर अनिल पागल हो उठा था. उस दिन की घटना को, दवयायानी के नंगे बदन को याद कर कर अनिल ना जाने कितनी ही बार हिला चुका था. पर जो मज़ा असली चुदाई का है वो हाथ में कहाँ. दिव्या को पहली बार देख कर अनिल का लंड अपनी अधिकतम लंबाई पर पहुँच गया था. उसने उस रात तीन बार हिलाया. दिव्या दवयायानी से ठीक उल्टी थी. वो गाओं से पहली बार 11थ की पढ़ाई करने आई थी. उसके पिताजी किसान थे और सबलॉग गाओं के संस्कारों के पुजारी थे जहाँ गुरु को भगवान से भी उँचा दर्जा दिया जाता है. अनिल के घर पहुँचने पर दिव्या की मा हाथ जोड़ कर अनिल को प्रणाम करती और दिव्या पावं च्छू कर प्रणाम करती. दूसरे माले पर दिव्या का बेडरूम था, ट्यूशन वहीं चलता और बस एक कप चाइ देने के लिए दिव्या की मा उपर आती, इसके अलावा उपर कोई देखने नही आता. दिव्या नज़र उठा कर भी अनिल की तरफ नही देखती. वो तो बेचारी ठीक से कुच्छ बोल ही नही पाती. बस सर हिला कर अनिल के सवालों का जवाब देती. अनिल इस मौके का खूब फायेदा उठाता और दिव्या के समीज़ से अंदर और समीज़ के उपर से दिव्या के पर्वतों को इतना घूरता कि उसकी पॅंट पर पर्वत खड़ा हो जाता. दिव्या का जिश्म जितना विकसित था, मस्तिष्क उतना ही अविकसित. वो अपने आदरणीय गुरुजी को प्रसन्न रखने का प्रयास तो बहुत करती पर मैथ और फिज़िक्स उसके दीमाग में घुसता ही नही था. केयी बार तो उसकी मंद बुद्धि से अनिल क्रोध में आ उसे डाँट देता और तब उसका गोरा चेहरा लाल हो जाता जो दिव्या को और भी मादक बना देता था.
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RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
महीना बीत गया पर समीज़ के उपर से उसकी बढ़ी हुए चुचि को मापने के अलावा अनिल अपने लक्ष्या की तरफ एक कदम भी नही बढ़ा पाया था. महीने के अंत में फीस देते समय जब दिव्या के पिताजी ने दिव्या की पढ़ाई के बारे में पूचछा तो अनिल का सारा फ्रस्ट्रेशन बाहर आ गया. उसने खुल कर दिव्या की शिकायत की. दिव्या के पिताजी नीरस हो कर बोले "देखिए सर, हमारा काम फीस देना है, पढ़ना इसका काम है और पढ़ाना आपका. अगर पढ़ाई नही करे तो आप इसे जो जी में आए सज़ा दीजिए. मैं और दिव्या की मा एक शब्द नही बोलेंगे". 'जो जी में आए सज़ा दीजिए' ये शब्द कान में पड़ते ही अनिल का लंड खड़ा हो गया. उसने सर झुकाए, आँखे भरी हुई, चेहरा लाल, खड़ी दिव्या को देखा और उसके पिताजी से आग्या ले हॉस्टिल वापस आ गया. रात भर अनिल यही सोचता रहा अपनी इस नयी आज़ादी का लाभ वो कैसे उठाए.
अगले दिन अनिल का लंड सुरू से ही खड़ा था. सलवार, समीज़ और ओढनी में बिस्तर पर दिव्या बैठी थी और सामने कुर्शी पर अनिल. दिव्या जब भी कुच्छ लिखने के लिए झुकती, उसकी ओढनी नीचे गिर जाती और फिर वो ओढनी ठीक करने लगती. ओढनी के कारण अनिल को दिव्या के अमूल्या निधि का भरपूर नज़ारा नही मिल रहा था. उसने चाइ आने तक इंतेज़ार किया, फिर खुद को मिली आज़ादी से उत्तेजित अनिल ने दिव्या के जिश्म पर से ओढनी खीच कर साइड में रख दी. "इससे बार बार डिस्टर्ब हो रही हो, बिना इसके रहो". दिव्या चुपचाप अपने गुरु की आग्या मानते हुए झुक कर पढ़ाई में लग गयी. अब अनिल को दिव्या की पुर्णवीकसित चुचियों के आकार का सही अंदाज़ लग रहा था और उसके आकार ने कदाचित् अनिल के लंड का आकार बढ़ा दिया था. अब जब भी दिव्या नीचे झुकती उसकी समीज़ से उसकी गोल चुचियों का कुच्छ हिस्सा अनिल को दिख जाता जो उसके लंड में रक्त संचार बढ़ा उसे उत्तेजित कर देता. अगले दिन से दिव्या पढ़ने बिना ओढनी के ही आई और अगले कुच्छ दिनो में अनिल को दिव्या के ब्रा के कलेक्षन की पूरी जानकारी मिल चुकी थी और उसे दिव्या की गुलाबी निपल्स के भी दर्शन हो चुके थे. पर बात आगे नही बढ़ रही थी. सिर्फ़ देख कर उसका मंन नही भरता. दिव्या को पढ़ा कर लौटने पर वो अक्सर हिला कर अपने लंड के जोश को ठंढा करता फिर सोता. वो दिव्या के जिश्म तक पहुँचने की नयी तरकीब सोचने लगा.
