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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
7
नेहा बड़े चाव से आइस-क्रीम खाने लगी, मेरा नेहा के प्रति प्यार देख भाभी ने मुझसे कहा:
"मानु.. मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूँ|"
मैं: हाँ बोलो ...
भाभी: पता नहीं तुम विश्वास करोगे या नहीं.. तुम्हें तो याद ही होगा उस रात जब हम दोनों हंसी-मजाक कर रहे थे... (इतना कहते हुए भाभी रुक गईं|)
मैं: भौजी मैं आपकी कही हर बात का विश्वास करूँगा.... आप बोलो तो सही ... अपने अंदर कुछ मत छुपाओ....
भाभी: मैंने उस रात के बाद तुम्हारे भैया के साथ कभी भी शारीरिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किये!!!
ये सुनते ही मैं दंग रह गया.... भाभी ने अपनी बात पूरी करते हुए आगे कहा ...
भाभी: यही कारन है की अब तुम्हारे भैया ओर मेरे बीच में पटती नहीं है| वे ना तो मुझे अब इस बारे में कुछ कहते हैं .. न ही मैं उनसे इस बारे में कुछ कहती हूँ| हमारे बीच केवल मौखिक रूप से ही बातचीत होती है| यही कारन है की वो अब मेरे साथ कहीं आते-जाते भी नहीं| जब मैंने दिल्ली आने की जिद्द की तो वे बिगड़ गए .. इसीलिए मैंने नेहा को पढ़ाया की वो ससुर जी से जिद्द करे तुम से मिलने की, तुम्हारे भैया ससुर जी का कहना हमेशा मानते हैं|
अब मेरी समझ में आया की आखिर भैया क्यों नहीं आये...
आगे मैं कुछ कह पता इतने में चन्दर भैया मुझे आते हुए नजर आये| भैया मुझसे गले मिले ओर हाल-चाल लिया, जब मैंने उनसे घर ना आने का रन पूछा तो उन्होंने बात टाल दी| भाभी की बात सुन के अब मुझे उनके लिए डर सताने लगा की कहीं भैया भाभी पर हाथ तो नहीं उठाते? मैं इसी उधेड़-बन में था की भैया ने विदा ली और मैं अपनी कश्मकश से बहार आया और कहा की मैं आपको बस में बिठा देता हूँ| बस खचा-खच भरी हुई थी मुझे दो औरतों के बीच एक जगह मिली और मैंने वहां भाभी को बैठा दिया, भैया अभी भी खड़े थे| मैंने भैया को बहार बुलाया और कंडक्टर से बात कराई की जैसे ही जगह मिले मेरे भैया को सीट सबसे पहले दें इसके लिए मैंने कंडक्टर को एक हरी पत्ती भी दे दी| कंडक्टर खुश हो गया और बोला:
" सहब आप चिंता मत करो भाईसाहब को मैं अपनी सीट पर बैठा देता हूँ|"
भैया ये सब देख के खुश थे उन्होंने टिकट के पैसे देने के लिए पैसे आगे बढ़ाये तो मैंने उन्हें मन कर दिया और कहा:
"भैया पिताजी ने कहा था की टिकट मैं ही खरीदूं| आप ये लो टिकट और अंदर कंडक्टर साहब की सीट पे बैठो|"
कंडक्टर से निपट के मैं अंदर आया और भैया से पूछा की आप कुछ खाने के लिए लोगे तो उन्होंने मना कर दिया... मैं भाभी की ओर बढ़ा ओर भाभी से पूछा तो उन्होंने भी मना कर दिया पर मैं मानने वाला कहाँ था मैं झट से नीचे उतरा और दो पैकेट चिप्स और दो ठंडी कोका कोला की बोतल ले आया और एक बोतल और चिप्स भैया को थम दिया और दूसरी बोतल और चिप्स भाभी को दे दी| भाभी न-नकुर करने लगी पर मैंने उन्हें अपनी कसम दे कर जबरदस्ती की| आखिर भाभी मान गईं फिर नेहा की एक पप्पी ले कर भाभी को इशारे में कहा की मैं जल्दी आऊंगा कहके मैं उतर गया|
समय का चक्का एक बार फिर घुमा! मेरी परीक्षा खत्म हुई और मैं पिताजी के पीछे पड़ गया की इस साल गांव जाना है और साथ ही साथ मंदिरों की यात्रा भी करनी है| मैं यूँ ही कभी पिताजी से मांग नहीं करता था और इस बार तो ग्यारहवीं के पेपर वैसे ही बहुत अच्छे हुए थे तो इनाम स्वरुप पिताजी भी तैयार हो गए और उन्होंने गांंव जाने की टिकट निकाल ली| गाँव जाने में अभी केवल दस दिन रह गए थे और मैं मन ही मन अपनी इच्छाओं की लिस्ट बना रहा था|अचानक खबर आई की मेरे दूर के रिश्तेदारी में एक भैया जो गुजरात रहते हैं और वो आज हमसे मिलने दिल्ली आ रहे हैं| मैं और भैया बचपन में एक साथ खेले थे, लड़े थे, झगडे थे... और हमारे बीच में दोस्तों और भाइयों जैसा प्यार था| उनके आने की खबर सुन के थोड़ा सा अचम्भा जर्रूर लगा की यूँ अचानक वो क्यों आ रहे हैं ... और एक डर सताने लगा की कहीं पिताजी इस चक्कर में गांव जाना रद्द न कर दें| मेरा मन एक अजीब सी दुविधा में फंस गया क्योंकि एक तरफ भैया हैं जिनसे मेरी अच्छी पटती है और दूसरी तरफ भाभी हैं जो शायद मेरा कौमार्य भांग कर दें| खेर मेरे हाथ में कुछ नहीं था, इसलिए उन्हें लेने स्वयं पिताजी स्टेशन पहुंचे और वे दोनों घर आ गए| मैंने उनका स्वागत किया और हम बैठके गप्पें मारने लगे| मैं बहुत ही सामान्य तरीके से बात कर रहा था और अपने अंदर उमड़ रहे तूफ़ान को थामे हुए था|
बातों ही बातों में पता चला की वे ज्यादा दिन नहीं रुकेंगे, उनका प्लान केवल 2-4 दिन का ही है| ये सुन के मेरी जान में जान आई की काम से काम गांव जाने का प्लान तो रद्द नहीं होगा| उनके जाने से ठीक एक दिन पहले की बात. मैं और भैया कमरे में बैठे पुराने दिन याद कर रहे थे और खाना खा रहे थे| तभी बातों ही बातों में भैया के मुख से कुछ ऐसा निकला जिससे सुन के मन सन्न रह गया|
भैया: मानु अब तुम बड़े हो गए हो ... मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूँ| जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब मनुष्य गलत फैसले लेता है| वो ऐसी रह चुनता है जिसके बारे में वो जानता है की उसे बुराई की और ले जायेगी| तुम ऐसी बुराई से दूर रहना क्योंकि बुराई एक ऐसा दलदल है जिस में जो भी गिरता है वो फंस के रह जाता है|
मैं: आपने बिलकुल सही कहा भैया और मैं ये ध्यान रखूँगा की मैं ऐसा कोई गलत फैसला न लूँ|
उस समय तो मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, परन्तु रात्रि भोज के बाद जब मैं छत पर सैर कर रहा था तब उनकी कही बात के बारे में सोचने लगा| मन असमन्झस स्थिति में पड़ चूका था और दिमाग भैया की बात को सही मान कर मुझे भाभी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने से रोक रहा था| मित्रों मन पे काबू करना इतना आसन होता तो मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कभी न करता| यही कारन था की मैंने मन की बात मानी और फिर से भाभी और अपने सुहाने सपने सजोने लग पड़ा|
आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन हम गांव पहुंचे|
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
8
अब आगे....
घर पहुँचते ही सब हमारी आव भगत में जुट गए और इस बार मेरी नजरें भाभी को और भी बेसब्री से ढूंढने लगीं| भाभी मेरे लिए अपने हाथों से बना लस्सी की गिलास लेकर आई और मेरे हाथों में थमते हुए अपनी कटीली मुस्कान से मुझे घायल कर गईं| जब वो वापस आई तो उनके हाथ में वही परत का बर्तन था जिसमें वो मेरे पैर धोना चाहती थीं| पर मैं भी अपनी आदत से मजबूर था, मैंने अपने पाँव मोड़ लिए और आलथी-पालथी मार के बैठ गया| भाभी के मुख पे बनावटी गुसा था पर वो बोलीं कुछ नहीं| कुछ देर बाद जब लोगों का मजमा खत्म हुआ तो वो मेरे पास आईं और अपने बनावटी गुस्से में बोलीं:
भाभी: मानु ... मैं तुम से नाराज हूँ|
मैं: पर क्यों? मैंने ऐसा क्या कर दिया?
भाभी: तुमने मुझे अपने पैर क्यों नहीं धोने दिए?
मैं: भाभी आपकी जगह मेरे दिल में है पैरों में नहीं!
(मेरा डायलाग सुन भाभी हंस दी)
भाभी: कौन सी पिक्चर का डायलाग है?
मैं: पता नहीं... पिक्चर देखे तो एक जमाना हो गया|
भाभी: अच्छा जी!
