Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
09-12-2018, 11:45 PM,
#17
RE: Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
इस वक़्त मेरे दोनो बड़े बूब्स बिना चुनरी के कयामत ढा रहे थे......और उपर से समीज़ भी इतनी टाइट थी कि मेरी क्लेवरेज बहुत हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रही थी.......मैं थोड़ा सा झुक कर वही रखा अख़बार पढ़ने लगी.........जैसे ही मैं थोड़ा झुकी मेरी क्लेवरेज और भी बाहर को दिखाई देने लगी........इस वक़्त मेरी 50% बूब्स बाहर की ओर झलक रहें थे........मैं कुछ देर तक वही इसी पोज़िशन में पेपर पढ़ती रही........फिर मैं एक हेडलाइन्स को पढ़कर जैसे ही विशाल की ओर अपना चेहरा किया वो मुझे खा जाने वाली नज़रो से घूरे जा रहा था........

इस वक़्त उसका ध्यान टी.वी स्क्रीन पर बिल्कुल नहीं था........वो मेरे दोनो बूब्स को घूर रहा था.......मुझे तो एक पल ऐसा लगा मानो वो मुझे अपनी नज़रो से पल पल नंगा कर रहा हो.......जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो उसने फ़ौरन अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर ली.........और फिर से वो टी.वी स्क्रीन की ओर देखने लगा......उसके चेहरे पर फिर से पसीने की बूंदे सॉफ झलक रही थी......मेरे चेहरे पर एक कातिल मुस्कान तैर गयी मगर मैं विशाल के सामने कहीं कोई ऐसा रिक्षन नहीं करना चाहती थी जिससे उसे ये लगे कि ये सब मैने जान बूझ कर किया है.....

अदिति- आज कल महँगाई कितनी ज़्यादा बढ़ गयी है......है ना विशाल......अब तो सोना चाँदी के प्राइस आसमान छूने लगे है.......

मेरी बातों को सुनकर विशाल मानो हड़बड़ा सा गया और उसने अपनी नज़रें तुरंत दूसरी तरफ फेर ली.......उसे डर था कि कहीं मैने उसकी नज़रो को पकड़ तो नहीं लिया.......मगर मैं बिल्कुल नॉर्मल बिहेव कर रही थी.......मगर मैने अपनी पोज़िशन नहीं बदली और उसी पोज़िशन में झुक कर बैठी रही.......विशाल के जवाब में डर और कँपकपाहट सॉफ झलक रही थी.......

विशाल- हां दीदी वो.... तो... है.........

मैं विशाल के जवाब को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी और फिर से अपना सारा ध्यान पेपर पर लगा लिया.....विशाल थोड़ी देर तक टी.वी की ओर देखता रहा फिर से वो मुझे घूर घूर कर देखने लगा......बीच बीच में वो टी.वी की ओर भी एक नज़र डाल लिया करता था.......मुझे मेज़ पर लगे शीशे से उसकी हर हरकत सॉफ पता चल रही थी.......मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी......विशाल भले ही मेरे सामने लाख बहाने क्यों ना बनाए मगर सच तो ये था कि वो भी मेरे बदन के उन हिस्सों को देखना चाहता था जो हर मर्द औरत के बदन को देखना चाहता है.......

मेरी चूत इधेर अब गीली होती जा रही थी.......कुछ एग्ज़ाइट्मेंट की वजह से और कुछ दिल में उठ रहे उस मीठे से अहसास से.......जब मैं विशाल को अपने दोनो उभारों के अच्छे से दर्शन करवा दिए फिर मैं फ़ौरन किचन की ओर चल पड़ी......इस वक़्त भी मेरा दुपट्टा वही सोफे पर था.......जैसे ही मैं किचेन में गयी उसके तुरंत बाद विशाल ने टी.वी ऑफ कर दिया और लगभग तेज़ कदमों से चलते हुए वो बाथरूम के अंदर घुस गया..........मैं उसकी हर्कतो पर मन ही मन मुस्कुरा पड़ी.........

मैं ये बात अच्छे से जानती थी कि वो बाथरूम क्यों गया है और अंदर क्या कर रहा होगा........शायद मेरी नाम की मत........हां यक़ीनन.....आज मेरे ख्याल से पहली बार विशाल मेरी नाम की मूठ मार रहा होगा.......ये सब सोचकर एक बार फिर से मेरी साँसें भारी हो चली थी.....दिल में बार बार यही ख्याल आ रहा था कि मैं बाथरूम में जाकर अंदर देखूं मगर ऐसा करना मेरे लिए अभी मुनासिब नहीं था.......

करीब 10 मिनिट बाद विशाल बाथरूम से बाहर आया......वो इस वक़्त पसीने से बुरी तरह से भीग चुका था........और भीगता भी क्यों ना.....आख़िर वो अपने अंदर छुपे हुए उन सैलाब को अभी अभी बाहर निकल कर आ रहा था......वो फिर अपने कमरे में चला गया और अपनी किताबो में खो गया......मैं फिर खाना गरम करके उसके कमरे में ले गयी और वही उसके बेड पर खाना रख दिए........

विशाल- दीदी आप भी खा लो ना मेरे साथ.......मुझे अच्छा लगेगा.......मैं भला विशाल की बातों को कैसे मना करती........मैं भी वही बैठ कर खाना खाने लगी......विशाल बार बार मेरी तरफ देख रहा था....कभी उसकी नज़र मेरे सीने के तरफ जाती तो कभी मेरे चेहरे की तरफ......खाना ख़तम होने तक मैं भी बिल्कुल खामोश रही और वही विशाल भी मुझे एक शब्द कुछ ना कहा........