अगले दिन अनिल ने उस बेचारी जान को टरिगॉनओमीट्री के सारे आइडेंटिटीस याद करने का होमवर्क दे दिया. अनिल अच्छि तरह से जानता था कि दिव्या की मंदबुद्धि में ये आइडेंटिटीस कभी नही घुसने वाले हैं. पर उसका उद्देश्या उसके दिमाग़ में फ़ॉर्मूला घुसाना नही अपितु उसकी चूत में अपना लंड घुसाना था. दिव्या अनिल की उम्मीद पर पूरी तरह से खरी उतरी. अनिल ने झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा "तुम पढ़ाई बिल्कुल नही करती, ऐसे काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे पनिशमेंट नही मिलता तुम पढ़ाई नही करोगी. चलो मुर्गी बनो" ये सज़ा अनिल को बचपन में स्कूल में मिला करती थी, पर इसमे उसे दिव्या की गांद को नज़दीक से देखने का मौका मिलता. बेचारी दिव्या रुआंसी हो चुप चाप अनिल की बगल में खड़ी हो गयी. उसके लाल गाल देख कर अनिल के जी में आया अभी उसे बाहों में भर कर चूम ले. पर उसने कहा "रोने धोने से काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे सज़ा नही मिलेगी तुम्हारा पढ़ाई में ध्यान नही लगेगा". दिव्या जब फिर भी नही हिली तो अनिल खड़ा हो गया और गुस्से में कहा "मैने तुमसे कुच्छ कहा है?" दिव्या ने रोती हुई कहा "मुझे मुर्गी बनना नही आता" अनिल को ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी. वो दिव्या के पीछे उसके बदन के एकदम नज़दीक खड़ा हो गया और एक हाथ उसके पीठ पर और दूसरी हाथ उसकी चुचि पर रख कर बोला "नीचे झुको". दिव्या की चुचि को इससे पहले किसी मर्द ने नही च्छुआ था. उसके पूरे बदन में सनसनी दौड़ गयी, मानो उसे करेंट लगा हो. वो रोनो धोना सब भूल गयी थी, उसके आँसू ना जाने कहाँ गायब हो गये थे और उसके दिल की धड़कन अचानक बढ़ने लगी. अनिल के हाथ का दबाव उसकी चुचि पर बढ़ने लगा, वो दिव्या के धड़कते दिल को अपनी हथेलियों पर महशूस कर सकता था. जब दिव्या झुक गयी तो उसने उसे अपने पैर के पीछे से हाथ ला कान पकड़ने को कहा. फिर अनिल का शरारती हाथ दिव्या की टाइट और पूरी तरह से विकसित गांद पर गया और उसने गांद को मसल्ते हुए कहा "इसे उपर उठाओ" फिर अपने हाथ को उसकी गांद पर भ्रमण कराते हुए उसकी चूत पर अपनी उंगली को दबाया. चूत पर सलवार के उपर से उंगली के दबाव ने दिव्या को जैसे पागल बना दिया. उसे ऐसा एह्शास पहले कभी नही हुआ था. उसे सर जी की ये सज़ा पसंद आ रही थी. चूत पर उंगली पड़ते ही एक सनसनी सी दिव्या के पूरे बदन मे होते हुए उसके चूत तक पहुँची और गीलापन बन बाहर आ गयी. दिव्या ने पहले ऐसा कभी महशूष नही किया था. वो उठ कर सीधा टाय्लेट भागना चाहती थी. पर अनिल का हाथ उसकी गांद के आयतन, द्राव्यमान और घनिष्टता मानो सब माप लेना चाहता हो. उसका व्याकुल लंड अपने आगे चूत को देख पॅंट फाड़ कर बाहर निकलने को बेचैन हो रहा था. पर इस डर से की कहीं कोई चला ना आए, अनिल उसके गांद का मज़ा अधिक समय तक नही ले सकता था. उसने थोड़ी ही देर में दिव्या को उठ जाने को कहा.
