Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 01:15 PM,
#61
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
इधर जयसिंह को आगे बढ़ता देख मनिका भी दूसरी तरफ घूम गई जिससे उसकी गांड दोबारा जयसिंह की आंखों के सामने आकर उस पर कहर ढ़ने लगी

जयसिंह धीरे धीरे चलता हुआ मनिका के बिल्कुल पीछे आकर खड़ा हो गया, वो दोनों अब इतने करीब थे कि जयसिंह की गरम सांसे मनिका की अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थी, जिसे महसूस कर मनिका के जिस्म में सिहरन सी दौड़ने लगी,

"मनिकककका.......मैं तुम्हे.....पकड़ लू क्याआआ..." जयसिंह धीरे से उसके कान में आकर बोला

"हाँ.... पापाआआआ......" मनिका ने भी मज़े के मारे अपनी आंखें बंद करते हुए कहा
जयसिंह धीरे से अपने हाथों को मनिका की कमर से रगड़ते हुए उसके पेट पर ले आया और अपने मुंह को मनिका के बालों में ले जाकर उसके बालो की मनमोहक खुसबू को सूंघने लगा,

मनिका अपने शरीर पर जयसिंह के हाथ का स्पर्श होते ही सिहर उठी, और हद तो तब हो गई जब जयसिंह ने अपनी एक उंगली मनिका की नाभि में ले जाकर उसे गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया, मानो वो नाभि में से कोई बहुमूल्य वस्तु निकलना चाह रहा हो

जयसिंह की इस हरकत से मनिका तो मज़े से पागल हो गई, उसकी वासना अब चरमोत्कर्ष पर पहुंचने लगी, जब उससे बर्दास्त करना मुश्किल हो गया तो उसने अपने एक हाथ को पीछे ले जाकर जयसिंह के बालों में लगा दिया जिससे जयसिंह का चेहरा मनिका के सिर से खिसककर उसकी गर्दन पर आ पहुंचा,

जयसिंह ने भी मौके का फायदा उठाते हुए तुरन्त अपने लबों को मनिका की गोरी गर्दन से चिपका दिया, और कहते है कि लड़की की गर्दन पर अगर कोई किस करे तो उसकी उत्तेजना कई गुना बढ़ जाती है, और यही मनिका के साथ भी हुआ

जयसिंह के होठों के स्पर्श अपनी गर्दन पर पाते ही मनिका अपने काबू से बाहर होने लगी और उसके मुंह से हल्की हल्की आहें भरनी शुरू हो गई
"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस
ओह्हहहहहह पापाआआआ...किस माई नेक पापाआआआ...... ओह्ह"
मनिका की आहों की आवाज़ अब धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी

इधर जयसिंह समझ गया था कि अब मनिका गरम होने लगी है, जयसिंह ने भी मौके का फायदा उठाते हुए मनिका की नाभि में फंसी अपनी उंगली निकाली और होले होले नीचे की तरह ले जाने लगा, मनिका को जैसे कोई होश ही नही था,

जयसिंह का हाथ मनिका के गोरे पेट से होते हुए अब उसके लहंगे की पट्टी पर आ पहुंचा था, जयसिंह अभी भी लगातार मनिका की गर्दन पर किस किये जा रहा था, अब जयसिंह ने धीरे से अपने हाथ की उंगलियों के इस्तेमाल कर लहंगे की इलास्टिक को हटाया और स्लो मोशन में अपना हाथ मनिका की सुलगती चुत की ओर बढ़ने लगा, जयसिंह के हाथ और मनिका की चुत में अब बेहद ही महीन पेंटी का कपड़ा था, जयसिंह अब अपनी उंगलियों को मनिका की चुत पर पैंटी के ऊपर से ही फेरने लगा,

इधर मनिका को अब बर्दास्त करना नामुमकिन हुए जा रहा था,उसने जयसिंह के बालों से अपना हाथ हटाया और धीरे धीरे जयसिंह के पाजामे की ओर बढ़ने लगी, मनिका ने अब तुरन्त ही जयसिंह का लंड उसके पाजामे के ऊपर से ही पकड़ लिया, लंड के अहसास से ही मनिका बुरी तरह गनगना गई, उसकी सांसे भारी होती जा रही थी, अब उसने एक झटके में ही जयसिंह के पाजामे के अंदर हाथ डाल लिया और उसके तने हुए लंड को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया

अपने हाथों मे अपने पापा के लंड की अकड़न महसूस करते ही, मनिका का दिल तेज़ी से धड़कने लगा, उसकी चूत की फाँकें बुरी तरह कुलबुलाने लगी, मनिका ने थोड़ी देर तक जयसिंह के लंड को अपनी मुट्ठी में भर कर दबाया और फिर अचानक से उसने जयसिंह के लंड पर मुठ मारनी शुरू कर दी

अपने लंड पर अपनी बेटी की गर्म हथेलियों का स्पर्श पाकर जयसिंह को लगा जैसे उसका लंड इस गर्मी के अहसास से पिघल ही जायेगा, वासना का तूफान दोनों बाप बेटी के दिलो में आ चुका था,

इधर अब जयसिंह ने भी तुरंत मनीका की पैंटी के इलास्टिक को ऊपर उठकर अपनी उंगलिया सीधे उसके चुत से सटा दी, और उसकी चुत के दाने को मसलने लगा,


मनिका तो इस चौतरफा हमले से बुरी तरह आहें भरने लगी
"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह, उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…...ओहहहहहह पापाआआआ
मसलो मेरी पुसी को....ओह यस..."
सससससहहहहहहह....पापा" इतना कहने के साथ ही जल बिन मछली की तरह मनिका अपनी भरावदार गांड को जयसिंह की तरफ ऊचकाते हुए तड़प ऊठी, जयसिंह की सांसे तेज हो चली, उससे अब रुक पाना बड़ा मुशकिल हुए जा रहा था, वो अब तुरंत अपनी बेटी की लहँगे को पकड़कर ऊपर की तरफ सरकाने लगा, मनिका की भी सांसे तीव्र गति से चलने लगी, धीरे धीरे करके जयसिंह ने अपनी बेटी की लहँगे को कमर तक उठा दिया, जयसिंह बहुत ही उतावला हुआ जा रहा था, लहँगे के कमर तक ऊठने पर मनिका ने खुद अपने दोनों हाथों से अपने लहँगे को थाम लिया और जयसिंह अपनी बेटी की पेंटि को दोनों हाथों की उंगलियों में फंसा कर धड़कते दिल से धीरे धीरे नीचे सरकाने लगा,

जैसे-जैसे पेंटी नीचे सरक रही थी, मनिका की गोरी गोरी भरावदार गांड दिन के उजाले में चमक रही थी, जयसिंह की तो हालत ही खराब होने लगीे थी , अपनी बेटी की गोरी गोरी गांड को देखकर उसका गला सूखने लगा था, उसका पूरा बदन उत्तेजना में सराबोर हो चुका था, जयसिंह ने धीरे धीरे पेंटी को भी पैरों के नीचे तक पहुंचा दिया, जहां से खुद मनिका ने ही पैरों का सहारा ले कर पैंटी को उतार फेंका,

ये नजारा देखकर जयसिंह से रुक पाना नामुमकिन सा हो गया था, और वो तुरन्त अपना पजामा भी उतारने लगा , जयसिंह को पजामा उतारता देख मनिका के बदन में गुदगुदी सी होने लगी और वो जयसिंह से बोली,
"पापाआआआ अगर कोई आ गया तो"


"कोई नही आएगा मनिका आह"
इतना कहने के साथ ही जयसिंह ने एक हाथ से उसकी टांग को पकड़ कर उठाते हुए किचन की पट्टी पर रख दिया और मनिका की पीठ पर दबाव बनाते हुए उसे आगे की तरफ झुका दिया, मनिका आश्चर्यचकित होते हुए जयसिंह के निर्देश का पालन कर रही थी,

जयसिंह ने अब बिना वक्त गंवाए अपने लंड के सुपाड़े को उसकी चुत के गुलाबी छेद पर टीकाया और पूरी ताकत से एक करारा धक्का उसकी चुत में लगा दिया, इस धक्के की ताकत इतनी थी कि पूरा का पूरा लंड एक ही बार मे चुत के अंदर समा गया, मनिका के मुहं से हल्की सी आह निकल गई पर एक बार लंड के घुसने के बाद जयसिंह अब कहां रुकने वाला था,
वो बस धक्के पर धक्का लगाता रहा, मनिका की गरम सिसकारियां पुरे किचन को और भी ज्यादा गर्म कर रही थी, दोनों आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे, जयसिंह की कमर बड़ी तेजी से आगे पीछे हो रही थी, मनिका की भारी सांसे माहौल को और ज्यादा उत्तेजित कर रही थी, सब कुछ बड़ी तेजी से हो रहा था ,जयसिंह जानता था कि उसके पास ज्यादा समय नही है क्योंकि उन्हें गांव भी जाना है, इसलिए जयसिंह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था, बस अपनी बेटी की कमर को दोनों हाथों से थामे लंड को चुत के अंदर धकाधक डाले जा रहा था, जयसिंह मनिका की टीशर्ट के अंदर अपने हाथ ले जाकर उसकी बड़ी बड़ी चुचियों को लगातार मसले जा रहा था,

करीब 15 मिनट की घमासान चुदाई के बाद मनिका की सांसे और ज्यादा तीव्र गति से चलने लगी ,उसकी सिसकारियां बढ़ने लगी, और एक जबरदस्त धक्के के साथ दोनों बुरी तरह भलभला कर झड़ गए, मनिका की चुत से उन दोनों के पानी का मिश्रण बाहर निकलकर उसके लहंगे को गिला कर रहा था,

जयसिंह ने मनिका को तब तक नहीं छोड़ा जब तक कि उसके लंड की हर एक बुंद मनिका की चुत में ना उतर गई, जैसे ही जयसिंह पूरी तरह से झड़ गया उसने हांफते हुए अपने लंड को अपनी बेटी की चुत से बाहर खींचा, दोनों के कपड़े अस्तव्यस्त थे,

थोड़ी देर बाद जब उन दोनों के दिमाग से वासना का भूत उतरा तो उन्होंने अपने कपड़े पहनने शुरू कर दिए, अभी मनिका ने अपनी पैंटी पहनी ही थी कि जयसिंह बोल पड़ा
"मनिका तुम्हे बुरा तो नही लगा ना"

"नही पापाआआआ.... मुझे तो आपके साथ करके इतना सुख मिलता है जिसकी मैं कल्पना भी नही कर सकती , मन करता है कि दिन रात बस आपके डिक........ मेरा मतलब है कि आपके साथ ही रहूं" मनिका ने मादकता के साथ कहा

"मैं भी यही चाहता हूं कि दिन रात अपने इस मोटे लंड को तुम्हारी चुत में ही घुसाए रखूं और तुम्हे हर पल छोड़ता रहूं" जयसिंह अब पूरी बेशर्मी पर उतर आया था, वो मनिका को पूरी तरह से खोलना चाहता था

"इसस्ससस ....ये आप कैसी बाटे कर रहे है पापाआआआ......" मनिका शर्माती हुई बोली

"अरे इसमे शर्माना कैसा, मेरा बस चलता तो तुम्हे दिन रात अपनी बाहों में लेकर तुम्हारी चुत को चूसता, उससे प्यार करता, और अपने लंड से तुम्हारी चुत की जमकर कुटाई भी करता, तुम सच्ची सच्ची बताओ, क्या तुम्हारा मन नही करता ये सब करने को" जयसिंह ने कहा

"ओहहहहहह पापाआआआ.... आप भी ना, मेरा मन तो हमेशा करता है कि मै....." मनिका बोलते बोलते शर्मा गई

"बोलो न क्या मन करता है तुम्हारा " जयसिंह ने पूछा

"नहीं मैं नही बताती" मनिका ने शर्मा कर अपने चेहरे को हाथों से छुपाते हुए कहा

"प्लीज़ बताओ न मनिका ,क्या मन करता है तुम्हारा, तुम्हे मेरी कसम, बताओ मुझे" जयसिंह ने पूछा

"मेरा मन करता है, कि मैं हमेशा आपकी बाहों में रहूं, आप मुझे हमेशा प्यार करे, आप अपने उस बड़े से ......उससे...मेरा मतलब है कि अपने डि....क डिक से मेरी पुसी की चुद.......मेरा मतलब है कि वो सब करे जो अभी किया है" मनिका की सांसे अब उखड़ने लगी थी

"अरे तुम शर्मा क्यों रही हो, अब तो हम सब कुछ कर चुके है, अब शर्माना कैसा, और ये डिक डिक क्या लगा रखा है ,उसे लंड कहते है और तुम्हारी पुसी को चुत कहते है, जो हमने अभी किया उसे चुदाई कहते है, चलो अब तुम बोलो अभी हमने क्या किया" जयसिंह अब पूरे मूड में आ गया था, इन गर्म बातो से उसके लंड में दोबारा तनाव आना शुरू हो गया था

"रहने दो ना पापा मुझे शर्म आती है ऐसे बोलते हुए" मनिका बोली

"प्लीज़ मनिका, बोलो ना,मेरे खातिर, प्लीज़" जयसिंह ने कहा

"मेरा मन चाहता है कि आपके डिक नही नही आपके लंड..... को अपनी चुत .....में लेकर सदा आपसे चुदाई.... करवाती रहूं, अब खुश " मनिका शर्माते हुए बोली

"हां बिल्कुल खुश" जयसिंह ने बोलते हुए दोबारा मनिका को घुमाकर उसकी पैंटी उतार दी और उसे वही ज़मीन पर घोड़ी बना लिया, मनिका भी समझ गई थी कि जयसिंह क्या चाहता है, उसने भी तुरंत अपने लहंगे को उठाकर थम लिया

जयसिंह ने भी बिना वक्त गंवाए कपङे लंड को मनिका की चुत के मुहाने पर सेट किया और फिर दे दना दन धक्के मारने लगा, दोनों के मुहँ से अजीब अजीब आवाज़े निकल रही थी