मैं: भाभी अप वचन याद है ना?
भाभी: हाँ बाबा सब याद है... आज ही तो आये हो थोड़ा आराम करो|
मैं: भाभी मेरी थकान तो आपको देखते ही काफूर हो गई और जो कुछ बची-कूची थी भी वो आपके लस्सी के गिलास ने मिटा दी|
हम ज्यादा बात कर पाते इससे पहले ही हमारे गाँव के ठाकुर मुझसे मिलने आ गए| उन्हें देख भाभी ने घूँघट किया और थोड़ी दूर जमीन पर बैठके कुछ काम करने लगीं| एक तो मैं उस ठाकुर को जानता नहीं था और न ही मेरा मन था उससे मिलने का| जब भी गाँव में वो किसी के घर जाता तो सब खड़े हो के उसे प्रणाम करते और पहले वो बैठता उसके बाद उसकी आव-भगत होती| पर यहाँ तो मेरा रवैया देख वो थोड़ा हैरान हुआ और आके सीधा मेरे पास बैठा और मेरे कंधे पे हाथ रखते हुए बोला:
ठाकुर: और बताओ मुन्ना क्या हाल चाल है| कैसी चल रही है पढ़ाई-लिखाई?
मैं: (मैंने उखड़े स्वर में जवाब दिया) ठीक चल रही है|
ठाकुर: अरे भई अब तो उम्र हो गई शादी ब्याह की और तुम पढ़ाई में जुटे हो| मेरी बात मानो झट से शादी कर लो|
उनका इतना कहना था की भाभी का मुँह बन गया|
ठाकुर: मेरी बेटी से शादी करोगे? ये देखो फोटो... जवान है, सुशील है, खाना बनाने में माहिर है और दसवीं तक पढ़ी भी है वो भी अंग्रेजी स्कूल से|
अब भाभी का मुँह देखने लायक था, उन्हें देख के ऐसा लग रहा था जैसे कोई उनकी सौत लाने का प्रस्ताव लेकर आया हो और वो भी उनके सामने|….. शायद अब भाभी को मेरे जवाब का इन्तेजार था...
मैं: देखिये ... आप ये तस्वीर अपने पास रखिये न तो मेरा आपकी बेटी में कोई इंटरेस्ट है और न ही शादी करने का अभी कोई विचार है| मैं अभी और पढ़ना चाहता हूँ.. कुछ बनना चाहता हूँ|
मैंने तस्वीर बिना देखे ही उन्हें लौटा दी थी और मेरा जवाब सुन भाभी को बड़ी तस्सल्ली हुई| ठाकुर अपनी बेइज्जती सुन तिलमिला गया और गुस्से में मेरे पिताजी से मेरी शिकायत करने चला गया|
सच कहूँ तो मैंने ये बात सिर्फ और सिर्फ भाभी को खुश करने को बोली थी... और शयद भाभी मेरी होशियारी समझ चुकी थी... क्योंकि उनका चेहरा मुस्कान से खिल उठा था| फिर भी उन्होंने मुझे छेड़ते हुए पूछा:
"क्यों मानु, तुम्हें लड़कियों में दिलचस्पी नहीं है?"
मैं: भौजी... मुझे तो आप में दिलचस्पी है|
ये बात बिलकुल सच थी... और भाभी मेरा जवाब सुन के खिल-खिला के हँस पड़ी|
सूरज अस्त हो रहा था और अब मेरा मन भाभी को पाने के लिए बेचैन था और मुझे केवल इन्तेजार था तो बस सही मौके का| मेरे भाई जिनकी शादियां हो चुकी थीं उनके बच्चे मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहे थे और मैं विवश हो उनको कुछ कह भी नहीं सकता था| आखिर भाभी ने उन्हें खाना खाने के बहाने बुला लिया और वे सभी मुझे खींचते हुए भाभी के पास रसोई में ले आये| ऐसा लगा जैसे सुहागरात के समय भाभियाँ अपने देवर को कमरे के अंदर धकेल देती हैं| भाभी ने मुझे भी खाना खाने के लिए कहा परन्तु मेरा मन तो कुछ और चाहता था.. मैंने ना में सर हिला दिया| भाभी दबाव डालने लगीं.. परन्तु मैंने उनसे कह दिया:
"भौजी मैं आपके साथ खाना खाऊंगा|" मेरा जवाब सुन भाभी थोड़ा सुन रह गईं.... क्योंकि मैंने इतना धड़ले से उन्हें जवाब दिया था और वो भी उन सभी बच्चों के सामने| वो तो गनीमत थी की बच्चे तब तक खाना खाने बैठ चुके थे और उन्होंने मेरी बात पर ज्यादा गौर नहीं किया| मैं भी भाभी के भाव देख हैरान था की मैंने कौन सा पाप कर दिया... सिर्फ उनके साथ खाना ही तो खाना चाहता हूँ| भाभी ने मुझे इशारे से कुऐं के पास बुलाया और मैं ख़ुशी-ख़ुशी वहां चला गया| अमावस की रात थी.... काफी अँधेरा था... और मेरे मन में मस्ती सूझ रही थी क्योंकि कुऐं के आस-पास रात होने के बाद कोई नहीं जाता था क्योंकि कुऐं में गिरना का खतरा था| जब मैं कुऐं के पास पहुंचा तो देखा भाभी खेतों की तरफ देख रही थी और मैंने पीछे से जाकर भाभी को अपनी बाँहों में जकड़ लिया| भाभी अचानक हुए इस हमले से सकपका गई और मेरी गिरफ्त से छूटती हुई दूर खड़ी हो गई| मैं तो उनका व्यवहार देख हैरान हो गया.. आखिर उन्हें हो क्या गया.. अब कोन सी मक्खी ने उन्हें लात मार दी|
इससे पहले की मैं उनसे कुछ पूछता, वे खुद ही बोलीं:
"मानु तुम्हें अपने ऊपर थोड़ा काबू रखना होगा| ये गावों है.. शहर नहीं.. यहाँ लोग हमें लेकर तरह-तरह की बातें करेंगे| "
मैं: पर भौजी हुआ क्या?
भाभी: अभी तुम ने जो कहा ...की तुम मेरे साथ खाना खाओगे| और अभी तुमने जो मुझे पीछे से पकड़ लिया उसके लिए...
मैं: पर भाभी....
भाभी: पर-वार कुछ नहीं...
मैं: ठीक है| मुझसे गलती हो गई.. मुझे माफ़ कर दो|
इतना कह के मैं वहाँ से चल दिया.. और भाभी मुझे देखती रह गई| शायद उन्हें अपने कहे गए शब्दों पे पछतावा था| मैं वापस आँगन में अपना मुंह लटकाये लौट आया... मन में जितने भी तितलियाँ उड़ रहीं थी उनपे भाभी ने मॉर्टिन स्प्रे मार दिया था| *(मॉर्टिन स्प्रे = कीड़े मारने के काम आता है|)
मैंने अपना बिस्ता स्वयं बिछाने लगा.. तभी चन्दर भैया ने पूछा:
"मानु भैया खाना खा लिया?"
मैं: नहीं भैया... भूख नहीं है|
चन्दर भैया: किसी ने कुछ कहा तुमसे?
मैं: नहीं तो.. पर क्यों?
चन्दर भैया: नहीं भैया कुछ तो बात है जो तुम खाना नहीं खा रहे| मैं अभी सबसे पूछता हूँ की किस ने तुम्हें दुःख दिया है|
मैं: भैया ऐसी कोई बात नहीं है... दरअसल दोपहर में मैंने थोड़ा डट के खाना खा लिया था... इसीलिए भूख नहीं है| ये देखो मैं हाजमोला खाने जा रहा हूँ...
ये कहते हु मैं हाजमोला की शीशी से गोलियां निकाली और खाने लगा| मैं मन ही मन में सोच रहा था की कहाँ तो आज मेरा कौमार्य भांग होना था और कहाँ मैं आज भूके पेट सो रहा हूँ वो भी हाजमोला खा के .... अब पेट में कुछ हो तब तो हाजमोला काम करे| मैंने अपनी चारपाई आँगन में एक कोने पर बिछाई.. बाकि सब से दूर क्योंकि मैं आज अकेला रहना चाहता था| अशोक और अजय भैया ने कहा:
"मानु भैया ... इतनी दूर क्यों सो रहे हो| अपनी चारपाई हमारे पास ले आओ..."
मैं: (बात बनाते जुए) भैया आप लोग बहत थके हुए हो... और थकावट में नींद बड़ी जबरदस्त आती है... और साथ-साथ खरांटे भी|
मेरी बात सुन दोनों खिल-खिला के हंसने लगे और मैं अपने सर पे हाथ रख के सोने की कोशिश करने लगा| पर दोस्तों जब पेट खाली होता है तो नींद नहीं आती... मन उधेड़-बन में लगा हुआ था की काम से काम भाभी मेरी बात तो सुन लेती| मैंने अगर उनके साथ खाना खाने की बात कही तो इसमें बुरा ही क्या था| पहले भी तो हम दोनों एक ही थाली में खाना खाते थे ... अभी मैं अपने मूल्यांकन से बहार ही नहीं आए था की मेरे कानों में खुस-फुसाहट सी आवाज सुनाई पड़ी....