मैं फिर सारे बर्तन समेटकर किचन की तरफ चल पड़ी........मुझे ये एहसास था कि इस वक़्त विशाल मेरी गान्ड को घूर रहा होगा.......मगर आज के लिए इतना काफ़ी था.......मैं किचन में बर्तन धो रही थी तभी थोड़ी देर बाद मैने विशाल के कदमों की आहट सुनी.......एक बार तो मेरे दिल में मानो सवालों का तूफान सा खड़ा हो गया कि आख़िर क्या बात है विशाल को मुझसे अब क्या काम हो सकता है......कहीं वो आज मेरे जलवों से पिघल तो नहीं गया......

जब मैं उसकी तरफ पलट कर एक नज़र डाली तो अगले ही पल मेरा सारा भ्रम दूर हो गया........विशाल किचन के दरवाज़े के पास खड़ा था.......उसके हाथों में मेरा दुप्पट्टा था......मैं आगे उससे कुछ कह पाती या उससे कुछ पूछती वो फ़ौरन मेरे करीब आया और उसने मेरे कंधो पर मेरी चुनरी डाल दी.......मेरे लिए ये किसी शॉक से कम नहीं था......अब तक जो मैं विशाल के लिए सोच रही थी एक बार फिर से विशाल ने मेरे सारे अरमानों पर मानो पानी सा फेर दिया था........

विशाल- दीदी आप बहुत खूबसूरत हो......अगर खूबसूरती सादगी में रहें तो और भी अच्छी लगती है..........शरम का परदा ही आपका गहना है अगर आप इसे आगे सभाल कर रखेंगी तो ये आपके लिए ही अच्छा है....और एक बात कहूँ आप मुझे ऐसे ही अच्छी लगती है........इतना कहकर विशाल अपने कमरे की तरफ चला जाता है......मैं उसे जाता हुआ बस देख रही थी......आज मेरे पास कहने के लिए एक शब्द भी नहीं थे.........आज एक बार फिर से मैं हार गयी थी.

आज सनडे था......इस लिए आज मुझे कोई जल्दी नहीं थी उठने की........कुछ देर तक मैं यू ही अपने बिस्तेर पर करवट बदलती रही.......विशाल की बातों ने मुझे अंदर तक झांकझोर दिया था........मैं अब पहले से और भी ज़्यादा बेचैन हो गयी थी.....फिर मैं डायरी लेकर उन बीते लम्हों को फिर से लिखने बैठ गयी..... ना जाने क्यों मुझे अब भी उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी.......अभी मैने आस का दामन नहीं छोड़ा था........

थोड़ी देर बाद मम्मी की आवाज़ आई.......वो मुझे हमेशा की तरह अपना रामायण सुना रही थी.......मगर मुझे तो जैसे आदत सी पड़ चुकी थी उनकी बक बक रोज़ सुनने की.......

स्वेता- अरे ओ शहज़ादी आज सनडे है तो इसका मतलब क्या आज सारा दिन सोती रहेगी ......रात को हम देर से आए और थकि हुई तू लग रही है.......चल जल्दी से फ्रेश हो जा.......मैं बुरा सा मूह बनाते हुए अपने बिस्तेर से उठी और सीधा बाथरूम की ओर चल पड़ी.......जैसे ही मैं बाथरूम के पास पहुँची बाथरूम अंदर से लॉक था........इसका मतलब आज विशाल ने मुझसे पहले बाज़ी मार ली थी......

मैं कुछ देर तक वही इधेर उधेर टहलती रही और विशाल के बाहर आने का इंतेज़ार करती रही.......थोड़े देर बाद विशाल बाथरूम से बाहर आया......इस वक़्त उसका जिस्म पानी से भीगा हुआ था.......उसके बाल भी गीले थे......वो अभी अभी नाहकर निकला था.......जैसे ही मेरी नज़र उसपर पड़ी मैं एक बार फिर से उसके मर्दाने जिस्म को देखकर बेचैन सी हो उठी........उसने मुझे देखकर एक प्यारी सी स्माइल दी और फिर वो अपने रूम में चला गया........मैं उसे जाता हुआ देखती रही......फिर मैं भी फ़ौरन बाथरूम में घुस गयी........

जब मैं बाथरूम में गयी तो मेरी नज़र विशाल के अंडरवेर पर पड़ी.......ना जाने क्यों मैं कुछ पल तक खामोशी से वही खड़ी उस अंडरवेर को एक टक देखती रही......फिर कुछ सोचकर मैने एक एक कर अपने सारे कपड़े पूरे उतार दिए......जब मेरे जिस्म पर एक भी कपड़ा ना रहा तब मैं आगे बढ़कर विशाल के भीगे अंडरवेर को बाथ टब से बाहर निकाला और उसे अपने हाथों में लेकर कुछ पल तक टकटकी लगाए उसे घूरती रही........फिर कुछ सोचकर मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी.........

मैं विशाल के अंडरवेर को अपने हाथों में लेकर उसे अपनी नाक की तरफ ले गयी.......वहाँ से उसके बदन की भीनी भीनी खुसबू आ रही थी.......ये खुसबू मुझे मदहोश करने के लिए काफ़ी थी.......पहले तो मुझे ये सब कुछ बुरा सा लगा मगर मेरे अंदर की आग अब एक बार फिर से सुलग चुकी थी.......एक बार फिर से मैं हवस की आग में जल रही थी.......ये मुझे दिन बा दिन क्या होता जा रहा था........कुछ पल तक मैं यू ही उसकी खुसबू को अपने अंदर समेटती रही.....एक बार फिर से मैं मदहोशी के आलम में जा चुकी थी........
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