उनका दूसरा राउंड करीब 30 मिनट तक चला, अब वो दोनों थककर चूर हो चुके थे, पर जयसिंह ने मनिका को अपनी गोद मे उठाया और उसे अपने बाथरूम में ले गया

बाथरूम में थोड़ी देर बाद जब दोनों के सर से वासना का भूत उतरा तो जयसिंह ने सोचा कि अब मनिका को गांव जाने वाली बात बता देनी चाहिए

"मनिका, सुनो " जयसिंह ने लगभग हाँफते हुए कहा

"हां पापाआआआ...." मनिका तो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी

"वो हमें अभी गांव जाना होगा" जयसिंह ने लगभग मनिका के सर पर बम फोड़ते हुए कहा

"क्या, पर क्यों" मनिका को तो जैसे विश्वास ही नही हो रहा था, उसने तो 2- 3 दिनों के लिए न जाने कैसे कैसे सपने संजोए थे, सोचा था इन दिनों में वो अपनी सारी कसर निकल लेगी पर यहां तो सब सपने धरे के धरे रह गए,
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01-02-2020, 01:15 PM,
#62
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह ने सारी बात मनिका को बता दी, हालांकि जयसिंह खुद भी दुखी था पर अब जाना तो पड़ेगा ही


"क्या पापाआआआ, आपको आज के लिए हां करने की क्या जरूरत थी, कल चले जाते, कम से कम हमे 1 दिन तो और मिल जाता" मनिका बेबाकी से सब बोल गई

"1 दिन मिल जाता , किसके लिए मिल जाता मनिका" जयसिंह अब मनिका को छेडने के मूड में था,

"क्या पापा, आपको सब पता है फिर भी आप मुझे परेशान करते है" मनिका ने नाक चढ़ाते हुए पूछा

"सच मे मुझे नही पता मनिका, प्लीज़ बताओ न एक दिन ओर मिलता तो तुम क्या करती" जयसिंह ने दुबारा मनिका के बाए मम्मे को अपने हाथों में भर लिया
मनिका को लगा कि शायद जयसिंह दोबारा गर्म हो रहे है, इसलिए अब उसने भी ठान लिया था कि अब शरम का पर्दा छोड़ देगी

"अभी बताती हूँ आपको कि मैं क्या करती" मनिका ने जयसिंह के थोड़े मुरझाए से लंड को दोबारा अपने हाथों में भर लिया और उसके सुपाडे की चमड़ी को पकड़कर ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया

अब जयसिंह के लंड में हल्का हल्का तनाव आना शुरू हो गया था,

"मनिका, एक काम करोगी क्या" जयसिंह ने मनिका के मम्मे को जोर से मसलते हुए पूछा

"बोलिये पापाआआआ, आपके लिए तो मैं अब कुछ भी करूंगी" मनिका ने अपने हाथों की रफ्तार बढ़ दी


"एक बार इसे अपने मुंह मे ले लो ना प्लीज़" जयसिंह ने अपने लंड की ओर इशारा करते हुए पूछा

जयसिंह की बात सुनकर मनिका की आंखे पूरी खुल गयी
"पर पापा, मैं ये कैसे, मेरा मतलब है कि मैंने आज तक कभी इसे मुहँ में नही लिया, और आपका तो इतना बड़ा है , मैं कैसे ले पाऊंगी, प्लीज़ ये रहने दो न पापा, और चाहे आप कुछ भी कर लो" मनिका ने कहा

"बेटी तुम एक बार कोशिश करके तो देखो, अगर पसन्द न आये तो निकल देना, पर प्लीज़ एक बार" जयसिंह बोला

"पर.........चलो ठीक है .....मैं ले लेती हूं मुँह में.....पर सिर्फ थोड़ी देर के लिए......." मनिका ने क
हा


अब दृश्य कुछ इस प्रकार का था कि दोनों बाप बेटी बिल्कुल नंगी हालत में बाथरूम में खड़े थे, जयसिंह मनिका के मम्मे को मसले जा रहा था, और मनिका जयसिंह के लंड को अपने हाथों में पकड़े थी

अब मनिका जयसिंह के लंड को अपने मुहँ में लेने के लिए नीचे झुकने लगी, जैसे जैसे मनिका नीचे झुक रही थी जयसिंह आने वाले पल के बारे में सोचकर उत्तेजित हुए जा रहा था

उसके लिए तो ये किसी सपने से कम नही था कि उसका बड़ा सा लंड उसकी बेटी के कोमल होठों के बीच दबा हो और वो जोर लगाकर लंड को उसके गले तक उतार दे
अभी वो अपने ख्यालो में खोया हुआ था ही कि अगले ही पल जैसे उसे 440 वाल्ट का झटका लगा, मनिका ने जयसिंह के लाल सुपाडे को अपने गुलाबी होठों से छू लिया था,
इस स्पर्श मात्र से ही जयसिंह के तन बदन में सिहरन सी दौड़ गयी, उसके लन्द में खून दुगुनी रफ्तार से दौड़ने लगा , उसकी सांसो की रफ्तार बढ़ गयी,

इधर मनिका ने दोबारा अपने होटों को गोल किया और जयसिंह के लंड के सुपाडे को अपने होटों में भरने की कोशिश करने लगी, उसे जयसिंह का सुपाड़ा बहुत गर्म महसूस हो रहा था,

मनिका बस लंड पर चुप्पे ही लगाए जा रही थी, इससे एक बात तो जयसिंह को पता चल गई थी कि मनिका को लंड चूसना नही आता, इसलिए जयसिंह ने उसे सीखने की जिम्मेदारी खुद ही सम्भली

"बेटी, मेरे लंड को अपने मुंह मे भी लो ना थोड़ा सा" जयसिंह ने कहा

"जी पापाआआआ" मनिका किसी आज्ञा कारी शिष्य की तरह उनका आदेश में रही थी

मनिका ने अपने होठों को गोल गोल किया और इस बार जयसिंह का पूरा सुपाड़ा अपने मुहँ में भर लिया

"अब अपनी जीभ से मेरे लंड को अंदर ही अंदर कुरेदो और धीरे धीरे आगे पीछे भी करती रहो" जयसिंह ने कहा

मनिका ने भी अपनी जीभ से जयसिंह के लन्द के छेद को कुरेदा तो जयसिंह के बदन में सनसनी सी मच गई,

अब मनिका ने अपने मुंह को थोड़ा आगे पीछे भी करना शूरू कर दिया जिससे जयसिंह का लन्द उसके कोमल होटों से रगड़ खा रहा था
अब जयसिंह का लंड औकात में आना शुरू हो चुका था, धीरे धीरे लन्द का बढ़ता ही गया और पूरी तरह तनकर मनिका की आंखों के सामने खड़ा था, मनिका लंड के आकर को देखकर एक बार तो घबरा गई पर उसने अपना काम जारी रखा

इधर जयसिंह का धैर्य धीरे धीरे खत्म होता जा रहा था, और उसने बिना किसी चेतावनी के अपना लंड मनिका के मुंह मे घुसा दिया, जयसिंह का सिर्फ आधा लंड ही मनिका के मुंह मे आ पाया था पर ऐसा लग रहा था कि मनिका का मुंह पूरा का पूरा भर चुका हो, उसके मुंह से गूँ गूँ की आवाज़े आने लगी, उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी, पर वो किसी भी हालत में अपने पापा को खुश करन चाहती थी

इधर जयसिंह पर तो जैसे जैसे भूत ही सवार था , वो मनिका के मुंह मे दे दना दन धक्के लगाए जा रहा था

तकरीबन 10 मिनट तक मनिका के मुंह को चोदन के बाद जयसिंग के लंड में उबाल आने शुरू हो चुका था ,उसे पता लग गया कि उसका पानी निकलने वाला है, पर उसने मनिका को नही बताया और एक जोर का झटका देकर अपना लंड मनिका के गले तक उतार दिया और साथ ही साथ उसके लंड ने जोरदार ढंग से पिचकारी मार दी, जयसिंह के लंड से निकली आखिरी बून्द तक मनिका के गले से नीचे उतर गई, मनिका ने अपनी तरफ से जोर लगाया पर जयसिंह के बलिष्ठ शरीर के आगे उसकी थोड़ी सी ताक़त कहाँ टिकनी थी, हार मानकर उसे जयसिंह का सारा वीर्य गटकना पड़ा,
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01-02-2020, 01:17 PM,
#63
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
इधर जयसिंह पर तो जैसे जैसे भूत ही सवार था , वो मनिका के मुंह मे दे दना दन धक्के लगाए जा रहा था

तकरीबन 10 मिनट तक मनिका के मुंह को चोदन के बाद जयसिंग के लंड में उबाल आने शुरू हो चुका था ,उसे पता लग गया कि उसका पानी निकलने वाला है, पर उसने मनिका को नही बताया और एक जोर का झटका देकर अपना लंड मनिका के गले तक उतार दिया और साथ ही साथ उसके लंड ने जोरदार ढंग से पिचकारी मार दी, जयसिंह के लंड से निकली आखिरी बून्द तक मनिका के गले से नीचे उतर गई, मनिका ने अपनी तरफ से जोर लगाया पर जयसिंह के बलिष्ठ शरीर के आगे उसकी थोड़ी सी ताक़त कहाँ टिकनी थी, हार मानकर उसे जयसिंह का सारा वीर्य गटकना पड़ा,

थोड़ी देर बाद जयसिंह ने अपना लंड मनिका के मुंह से बाहर निकाल लिया,अब उसे होश भी आ चुका था, उसने देखा कि मनिका की हालत थोड़ी खराब है वो लम्बी लम्बी सांसे लेने की कोशिश कर रही थी

उसे इस हालत में देखकर जयसिंह को थोड़ा बुरा फील होने लगा था
,
"मनिका, ई एम सॉरी, वो पता नही मुझे क्या हो गया था, मैं खुद पर कंट्रोल ही नही कर पाया" जयसिंह ने मनिका की तरफ देखकर कहा

"क्या पापाआआआ,, आपने तो मेरी जान ही निकाल दी, ऐसा भी कोई करता है क्या अपनी बेटी के साथ" मनिका ने थोड़ा तन कर कहा

"प्लीज़ सॉरी" जयसिंह घबरा कर बोला

"ओके, बट अगली बार आप अपना पानी सीधा नही गिराएंगे, क्योंकि मैं खुद उसे प्यार से पीना चाहती हूं" मनिका ने हंसकर कहा

"क्यआआ....??" जयसिंह हैरान होकर बोला


"हाँ पापाआआआ..... सच पूछो तो मुझे आपका पानी बहुत अच्छा लगा, शुरू में थोड़ा अजीब लगा पर बाद में मुझे भी अच्छा लगने लगा" मनिका मुस्काते हुई बोली

मनिका की बात सुनकर जयसिंह भी खुश हो गया

अब जयसिंह दोनों अच्छे से नहाने लगे और फिर तैयार होकर गांव जाने की पैकिंग करने लगे

दोपहर तक दोनों बिल्कुल तैयार हो चुके थे, लंच करने के बाद दोनों ने अपने बैग्स उठाये और अपनी कार में सवार होकर गांव की तरफ निकल पड़े

5 घन्टे के लंबे और थकाऊ सफर के बाद उन्हें गाँव की कच्ची सड़कें दिखाई देने लगी, जिसका साफ मतलब था कि अब उन दोनो की मंज़िल बिल्कुल करीब थी, मनिका को गांव में आना बिल्कुल पसंद नही था, उसे तो शहर की चकाचोंध ही भाती थी, ऊपर से वो अब दिल्ली में रहती थी सो उसके नाज नखरे और भी ज्यादा बढ़ गए थे, उसने शिकायत भरी नज़रो से अपने पापा की ओर देखा, जयसिंह उन आंखों को देखकर समझ गया था कि मनिका शायद यहां आकर खुश नही है इसलिए मनिका के बोलने से पहले ही जयसिंह बोल पड़ा

"मुझे पता है मनिका, तुम गांव में आना पसन्द नही करती हो, पर क्या करें, मजबूरी है, आज की रात किसी तरह एडजस्ट कर लेना, कल शाम तक तो हम दोबारा अपने घर होंगे" जयसिंह ने मनिका को समझाने की कोशिश की

"मुझे पता है पापा, पर क्या करूँ, मुझे तो गांव के नाम से भी परेशानी होती है, ऊपर से अब मुझे आप से दूर भी रहना पड़ेगा, इसलिए मुझे तकलीफ हो रही है" मनिका हल्की रुआंसी होकर बोली

"अरे पर एक ही दिन की तो बात है, कल हम वापस अपने घर होंगे और फिर वापस मैं और तुम जन्नत की सैर करेंगे" जयसिंह मुस्कुराता हुआ बोला


"ठीक है पापा, सिर्फ एक दिन, अगर आप एक दिन में वापस नही आये तो मैं आपका गांव में ही रेप कर दूंगी" ये कहकर मनिका हंसने लगी

"अरे बेटी मैं तो चाहता हूं कि तुम हमेशा मेरा रेप करती रहो, मेरा पप्पू तो तुम्हारी चिड़िया के दर्शन के लिए हरदम बेकरार रहता है" कहकर जयसिंह ने मनिका की चुत पर जीन्स के ऊपर से हाथ फेर दिया

"उफ़्फ़फ़फ़ ......हटाइये न पापा, अब तो गांव भी आ गया, अगर किसी ने देख लिया तो....." मनीका ने जयसिंह का हाथ अपनी चुत पर से हटाते हुए कहा

"कोई नही देखेगा मणि...." जयसिंह बोला

"क्या पापाआआआ.... मैंने आपको मुझे मणि बुलाने से मना किया है ना तो फिर आप मुझे मणि क्यों बुला रहे है, जाइए मुझे आपसे बात नही करनी" ये कहकर मनिका झुटमुट गुस्सा होकर दूसरी तरफ देखने लगी

