Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
01-19-2018, 01:30 PM,
#9
RE: Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
गुझिया निकलने के बाद अब उनकी बुर से रस टपक रहा था. मैंने भोग लगाना शुरू कर दिया. राधाबाई एकदम खुश हो गयीं. मेरा सिर पकड़कर मुझसे ठीक से चूत चटवाते हुए बोलीं. "शौकीन हो बेटे, बड़ी चाव से चख रहे हो. मुझे लगा था कि गुझिया खतम होते ही मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब हो जाओगे"

"बाई, ये घी तो असला माल है, इसको और मैं छोड़ूं! वैसे आप ठीक कह रही हैं, मन तो होता है कि आप पर चढ़ जाऊं और पटक पटक कर ... याने आपके इस खालिस बदन का मजा लूं पर आप जो ऐसे मुझे हाथ बांधकर तड़पा रही हैं ... उसमें भी इतनी मिठास है कि ..." राधाबाई ने मेरा मुंह अपनी बुर में घुसेड़कर मेरी आवाज बंद कर दी और आहे पीछे होकर मेरे मुंह को चोदने लगीं. उनकी सहूलियत के लिये मैंने अपनी जीभ अंदर दाल दी. "ओह .. हाय राम ... मर गई मैं ..." कहकर उन्होंने अपना पानी मेरे मुंह में छोड़ दिया.

थोड़ी देर तक वे दम लेने को बैठी रहीं, फ़िर मुझे उठाकर बिस्तर पर ले गयीं "सचमुच रसिया हो बेटे, इतने चाव से बुर का शहद चाटते हो. असली मर्द की पहचान है यह कि बुर का स्वाद उसको कितना भाता है. चलो, तुमको जरा आराम से चटवाती हूं. और मुझे भी तो ये गन्ना चूसना है"

"राधाबाई ... अब तो इस दास के हाथ खोल दीजिये. आपके इस गदराये बदन को बाहों में भींचना चाहता हूं. आपको पकड़कर फ़िर कायदे से आपका रसपान करूंगा, अब रसीला आम चूसना हो तो हाथ में तो लेना ही पड़ता है ना"

"बस, अभी छोड़ती हूं बेटा, बोलते बड़ा मीठा हो तुम" राधाबाई ने मेरे हाथ खोले और उलटी तरफ से मुझे अपने नरम नरम गद्दे जैसे बदन पर सुला लिया. मैंने उनके बड़े बड़े गुदाज चूतड़ बाहों में भरे और सिर उनकी जांघों के बीच डाल दिया. राधाबाई ने मेरा गन्ना निगला और दोनों शुरू हो गये. पांच मिनिट में मुझे घी और शहद मिल गया और उनको क्रीम.

हांफ़ते हुए हम कुछ देर पड़े रहे. फ़िर उठ कर मैं सीधा हुआ और बाई से लिपट गया. "बाई, पहले ही हाथ खोल देतीं तो गुझिया खाने में आसानी नहीं होती मेरे को?"

"नहीं दामादजी, बल्कि जल्दबाजी में मजा किरकिरा हो जाता. मेरे को मालूम है, सब मर्द कैसे हमेशा बेताब रहते हैं, इस गुझिया का असली मजा वो धीरे धीरे खाने में ही है. मेरे को भी ज्यादा मजा आता है और खाने वाले को भी. इसलिये तो हाथ बांधना चालू किया मैंने. सब को बता रखा है कि गुझिया खाना हो, तो हाथ बंधवाओ. खाने वाले को अपने होंठों से मेरी चूत खोलनी पड़ती है, उसमें मुंह डाल कर जीभ से गुझिया का सिरा ढूंढना पड़ता है, फ़िर दांत में पकड़ पकड़कर उसे धीरे धीरे बाहर खींचना पड़ता है, मुझे क्या सुख मिलता है, आप को नहीं मालूम चलेगा" फ़िर वे बेतहाशा मेरे चुंबन लेने लगीं. चूमा चाटी करके फ़िर एक निपल मेरे मुंह में दिया और मुझे कसकर सीने से लगा लिया.

दो मिनिट में मुझे नीचे सुलाकर वे मेरी कमर के पास बैठ गयीं. मेरा मुरझाया शिश्न हाथ में लेकर बोलीं "जाग रे मेरे राजा, तेरा असली काम तो तूने अब तक किया ही नहीं, जब तक नहीं करेगा, तब तक तेरे को नहीं छोड़ूंगी"

"बाई, वो बेचारा दो बार मेहनत कर चुका है सुबह से. अब थोड़ा टाइम तो लगेगा ही. पर आप तब तक मेरे साथ गप्पें मारिये ना, आपकी बातें सुनने में बड़ा मजा आता है. कोई अचरज नहीं कि लीना को आप से इतनी मुहब्बत है"