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RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
गतान्क से आगे........
"कल जो फिज़िक्स में होमवर्क दिया था वो तुमने किया है?" अनिल फिर से उसके चुचियों को मसल्ने और अपने शख्त लंड पर उसकी कोमल गांद कामज़ा लेने के लिए बहाने खोज रहा था.
"पर कल तो आपने फिज़िक्स में कोई काम नही दिया था" दिव्या अनिल को और सताने के मूड में थी.
"परसो तो दिया था?"
"हां, वो मैने बना लिया है"
"दिखाओ" अब अनिल चिढ़ रहा था. दिव्या ने अपनी कॉपी दिखाई. अनिल ने बिना कॉपी पर देखे ही कहा "ये कैसे बनाई हो, मैने ऐसे थोड़े ही बतायाथा. तुम्हारा पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल ध्यान नही लगता. चुप चाप यहाँ झुक कर खड़ी हो जाओ"
"पर सर ये तो आपने लिखा था, मैने इसके बाद वाले से बनाया है" दिव्या ने मुश्कूराते हुए कहा, उसकी आँखों में शरारत भरी थी.
"मुझसे ज़बान लड़ती है. बदतमीज़! जो कहता हूँ चुप चाप करो" अनिल पूरी तरह चिढ़ चुका था. दिव्या भी अनिल की पूरी खिचाई कर चुकी थी. अब उसे भी अनिल का मज़ा लेना था. वो चुप चाप बेड से उतर झुक कर खड़ी हो गयी. अनिल फिर उसकी गांद पर लंड को दबा खड़ा हो गया और कमीज़ केउपर से उसके चुचियों को मसल्ने लगा. जिस चीज़ के लिए अनिल पिछले दो महीनो से तड़प रहा था, वो हाथ में आने के बाद अब अनिल के लिए खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. उसने दिव्या की गांद पर अपने लंड का दबाव और उसकी चुचि पर अपने हाथ का दवाब बढ़ाया. जोश और बढ़ा तो वो दिव्या के कमीज़ के बटन खोलने लगा.
"मा आ गयी तो?" दिव्या ने पूछा
"दरवाज़ा बंद है" अनिल ने अस्वासन देना चाहा
"अगर मा ने पूछा दरवाज़ा क्यूँ बंद है?"
"बोल देना कि हवा पढ़ाई में डिस्टर्ब कर रही थी"
दिव्या के कमीज़ के सारे बटन खुल चुके थे और अनिल के हाथ कमीज़ में घुस कर रसगुल्ले की तरह दिव्या की दोनो चुचियों का रस निचोड़ने लगे. दिव्या के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी. अनिल का जोश और बढ़ा और उसने दिव्या की गांद पर ज़ोर का झटका दिया. दिव्या फिसल कर बेड पर गिर गयी. अनिल उसके उपर गिरा और उसकी चुचियों को भींचते हुए उसकी गांद पर अपना लंड मसल्ने लगा. वो अपना होश पूरी तरह से खो चुकाथा, उसे कोई परवाह नही थी कि कोई आ जाएगा. उसे तो ये भी ध्यान नही था कि उसने अभी तक पॅंट पहना हुआ है. वो तो बस दिव्या के दोनो संतरों से रस को निचोड़ते हुए कुत्ते की तरह उसकी कोमल गांद पर अपना लोहे जैसा लंड मसले जा रहा था. जब वो आनंद की शिखर पर पहुँचा तो उसे ध्यान आया कि उसका लंड अभी भी पॅंट के अंदर है. उसने जल्दी से पॅंट की ज़िप को खोल कर लंड बाहर निकालना चाहा, पर बहुत देर हो चुकी थी. विशफोट उसकी पॅंट के अंदर ही हुआ. क्या हुआ जो उसने कपड़े के उपर से गांद पर ही लंड मसला था, जिश्म तो लड़की का था. 