"अरे बेटी, पर गांव में सबके सामने तो मुझे तुम्हे मणि ही बुलाना होगा ना, इसलिए थोड़ी प्रैक्टिस कर रहा था, क्या है ना कि 2 दिन में ही तुमने मेरी आदत बिगाड़ दी है, इसलिए सोचा अभी से आदत सुधार लूं" जयसिंह बोला

"पर पापा मुझे आपसे मनिका सुनना ही पसन्द है" मनिका बोली

"बेटी मुझे भी तुम्हे मनिका पुकारना ही अच्छा लगता है पर सबके सामने अगर मैं तुम्हे मनिका बोलूंगा तो कही कुछ गड़बड़ न हो जाये" जयसिंह समझते हुए बोला

"ठीक है पापा, आप बोलते है तो मैं मान लेती हूं, पर अकेले में आप मुझे मनिका ही बुलाएंगे, ठीक है? " मनिका बोली

"अच्छा बाबा ठीक है, अब खुश" जयसिंह मुस्कुराते हुए बोला

"बिल्कुल खुश" ये कहकर मनिका जयसिंह की बाहों में सिमट गई

बातो ही बातो में वो लोग जल्द ही मधु के घर के सामने खड़े थे,

यहां मैं आपको थोड़ा उस घर के बारे में बता देता हूं, मधु के माता पिता अपने पुश्तेनी मकान में ही रहना पसंद करते थे, इसलिए जयसिंह के कई बार नए घर बनवाकर देने के प्रस्ताव को भी ठुकरा चुके थे, उन्हें तो उसी पुराने हवेली नुमा घर मे रहना पसंद था, घर मे आने के लिए बड़ा सा मैन गेट था, मैन गेट से घुसते ही एक पुराने ज़माने की विशालकाय बैठक थी, बैठक से निकलते ही एक तरफ किचन था और दूसरी तरफ 3 कमरे थे, पहले कमरे में मधु के माता पिता रहते थे, दूजे में मधु और एक नर्स रुकी हुई थी जो मधु के पिता की देखभाल के लिए 24 घण्टे वही रहती थी, तीसरे कमरे में कनिका और हितेश थे, इन सब कमरों के अलावा छत पर भी एक चौबारा (कमरा) बना हुआ था, जो अक्सर मेहमानों के आने पर ही खोला जाता था,


अब जयसिंह और मनिका घर के बिल्कुल सामने आकर खड़े हो चुके थे, जयसिंह ने कार से अपना और मनिका का सामान निकाला और फिर कार एक तरफ पार्क करके घर के दरवाजे की तरफ बढ़ दिए

शाम के तकरीबन 7 बजे थे, चूंकि सर्दियो का मौसम था, इसलिए अंधेरा काफी घिर चुका था, मधु अपने पिता के रूम में उनकी देखभाल के लिये बैठी थी, उसकी मां बजी वही पास मव थी, कनिका और हितेश अपने कमरे में बैठे गप्पे लड़ा रहे थे

तभी उन्हें बेल की आवाज़ सुनाई दी, मधु को समझते देर न लगी कि शायद जयसिंह और मनिका ही गेट पर है इसलिए तुरन्त उठकर बाहर आई और दरवाज़े की खोला

सामने जयसिंह ओर मनिका हाथों में छोटा सा बैग उठाये खड़े थे, मधु तो उन दोनों को देखकर बड़ी खुश हुई, उसने तुरंत उन्हें अंदर आने के लिए कहा

बाहर होती हलचल की आवाज़ सुनकर कनिका और हितेश बि अपने कमरे से बाहर आ गए, और जब उन्होंने अपने पापा और दीदी को वहां खड़ा पाया तो उनकी खुशि का ठिकाना ही ना था, खनिज तो भागकर मनीका से गले जा लगी, फिर उछलकर अपने पापा की बाहों में आ गयी, जयसिंह ने प्यार से उसके माथे को चूम लिया

हालांकि ये बाप बेटी वाला ही प्यार था पर मनिका को न जाने क्यों थोड़ा अजीब सा लगा, पर उसने ज्यादा ध्यान नही दिया, फिर वो लोग मधु के माता पिता से मिलने उनके रूम में गए,
वहां जयसिंह ने देखा कि मधु के पिता महेश सिंह अपने बीएड पर लेटे है और उनके पास मधु की मां सरोज और एक नर्स खड़ी थी


महेश(मधु के पिता) - अरे जय बेटा, आ गए तुम, रास्ते मे कोई तकलीफ तो नही हुई

जयसिंह - जी कोई तकलीफ नही हुई, आपकी तबियत कैसी हैं अब

महेश - अब तो ठीक ही है, बाकी अब उम्र भी काफी हो गयी, ऐसी छोटी मोटी बीमारी तो होती ही रहती है

जयसिंह - फिर भी आपको थोड़ा ध्यान रखना चाहिए, मैं अब भी कहता हूं कि आपको शहर के किसी अच्छे अस्पताल में दिखा देता हूँ आप हमारे साथ चलिए

महेश - नही बेटा, अब इस उमर में घर को छोड़कर जाना मुनासिब नही, वैसे भी अब तो ये नर्स है ही देखभाल के लिए, कुछ दिन मधु भी रह जायेगी तो तबियत अच्छी हो जाएगी, तुम ज्यादा चिंता मत करो

जयसिंह - परन्तु.......
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01-02-2020, 01:17 PM,
#64
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की पर वो नही माने, आखिर में हारकर जयसिंह ने उनकी बात मान ली, कुछ देर तक ऐसे ही उनमे बाटे चलती रही, फिर जयसिंह और मनिका
थोड़े फ्रेश होने चले गए

कुछ देर बाद सभी ने खाना खाया और कुछ देर बातचीत में व्यस्त रहे

जयसिंह - मधु, अब मुझे नींद आ रही है, वैसे भी सफर की थोड़ी थकान है, मुझे अपना कमरा बताओ

मधु - देखिए, कमर तो ऊपर छत पर है, मैंने पहले से सारा इंतेज़ाम वह कर दिया था, आप वहां सो जाइये, मैं यहां पिताजी की देखभाल के लिए नर्स के साथ ही रुकी हूँ, मणि तो कनिका ओर हितेश वाले कमरे में एडजस्ट हो जाएगी, या फिर मैं उसे ऊपर भेज देती हूँ ,

जयसिंह और मनिका को तो अपने कानो पर भरोसा ही नही हो रहा था कि मधु खुद उन्हें एक कमरे में रुकने के लिए बोल रही थी, उन्हें तो लग रहा था कि आज की रात तो ऐसे ही सुखी ही कट जाएगी पर मधु की इस बात ने तो जैसे उनके प्यासे मन पर सावन की बौछार कर दी हो, मनिका की चुत में तो अभी से ही टिस उठने लगी थी,पर जयसिंह या मनिका अति उत्तेजित होकर काम बिगड़ना नही चाहते थे, इसलिए जयसिंह बड़े ही शांत तरीके से बोला

जयसिंह - जैसा तुम्हे ठीक लगे मधु, वैसे एक बार मणि से भी पूछ लो

मनिका - मुझे तो कोई प्रॉब्लम नही है मम्मी, आप जहाँ कहोगे मै वहां ही सो जाऊंगी

दोनों आज की रात के हसीन सपनो में गुम थे कि तभी अचानक जैसे उन पर गाज गिर पड़ी, उनके सपने चूर चूर हो गए, कनिका जो पास ही खड़ी थी वो उछलकर बोल पड़ी

"नही मम्मी, पापा के साथ मैं सोऊंगी, दीदी नीचे सो जाएंगी" कनिका चहकते हुए बोली

कनिका की बात सुनकर जैसे जयसिंह ओर मनिका के अरमानों पर पानी फिर गया, पर मनिका ऐसे शानदार मोके को हाथ से नही जाने देना चाहती थी, इसलिए वो कनिका को लगभग डांटते हुए बोली

" पर तु तो नीचे सोती है ना हितेश के पास, तो फिर आजुपर क्यों सोना चाहती है, नही तू यही नीचे सो जा, मैं ऊपर सोऊंगी, वैसे भी मुझे यहां नीचे घुटन सी हो रही है" मनिका ने कहा

"ठीक है मणि, तुम ऊपर सो जाना, कनिका नीचे सो जाएगी" मधु ने बीच बचाव करते हुए कहा

"नही मम्मी मुझे तो पापा के साथ ही सोना है, मैं नीचे नही सोऊंगी" कनिका अब अपनी जिद पर अड़ गयीं

"चुप चाप नीचे सोजा कनिका, वरना थप्पड़ मारूंगी" मनिका ने उसे डांटते हुए कहा

अब दोनों बहनें ऊपर सोने के लिए लड़ ज़िद करने लगी पर कोई हल निकलता नही दिख रहा था, मधु भी उनकी बकबक से परेशान हो रही थी, आखिर में जयसिंह उन दोनों को चुप कराता है बोला



"एक काम करो मणि , आज आज तुम कनिका को ही ऊपर सोने दो, घर चलकर मैं तुम्हे अपने पास सुलाऊंगा, कनिका को नही" जयसिंह मनिका की आंखों में झांकता हुआ बोला, मनिका जयसिंह का मतलब अच्छे से समझ गयी, उसकी आँखे भी हल्की नशीली हो गयी थी, उसने सोचा कि आने वाली हज़ारो रातो के लिए आज की एक एक रात कुर्बान भी करनी पड़े तो कोई गम नही, ये सोचकर उसने आखिर भारी मन से हामी भर दी

इधर कनिका तो खुश होकर दोबारा जयसिंह की बाहों में लिपट गयी, पर इस बार जयसिंह को कनिका के छोटे छोटे मुलायम मम्मे अपनी छाती में धंसते हुए महसूस होने लगे, इस तरह अनायास उन छोटे छोटे अमरूदों के अहसास से जयसिंह के लंड में हल्की सी हलचल होने लगी, उसे ये अहसास बहुत भा रहा था, उसे महसूस होने लगा था कि कनिका अब बच्ची नही रही, उसकी जवानी के बीज अब फूटने लगे हैं, जयसिंह मजे से कनिका से साजिप्त हुआ था, पर मनिका को कनिका का पापा से इस तरह चिपटना बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था, वो तो कनिका से गुस्सा हो रही थी, क्योंकि उसकी वजह से आज उसकी हसीन रात काली होने वाली थी

"आज आज सोजा कनिका की बच्ची, घर पर तो मैं ही पापा के साथ सोऊंगी देखना" मनिका ने कनिका की तरफ जीभ निकालते हुए कहा


उनकी इस तरह की खटपट से बाकी लोग भी हस रहे थे,कुछ देर इसी तरह हँसी मजाक करने के बाद मधु ने सब को अपने कमरों में जाकर सोने के लिए कहा

सभी ने एक दूसरे से गुडनाइट कहा, मनिका ने आखिरी बार जयसिंह की तरफ हवस भारी नज़रो से देखा और फिर भारी सांसो से गुडनाइट कह कर अपने कमरे में सोने चली गयी

अब बस जयसिंह और कनिका ही बचे थे सो वो भी अब सीढ़ियों से ऊपर जाने लगे, ऊपर जाकर जयसिंह ने कमरे का दरवाजा खोला और लाइट जला ली, कमरा दिखने में ठीक ठाक था पर ज्यादा बड़ा नही था, पर बीएड अच्छा खासा बड़ा था जिस पर 2 क्या 3 आदमी भी साथ सो सकते थे, जयसिंह और कनिका कमरे के अंदर आये और फिर जयसिंह ने दरवाज़ा बन्द कर लिया,

कनिका तो अपने पापा के साथ सोने को लेकर बड़ी खुश थी, क्योंकि जाने अनजाने उसके पापा की वजह से उसे पानी निकलने का असीम सुख उस दिन मिला था जब वो अनायास ही अपने पापा की गोद मे बैठ गयी थी और जयसिंह का लंड अपनी बेटी की चुत का सामिप्य पाकर कड़ा हो गया था, कनिका को वो अहसास बहुत भाया था, और आज भी उसके खुराफाती दिमाग ने कुछ योजना पहले से ही तैयार कर रखी थी,



जयसिंह इन सब से बेखबर सीधा बेड पर आकर बैठ गया, पर तभी अचानक कनिका सीधा आकर जयसिंह की गोद मे बैठ गयी, जयसिंह तो इस अचानक हमले से बिल्कुल डर गया , उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या करे

"अरे कनिका..... बेटी..थोड़ा.....साइड में बैठो न, मेरी गोद मे क्यों बैठ गयी" जयसिंह लगभग हकलाते हुए बोला

"क्या पापा मैं इतनी भी भारी नही हूँ" कनिका खिलखिलाते हुए बोली

"बेटी पर....." जयसिंघ को अब कनिका के जिस्म से निकलती गर्मी महसूस होने लगी थी

"ठीक है पापा, अगर मैं आपको इतनी भारी लगती हु तो ये लो मैं खड़ी हो गई, अब खुश" कनिका कहते हुए जयसिंह की गोद से खड़ी हो गयी

"बेटी वो बात नही, जरासल लम्बे सफर की थकान की वजह से बिल रहा हूँ वरना तुम बोलो तो मै तो तुम्हे हमेशा गोद में लेकर घूमता रहूं" जयसिंह ने कहा

"सच पापा, कहीं फिर मन मत कर देना गॉड में चढ़ाने के लिए" कनिका के चेहरे पर एक शातिर मुस्कान आ गयी थी


"अरे नही नही, तुम देखना मैं तुम्हे कभी मन नही करूँगा" जयसिंह बोला

"चलो ठीक है पापा वो भी देख लेंगे, पर फिलहाल तो हम सोते है, वैसे ये बेड कितना बड़ा है ना पापा, लगता है किसी राजा महाराजा का हो" कनिका ने खुश होते हुए कहा

" हां बेटी, ये पुराने ज़माने के बेड है ना , इसलिए इतना बड़ा है" जयसिंह बोला

"पर पापा बेड पर कम्बल तो एक ही है" कनिका ने कम्बल की ओर इशारा करते हुए कहा

"अरे ये कैसे हो गया, मधु ने कहा था कि उसने कम्बल रख दी है ,फिर दूसरी कम्बल कहाँ गयी" जयसिंह सोच में पड़ गया