"वो तो है. पर बेटा, एक बात कहूंगी, तुम बिलकुल वैसे निकले जैसा मेरे को लगता था. लीना के बारे में हमेशा मुझे चिंता लगी रहती थी. उसे रूप की गर्मी सहन कर सके ऐसा मरद मिले ये मैं मनाती थी. अब देखो कितनी खुश है. और तुम इसकी चिंता ना करो" मेरे लंड को पकड़कर वे बोलीं. "इसको मैं देखती हूं, मेरी स्पेशल मालिश शुरू होने दो, तुरंत जाग जायेगा बदमाश"

मुझपर झुक कर उन्होंने मेरी लुल्ली अपनी उन बड़ी बड़ी छतियों के बीच दबा ली और फ़िर खुद अपनी चूंचियों को भींच कर ऊपर नीचे करते हुए मेरे लंड की मालिश करने लगीं. जब लंड ऊपर होता तो बीच बीच में जीभ निकालकर सुपाड़े को चूम लेतीं या जीभ से रगड़तीं. मैंने हाथ बढ़ाया और उनकी बुर में दो उंगलियां डाल कर घुमाने लगा. अभी भी घी टपक रहा था, आखिर एक बढ़िया कुक थीं वे.

उन मुलायम गुब्बरों ने मेरे लंड को पांच मिनिट में कड़क कर दिया. "देखिये दामादजी, जाग गया ना? अब इसे जरा मेहनत कराइये, बहुत देर सिर्फ़ मजा ले रहा है ये" वे बिस्तर पर लेट गयीं और मुझे ऊपर ओढ़ लिया.

उनके गरम घी के डिब्बे में अपना बड़ा चम्मच डालता हुआ मैं बोला "बाई, मेरे को लगा कि तुम भी मेरे को लिटाकर ऊपर से चोदोगी. आज सब मेरे साथ यही कर रहे हैं. हाथ पैर बांधकर डाल देते हैं और मुझपर चढ़ कर चोद डालते हैं, जैसी चाहिये वैसी मस्ती कर लेते हैं"

"अब नाराज ना हो बेटा, ये सब तुम्हारे भले के लिये ही किया है उन्होंने. तुमको सांड जैसे खुला छोड़ देते तो अब तक चार पांच बार झड़कर लुढ़के होते कहीं. उसके बाद वे क्या करते? मेरे नाश्ते का क्या होता? तुमको दिन भर मजा लूटना है बेटा, इसलिये सब्र करना जरूरी है. वैसे मैं तुमपे चढ़ भी जाती तो ये मुआ बदन मेरे को ज्यादा देर कुछ करने देता? थक कर चूर हो जाता"

"अपने बदन को भला बुरा मत बोलो बाई. मस्त भरा पूरा मांसल मुलायम मैदे का गोला है. इसको बाहों में लेने वाले को स्वर्ग सुख मिलता है" मैंने धीरे धीरे लंड उनकी बुर में चलाते हुए तारीफ़ की.

"आपको अच्छा लगेगा अनिल बाबू ये मेरे को विश्वास था, आखिर इस घर में मेरे जो सब चिपकते हैं उसकी कोई तो वजह होगी. पर सच में बेटा, आज कल मेरा सांस फूल जाती है इसलिये जवानी जैसी चुदाई अब कहां कर पाती हूं, तब देखते, एक एक को पटक कर ऐसी रगड़ती थी मैं ... खैर जाने दो बेटा, अब तुम मेरे को अपनी जवानी दिखाओ, चोद डालो हचक हचक कर ... मैं तो राह ही देख रही थी अपने जमाई राजा की" मुझे नीचे से कस के बाहों में बांधती राधाबाई बोलीं. "वो बात क्या है बेटा, अभी यहां ज्यादातर सब औरतें ही हैं. वैसे वे सब भी मेरा बहुत खयाल रखती हैं, मेरे अंग लगती हैं मेरे को दिलासा देने को, मीनल बिटिया तो आफ़िस जाने के पहले पंधरा मिनिट मुझे अपने कमरे में बुलाती ही है, मालकिन तो हमेशा ही रहती हैं घर में, हर कभी मेरे साथ लग जाती हैं, अब लीना बिटिया आ गयी है तो वो तो मेरे को छोड़ती ही नहीं. पर बुर रानी की कूट कूट कर ठुकाई करने के लिये सोंटा चाहिये, वो कहां से आयेगा. अब हेमन्त भैया भी बाहर रहे हैं इतने दिनों से. और मेरी इस बेशरम चूत को तो आदत है कि दो तीन घंटे ठुकाई ना हो तो बेचैनी होने लगती है ... तो बेटे अब जरा अपनी इस बाई को खुश कर दो आज"

"चिंता ना करो बाई, आज तुम्हारी बुर को ऐसे सूंतता हूं कि दो तीन दिन चुप रहेगी. पर बाई, ये समझ में नहीं आया कि ललित तो है ना यहां. याने सब औरतें नहीं हैं, एक तो जवान छोकरा है ना. तुम्हारा लाड़ला भी है, वो इसकी खबर नहीं लेता?" मैंने बाई की बुर में धक्के लगाते हुए चोदना शुरू करते हुए कहा.