80% सेक्स मस्तिष्क में होता है. ये एहसास कि वो किसी लड़की के बदन पर है ही उसके आनंद को बढ़ाने के लिए प्रयाप्त था. उसके लंड से प्रेमरस की जो मात्रा आज बही वो पहले कभी नही बही थी. कुच्छ ही देर में उसके अंडरवेर को गीला करती हुई प्रेमरस रिस्ते हुए पॅंट पर आ पहुँचा. उसके लंड के पास एक बड़े क्षेत्र में उसकी पॅंट पर गीलेपन का निशान था और उसके प्रेमरस की खुसबू उसके पॅंट से उड़ते हुए सीधे दिव्या की नाक में जा रही थी. झाड़ जाने के बाद वो होश में आ चुका था, वो दिव्या के उपर से उठ दरवाजे को खोल फिर से अपने कुर्शी पर बैठ चुका था, दिव्या अपनी कमीज़ को ठीक कर सभ्य विद्यार्थी की तरह अपने स्थान पर पूर्ववत विराजमान थी. दिव्या अब भी नशे में थी और अनिल के प्रेमरस की खुसबू उसके नशे को कम नही होने दे रही थी. ये पहली बार था जब उसने ऐसी मदहोश कर देने वाली खुसबू को सूँघा था. उसके मुँह और चूत दोनो में पानी आ रहा था. जब अनिल के जाने का समय आया तो अनिल बड़ी मुस्किल में था. कहीं दिव्या की मम्मी ने उसकी पॅंट पर उस दाग को देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी. वो अपने शर्ट को पॅंट से बाहर निकाल कर उससे धक लेने की बात से भी संतुष्ट नही था. हमेशा उसका शर्ट उसके पंत के अंदर होता है. अगर आज बाहर होगा तो दिव्या की मम्मी को संदेह हो जाएगा. उसने दिव्या से कहा "दिव्या तुम पहले निकलो और देखो तुम्हारी मम्मी नीचे ड्रॉयिंग रूम में तो नही है?" दिव्या ने अनिल को चिढ़ाते हुए काफ़ी माशूमियत से पूचछा "क्यूँ?". अनिल ने पॅंट की तरफ इशारा करते हुए कहा "इस पोज़िशन में उनके सामने कैसे जाउ?" दिव्या अपनी आँखों में शरारत भरे दबी आवाज़ में हँसने लगी. दिव्या की मा किचन में थी. दिव्या नीचे उतर अनिल को इशारे से नीचे आने को कहा. नीचे उतर अनिल जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा पीछे से दिव्या की मा किचन से निकल कर बोली "सर जी, पढ़ाई ख़तम हो गयी?"
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02-24-2019, 02:32 PM,
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RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
अनिल की तो जैसे जान ही निकल गयी. उसने बिना पीछे मुड़े हुए कहा - "जी आंटी जी"
"अब कैसी पढ़ाई कर रही है. कुच्छ सुधार हुआ है या अभी भी उसे मंन नही लगता. मैं तो कभी इसे पढ़ते देखती ही नही हूँ. दिन भर टीवी के सामने बैठी रहती है" जितना अनिल को वहाँ से भागने की जल्दी थी उतनी ही आंटी जी को बात करने का मंन था.
"पहले से तो इंप्रूव हुई है. कुच्छ दिनो में लाइन पर आ जाएगी" अनिल ने बात ख़त्म करने के अंदाज़ में कहा.
"नाश्ता करके जाइए" दिव्या की मा ने दूसरा पाश फेंका.
"नही आंटी जी, फिर कभी. कल कॉलेज में असाइनमेंट जमा करना है. बहुत काम बांकी है. मुझे हॉस्टिल जल्दी पहुँच काम करना है"
"ठीक है. प्रणाम"
"प्रणाम आंटी" बिना पीछे घूमे ही इतना कह कर वो वहाँ से ऐसे भागा जैसे पीछे कोई कुत्ता दौड़ रहा हो. अनिल के निकल जाने के बाद सीढ़ी के पास साँस रोके खड़ी दिव्या के जान में जान आई.