दरअसल मधु ने सोचा था कि जयसिंह अकेला ही ऊपर सोएगा, इसलिए उसमे एक ही कम्बल लेकर रखी थी

"मैं एक काम करता हूँ बेटी, मैं नीचे जाकर दूसरी कम्बल ले आता हूं" जयसिंह बोलते हुए दरवाज़े की तरफ जाने लगा

"रुको पापा, रहने दो, मुझे दूसरे कम्बल की कोई जरूरत नही, मैं आपकी कम्बल में ही एडजस्ट कर लुंगी" कनिका ने बेबाकी से कहा

"ककककक्याआ......." जयसिंह के कान गर्म हो गए कनिका की बात सुनकर,,, उसे तो अपनी किस्मत पर विश्वास ही नही हो रहा था


"हां पापा, हम एक ही कम्बल में सो जाएंगे, वैसे भी देखो न ये कम्बल कितनी बड़ी है" कनिका ने कम्बल खोलते हुए कहा

"ठीक है बेटी, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बोला
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01-02-2020, 01:17 PM,
#65
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
"हां पापा, हम एक ही कम्बल में सो जाएंगे, वैसे भी देखो न ये कम्बल कितनी बड़ी है" कनिका ने कम्बल खोलते हुए कहा

"ठीक है बेटी, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बोला

अब जयसिंह और कनिका बेड पर आ गए, जयसिंह ने कम्बल को अच्छे से खोलकर अपने और कनिका के ऊपर ले लिया, पर कनिका ने तो जैसे जयसिंह पर कहर ढाने का पूरा प्लान बना रखा था, वो कम्बल के अंदर से सिमटकर जयसिंह के बिल्कुल करीब आ गयी और जयसिंह को अपनी बाहों में समेट लिया, कनिका के बदन से आती खुशबू जयसिंह के नथूनों में घुस रही थी, जयसिंह अजीब उहापोह की स्थिति में फंसा था, एक तो पहले ही उसकी बड़ी बेटी मनिका की चित ने उसके लंड में गदर मचा रखा था और ऊपर से अब छोटी बेटी की नवयौवन चुत भी उसे अपने पास आने का निमंत्रण सी दे रही थी,

पर कनिका तो जयसिंह के लंड में भूचाल लेन का काम करे जा रही थी, उसने जयसिंह से टेबल लैंप की लाइट बन्द करने को कहा और फिर वो कसकर उससे चिपक गयी, इतनी की अब उन दोनों के बीच हवा भी बड़ी मुश्किल से पास हो रही थी
कमरे में अब हल्का अंधेरा हो चुका था, बस पड़ोस के घर से आती हल्की रोशनी उनकी खिड़की में से होकर कमरे को हल्का सा उजागर कर रही थी, पर सिर्फ इतना कि वो दोनों बस एक दूसरे का चेहरा थोड़ा थोड़ा देख सके,

कनिका ने जयसिंह से चिपककर अपनी आंखें बंद कर रखी थी, लगभग 1 घण्टे तक दोनों ने कोई हलचल नही की , जयसिंह को लगा कि शायद कनिका सो गई है, पर जयसिंह की आंखों से नींद कोसो दूर थी, जयसिंह कनिका के मासूम से चेहरे को देखकर सोच में पड़ गया

जयसिंह के हाथ में कनिका के रूप में ऐसा लड्डू आया हुआ था जिसको ना खाते बन रहा था ना छोड़ते , उसने कनिका के चेहरे की ओर दोबारा देखा, दुनिया जहाँ की मासूमियत उसके चेहरे से झलक रही थी, कितने प्यारे गुलाबी होंट थे उसके , दूध जैसी रंगत उसके बदन को चार चाँद लगा रही थी , वो बैठ गया और कनिका की तरफ प्यार से देखने लगा,

उसकी नज़र कनिका की चुचियों पर पड़ी, जैसे मनिका की चुचियों का छोटा वर्षन हो , बंद गले का टॉप होने की वजह से वो उनको देख तो नही पाया, पर उनके आकर और कसावट को तो महसूस कर ही सकता था, केले के तने जैसी चिकनी टाँगे उसके सामने नंगी
थी, कितनी प्यारी है कनिका.... उफफ... जयसिंह के अंदर और बाहर हलचल होने लगी ,उसने लाख कोशिश की कि कनिका से अपना दिमाग़ हटा ले पर आगे पड़ी कयामत से उसका ईमान डोल रहा था, लाख कोशिश करने के बाद भी जब उससे रहा ना गया तो उसने धीरे से कनिका को पुकार कर देखा,"कनिका!" पर वो तो सपनों की दुनिया में थी ,

जयसिंह ने दिल मजबूत करके उसकी छातियो पर हाथ रख दिया , क्या मस्त चुचियाँ पाई हैं इसने, जो भी इस फल को पकने पर खाएगा, कितना किस्मतवाला होगा वो , जयसिंह ने चुचियों पर से हाथ हटा लिया और धीरे-धीरे करके उसके स्कर्ट को उपर उठा दिया, जयसिंह का दिमाग़ भन्ना सा गया, पतली सी सफेद कच्छि में क़ैद कनिका की चिड़िया मानो जन्नत का द्वार थी , जयसिंह से इंतज़ार नही हुआ और उसने लेट कर उसकी प्यारी सी चूत पर कच्छी के ऊपर से ही अपना हाथ रख दिया , ऐसा करते हुए उसके हाथ काँप रहे थे ,जैसे ही उसने कनिका की चूत पर कच्छि के उपर से हाथ रखा वो नींद में ही कसमसा उठि, जयसिंह ने तुरंत अपना हाथ वापस खीच लिया, कनिका ने एक अंगड़ाई ली और जयसिंह के मर्दाने जिस्म पर नाज़ुक बेल की तरह लिपट गयी उसने अपना एक पैर जयसिंह की टाँगों के उपर चढ़ा लिया, इस पोज़िशन में जयसिंह का हाथ उसकी चूत से सटा रह गया ,


बढ़ती ठंड के कारण कनिका उससे और ज़्यादा चिपकती जा रही थी, जयसिंह के मन में खुरापात घर करने लगी, वो पलटा और अपना मुँह कनिका की तरफ कर लिया,
कनिका गहरी नींद में थी, कनिका की छाति उसके हाथ से सटी हुई थी, उसने कनिका पर अपने शरीर का हल्का सा दबाव डालकर उसको सीधा कर दिया, अब जयसिंह ने कनिका की छाति के उपर दोबारा हाथ रख दिया, उसकी चुचियाँ उसके सांसो के साथ ताल मिला कर उपर नीचे हो रही थी ,उसके होंट और गाल कितने प्यारे थे! और एक दम पवित्र, जयसिंह ने कनिका के होंटो को छुआ. मक्खन जैसे मुलायम थे

जयसिंह ने आहिस्ता-आहिस्ता उसके टॉप में हाथ डाल कर उसके पेट पर रख लिया , इतना चिकना और सेक्सी पेट आज तक जयसिंह ने नही छुआ था, जयसिंह ने हाथ थोड़ा और उपर किया और उसकी अनछुई गोलाइयों की जड़ तक पहुँच गया ,उसने उसी पोज़िशन में हाथ इधर उधर हिलाया; कोई हरकत नही हुई, उसने हाथ को उसकी बाई चूची पर इस तरह से रख दिया जिससे वो पूरी तरह ढक गयी उसने उन्हे महसूस किया, एक बड़े अमरूद के आकार में उनका अहसास असीम सुखदायी था,

जयसिंह का तो जी चाहा कि उन मस्तियों को अभी अपने हाथों से निचोड़ कर उनका सारा रस निकाल ले और पीकर अमर हो जाए, पर कनिका के जागने का भी डर था ,उसने कनिका के निप्पल को छुआ, छोटे से अनार के दाने जितना था , हाए; काश! वो नंगी होती


अचानक उसने नीचे की और देखा, कनिका का स्कर्ट उसके घुटनों तक था, जयसिंह ने उसको उपर उठा दिया पर नीचे से दबा होने की वजह से वो उसकी जांघों तक ही आ पाया , जयसिंह ने कनिका को वापस अपनी तरफ पलट लिया, कनिका ने नींद में ही उसके गले में हाथ डाल लिया ,कनिका के होंट उसके गालों को छू रहे थे,


जयसिंह ने कनिका के स्कर्ट को पिछे से भी उठा दिया, कनिका की चिकनी सफेद जाँघ और गोल कसे हुए चूतड़ देख कर जयसिंह धन्य हो गया ,उसके चूतड़ो के बीच की दरार इतनी सफाई से तराशि गयी थी कि उसमें कमी ढूंढना नामुमकिन सा था, जयसिंह कुछ पल के लिए तो सबकुछ भूल सा गया, वो एकटक उसके चूतड़ो की बनावट और रंगत को देखता रहा ,फिर उसने होले से उन पर हाथ रख दिया, एकदम ठंडे और लाजवाब! वो धीरे-धीरे उन पर हाथ फिराने लगा ,जयसिंह ने उसके चूतड़ो की दरार में उंगली फिराई; कही कोई रुकावट नही, बिल्कुल कोमल सी

जयसिंह का लंड अब तक अपना फन उठा चुका था डसने के लिए, उसने कनिका के चेहरे की और देखा, वो अपनी ही मस्ती में सो रही थी, जयसिंह ने उसको फिर से पहले वाले तरीके से सीधा लिटा दिया, उसकी टाँगें फैली हुई थी, स्कर्ट जांघों तक थी, मोक्षद्वार से थोड़ा नीचे तक, स्कर्ट उपर करते वक़्त जयसिंह के हाथ काँप रहे थे ,आज से पहले ऐसा शानदार अनुभव उसका कभी नही रहा, शायद किसी का भी ना रहा हो, स्कर्ट उपर करते ही जयसिंह के लंड को जैसे 440 वॉल्ट का झटका लगा ,जयसिंह का दिमाग़ ठनक गया, ऐसी लाजवाब चूत की लकीरें जो फूलकर कच्छी के ऊपर से ही लाजवाब शेप बना रही थी,
नही! उसको चूत कहना ग़लत होगा. वो तो एक बंद कमल की पंखुड़ीया थी; नही नही! वो तो एक बंद सीप थी, जिसका मोती उसके अंदर ही सोया हुआ है, जयसिंह का दिल उसकी छाति से बाहर आने ही वाला था ,क्या वो मोती मेरे लिए है! जयसिंह ने सिर्फ़ उसका जिस्म देखने भर की सोची थी, लेकिन देखने के बाद वा उस मोती को पाने के लिए तड़प उठा, उस सीप की बनावट इस तरह की थी कि शेक्स्पियर को भी शायद शब्द ना मिले , उस अमूल्य खजाने को तो सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है

जयसिंह ने उसकी जांघों के बीच भंवर को देखते ही उसको चोदने की ठान ली.... और वो भी आज ही....आज नही; अभी. उसने कनिका की सीप पर हाथ रख दिया पूरा! जैसे उस खजाने को दुनिया से छुपाना चाहता हो ,उसको खुद की किस्मत और इस किस्मत से मिलने वाली अमानत पर यकीन नही हो रहा था , आ। उसने हल्के से कनिका की कच्ची को उसकी चुत के ऊपर से ही साइड कर दिया, वाह क्या पल था वो उसके लिए, उससे सब्र करना अब नामुमकिन हो रहा था

अब उसने बड़े प्यार से बड़ी नजाकत से कनिका की सीप की दरार में उंगली चलाई, अचानक कनिका कसमसा उठी! अचेतन मन भी उस खास स्थान के लिए चौकस था; कही कोई लूट ना ले! जयसिंह ने अपना हाथ तुरंत हटा लिया ,कनिका के चेहरे की और देखा, वह तो सोई हुई थी, फिर से उसकी नज़र अपनी किस्मत पर टिक गयी, जयसिंह ने अपने शरीर से कनिका को इस कदर ढक लिया की उस पर बोझ भी ना पड़े और अगर वो जाग भी जाए तो उसको लगे कि पापा का हाथ नींद में ही चला गया होगा, इस तरह तैयार होकर उसने फिर कोशिश की कनिका का मोती ढूँढने की, उसकी दरार में उंगली चलाते हुए उसको वो स्थान मिल गया जहाँ उसको अपना खूटा गाढ़ना था ,ये तो बिल्कुल टाइट था, इसमें तो पेन्सिल भी शायद ना आ सके!
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01-02-2020, 01:17 PM,
#66
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह को पता था टाइम आने पर तो इसमें से बच्चा भी निकल जाता है... पर वो उसको दर्द नही दे सकता था, बदहवास हो चुके जयसिंह ने अपनी छोटी उंगली का दबाव उसके छेद पर हल्का सा बढ़ाया; पर उस हल्के से दबाव ने ही कनिका को सचेत सा कर दिया ,कनिका का हाथ एकदम उसी स्थान पर आकर रुका और वो वहाँ खुजलाने लगी ,फिर अचानक वो पलटी और जयसिंह के साथ चिपक गयी जयसिंह समझ गया 'असंभव है' ऐसे तो बिल्कुल कुछ नही हो सकता मायूस होकर उसने कनिका का स्कर्ट नीचे कर दिया और उसके साथ उपर से नीचे तक चिपक कर सो गया


पर जयसिंह अभी तक इस बात से अनभिज्ञ था कि जिस कनिका को वो अब तक सोई समझकर ये सब हरकते कर रहा था दरअसल ये सब खजरफत उसी के शैतानी दिमाग की थी, उसे पता था कि इस तरह अपने पापा से चिपट कर सोने से उसके पापा खुद को कंट्रोल नही कर पाएंगे और जरूर कुछ न कुछ करेंगे, वो बस आंखे मुंदे इंतेज़ार कर रही थी, और जब जयसिंह का हाथ उसके कच्चे बदन पर गिरने लगा तो उसे अपने मकसद में कामयाबी हासिल होती नजर आने लगी थी