"कहां अनिल बाबू, वो भी कहां ज्यादा घर में रहता है, अब वो स्कूल में थोड़े ही है, कॉलेज में गया है, बहुत पढ़ाई करना पड़ती है. पिछले साल बोर्ड की परीक्षा थी. अब उस बेचारे का जितना टाइम है, वो मालकिन और मीनल बिटिया को ही नहीं पूरा पड़ता तो मैं कहां बीच में घुसने की कोशिश करूं? हेमन्त भैया थे तब बात अलग थी. और अब तो कुछ ना पूछो. लीना बेटी तो एक मिनिट नहीं छोड़ती उसको, आखिर अपनी दीदी का लाड़ला है. आज सुबह से तो दिखा भी नहीं मेरे को, लीना ने अपने कमरे से बाहर ही नहीं आने दिया उसको ... हां ... आह ... आह ... बस ऐसा ही धक्का लगाओ मेरे राजा ... उई मां ... कितनी जोर से पेलते हो बेटा ... लगता है मेरे पेट में घुस गया ... हाय ... चोद डाल मेरे बेटे ... चोद डाल ..." मस्ती में बेहोश होकर राधाबाई नीचे से कस कस के धक्के लगाती हुई बोलीं.

आखिर जब मैं झड़ने के बाद रुका, तब तक राधाबाई की बुर को ऐसा रगड़ दिया था कि वे तृप्त होकर बेहोश सी हो गयी थीं. आज पहली बार मुझे ठीक से चोदने मिला था, उसका पूरा फायदा मैंने ले लिया था. मेरे खयाल से वे दो तीन बार झड़ी थीं. उन्होंने इतना बढ़िया नाश्ता कराया था, उसका भी कर्जा उतारना था मेरे को.

संभलने पर राधाबाई ने पड़े प्यार से मेरा चुंबन लिया. फ़िर उठकर मुझे बचा हुआ बादाम का हलुआ जबरदस्ती खिलाया "अब खा लो चुपचाप. इतनी मेहनत की, आगे भी करनी है, पाव भर बादाम डाले हैं मैंने इसीलिये. पेट भर खा लो और थोड़ा आराम भी कर लो, मैं सबको बता देती हूं कि दो तीन घंटे कोई परेशान नहीं करेगा अब."

फ़िर कपड़े पहन रही थीं तब बोलीं " अब कब दर्शन दोगे जमाईराजा? मैं तो गांव जा रही हूं, वापस आऊंगी तब तक तुम जा चुके होगे. अगले साल मिलोगे ऐसा बोलने का जुलम मत करो बेटा. जल्दी आओ. अभी तो कितनी मौज मस्ती करनी है तुम्हारे साथ, इतने खेल थे जो तुम्हारे साथ खेलने में मजा आता"

"बाई, तुमने बंबई देखी है?" मैंने पूछा. "नहीं ना, मुझे लगा ही था. फ़िर ऐसा करो, तुम ही बंबई आ जाओ. दो हफ़्ते रहो. बंबई भी दिखा देंगे और खेल भी लेंगे जो खेल तुमको आते हैं"

राधाबाई की बांछें खिल गयीं. "हां मैं आऊंगी बेटा. लीना बिटिया को बोल कर रखती हूं कि दो माह बाद ही मेरा टिकट बना कर रखे. अब चलती हूं, घर जाकर तैयारी करना है, गांव की बस छूट जायेगी.

"पर गांव क्यों जा रही हो बाई, बाद में चली जाना, रुक जाओ दो दिन"

"नहीं बेटा, मेरा छोटा भाई और उसकी बहू मेरी राह देख रहे हॊंगे. दीवाली में नहीं जा पाई तो बड़े नाराज हैं. वो बहू तो कोसती होगी मेरे को. वो क्या है, मैं उसके बहुत लाड़ करती हूं, बचपन से जानती हूं ना. समझ लो जैसी लीना बिटिया यहां है, वैसे वहां वो है. छोटे भैया की शादी भी उससे मैंने ही कराई थी. और मेरा भाई भी बड़ा दीवाना है मेरा, बिलकुल अपने ललित जैसा. बस जैसे यहां का हाल वैसा ही समझ लो. इसलिये मेरे को भी नहीं रहा जाता, साल में तीन चार बार हो आती हूं"

मुझे पलंग पर धकेल कर उन्होंने फ़िर से मेरा कस के चुम्मा लिया "छोड़ा तो नहीं जा रहा तुमको पर ... अब आप सो जाओ दामादजी"
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