RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
हमारे घर मे एक छोटा बोरहॉल था जो हमारे नहाने और घर के दूसरे कामो के लिए पर्याप्त पानी मुहैया करवाता था जैसे रसोई के कामकाज के लिए, टायिलेट्स फ्लश करने के लिए या फिर घर में लगाए हुए फूलों और कुछ छोटे पेड़ों की सिंचाई के लिए. उस बोरहॉल को चलाने के लिए बिजली की ज़रूरत थी जो हमारे घर में थी मगर खेतों के लिए बिजली का इंतज़ाम करना लगभग नामुमकिन था क्यॉंके उसके लिए एक बड़ी, बहुत बड़ी रकम की ज़रूरत थी जो हमारे पास नही थी. यह जेनरेटर घर से काफ़ी बड़े बॉरेहोल को चला सकता था. शायद इसीलिए, मेरे पिता ने उस जेनरेटर को खरीदा होगा ता कि वो उससे ज़मीन मे ट्यूबेल चला कर सिंचाई की समस्या से निजात पा सके. यह योजना मेरे दिमाग़ मे आकर लेने लगी जब मैने कल्पना की अपने पिता की, उस शेड मे उस फोल्डिंग बेड पर लेटे हुए कैसे वो मेरी तरह अच्छे दिनो की कामना करते होंगे, मेरी तरह, बस फरक इतना था मैं अभी तक जुए और शराब जैसी उनकी लतो से दूर था जिसने उनके और मेरी माँ के बीच कभी ना मिटने वाली दूरी पैदा कर दी थी और जिसका अंत उनकी मौत के साथ हुआ था. अगर मैं कोई छोटा बॉरेहोल भी चलाने मे कामयाब हो गया तो बॉरेहोल और बारिश दोनो के पानी के साथ मेरी सिंचाई की दिक्कत आसानी से दूर हो सकती थी और मैं अपनी योजनाओं में सफल हो सकता था. मैने अपने खेतों मे एक ऐसी जगह भी ढूँढ निकाली जहाँ मैं बारिश का पानी जमा कर सकता था और उसे सिंचाई के काम ला सकता था.
मैने अपनी बहन से अपनी योजनाओं के बारे में चर्चा की तो उसने पूरे दिल से मेरा अनुमोदन किया और अपनी स्वीकृति दी. उसने मुझे यह भी बताया कि उसके पास कुछ रकम पड़ी है जिसे उसने बड़ी मेहनत से जोड़ा था, उस रकम को वो मुझे ज़रूरत के वक़्त इस्तेमाल करने के लिए देना चाहती थी. क्योंकि अगर जैसा मैने सोचा था वैसे ही सब कुछ हुआ तो हम दोनो को ही इसका फ़ायदा होने वाला था. मगर मैं उसका पैसा इस्तेमाल नही करना चाहता था, इसलिए मुझे अपना इंतज़ाम खुद करना था. मैने अपनी जानवरों के झुंड का इस्तेमाल करने की सोची, उस वक़्त वोही एक ज़रिया था जिससे मैं अपनी ज़रूरत के समान को खरीदने के लिए पैसा इकट्ठा कर सकता था. मैने झुंड में से एक एक जानवर पैसे की ज़रूरत के हिसाब से बेचना सुरू कर दिया. मैं उनसे उतना पैसा तो नही कमा सका जितना कोई अनुभवी किसान कमा लेता, मगर मैं सीख रहा था और अपने ज्ञान के लिए मुझे वो रकम तो चुकानी ही थी.
मैने सबसे पहले बाड की मरम्मत की और फिर एक नया बढ़िया वाला हल खरीदा, बैलगाड़ी को नये पहिए लगा कर इस्तेमाल करने लायक बनाया और एक तगड़ा बैल खरीदा जो हल और बैलगाड़ी दोनो को खींच सकता, जेनरेटर की मरम्मत करके उसे मध्यम आकार के बॉरेहोल पर लगाया. उसके बाद मैने पेड़ो वाली उँची जगह के एक हिस्से को कंटीली बाड़ लगा कर बंद कर दिया जिससे मैं अपने जानवरों को वहाँ रख सकूँ और वो इधर उधर पूरी ज़मीन पर ना भटके. बाड़ लगाने का फ़ैसला बहुत सही रहा जिससे मुझे अब अपने झुंड की रखवाली से निजात मिल गयी थी और मेरे पास खेतीबाड़ी के काम के लिए काफ़ी अतिरिक्त समय निकल आया था.