लर ये क्या जयसिंह तो सब हथियार डालकर दोबारा सो गया, अब वो क्या करे, कनिका को कुछ समझते नही बन रहा था, वो बड़ी असमंजस में थी, मन तो करता कि जिस तरह उसके पापा ने उसके बदन पर हाथ फिराकर उसकी चुत को गर्म कर दिया और उसकी चुत से टसुए बहा दिए, वो भी उसका बदला ले, उनके पंत को खोलकर उस फ़ंनफ़नाते लंड को अपने मुंह मे गुप्प से ले ले, इसे जी भरकर चूसे चाटे, और उसे अपने चुत के छोटे से तंग छेद में लेकर आज की रात लड़की से औरत बन जाये, पर शर्म और डर का एक पहरा भी तो था, जो हिम्मत उसके पापा ने दिखाई वो कैसे दिखाए, वो भी जब कि उसके पापा अभी सोये नही, उसे कुछ समझ नही आ रहा था, मन मे उथल पुथल और चुत में घमासान मचा था

आखिर में उसने जयसिंह वाली तरकीब ही इस्तेमाल करने की सोची, यानी वो भी जयसिंह के सोने के बाद उनके लंड को अपने मुंह मे लेगी , उसे प्यार करेगी, जी भर के

ये सब सोचकर ही उसकी चुत से पानी की हल्की सी बून्द बहकर उसकी गोरी चिकनी जांघो पर लकीर सी खींचने लगी, उसे बस अब इंतेज़ार करना था, पर ये इंतेज़ार तो बड़ा मुश्किल था, हर पल एक एक बरस के समान गुज़र रहा था, कनिका से समय कटे नही कट रहा था

रात के तकरीबन 1 बजने वाले थे, चारो तरफ घनघोर अंधेरा छाया था, रह रहकर कुत्तों के भोंकने की आवाज़े सुनाई पड़ती थी, मालूम होता जैसे यहां सदियों से कोई रहता ना हो, ऐसे में कनिका को अपने धड़कते दिल की आवाज़ बड़ी साफ साफ सुनाई दे रही थी, उसे लगने लगा था कि शायद अब समय आ गया है, उसके हाथ पांव फूलने लगे थे, उसे समझ आ गया था कि जितना उसने सोचा उता आसान काम नही होने वाला

फिर भी उसने हिम्मत ना हारी, पूरी ताकत लगाकर अपने गले से हल्की सी आवाज़ निकली " पापाआआआ...... सो गए क्या"
पर जयसिंह तो सचमुच सो चुका था, इसलिए उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही आई, कनिका ने दोबारा एक बार आवाज़ दी पर इस बार भी कोई प्रतिक्रिया नही
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01-02-2020, 01:17 PM,
#67
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
कनिका को विश्वास हो चला था कि उसके पापा अब सचमुच सो गए है, अब उसे अपने मैन मिशन को पूरा करना था,

उसके कांपते हाथ धीरे धीरे जयसिंह के लोअर की तरफ बढ़ने लगे, उसे लग रहा था जैसे वो जयसिंह से कोसो दूर है तभी उसके हाथों को वहां तक पहुंचने में इतना समय लग रहा है, पर आखिर कर उसके हाथ जयसिंह के लोअर के ठीक ऊपर आ पहुंचे थे, मनिका ने लोअर के ऊपर से ही जयसिंह के लंड वाली जगह को टटोला तो उसे जयसिंह का अर्धसोया लंड अपनी हथेलियों में महसूस होने लगा, उसकी उत्तेजना अब पल पल बढ़ती जा रही थी, उसे लगने लगा था कि अगर उसने जल्दी नही की तो कही उसका इरादा बदल न जाये, ओर ये सोचते ही ना जाने उसमे कहा से इतनी हिम्मत आ गयी कज उसमे पलक झपकते ही जयसिंग के लोअर के इलास्टिक को पकड़ा और झटपट नीचे कर दिया, जयसिंग की एक आदत थी, वो सोते समय अंडर वियर कम ही पहनता था, और आज भी उसने अंडर वियर नही पहनी थी, कनिका को लगा था कि अभी उसे दूसरी बाधा यानी जयसिंग की अंडर वियर को पर करना है पर उसे क्या पता था कि उसकी किस्मत आज उस पर बड़ी मेहरबान है,
जैसे ही उसने लोअर को खींचकर थोड़ा नीचे किया, जयसिंग का लंड पूरी तरह से नंगा उसकी आँखों के सामने आ गया, हालांकि वो उसे देख नही पा रही थी पर उसकी कल्पना मात्र से ही कनिका के बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी


अब कनिका के हाथ धीरे धीरे अपनी अंतिम मंजिल की ओर बढ़ने लगे और जल्द ही उसने अपनई नरम हथेलियों को जयसिंग के अर्धसोये लंड से मिलाप करवा दिया, कनिका जयसिंग के लंड को अपने हाथों में महसूस कर गनगना उठी, उसे भरोसा ही नही हो रहा था की आखिर उसने अपने पापा के लंड को छू लिया था,

वो धीरे धीरे अपनी कोमल हथेलियों से लंड के चारो ओर फंदा से बनाकर उसे होले होले ऊपर नीचे करने लगी, थोड़ी देर में ही उसकी मेहनत का असर नज़र आने लगा, जयसिंग के लंड ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया था, पर कनिका इतने में खुश नही थी, उसे तो पुरा टाने हुआ लंड चाहिए था , इसलिए वो हल्के से उठी और पल भर के ही उसने अपने होठों को जयसिह के लन्द के सुपडे से छुआ दिया,

कनिका का बदन बुरी तरह से गरमा चुका था, उसके होठों की तपन से जयसिह के लंड में हलचल होनी शुरू हो गयी, कनिका ने अब आने वाले वक्त को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया और उसने लपककर जयसिंह के लंड को जितना हो सके अपने मुंह मे ले लिया, अब तो जैसे अपने होश खो चुकी थी, उसे परिणाम की परवाह न थी, वो तो अब मज़े से जयसिंह के लंड को जोर जोर से चूस रही थी
इस तरह लंड पर गर्म अहसास से जयसिंह नींद में ही कसमसाने लगा, उसकी नींद अब हल्की हल्की टूटने लगी थी, उसका लंड अब लोहे की रॉड की तरह सख्त हो चुका था, इधर कनिका बेपरवाह होकर लंड चुसाई में तल्लीनता से लगी थी, पर तभी अचानक उसे अपने बालों पर किसी के हाथों का अहसास हुआ, वो घबरा गई, उसने अपना चेहरा ऊपर उठाना चाहा पर उन हाथों ने अपना ज़ोर लगाकर दोबारा कनिका को लंड चूसने पर मजबूर कर दिया

अब कनिका समझ चुकी थी कि उसके पापा जग चुके है और अब वो भी इस सब का मज़ा ले रहे है, कनिका को अपने प्लान की कामयाबी पर बड़ी खुश हुई, वो और ज़ोर लगाकर जयसिंग का लंड चूसने लगी, इधर जयसिंह भी कनिका के चेहरे को संचालित कर रहा था

लगभग 5 मिनट तक कनिका ने जमकर जयसिंह का लंड चूसा, जयसिंह को अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था, अब जयसिंह ने कनिका के चेहरे को ऊपर उठाया और फिर कनिका की अपनी बाहों में भर लिया


जयसिंह - कनिका मैं कब से तुम्हारी प्यारी सी फुद्दि के लिए तरस रहा था बेटी

कनिका: (अपने होंठो को जयसिंह के होंठो के तरफ बढ़ाते हुए) सच….पापा.... .कनिका ने जयसिंह की आँखो में झाँकते हुए कहा, और फिर अपने होंठो को जयसिंह के होंठो से लगा दिया

कनिका की ये बात सुनते ही, जयसिंह ने टीशर्ट के ऊपर से ही कनिका की चुचि को मसल दिया…कनिका तो जैसे पागल हो गई….उसने पागलो की तरह जयसिंह के होंठो को चूसना शुरू कर दिया…जयसिंह भी उसके होंठो पर टूट पड़ा….दोनो के होंठो में मानो जैसे कोई जंग छिड़ गई हो…

दोनो पागलो की तरह एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे…कनिका के मुँह से उंह उंह की आवाज़ें आ रही थी…जब दोनो का साँस लेना मुस्किल हो गया था, तो कनिका ने अपने होंठो को जयसिंह के होंठो से अलग किया…और फिर अपनी अधखुली नशीली आँखों से जयसिंह की आँखो में झाँकते हुए बोली..

कनिका - वाह पापाआआआ.... आप तो एक्सपर्ट हो पूरे

जयसिंह - वो तो मैं हूँ

कनिका अब कोई बात करके समय नही गवाना चाहती थी….वो फिर से जयसिंह के होंठो को चूसने लगी. इस बार उसने कुछ देर जयसिंह होंठो को चूसने के बाद, अपने होंठो को अलग कर दिया….और जयसिंह के सर को अपनी गर्दन पर झुकाते हुए बोली.

कनिका: पापा मुझे प्यार करो ना…मुझे किस करो. मेरे बदन के हर हिस्से को चुमो, चाटो….खा जाओ मुझे….

जयसिंह जैसे ही कनिका के ऊपर आया…कनिका ने अपनी टाँगे खोल ली, जिससे जयसिंह की टाँगें उसकी जाँघो के दरमियाँ आ गई…और उसका तना हुआ लंड उसके लोअर में से कनिका की स्कर्ट के ऊपर से उसकी चूत से जा टकराया..

"आह पापाआआआ उंह “ कनिका अपनी स्कर्ट के ऊपर से ही जयसिंह के लंड को अपनी चूत पर महसूस करते हुए सिसक उठी….

उसने अपनी टाँगो को कैंची की तरह जयसिंह की कमर पर लपेट लिया…जयसिंग ने भी उसके मम्मो को मसलते हुए अपने होंठो को उसकी सुरहीदार गर्दन पर लगा दिया….और उसके गर्दन को चाटने लगा…..कनिका मस्ती में फिर से सिसक उठी, उसने जयसिंह के सर के इर्द गिर्द घेरा बना कर उससे अपने से और चिपका लिया….

कनिका- ओह्ह्ह पापा हां खा जा मुझे आज पूरा का पूरा आहह…सीईइ पापा आज मेरी आग को बुझा दो पापाआआआ प्लीज़….

जयसिंह भी अब पूरी तरह मस्त होकर उसकी चुचियों को मसलते हुए, उसके गर्दन को चूम रहा था….और कनिका उसके सर को सहला रही थी…और बार बार अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा कर अपनी चूत को स्कर्ट के ऊपर से ही, जयसिंह के लंड पर दबा रही थी….

"ओह्ह्ह पापा आहह और ज़ोर से दबाओ ना मेरे मम्मे अह्ह्ह अह्ह्ह्ह…" मनिका सिसकी

फिर जयसिंह उसकी गर्दन को चूमता हुआ नीचे की ओर आने लगा….और उसके टीशर्ट से बाहर झाँक रहे मम्मो के ऊपरी हिस्से को अपने होंठो में भर कर चूसने के कोशिश करने लगा…

"आह हां चुस्ससो अह्ह्ह्ह पापा आह” ये कहते हुए, कनिका ने अपने हाथो को जयसिंह के सर से हटाया, और फिर अपने दोनो हाथों को नीचे ले जाकार अपनी टीशर्ट को पकड़ कर ऊपर करने लगी….ये देख जयसिंह जो कि अपना सारा वजन कनिका के ऊपर डाले लेटा हुआ था, वो अपने घुटनो के बल कनिका के जाँघो के बीच में बैठ गया….


कनिका ने अपनी टीशर्ट को पकड़ कर ऊपर करते हुए उतार दिया….और फिर बेड पर बैठते हुए अपनी ब्रा के हुक्स खोल कर उसे भी जिस्म से अलग कर दिया….ब्रा को अपने बदन से अलग करने के बाद, उसने जयसिंह की ओर देखा, जो उसकी छोटी छतों अधपकी चुचियों को खा जाने वाली नज़रो से देख रहा था.

" ये आपको बहुत पसन्द है ना ?" कनिका ने मुस्कुराते हुए जयसिंह की ओर देखकर कहा, जयसिंह ने भी हां में सर हिला दिया

जयसिंह का लंड अब पूरी तरह तन गया था…जो अब सीधा कनिका की चूत की फांको के ठीक ऊपर था…..

कनिका ने फिर से उन्हे बाहों में भरते हुए, उनके सर को अपनी चुचियों पर दबा दिया…

"आह पापा चूसो ईससी अहह” जयसिंह भी पागलो की तरह कनिका की चुचियों पर टूट पड़ा….और उसकी एक चुचि को मुँह में भर कर उसके अंगूर के दाने के साइज़ के निप्पल को अपनी ज़ुबान से दबा -2 कर चूसने लगा…. कनिका ने उसके सर को फिर से सहलाना शुरू कर दिया…..

कनिका: आह चुस्स्स्स लो आह पापा खा जा मेरे मम्मो को अहह उंह सीईईईई आह हाईए मा ओह हां चुस्स्स्स्स पापा और ज़ोर ज़ोर सी से चूसो

कनिका की आवाज़ में अब मदहोशी साफ झलक रही थी….उसका पूरा बदन उतेजना के कारण काँप रहा था…उसके गाल लाल होकर दिखने लगे…फिर कनिका को अपनी चूत की फांको पर जयसिंह के लंड का गरम सुपडा रगड़ ख़ाता हुआ महसूस हुआ. कनिका एक दम से सिसक उठी, उसने जयसिंह के सर को दोनो हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाया, उसका निपल खींचता हुआ जयसिंह के मुँह से पक की आवाज़ से बाहर आ गया….

कनिका: (मस्ती में सिसकते हुए) हाय कितने जालिम हो आप….