"मानु.. चलो खाना खा लो|"
ये आवाज भाभी की थी.. और मैं अभी भी नाराज था.... इसीलिए मैं कोई जवाब नहीं दिया और ऐसा दिखाया जैसे मैं सो रहा हूँ" तभी उन्होंने मुझे थोड़ा हिलाया....
"मानु मैं जानती हूँ तुम सोये नहीं हो.. भूखे पेट कभी नींद नहीं आती..."
मैं अब भी कुछ नहीं बोला...
"मानु .. मुझे माफ़ कर दो... मेरा गुस्सा खाने पर मत निकालो| देखो कितने प्यार से मैंने तुम्हारे लिए खान बनाया है|"
मैं अब भी खामोश था...
"देखो अगर तुमने खाना नहीं खाया तो मैं भी नहीं खाऊँगी... मैं भी भूखे पेट सो जाउंगी|"
मेर गुस्सा शांत नहीं होने वाल था... मैं अब भी किसी निर्जीव शरीर की तरह पड़ा रहा| भाभी को दर था की कोई हमें इस तरह देख लेगा तो बातें बनाने लगेगा इसीलिए वो वहाँ से उठ के चली गईं| सच कहूँ तो मित्रों मैं उनके साथ जाना चाहता था परन्तु मैं अपने ही द्वारा बोले झूठ में फंस चूका था| अब यदि चन्दर भैया मुझे खाना खाते हुए देख लेता तो समझ लेता की मैंने झूठ बोला था की मेरा पेट भरा हुआ है| अब अगर मैं शहर में अपने घर में होता तो रसोई से कुछ न कुछ खा ही लेता पर गावों में ये काम करने से बहुत डर लग रहा था इसीलिए मैंने सोने की कोशिश की| इस कोशिश को कामयाबी मिलने में बहुत समय लगा .. और मुश्किल से तीन घंटे ही सो पाया की सुबह हो गई|
गावों में तो सभी सुबह जल्दी ही उठ जाते हैं| मुझे भी मजबूरन उठना पड़ा... अशोक भैया लोटा लेके सोच के लिए जाते दिखाई दिए और मुझे भी साथ आने के लिए कहा| मैंने मन कर दिया... अब उन्हें कैसे कहूँ की पेट में कुछ है ही नहीं तो निकलेगा क्या ख़ाक?!!!
नहा-धो के एक दम टिप-टॉप होक तैयार हो गया की अब सुबह की चाय मिलेगी उससे रात की भूख कुछ शांत होगी| भाभी अपने हाथ में दो चाय ले के मेरा समक्ष प्रकट हो गईं ... मुझसे पूछने लगीं की नींद कैसी आई ? नाराजगी आप भी मन में दही की तरह जमी बैठी थी ... और मैंने उनके हाथ से चाय का कप लेते हुए कहा
"बहुत बढ़िया... इतनी बढ़िया की ... क्या बताऊँ... सोच रहा था की मैं यहाँ आया ही क्यों? इससे अच्छा तो शहर में रहता| "
इतना कहते हुए मैं कप अपने होठों तक लाया की तभी नेहा दौड़ती हुई आई और मेरी टांगों से लिपट गई.. इस अचानक हुई हरकत से मेरे हाथ से कप छूट गया और गर्म-गर्म चाय मेरे तथा नेहा के ऊपर गिर गई| मैं तो जलन सह गया पर नेहा एक दम रो पड़ी.. और भाभी एक दम से तमतमति हुई नेहा को देखने लगी और उसे डाटने लगी,
"ये क्या हरकत है?? .. देख तूने सारी चाय गिरा दी| तुझे पता भी है चाचा ने रात से कुछ नहीं खाया और सुबह की चाय भी तूने गिरा दी... तू ऐसे नहीं मैंने वाली"...
और मारने के लिए हाथ उठाया| नेहा अपनी माँ के मुख पे गुस्सा देख मेरे पीछे छुप गई और सुबक ने लगी| मैंने भाभी का हाथ हवा में ही रोक दिया और नेहा को उठा के मैं अंदर ले आया ताकि जहाँ-जहाँ चाय गिरी थी उस जगह पे दवाई लगा सकूँ| भाभी भी मेरे पीछे-पीछे आई और अपनी चाय मुझे देने लगी:
"इसे छोडो ... ये लो मानु तुम ये चाय पी लो... मैं इसे डआई लगा देती हूँ|"
मैं: नहीं रहने दो... जब मैं आपके साथ खाना नहीं खा सकता तो चाय कैसे पीऊं???
भाभी: अच्छा बाबा मैं दूसरी चाय ले आती हूँ|
ये कहते हुए भाभी मेरे लिए दूसरी चाय लेने चली गईं... और मैं नेहा को चुप करा उसके हाथ पोछें और दवाई लगा दी| नेहा अभी भी सुबक रही थी... मैंने उसे गले लगाया और वो अपनी सुबकती हुई जबान में बोली:
"सॉरी चाचू...."
मैंने उसे कहा की
"कोई बात नहीं.. मैं जब तुम्हारी उम्र का था तो मैं तुमसे भी ज्यादा शरारत करता था| चलो जाके खेलो...मैं तब तक ये कप के टुकड़े हटा देता हूँ नहीं तो किसी के पावों में चुभ जायेंगे|"
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07-15-2017, 01:28 PM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
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अब आगे....
जैसे ही मेरा लंड बहार आया भाभी की बुर से एक गाढ़ा पदार्थ नीचे गिरा और उसके गिरते ही आवाज आई:
"पाच... " ये पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि मेरे और भाभी के रसों का मिश्रण था| भाभी निढाल होक मेरे ऊपर गिर पड़ीं| मैंने उन्हें संभाला और उनके होंठों पे चुम्बन किया और उन्हें दिवार दे सहारे खड़ा किया और अपनी जेब से रुमाल निकल के उनके बुर को पोंछा और फिर अपने लें को साफ़ किया| मैंने पास ही पड़े पोंछें से जमीन पे पड़ी उस "खीर" को साफ़ करने लगा जिस पे मक्खियाँ भीं-भिङने लगीं थी|
भाभी अब होश में आ गई थीं और वो स्वयं छलके चारपाई पे बैठ गईं| मैंने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया... भाभी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी .. पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|
मेरी मनो दशा मुझे अंदर से झिंझोड़ रही थी... मुझे अपने ऊपर घिन्न आ रही थी... अपने द्वारा हुए इस पाप से मन भारी हो चूका था| मैं भाभी से माफ़ी मांगना चाहता था.. परन्तु इससे पहले मैं कुछ कह पाता, नेहा भाभी को ढूंढती हुई आ गई... जब उसने भाभी से पूछा की वो कहाँ थीं तो उन्होंने मेरी ओर देखते हुए झूठ बोल दिया:
"बेटा मैं ठकुराइन चाची के पास गई थी वहां से अभी- अभी तुम्हारे चाचा के पास आई तो उन्होंने बताया की उनके सर में दर्द हो रहा है.. तो मैं तेल लगाने वाली थी| (भाभी ने तेल की शीशी की ओर इशारा करते हुए कहा)
मैं: नहीं भाभी रहने दो.. मैं थोड़ी देर सो जाता हूँ... आप जाओ खाना खा लो|
भाभी उठीं और चल दी... मैं उन्हें जाते हुए पीछे से देखता रहा| मैं आँगन पमें पड़ी चारपाई पे लेट गया और सोचने लगा...
क्या अभी जो कुछ हुआ वो पाप था?
यदि भाभी गर्भवती हो गई तो? उनका क्या होगा ? और उस बच्चे का क्या होगा?
ये सब सोचते-सोचते सर दर्द करने लगा... मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था की मैं क्या करूँ? सर दर्द और पेट भरा होने के कारन आँखें कब बोझिल हो गईं और कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| जब आँख खुली तो शाम के सात बज रहे थे, मैं उठा और स्नान घर में जा के स्नान किया... स्नान करते हुए जब ध्यान अपने तने हुए लंड पे गया तो दोपहर की घटना फिर याद आ गई और अपने ऊपर शर्म आने लगी की कैसे देवर हूँ मैं जिसने अपनी ही भाभी को.... छी ..छी..छी... मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए| यही कारण था की मैं नहाने के बाद रसोई के आस पास भी नहीं जा रहा था... मैं छत पे आ गया और टहलने लगा... अंदर ही अंदर खुद को कोसते हुए.... मैं छत के एक किनारे खड़ा हो गया और चन्दर भैया के घर की ओर देखते हु सोचने लगा की क्या मुझे भाभी से माफ़ी मांगनी चाहिए?
अभी मैं अपनी इस असमंजस की स्थिति से बहार भी नहीं आया था की नेहा ने मुझे नीचे से आवाज दी:
"चाचू...माँ आपको बुला रही है|"
नेहा की बात सुन के मेरे कान लाल हो गए.. ह्रदय की गति बढ़ गई और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| मन कह रहा था की कहीं भाभी नाराज तो नहीं? या किसी ने भाभी और मुझे वो सब करते देख तो नहीं लिया? या भाभी ने खुद ही ये बात तो सब को नहीं बता दी? इन सवालों ने मेरे क़दमों को जकड लिया की तभी नेहा ने फिर से मुझे पुकारा:
"चाचू..."
