Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
11-05-2018, 02:29 PM,
#30
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
जब तक वे खाना बना रही थीं, तब तक मैंने थोड़ा ऑफ़िस का काम कर लिया. ललित रसोई में उनकी सहायता कर रहा था और गप्पें मार रहा था.

एकाध घंटे बाद खाना खाकर मैं और ललित आकर बेडरूम में आकर शान्ताबाई की राह देखने लगे. मेरे साथ आते वक्त ललित ने शान्ताबाई की ओर देखा तो वे बोलीं "शाम को प्रैक्टिस करवा दूंगी ललिता रानी" और हंस कर उसे आंख मार दी. मुझे बड़ा कुतूहल था कि क्या बातें कर रहे हैं पर मैं कुछ बोला नहीं.

मैं ललित को पास लेकर बोला "तो ललिता रानी, अब बताओ कि बहुत दुखा तो नहीं?"

"बहुत दुखा जीजाजी, कितना बड़ा है आपका, मैंने नहीं सोचा था कि ऐसे मेरी चौड़ी कर देगा. पर ... मजा भी आया जीजाजी, बाद में आप चोद रहे थे तो ... दुखता भी था और ... मस्त गुदगुदी भी होती थी. ... मुझे चोद कर आप को कैसा लगा जीजाजी .... याने दीदी को तो आपने इतनी बार चोदा है ... उसके कंपेरिज़न में?"

"बहुत मजा आया मेरी जान ... क्या मखमली गांड है तेरी जालिम ... पर अपनी दीदी को मत बताना प्लीज़ नहीं तो मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगी, कहेगी कि गांड मेरी मारते हो और तारीफ़ और किसी की गांड की करते हो, भले वो उसके छोटे भाई की गांड हो. पर यार ललित ... मेरा मतलब है ललिता रानी, तेरी गांड की बात ही और है, कसी हुई, कोमल, मखमली, गरम गरम ... एकदम हॉट. मैं तो गुलाम हो गया इस गांड का, अब चाहे तो तू मुझे ब्लैकमेल कर सकता है, मैं कुछ भी कर लूंगा तेरी ये गांड पाने को"

"मैं आप को क्यों ब्लैकमेल करूंगा जीजाजी! आप के साथ तो इतनी मौज मस्ती चल रही है मेरी" वो बोला.

थोड़ी देर से घर का काम निपटाकर शान्ताबाई अंदर आयीं. "क्यों ललित बेटे, ठीक ठाक है ना?"

"हां मौसी, आप ठीक कह रही थीं कि दुखेगा पर मजा आयेगा. वैसा ही हुआ"

"चलो, ये अच्छा हुआ. वैसे तेरी तारीफ़ करनी चाहिये कि तेरे जीजाजी का तूने ऐसे आसानी से ले लिया. तेरी दीदी भी करीब करीब रो दी थी उस दिन"

घर का काम करने के लिये उन्होंने लीना का एक ढीला गाउन पहन किया था. गाउन निकालकर वे बिस्तर पर बैठ गयीं. "चलिये भैयाजी, आप को जो करना है, कीजिये, बहुत देर हो गयी, अब मेरे को जाना है" कहने को वे जल्दबाजी कर रही थीं पर मुझे पता था कि रात भर रोक कर चोदता तो भी वे आसानी से मान जातीं.

"अब पहले आपकी जरा वो स्पेशल बैठक हो जाये शान्ताबाई. आज आपके इस मुलायम माल में घुस जाने का मन हो रहा है" कहकर मैं बिस्तर पर लेट गया और खिसक कर अपना सिर एक बाजू के किनारे पर कर लिया.

"अब ये क्या शौक चर्राया है आज आपको" शान्ताबाई मेरी ओर देख कर बोलीं "पिछली बार दम घुटने लगा था, लीना बाई ने क्या क्या नहीं कहा मेरे को तब"

"अब लीना कभी कभी उलटा सीधा करती है तो मैं क्या करूं बाई? उस दिन मेरा दम वम कुछ नहीं घुटा था, जरा मूड में आकर आपके इस मुलायम बदन की खुशबू ले रहा था मुंह और नाक से, तो वो न जाने क्या समझ बैठी"

"ठीक है, मैं बैठती हूं, मुझे भी अच्छा लगता है ऐसा किसी शौकीन के मुंह पर बैठना. पर एक बार बैठूंगी तो पंधरा बीस मिनिट नहीं उठूंगी ये पहले ही समझ लो. फ़िर मेरे को नहीं बोलना"

"घंटे भर बैठिये ना शान्ताबाई, मुझे ये जन्नत थोड़ी देर और मिलेगी. ललित राजा, तू भी देख, ये नया तरीका है मौसी जैसी मतवाली नार के जोबन को चखने का" ललित बड़े इन्टरेस्ट से ये नया करम देख रहा था.

शान्ताबाई बिस्तर के पास आ कर मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गयीं. मैंने उनके भारी भरकम चूतड़ हाथों में पकड़ लिये और दबाने लगा. एकदम तरबूज थे, रसीले तरबूज. फ़िर टांगों के बीच हाथ डालकर उनकी घुंघराले बालों में छिपी बुर में उंगली की, मस्त एकदम गीली चिकनी थी. वे पीछे देखकर बोलीं "चलो हाथ हटाओ, अब जो कुछ करना है वो मुंह से करो" और वे धप्प से मेरे चेहरे पर अपना पूरा वजन दे कर बैठ गयीं. उनकी मुलायम तपती गीली चूत और नरम नरम नितंबों ने मेरा पूरा चेहरा ढक लिया. मेरा मुंह और नाक दोनों उनके निचले अंगों में समा गये. होठ और ठुड्डी उनकी बुर के पपोटों में दब गये और नाक उनकी गांड के छेद में फंस गयी. मैं बुर के पपोटे चूसने लगा.