कनिका की आँखें अब वासना के नशे में डूबती हुई बंद हुई जा रही थी, उसने अपनी नशीली अध खुली आँखों से एक बार जयसिंह की तरफ देखा, फिर उसके होंठो से अपने होंठ सटा दिए, जयसिंह ने भी कनिका के नीचे वाले होंठ को अपने होंठो में दबा-2 कर चूसना शुरू कर दिया….

"उंह अहह उंघह" कनिका घुटि आवाज़ में सिसक रही थी….

उसने अपना एक हाथ नीचे लेजाकार जयसिंह के लंड पर रखा, और उसे अपनी मुट्ठी में भर लिया, जयसिंह के बदन में तेज सरसराहट दौड़ गई, कनिका ने अपने होंठो को जयसिंह के होंठो से अलग किया और अपनी टाँगो को फेला कर घुटनो से मोड़ कर ऊपर उठा लिया, जयसिंह तो जैसे इस पल का इंतजार में था….वो अपने घुटनो के बल कनिका की जाँघो के बीच में आ गया, जैसे ही उसकी नज़र कनिका की फूली हुई चूत पर पड़ी, उसका लंड फिर से झटके खाने लगा, जो उस वक़्त कनिका के हाथ में था, कनिका जयसिंह के लंड की फुलति नसों को अपने हाथ में सॉफ महसूस कर रही थी…..

उसने जयसिंह के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर दबाया, तो जयसिंह के लंड का सुपडा उसकी चूत की फांको को फेलाता हुआ, छेद पर जा लगा, कनिका की कुँवारी चूत की फाँकें जयसिंह के लंड के सुपाडे के चारो तरफ फैेलाते हुए कस गई, अपनी चूत के छेद पर जयसिंह के लंड का गरम सुपडा महसूस करते ही उसके बदन में मानो हज़ारो वॉट की बिजली कोंध गई हो, उसका पूरा बदन थरथरा गया….
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01-02-2020, 01:19 PM,
#68
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
उसने जयसिंह के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर दबाया, तो जयसिंह के लंड का सुपडा उसकी चूत की फांको को फेलाता हुआ, छेद पर जा लगा, कनिका की कुँवारी चूत की फाँकें जयसिंह के लंड के सुपाडे के चारो तरफ फैेलाते हुए कस गई, अपनी चूत के छेद पर जयसिंह के लंड का गरम सुपडा महसूस करते ही उसके बदन में मानो हज़ारो वॉट की बिजली कोंध गई हो, उसका पूरा बदन थरथरा गया….

कनिका की चूत उसकी चूत से निकल रहे कामरस से एक दम गीली हो चुकी थी, कनिका ने अपनी आँखो को बड़ी मुस्किल से खोल कर जयसिंह की तरफ देखा, और फिर काँपती आवाज़ में बोली…

कनिका: पापा धीरे-धीरे ही अंदर करना, मैं ये सब पहली बार कर रही हूँ, इसलिए मुझे दर्द होगा, पर आप चिंता मत करना , चाहे मुझे कितना भी दर्द हो, आप अपना लंड मेरी फुद्दि में पूरा घुसाना

अब जयसिंह ने धीरे-2 अपने लंड के सुपाडे को कनिका की चूत के छेद पर दोबारा दबाना शुरू किया, जैसे ही उसके लंड का सुपडा कनिका की गीली चूत के छेद में थोड़ा सा घुसा, कनिका एक दम सिसक उठी, जयसिंह के लंड का सुपाडा कनिका की चूत की सील पर जाकर अटक गया, जयसिंह भी इस रुकावट को सॉफ महसूस कर पा रहा था….

कनिका की चूत की झिल्ली, जयसिंह के लंड के सुपाड़े से बुरी तरह अंदर को खिच गई, जिसके कारण कनिका के बदन में दर्द की एक तेज लहर दौड़ गई, उसके चेहरे पर उसके दर्द का साफ पता चल रहा था

जयसिंह: क्या हुआ बेटी ? ज्यादा दर्द हो रहा है क्या ?

कनिका: आहह हां पापा…दर्द हो रहा है…..


जयसिंह: बाहर निकाल लूँ…..

कनिका: नही पापा बाहर मत निकालना….ये दर्द तो हर लड़की को जिंदगी में एक ना एक बार तो सहन करना ही पड़ता है….पापा आप बस ज़ोर से घस्सा मारो….और एक ही बार मे मेरी फुद्दी फाड़ दो

जयसिंह: अगर तुम्हे दर्द हुआ तो ?

कनिका: मैं सह लूँगी……आप मारो न धक्का

जयसिंह ने अपनी पूरी ताक़त अपनी गान्ड में जमा की, और अपने आप को अगला शाट मारने के लिए तैयार करने लगा, कनिका ने अपने दोनो हाथों से जयसिंह के बाजुओं को कस के पकड़ लिया, और अपनी टाँगों को पूरा फैला लिया..

कनिका - पापा…पापा फाड़ दो अब…..

जयसिंह ने कुछ पलो के लिए कनिका के चेहरे की तरफ देखा, जो अपनी आँखें बंद किए हुए लेटी हुई थी, उसने अपने होंठो को दांतो में दबा रखा था. जैसे वो अपने आप को उस दर्द के लिए तैयार कर रही हो, उसके माथे पर पसीने के बूंदे उभर आई थी, जयसिंह ने एक गहरी साँस ली, और फिर अपनी पूरी ताक़त के साथ एक ज़ोर दार धक्का मारा



जयसिंह के लंड का सुपाडा कनिका की चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया, जयसिंह का आधे से ज़्यादा लंड एक ही बार मे अंदर जा चुका था…

" हाए मम्मी मर गई हाईए अहह पापाआआआ बहुत दर्द हो रहा है….” कनिका छटपटाते हुए, अपने सर को इधर उधर पटक रही थी, उसे अपनी चूत में दर्द की तेज लहर दौड़ती हुई महसूस हो रही थी….

कनिका के इस तरह से दर्द के कारण बिलबिलाने से जयसिंह भी घबरा गया, उसने कनिका की ओर देखा, उसकी बंद आँखो से आँसू बह कर उसके गालो पर आ रहे थे

"बेटी मैं बाहर निकाल लेता हूँ" जयसिंह ने कनिका की ओर देखते हुए कहा….

कनिका: (अपनी आँखो को खोलते हुए) नही नही पापा बाहर मत निकालना…पूरा अंदर कर दो….मेरी फिकर मत करो…..

जयसिंह: पर बेटी…

कनिका: मैंने कहा ना मेरी परवाह मत करो….आप अपना लंड पूरा मेरी फुद्दि में डाल दो…..

जयसिंह ने अपने लंड की तरफ देखा, जो कनिका की टाइट चूत के छेद में घुस कर फँसा हुआ था, और फिर उसने एक बार फिर से पूरी ताक़त के साथ झटका मारा, इस बार उसके लंड का सुपाडा उसकी चूत की दीवारो को फैलाता हुआ पूरा का पूरा अंदर जा घुसा



"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…पापा…….." कनिका ने दर्द से छटपटाते हुए अपने हाथों से जयसिंह के बाजुओ को इतनी कस के पकड़ा कि उसके नाख़ून जयसिंह के बाजुओ में गढ़ने लगे, जयसिंह को अपने लंड के इर्द गिर्द कनिका की टाइट चूत की दीवारे कसी हुई महसूस हो रही थी, उसके लंड में तेज गुदगुदी सी होने लगी,

दोनो थोड़ी देर वैसे ही लेटे रहे, जयसिंह अब धक्के लगाने को उतावला हो रहा था, पर कनिका ने उसकी कमर में अपनी टाँगो को लपेट रखा था, जिसकी वजह से जयसिंह हिल भी नही पा रहा था, कुछ लम्हे दोनो यूँ ही लेटे रहे, फिर धीरे-धीरे कनिका का दर्द कुछ कम होने लगा, और उसे अपनी चूत में अजीब सी सरसराहट होने लगी, अब उसे मज़ा आने लगा था, और उसने अपनी टाँगो को जो कि उसने जयसिंह की कमर पर कस रखी थी, को ढीला कर दिया, जैसे ही जयसिंह की कमर पर कनिका की टाँगों की पकड़ ढीली हुई, जयसिंह ने अपना आधे से ज़्यादा लंड एक ही बार में कनिका की चूत से बाहर खींचा, और फिर से एक झटके के साथ कनिका की चूत में पेल दिया,
धक्का इतना जबरदस्त था कि कनिका का पूरा बदन हिल गया

"आह शीईइ पापा उंह धीरे उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽ" कनिका ने फिर से अपने पैरो को जयसिंह के चुतड़ों के ऊपर रख कर उसे अपनी तरफ दबा लिया

जब उसे अपनी चूत की दीवार पर जयसिंह के लंड के सुपाडे की रगड़ महसूस हुई तो वो एक दम से मस्त हो गई, फिर थोड़ी देर रुकने के बाद कनिका ने जयसिंह को धीरे से कहा

"पापा अब धीरे से बाहर निकालो…मुझे कुछ देखना है" ये कहते हुए उसने फिर से अपने पैरो की पकड़ ढीली की और जयसिंह ने घुटनो के बल बैठते हुए धीरे-2 अपने लंड को बाहर निकालना शुरू किया, फिर से वही मज़े की लहर कनिका के रोम-रोम में दौड़ गई, उसे जयसिंह के लंड का सुपाडा अपनी चूत के दीवारो पर रगड़ ख़ाता हुआ सॉफ महसूस हो रहा था

"ओह्ह पापा मेरी फुद्दि आह आह बहुत मज़ा आ रहा है..ओह्ह उम्ह्ह." कनिका बोली

जयसिंह ने जैसे ही अपना लंड कनिका की चूत से बाहर निकाला, तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गई, उसका लंड खून और कनिका के चूत से निकल रहे कामरस से सना हुआ था

मनिका ने अपने पास रखे एक कपड़े को अपनी चूत पर दबा दिया…ताकि उसमे से खून निकल कर, बेड शीट पर ना गिरे…..


फिर उसने अपनी चूत को उस कपड़े से रगड़ कर साफ किया, और फिर जयसिंह की तरफ देखा, जो हैरत से उसकी तरफ देख रहा था

कनिका: क्या हुआ पापा आप ऐसे क्या देख रहे हो ?

जयसिंह: बेटी तुम तो काफी समझदार हो

"हाँ जानती हूँ" कनिका खिलखिलाकर बोली

फिर कनिका उठ कर बैठी और जयसिंह के लंड को हाथ में लेकर उसे कपड़े से अच्छे से साफ किया, फिर उस कपड़े को साइड में रखते हुए, बेड पर लेट गई , कनिका ने अपनी बाहों को खोल कर जयसिंह को आने का इशारा किया

जयसिंह उसके ऊपर झुक गया, कनिका ने उसे अपनी बाहों में कस लिया और उसके आँखो में झाँकते हुए बोली "आइ लव यू पापा" और फिर दोनो के होंठ फिर से आपस में गुथम गुत्था हो गए, फिर से वही उम्ह्ह आहह उन्घ्ह की आवाज़े उनके मुँह से आने लगी

जयसिंह का लंड अब उसकी चूत की फांको पर रगड़ खा रहा था, जयसिंह भी मस्ती में उसके होंठो को चूस्ता हुआ उसके निपल्स को अपनी उंगलियों से भिचते हुए उसकी चुचियों को दबा रहा था, कनिका की चूत में कुलबुली सी होने लगी, वो नीचे से अपनी गान्ड को हिलाते हुए जयसिंह के लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट करने की कोशिश कर रही थी

थोड़ी देर के बाद अचानक से जयसिंह के लंड का सुपाडा कनिका की चूत के छेद पर अपने आप जा लगा, कनिका का पूरा बदन एक दम से थरथरा गया, उसने अपने होंठो को जयसिंह के होंठो से अलग किया और फिर जयसिंह की आँखो में देखते हुए मुस्कुराने लगी,फिर उसने अपने आँखे शरमा कर बंद कर ली, उसके होंठो पर मुस्कान फेली हुई थी….

जयसिंह ने भी बिना देर किए, धीरे-2 अपने लंड के सुपाडे को कनिका की चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया….

"उंह पापा सीईईईई अहह बहुत माजा आ रहा है….." कनिका बोली

जयसिंह के लंड का सुपाडा कनिका की चूत के छेद और दीवारो को फेलाकर रगड़ ख़ाता हुआ अंदर बढ़ने लगा, कनिका के बदन में मस्ती के लहरे उमड़ रही थी, उसका पूरा बदन उतेजना के कारण काँप रहा था, उसकी चूत की दीवारे जयसिंह के लंड को अपने अंदर कस कर निचोड़ रही थी


धीरे-2 जयसिंह का पूरा लंड कनिका की चूत में समा गया, कनिका ने सिसकते हुए जयसिंह को अपनी बाहों में कस लिया और उसकी टी-शर्ट ऊपर उठा कर उसकी पीठ को अपने हाथो से सहलाने लगी

"आह पापा करो ना उंह आ सीईईई आह पापा मुझे बहुत मज़ा आ रहा है….”

जयसिंह ने कनिका के फेस को अपनी तरफ घुमाया, और फिर अपने होंठो को उसके होंठो पर रख दिया, कनिका ने अपने होंठो को खोल दिया, जयसिंह ने थोड़ी देर कनिका के होंठो को चूसा, और फिर अपने होंठो को हटाते हुए, उसकी जाँघो के बीच में घुटनो के बल बैठते हुए, अपनी पोज़िशन सेट की, और अपने लंड को धीरे-2 आगे पीछे करने लगा


जयसिंह के लंड के सुपाडे को कनिका अपनी चूत की दीवारो पर महसूस करके एक दम मस्त हो गई, और अपनी आँखें बंद किए हुए अपनी पहली चुदाई का मज़ा लेने लगी

"अह्ह्ह्ह पापा हाईए मेरे फुद्दि आह मारो और ज़ोर से मार आह फाड़ दो अह्ह्ह्ह ऑश”

धीरे-2 जयसिंह अपने धक्कों की रफतार को बढ़ाने लगा, पूरे रूम में कनिका की सिसकारियो और बेड के हिलने से चर-2 की आवाज़ गूंजने लगी, कनिका पूरी तरह मस्त हो चुकी थी, कनिका की चूत उसके काम रस से भीग चुकी थी, जिससे जयसिंह का लंड चिकना होकर कनिका की चूत के अंदर बाहर होने लगा था, कनिका भी अपनी गान्ड को धीरे-2 ऊपर की ओर उछाल कर चुदवा रही थी….