मैं: हाँ... मैं आ रहा हूँ|
लड़खड़ाते हुए मैं सीढ़ियों से नीचे उतरा और रसोई की ओर चल पड़ा... मन में घबराहट थी ओर चेहरा साफ़ बयां कर रहा था की मेरी फ़ट चुकी है| रसोई के पास एक छप्पर था जहाँ घर की औरतें और कभी-कभी मर्द बैठ के बातें वगैरह किया करते थे| जैसे ही मैं छप्पर के नजदीक पहुंचा तो मुझे किसी के खिल-खिला के हंसने की आवाज आई.. ये तो नहीं पता था की वो कौन है पर इस हंसी के कारन मेरे बेकाबू दिल को थोड़ी सांत्वना मिली| बाल-बाल बचे !!!
मैं छप्पर में दाखिल हुआ तो एक चारपाई पर रसिका भाभी और हमारे गाँव का अकड़ू ठाकुर जिस के बारे में मैंने आपको बताया था उसकी बेटी (माधुरी) बैठी थीं और दूसरी चारपाई पर भाभी और नेहा बैठे थे| माहोल देख के लगा जैसे वे सब आपस में कुछ खेल रहे थे और हसीं ठिठोली कर रहे थे... भाभी ने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया .. और मैं उनके पास बैठ गया| दरअसल वे सब एक दूसरे से टीम बना के पहेली पूछने का खेल रहे थे... अब चूँकि भाभी अकेली पड़ रहीं थी इसलिए उन्होंने मुझे बुलाया था|
मैं काफी हैरान था की भाभी के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं और कहाँ मैं शर्म के मारे गड़ा जा रहा था| अब भी मैं भाभी से कोई बात नहीं कर पा रहा था... भाभी ने सब से आँख बचा के मुझे इशारे से पूछा की क्या बात है? पर मैंने इशारे से कहा की कुछ नहीं.... भाभी मुझे सवालिया नजरों से देख रही थी और मैं उनसे नजरें चुरा रहा था| भाभी ने माहोल को थोड़ा हल्का करने के लिए मुझसे साधारण बात शुरू की :
भाभी: मानु.. अब सर दर्द कैसा है?
मैं: जी.. अब ठीक है|
(मेरे इस फॉर्मल तरीके से भाभी कुछ परेशान दिखी उहें लगा की मैं उनसे नाराज हूँ|)
भाभी: अच्छा मानु हम यहाँ पहेली बुझने वाला खेल खेल रहे हैं और तुम मेरे पक्ष में हो|
मैं: पर भाभी आपतो जानते ही हो की मुझे भोजपुरी नहीं आती .. तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाउँगा|
मेरे मुख से "भाभी" सुन भाभी ने मुझे अपना झूठा गुस्सा दिखाया क्योंकि भाभी को हमेशा "भौजी" ही कहता था और सिवाय उनके मैंने "भौजी" शब्द किसी और के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं किया था किसका उनको गर्व था|
भाभी: तो क्या हुआ??? तुम मेरे पास तो बैठ ही सकते हो ?
मैं: ठीक है...
दरअसल उत्तर प्रदेश का होने के बावजूद मुझे अभी तक भोजपुरी भाषा नहीं आती... मैंने आज तक किसी से भी भोजपुरी में बात नहीं की.. या तो अंग्रेजी अथवा हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया| अब जब भोजपुरी ही नहीं आती तो भोजपुरी की पहेलियाँ कैसे बुझूंगा|
उनका खेल चल रहा था ... परन्तु मैंने एक बात गौर की... माधुरी मुझे देख के कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी... और ये बात भाभी ने भी गौर की परन्तु मुझसे अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा| खेल जल्द ही समाप्त हो गया और भाभी हार गईं... उनकी हार का अफ़सोस तो मुझे था ही पर साथ-साथ उनकी मदद न कर पाने का दुःख भी| जाते-जाते माधुरी मुझे "गुड नाईट" कह गई और मैंने भी उसकी बात का जवाब "गुड नाईट" से दिया... भाभी तो जैसे जल भून गई होगी... खेर उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा और इस कड़वी बात को पी के रह गई|
तकरीबन एक घंटे बाद बच्चे खाना खा के उठ चुके थे और अब घर के बड़े खाना खाने जा रहे थे... मैं भी खाना खाने जा ही रहा था की भाभी ने मुझे इशारे से रोक दिया, और कहा:
"मानु .. जरा मेरी मदद कर दो .. ये भूसा बैलों को डालने में ..."
चन्दर भैया: तू खुद नहीं दाल सकती.. मानु भैया को खाना खाने दे..
मैं: अरे कोई बात नहीं भैया... आज पहली बार तो भाभी ने मुझे कुछ काम बोला है...
मेरी बात सुन सब हंस पड़े और मैं भी झूठी हंसी हंस दिया…
भाभी और मैं भूसा रखने के कमरे की और चल दिए... अंदर पहुँच के भाभी ने मुझे कास के गले लगा लिया... उनकी इस प्रतिक्रिया से मैं पिघल गया और आखिर कार अपने चुप्पी तोड़ डाली:
मैं: आज दोपहर जो भी हुआ उसके लिए....आप मुझे माफ़ कर दो| साड़ी गलती मेरी है.. मुझे आपसे वो सब नहीं करना चाहिए था.. दरअसल मैं आपसे कुछ और कहना चाहता था.... मैं आपसे आई लव यू कहना चाहता था पर बोल नहीं पाया और आप मेरी चुप्पी का गलत मतलब समझ रहे थे... प्लीज मुझे माफ़ कर दो !!!
भाभी: अब मैं समझी की तुम मुझसे नजरें क्यों चुरा रहे थे.... पर तुम माफ़ी किस लिए मांग रहे हो.. जो कुछ भी हुआ उसमें मेरी रजामंदी भी शामिल थी... अगर कोई कसूरवार है तो वो मेरी हैं... मैं तुम्हें बता नहीं सकती की तुम ने जो आज मुझे शारीरिक सुख दिया है उसके लिए मैं कितने सालों से तड़प रही थी| तुमने मुझे आज तृप्त कर दिया...
उनकी बात सुन के मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई...मुझे उनसे इस जवाब की उम्मीद कतई नहीं थी| मेरी आँखें आस्चर्य से फ़ट गई ...
मैं: सच भौजी ....
भाभी: तुम्हारी कसम मानु... मैंने तुम्हारे भैया को भी खुद को छूने का अधिकार नहीं दिया और न ही कभी दूँगी| तुम ही मेरे पति हो !!!
मैं: पर भौजी आप ऐसा क्यों कह रही हो? चन्दर भैया... नेहा .. ये ही आपका परिवार है| मुझ दुःख इस बात का था की मैं आपके पारिवारिक जिंदगी में दखलंदाजी कर रहा हूँ .... और न केवल दखलंदाजी बल्कि मैं आपकी पारिवारिक जिंदगी तबाह कर रहा हूँ| इसी बात पे मुझे शर्म आ रही थी... और मैं आपसे नज़र चुरा रहा था|
भाभी: मानु तुम अभी बहुत सी बातें नहीं जानते... अगर जानते तो मेरी बात समझ सकते|
मैं: तो बताओ मुझे?
भाभी: अभी नहीं ....
मैंने गोर किया की भाभी की आँखें नाम हो चलीं थी... इसलिए मैंने उन्हें अपने पास खींचा और उन्हें जोर से गले लगा लिया| जैसे मैं भाभी को अपने अंदर समां लेना चाहता था मेरी छाती स्पर्श पाते ही भाभी के अंदर उठा तूफान शांत हुआ|
हम दोनों शाहरुख़ खान की फिल्म के किसी सीने की तरह खड़े हुए थे | भाभी मेरी और देख रही थी.. और मैं उनकों सांत्वना देना चाहता था.. इसलिए मैंने भाभी के होंठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया परन्तु इस बार मन में वासना नहीं थी.. मैं उनका दुःख कम करना चाहता था|
दिमाग ने मन को संदेसा भेजा की अब यहाँ ज्यादा देर रुकना खतरे से खाली नहीं! इसलिए मैंने भाभी से आखरी शब्द कहे:
मैं: भौजी अब हमें चलना चाहिए .. नहीं तो लोग शक करेंगे की ये दोनों इतनी देर से भूसे के कमरे में क्या कर रहे हैं?
भाभी ने बस हाँ में गर्दन हिला दी| मुझे कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था की भाभी मुझ से नाराज है इसलिए मैंने अपने मन की तसल्ली के लिए उनसे पूछा:
मैं: भौजी आप मुझसे नाराज तो नहीं ?
भाभी: नहीं तो .. तुम्हें ऐसा क्यों लगा?
भाभी ने पास ही पड़ी भूसे से भरी टोकरी उठाने झुकीं... परन्तु मैंने उनके हाथ से टोकरी छीन ली|
मैं: क्योंकि आप एक डैम से चुप हो गए...
