RE: Incest Kahani माँ बेटी की मज़बूरी
मैं बेड के ऊपर लेट गया, सुशीला आकर मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी।
मैंने मानसी से कहा- जरा अपनी रंडी माँ की चूत चाट!
उसने ऐसा ही किया और अपनी माँ की चूत में जीभ अंदर तक घुसाने लगी. अब मानसी भी गर्म होने लगी थी।
थोड़ी देर बाद सुशीला जोर की सिसकारियां छोड़ने लगी। मैं समझ गया कि मेरी रंडी ताव में है, मैंने मानसी को इशारा किया तो वो वहां से हट गयी।
सुशीला- हट गयी क्यों साली? चूस!
मैं खुश हो गया कि अब सुशीला पूरी रंडी बन चुकी थी, अपनी बेटी से अपनी चूत चुसवाने को भी तैयार थी.
मैंने उसके चूतड़ों पर और दो झापड़ और लगा दिये और बोला- चल रंडी अब मेरे घोड़े की सवारी कर!
वो तो यही चाह रही थी, वो सीधा आकर चढ़ गयी मेरे लंड के ऊपर … उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी। मेरा लंड आधा घुस गया उसकी चूत में और उसके बाद वो आहिस्ता बैठी मेरे लंड के ऊपर सिसकारी छोड़ कर!
मैं- तेरी तो अपनी बेटी से टाइट है। पुजारी ठीक से चोदता नहीं क्या …
वो कुछ नहीं बोली और मेरे लंड पर जोर जोर से कूदने लगी। आहिस्ता आहिस्ता उसकी स्पीड बढ़ रही थी। उसके मुँह से आनन्द भरी चीख निकल रही थी, उसके गोल गोल उरोज हवा में अजीब मादक दृश्य दिखा रहे थे। मैं उसके निप्पलों को पकड़ कर मसलने लगा जिससे वह और गर्म होती जा रही थी.
मानसी भी अपनी मम्मी की चुदाई देख कर गर्म होने लगी थी।
मैं- हाँ … और जोर से उछल साली कुतिया … और अंदर ले रंडी … उछल!
तभी दरवाजे पर ख़ट ख़ट की आवाज़ आई. मैंने उठने की कोशिश की लेकिन सुशीला मेरे ऊपर से हटी ही नहीं और वो मेरे लंड पर उछलती जा रही थी. मैंने फिर कोशिश की उठने की मगर उसने मेरे को दबा लिया और चिल्ला चिल्ला कर उछलने लगी. उसके ऐसे रंडीपने ने मुझे भी घबराहट में डाल दिया.
कौन होगा दरवाजे पर?
मगर वो चुदती ही जा रही थी.
मानसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे … दरवाजा कैसे खोले? अभी तक दरवाजा कई बार खटखटाया जा चुका था.
तभी सुशीला ने एक जोर की सिसकारी छोड़ी जिसकी आवाज पास के दो तीन कमरों तक सुनाई दी होगी.
और इसी के साथ सुशीला झड़ गयी … और साथ में मैं भी उसका यह रूप देख कर!
उसके बाद सुशीला उठकर बाथरूम चली गयी अपने कपड़े उठा कर … मैंने भी अपनी धोती उठाई.
इसके बाद मानसी ने दरवाजा खोला तो वहां डॉक्टर दीपक था मेरा दोस्त!
दीपक- क्या चल रहा था भाई … दूर तक आवाज सुनाई दे रही थी।
मैं- कुछ भी तो नहीं … और तुम इतनी सुबह?
दीपक- मुझसे छुपाने से क्या फायदा? मैं रिपोर्ट लेके आया हूँ।
और उसने मानसी की ओर व्यंग्य भरी नजर से देखा।
मानसी समझ नहीं पाई।
मानसी ने उसे देखा।
मैं- बैठो तो सही यार!
वो वहीं बैठ गया.
कुछ देर के बाद सुशीला आयी बाथरूम से।
मैं- डॉक्टर साहब का शक सही है … तुम्हारी बेटी पेट से है।
यह सुनकर दोनों चौंक गई।
मानसी ज्यादा …
एक बार सुशीला ने मुड़ कर गुस्से से मानसी की तरफ देखा, फिर मेरी तरफ!
मैं- उसके पेट साफ करने में बहुत पैसा लगेंगे लेकिन अगर डॉक्टर साहब को तुम दोनों खुश कर दो तो वो मुफ़्त में साफ कर देंगे।
वो दोनों सब समझ गई … और चुप होकर खड़ी रही।
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