"हाई ओईए अहह मेरी फुद्दि अह्ह्ह्ह पापा बहुत मज़ा आ रहा है.आह चोदो मुझे अह्ह्ह्ह और तेज करो सही…मैं झड़ने वाली हूँ आह उहह उहह उंघह ह पापा ममैं गाईए अहह…." कनिका धीरे धीरे आहे भर रही थी

जयसिंह के जबरदस्त धक्को ने कुछ ही मिनट में कनिका की चूत को पानी -2 कर दिया था, उसका पूरा बदन रह-2 कर झटके खा रहा था, जयसिंह अभी भी लगातार अपने लंड को बाहर निकाल-2 कर कनिका की चूत में पेल रहा था, कनिका झड़ने के बाद एक दम मस्त हो गई थी, उसकी चूत से इतना पानी निकाला था कि, जयसिंह का लंड पूरा गीला हो गया था

अब कनिका अपनी आँखें बंद किए हुए लेटी थी,और लंबी -2 साँसे ले रही थी, कनिका ने अपनी आँखें खोल कर जयसिंह की तरफ देखा, जो पसीने से तरबतर हो चुका था, और अभी भी तेज़ी से धक्के लगा रहा था,अब रूम में सिर्फ़ बेड के चर्मार्ने से चू-2 की आवाज़ आ रही थी….जैसे -2 जयसिंह झटके मारता, बेड हिलता हुआ हल्की हल्की चू-2 की आवाज़ करता, कनिका बेड के हिलने की आवाज़ सुन कर शरमा गई, और अपने फेस को साइड में घुमा कर मुस्कराने लगी…

जयसिंह: (अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए) क्या हुआ…?

कनिका: (मुस्कुराते हुए) कुछ नही…..

जयसिंह: फिर मेरी तरफ देखो ना…

कनिका: नही मुझे शरम आती है…..
जयसिंह ने अपने दोनो हाथों से कनिका के चेहरे को अपनी तरफ घुमाया, पर कनिका ने पहले ही अपनी आँखे बंद कर ली, उसके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान फेली हुई थी, जयसिंह ने कनिका के होंठो को अपने होंठो में लेकर चुसते हुए अपने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी और फिर कुछ ही पलो में उसके लड में तेज सुरसुरी हुई, उसका लंड कनिका की चूत में झटके खाने लगा, और फिर वो कनिका के ऊपर निढाल हो कर गिर पडा, कनिका और जयसिंह दोनों एक साथ झड़ कर शांत हो चुके थे, ओर फिर गहरी नींद में सो गए
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01-02-2020, 01:19 PM,
#69
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
रात को दोनों बाप बेटी अपनी इच्छाओं से तृप्त हो सम्पूर्ण संतुष्टि से नींद के आगोश में चले गए थे, जयसिंग के लिए तो ये किसी सपने के सच होने जैसा था, कहाँ तो कुछ दिन पहले वो सिर्फ और सिर्फ मनिका के बारे में ही सोच पाता था, और अब तो उसके हाथ मे मनिका और कनिका के रूप में दो बेशकीमती खजाने थे जो खुद उस पर लूटने को तैयार पड़े थे, जयसिंग को अपनी किस्मत पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था, मनिका और कनिका को वो जब चाहे चोद सकता था, पर अब उसकी इच्छा थोड़ी और बढ़ गयी थी, उसके मन मे दोनों को एक साथ चोदन कि इच्छा घर करने लगी थी, पर उसे ये भी पता था कि ये बहुत मुश्किल है, वो रात भर इसी उधेड़बुन में लगा था और हारकर सो गया था,

सुबह के लगभग 5.30 बजने वाले थे, दरवाज़े पर खटपट की हल्की सी आवाज़ सुनकर जयसिंह की नींद टूटी गयी, उसे पता था कि इस समय मधु ही हो सकती है, इसलिए वो उठकर दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगा पर तभी कुछ सोचकर उसके कदम एकाएक वही रुक गए, उसके हाथ पांव फूलने लगे, क्योंकि दरवाज़ा खोलने के चक्कर मे वो भूल गया था कि वो तो बिल्कुल नंगा था और तो और कनिका भी बिल्कुल नंगी मस्त नींद की गहराइयों में डूबी पड़ी थी, उनका बिस्तर सुहागरात के बाद पड़े बिस्तर की तरह उथल पुथल था, जयसिंह के कदम वही के वही ठिठक गए,


उसके होश फाख्ता होने लगे, पर उसने कोशिश करके अपने आपको सम्भाला ओर तुरंत ज़मीन पर पड़े अपने पजामें को अपने पैरों में फंसाया, साथ ही ऊपर से टीशर्ट भी डाल ली,

फिर जयसिंह ने बिस्तर पर बेसुध लेटी कनिका के नंगे बदन को पास पड़ी चद्दर से ढक दिया

अब जयसिंह दरवाज़ा खोलने के लिए आगे बढ़ा पर ज्यों ही उसने दरवाज़ा खोला उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, सामने उसकी प्यारी सी बेटी मनिका नाईट ड्रेस में खड़ी थी, मनिका को इस समय वहां देखकर जयसिंह के आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा और साथ ही साथ उसके मन मे एक अजीब सा डर भी बैठ गया

"अगर मनिका ने कनिका को इस हालत में देख लिया तो, नही नही मैं उसे नही देखने दूंगा, पर अगर इसे शक हो गया तो, कहीं बनी बनाई बात बिगड़ न जाये, कहि मनिका मुझसे चुदवाना बन्द न कर दे, कितनी मेहनत के बाद ये मेरे हाथ आयी है, मैं इसे ऐसे ही नही जाने दे सकता , मैं मनिका की प्यारी सी चुत को अपने हाथों से नही जाने दूंगा" जयसिंग इन्ही ख्यालो में खोया था कि उसके कानो में मनिका की मधुर आवाज खनकने लगी

"कहाँ खो गए पापा, मुझे अंदर लीजिये ना" मनिका को जयसिंह को हिलाते हुए बोली

"ओह आई एम सॉरी बेटा, वो मेरा ध्यान कहीं ओर था" जयसिंह ने बोलते हुए मनिका को कमरे के अंदर ले लिया
"पर तुम इस समय यहाँ क्या कर रही हो, ओर इतनी जल्दी कैसे उठ गई" जयसिंह ने अंदर घुसते ही मनीका पर अपना सवाल दागा

"अरे पापा मैं तो बस यूं ही उठ गई, वैसे भी कल रात आपके बगैर मुझे नींद ही कहाँ आयी , इसलिए आंखे खुल गयी जल्दी, और उठते ही बस आपसे मिलने की इच्छा हुई, सो यहां आ गई" मनिका ने एक सांस में सब कुछ कह दिया

दरअसल मनिका की चुत रात से ही जयसिंह के लंड के लिए कुलबुला रही थी, और जब सुबह उसकी आंखें खुल गयी तो उसे अब ओर बर्दास्त करना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए किसी के भी उठने से पहले ही वो 5.30 बजे ही जयसिंह के कमरे की तरफ चल पड़ी, बाकी घरवाले वैसे भी 6 बजे के बाद ही उठते थे

मनिका की बात सुनकर जयसिंह को उस पर प्यार आ गया, उसे तो यकीन ही नही हो रहा था कि जो मनिका कुछ दिनों पहले उसकी शक्ल भी देखना नही चाहती थी वो आज उसके लिए इतनी तड़प रही है, उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई,

जयसिंह के लंड में अब हल्का सा तनाव आना शुरू हो गया था, अब उसने वक्त गंवाना बिल्कुल भी उचित नही समझा और बिना किसी चेतावनी के सीधे दरवाज़े के पास ही खड़ी मनिका के होंठो पर हमला कर दिया

इस अचानक हमले से मनिका सम्भल नही पायी और नीचे की तरफ गिरने को हुई पर जयसिंह ने अपने हाथ मनिका की गांड पर सटाकर उसे अपनी बाहों में भर लिया और फिर जोर जोर से उसके होंठ चूसने लगा, मनीका भी अब पूरे जोश में आ गयी थी, उसने भी अब जयसिंह के हमले का जवाब देना शुरू कर दिया और भर भरकर अपने गुलाबी होठो से जयसिंग के होठो को चूमने लगी


धीरे धीरे उनका ये चुम्बन और ज्यादा गहराता जा रहा था, मनिका तो सुध बुध खोकर इस चुम्बन का मजा लेने में डूबी थी, पर जयसिंह को ये पता था कि उनके पास ज्यादा से ज्यादा 20 या 25 मिनट है, इतने समय मे वो कनिका के रहते मनीका को चोद तो नही सकता, पर उससे अपना लंड तो चुसवा ही सकता है, ये सोचते ही उसके लंड ने एक जोरदार तुनकी मारी

जयसिंग ने तुरंत मनिका के एक हाथ को पकड़कर अपने फ़ंफ़नाते लंड पर रख दिया, मनिका भी किसी समझदार शिष्य की भांति उसके लंड को पाजामे के ऊपर से ही मसलने लगी , जयसिंह और मनिका की हवस अब सारी सीमा लांघने को तैयार ओर बेकरार थी, परन्तु जयसिंह को कनिका का भी थोड़ा ध्यान रखना जरूरी था

इधर मनिका धीरे धीरे जयसिंह के पाजामे को नीचे खिसकाने लगी, उसे ये देखकर और भी ज्यादा खुसी हुई कि जयसिंह ने पाजामे के नीचे कुछ नही पहना था क्योंकि वो खुद भी सिर्फ अपना लोअर ही पहन कर आई थी और अपनी कच्छी पहले ही कमरे में उतार आयी थी, अब मनिका ने जयसिंह के लंड को अपने कोमल हाथों से पकड़ लिया, जयसिंह तो मनिका के स्पर्श मात्र से ही और भी ज्यादा उत्तेजित हो उठा,

मनिका को जयसिंह के लंड पर कुछ लगा हुआ महसूस हुआ पर उसने ज्यादा ध्यान न देते हुए उसके लंड को सहलाना जारी रखा
अब मनिका ने जयसिंह के लंड को थाम दुसरे हाथ से उसके सुपाडे को बहुत कोमलता से सहलाया ,
“आआह्ह्ह्ह... मनिका" जयसिंह के मुंह से एक हल्की सिसकारी निकल गयी

मनिका ने एक बार लंड की त्वचा को देखा और फिर जयसिंह के चेहरे की तरफ देखते हुए नीचे झुककर अपने नर्म मुलायम होंठ उसके खड़े लंड के सुपाडे पर रख दिए

“उंहहहहह्ह्ह्हह” जयसिंह धीमे से आहे भरने लगा

मनिका के नाज़ुक होंठ बहुत ही कोमलता से लंड की नर्म त्वचा को जगह जगह चूम रहे थे , धिमे धीमे लंड की कोमल त्वचा पर कुछ पुच पुच करती वो चुम्बन लेने लगी, जयसिंह को अपनी बेटी के नाज़ुक होंठों का स्पर्श उस संवेंदनशील जगह पर बहुत ही प्यारा महसूस हो रहा था

“हाँ .......बेटी....... बहुत अच्छा लग रहा है” जयसिंह की बात सुन मनिका के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गयी, जयसिंह की बात से थोडा उत्साहित होकर मनिका और भी तेज़ी से लंड के सुपाडे को चूमने लगी, कुछ ही पलों में जयसिंह अपनी बेटी के होंठों के स्पर्श के उस सुखद एहसास में डूबने लगा,



“आआहह... बेटी... प्लीज बेटी ऐसे ही करते रहो” मनिका तो जैसे यही सुनना चाहती थी , उसने लंड को ऊपर उठाया और जड़ से लेकर टोपे तक लंड पर चुम्बनों की बरसात कर दी , फिर उसके होंठ खुले और उसकी जीभ बाहर आई , उसने जीभ की नोंक से लंड की त्वचा को सहलाया , गीली नर्म जीभ का एहसास होते ही जयसिंह के मुख से खुद ब खुद सिसकारी निकल गयी, मनिका की जीभ उस सिसकी को सुन और भी गति से लंड की निचली त्वचा पर रेंगने लगी, परन्तु उसे थोड़ा सा अजीब सा भी महसूस हो रहा था, उसे लग रहा था कि मानो जयसिंग के लंड पर कोई द्रव लगा था जो बाद में सुख गया था और उसका अजीब सा पर अच्छा स्वाद मनिका को अपनी जीभ पर महसूस हो रहा था, पर उसने इसकी ओर ज्यादा ध्यान नही दिया और लंड चुसाई में लगी रही

“अह्ह्हह्ह्ह्ह ............बेटी बहुत अच्छा लग रहा है.. बहुत........बहुत मज़ा आ रहा है” जयसिंह के मुख से लम्बी लम्बी सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी थी, अपने पापा के मुख से आनंदमई सिसकी सुन मनिका के होंठों की मुस्कान उसके पूरे चेहरे पर फ़ैल गयी, उसकी जीभ अब सिर्फ सुपाडे पर ही नहीं बल्कि उसके आस पास तक घूम रही थी , मनिका बेपरवाह अपनी जीभ लंड की जड़ से लेकर सिरे तक घुमा रही थी
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01-02-2020, 01:20 PM,
#70
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह के लिए तो ये एक जबरदस्त मज़ा था , इस मज़े से उसकी हालत खराब होती जा रही थी , पूरे जिस्म में गर्मी सी महसूस होने लगी थी , उसके लंड का तनाव पल पल बढ़ता ही जा रहा था ,