मेरी इस बात का जवाब उन्होंने अपने ही अंदाज में दिया जिसने मेरे लंड में तनाव पैदा कर दिया| भाभी मेरी ओर बढ़ीं और मेरे गलों को अपने होंठों में भर लिया और उन्हें धीरे-धीरे दांत से काटने लगीं| मेरे शरीर में जैसे करंट दौड़ गया पर करता क्या.. सर पे टोकरी थी जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था| भाभी ने मेरी इस हालत का भरपूर फायदा उठाया और दो मिनट बाद जब उनका मन भर गया तब वो हटीं और उनके मादक रास को मेरे गलों से पोंछने लगीं|
मैं: भाभी बहुत सही फायदा उठाया आपने मेरी इस हालत का?
भाभी: ही.. ही.. ही...
मैं वो टोकरी उठा के बैलों के पास आया और उन्हें चारा डाल दिया| अब मन पहले से शांत था पर लंड में तनाव था जिसे छुपाना मुश्किल हो रहा था इसलिए मैंने सोचा की क्यों न स्नान कर लिया जाए|
गर्मियों के दिनों में, चांदनी रात में ठन्डे पानी से खुले आसमान के तले नहाने में क्या मजा आता है, ये मैं आपको नहीं बता सकता| इस स्नान ने मेरे अंदर की वासना की ज्वाला को बुझा दिया था परन्तु मन ही मन भाभी की बातें मुझे तड़पाने लगीं थी| आखिर उन्होंने मुझे अपने पति का दर्ज क्यों दिया? कोई भी स्त्री यूँ ही किसी को अपने पति का दर्जा नहीं देती! कहीं ये उनका मेरे प्रति आकर्षण तो नहीं? क्या बात है जो भाभी मुझसे छुपा रही हैं? मैं इन सभी बातों का जवाब भाभी से चाहता था...
खेर मैं स्नान करके कुरता पजामा पहन के तैयार हो गया .. और रसोई की और चल दिया| अब तक घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे केवल स्त्रियां ही रह गईं थी| जैसे ही भाभी ने मुझे देखा उन्होंने मुझे छापर में ही बैठने को कहा, उनकी बात भला मैं कैसे टाल सकता था| मैं छापर में बिछे तखत पे आलथी-पालथी मार के भोजन के लिए बैठ गया उस समय छप्पर में कोई नहीं था... बड़की अम्मा (बड़ी चाची), माँ और रसिका भाभी सब बहार हाथ-मुँह धो रहे थे| भाभी एक थाली में भोजन ले के आई:
भाभी: मानु तुम भोजन शुरू करो मैं अभी आती हूँ|
मैं: आप मेरे साथ ही भोजन करोगी?
भाभी: क्यों? मैं तुम्हारे हिस्से का भी खा जाती हूँ इसलिए पूछ रहे हो?
मैं: नहीं दरअसल अभी बड़की अम्मा (बड़ी चाची) और रसिका भाभी भी तो भोजन खाएंगे.. और उनके सामने आप मेरे साथ कैसे भोजन कर सकते हो?
भाभी: अरे वाह... बड़ी चिंता होने लगी तुम्हें मेरी? चिंता मत करो... फंसऊँगी तो मैं तुम्हे ही !!!
मैं: ठीक है भौजी आप आ जाओ फिर दोनों एक साथ शुरू करेंगे|
तभी माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी आ गए और अपनी-अपनी जगह भोजन के लिए बैठ गए| भाभी ने सब को भोजन परोसा और फिर मेरे पास आके तखत पे बैठ गईं और हम दोनों ने भोजन आरम्भ किया| ना जाने क्यों पर रसिका भाभी से ये सब देखा नहीं गया और उन्होंने हमें टोका:
रसिका भाभी: क्या बात है देवर-भाभी एक साथ, एक ही थाली में भोजन कर रहे हैं?
मैं: भाभी आपके आने से पहले जब मैं छोटा था तब भी हम एक साथ ही खाना खाते थे आप बड़की अम्मा से पूछ लो|
रसिका भाभी: तब तो तुम छोटे थे, अब शादी लायक हो गए हो| अब तो भाभी का पल्लू छोडो... ही ही ही ही
रसिका भाभी की जलन साफ़ दिख रही थी| मं कुछ बोलने वाला था की भाभी ने मुझे रोक दिया और खुद बीच-बचाव के लिए कूद पड़ीं|
भाभी: अभी मानु की उम्र ही क्या है, अभी ये पढ़ रहा है.. और जब तक ये अपने पाँव पे खड़ा नहीं होता ये शादी नहीं करेगा, है ना चाची?
माँ: बिलकुल सही कहा बहु| ये यहाँ के बच्चों की तरह थोड़े ही है जो मूँछ के बाल आये नहीं और शादी कर दी! और जहाँ तक इन दोनों के साथ खाना खाने की बात है तो बहु तुम इन दोनों को नहीं जानती, इसने तो अपनी भाभी का दूध भी पिया है| तुम्हें आये तो अभी कुछ समय हुआ है पर इनकी ओस्टि तो बहुत पुरानी है|
माँ की बात सुन रसिका भाभी का मुँह खुला का खुला रह गया| माँ ने जब दूध पीने की बात की तब मैंने अपना मुख शर्म के मारे दूसरी तरफ घुमा लिया था ताकि किसी को शक ना हो|
माँ की बात सुन बड़की अम्मा (बड़ी चाची) ने भी हाँ में हाँ मिलायी और अपनी थाली ले कर उठ खड़ी हुईं और साथ ही साथ रसिका भाभी भी खड़ी हो के थाली रखने चल दीं| मैं और भाभी चुप-चाप, धीरे-धीरे भोजन कर रहे थे.... जब माँ अपनी थाली लेके उठीं तब मैंने भाभी से कहा:
मैं: भौजी मुझे आप से कुछ बात करनी है?
भाभी: हाँ बोलो?
मैं: यहाँ नहीं... अकेले में...
भाभी: ठीक है तुम हाथ-मुँह धोके अपनी चारपाई पर लेटो मैं अभी थाली रख के आती हूँ|
मैं: नहीं भाभी ... उसमें थोड़ा खतरा है| चन्दर भैया कहाँ सोये हैं?
भाभी: वो आज चाचा (मेरे पिताजी) के साथ छत पे सोये हैं और तुम्हें भी वहीँ सोने को कहा है|
मैं: पर मैं वहां नहीं सोनेवाला .. आप ऐसा करो की हाथ-मुँह धो के अपने कमरे में जाओ| जब आपको लगे की सब सो गए हैं तब मुझे उठाना|
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07-15-2017, 01:29 PM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
14
अब आगे....
माँ ने मुझे उठाया.. समय देखा तो सुबह के छह बजे थे…. नया दिन... नया जोश और रात के प्लान के बारे में सोच के उत्साह से रोंगटे खड़े हो गए थे| मन में उल्लास था.... भाभी को देखा तो वो नेहा को तैयार कर रही थी... मैंने उनकी और देखा और मुस्कुरा के नहाने चला गया| पर मैं आनेवाले खतरे से अनजान था...
नहा धो के तैयार हो गया और शांत मन से रात के प्लान के लिए मन ही मन सोचने लगा... मन में तो ख्याल था की फूलों की सेज सजी हो पर ये भी डर था की ये फूल किसी से नहीं छुपेंगे... और कहीं इन्हीं फूलों का फायदा भैया ना उठा लें!!!! अभी मैं मन ही मन सोच रहा था की तभी पिताजी ने मेरे कान के पास एक ऐसा बम फोड़ा की मेरा सारा शरीर सुन हो गया.....
पिताजी: क्यों लाड-साहब रात को छत पे क्यों नहीं सोये?
मैं: बहुत थक गया था... इसीलिए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला|
पिताजी: थक गया था? ऐसा कौन सा पहाड़ खोद दिया तुमने?
चन्दर भैया: चाचा मानु भैया कल रात को जानवरों को चारा डालने में भाभी की मदद कर रहे थे... इसीलिए थक गए!
भैया की बात सुनके दोनों चाचा-भतीजा हँसने लगे| मैं भी उनका साथ देने के लिए हँसा... असल में मुझे भाभी की बातें याद आ रही थी और मैं भैया से नफरत करने लगा था| पर यदि मैं अपनी नफरत जाहिर करता तो कोई भी भाभी और मुझपे शक करता| अभी तक भाभी और मेरे रिश्ते को सब दोस्तों जैसे रिश्ता ही समझते थे... और मैं नहीं चाहता था की वे सब इस ब्रह्म से बहार अायें|
पिताजी: तो लाड-साहब चलना नहीं है क्या?
मैं: (चौंकते हुए ) कहाँ?
पिताजी: जिस काम के लिए आये थे?
मैं: किस काम के लिए?