ललित की आवाज आयी, वो बेचारा थोड़ा परेशान लग रहा था "मौसी ... अरे ये क्या कर रही हो! जीजाजी का तो पूरा चेहरा तुमने दबा लिया, उनको सांस लेने में तकलीफ़ हो रही होगी"

"हो तकलीफ़ तो हो मेरी बला से, मुझे तो मजा आ रहा है. और मैंने तो कहा नहीं था, ये उन्हींकी फ़रमाइश है" शान्ताबाई बोलीं. फ़िर एक मिनिट बाद हंसकर बोलीं "अरे ऐसा क्या परेशान हो रहा है, कुछ नहीं होगा तेरे जीजाजी को. उनको बहुत मजा आता है. पहले मैं भी सोचती थी कि यह क्या पागलपन करते हैं पर उनको अच्छा लगता है तो ठीक है ना. अब तू आ मेरे पास बैठ और मुझको जरा अपने इस प्यारे प्यारे मुखड़े के चुम्मे दे"

फ़िर चूमाचाटी की आवाज आने लगी. शान्ताबाई की ’अं .. उं ... अं ... चुम ... चुम ..’ ज्यादा सुनाई दे रही थी, वे शायद अपनी चपेट में फंसे उस हसीन जवान लड़के के होंठ कस कस के चूस रही थीं. अब साथ साथ वे थोड़ा आगे पीछे होकर अपनी चूत और अपनी गांड मेरे मुंह और नाक पर घिस रही थीं. उस गीले मांस को मैं सन्तरे जैसा चूस कर चम्मच चम्मच उनकी बुर से रिसता शहद पी रहा था.

"अरे सिर्फ़ मेरी छतियां दबायेगा कि चूसेगा भी? चल अब मुंह में ले ले मेरा दुदू" शान्ताबाई की आवाज आयी. फ़िर स्तनपान कराने के स्वर सुनाई देने लगे.

"क्यों भैयाजी? मजा आ रहा है? स्वाद लग रहा है? फ़िर जरा जीभ भी चलाओ ना, मेरी बुर के अंदर डालो जरा और जीभ से चोदो, देखो कैसी टपक रही है मुई पर झड़ती नहीं"

मैंने जीभ डाली और अंदर बाहर करने लगा. बीच में मेरे होंठों पर जो कड़ा कड़ा चने जैसा दाना महसूस हो रहा था, उसको चूस लेता या हल्के से काट लेता. शान्ताबाई अब धीरे धीरे मेरे सिर पर ऊपर नीचे होने लगी थीं. अचानक बोलीं "ललित ... आ जा मेरी गोद में ... तेरे जीजाजी को जरा और मस्त करते हैं"

कुछ ही देर में उनका वजन एकदम बढ़ गया, ललित उनकी गोद में आ गया था. अब मेरा चेहरा उनकी तपती गीली चूती बुर में ढक गया था. मैंने जो मुंह में आया वो भर लिया. चूसने लगा, बीच में हल्के से काट भी खाया. "उई ऽ मां ऽ ... ओह ऽ मां ऽ... करती शान्ताबाई झड़ गयीं और मेरा पूरा चेहरा गीला हो गया.

दो मिनिट सांस लेने के बाद शान्ताबाई ने ललित को गोद से उतारा और लेट गयीं. मेरी ओर बाहें पसार कर बोलीं "अब आ जाइये भैयाजी ... बहुत देर से इंतजार कर रहे हैं ... और मैं भी कर रही हूं"

"पर झड़ाया तो आपको शान्ताबाई अभी अभी मैंने, फ़िर आप कहां इन्तजार कर रही हैं, इन्तजार तो कर रहा है मेरा ये सोंटा जिसे अब तक आपकी बुर को कूटने का मौका नहीं मिला है" उनकी चूत में लंड पेलते पेलते मैं बोला.

"चुसवाना तो ठीक है भैयाजी पर जब तक बदन के अंदर बड़ा सा लंड न चले, चूत रानी का पेट नहीं भरता" कहकर उन्होंने मुझे खुद के ऊपर चढ़ा लिया. मैं उनपर चढ़ कर चोदने लगा. ये प्योर चुदाई थी, बस घचाघच घचाघच उनकी बुर को मैं कूट कूट कर चोद रहा था. ऐसी चुदाई लीना के सामने करने का ज्यादा मौका नहीं मिलता था इसलिये उन्होंने भी दिल खोल कर चुदवाया, नीचे से चूतड़ उछाल उछाल कर, कमर हिला हिला कर अपनी बुर में लंड पिलवाया. वे ललित को पास लेकर सोयी थीं और उसे बार बार चूम रही थीं. ललित आंखें फाड़ फाड़ कर ये चुदाई देख रहा था. शायद सोच रहा था कि जिस तरह से मैं शान्ताबाई को चोद रहा था, वैसा उसको चोदता तो उसकी गांड का क्या हाल होता! 
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