मैने लगभग आधी ज़मीन को सॉफ किया, उसमे से घड़ियों और घास की सफाई की, उसमे हल चलाकर जुताई की और बीज बिजने के लिए तैयार कर दिया. पूरी ज़मीन को इतने औज़ारों से तैयार करना लगभग नामुमकिन था, इसलिए मैने शुरुआत आधी ज़मीन से की. क्यॉंके जानवर अब छोटे हिस्से में रहते थे इसलिए उनका गोबर इकट्ठा कर मैं खाद के इस्तेमाल मे ला सकता था. बॉरेहोल ने अपना जादू दिखाया और उसके पानी से सिंचाई कर मैने वीज डाल दिया. जब बरसात की पहली बारिश आई तब तक मेरे पास मेरे तैयार की ज़मीन का आधा हिस्सा धान के छोटे छोटे पोधो से भरा पड़ा था और बारिश के पानी से मैं बाकी तैयार ज़मीन में भी फसल बीजने वाला था. मेरी बेहन मेरी मेहनत का फल देखने के लिए आई और मेरी योजनाओं को फलते फूलते देख बहुत खुश बहुत उत्तेजित हुई.
मगर कोई भी, और मेरा मतलब कोई भी उतना खुश नही हुआ, उतना उत्तेजित नही हुआ जितना मेरी माँ हुई जब उसकी नज़र प्रचुर, हरे-भरे धान के पोधो पर पड़ी. मैने तो ज़मीन के एक छोटे हिस्से में सब्जियाँ भी उगाई हुई थी जिसे मैं और मेरी बेहन दुकान में बेचना चाहते थे, इसके अलावा कुछ फलों के पोधे थे जिनसे कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सकती थी.
जब बारिश का समय आया तो मेरी माँ एक दिन खेतों में आई जैसे वो पहले आया करती थी. मुझे उसके आने का मालूम चला तो मैने अपने अथक परिश्रम को बंद किया जिसकी अब मुझे आदत पड़ चुकी थी और शेड के नज़दीक एकदम निठल्ला होकर बैठ गया और उसके आने का इंतज़ार करने लगा. उसने आते ही शेड में हुए बदलावों को सफाई को और मरम्मत को भाँप लिया मगर वो मुख से कुछ नही बोली. उसे अभी मालूम नही चला था कि झुंड पहले से काफ़ी छोटा रह गया है क्योंकि मैने पशुओं को अपनी उगाई हुई फसल से दूर खुले में चरने के लिए छोड़ दिया था. जब उसने मुझे ऐसे निठल्ले बैठे रहने को जी भर कर कोस लिया और कुछ काम करने की नसीहत दी तो मैं उसे ज़मीन के उस हिस्से में ले गया जहाँ धान की फसल अपने जोबन पर थी
माँ आँखे फाडे अविश्वास से अपने सामने देख रही थी. जितनी ज़मीन में उसने कभी बीज नही बोया था उससे कहीं ज़यादा मैं फसल उगाने में कामयाब हो गया था और अभी इतनी ही ज़मीन और पड़ी थी, बीज बोने के लिए बिल्कुल तैयार. वो बहुत उत्तेजित थी और वार वार दोहरा रही थी “मुझे अपनी आँखो पर यकीन नही होता”. जब उसकी नज़र बॉरेहोल पर पड़ी जो पानी की एक मध्यम मगर लगातार धारा फेंक रहा था तो वो खुशी से चिल्ला पड़ी.
माँ भागकर मेरे पास आई और मुझे अपनी बाहों मे कसकर ज़ोर से जाकड़ लिया. “आख़िरकार हमारे परिवार में कोई दिमाग़ रखने वाला मर्द पैदा हुआ है” उसके बोलों से उसकी खुशी झलक रही थी.
फिर वो खेतों में इधर उधर घूमने लगी. वो पत्तों को महसूस करती, दांतलों को छूती उस उत्तेजना और जोश में पूरी आनंदित हो रही थी. जब वो वापस आई तो उसने मुझे फिर से आलिंगन में लिया और ज़ोर से चूमा और बोली “बेटा मैं ना जाने कितने सालों से प्रार्थना कर रही थी कि कहीं से कोई मर्द आए और इस ज़मीन में कुछ करके दिखाए. मुझे तो मालूम ही नही था कि मैने वास्तव में अपनी कोख से एक ऐसा मर्द पैदा किया है जो मेरे सपनो को साकार कर सकता है”
मैं कितना अभिभूत हो उठा था, कितना खुश था. मैं बहुत कड़ी मेहनत कर रहा था और जो उन्नति जो खुशहाली उसने वहाँ आकर पहले दिन देखी थी वो मेरी आँखो के सामने लगातार हुई थी इसलिए मुझ पर उसका प्रभाव इतना जबरदस्त नही हुआ था, बल्कि मेरे लिए तो वो मेरे अथक परिश्रम का नतीजा थी जो होनी ही थी. मगर माँ के लिए तो वो बिल्कुल अप्रत्याशित था, ज़मीन के उस हिस्से में लहलहाती फसल उसके लिए तो कोई चमत्कार ही था. और सिर्फ़ इतना ही नही, बारिश का मौसम अभी शुरू ही हुआ था और हम दोनो मिलकर जितनी फसल मैने उगाई थी उसे दुगनी तिगुणी फसल उगा सकते थे.
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