पिताजी: तुम तो यहाँ आके अपनी भाभी के साथ इतना घुल-मिल गए की यात्रा के बारे में भूल ही गए|
पिताजी की बात सुन मैं झेंप गया... और मुझे याद आय की दरअसल गाँव आने का प्लान बनाने के लिए मैंने पिताजी को काशी विश्वनाथ घूमने का लालच दिया था| यही कारन था की पिताजी गाँव आने के लिए माने थे| कहाँ तो मैं अपनी और भाभी के सुहागरात के सपने सजोने में लगा था और कहाँ पिताजी की बात सुन मेरे होश उड़ गए| दरअसल यात्रा का प्लान मैंने ही बनाया था और क्योंकि मुझे भाभी से मिलने की इतनी जल्दी थी इसलिए मैंने सबसे पहले गाँव आने का प्लान बनाया और उसके बाद हम यात्रा करके दिल्ली लौट जायेंगे| जबकि पिताजी का कहना था की हम पहले यात्रा करते हैं उसके बाद गाँव जायेंगे.. अब मुझे अपने ऊपर अधिक क्रोध आ रहा था... की आखिर क्यों मैंने थोड़ा सब्र नहीं किया|
पिताजी: क्या सोच रहे हो? मैंने तुमसे राय नहीं माँगी है... हम कल ही निकालेंगे और यात्रा कर के दिल्ली लौट जायेंगे|
चन्दर भैया ने पिताजी की बात सुनी और सब को सुनाने के लिए चल दिए| मेरा दिमाग अब कंप्यूटर की तरह काम करने लगा और मैं कोई न कोई तर्क निकालना चाहता था की हम कुछ और दिनों के लिए रुक जाएं और तभी मेरे दिमाग में एक शार्ट सर्किट हुआ और मुझे एक बात सूझी .....
आगे मेरे और पिताजी के बीच हुई बात को मैं अभी गोपनीय रख रहा हूँ.. इसका पता आपको अवश्य चलेगा... अभी ये बात आपको नहीं बताने का सिर्फ यही तर्क है की आपको इसका आनंद आगे मिले|
जब ये बात भाभी के कानों तक पहुँची भाभी भागी-भागी बड़े घर की ओर आईं... पिताजी मुझसे बात करके कल यात्रा पे जाने के लिए रिक्शे का इन्तेजाम करने के लिए निकल चुके थे| मैं घर के आँगन में अपने सर पे हाथ रखे बैठा हुआ था ... अचानक भाभी मेरे सामने ठिठक के खड़ी हो गईं... उनके आँखों में आँसूं थे.... चेहरे पे सवाल ... और जुबान पे मेरा नाम ....
भाभी: मानु.... क्या मैंने जो सुना वो सच है? तुम कल जा रहे हो?
मैं: हाँ....
भाभी: पर तुमने मुझे पहले बताया क्यों नहीं?
मैं: भूल गया था...
भाभी: अब मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती... मैं मर जाऊँगी....
इतना कह के भाभी बहार चली गईं.. मुझे चिंता होने लगी की कहीं भाभी कुछ ऐसा-वैसा कदम न उठा लें| इसलिए मैं उनके पीछे भागा.... मुझे ये देख के राहत मिली की भाभी भूसे के करे के बहार कड़ी हो के रसिका भाभी से कुछ पूछ रही हैं| उनके इशारे से मैं समझ चूका था की भाभी यही पूछ रहीं थीं की क्या मैं सच में वापस जा रहा हूँ? और रसिका भाभी ने भी बात को ज्यादा तूल ना देते हुए हाँ में सर हिलाया और रसोई की और चल दीं| मैंने इशारे से भाभी को अपने पास बुलाया... और भाभी भारी क़दमों के साथ मेरी ओर बढ़ने लगीं|
इससे पहले की आप लोगों को शक हो की आखिर हर बार मुझे ओर भाभी को अकेले में बात करने का समय कैसे मिल जाता है, मैं आपको स्वयं बता देता हूँ| माँ, नेहा और बड़की अम्मा (बड़ी चाची) खेत में आलू खोद के निकाल रहीं थी| पिताजी तो पहले ही रिक्शे वाले से बात करने के लिए जा चुके थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों में सिंचाई और जुताई में लगे थे और रसिका भाभी तो यूँ हैं इधर-उधर टहल रहीं थी.. जब से मैं आया था मैंने उन्हें कोई भी काम नहीं करते देखा था!!!
भाभी घर में दाखिल हुईं और मैंने उन्हें चारपाई पे बिठाया... उनके मुख पे हवाइयाँ उड़ रहीं थी... कोई भी भाव नहीं थे... जैसे की कोई लाश हो| मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था... मैं अपने घुटनों पे उनके समक्ष बैठ गया:
मैं: भौजी... मुझे माफ़ कर दो... सब मेरी गलती है| मैंने आपको कुछ नहीं बताया... सच कहूँ तो इन चार दिनों में आपके प्यार में मैं खुद भूल गया था| गाँव आने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से काशी-विश्वनाथ की यात्रा का प्लान बनाया... पिताजी तो चाहते थे की हम पहले यात्रा करें और फिर गाँव जायेंगे और आखिर में दिल्ली लौट जायेंगे| पर मैं आपसे मिलने को इतना आतुर था की मैंने कहा की हम पहले गाँव जायेंगे.. और फिर वहां से यात्रा करने के लिए निकलेंगे और वहीँ से वहीँ दिल्ली निकल जायेंगे... इसीलिए ये सब हुआ| मुझे सच में नहीं पता था की आपका प्यार मुझे आपसे दूर नहीं जाने देगा|
भाभी मेरी आँखों में देख रही थी.. और उनकी आँखों में आँसूं छलक आये थे| जब-जब मैं भाभी को ऐसे देखता हूँ तो मेरे नस-नस में खून खौल उठता है...
भाभी: मानु मेरा क्या होगा ?? तुम मुझे छोड़ के चले जाओगे???
भाभी के इस प्रश्न का मेरे पास कोई जवाब नहीं था... और भाभी के चेहरे पे छाई मायूसी का कारन भी तो मैं ही था| मेरी गर्दन नीचे झुक गई और मुझे अपने ऊपर कोफ़्त होने लगी!!! पर मैं भाभी को ढांढस बंधने लगा... मैंने उनके चेहरे को ऊपर किये और उनके आँसूं पोंछें ....
मैं: भाभी अभी भी हमारे पास 24 घंटे हैं|
भाभी मेरी और बड़ी उत्सुकता से देखने लगी ....
मैं: मैं ये पूरे 24 घंटे आपके साथ ही गुजारूँगा...
तभी पीछे से माँ आ गईं ... मुझे और भाभी को इस तरह देख के वो हैरान थी और इससे पहले की वो कुछ पूछतीं मैं खुद ही बोल पड़ा:
मैं: माँ देखो ना भौजी को... जब से इन्हें पता चला है की हम कल जा रहे हैं ये मुँह लटका के बैठीं हैं... आप ही कुछ समझाओ....
माँ: पर हम तो....
मैंने माँ की बात बीच में ही काट दी...
मैं: माँ पिताजी रिक्शे वाले से बात करने निकले हैं और वो कह रहे थे की आप उनका सफारी सूट मत भूल जाना|
मैं: हाँ अच्छा याद दिलाया तूने... मैं अभी रख लेती हूँ| और बहु तुम उदास मत हो ...
मैं: और हाँ माँ, पिताजी ने कहा था की सर और पेट दर्द की दवा भी रख लेना|
मैंने फिर से माँ की बात काट दी...
माँ: ये सब तू मुझे बताने के बजाये खुद नहीं रख सकता?
इससे पहले की माँ कुछ और बोलेन मैं भाभी को खींच के बहार ले गया... अभी दरवाजे तक पहुंचा ही था की नेहा भी आ गई और भाभी के उदास मुँह का कारन पूछने लगी| मैंने उसकी बात घूमते हुए कहा की चलो मेरे साथ बताता हूँ|
मैंने अपने दायें हाथ से भाभी का बायां हाथ पकड़ा था और अपने बाएँ हाथ की ऊँगली नेहा को पकड़ा रखी थी| मैं दोनों को रसोई के पास छप्पर में ले आया ... वहां पड़ी चारपाई पे भाभी को बैठाया और नेहा के प्रश्नों का उत्तर देने लगा:
मैं: आप पूछ रहे थे न की आपकी मम्मी उदास क्यों हैं?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया...
मैं: आपकी मम्मी की उदासी का कारन मैं हूँ|
मेरी बात सुन के भाभी और नेहा दोनों मेरी और देखने लगे...
मैं: मैं कल वापस जा रहा हूँ ना इसलिए ...
नेहा: चाचू आप वापस नहीं आओगे ?
मैंने ना में सर हिला दिया... और ये देख भाभी अपने आप को रोक नहीं पाईं और रो पड़ीं| मैंने भाभी को गले से लगाया और उनकी पीठ पे हाथ फेरते हुए चुप कराने लगा...
मैं: भाभी प्लीज चुप हो जाओ वार्ना नेहा भी रोने लगेगी|
भाभी का रोना जारी था और नेहा भी सुबकने लगी थी...
मैं: भाभी आपको मेरी कसम ... प्लीज चुप हो जाओ...
मेरी कसम सुन के भाभी ने रोना बंद किया और आगे जो हुआ उसे देख के भाभी और मैं हम दोनों हँस पड़े... नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और उसका रोना ऐसा था जैसे फैक्ट्री का किसी ने साईरन बजा दिया हो जो हर सेकंड तेज होता जा रहा था ... ये इतना मजाकिया था की मैं और भाभी अपना हँसना रोक ना पाये| चलो भाभी हंसी तो सही वार्ना मुझे भाभी को ..... (ये अभी नहीं बताऊँगा|)
नेहा को चिप्स बहुत पसंद थे इसलिए मैंने उसे अपनी जेब में पड़ा आखरी नोट दिया और चिप्स खरीद के खाने के लिए कहा| भाभी मना करने लगीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती भेज दिया... भाभी की आँखें नम थीं... मैंने बात को बदलना चाहा:
मैं: भौजी आप स्नान कर लो... तरो-ताजा महसूस करोगे| फिर आपको भोजन भी तो बनाना है, क्योंकि रसिका भाभी तो कुछ करने वाली नहीं|
भाभी बड़े बेमन से उठीं.. ऐसा लगा जैसे उनका मन ही ना हो मुझसे दूर जाने को| मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा:
मैं: भौजी वैसे मैंने आपको वादा किया था की मैं पूरे २४ घंटे आपके साथ रहूँगा... अभी तो आप स्नान करने जा रहे हो... अगर कहो तो मैं भी चलूँ आपके साथ?