जैसे जैसे लंड का आकार बढ़ता जा रहा था, वैसे वैसे मनिका की जीभ की स्पीड बढती जा रही थी , लंड का कठोर रूप अब उसके सामने था और वो रूप उसके तन बदन में आग लगा रहा था , उसके पूरे बदन में होने वाली झुरझुरी उसकी हवस को बयां कर रही थी , उसका अंग अंग फड़कने लगा था

उसके नुकीले निप्पल कड़े होकर उसकी झीनी सी टी शर्ट के ऊपर से अपना एहसास देने लगे थे, और ये साफ महसूस हो रहा था कि उसने टीशर्ट के नीचे कुछ नही पहना, धीरे धीरे उसकी चूत में रस बहना चालू हो चूका था , वो अपने आप पर काबू खोती जा रही थी , उसकी सांसें गहरी होती जा रही थी और उसका सीना उसकी साँसों के साथ तेज़ी से ऊपर निचे हो रहा था , बदन में कम्कम्पी सी दौड़ रही थी ,

इधर जयसिंह का लंड पूरा कड़क हो चूका था, अब मनिका ने और बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था और उसने अगले ही पल झट से जयसिंह के लंड के सुपाडे को अपने रसीले होंठों में भर लिया और अपनी जीभ उस पर रगडते हुए उसे जोर जोर से चूसने लगी ,जयसिंह के आनंद में कई गुना बढ़ोतरी हो गई थी, अपने पापा के मुख से निकलती ‘अह्ह्ह्ह- अह्ह्ह्ह’ ‘उफ़’ ने मनिका को और भी उतेजित कर दिया , धीरे धीरे उसके होंठ लंड के ऊपर की और जाने लगे , जैसे जैसे मनिका के होंठ ऊपर को बढ़ रहे थे, दोनों बाप बेटी की साँसे और सिसकियाँ गहरी होती जा रही थीं ,
मनिका के होंठ अब सुपाड़े के नीचे वाले हिस्से की भी सवारी करना शुरू कर चुके थे,
अगले ही पल वो हुआ जिसकी आशा में जयसिंह और मनिका दोनों का बदन कांप रहा था, बुखार की तरह तप रहा था , मनिका के होंठ अपने पापा के लंड के चारों और बुरी तरह कस गए , और जयसिंह के लंड का आधे से ज्यादा हिस्सा मनिका की गले की गहराइयों में ओझल हो चुका था,


जयसिंह को लगा शायद वो गिर जाएगा और उसके बदन ने एक ज़ोरदार झटका खाया ,


“आहह्ह्ह... म..उफफ्फ्फ्फ़” जयसिंह सुपाड़े की अति संवेदनशील त्वचा पर अपनी बेटी की खुरदरी जीभ की रगड़ से कराहने लगा , उसके हाथ ऊपर उठे और अपनी बेटी के सर पर कस गए ,

मनिका तो जैसे पूरे जोश में आ गई , उसने होंठ कस कर अपनी जीभ तेज़ी से चलानी शुरू कर दी , उसका एक हाथ अपने पापा की कमर पर चला गया और दुसरे से वो उनके अंडकोष सहलाने लगी ,

अब मनिका का मुंह भी लंड पर आगे पीछे होने लगा था , उसके गिले मुख में धीरे धीरे अन्दर बाहर होते लंड ने जयसिंह को जोश दिला दिया , वो अपनी बेटी के सर को थामे अपना लंड उसके मुंह में जोर जोर से आगे पीछे करने लगा , हर शॉट में अब उसका लंड मनिका के गले की गहराइयों को नाप रहा था, और अब जयसिंह तेज़ी से अपने लंड को आगे पीछे करते हुए गहराई तक अपनी बेटी का मुख चोदने लगा , जब जयसिंह का लंड मनिका के गले को टच करता तो उसके मुख से ‘गुन्न्न्न –गुन्न्नन्न’ की आवाज़ निकलती ,
उधर जयसिंह तो जैसे किसी और ही दुनिया में था , आँखें बंद किए वो अपनी बेटी के मुंह में अपना लंड घुसेड़ता जा रहा था ,
मनिका को हालाँकि लंड के इतने तेज़ तेज़ धक्कों से थोड़ी दिक्कत हो रही थी मगर वो हर संभव प्रयास कर रही थी अपने पापा के लंड की ज़बरदस्त चुसाई करने का , उसकी जीभ अन्दर बाहर हो रहे लंड के सुपाड़े को रगडती तो उसके होंठ सुपाड़े से लेकर लंड के मध्य भाग तक लंड को दबाते , लंड अन्दर जाते ही उसके गाल फूल जाते और बाहर आते ही वो पिचकने लगते ,

जल्द ही जयसिंह को अपने अंडकोष दवाब सा बनता महसूस होने लगा , उसे एहसास हो गया वो झड़ने के करीब है , उसने अब अपनी बेटी के मुख को और भी तीव्रता से चोदना शुरू कर दिया , उधर मनिका के लिए अब इस गति से अन्दर बाहर हो रहे लंड को चुसना संभव नही था , वो तो बस अपने होंठो और जीभ के इस्तेमाल से जितना हो सकता लंड को सहलाने की कोशिश कर रही थी ,

खुद वो अपनी टांगें आपस में रगड़ कर उस सनसनाहट को कम करने की कोशिश कर रही थी , जो उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी , चुत से रस निकल निकल कर उसकी पजामी और जांघें गीली कर चुका था ,

तकरीबन 10 मिनट की भीषण चुसाई के बाद अचानक जयसिंह को लगने लगा जैसे उसकी शक्ति का केंद्र बिंदु उसका लंड बन गया है , वो झड़ने के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था , पर वो चाहता था कि उसके पानी की हर एक बूंद मनिका की गले की गहराइयों में उतार जाए, इसलिए अब उसके धक्के और भी ज्यादा आक्रामक होते जा रहे थे,

मनिका को भी ये अहसास होने लगा था था कि अब शायद उसके पापा झड़ने वाले हैं इसलिए उसने अपने आपको पूरी तरह उनके सुपुर्द कर दिया, जयसिंह मनिका के सिर को पकड़कर जोर जोर से अपना लंड उसके मुंह मे घुस रहा था


और फिर अगले ही पल जयसिंह के बदन में एक तेज़ लहार उठी और वो भलभला कर झड़ने लगा, उसके लंड से वीर्य की बौछार होने लगी जो मनिका के गले मे जाकर हसे तृप्त कर रही थी,

मनिका भी एक मझे हुए खिलाड़ी की तरह जयसिंह के पानी की आखिरी बून्द भी पी लेना चाहती थी, जब जयसिंह पूरी तरह झाड़कर शांत हो ज्ञाबतो मनिका उपज ने जीभ की नोंक से सुपाड़े के छेद से निकल रही आखिरी बूँद को भी चाट लिया,


“ .उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह मनिका उम्ह्ह्ह्ह्ह.” जयसिंह लगातार सिसकता ही जा रहा था ,

मनिका की जीभ आखिरी बार पूरे लंड पर घूमने लगी और वो उसे चाट कर साफ़ करने लगी , लंड पूरा साफ़ होने के बाद उसने सुपाड़े को अपने होंठो में एक बार फिर से भरकर चूसा और फिर अपने होंठ उसपे दबाकर एक ज़ोरदार चुम्बन लिया,

दोनों बाप बेटी अब पूरी तरह शांत हो चुके थे, उनका खोया हुए होश अब वापस लौटने लगे था, मनिका ने खड़ी होकर अपने कपड़े ठीक किये और जयसिंह के गालों पर एक पप्पी देकर उन्हें थैंक्स बोलते हुए कमरे से बाहर चली गयी

जयसिंह ने भी अपने बिखरी सांसो को समेटा और लोअर को ऊपर किया, फिर जाकर बेड पर कनिका के साथ सो गया

जयसिंह बेसुध से सोया अपने खूबसूरत सपनो की दुनिया मे सैर कर रहा था, इसके लिए तो एक हाथ मे लड्डू था और एक मे बर्फी, मनिका ओर कनिका के रूप में ऐसा खजाना मिल गया था जिसकी कल्पना मात्र से ही उसके रोम रोम में आनंद की लहर उठ जाती थी, रात को कनिका को कली से फूल बना दिया और सुबह सुबह मनिका के प्यारे मुंह को अपने हलब्बी लंड से भरकर जयसिंग अब चैन की नींद सो रहा था
मनिका भी नीचे जाकर चुपचाप अपने रूम में सो गई, परन्तु एक चीज़ जिससे वो दोनों बेखबर थे, वो ये कि जब वो दोनों आराम से लंड चुसाई के खेल में लगे थे, दो खूबसूरत आंखे बड़ी कौतूहल से उनके इस खेल को निहार रही थी , जी हां ये कनिका थी, जो उनकी आहे सुनकर अपनी गहरी नींद से जग चुकी थी

जब जयसिंह मनिका के मुख को अपने लंड से भर रहा था और बुरी तरह उसके कोमल मुख को चोद रहा था तब मनिका की गन्न गन्न की आवाज़ से कनिका जग चुकी थी, और जब उसने अपनी आँखें खोली तो सामने का नज़ारा देख वो पूरी तरह आश्चर्य चकित रह गयी, जयसिंह मनिका अपने खेल में लगे थे और कनिका उधर अब धीरे धीरे गरम होने लगी थी पर वो इस तरह नंगी उनके खेल को बिगाड़ने नही चाहती थी, वो ये तो जान चुकी थी कि उसके पापा और दीदी का ये खेल काफी समय से चल रहा है तभी तो उसकी दीदी इतनी सुबह सुबह आकर पापा कर लंड को इतनी तल्लीनता से चूस रही है, जल्द ही कनिका की चुत भी इस नज़ारे को देख टेसुए बहाने लगी, एक बार तो उसे लगा कि वो जाकर उनके खेल में शामिल हो जाये और जिस तरह मनिका पापा का लंड चूस रही है वो भी जी भरकर चूसे, परन्तु उसे लगा कि अब शायद उचित समय नही है, पर उसके शैतानी दिमाग मे एक योजना पनपने लगी जिसकी मदद से वो जल्द ही अपने पापा और दीदी के साथ खुलकर इस खेल का आनंद उठा सके,

तकरीबन 7 बजे पूरे घर मे चहल पहल होने लगी थी, सभी लोग उठकर अपने दैनिक क्रियाओं से निवृत हो रहे था, जयसिंह आज बड़ा खुश था, आखिर उसने अपनीं दोनों बेटियों को अपने लंड का गुलाम जो बना लिया था, बीच बीच मे वो नारे छुपाकर मनिका ओर कनिका को आंखों ही आंखों में सेक्सी इशारे भी कर रहा था,
कनिका को हालांकि जयसिंह और मनिका की सच्चाई पता सीगल चुकी थी पर वो कोई भी ऐसा काम नही करना चाहती थी जिससे उन दोनों को शक हो

दोपहर तक जयसिंह, मनिका और कनिका घर जाने को तैयार थे, हितेश मधु के साथ 2 दिन बाद आने वाला था, इसलिए जयसिंह ने मनिका और कनिका को साथ ले जाना ही सही समझा, करीब 1 बजे वो तीनो अपनी गाड़ी से घर की तरफ रवाना हो चुके थे

कार में तीनों लोग बिल्कुल नार्मल रहे, करीब 6 बजे तक वो तीनो घर पहुंच चुके थे,

जयसिंह ने कार पार्क की और फिर अपनी दोनों जवान बेटियों के साथ घर के अंदर आ गया, तीनो ने कुछ देर में ही अपने अपने कमरे में जाकर रेस्ट किया और फिर हल्का शावर लिया

नहाने केे बाद तीनो बड़े फ्रेश फील कर रहे थे, अभी वो हॉल में आकर बैठे ही थे कि बेल की आवाज़ सुनाई दी, मनिका ने जाकर गेट खोल तो सामने उसकी स्कूल की बेस्ट फ्रेंड काव्या खड़ी थी, काव्या को इस टाइम पर वहां देखकर पहले तो उसे सरप्राइज हुआ पर जल्द ही उसने काव्या को गले लगाया और उससे बातो में मशगूल हो गयी

काव्या - अच्छा सुन न मनिका, चल आज कहीं बाहर घूम के आते है, बाहर ही खाना भी कहा लेंगे, क्या बोलती है तू


मनिका भी इतने दिनों बाद काव्या से मिलकर बड़ी खुश थी इसलिए उसने भी मन नही किया, वो जल्दी से अपने रूम में गयी और तैयार होकर अपने पापा से बाहर जाने की परमिशन ली, जयसिंह ने भी मन नही किया और 10 बजे से पहले घर आने के लिए बोल दिया

मनिका और काव्या अपनी अपनी स्कूटी से घूमने के लिए निकल पड़े, इस समय तकरीबन 8 बज रहे थे

इधर कनिका को जब पता चला कि मनिका बाहर गयी है और 10 बजे तक वापस नही आएगी तो उसकी आँखों मे एक अजीब सी चमक आ गयी थी

वो सीधा भागकर अपने पापा के रूम में चली गयी, जयसिंह नहाने के बाद रेस्ट करने के लिए अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था, उसे पता था की अपनी दोनों बेटियों के साथ रहते वो किसी के साथ भी सेक्स नही कर सकता इसलिए वो आराम से अपने बेड पर लेट था, पर जब मनिका अपनी फ्रेंड के साथ बाहर जाने की परमिशन मांगने उसके रूम में आई थी तब उसके चेहरे पर भी मुस्कान फैल गयी थी, उसे भी यकीन हो गया था कि आज की रात सुखी नही निकलेगी

वो बस कुछ देर में कनिका के रूम की तरफ जाने ही वाला था पर उससे पहले ही उसे कनिका अपने रूम में दाखिल होती दिखाई दी, कनिक को देखकर तो उसके सोये लंड ने एक जोरदार अँगड़ाई ली मानो वो कह रहा हो कि बेटा खड़ा हो जा, अब काम करने का वक्त आ गया

जयसिंह के लंड का तनाव उसके पाजामे में अब उ हर बनाने लगा था जो कनिका की आंखों से भी छिपा नही था
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