अगले दिन की सज़ा में अनिल कुच्छ और आगे बढ़ा. बेड पर हाथ रख झुक कर खड़ी दिव्या की सलवार का नाडा उसने खीच कर खोल दिया. उसकी सलवार खुल कर नीचे गिर गयी. "दरवाज़ा खुला है" दिव्या ने कहा. "रहने दो, तुम्हारी मम्मी चाइ देने के बाद कभी उपर नही आती" अनिल उसकी चिकनी गांद को सहला रहा था. कुच्छ ही देर में दिव्या की पॅंटी भी नीचे सरक चुकी थी और अनिल की उंगली उसकी गीली चूत के आस पास भ्रमण कर रही थी. पहली बार अपनी नंगी चूत पर किसी का स्पर्श पा दिव्या बहुत उत्तेजित थी. उसकी चूत से लार की धारा और उसके मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थी. अनिल ने अपनी पॅंट की ज़िप खोल अपने खड़े लंड को बाहर निकाला और उसकी गीली चूत के दरवाजे पर रगड़ने लगा. आज पहली बार अनिल के लंड ने चूत और दिव्या के चूत ने लंड का स्पर्श किया था. दोनो इस स्पर्श और उससे कहीं अधिक इस विचार से कि लंड चूत के अंदर घुसने वाला है, अत्यधिक उत्तेजित थे. तभी सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनाई दी. दिव्या अपनी सलवार समेत झट से बेड पर जा बैठी. अनिल भी तुरंत कुर्शी पर बैठ गया. दिव्या झुक कर कॉपी पर कुच्छ कुच्छ लिखने लगी. ये सारी घटना इतनी जल्दी हुई कि ना तो दिव्या को ठीक से अपनी सलवार ही समेटने का वक़्त मिला और ना ही अनिल को अपने हथियार को पॅंट के अंदर करने का. दिव्या पीछे से पूरी तरह नंगी थी. पूरी सलवार को सामने की तरफ समेट कर उसने अपनी कमीज़ से धक रखा था और कुच्छ इस तरह से झुकी हुई थी कि सामने से पता ना चले. पर उसकी जान अटकी हुई थी. अगर मा पीछे गयी तो क्या होगा. अनिल ने एक किताब को अपनी गोद में रख उससे अपने लंड को धक रखा था.
"दिव्या बेटी. बक्से की चाभी किधर रखी है? मुझे मिल नही रही"
"वहीं टीवी वाले टेबल पर पड़ी होगी!"
"नहीं है वहाँ, मैने सब जगह ढूँढ लिया. बहुत ज़रूरी है. कुच्छ देर के लिए नीचे चल के खोज दे"
दिव्या और अनिल दोनो की जान निकल गयी. दिव्या के माथे पर पसीना आने लगा. "देखो ना वहीं कहीं पड़ी होगी, पढ़ाई छ्चोड़ कर कैसे आउ?"
दिव्या की मा ने अनिल की तरफ देखते हुए कहा "सर जी, थोड़ी देर के लिए जाने दीजिए. बहुत ज़रूरी है." अनिल के मुँह से तो आवाज़ ही नही निकल रही थी. उसे तो लगा कि आज सारा भांडा फूट जाएगा.
"ठीक है, तुम नीचे जाओ. मैं इस सवाल को ख़तम करके आती हूँ" दिव्या ने स्थिति को संभाल लिया.
"जल्दी आ" मा नीचे चली गयी.
दोनो ने राहत की साँस ली. दिव्या ने उठ कर अपनी सलवार को ठीक किया और अनिल ने कद्दू से मिर्च हो चुके लंड को पॅंट के अंदर किया.
दिव्या के वापस आने पर अनिल ने उसे फिर से सज़ा देनी चाही, पर वो नही मानी. "मा आ जाएगी"
अगले दिन अनिल के काफ़ी ज़ोर देने पर दिव्या सज़ा के लिए तैयार तो हुई पर उसने शर्त लगा दी कि कपड़े मत उतरिएगा. अनिल को कपड़ो के उपर से ही दिव्या की चुचि गांद और चूत को मसल कर संतोष करना पड़ता था. अपने पुराने अनुभव के कारण वो पॅंट के अंदर लंड झार नही सकता था और दिव्या उसे लंड बाहर निकालने नही देती थी. अगले कुच्छ दिनो तक अनिल को बस उपरी मज़ा मिला. गहराई में उतरने की उसकी लालसा बस लालसा बन कर ही रही. पर जो भी मिल रहा था बहुत था. वो तो अपने कॉलेज के एग्ज़ॅमिनेशन के समय भी दिव्या को ट्यूशन पढ़ाने आता, उसे सज़ा देने आता. अब पढ़ाई में पढ़ाई से अधिक महत्वपुर्णा पनिशमेंट हो गया था. कहते हैं ना 'स्पेर दा रोड, स्पायिल दा चाइल्ड'. अनिल अपने रोड को बिल्कुल स्पेर नही करता था. दिव्या को हर ग़लती पर पनिशमेंट में रोड मिलता तो सही पर अवॉर्ड में. ट्यूशन का सत्तर फीसदी समय दिव्या केपनिशमेंट में जाता. दिव्या का गणित सुधरा या नही ये तो उपर वाला जाने, पर उसकी चुचि का आकार ज़रूर सुधर गया था.
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