भाभी: ठीक है.... चलो !!!
उनका जवाब सुन के मैं सन्न रह गया... मैंने तो मजाक में ही बोल दिया था| खेर मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चल दिया... भाभी ने अंदर से कमरा बंद किया और मैं उनके स्नान घर के सामने चारपाई खींच कर बैठ गया... जैसे मैं कोई मुजरा सुनने आया हूँ| टांगें चढ़ा कर जैसे कोई अंग्रेज आदमी कोई शो देखने आया हो!!!
भाभी ने आज हलके हरे रंग की साडी पहनी हुई थी... वो मेरे सामने कड़ी हुईं और अपना पल्लू नीचे गिरा दिया... उनके स्तन के बीचों बीच की दूधिया लकीर मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी| हाथ बेकाबू होने लगे... और मन किया की भाभी को किसी शेर की भाँती दबोच लूँ| भाभी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालु कर दिए थे ....पर मैं उठ खड़ा हुआ ...
मैं: भौजी मैं जा रहा हूँ ....
भाभी: क्यों ?
मैं: भाभी आपको इस तरह देख के मेरा कंट्रोल छूट रहा है| मैं ये सब आज रात के लिए बचाना चाहता हूँ|
फिर भाभी ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल के लिए सोच में पड़ गया|
भौजी: और अगर रात को मौका नहीं मिला तो?..... तुम तो कल चले जाओगे ... पता नहीं फिर कभी हम मिलें भी या नहीं...
बार-बार भाभी के कटीले प्रश्न मेरी आत्मा को चोटिल कर रहे थे... पर उनकी बातों में सच्चाई थी| भाभी की बात में दम तो था परन्तु मैं फिर भी खतरा उठाने को तैयार था... मैं भाभी की सुहागरात वाला तौफा ख़राब नहीं करना चाहता था|मैं भाभी की ओर बढ़ा ओर उन्हें अपनी बाँहों में भरा ... उनके बदन पे मेरा दबाव तीव्र था और उन्हें ये संकेत दे रहा था की आप चिंता मत करो... सब ठीक होगा और आपका सुहागरात वाला सरप्राइज मैं ख़राब नहीं होने दूँगा|
अपनी बात को पक्का करने के लिए मैंने उनके होंठों को चूम लिया... परन्तु ये चुम्बन बहुत ही छोटा था...
(जैसे छोटा रिचार्ज!!!)
मैं: भाभी मैं बहार जा रहा हूँ आप दरवाजा बंद कर लो|
भाभी: मानु मेरी एक बात मानोगे ?
मैं: हाँ बोलो...
भाभी: कल मत जाओ ... कोई भी बहाना बनाके रुक जाओ| मुझे भरोसे है की तुम ये कर सकते हो|
मैं: भौजी कल की वाराणसी की ट्रैन की टिकट बुक है| अगर मैं अपनी बीमारी का बहाना भी बना लूँ तो भी पिताजी मुझे ले जाए बिना नहीं मानेंगे ... फिर तो चाहे उन्हें यहाँ तक एम्बुलेंस ही क्यों न बुलानी पड़े!
मैं इस बारे में और बात कर के फिर से भाभी की आँखें नम नहीं करना चाहता था इसलिए मैं सीधा बहार की ओर निकल लिया और कमरे का दरवाजा सटा दिया| बहार आके मैंने चैन की साँस ली और वापस छापर के नीचे पहुंचा जहाँ नेहा चारपाई पे बैठी चिप्स खा रही थी| मैं नेहा के पास बैठ गया और उसने चिप्स वाला पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया ... मैंने भी उसमें से थोड़े चिप्स निकाले और खाने लगा| नेहा कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगी... वो हमेशा रात को सोने से पहले मुझसे कहानी सुन्ना पसंद करती थी| मैं उसे मना नहीं कर पाया.. और चूहे, कबूतरों और गिलहरी की कहनी बना के सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी गोद में ही सर रख के सो गई और मैं उसके सर पे हाथ फेर ने लगा... तभी उस अकड़ू ठाकुर की बेटी माधुरी वहाँ आ गई| वो मेरे सामने पड़ी चारपाई पे बैठ गई और भाभी के बारे में पूछने लगी.. मैंने उसे बताया की भाभी स्नान करने गई हैं अभी आत होंगी ... पर ये तो उसका बहाना| अब उसने मेरे ऊपर अपने सवाल दागे ...:
माधुरी: तो आप दिल्ली में कहाँ रहते हो?
मैं: डिफेन्स कॉलोनी
माधुरी: आपके स्कूल का नाम क्या है?
मैं: मॉडर्न स्कूल
माधुरी: आपके विषय कौन-कौन से हैं?
मैं: जी एकाउंट्स और मैथ्स
माधुरी: आपकी कोई गर्लफ्रेंड है? उन्सका नाम तो बताओ...
मैं: मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है न ही मैं बनाना चाहता हूँ| आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये?
माधुरी: मैं राजकीय शिक्षा मंदिर में पढ़ती हूँ ... दसवीं में हूँ मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं है|
जैसे मैं उसके बॉयफ्रेंड के बारे में जानने के लिए उत्सुक था....| माधुरी मुझसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी और कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी| दिमाग कह रहा था की:
तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो... क्या बात है जिसे छुपा रही हो???
मैं उसके सवालों का जवाब बहुत ही संक्षेप में दे रहा था क्योंकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.. वैसे भी मेरा व्यक्तित्व ही बड़े मौन स्वभाव का है.. मैं बहुत काम बोलता हूँ और उसका व्यक्तित्व ठीक मेरे उलट था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरी और आकर्शित महसूस कर रही हो ... तभी उसने सबसे विवादित प्रश्न छेड़ दिया:
माधुरी: तो मानु जी, आपके शादी के बारे में क्या विचार हैं|
मैं: शादी? अभी?
मेरा इतना बोलना था की भाभी भी अपने बाल पोंछते हुए आ गईं... वो हमें बातें करते हुए देख रही थी और जल भून के राख हो चुकीं थी| वो मेरे पास आई और कुछ इस तरह से खड़ी हुई की उनकी पीठ माधुरी की ओर थी... और मेरी ओर देखते हुए अपना गुस्सा प्रकट किया और नेहा को मेरी गोद में से उठा के अपने घर की ओर चल दीं| मैं समझ गया की बेटा आज तेरी शामत है !!! मैं भाभी के पीछे एक दम से तो नहीं जा सकता था वर्ना माधुरी को शक हो जाता| मैं मौके की तलाश में था की कैसे माधुरी को यहाँ से भगाऊँ? मन बड़ा बेचैन हो रहा था... मेरी हालत ऐसी थी जैसे मुझे सांप सूंघ गया हो, और माधुरी पटर-पटर बोले जा रही थी|
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07-15-2017, 01:29 PM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
15
अब आगे....
मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पाते हुए उसने खुद ही बात खत्म की:
माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|
मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं... दरअसल मुझे कल वापस निकलना है.. उसकी पैकिंग भी करनी है|
माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?
मैं: हाँ
माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... " का मतलब क्या था? खेर अभी मैं इस बातको तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भाभी नाराज लग रहीं थी| मैं तुरंत भाभी के पीछे उनके घर की ओर भागा| वहाँ पहुँच के देखा तो भाभी अपनी चारपाई पर बैठी हैं ओर नेहा दूसरी चारपाई पे सो रही है|
मैं: भौजी?
भाभी: कैसी लगी माधुरी?
मैं: क्या?
भाभी: बड़ा हँस के बात कर रहे थे उससे?
मैं: भौजी ऐसा नहीं है... आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है ओर हमारे बीच में वो सब....!!!
भाभी: और नहीं तो|
मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी ... मैंने उसे नहीं बुलाया .... वो अपने आप आई थी| और हँस-हँस के वो बोल रही थी.. मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था और कुछ नहीं... मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|
भाभी: मैं नहीं मानती!!!
मैं: ठीक है... मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|
भाभी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे| मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हंसिया उठा लाया... और भाभी को दिखाते हुए बोला:
मैं: अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?
भाभी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हंसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया:
भाभी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी... मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते|
मैं: भौजी प्लीज दुबारा ऐसा मत करना वर्ना आप मुझे खो...
मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की उन्होंने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया...
मुझे खुद को होश नहीं था की मैं ऐसा कदम उठाने जा रहा था... अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-बाप का क्या होता? मैंने ये सब सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं!!!
खेर हम अलग हुए ... भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी ... इसलिए भाभी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया और मैं उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भाभी भी मेरी और देख के मुस्कुरा रही थी... और मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भाभी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज कि धज्जियां उड़ जाएंगी|
दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भाभी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रैक भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पे फ़ैल के सो गईं... नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेल रही थी... देखते ही देखते भाभी भी हमारे साथ खेलने लगीं| जब हम ऊब गए तो नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भाभी कि गोद में| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था कि माधुरी फिर से आ गई... उसे देख मैं भाभी से अलग होक बैठ गया कि कहीं वो शक न करने लगे|
देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी... ठीक थी .. पर मेरे लिए तो भाभी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही अनकम्फ़ोर्टब्ले थे... क्योंकि वो उस अकड़ू ठाकुर कि बेटी थी इसलिए भाभी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी|
भाभी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| जैसा कि आप सभी ने देखा हो ग कि फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का=लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| परन्तु मैं सबसे ज्यादा विचिलित था .. मुझे पता था कि भाभी का मूड फिर ख़राब हो गया होगा| माधुरी मेरे पास एके बैठ गई और पूछने लगी:
माधुरी: तो मानु जी पैकिंग तो हो गई आपकी, अब कब आओगे ?
मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल
माधुरी: अगले साल?
उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने कि??? इस से पहले कि हम और बात करते ... नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के लेजाने लगी| माधुरी पूछ भी रही थी कि कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी... मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया|नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई... मैं भी हैरान था कि भला उसे यहाँ क्या काम? जब देखा तो भाभी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें देख के पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ... फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी| मैंने भाभी से पूछा कि आप यहाँ क्या कर रहे हो... तो वो मुस्कुराते हुए बोली:
"तुम्हारा इन्तेजार !!!"
मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?
भाभी: कोई भी नहीं है यहाँ... सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| काका-काकी भी वहीँ हैं अब बोलो?
मैं: और वो जो वहाँ बैठी है?
भाभी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वर्ना ...
मैं: मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?
भाभी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!
मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?
ये कहके मैं अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया... पता नहीं मुझे भाभी कि इस बात पे हमेशा मिर्ची लग जाती थी| वापस आके मैं माधुरी के सामने वाली चारपाई पे बैठ गया|
माधुरी: कहाँ गए थे आप?
मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|
माधुरी: वो उसका क्या करेगी?
मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|
माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं... अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?
मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा... आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फंसने भेजा है? मुझपे कब से सुर्खाब के पर लग गए कि ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है?
मैं: नहीं शुक्रिया ... दरअसल मैं आज अपने सर में तेल लगाना भूल गया इसलिए इतने रूखे लग रहे हैं|
एक पल को तो लगा कि मैं उसे कह दूँ कि आप मुझ में इतनी दिलचस्पी न लो पर फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| तभ भाभी आ गई...
भाभी: अरे माधुरी शाम हो रही है.. ठकुराइन तुझे ढूंढती होंगी|
माधुरी: मैं तो उन्हें बता के आई हूँ|
भाभी: तेरे पापा भी आ गए होंगे...
माधुरी: अरे बाप रे.... भाभी मैं बाद में आती हूँ|
ना जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई... पर उसके जाते ही मैंने चैन कि सांस ली|
भाभी: अब तो खुश हो ना?
मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ !!!
अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी... अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भाभी का दिल टूट जायेगा... और मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था|मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती... तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे??? शाम होने को आई थी... सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया और अजय भैया और बड़के दादा (बड़े चाचा) एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भाभी भोजन बनाने में व्यस्त थी... मैं ठीक उनके सामने बैठा था.... परन्तु अब समय था प्लान बनाने का ... इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जाके बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जर्रोरी होता है ... इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीँ चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था!!!
पिताजी की बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पे नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पे ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पे ध्यान देना था:
१. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और
२. चन्दर भैया को भाभी से दूर रखना|
अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भाभी का दिल टूट जायेगा| समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का... मैं तुरंत भाभी के पास पहुंचा और रसिका भाभी के बारे में पूछा... ये सुन के भाभी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भाभी ने मुझे बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उनका बदन टूट रहा है खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे... भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे... एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना| साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भाभी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भाभी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी!!! मैं भोजन लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया... और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली... भाभी मना कर रही थी पर मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था|
मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुंह धोके वापस आया और अजय भैया को ढूंढने लगा.... भैया मुझे कुऐं के पास टहलते दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर कि बातें करने लगा... फिर मैंने रसिका भाभी कि बिमारी कि बात छेड़ दी| बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा... मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था| मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया, रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की... मैं उनके पास पहुँचा... वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पे भारी हैं|घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे... रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे... पिताजी, बड़के दादा (बड़े चाचा) सो चुके थे... अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|
अब केवल घर की स्त्रियां ही भोजन कर रहीं थी.... मुझे कैसे भी कर के भाभी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहे| इसलिए मैं टहलते-टहलते छापर के नीचे पहुँच गया... माँ भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा (बड़ी चाची) भी लगभग उठने ही वालीं थी और भाभी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब माँ और अब्द्की अम्मा (बड़ी चाची) भोजन कर के चले गए तब मैंने भाभी को आँख मारते हुए कहा:
मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|
भाभी: अच्छा?
मैं: मैं सोने जा रहा हूँ... जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|
भाभी: ठीक है!!!
भाभी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी...और उन्हें खुश देख के मैं भी खुश था| खेर मैं अपने बिस्तर पे आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भाभी मुझे उठाने आएं| करीब रात के ग्यारह बजे भाभी मुझे उठाने आईं... मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया| अंदर पहुँच के भाभी ने दरवाजा बंद किया .... जैसे ही वो पलटीं मैं उनके सामने खड़ा था| मैंने आगे बढ़के उन्हें अपने सीने से लगा लिया... भाभी मेरे इस आलिंगन से कसमसा गईं और मुझसे ऐसे चिपक गईं जैसे कोई जंगली बेल पेड़ से चिपक जाती है| आज मैं किसी भी जल्दी में नहीं था क्योंकि मैं चाहता था की भाभी हर एक सेकंड को महसूस करे और हमेशा याद रखे| मैं उन्हें इतनी खुशियाँ देना चाहता था की भाभी साड़ी उम्र इन पलों को याद रखे| करीब पाँच मिनट बाद जब हमारा आलिंगन टूटा तो मैंने भाभी से दरख्वास्त की:
मैं: भौजी... आप पलंग पे ठीक वैसे बैठ जाओ जैसे आप अपनी शादी वाली रात बैठे थे|
भाभी घुटने मोड़े ओए एक हाथ का घूँघट काढ़े पलंग पे बैठी थी... और सच बताऊँ मित्रों तो वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसी दिख रही थी| मैं किसी कुँवर की तरह उनकी ओर बढ़ा ओर उनकी तरफ मुँह करके ठीक सामने बैठ गया| मैंने अपने हाथ से उनका घूँघट बड़ी सहजता के साथ उठाया...भाभी की नजरें नीचे झुकीं थी... मैंने जब उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई तब हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं और कुछ क्षण के लिए मैं उनकी आँखों में देखता ही रहा| ऐसा लगा जैसे चाँद बादलों से निकल आया हो... मैंने ध्यान दिया की भाभी ने थोड़ा बहुत साज श्रृंगार किया है... उनके होंठों पे लाली थी.... बाल सवरें और खुले हुए.... चेहरा दमक रहा था... उनके शरीर से मीठी-मीठी गुलाब जल की खुशबु आ रही थी... सच कहूँ तो मैंने भाभी को देखना कभी कल्पना भी नहीं की थी... और मैं खुद को भाभी की तारीफ करने से नहीं रोक पाया:
"आप खूबसूरत हैं इतने,
के हर शख्स की ज़ुबान पर आप ही का तराना है,
हम नाचीज़ तो कहाँ किसी के काबिल,
और आपका तो खुदा भी दीवाना है... |"
मैंने आगे बढ़ के उनके लाल होंठों को चूम लिया... मेरे दोनों हाथों ने भाभी के चेहरे को कैद कर रखा था और मैं अपने होंठों से उनके होंठों को चूस रहा था... भाभी भी जवाबी हमला कर रही थी .... कभी मैं तो कभी भाभी, हमारे थिरकते लबों को चूम और चूस रहे थे... ऐसा करीब पाँच मिनट तक चला.... जब मैं और भाभी अलग हुए तो भाभी ने कहा:
"मानु... तुम्हारे लिए कुछ है?"
मैं: क्या?
भाभी उठीं और खिड़की में रखा गिलास उठा लाईं|
मैं: दूध.... पर इसकी क्या जर्रूरत थी?
भाभी: ये एक रसम होती है की दुल्हन अपने दूल्हे को अपने हाथ से दूध पिलाये|
भाभी मेरे पास बैठ गईं और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाया... मैंने केवल आधा गिलास ही दूध पिया और बाकी मैंने भाभी की और बढ़ा दिया....
भाभी: मानु मुझे दूध अच्छा नहीं लगता....
मैं: मेरे लिए पी लो !
और ये कह के मैंने भाभी के हाथ से गिलास ले लिया और उन्हें स्वयं पिलाने लगा...
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